Monday 5 February 2024

पद्म पुरस्कारों से अलंकृत राज्य झारखंड

पद्म पुरस्कारों की परंपरा वर्ष 1954 में प्रारंभ की गई थी. तब से लेकर आज तक कुल 50 भारत रत्न, 336 पद्म विभूषण, 1320 पद्म भूषण एवं 3531 पद्मश्री प्रदान किये जा चुके हैं. इनमें झारखंड की झोली में 3 पद्म भूषण और 29 पद्मश्री पुरस्कार आये हैं. वर्ष 1989 में टाटा स्टील के तत्कालीन चेयरमैन रुसी मोदी को व्यापार एवं उद्योग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए देश के तीसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म भूषण से नवाजा गया. वहीं 2018 में क्रिकेट के मैदान में झारखंड का परचम लहराने वाले कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धौनी को पद्म भूषण से अलंकृत किया गया, उन्हें
2009 में पद्मश्री पुरस्कार भी प्रदान किया जा चुका है. आठ बार सांसद रह चुके पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष एवं सादगी के प्रतीक आदिवासी नेता कड़िया मुंडा को वर्ष 2019 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. वर्ष 2010 में सामाजिक कार्यकर्त्ता व गांधीवादी शैलेश कुमार बंदोपाध्याय को पद्मभूषण से पुरस्कृत किया गया. हालांकि उनका नाम पश्चिम बंगाल की सूची में दर्ज है, किंतु उनका जन्म झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला के चक्रधरपुर में हुआ था.

वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्म पुरस्कारों की सूची में जिला सरायकेला की चामी मुर्मू और जमशेदपुर की पूर्णिमा महतो का नाम शामिल है. चामी मुर्मू पर्यावरण कार्यकर्त्ता के रुप में लोकप्रिय हैं. पूर्व में इन्हें नारी शक्ति पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है. चामी मुर्मू ने 3000 महिला समूह बनाकर 30 हजार महिलाओं को स्वराेजगार से जोड़ा है. वे सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड भाग-16 की जिला परिषद सदस्य हैं. उन्होंने राजनगर के बगराईसाई में सहयाेगी महिला संस्था का गठन किया था. उनकी संस्था अब तक 720 हेक्टेयर भूमि पर लगभग 30 लाख पौधरोपण कर चुकी है. जिला पूर्वी सिंहभूम की पूर्णिमा महतो भारतीय तीरंदाजी टीम की कोच हैं. उन्होंने 1998 के राष्ट्रमंडल खेलों में एक रजत पदक जीता था. वे भारतीय राष्ट्रीय तीरंदाजी चैंपियनशिप भी जीत चुकी हैं. पूर्णिमा महतो को पूर्व में द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है, वे झारखंड की पहली महिला खिलाड़ी हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

हो भाषा के सरंक्षण व संवर्धन के लिये विगत कई दशकों से प्रयासरत रहे कोल्हान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं शिक्षाविद् डॉ. जानुम सिंह सोय को गत वर्ष 2023 में पद्मश्री से नवाजा गया. जनजातीय संस्कृति और जीवनशैली पर कलम चलाने वाले मूर्धन्य साहित्यकार प्रो. जानुम सिंह सोय ने 'हो लोकगीतों का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन' विषय पर पीएचडी की है. सोय पूर्वी सिंहभूम जिला के धालभूमगढ़ प्रखंड में निवास करते हैं. इसी जिला के चाकुलिया प्रखंड में रहने वाली पर्यावरणप्रेमी, बहादुर, समाजसेवी व कुशल संगठनकर्ता जमुना टुडू को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. जमुना टुडू लेडी टार्जन के नाम से लोकप्रिय हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान मन की बात के 53वें एपिसोड में 24 फरवरी 2019 को जमुना टुडू के संघर्ष की कहानी पूरे राष्ट्र को सुनाई थी.

जिला पूर्वी सिंहभूम के करनडीह में अवस्थित लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज (एलबीएसएम कॉलेज) के प्राचार्य रहे स्व. प्रो. दिगंबर हांसदा को वर्ष 2018 में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया. सरल व सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले दिगंबर हांसदा ने कोल्हान विश्वविद्यालय का सिंडिकेट सदस्य रहते हुए शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में संताली को शामिल करने हेतु मजबूती से अपना पक्ष रखा. उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संताली भाषा का कोर्स संगृहीत किया. स्कूल कॉलेज के पाठ्यक्रम में संताली भाषा की पुस्तकों को जुड़वाने का श्रेय प्रो. दिगंबर हांसदा को ही जाता है. शिक्षा के प्रति उनका रुझान व समर्पण ऐसा था कि सेवानिवृति के काफी समय बाद तक भी वे अपने कॉलेज में कक्षाएं लेते रहे, वह भी अवैतनिक, पूर्णतः निःशुल्क. केवल एक ही जज्बा था कि कैसे ज्यादा से ज्यादा बच्चों को संताली भाषा व ओलचिकि लिपि का ज्ञान दिया जा सके.

जल पुरुष के नाम से लोकप्रिय पर्यावरणविद पड़ाह राजा सिमोन उरांव को जल संरक्षण, जल संग्रहण, वन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए 2016 में पद्मश्री से विभूषित किया गया. बाबा सिमोन उरांव रांची जिला के बेड़ो प्रखंड में रहते हैं. उन्होंने अपने
गांव के झरिया नाला के गायघाट के पास नरपतना में 45 फिट का बांध बनाया था. वह बांध अगले ही मानसून के दौरान तेज बारिश में बह गया. तब उन्होंने खक्सी टोला के निकट छोटा झरिया नाला में दूसरे नए बांध का निर्माण किया. उनके प्रयास से लघु सिंचाई योजना के अन्तर्गत हरिहरपुर जामटोली के निकट देशवाली बांध का निर्माण हुआ. साथ ही अगले कुछ वर्षों में अलग अलग प्रयासों में कई स्थानों में चेकडैम बने. आज उनके आस पास के गांवों में सब्जियों की भरपूर पैदावार होती है.

शिक्षाविद् , अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री, साहित्यकार, अप्रतिम आदिवासी कलाकार , बांसुरी वादक, संगीतज्ञ, पूर्व राज्यसभा सांसद एवं बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी स्व. डॉ. आर. डी. मुंडा को वर्ष 2010 में देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से अलंकृत किया गया. विख्यात फिल्म गाड़ी लोहरदगा मेल के प्रेरणास्त्रोत डॉ. मुंडा कहते थे कि 'नाच गाना आदिवासी संस्कृति है, जब काम पर जाओ तो नगाड़ा लेकर जाओ और जब थकान हो जाए, काम से जी ऊबने लगे तो थोड़ी देर नगाड़ा बजाओ.' उनका मानना था कि 'पूरा देश मरुभूमि बनने के कगार पर है. केवल जहां जहां आदिवासी रहते हैं, वहीं थोड़ा जंगल बचा है. अतः यदि जंगल को बचाना है तो आदिवासियों को बचाना होगा.'
देशज पुत्र डॉ. मुंडा ने पूरी दुनिया के जनजातीय समुदायों को संगठित किया. प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाए जाने वाले विश्व जनजातीय दिवस की परंपरा को शुरू करवाने में उनका अहम योगदान रहा.

झारखंड के जनजातीय समुदाय के लोग ना केवल देश की विरासत और परंपराओं को सहेजे हुये हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को सौंपने हेतु कटिबद्ध दिखते हैं. पारंपरिक
गीत संगीत, लोकनृत्य, वाद्ययंत्र, औषधीय ज्ञान, प्रकृति प्रेम, पुरखों के प्रति सम्मान और संगठन के प्रति समर्पण का ही नतीजा है कि आज देश भर का जनजातीय समुदाय काफी सशक्त हो चुका है. देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर जनजातीय महिला आसीन हैं, वे झारखंड की पूर्व राज्यपाल रह चुकी हैं. किंतु ऐसा नहीं है कि यहां कि सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को केवल आदिवासियों ने ही सहेज कर रखा है. इस समग्र विरासत को आगे बढ़ाने एवं समृद्ध करने में झारखंड के गैर आदिवासियों का भी अतुलनीय योगदान रहा है. रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष स्व. गिरधारी राम गोंझू को वर्ष 2022 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया. वे नागपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार थे. विद्वान लेखक गिरधारी राम गोंझू ने झारखंड की सांस्कृतिक विरासत, नागपुरी के प्राचीन कवि, झारखंड के लोकगीत, झारखंड के वाद्य यंत्र, सदानी नागपुरी व्याकरण, नागपुरी शब्दकोश, मातृभाषा की भूमिका, खुखड़ा-रगड़ी, ऋतु के रंग मंदार के संग, महाबली राधे का बलिदान, झारखंड का अमर पुत्र मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, महाराजा मदरा मुंडा और अखरा निंदाय गेलक इत्यादि कई पुस्तकों का लेखन किया.

ठेठ नागपुरी संगीत व गीत की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्पित मुकुंद नायक को वर्ष 2017 में कला एवं संगीत के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. वे पंचपरगनिया, बांग्ला, मुंडारी, कुडुख, नागपुरी, खोरठा जैसी स्थानीय भाषाओं में गीत गाते हैं. ज्यादातर स्वरचित गीत गाने वाले मुकुंद नायक एक विद्वान गीतकार, संगीतज्ञ, ढोलकिया, नर्तक, लोक गायक, प्रशिक्षक, नागपुरी लोक नृत्य झुमइर के प्रतिपादक एवं लोक संस्कृति के वाहक हैं.
झारखंड के सिमडेगा जिला के गांव बोक्बा में घासी जाति में जन्में मुकुंद नायक अपनी जाति का परिचय भी अपनी विशिष्ट शैली में देते हैँ - 'जहां बसे तीन जाइत, वहां बाजा बजे दिन राइत, घासी- लोहरा और गोड़ाइत.' 

नागपुरी गीतों के अप्रतिम लेखक मधु मंसूरी हंसमुख को वर्ष 2020 में पद्मश्री से विभूषित किया गया. झारखंड आंदोलन के दौरान उनके लिखे गीत गुंजयमान रहे हैं. 'गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं.....' गीत के रचयिता मधु मंसूरी हंसमुख रांची जिला के रातू प्रखंड के सिमलिया गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने नागपुरी भाषा में 300 से भी ज्यादा गीत लिखे हैं. उनके ज्यादातर गीतों में सामाजिक सरोकार के स्वर मुखर हैं. झारखंड की रॉक कला और जनजातीय भित्ति चित्रों पर गहन शोध व लेखन के लिए लोकप्रिय बुलु इमाम को वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
जनजातीय कला एवं संस्कृति के सरंक्षण में उनका अद्वितीय योगदान है. उन्होंने हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय और आर्ट गैलरी की स्थापना की है. गुमला जिला के बिशुनपुर में आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कार्यरत संस्था विकास भारती के सचिव बाबा अशोक भगत को 2015 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया.

झारखंड ने सबसे ज्यादा पद्मश्री पुरस्कार छऊ नृत्य कला में बटोरे हैं. जिला सरायकेला खरसावां का छऊ नृत्य विश्व प्रसिद्ध है. कहा जा सकता है कि छऊ नृत्य व मुखौटों के कारण ही देश के कला मानचित्र पर सरायकेला का नाम अंकित है. छऊ नृत्य एवं छऊ मुखौटा निर्माण की कला के सरंक्षण एवं संवर्धन के लिए समय समय सरायकेला के कई कलाकारों को पद्मश्री से पुरस्कृत किया जा चुका है. वर्ष 1991 में सरायकेला राजघराने के राजकुमार स्व. शुभेंदु नारायण सिंहदेव एवं वर्ष 2005 में छऊ नृत्य कला केंद्र के संस्थापक निदेशक स्व. गुरु केदारनाथ साहू को पद्मश्री सम्मान से पुरस्कृत किया गया. वर्ष 2006 में छऊ नृत्य के प्रतिपादक गुरु स्व. श्यामाचरण पति एवं वर्ष 2008 में छऊ नृत्य प्रशिक्षक गुरु स्व. मंगला प्रसाद मोहंती को पद्मश्री से विभूषित किया गया. वर्ष 2011 में छऊ नृत्य गुरु स्व. मकरध्वज दारोगा एवं छऊ नृत्य को बढ़ावा देने के लिए गठित संस्था त्रिनेत्र के संस्थापक स्व. पंडित गोपाल प्रसाद दुबे को वर्ष 2012 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया.
अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी के छऊ नर्तक शशधर आचार्या लगभग 50 देशों में छऊ नृत्य का प्रदर्शन कर चुके हैं, उन्हें वर्ष 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

सातों महाद्वीपों के शिखर पर चढ़ने का अद्वितीय साहस करने वाली भारत की पहली महिला प्रेमलता अग्रवाल को वर्ष 2013 में देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया. जमशेदपुर की रहने वाली प्रेमलता अग्रवाल ने दक्षिण अफ्रीका के किलीमंजारो, एशिया के माउंट एवरेस्ट, साऊथ अमेरिका के अकांकागुआ, यूरोप के एल्ब्रस, आस्ट्रेलिया के
क्रांसटेज पिरामिड, अंटार्कटिका के माउंट विनसन मैसिफ एवं नार्थ अमेरिका के डेनाली पर्वतों की चोटी पर तिरंगा लहरा कर पर्वतारोहण के क्षेत्र देश का मान बढ़ाया है.
वे माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला पर्वतारोही होने का कीर्तिमान बना चुकी हैं.

खेल के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाली अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज दीपिका कुमारी को 2016 में पद्मश्री से विभूषित किया गया. राष्ट्रमंडल खेल में भारत की झोली में स्वर्ण पदक लाने वाली दीपिका अत्यंत निर्धन परिवार से ताल्लुक रखती हैं. इनके पिता ऑटो चालक एवं माता नर्स हैं.
भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में कई स्वर्ण रजत पन्नों को जोड़ने वाली दीपिका को अर्जुन पुरस्कार भी प्रदान किया जा चुका है. बॉडीबिल्डिंग के 80 किलो भार वर्ग में मिस्टर यूनिवर्स का खिताब जीत चुके प्रेमचंद डोगरा को वर्ष 1990 में पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया था. भारतीय टीम एथलेटिक्स के पूर्व कोच बहादुर सिंह को वर्ष 1983 में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया था. जमशेदपुर से जुड़े बहादुर सिंह शॉट पुट के खिलाड़ी रहे हैं, इन्होंने भारत की झोली में कई स्वर्ण और रजत पदक भरे. उनका मानना है कि 'झारखंड के प्रतिभावान खिलाड़ियों में काफी संभावनाएं हैं. सिर्फ उन्हें तराशने की आवश्यकता है. जब तक आप बच्चों को खेलों से नहीं जोड़ेंगे, तब तक हम बेहतर खिलाड़ी नहीं निकाल सकते.'

सरायकेला-खरसांवा जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली छुटनी देवी महतो की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है. जादू टोना ओझा गुनी का मुखर विरोध करने वाली छुटनी देवी को डायन कह कर प्रताड़ित किया गया. उनके ऊपर मल मूत्र तक फेंके गए. ऐसे जुल्मों को सहन करने वाली
छूटनी देवी ने हार नहीं मानी और सामाजिक कुप्रथाओं के विरुद्ध लड़ती रहीं. उनके संघर्ष को तब मुकाम मिला, जब वर्ष 2021 में उन्हें रायसीना की पहाड़ी से बुलावा आया और राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री पदक प्रदान किया गया.

रांची के लालपुर की पैथ लैब में बैठ कर मरीजों का परचा लिखने वाले गुमनाम हीरो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी गरीबों से महज पांच रुपये फीस लेते हैं. रिम्स, रांची के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. मुखर्जी पिछले कई दशकों से रोजाना दो-तीन घंटे गरीब मरीजों का ईलाज करते आ रहे हैं. वे दवा कंपनियों से मिलने वाली सैंम्पल की मुफ्त दवाओं को भी जरुरतमंदों में बांट देते हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व को वर्ष 2019 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया.

झारखंड की भूमि हिंदी पत्रकारिता के लिए भी काफी उर्वरा रही है. कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों का प्रकाशन इस धरती से होता है. इसी पत्रकारिता जगत से राज्य के वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त को वर्ष 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. केंद्रीय मृदा और जल संरक्षण अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान , चंडीगढ़ के प्रमुख डॉ परशुराम मिश्रा को वर्ष 2000 में विज्ञान और इंजिनियरिंग के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया था. राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) एवं वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के निदेशक रहे धातुविज्ञानी स्व. बाल राज निझावन को वर्ष 1958 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

संदीप मुरारका 
(लेखक जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखनेवाले कलमकार एवं व्याख्याता हैं.)
www.sandeepmurarka.com
9431117507

Tuesday 26 September 2023

दायित्व निर्वहन : संदीप मुरारका

दायित्व निर्वहन -

साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थान :
सरंक्षक, संस्कार भारती, जमशेदपुर
पूर्व महासचिव, जगतबंधु सेवासदन पुस्तकालय
सदस्य, अखिल भारतीय साहित्य परिषद
सदस्य, सहयोग (बहुभाषीय साहित्यिक संस्था)
संस्थापक सदस्य, झारखंड राजस्थानी अकादमी, रांची
आजीवन सदस्य, सैल्यूलाइड चैप्टर
सदस्य, साहित्य धरा अकादमी, दुमका (सदस्यता संख्या SDA0384)

सामाजिक संस्थान -
अध्यक्ष, पूर्वी सिंहभूम जिला अग्रवाल सम्मेलन
सलाहकार, अग्रवाल समाज फाउंडेशन
उपाध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन, IVF
सदस्यता संख्या 066 16 03618
पूर्व कार्यसमिति सदस्य, राजस्थान युवक मंडल
सदस्यता संख्या G 174
पूर्व महासचिव, पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन
पूर्व अध्यक्ष, मारवाड़ी सम्मेलन, जुगसलाई शाखा
पूर्व अध्यक्ष, मारवाड़ी युवा मंच, जमशेदपुर शाखा
पूर्व प्रांतीय कार्यसमिति सदस्य, झा. प्रा. मा. यु. म.
पूर्व सचिव, राजस्थान सेवासदन हॉस्पिटल
ट्रस्टी सदस्य, श्री टाटानगर गौशाला
पूर्व अध्यक्ष, जायंट्स ग्रुप ऑफ जमशेदपुर
पूर्व फेडरेशन अध्यक्ष, जायंट्स वेलफेयर फाउंडेशन, ब्रांच 8
सरंक्षक सदस्य एवं पूर्व सचिव, भारतीय रेड क्रॉस सोसाईटी, जमशेदपुर
सह सरंक्षक, भारतीय रेड क्रॉस सोसाईटी, सरायकेला खरसावां
आजीवन सदस्य, कॉयंस कलेक्टर्स क्लब, जमशेदपुर
सदस्य, हिंद एकता मंच, जुगसलाई

धार्मिक संस्थान -
ट्रस्टी सदस्य, श्री राजस्थान शिव मंदिर, जुगसलाई
सदस्य, श्री बैकुंठ धाम मंदिर, महतो पारा, जुगसलाई
सदस्य, श्री सत्यनारायण मारवाड़ी ठाकुरबाड़ी ट्रस्ट, साकची
पूर्व अध्यक्ष, श्री श्री दुर्गे अखंड अखाड़ा, महावीर मंदिर, जुगसलाई
पूर्व अध्यक्ष, श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति, नया बाजार, जुगसलाई

व्यवसायिक संस्थान -
सदस्य, सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज
पूर्व क्षेत्रीय उपाध्यक्ष, फेडरेशन झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज
सदस्य, आदित्यपुर स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
पूर्व सदस्य, सी आई आई, जमशेदपुर

Sunday 1 January 2023

जनजातीय संस्कृति और परंपराओं से समृद्ध भारतवर्ष



कहते हैं कि अपने देश की संस्कृति हजारों साल पुरानी है, लेकिन इतिहासकारों ने संस्कृति के असल संवाहको के साथ न्याय नहीं किया। मेरा मानना है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की सबसे बड़ी संवाहक हैं यहां की विभिन्न जनजातियां, जो स्वयं में इतिहास की उन अनकही कहानियों को समेटे हुए हैं, जिन्हें कलमबद्ध नहीं किया जा सका। भारत के विभिन्न राज्यों में फैली इन जनजातियों ने ना केवल पौराणिक संस्कृति और परंपराओं को कायम रखा है बल्कि आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में भी सांस्कृतिक विरासतों को सहेज रखा है।

जब भी हम आदिवासियों की बात करते हैं, तो नामचीन साहित्यकारों द्वारा बताया जाता है कि उनकी दुनिया हाशिए पर है, वे भूखे नंगे वंचित हैं, वे शहर कस्बे की बजाए पेड़ पौधे, नदी तालाब, पहाड़ कंदराओं और जंगलों में रहते हैं, वे दुनिया की तमाम आधुनिक सुख सुविधाओं से महरूम हैं और समाज की मुख्यधारा से अलग विचरते हैं। किंतु वास्तविकता में ऐसा नहीं है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें जनजातियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा ना की हो। जनजातीय संस्कृति सदैव से समृद्ध व समुन्नत रही है। झारखंड, बिहार और ओड़िशा के जनजातीय समुदाय की परंपराओं और संस्कृति से तो हम गाहे बेगाहे अवगत होते रहते हैं, चलिये आज बात करते हैं देश के अन्य राज्यों की, जहां के जनजातीय लोग स्वदेशी संस्कृति और विरासत को मजबूत करने में जुटे हैं।

त्रिपुरा -
त्रिपुरा की एक जनजाति है रेयांग (ब्रू), जिनकी संस्कृति उनके प्रसिद्ध लोकनृत्य 'होजागीरी' में परिलक्षित होती है। इस सामूहिक नृत्य में 4- 6 युवतियां  सिर पर पारंपरिक बोतल 'बोडो' और हाथ में मिट्टी के पारंपरिक दीपक 'कूपी' लेकर नृत्य करती हैं। साथ ही पुरुष पवन वाद्ययंत्र 'सुमी' बजाते हुए गायन करते हैं। वर्ष 2021 में देश की इस सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिये रेयांग जनजाति के विख्यात लोकनृत्य गुरु माइत्याराम (सत्यराम) रेयांग को पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया गया।

कहते हैं कि परंपराएं समुदायों का इतिहास बताती हैं और ऐसी ही एक पुरातन संगीत परंपरा के वाहक हैं त्रिपुरा की डारलोंग जनजाति के 102 वर्षीय थांगा डारलोंग, जिन्होंने ना केवल पारंपरिक वाद्य यंत्र 'रोजेम' को संरक्षित किया है,  बल्कि अपने समुदाय के युवाओं को उसमें पारंगत भी कर रहे हैं। रोजेम बांस का बना एक वाद्य यंत्र होता है। थांगा डारलोंग जब उसपर धुन छेड़ते हैं तो लोगों के पांव थिरकने लगते हैं। वर्ष 2019 में भारत सरकार ने उनको देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से अलंकृत किया।

जमाटिया जनजाति के स्व. बेनीचंद्र जमाटिया त्रिपुरा की एक आध्यात्मिक विभूति थे, उन्होंने कोकबोरोक भाषा में 
भगवान श्रीकृष्ण पर आधारित असंख्य भक्ति गीतों की रचना की। फूलों को एकत्रित कर माली जिस प्रकार माला गूंथता है, उसी प्रकार शब्दों को पीरोकर बेनीचंद्र ने लैटिन अंग्रेजी एवं कोकबोरोक भाषा में एक पुस्तक को आकार दिया। वे स्वनिर्मित 'तीन तारा वाद्ययंत्र' बजा कर अपनी रचनाओं का गायन भी किया करते थे। वर्ष 2020 में जनजातीय संस्कृति के संवाहक बेनीचंद्र जमाटिया को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

गुजरात -
सूरत शहर से जुड़े लोगों के सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है 'डायरो', जो वहां की एक लोक संगीत परंपरा है, जिसमें कलाकार लोक कथाएं गाते हैं। अपनी आवाज के चुंबकीय आकर्षण से लोगों को खींचने वाले चारण जनजाति के भीखुदान गोविंद भाई गढ़वी ने डायरो लोकगीतों की एक अशेष श्रृंखला निर्मित की है, जिसमें 350 से ज्यादा ऑडियो एल्बम होंगे। भीखुदान भाई की लोकप्रियता का आलम यह है कि गुजराती भाषा व साहित्य का कोई सार्वजनिक कार्यक्रम हो और वहां उनकी मौजूदगी ना हो, ये हो नहीं सकता। वर्ष 2016 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया है।

चारण जनजाति के अप्रतिम गीतकार कवि काग को संत मोरारी बापू ने एक नया नाम दिया है - 'काग ऋषि'। वर्ष 1962 में पद्मश्री से अलंकृत भगत बापू और काग बापू के नाम से विख्यात कवि दुला भाया काग को इस सदी के वाल्मीकि की संज्ञा दी जा सकती है। आम बोलचाल की भाषा में कविताएं लिखने वाले भगत बापू कहा करते थे कि "कवि की कविता और धनुष का बाण, यदि दिल में ना उतरे, तो उसका उपयोग कैसा?"

वर्ष 1990 में कला के क्षेत्र में पद्मश्री से विभूषित भील जनजाति की पार्श्वगायिका दिवालीबेन पुंजभाई भील को 'गुजरात की कोयल' कहा जाता है। जीवन के प्रारंभिक संघर्ष के दिनों में एक दवाखाना में साफ सफाई का काम करने वाली दिवालीबेन ने भजन व लोकगीत गायन में विश्वभर में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने ना जाने कितनी ही फिल्मों में पार्श्व गायिका के रुप में गीत गाए और उनके कई आडियो एल्बम रिलीज हुए। सदैव पारंपरिक वेशभूषा में रहने वाली, सादगी की प्रतिमूर्ति, देश विदेश में हजारों कन्सर्ट कर चुकी महान लोक कलाकार पार्श्वगायिका पद्मश्री दिवाली बेन की साड़ी का पल्लू भी कभी सर से नीचे नहीं सरका। ऐसे महान जनजातीय लोककलाकारों से ही भारतवर्ष का हर हिस्सा सांस्कृतिक और पारंपरिक रुप से समृद्ध है।

तेलंगाना -
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कोया आदिवासी समुदाय की विलुप्त हो रही कला 'कंचुमेलम-कंचुथलम' को पुनर्जीवित करने वाले साकीनी रामचंद्रैया एक मुखर लोक गायक और ढोल वादक हैं। कोया कलाकार रामचंद्रैया ने आदिवासी योद्धाओं एवं पुरखों की कहानियां कहते गीतों का एक वृहत संग्रह तैयार किया है। वर्ष 2022 में पद्मश्री से सम्मानित लोकगायक रामचंद्रैया अपने गीतों के जरिये जनजातीय समुदाय के इतिहास को नई पीढ़ी को सौंपने एवं देश की संस्कृति को समृद्ध करने का महान कार्य कर रहे हैं।

मोर पंख, हिरण के सींग, बकरी के खाल की पगड़ी, कृत्रिम दाढ़ी- मूंछें, शरीर पर राख और रंग बिरंगी पोशाकों से सजे हुए कलाकार दीपावली के समय जब 'गुस्सादी नृत्य' प्रस्तुत करते हैं, तो विदेशी पर्यटकों का जमावाड़ा लग जाता है। ऐसा लगता है मानो अपने देश की संस्कृति कितनी समृद्ध है जिसे देखने विदेशी भी आतुर रहते हैं। इसी 'गुस्सादी' नृत्य शैली के संवर्द्धन का श्रेय जाता है तेलंगाना की राजगोंड़ जनजाति के लोक नर्तक कनक राजू को, जिन्हें वर्ष 2021 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

महाराष्ट्र -
महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध वरली चित्रकार जिव्या सोमा माशे को वर्ष 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने 1200 साल पुरानी वरली आदिवासी चित्रकला में इतनी ख्याति बटोरी है कि राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी पेंटिंग्स की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मभूषण डा. रामकुमार वर्मा उन जैसे चित्रकारों के लिए ही कहा करते थे - "कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में तथा चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य के रंग भरता है।"

सिक्किम -
सिक्किम की थांका चित्रकला को नई पहचान दिलाने वाले कलाकार उस्ताद खांडू वांगचुक भूटिया 350 से अधिक लोगों को थांका पेंटिंग्स, लकड़ी पर नक्काशी और कालीन बुनाई का प्रशिक्षण दे चुके है। सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में प्रचलित कपास या रेशम पर बनी हुई थांगका पेंटिंग में भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के साथ-साथ अन्य देवताओं एवं बोधिसत्व को दर्शाया जाता है। थांका चित्रकला को देश-विदेश में नई पहचान दिलाने वाले भूटिया जनजाति के वांगचुक भूटिया को वर्ष 2022 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया है। 

सिक्किम सरकार के सांस्कृतिक मामलों व विरासत विभाग में कार्य करते हुए श्रीमती हिलदामित लेपचा ने अनेकों राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लिया।
भूटिया एवं नेपाली लोकगीत गायिका हिलदामित लेपचा
तुनबुक, सुतसंग, पालित केंग, नाईम ब्रीयोप पालित, तुंगदारबोंग जैसे कई प्रकार के पारंपरिक वाद्ययंत्र बजा लेती हैं। वे एक बेहतरीन लोक गायिका, संगीतकार, गीतकार, कवि, निबंधकार और नाटककार हैं, जिनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं और लोकगीतों के एल्बम रिलीज हुए। देश की जनजातीय परंपरा को सहेजने व समुन्नत करने हेतु लेपचा जनजाति की हिलदामित लेपचा को वर्ष 2013 में पद्मश्री से विभूषित किया गया था।

अपने प्रशंसकों के मध्य रोंग लापोन यानी लेपचा मास्टर के नाम से लोकप्रिय सोनम शेरिंग को "लेपचा संस्कृति" के पुनरुद्धार का श्रेय जाता है। वे कहते थे कि 'जिस प्रकार तारे कभी धरती पर नहीं गिर सकते, वैसे ही लेपचा संस्कृति कभी लुप्त नहीं हो सकती।' सोनम शेरिंग को सिक्किम के संगीत वाद्ययंत्रों पर किए गए शोध के लिए पहचाना जाता है।उन्होंने सदियों पुराने रिकॉर्ड संकलित किए और लेपचा वाद्ययंत्रों पर शोध कार्य किया। उनके द्वारा स्थापित लेपचा म्यूजियम में लेपचा समुदाय की जीवनशैली, संस्कृति और परंपराओं को संजोंने का अद्भुत काम किया गया है। वर्ष 2007 में उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री प्रदान किया गया।

पश्चिम बंगाल -
यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में भारत की 14 धरोहरों को अंकित किया गया है, जिनमें पुरुलिया का विश्वविख्यात छऊ नृत्य भी एक है। जिसके संवर्द्धक व प्रतिपादक भूमिज जनजाति के विख्यात छऊ नर्तक गंभीर सिंह मुडा को वर्ष 1981 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों के अलावा लंदन, फ्रांस, जापान एवं यूसए में भी  जनजातीय नृत्य कला का प्रदर्शन किया और स्वदेशी सांस्कृतिक विरासत को विदेशी मंचों तक पहुंचाया था।

असम -
बोड़ो संस्कृति की रक्षा के लिए सतत प्रयत्नशील डॉ. कामेश्वर ब्रह्मा को वर्ष 2016 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री पदक से सम्मानित किया गया। जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीर साहित्य का सृजन करने वाले
बोड़ो जनजाति के डॉ. कामेश्वर ब्रह्मा ने बोड़ो समुदाय के बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए अतुलनीय प्रयास किए। डॉ. ब्रह्मा ने बोड़ो भाषा एवं साहित्य के प्रति समर्पित संस्था बोड़ो साहित्य सभा के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते हुये  अपने कार्यकाल में जनजातीय संस्कृति पर किए गए शोध कार्यों पर आधारित कई पुस्तकें प्रकाशित की।


मेघालय -
पाश्चात्य संगीत जैज़ में पारंगत नील हर्बर्ट नोंगकिंरिह विख्यात पियानोवादक हैं। शिलांग चैंबर चॉयर के संस्थापक
नील हर्बर्ट अंतरराष्ट्रीय मंचो पर विश्वविख्यात द लंदन कॉन्सर्टेंट और द वियना चैंबर ऑर्केस्ट्रा के साथ मिलकर कई कार्यक्रम कर चुके हैं। स्वदेशी संस्कृति को मजबूत करने का एक अप्रतिम उदाहरण पेश करते हुये मेघालय की मूल भाषा खासी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से नोंगकिंरिह ने स्थानीय लोककथा पर आधारित एक गानबद्ध नाटक 'ओपेरा - सोहलिंगंगेम' लिखा और उसे संगीतमय किया, जो काफी लोकप्रिय हुआ। खासी जनजाति के विख्यात पियानोवादक नील हर्बर्ट नोंगकिंरिह को वर्ष 2015 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

अपने सुमधुर खासी गीतों के माध्यम से समाज को संदेश देने वाले संगीतकार स्केनड्रोवेल सियमलियेह अपने चार तार वाले वाद्ययंत्र 'दुईतारा' की मधुर ध्वनि और भावपूर्ण गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। स्केनड्रोवेल सियमलियेह दुईतारा, वायलिन और गिटार के साथ खासी भाषा के गीतों में अपने समुदाय का इतिहास, पुरखों के किस्से, लोककथाएं, मूल मिथक और लोकगीत सुनाया करते थे। वे ना केवल गीतकार और संगीतकार बल्कि एक इतिहासकार भी थे, जिन्होंने खासी समुदाय के लुप्तप्राय इतिहास का सरंक्षण व संवर्द्धन किया। खासी जनजाति के अद्वितीय गीतकार स्व. स्केनड्रोवेल सियमलियेह को वर्ष 2009 में पद्मश्री से विभूषित किया गया।

नागालैंड -
स्वदेशी संस्कृति और विरासत को बचाने में जनजातियों का क्या योगदान है, यह रानी गाईदिन्ल्यू की स्टोरी पढ़कर समझा जा सकता है। नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित कर संयुक्त मोर्चा बना कर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने वाली वीर रानी गाईदिन्ल्यू की निर्भीकता एवं ओजस्विता के कारण जनजातीय समुदाय में उन्हें देवी का दर्जा दिया जाता है। किंतु पीड़ा का विषय यह है कि आजाद भारत में भी उन्हें कई वर्षों तक जेल की सलाखों के पीछे और कई वर्षों तक भूमिगत रहना पड़ा। नागालैंड की लक्ष्मी बाई, पहाड़ियों की बेटी, रानी मां, जननेता, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेविका रानी गाईदिन्ल्यु 'हेराका संस्कृति' के सरंक्षण के लिए जीवनपर्यंत समर्पित रहीं। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में उनकी जनशताब्दी पर रुपए 5 एवं 100 के सिक्के जारी किए। रोंगमेई नागा (काबुई) जनजाति की रानी गाईदिन्ल्यू को वर्ष 1982 में पद्मभूषण से विभूषित किया गया था।

मध्यप्रदेश -
जिस भारत भवन के निर्माण के समय भील जनजाति की भूरी बाई बरिया ने बतौर मजदूर छः रुपए दिहाड़ी पर ईंटें ढोयी और पसीना बहाया, आज वहां के जनजातीय संग्रहालय में उनकी पेंटिंग लगी हुई है। उन्होंने पिथौरा चित्रकारी को ना केवल देश में बल्कि विदेशों में पहचान दिलवाई। विख्यात पिथौरा चित्रकार भूरी बाई बरिया
महान व पुरातन भील जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ा रहीं हैं। महामहिम राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 2021 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

यूके, जर्मनी, हालैंड, रूस, नीदरलैंड, इटली इत्यादि देशों की आर्ट गैलरी में गोंड पेंटिंग्स की धूम मचाने वाले भज्जू श्याम के कारण पाटनगढ़ गांव की तस्वीर बदल चुकी है। वहां के अधिकांश लोगों की आजीविका का मुख्य साधन गोंड पेटिंग बन चुकी है। चित्रकला के व्यवसाय से समृद्व हुए इस गांव में तकरीबन 100 परिवार और भोपाल में 40 कलाकार गोंड़ पेंटिंग्स बना रहे हैं। ब्रिटिश संस्कृति का प्रतिबिंब देशी मिजाज में अपने कैनवास पर उकेरने वाले गोंड कलाकार भज्जू श्याम की कलाकृतियां दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। गोंड - परधान जनजाति के विश्वविख्यात गोंड कलाकार व लंदन जंगल बुक के आर्टिस्ट भज्जू श्याम को कला के क्षेत्र में वर्ष 2018 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

राजस्थान -
कल्पना कीजिये कि जो लड़की पैदा होते ही रेत में दफना दी गई, किंतु कुदरत ने उसे जीवित रखा। आगे चलकर अपने ही लिखे गानों को खुद ही गाने वाली और उन पर नृत्य करने वाली उसी लड़की गुलाबो सपेरा ने ऐसी ख्याति पाई कि डेनमार्क, ब्राजील, यूएसए, जापान, यूके इत्यादि 165 देशों में उनके कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं। नृत्य संगीत में वैश्विक पहचान बनाने वाली गुलाबो ने प्रसिद्ध फ्रांसीसी संगीतकार थियरी ’टिटी’ रॉबिन के साथ एसोसिएट होकर कई कार्यक्रम किए। विश्व फलक पर पारंपरिक कालबेलिया नृत्य की पहचान स्थापित करने वाली गुलाबो सपेरा ने कई हिंदी फिल्मों में नृत्य किया। उनका मानना है कि 'स्टेज ही उनके लिए मंदिर है और दर्शक ही उनके भगवान हैं।' कालबेलिया जनजाति की अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त नृत्यांगना
गुलाबो सपेरा को उनके सांस्कृतिक अवदान के लिए वर्ष 2016 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

छत्तीसगढ़ -
तानपुरा लेकर मंच पर एक कोने से दूसरे कोने तक घूमते हुए लोक गायिका तीजन बाई जब एक विशेष संवाद शैली में पंडवानी अर्थात पांडवों की कथा सुनाती हैं और पौराणिक कथाओं को वर्तमान किस्सों से जोड़ देती हैं, तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो स्वयं को उस कहानी का पात्र समझने लगते हैं। संगीत साधक तीजन बाई विदेशों में भारत की सांस्कृतिक राजदूत हैं। वे जापान, जर्मनी, इंग्लैड, स्विट्जरलैंड, इटली, रूस, चाईना इत्यादि चालीस से ज्यादा देशों में इस गौरवशाली जनजातीय कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। परधान (गोंड) जनजाति की पंडवानी लोक गीत-नाट्य की विख्यात महिला कलाकार डॉ. तीजन बाई को देश की संस्कॄति को समृद्ध करने हेतु किये गये अविस्मरणीय योगदान हेतु वर्ष 2019 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया।

अरुणाचल प्रदेश -
देश की विरासत को नई पीढ़ी को सौंपने के क्रम में किये जा रहे कार्यों की सूची में जबतक शेरदुकपेन जनजाति के येशे दोरजी थोंगछी के योगदान की चर्चा ना हो, यह सूची पूर्ण नहीं हो सकती। पूर्वोत्तर में सबसे लंबे समय तक उपायुक्त पद पर आसीन रहने वाले येशे दोरजी थोंगछी पूर्वोत्तर के पहले लेखक हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से जनजातीय समुदायों की आंतरिक कहानियों से बाहरी दुनिया को परिचित करवाया है। साहित्य सुधी येशे ने सरल भाषा व हृदय को छूती संवाद शैली में कई नाटकों का लेखन किया। कलमकार येशे ने जनजातीय परंपरा के अंतर्गत बहु पति (एक से अधिक पति), पुनर्विवाह, विधवा विवाह, पुर्नजन्म, आंचलिक संस्कृति जैसे कई अनछुए पहलूओं पर कलम चलाई। इनकी कहानियों पर कई फिल्में बनी, जिनको राष्ट्रीय अवॉर्ड्स भी मिले। आदिवासी मुद्दों पर लिखने वाले असमिया उपन्यासकार येशे दोरजी थोंगछी को वर्ष 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

कर्नाटक -
भारत का प्राचीन इतिहास गवाह है कि हमारी विरासतें ना केवल गीत संगीत में बल्कि पेड़ पौधे जंगलों पहाड़ों में भी बिखरी पड़ी हैं। संजीवनी बूटी हो या बाबा रामदेव की आयुर्वेदिक दवाईयां, सबका मूल जंगलों में ही है। जंगलों में बिखरे ज्ञान का जितना भान जनजातियों को है, शायद ही अन्य किसी को हो। हक्काली जनजाति की 78 वर्षीय पर्यावरणविद् तुलसी अम्मा उर्फ तुलसी गौड़ा ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में कर्नाटक में विख्यात है। वे पिछले 60 वर्षो में एक लाख से ज्यादा पौधे लगा चुकी हैं। तुलसी अम्मा को पेड़ पौधों की विभिन्न प्रजातियों का  व्यापक ज्ञान है। जल, जंगल और जीवन के सरंक्षण के लिए संकल्पित जनजातीय समुदाय के लिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि 'जंगल हैं तो आदिवासी हैं, और आदिवासी हैं तभी जंगल हैं।' जंगल के जीवंत ज्ञानकोष तुलसी गौड़ा को वर्ष 2020 में पद्मश्री से विभूषित किया गया।

कन्नड़ भाषा व साहित्य के मूर्धन्य विद्वान डॉ. डोड्डारंगे गौड़ा शब्द शिल्पी हैं, जो फिल्मी गानों के बोल लिखते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो कानों से उतरकर होठों पर आ जाए और लोगों के मन मस्तिष्क पर छा जाएं। उन्होंने कन्नड़ फिल्मों के लिए 500 से अधिक गीत रचे। डॉ. गौड़ा ने फिल्मों के लिए संवाद एवं सौ से अधिक टेली-धारावाहिकों की पटकथाएं लिखी। कर्नाटक विधान परिषद् के मनोनीत सदस्य रहे डॉ. गौड़ा ने विपुल लेखन कार्य किया। उनकी 80 से ज्यादा साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं और कई ऑडियो एलबम रिलीज हुए। भारतीय साहित्य को समृद्ध करने वाले
गौड़ालु जनजाति के विख्यात फिल्मी गीतकार डॉ. डोड्डारंगे गौड़ा को वर्ष 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

जनजातीय संस्कृति और परंपराओं से समृद्ध भारतवर्ष में
हर विषय पर गीत हैं, जन्म से लेकर शादी तक, सालगिरह से लेकर मृत्यु तक, हर त्योहारों पर, रोजमर्रा के कामों में जैसे पानी लाना हो या जलावन की लकड़ी, खेतो में काम करने के दौरान, यानि हर अवसर पर गीत गाये जाते हैं। इस विरासत को संभाल कर अगली पीढ़ी को सौंपने के अप्रतिम कार्य में जुटी हैं हल्लाकी जनजाति की लोक गायिका सुकरी बोंमागौड़ा, जो स्वयं में एक गीत बैंक है। खेतों में मजदूरी करने वाली सुकरी बोंमागौड़ा सुर कोकिला सुकरी अज्जी के नाम से विख्यात हैं। वर्ष 2017 में उनको पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

केरल -
कहते हैं कि भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुरातन है जितनी स्वयं प्रकृति, हमारे पौराणिक ग्रंथों एवं वेदों में भी चिकित्सा और सर्जरी के जिक्र हैं। इन्हीं पुरातन विरासतों को आज भी किसी ने सहेज कर रखा है तो वे हैं जनजातीय समुदाय के लोग। केरल के तिरुवनंतपुरम के कल्लार जंगलों में रहने वाली कानीकर जनजाति की लक्ष्मीकुट्टी वहां 'वनमुथास्सी' के नाम से विख्यात है, इस मलयालम शब्द का हिंदी अर्थ है - 'जंगल की दादी'। लुप्तप्राय होती जा रही पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की ज्ञाता लक्ष्मीकुट्टी अपने झोंपडे में 500 से ज्यादा तरह की हर्बल दवाईयां तैयार करती हैं। सांप काटने के बाद उपयोग की जाने वाली दवाई बनाने में तो उनको महारत हासिल है। उनके चमत्कारिक चिकित्सकीय ज्ञान का लाभ लेने विदेशी भी कल्लार पहुंचते हैं। 'पॉइजन हीलर' लक्ष्मीकुट्टी ने वनों में छिपी प्राकृतिक संपदा के औषधीय मूल्यों पर एक पुस्तक भी लिखी है। वर्ष 2018 में उनको देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से विभूषित किया गया।

मणिपुर -
भारत के कोने कोने में सांस्कृतिक विरासतें बिखरी पड़ी हैं, कुछ नष्ट हो चुकी हैं, कुछ नष्ट होने के कगार पर है। किंतु यदि कहीं कोई इन विरासतों को सहेजने में सजग है तो वो है आदिवासी समुदाय। इसी क्रम में मणिपुर की तांगखुल जनजाति की संगीत परंपरा के अंतर्गत एक विशेष नागा वाद्ययंत्र 'यंगकहुई' बजाया जाता है, जिसमें चार छेद होते हैं। बांस द्वारा निर्मित यह पारंपरिक बांसुरी लगभग तीन फीट लंबी एवं बहुत पतली होती है और उसमें घोड़े की पूंछ के बालों से बने तार होते हैं। इस परंपरा को पुनर्जीवित करने वाले गुरु रेवबेन माशंग्वा एक प्रतिभाशाली गायक एवं संगीतकार होने के साथ साथ लोक संगीत शोधकर्ता और वाद्ययंत्र निर्माता भी हैं। विदेशी संगीत की तर्ज पर उन्होंने ब्लूज और बल्लाड रिदम पर आधारित कई नागा आदिवासी लोकगीत तैयार किए हैं। वर्ष 2021 में तांगखुल नागा जनजाति के विख्यात लोक गायक व संगीतज्ञ गुरु रेवबेन माशंग्वा को पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

ये तो कुछेक उदाहरण हैं, ऐसे हजारों महान जनजातीय लोगों से हमारा देश का कोना कोना पटा पड़ा है, जो ना केवल देश की विरासत और परंपराओं को सहेजे हुये हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को सौंपने हेतु प्रयासरत हैं।  स्वदेशी संस्कृति और विरासत को मजबूत करने में जो भूमिका जनजातीय समुदाय अदा कर रहा है, उसका अंश मात्र भी राज्य सरकारें नहीं कर पा रही हैं। जनजातीय समुदाय के गीत संगीत, लोकनृत्य, औषधीय ज्ञान, प्रकृति प्रेम का ही नतीजा है कि हमारा भारतवर्ष संस्कृति और परंपराओं से समृद्ध है।

संदर्भ सूची :
1. व्यक्तिगत साक्षात्कार
2. आलेख में अंकित पात्रों के क्षेत्र के स्थानीय निवासियों से वार्तालाप के आधार पर
3. आलेख में अंकित पात्रों के सोशल मीडिया पृष्ठ
4. यूट्यूब पर उपलब्ध संबंधित पात्र के इंटरव्यूज
5. भारत सरकार की वेबसाईट
क. www.padmaawards.gov.in
ख. गृह मंत्रालय की वेबसाईट
ग. विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों की वेबसाईट
घ. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों/राज्यपालों के सोशल मीडिया पृष्ठ एवं राज्यों की ऑफिशियल वेबसाईट

Key Words - जनजातीय समुदाय, जनजाति, पद्मश्री, आदिवासी संस्कृति, जनजातीय परंपरा, जनजातीय लोककला

लेखक संदीप मुरारका जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखनेवाले कलमकार एवं शोधकर्ता हैं। 

Monday 12 December 2022

आज भी विद्यमान हैं महाराजा अग्रसेन

आज भी विद्यमान हैं महाराजा अग्रसेन

1. महाराजा अग्रसेन पर जारी डाक टिकट
24 सितंबर, 1976
मूल्य 25 पैसे

2. महाराजा अग्रसेन तेल वाहक पोत
आई एम ओ संख्या : 9070149
निर्माता  : हुंडई हैवी इंडस्ट्रीज, दक्षिण कोरिया
निर्माण वर्ष : 1995
नीलामी वर्ष : 2000
लागत : लगभग 350 करोड़ रुपए
वर्तमान नाम : सावी, पनामा


3. महाराजा अग्रसेन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
हिसार एयरपोर्ट , हरियाणा

हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान दिसंबर 2021 में यह प्रस्ताव पारित हुआ है कि हिसार एयरपोर्ट का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन के नाम पर किया जाए। यह प्रस्ताव भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय को भेजा गया है।

4. अग्रसेन की बावली
नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल है अग्रसेन की बावली, जिसके सीढ़ीनुमा कुएं में करीब 105 सीढ़ीयां हैं। लगभग 14वीं शताब्दी में महाराजा अग्रसेन द्वारा निर्मित यह बावड़ी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं। इस बावड़ी पर वर्ष 2017 में रु 15/- की ड़ाक टिकट भी जारी की जा चुकी है।

5. विश्वविद्यालय
हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के बद्दी शहर में डॉ. नंद किशोर गर्ग द्वारा महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। देश के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी के कर कमलों से दिनांक 25 मई, 2013 को इस विश्वविद्यालय का उदघाटन हुआ। वहीं उत्तराखंड सरकार द्वारा वर्ष 2016 में 'महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल यूनिवर्सिटी' की स्थापना की गई है।

6. विद्यालय
दूरदर्शी समाजसेवी एवं शिक्षाविद स्व. चंदूलाल अग्रवाल द्वारा वर्ष 1993 में मेमनगर, अहमदाबाद में महाराजा अग्रसेन विद्यालय की स्थापना की गई है। इसके अलावा गोमती नगर, लखनऊ का महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल, हावड़ा का अग्रसेन बॉयज स्कूल, सूरत का महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल स्कूल भी उल्लेखनीय है।

7. कॉलेज
उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले में वर्ष 1902 से महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज संचालित है। वहीं वर्ष 1971 में हरियाणा के जगधारी में 10.5 एकड़ भूमि पर महाराजा अग्रसेन महाविद्यालय एवं वर्ष 1994 में दिल्ली के वसुंधरा इंक्लेव में 10 एकड़ भूमि पर महाराजा अग्रसेन कॉलेज की स्थापना की गई है। मथुरा का महाराजा अग्रसेन गर्ल्स इंटर कॉलेज एवं परमानंदपुर का श्री अग्रसेन कन्या पी. जी. स्कूल भी उल्लेखनीय है।

8. इंजीनियरिंग कॉलेज
वर्ष 1999 में रोहिणी, दिल्ली में स्थापित महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी आज अग्रवाल समाज का मान बढ़ा रहा है। वहीं अमरोहा, उत्तरप्रदेश में स्थापित महाराजा अग्रसेन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी एवं मंडी गोबिंदगढ़ के महाराजा अग्रसेन इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम भी उल्लेखनीय है।

9. मेडिकल कॉलेज
अग्रवाल समुदाय के दूरदर्शी समाजसेवी घनश्याम दास गोयल, ओपी जिंदल, बनारसी दास गुप्ता एवं उनके साथियों द्वारा 18 अप्रैल 1988 को अग्रोहा, हरियाणा में महाराजा अग्रसेन मेडिकल एजुकेशन एंड साइंटिफिक रिसर्च सोसाइटी की स्थापना की गई है। वहीं हरियाणा के बहादुरगढ़ में महाराजा अग्रसेन नर्सिंग कॉलेज एवं राजस्थान के नागर में महाराजा अग्रसेन कॉलेज ऑफ फार्मासी का नाम भी उल्लेखनीय है।

10. बिजनेस मैनेजमेंट स्कूल
बिजनेस मैनेजमेंट की शिक्षा के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थित  महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल स्कूल का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। वहीं दिल्ली के 'महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज' एवं नेपाल के 'महाराजा अग्रसेन कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट' के नामों का उल्लेख भी आवश्यक है।

11. अस्पताल
महाराजा अग्रसेन अस्पताल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2015 में दिल्ली के द्वारका में 400 बेड का अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल की स्थापना की गई है। महाराजा  अग्रसेन के नाम पर पानीपत, हरियाणा एवं विद्यानगर, जयपुर में भी हॉस्पिटल संचालित हैं।

12. पार्क
काश्मीरी गेट, नई दिल्ली के समीप एक खूबसूरत बगीचे का नाम है महाराजा अग्रसेन पार्क, वहीं उत्तरप्रदेश के रायबरेली, राजस्थान के हनुमानगढ़ एवं पंजाब के जालंधर में निर्मित 'महाराजा अग्रसेन पार्क' वहां की हरियाली व सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं।


13. मूर्ती
वैसे तो देश के हजारों चौक चौराहों, भवनों, स्मारकों, धर्मशालाओं पर महाराजा अग्रसेन की भव्य प्रतिमा स्थापित हैं। किंतु अपने प्रदेश झारखंड की राजधानी रांची के लालपुर चौक में स्थापित अग्रसेन जी की प्रतिमा और जमशेदपुर के श्री टाटानगर गौशाला प्रांगण में बना श्री अग्रसेन ज्ञान मंदिर हम अग्रवालों को गौरवांवित करता है।


14. अग्रोहा धाम
महाभारत कालीन इतिहास को समेटे महाराजा अग्रसेन की कर्मभूमि अग्रोहा धाम देश की राजधानी दिल्ली से 185 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे संख्या 9 पर हिसार जिले में अवस्थित है। अग्रोहा धाम का निर्माण 1976 में  प्रारंभ किया गया था जो आज भी जारी है। अग्रोहा धाम को तीन भागों में बांटा गया है पूर्वी हिस्सा महाराजा अग्रसेन,
मध्य भाग कुलदेवी माता लक्ष्मी एवं पश्चिमी हिस्सा माता  सरस्वती को समर्पित है।

15. पुस्तक
समय समय पर महाराजा अग्रसेन के जीवन चरित पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें सबसे प्रमाणिक एवं प्रसिद्ध पुस्तकें हैं - डॉ. स्वराज्यमणि अग्रवाल द्वारा लिखित अग्रसेन अग्रोहा अग्रवाल एवं भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित अग्रवालों की उत्पति।


16. महाराजा अग्रसेन मार्ग
देश के कई शहरों में विभिन्न सड़कों का नामकरण महाराजा अग्रसेन पर किया गया है। किंतु सबसे चर्चित यह है कि हाल ही में 26 नवंबर 2021 को यूपी के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी द्वारा आगरा की मुगल रोड़ का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन मार्ग कर दिया गया। 

17. गौशाला
कहा जा सकता है कि देश में जितनी भी गौशालाएं संचालित हो रही हैं, अधिकांशतः अग्रवाल समाज द्वारा अथवा उनके योगदान से ही चल रही हैं। उनमें भी कुछ गौशालाओं का नामकरण महाराजा अग्रसेन के नाम पर है, यथा श्री अग्रसेन गौ सेवासदन, अंबिकापुर, छत्तीसगढ़, श्री वैष्णव अग्रसेन गौशाला, अग्रोहा, हरियाणा और श्रीकृष्ण प्रणामी महाराजा अग्रसेन गौशाला, रुद्रपुर, उत्तराखंड।


फीचर लेखन एवं संकल्पना - 
संदीप मुरारका
www.sandeepmurarka.com


रामजन्म भूमि आंदोलन एवं श्री राम मंदिर निर्माण में अग्रणी अग्रवाल/मारवाड़ी विभूतियां

रामजन्म भूमि आंदोलन एवं श्री राम मंदिर निर्माण में अग्रणी अग्रवाल/मारवाड़ी  विभूतियां

-  संदीप मुरारका

1. स्व .हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाई जी' - गीता प्रेस गोरखपुर के आदि संपादक एवं स्वतंत्रता सेनानी। अयोध्या में भगवान श्रीरामलला का अष्टधातु का जो विग्रह है, उसके प्राकट्य के सूत्रधार भाईजी ही थे। उन्होंने कल्याण के कई अंक रामजन्मभूमि को समर्पित किए थे। राममंदिर आंदोलन पर प्रकाशित चर्चित पुस्तक 'युद्ध में अयोध्या' में भाई जी के योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई है।

2. स्व. अशोक सिंघल, आई.आई. टी.  - हिंदू हृदय सम्राट व  विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष।  रामजन्मभूमि आंदोलन के सूत्रधार एवं वर्ष 1992 में विवादित ढाँचा तोड़ने वाले कारसेवकों के नेतृत्वकर्ता

3. स्व. विष्णु हरि डालमिया - बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड के सह अभियुक्त रहे उद्योगपति विष्णु हरि डालमिया की गिनती विश्व हिंदू परिषद् के कद्दावर नेताओं में होती थी। राम मंदिर आंदोलन जब अपने चरम पर था, उस समय विष्णु हरि डालमिया ही विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष थे। डालमिया श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेताओं में शामिल थे। वे राम जन्मभूमि मार्गदर्शक मंडल के सदस्य एवं
श्री कृष्ण जन्मस्थान के प्रबंध न्यासी रहे थे।

4. कोठारी बंधु - 21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक जुट चुके थे। सब विवादित स्थल की ओर जाने की तैयारी में थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। पुस्तक 'अयोध्या के चश्मदीद' के अनुसार कोठारी बंधु रामकुमार और शरद 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से चले थे। बनारस आकर रुक गए, सरकार ने ट्रेनें और बसें बंद कर रखी थीं, तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। इसके बाद यहां से सड़क का रास्ता भी बंद था। दोनों भाई  25 अक्टूबर को अयोध्या की तरफ पैदल निकले पड़े। करीब 200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद 30 अक्टूबर को दोनों अयोध्या पहुंचे। संभवतः 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाले पहले वीर कार सेवक शरद कोठारी ही थे, फिर उनके भाई रामकुमार भी चढ़े और दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया।

गुंबद पर झंडा लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पीछे हटकर लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए। लेकिन थोड़ी देर बाद जब वे दोनों बाहर निकले तो पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। संघ कार्यकर्ता शरद की उम्र महज 20 वर्ष और रामकुमार की 23 वर्ष थी।


5. श्री जय भगवान गोयल - अयोध्या में 6 दिसंबर,1992 बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा विध्वंस मामले में 28 साल बाद दिनांक 30 सितंबर,2020 को सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। माननीय अदालत ने कहा कि मस्जिद का विध्वंस कोई साजिश नहीं थी और किसी भी आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं मिले। किंतु मामले में बरी होने के बाद कोर्ट के बाहर अग्रवंशी शेरदिल शख्शियत
जय भगवान गोयल ने कहा- हां! मैंने ढांचा गिराया, हिंदू जीता, अब काशी और मथुरा है मुद्दा ! हमने ही ढांचा गिराया था। वर्ष 1990 में कार सेवकों को गोलियों से भूना गया था। हमारे नेता अशोक सिंघल जी का सिर फाड़ दिया था, ये सबकुछ हमने देखा था। इसको लेकर हमारे अंदर आक्रोश था कि जब कभी कार सेवा होगी तो ढांचा टूटना चाहिए।
उन्होंने आगे यह भी कहा 'हमारा पूरा एजेंडा था कि ढांचा बचना नहीं चाहिए, ढांचा टूटना ही चाहिए, ये हमारा भाव था। भाव के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा हुई, हजारों लाखों की संख्या में लोग वहां पहुंचे और हर कार सेवक के अंदर स्वयं हनुमान जी आ गए।' सीबीआई कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया, इसके लिए धन्यवाद। अगर सीबीआई कोर्ट हमें सजा सुनाती, उसे भी हम स्वीकार करते। हमने ढांचा बिल्कुल गिराया था। गिराया था, तभी तो आज राम मंदिर बन रहा है। अगर 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद नहीं गिराते, तो राम मंदिर कैसे बन पाता!  हिंदू जीता, अब हमारा अगला एजेंडा काशी और मथुरा है।

6. स्व. विनोद कुमार बंसल एवं श्री अमर नाथ गोयल -
दिनांक 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में मस्जिद का ढांचा गिराया गया था और इस केस में 49 आरोपी बनाए गए थे। फैसला आने तक  इनमें से 17 का निधन हो चुका था और बचे हुए 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया। उन 49 लोगों में 6 आरोपी अग्रवाल समाज के थे। अशोक सिंघल, चंपत राय, जय भगवान गोयल और विष्णु हरि डालमिया की चर्चा आलेख में की जा चुकी है, शेष दो हैं स्व. विनोद कुमार बंसल एवं श्री अमर नाथ गोयल।

जिन 32 आरोपियों को किया गया बरी - 
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धर्मेंद्र , सुधीर कुमार कक्कड़ और धर्मेंद्र सिंह गुर्जर

फैसला आने तक जिन 17 लोगों का हो चुका था निधन -
अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, मोरेश्वर सावें, महंत अवैद्यनाथ, महामंडलेश्वर जगदीश मुनि महाराज, बैकुंठ लाल शर्मा, परमहंस रामचंद्र दास, डॉ. सतीश नागर, बालासाहेब ठाकरे, तत्कालीन एसएसपी डीबी राय, रमेश प्रताप सिंह, महात्यागी हरगोविंद सिंह, लक्ष्मी नारायण दास, राम नारायण दास और विनोद कुमार बंसल

7. स्व. देवकीनंदन अग्रवाल - इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल ने रिटायरमेंट के पश्चात रामलला के मित्र के नाते अदालत में मुकदमा दायर कर कहा कि मुकदमे में रामलला को पार्टी बनाया जाए। क्योंकि इमारत में तो रामलला विराजमान हैं। मौके पर उनका कब्जा है। इसी के बाद हाईकोर्ट ने रामलला (मूर्ति) को पार्टी बनाया। अयोध्या विवाद से संबं‍धित 5 मुकदमे दायर किए गए  थे। जिसमें से अंतिम व पाँचवाँ मुकदमा (संख्या 236/1989) भगवान रामलला विराजमान की ओर से 1 जुलाई, 1989 को देवकीनंदन अग्रवाल ने दायर किया था। देवकीनंदन अग्रवाल 1977 से 1983 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके थे। कानून के जानकार देवकीनंदन अग्रवाल ने भगवान राम के निकट मित्र के रूप में अपने को पेश किया था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति एक जीवित इकाई होती है और अपना मुकदमा लड़ सकती है। लेकिन प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति नाबालिग मानी जाती है, इसलिए उनका मुकदमा लड़ने के लिए किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाया जाता है। न्यायालय ने रामलला का मुकदमा लड़ने के लिए देवकीनंदन अग्रवाल को रामलला के अभिन्न सखा के रूप में अधिकृत किया। देवकीनंदन जी द्वारा दायर मुकदमे में माननीय न्यायालय  से मांग की गई थी कि राम जन्मभूमि अयोध्या का पूरा परिसर वादी (देव-विग्रह) का है, अत: राम जन्मभूमि पर नया मंदिर बनाने का विरोध करने वाले या इसमें किसी प्रकार की आपत्ति या बाधा खड़ी करने वाले प्रतिवादियों को रोका जाए। देवकीनंदन अग्रवाल के निधन के बाद विश्व हिंदू परिषद के त्रिलोकी नाथ पांडेय रामलला के मित्र के तौर पर पैरोकार बने।


8. स्व. सीताराम गोयल एवं स्व. रामस्वरूप अग्रवाल  -
इन दो महान मनीषियों ने अपना पूरा जीवन हिंदुत्व के बौद्धिक योद्धाओं के नाते समर्पित कर दिया। हिंदुओं को जाग्रत करने हेतु इतिहासकार सीताराम गोयल द्वारा लिखी गई पुस्तकों को पढ़े बिना रामजन्म भूमि के इतिहास को समझना असंभव है। दो खंडों में लिखी गई 'हिंदू टेम्पल्स : व्हाट हैपेंड टू देम' में इस्लामी आक्रमणों के संदर्भों सहित मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए कई हिंदू मंदिरों का सिलसिलेवार ब्योरा एवं एतिहासिक अकाट्य तथ्य प्रकाशित है।

महान विचारक रामस्वरूप अग्रवाल की सबसे उल्लेखनीय पुस्तक है- 'हिन्दू व्यू ऑफ क्रिश्चियेनिटी एंड इस्लाम', जो तीन भागों में प्रकाशित है। उनका मानना था कि हिंदू विद्वानों ने कभी भी उन विदेशी धर्मों का गंभीर अध्ययन नहीं किया, जो भारत की पारंपरिक भूमि में बसने के लिए आए थे। उसके उलट इस्लामी शासकों और बुद्धिजीवियों, मिशनरियों और उपनिवेशों ने हिंदू परंपराओं पर गंभीर अध्ययन करवाए।

9. श्री चंपत राय बंसल - राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता एवं विश्व हिंदू परिषद् के वरिष्ठ नेता
चंपत राय वर्तमान में  विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष एवं श्री राम जन्मभूमि क्षेत्र ट्रस्ट, अयोध्या के महासचिव हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भारत सरकार ने राजपत्र जारी कर विवादित स्थल के आंतरिक और बाह्य प्रांगण का कब्जा इसी न्यास को सौंप दिया है। अयोध्या रेलवे स्टेशन के समीप मार्ग पर स्थित बाग बिजेसी जैसे प्राइम लोकेशन में कौशल्या सदन आदि मंदिरों की स्थापना हेतु 1.20 हेक्टेयर भूमि को क्रय करने एवं भूमि विवाद सुलझाने का श्रेय चंपत राय को जाता है।

10. श्री सलिल सिंघल - दिनांक 5 अगस्त, 2920 को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अभिजीत मुहूर्त में भूमि पूजन कर नींव रखी। इस दौरान अयोध्या सहित पूरा देश राममय हो गया। पीएम मोदी समेत करीब 175 लोग इस ऐतिहासिक पल का गवाह बने। भूमि पूजन कार्यक्रम के मंच पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ नृत्य गोपाल दास, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत रहे। साथ ही मंच पर उपस्थित रहे मुख्य यजमान सलिल सिंघल, जो अशोक सिंघल के बड़े भाई प्रमोद पी. सिंघल के पुत्र हैं। इन्होंने भूमि पूजन में मुख्य यजमान की भूमिका निभाई। पीआई इंडस्ट्रीज लिमिटेड़ के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक रहे सलिल वर्तमान में कंपनी के चेयरमैन एमेरिटस है। वे भारत के सबसे बड़े उद्योग संस्थान सीआईआई की राष्ट्रीय परिषद के भी सदस्य हैं। सिंघल परिवार ने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए ग्यारह करोड़ रुपये का अनुदान भी दिया है।

11. श्री एस के पोद्दार, श्री बिनोद गोयल एवं अग्रवाल विकास ट्रस्ट - राम मंदिर निर्माण के लिए जनवरी 2021 में जब 'निधि समर्पण कार्यक्रम' की शुरुआत की गयी, तब लोगों ने बढ़चढ़ कर इस हवन में राशि रूपी आहुति समर्पित की। अग्रवाल समाज ने तो मानों तिजोरियां खोल दी, जिन 74 लोगों ने एक करोड़ से ज्यादा की राशि भेंट की, उनमें कई अग्रवाल थे। जैसे राम के अनन्य भक्त जयपुर के उद्यमी एस के पोद्दार, जिन्होंने निधि समर्पण अभियान के पहले दिन 15 जनवरी,2021 को एक करोड़ एक लाख रुपये भेंट किये। इंदौर के प्रमुख व्यवसायी बिनोद अग्रवाल, जिन्होंने एक करोड़ रुपये दिये। सूरत के अग्रवाल विकास ट्रस्ट ने राम मंदिर निर्माण निधि में रु. 5,51,11,111/- का बड़ा अनुदान दिया। इस संस्था के अध्यक्ष अध्यक्ष सुभाष अग्रवाल, निवर्तमान अध्यक्ष हरि कानोडिया, उपाध्यक्ष संजय सरावगी, कोषाध्यक्ष सुभाष पाटोदिया, मंदिर निर्माण निधि समर्पण के चेयरमैन प्रमोद चौधरी एवं दान संग्रह समिति के संयोजक राकेश कंसल थे।

(इस आलेख के लेखक की आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें एक है 'पद्म अलंकृत विभूतियां मारवाड़ी/अग्रवाल')
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जमशेदपुर का मारवाड़ी समाज

जमशेदपुर का मारवाड़ी समाज
- संदीप मुरारका

मारवाड़ी समाज पर यदि आलेख लिखना हो तो स्मारिका के कई पृष्ठ केवल सफलतम मारवाड़ियों के नाम की सूची से भरे जा सकते हैं. कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां मारवाड़ी समाज की धमक नहीं है. पूरे कोरोना काल में जब भी टीवी पर समाचार चैनेल बदला गया होगा तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल अवश्य दिखाई दिए होंगे. ऑनलाइन चश्मा बेचकर ढ़ाई अरब डॉलर की कंपनी लेंसकार्ट स्थापित करने वाले पीयूष गोयल मारवाड़ी ही तो हैं. ई कामर्स की सफलतम कंपनी फ्लिपकार्ट के संस्थापक सचिन और बिन्नी बंसल युवाओं के लिए आदर्श हैं. ई कामर्स कंपनी मयन्त्रा के मुकेश बंसल, स्नेपडील के सीओओ  रोहित बंसल , इंडियामार्ट के सीईओ दिनेश अग्रवाल, ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल येभी के संस्थापक मनमोहन अग्रवाल, टैक्सी की दुनिया में धमाल मचाने वाले ओला के संस्थापक भावीश अग्रवाल, सवारी के गौरव अग्रवाल, नापतौल वाले मनु अग्रवाल, होटल इंडस्ट्री को नई दिशा देने वाले ओयो के संस्थापक रितेश अग्रवाल और घर घर मनचाहा खाना पहुंचाने वाले जोमेटो के संस्थापक दीपेंद्र गोयल जैसे कई नाम हैं, जिन्होंने बदलते युग में फिर एक बार मारवाड़ी समुदाय को अग्रणी पंक्ति में ला कर खड़ा कर दिया है. एल एन मित्तल से लेकर बिड़ला, सिंहानिया, बजाज, रूंगटा, जिंदल की सफलता की कहानियां सुन सुन कर बड़ा हुआ यह समाज अब नये नाम और नये कॉन्सेप्ट गढ़ रहा है. 

भारत  के सविंधान निर्माता मसौदा समिति के सदस्य देवी प्रसाद खेतान से लेकर इंडियन वॉरेन बफेट के नाम से विख्यात सी ए राकेश झुनझुनवाला तक, युगद्रष्टा समाजवादी डॉ राम मनोहर लोहिया से लेकर वर्तमान राजनीति में हनक रखने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक, धरती धोरां री जैसे महान गीत के रचयिता महाकवि पद्मश्री कन्हैया लाल सेठिया से लेकर वर्तमान में विख्यात कवि शैलेश लोढ़ा तक, आजादी के बाद जिस इंपीरियल बैंक का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कर दिया गया उसके चेयरमैन रहे बद्रीदास गोयनका से लेकर पंजाब नेशनल बैंक के वर्तमान प्रबंध निदेशक अतुल कुमार गोयल तक, टाईम्स ऑफ इंडिया के मालिक रामकृष्ण डालमिया से लेकर जी समूह के सुभाष चंद्रा तक, फिल्मों में पद्मश्री रामगोपाल बजाज से लेकर अदिती अग्रवाल तक, जम्मू कश्मीर में पत्रकारिता के जनक पद्मश्री  मुल्क राज सराफ से लेकर झारखंड की पत्रकारिता को आंदोलन बनाने का माद्दा रखने वाले कमल किशोर गोयनका तक, खेल व एडवेंचर के क्षेत्र में पद्मभूषण डॉ. विजयपत सिंहानिया से लेकर पद्मश्री प्रेमलता अग्रवाल तक कौन सी ऐसी फिल्ड है, जिसमें मारवाड़ियों ने सफलता के झंडे ना गाड़े हों.

सबसे मुख्य बात यह है कि मारवाड़ी समुदाय के लोग जहाँ गए, वहीं के हो कर रह गए. वहाँ की भाषा और पहनावे को तुरंत अपना लिया. स्थानीय लोगों से मेलजोल बढ़ाया, जिसका नतीजा हुआ कि व्यापार में मारवाड़ियों ने प्रचुर सफलता प्राप्त की. किंतु इस समुदाय की यह भी विशेषता रही भले कितना भी धन कमाया, अपनी आय का एक हिस्सा परोपकार में अवश्य लगाया. आज जमशेदपुर में कई ऐसे स्मारकीय परिसंपतियां हैं, जो मारवाड़ी समाज की समाजसेवा की प्रत्यक्ष गवाही दे रही हैं. जमशेदपुर शहर  बसने के साथ साथ ही मारवाड़ी समुदाय भी बैलगाड़ियों में यहाँ आ गया. आज शहर के हर कोने में इनकी एक दूकान  अवश्य मिलेगी. जमशेदपुर में मारवाड़ियों के कई ऐसे मकान मिलेंगे, जिनके निर्माण के सौ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं.

सूखी, बूढ़ी व अपंग गायों की निःस्वार्थ सेवा के उद्देश्य से वर्ष 1919 में स्थानीय मारवाड़ियों के सहयोग से खेजरोली निवासी शिव सहाय अग्रवाल ने श्री टाटानगर गौशाला की स्थापना की थी. कालांतर में गौशाला का दायरा बढ़ता चला गया. वर्तमान में जुगसलाई, कालियाडीह, बागबेड़ा एवं सी पी टोला में संचालित गौशाला परिसरों में लगभग 3500 गाय हैं. अध्यक्ष कैलाश सरायवाला एवं महासचिव महेश गोयल के सक्षम नेतृत्व में श्री टाटानगर गौशाला में प्रतिदिन लगभग 2000 किलो दुग्ध उत्पादन किया जा रहा है. वहीं यह जान लेना भी आवश्यक है कि चाकुलिया स्थित कलकत्ता पिंजरापोल सोसाइटी गौशाला की स्थापना 1916 एवं चाईबासा गौशाला की स्थापना 1901 में हो चुकी थी.

जुगसलाई के रंगलाल सुल्तानिया, लादूराम केडिया, हनुमान प्रसाद सिंगोदिया ने अपने संगी साथियों के साथ मिलकर 1926 में श्री राजस्थान शिव मंदिर की स्थापना की. जहाँ आज शादी विवाह के लिए विशाल भवन तैयार हो चुका है. जो बिना किसी जाति के भेदभाव के सबके लिए उपलब्ध है. वर्तमान में अध्यक्ष छीतरमल धुत और महासचिव अरुण अग्रवाल के नेतृत्व में नया वातानुकूलिन सभागार निर्मित हो रहा है.

जुगसलाई निवासी चंदूलाल अग्रवाल एवं उनके सहयोगी बंधुओं ने मिलकर 1963 में  महतो पारा रोड़ में श्री बैकुंठ धाम मंदिर की स्थापना की. सात मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर का दर्शन करते ही किसी तीर्थस्थल की परिकल्पना घूमने लगती हैं. अध्यक्ष ओम प्रकाश अग्रवाल एवं महासचिव सुरेश देबुका प्रत्येक माह ग्यारस के दिनों श्याम प्रेमियों का स्वागत करते मंदिर प्रांगण में आतुर खड़े दिखते हैं.

जुगसलाई की समाजसेविका व धार्मिक मारवाड़ी महिला  जयदेई खीरवाल ने वर्ष 1966 में गर्ल्स स्कूल रोड़ में झुंझुनू वाली दादी के मंदिर के प्रतिरुप श्री राणी सती दादी मंदिर की स्थापना की. जहाँ भादो माह की अमावश्या पर लगने वाले मेले में पूरे शहर की मारवाड़ी महिलाएँ राजस्थानी ओढ़नी ओढ़े एकत्रित होती हैं. इस मंदिर की देखरेख व संचालन महेश खीरवाल, प्रणय जैन एवं सरोज खीरवाल के जिम्मे है.


जिस प्रकार समुद्र में पाए जाने वाली शार्क सूंघने की अपनी अविश्वसनीय क्षमता की मदद से लगभग 100 लीटर पानी में खून की एक बूंद को पहचान सकती है, उसी प्रकार एक मारवाड़ी उस जगह का पता लगा लिया करते थे जहाँ व्यापार की संभावनाएं हों. जिस समय जमशेद जी नसरवान जी टाटा ने स्थल चयन की प्रक्रिया प्रारंभ की, तभी सुदूर राजस्थान के लोगों को आभास हो गया कि तत्कालिन बिहार के इस इलाके में व्यापार की संभावनाओं के कई द्वार खुलने वाले हैं और देश भर में फैले मारवाड़ी समुदाय के लोग यहाँ आकर बसने लगे. धार्मिक विचारों वाले इस समाज ने ना केवल अपने रहने के लिए मकान दूकान बनवाए बल्कि भगवान लक्ष्मीनारायण की मंदिर की भी स्थापना की. वर्ष 1895 में जुगसलाई चौक बाजार में मारवाड़ी पंचायत द्वारा स्थापित श्री सत्यनारायण मंदिर इसी दूरदर्शिता का गवाह है. वर्तमान में इस मंदिर का संचालन पंडित श्रवण जोशी, अश्विनी शर्मा एवं प्रकाश जोशी कर रहे हैं.

बिष्टुपुर में रहने वाले संघी, सोंथालिया, मूनका, नरेडी, नागेलिया, आगीवाल व अन्य परिवारों ने मिलकर 1922 में श्री सत्यनारायण मारवाड़ी मंदिर की स्थापना की. जहाँ आज वातानुकूलिन हॉल व ठहरने के लिए ग्यारह कमरे भी बने हुए हैं. अध्यक्ष संतोष संघी एवं सचिव सुरेश आगीवाल के कुशल नेतृत्व में संचालित इस भवन की साफ सफाई देखते ही बनती है.

कदमा के सुआलाल अग्रवाल, जोहरी लाल मित्तल, लूणकरण खेमका, चिरंजीलाल शंकरका, छगनलाल  हरूपका, चौथमल शर्मा, पन्नालाल खेमका, रामदयाल अग्रवाल, सूरजमल बहादुरमल अग्रवाल, मुरलीधर मोदी, मोहनलाल चौधरी, धनपतराय अग्रवाल, गणपतराय माहेश्वरी, गजानंद माहेश्वरी एवं उनके साथियों ने मिलकर 1968 में उलियान पथ में श्री लक्ष्मी नारायण मारवाड़ी मंदिर संघ धर्मशाला की स्थापना की. जिसके वर्तमान अध्यक्ष शंकर लाल मित्तल एवं सचिव संतोष गर्ग हैं. कदमा में रहने वाले मारवाड़ी समाज के अधिकांश धार्मिक आयोजन इसी भवन में संपन्न होते हैं.

वर्ष 1912 में साकची में पंडित हीरालाल मदनलाल ने श्री श्री सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी मंदिर की स्थापना की. इसी प्रांगण में 2020 में राजस्थानी शैली में भव्य महालक्ष्मी मंदिर की स्थापना की गई. जहाँ कुलदेवी माता महालक्ष्मी के साथ साथ हनुमान जी को गोद में लिए हुए माता अंजना देवी एवं राणी सती दादी का भव्य मंडप भी बना है. मंदिर प्रांगण की चित्रकारी एवं कांच के कार्य की अनुपम शोभा देखते ही बनती है. साकची के कमल अग्रवाल, सुमन अग्रवाल, प्रमोद अग्रवाल एवं उनके साथियों की देखरेख में संचालित इस मंदिर के ऊपरी तल्लों पर दो वातानुकुलिन हॉल और अठारह कमरे निर्मित हैं.

साकची के रहने वाले दूरदर्शी सोच वाले मारवाड़ी समाज के रामकृष्ण चौधरी, सुरेश चंद्र मोदी, नरेश कांवटिया, ओमप्रकाश झाझरिया, ओमप्रकाश रिंगसिया, महावीर प्रसाद मोदी, छेदीलाल अग्रवाल व उनके साथियों ने 1993 में आमबगान में अग्रसेन भवन की स्थापना की. आज स्थिति यह है कि हर मारवाड़ी की प्राथमिकता होती है कि उसके परिवार में होने वाले मांगलिक कार्यक्रम भव्यता, पार्किंग एवं सभी प्रकार की सुविधाओं से सुसज्जित अग्रसेन भवन में ही संपन्न हो.

वर्ष 1960 में डिस्पेंसरी रोड़, सोनारी में लक्ष्मीनारायण दीवान एवं उनके मित्रों द्वारा राजस्थानी महिला सत्संग भवन का निर्माण करवाया गया. सोनारी दोमुहानी रोड़ , कागलनगर में वर्ष 1962 में रामपाल साबू परिवार ने शिव मंदिर की स्थापना की. जिसकी देखरेख वर्तमान में घीसालाल साबू , सीताराम साबू एवं उनके परिवार द्वारा की जाती है.

मानगो के मारवाड़ी समाज द्वारा 1968 में श्री राजस्थान नवयुवक संघ की स्थापना की गई. जिसके अंतर्गत डिमना रोड़, मानगो में राजस्थान भवन का निर्माण हुआ, जो आज विशाल भवन का स्वरुप प्राप्त कर चुका है. रामवतार अग्रवाल, जगदीश प्रसाद अग्रवाल, ब्रह्मदत्त शर्मा एवं उनके साथियों द्वारा लगाए गए इस पौधे को अध्यक्ष विजय अग्रवाल एवं सचिव मनोज केजरीवाल की सशक्त कमिटी ने सींच कर वृक्ष का रुप प्रदान कर दिया है. इस भवन में वैवाहिक व अन्य आयोजनों  के लिए तीन हॉल एवं खुले प्रांगण के अलावा छः कमरे निर्मित हैं. मानगो के मारवाड़ी श्याम भक्तों द्वारा वर्ष 2000 में पुरुलिया रोड़ में श्री श्याम भवन की स्थापना की गई. जिसके वर्तमान अध्यक्ष महावीर प्रसाद अग्रवाल एवं सचिव विजय खेमका हैं. श्याम प्रचार एवं निशान यात्रा के लिए प्रसिद्ध इस भवन में एक सभागार और चार कमरे निर्मित हैं.

शिक्षा के प्रति संवेदनशील मारवाड़ी समाज ने जुगसलाई कुम्हार पारा रोड़ में 1954 में राजस्थान युवक मंडल की स्थापना की. जहाँ बाल भारती उच्च विद्यालय का संचालन किया जाता है. स्व. राधा किशन खेमका, वासुदेव केडिया, बनवारी लाल काबरा, कन्हैया लाल पुरिया, रामगोपाल मुरारका इत्यादि द्वारा स्थापित इस विद्यालय के वर्तमान अध्यक्ष राजकुमार बरवालिया, महासचिव किशोर तापडिया एवं विद्यालय सचिव संगीता मित्तल हैं. वहीं सोनारी में राजस्थान मैत्री संघ द्वारा भी दो विद्यालयों का संचालन किया जाता है. साथ ही मानगो में ब्रह्मदत्त शर्मा द्वारा गोविंद विद्यालय एवं शिव प्रकाश शर्मा द्वारा साउथ पॉइंट स्कूल का संचालन किया जा रहा है. परसुडीह में विवेक पुरिया द्वारा ब्राइट फ्यूचर स्कूल, पारडीह में कविता अग्रवाल द्वारा माउंट लिटरेरा स्कूल एवं जुगसलाई में प्रियंका अग्रवाल द्वारा लिटिल स्टार प्ले स्कूल का संचालन किया जा रहा है.

इन सबके अलावा भी मारवाड़ी समाज द्वारा स्थापित कई भवन, धर्मशालाएं, मंदिर, चिकित्सालय हैं. वर्ष 1979 में शिव मंदिर लेन में स्थापित श्री श्री साकची शिव मंदिर, वर्ष 1983 में सोनारी कार्मेल जूनियर कॉलेज के समीप स्थापित राजस्थान श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर, वर्ष 1995 में स्व बजरंग लाल भरतिया द्वारा शिव घाट जुगसलाई का नव निर्माण एवं श्री महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना, रमेश मेंगोतिया, अनिल मेंगोतिया, राजेश मेंगोतिया, लोचन मेंगोतिया एवं उनके परिवार द्वारा वर्ष 2002 में चौक बाजार जुगसलाई में अवस्थित श्री श्री राधा कृष्ण मंदिर का पुनर्निमाण, वर्ष 1982 में खेमचंद चौधरी के परिवार द्वारा जवाहरनगर मानगो में श्री श्री मनोकामना मंदिर की स्थापना, सत्यनारायण भार्गव द्वारा 2006 में एवं हीरालाल भार्गव द्वारा 2009 में गर्ल्स स्कूल रोड़, जुगसलाई में श्री शनि देव मंदिर की स्थापना, वर्ष 2003 में गौशाला रोड़, जुगसलाई में श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ द्वारा भव्य भगवान महावीर के मंदिर की स्थापना, 1992 में महेश कुमार झंवर के प्रयासों से माहेश्वरी समाज द्वारा जुगसलाई एम ई स्कूल रोड़ में श्री माहेश्वरी मंडल की स्थापना, 1978 में गोमती देवी द्वारा सनातन ग्रंथों के अध्ययन हेतु पुरुलिया रोड़ मानगो में श्री महिला सत्संग भवन की स्थापना, गोलमुरी की सक्रिय महिला द्रौपदी देवी एवं उनकी महिला टीम द्वारा विजय नगर में प्रज्ञा भवन की स्थापना, वर्ष 1992 में खेमचंद चौधरी के परिवार द्वारा गोलमुरी मार्केट में सेठ लक्ष्मीनारायण चौधरी धर्मशाला, वर्ष 1966 में बिष्टुपुर के महासुखराम संघी, मातादीन सोंथालिया, डोंगरसीदास देबुका एवं कालूराम संघी द्वारा आर रोड़ में राजस्थान भवन की स्थापना, जमशेदपुर के मारवाड़ी ब्राह्मण समाज द्वारा 1989 में जुगसलाई रामटेकरी रोड़ में स्थापित ऋषि भवन, जिसका संचालन श्री राजस्थानी ब्राह्मण संघ द्वारा किया जाता है. इस भवन की परिकल्पना का श्रेय हरिनारायण पारीक, महेश चंद्र शर्मा, हरसायमत शर्मा, पन्ना लाल, रामअवतार सारस्वत, छितर मल शर्मा एवं बजरंग लाल शर्मा को जाता है. वर्तमान में भवन की देखरेख प्रकाश जोशी जैसे युवाओं की टीम कर रही है.

वर्ष 1981 में केदार जैसुका, महावीर भालोटिया, मोतीलाल अग्रवाल, साधुराम गोयल, गजानंद भालोटिया एवं उनके साथियों ने मिलकर नया बाजार जुगसलाई में श्री राजस्थान आदर्श युवा संघ के अंतर्गत अग्रसेन भवन की स्थापना की. वर्तमान में इस भवन की देखरेख भी भरतेश शर्मा जैसे युवाओं की टीम कर रही है.


ऐसा नहीं है कि जमशेदपुर के मारवाड़ी समाज ने केवल उद्योग व्यवसाय में ही सफलता प्राप्त की और समाजसेवा में अपना धन लगाया. मारवाड़ियों में शिक्षा के प्रति रुझान का आलम यह है कि आज जमशेदपुर में दो सौ से ज्यादा चार्टर्ड एकाउंटेंट और सौ से ज्यादा डॉक्टर्स हैं. कंपनी सचिव, अधिवक्ता, एमबीए, इंजीनियर, इंटीरियर डिजाइनर, आर्किटेक्ट, फैशन डिजाइनर इत्यादि कोई ऐसी फिल्ड नहीं होगी, जिसमें मारवाड़ी युवाओं की दखल ना हो, जमशेदपुर के सैकड़ों मारवाड़ी युवा अमेरिका की सिलिकैन वैली से लेकर बैंगलुरु के आईटी हब में अपनी धाक जमाए हुये हैं. अब तो जमशेदपुर का मारवाड़ी युवाओं का रुझान प्रशासनिक सेवा की तरफ भी हो चला है. जुगसलाई के उद्यमी सुशील अग्रवाल के पुत्र आदर्श अग्रवाल 2016 बैच के  भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा के अधिकारी हैं एवं वर्तमान में पटना, बिहार में उपमहालेखाकार पद पर पदस्थापित हैं.

टुईलाडुंगरी, गाराबासा के रहने वाले अधिवक्ता बिनोद अग्रवाल के सुपुत्र नवीन अग्रवाल 2016 बैच के भारतीय राजस्व अधिकारी हैं एवं वर्तमान में जीएसटी परिषद, दिल्ली में अवर सचिव के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. आदित्यपुर के व्यवसायी कमल अग्रवाल के पुत्र अभिषेक अग्रवाल 2017 बैच के भारतीय इंजीनिरिंग सर्विसेज के अधिकारी हैं एवं वर्तमान में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत गुवाहाटी में पदस्थापित हैं.


# इस आलेख के लेखक संदीप मुरारका ने मारवाड़ी समाज की वैसी महान हस्तियों पर पुस्तक लिखी है, जिनको पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. पुस्तक का शीर्षक है - "पद्म अलंकृत विभूतियां : मारवाड़ी/अग्रवाल"
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Saturday 10 December 2022

फिर जी उठें हैं लोहिया

फिर जी उठें हैं लोहिया......

वर्ष 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास लोकसभा में जहाँ 404 सीटें थी, वहीं भारतीय जनता पार्टी के मात्र 2 सांसदो ने लोकसभा में प्रवेश किया। आज स्थिति यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आंकडा़ घटकर महज 53 सांसदों तक सिमट गया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के 303 सांसद लोकसभा में शोभायमान हैं। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देते हैं तो राजनीति का अध्ययन करने वाले लोगों के जेहन में सबसे पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम याद आता है।

राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर जवाहरलाल नेहरु से टकराने वाले डॉ. लोहिया देश में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'कांग्रेस मुक्त भारत' की कल्पना की। भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी डॉ. लोहिया की पंडित नेहरू से  तल्खी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने यहां तक कह दिया था कि 'बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।' कांग्रेस संस्कृति के घोर विरोधी रहे डॉ लोहिया ही वो जीवट शख्स थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहने का साहस किया।

आज देश के 36 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आधे  स्थानों पर कांग्रेस सांसद विहीन है। इस दयनीय स्थिति को देखकर डॉ. लोहिया की पंक्ति याद आती है कि 'जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं किया करतीं।' शायद इसीलिए दूरद्रष्टा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने 11 अक्टूबर 1962 को एनार्की में लिख दिया -

भोर में पुकारो सरदार को,
जीत में जो बदल देते थे कभी हार को,
तब कहो, ढोल की य' पोल है,
नेहरू के कारण ही सारा गंडगोल है।

फिर जरा राजाजी का नाम लो,
याद करो जे. पी. को, विनोबा को प्रणाम दो ।
तब कहो, लोहिया महान है।
एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है।

श्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर थे, तो देश भर में रैलियां कर रहे थे। उसी क्रम में उन्होंने 27 अक्टूबर, 2013 को पटना के गांधी मैदान में भी एक रैली में भाग लिया था, जो काफी चर्चित हुई। नरेंद्र मोदी जब पटना पहुंचने वाले थे, उसके पहले आतंकियों ने भाजपा समर्थकों से खचाखच भरे गांधी मैदान में सीरियल धमाके किए, जिनमें 6 लोगों की जान चली गई थी। इन धमाकों से पहले पटना जंक्शन के टॉयलेट में भी विस्फोट हुआ था। किंतु लगातार धमाकों के बावजूद अपनी दृढ़ता प्रकट करते हुए देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित किया। उस भाषण की एक विशेष बात यह भी रही कि मोदी ने डॉ. लोहिया को याद किया और जमकर उनके मूल्यों व सिद्धांतों की बात की। उन्होंने कहा कि राममनोहर लोहिया जी जीवनभर हिंदुस्तान को कांग्रेस मुक्त कराने के लिए लड़ते रहे, जीवन भर जूझते रहे। मोदी ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधते हुए भी लोहिया का ही उद्धरण दिया था।


पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को "उर्वशीयम" के नाम से पुकारने वाले लोहिया कहा करते थे कि 'लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर लेकिन मेरे मरने के बाद ’ और यह हो भी रहा है। लोहिया
अक्सर आगाह करते रहे कि चीन से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है और आज मोदी युग में चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाना, लोहिया की प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।

दिनांक 4 जनवरी, 2022 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में यह कहा कि "पूर्वोत्तर, जिसे नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता का प्रवेश द्वार कहा था, वो नए भारत के सपने पूरा करने का प्रवेश द्वार बन रहा है। हम पूर्वोत्तर में संभावनाओं को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘पूर्वोत्तर को लेकर पहले की सरकारों की नीति थी ‘डोंट लुक ईस्ट’ यानी पूर्वोत्तर की तरफ दिल्ली से तभी देखा जाता था, जब यहां चुनाव होते थे। लेकिन हमने पूर्वोत्तर के लिए ‘एक्ट ईस्ट’ का संकल्प लिया है।’ देश के प्रधानमंत्री के भाषण और ट्वीट देखकर एक बार फिर लोहिया जी की याद ताजा हो जाती है। क्योंकि दिल्ली की सत्ता की राजनीति करनेवाले तत्कालीन नेताओं में वे एकमात्र शख्शियत थे, जो पूर्वोत्तर की बात किया करते थे और समय समय पर अपनी चिंता प्रकट किया करते थे। वर्ष 1963 में प्रकाशित डॉ लोहिया के भाषणों, बयानों और आलेखों के संकलन 'इंडिया चाइना एंड नार्दर्न फ्रंटियर्स' के विभिन्न पन्ने गवाह हैं, जिनमें विद्वान लोहिया ने हिमालयी क्षेत्रों की आर्थिक खुशहाली एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने की बातें कही हैं। उनकी मृत्यु के 55 वर्षों के बाद जब देश के प्रधानमंत्री उन्हीं बातों को दोहराते हैं, तो ऐसा लगता है मानों लोहिया जीवंत हो चुके हैं अथवा मोदी इस देश के पहले राजनेता हैं जिन्होंने लोहिया के विचारों को अंगीकार कर लिया है।

वर्ष 1983 में इलाहाबाद के लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लोहिया की पुस्तक "भारत माता धरती माता" के पृष्ठ 53 से 90 पर अंकित चौथे आलेख 'राम, कृष्ण, शिव' का अध्ययन करने के बाद मोदी जी की तपस्या वाला किस्सा याद आ जाता है। जिसमें केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती यह दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1985 या 86 में डेढ़ माह तक हिमालय की गुफा में तपस्या की थी। वैसे 18 मई 2019 को मोदी जी को केदारनाथ धाम मंदिर के निकट एक गुफा में ध्यान लगाते सारी दुनिया ने देखा था। खैर, उन्होंने तपस्या की या नहीं, मैं यह नहीं जानता, लेकिन यह मानता हूँ कि उन्होंने डॉ. लोहिया के आलेख 'राम,कृष्ण, शिव' को अवश्य पढ़ा है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनके राजनैतिक एजेंडा में 'अयोध्या, मथुरा और वाराणसी' सर्वोच्च स्थान पर हैं।


इतिहास की तिथियों में 23 मार्च देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है। मां भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के सर्वोच्च बलिदान का दिन है। मां भारती के एक और लाड़ले लोहिया का जन्मदिन है। स्वयं को लोहियावादी बताने वाले उनका जन्मदिवस कितनी शिद्दत से मनाते हैं, यह तो नहीं पता, किंतु नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी किसी भी वर्ष लोहिया को श्रद्धा सुमन अर्पित करना नहीं भूले। उन्होंने 2016 में लोहिया द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए हस्तलिखित पत्र पोस्ट किए। साथ ही लिखा कि विद्वान डॉ. राम मनोहर लोहिया, जिनके विचार सभी दलों के नेताओं को प्रेरित करते हैं। वर्ष 2017 की 23 मार्च को मोदी ने सामाजिक सशक्तिकरण एवं सेवा के लिए लोहिया के विचारों को प्रेरणास्त्रोत बतलाया। वहीं वर्ष 2018 में मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री स्वीकारोक्ति कि लोहिया बीसवीं सदी के भारत के सबसे उल्लेखनीय व्यक्तियों में से एक हैं।


वर्ष 2019 को उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी और अप्रतिम देशभक्त बताते हुए उनकी जयंती पर सादर नमन किया। साथ ही साथ विपक्ष को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया था कि जो लोग आज डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल कर रहे हैं, वही कल देशवासियों के साथ भी छल करेंगे। जो लोग लोहिया के दिखाए रास्ते पर चलने का दावा करते हैं, वही क्यों उन्हें अपमानित करने में लगे हैं? यह भी कहा कि कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उन्होंने ब्लॉग में लिखा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब युवा लोहिया ने आंदोलन की कमान संभाली और मैदान में डटे रहे। लोहिया ने भूमिगत रहते हुए अंडरग्राउंड रेडियो सेवा शुरू की, जिससे आंदोलन की गति धीमी न पड़े और अविरल चलती रहे। डॉ. लोहिया का नाम गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

मोदी ने लिखा कि जहां कहीं भी गरीबों, शोषितों और वंचितों को मदद की जरूरत पड़ती, वहां डॉ. लोहिया मौजूद होते थे। उन्होंने आगे कहा कि लोहिया के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने और अन्नदाताओं के सशक्तीकरण को लेकर काफी कुछ लिखा। उनके इन्हीं विचारों के अनुरूप एनडीए सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। लोहिया जाति व्यवस्था और महिलाओं तथा पुरुषों के बीच की असमानता को देखकर दुखी होते थे।

उन्होंने लिखा, 'सबका साथ, सबका विकास' का हमारा मंत्र और पिछले पांच सालों का हमारा ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि हमने लोहिया के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। अगर आज लोहिया होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती। उन्होंने कहा कि लोहिया संसद के भीतर या बाहर कहीं भी बोलते थे तो कांग्रेस हमेशा उनसे डरती थी।

लोहिया के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि देश के लिए कांग्रेस कितनी घातक हो चुकी है, इसे डॉ. लोहिया भलीभांति समझते थे। वर्ष 1962 में उन्होंने कहा था, 'कांग्रेस शासन में कृषि हो या उद्योग या फिर सेना, किसी भी क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है।' उनके ये शब्द कांग्रेस की बाद की सरकारों पर भी अक्षरश: लागू होते रहे।

उन्होंने कहा, 'कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उनके प्रयासों की वजह से ही 1967 के आम चुनावों में सर्वसाधन संपन्न और ताकतवर कांग्रेस को करारा झटका लगा था। उस समय अटल जी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया की कोशिशों का ही परिणाम है कि हावड़ा-अमृतसर मेल से पूरी यात्रा बिना किसी कांग्रेस शासित राज्य से गुजरे की जा सकती है!' दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति में आज ऐसे घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर डॉ. लोहिया भी विचलित, व्यथित हो जाते।

प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों पर हमला करते हुए कहा कि वे दल जो डॉ. लोहिया को अपना आदर्श बताते हुए नहीं थकते, उन्होंने पूरी तरह से उनके सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। यहां तक कि ये दल डॉ. लोहिया को अपमानित करने का कोई भी कोई मौका नहीं छोड़ते। ओडिशा के वरिष्ठ समाजवादी नेता सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया अंग्रेजों के शासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।'

उन्होंने कहा कि आज उसी कांग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियां अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है।  डॉ. लोहिया वंशवादी राजनीति को हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे। आज वे यह देखकर जरूर हैरान-परेशान होते कि उनके ‘अनुयायी’ के लिए अपने परिवारों के हित देशहित से ऊपर हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डॉ. लोहिया का मानना था कि जो व्यक्ति ‘समता’, ‘समानता’ और ‘समत्व भाव’ से कार्य करता है, वह योगी है। उन्होंने आगे कहा, डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राजनीति दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि इन पार्टियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इनके लिए डॉ. लोहिया के विचार और आदर्श बडे़ हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति? आज 130 करोड़ भारतीयों के सामने यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि जिन लोगों ने डॉ. लोहिया तक से विश्वासघात किया, उनसे हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जाहिर है, जिन लोगों ने डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल किया है, वे लोग हमेशा की तरह देशवासियों से भी छल करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के बाद भी हर वर्ष लोहिया को उनके  जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि दी है। परंतु मुख्य बात यह है कि मोदी जी गाहे बेगाहे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को परास्त करने हेतु लोहिया को याद कर लिया करते हैं, जिससे उनके भीतर का लोहियावाद परिलक्षित होता है।

उरी हमले के बाद 24 सितंबर 2016 को केरल के कोझिकोड में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में आतंकवाद एक्सपोर्ट करनेवाला देश बताते हुए कहा था कि हमारे 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि पिछली शताब्दी में भारत के राजनीतिक जीवन को तीन महापुरुषों के चिंतन ने प्रभावित किया है वे हैं महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. राम मनोहर लोहिया। इनके चिंतन का प्रभाव हिंदुस्तान की राजनीति पर नजर आता है।

जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को कमजोर करने और 35 ए हटाने के संकल्प पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 6 अगस्त 2019 को राज्यसभा में लोहिया का नाम लिया। लोहिया को गठबंधन की राजनीति का जनक कहा जाता है। बिहार और उत्तरप्रदेश के राजनेता आज भी उनका नाम लेकर सत्ता की रोटी को उलट पलट कर सेंक रहे हैं।

इसे लोहिया का सम्मान कहें या लोहिया के विचारों की ताकत या लोहिया के नाम का राजनैतिक इस्तेमाल या बढ़ता लोहियावाद!!  खैर जो हो, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले के प्राचीर से 15 अगस्त 2022 को स्वाधीनता दिवस एवं आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर अपने संबोधन में आजादी के आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए जब डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम का जिक्र किया, तो मानो यूं लगा कि "फिर जी उठें हैं लोहिया......"

संदीप मुरारका
जनजातीय व पिछड़ा समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
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Email : keshav831006@gmail.com

उर्वशीयम 2022 में प्रकाशित आलेख