पद्म पुरस्कारों की परंपरा वर्ष 1954 में प्रारंभ की गई थी. तब से लेकर आज तक कुल 50 भारत रत्न, 336 पद्म विभूषण, 1320 पद्म भूषण एवं 3531 पद्मश्री प्रदान किये जा चुके हैं. इनमें झारखंड की झोली में 3 पद्म भूषण और 29 पद्मश्री पुरस्कार आये हैं. वर्ष 1989 में टाटा स्टील के तत्कालीन चेयरमैन रुसी मोदी को व्यापार एवं उद्योग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए देश के तीसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म भूषण से नवाजा गया. वहीं 2018 में क्रिकेट के मैदान में झारखंड का परचम लहराने वाले कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धौनी को पद्म भूषण से अलंकृत किया गया, उन्हें
2009 में पद्मश्री पुरस्कार भी प्रदान किया जा चुका है. आठ बार सांसद रह चुके पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष एवं सादगी के प्रतीक आदिवासी नेता कड़िया मुंडा को वर्ष 2019 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. वर्ष 2010 में सामाजिक कार्यकर्त्ता व गांधीवादी शैलेश कुमार बंदोपाध्याय को पद्मभूषण से पुरस्कृत किया गया. हालांकि उनका नाम पश्चिम बंगाल की सूची में दर्ज है, किंतु उनका जन्म झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला के चक्रधरपुर में हुआ था.
वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्म पुरस्कारों की सूची में जिला सरायकेला की चामी मुर्मू और जमशेदपुर की पूर्णिमा महतो का नाम शामिल है. चामी मुर्मू पर्यावरण कार्यकर्त्ता के रुप में लोकप्रिय हैं. पूर्व में इन्हें नारी शक्ति पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है. चामी मुर्मू ने 3000 महिला समूह बनाकर 30 हजार महिलाओं को स्वराेजगार से जोड़ा है. वे सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड भाग-16 की जिला परिषद सदस्य हैं. उन्होंने राजनगर के बगराईसाई में सहयाेगी महिला संस्था का गठन किया था. उनकी संस्था अब तक 720 हेक्टेयर भूमि पर लगभग 30 लाख पौधरोपण कर चुकी है. जिला पूर्वी सिंहभूम की पूर्णिमा महतो भारतीय तीरंदाजी टीम की कोच हैं. उन्होंने 1998 के राष्ट्रमंडल खेलों में एक रजत पदक जीता था. वे भारतीय राष्ट्रीय तीरंदाजी चैंपियनशिप भी जीत चुकी हैं. पूर्णिमा महतो को पूर्व में द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है, वे झारखंड की पहली महिला खिलाड़ी हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
हो भाषा के सरंक्षण व संवर्धन के लिये विगत कई दशकों से प्रयासरत रहे कोल्हान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं शिक्षाविद् डॉ. जानुम सिंह सोय को गत वर्ष 2023 में पद्मश्री से नवाजा गया. जनजातीय संस्कृति और जीवनशैली पर कलम चलाने वाले मूर्धन्य साहित्यकार प्रो. जानुम सिंह सोय ने 'हो लोकगीतों का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन' विषय पर पीएचडी की है. सोय पूर्वी सिंहभूम जिला के धालभूमगढ़ प्रखंड में निवास करते हैं. इसी जिला के चाकुलिया प्रखंड में रहने वाली पर्यावरणप्रेमी, बहादुर, समाजसेवी व कुशल संगठनकर्ता जमुना टुडू को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. जमुना टुडू लेडी टार्जन के नाम से लोकप्रिय हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान मन की बात के 53वें एपिसोड में 24 फरवरी 2019 को जमुना टुडू के संघर्ष की कहानी पूरे राष्ट्र को सुनाई थी.
जिला पूर्वी सिंहभूम के करनडीह में अवस्थित लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज (एलबीएसएम कॉलेज) के प्राचार्य रहे स्व. प्रो. दिगंबर हांसदा को वर्ष 2018 में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया. सरल व सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले दिगंबर हांसदा ने कोल्हान विश्वविद्यालय का सिंडिकेट सदस्य रहते हुए शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में संताली को शामिल करने हेतु मजबूती से अपना पक्ष रखा. उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संताली भाषा का कोर्स संगृहीत किया. स्कूल कॉलेज के पाठ्यक्रम में संताली भाषा की पुस्तकों को जुड़वाने का श्रेय प्रो. दिगंबर हांसदा को ही जाता है. शिक्षा के प्रति उनका रुझान व समर्पण ऐसा था कि सेवानिवृति के काफी समय बाद तक भी वे अपने कॉलेज में कक्षाएं लेते रहे, वह भी अवैतनिक, पूर्णतः निःशुल्क. केवल एक ही जज्बा था कि कैसे ज्यादा से ज्यादा बच्चों को संताली भाषा व ओलचिकि लिपि का ज्ञान दिया जा सके.
जल पुरुष के नाम से लोकप्रिय पर्यावरणविद पड़ाह राजा सिमोन उरांव को जल संरक्षण, जल संग्रहण, वन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए 2016 में पद्मश्री से विभूषित किया गया. बाबा सिमोन उरांव रांची जिला के बेड़ो प्रखंड में रहते हैं. उन्होंने अपने
गांव के झरिया नाला के गायघाट के पास नरपतना में 45 फिट का बांध बनाया था. वह बांध अगले ही मानसून के दौरान तेज बारिश में बह गया. तब उन्होंने खक्सी टोला के निकट छोटा झरिया नाला में दूसरे नए बांध का निर्माण किया. उनके प्रयास से लघु सिंचाई योजना के अन्तर्गत हरिहरपुर जामटोली के निकट देशवाली बांध का निर्माण हुआ. साथ ही अगले कुछ वर्षों में अलग अलग प्रयासों में कई स्थानों में चेकडैम बने. आज उनके आस पास के गांवों में सब्जियों की भरपूर पैदावार होती है.
शिक्षाविद् , अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री, साहित्यकार, अप्रतिम आदिवासी कलाकार , बांसुरी वादक, संगीतज्ञ, पूर्व राज्यसभा सांसद एवं बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी स्व. डॉ. आर. डी. मुंडा को वर्ष 2010 में देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से अलंकृत किया गया. विख्यात फिल्म गाड़ी लोहरदगा मेल के प्रेरणास्त्रोत डॉ. मुंडा कहते थे कि 'नाच गाना आदिवासी संस्कृति है, जब काम पर जाओ तो नगाड़ा लेकर जाओ और जब थकान हो जाए, काम से जी ऊबने लगे तो थोड़ी देर नगाड़ा बजाओ.' उनका मानना था कि 'पूरा देश मरुभूमि बनने के कगार पर है. केवल जहां जहां आदिवासी रहते हैं, वहीं थोड़ा जंगल बचा है. अतः यदि जंगल को बचाना है तो आदिवासियों को बचाना होगा.'
देशज पुत्र डॉ. मुंडा ने पूरी दुनिया के जनजातीय समुदायों को संगठित किया. प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाए जाने वाले विश्व जनजातीय दिवस की परंपरा को शुरू करवाने में उनका अहम योगदान रहा.
झारखंड के जनजातीय समुदाय के लोग ना केवल देश की विरासत और परंपराओं को सहेजे हुये हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को सौंपने हेतु कटिबद्ध दिखते हैं. पारंपरिक
गीत संगीत, लोकनृत्य, वाद्ययंत्र, औषधीय ज्ञान, प्रकृति प्रेम, पुरखों के प्रति सम्मान और संगठन के प्रति समर्पण का ही नतीजा है कि आज देश भर का जनजातीय समुदाय काफी सशक्त हो चुका है. देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर जनजातीय महिला आसीन हैं, वे झारखंड की पूर्व राज्यपाल रह चुकी हैं. किंतु ऐसा नहीं है कि यहां कि सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को केवल आदिवासियों ने ही सहेज कर रखा है. इस समग्र विरासत को आगे बढ़ाने एवं समृद्ध करने में झारखंड के गैर आदिवासियों का भी अतुलनीय योगदान रहा है. रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष स्व. गिरधारी राम गोंझू को वर्ष 2022 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया. वे नागपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार थे. विद्वान लेखक गिरधारी राम गोंझू ने झारखंड की सांस्कृतिक विरासत, नागपुरी के प्राचीन कवि, झारखंड के लोकगीत, झारखंड के वाद्य यंत्र, सदानी नागपुरी व्याकरण, नागपुरी शब्दकोश, मातृभाषा की भूमिका, खुखड़ा-रगड़ी, ऋतु के रंग मंदार के संग, महाबली राधे का बलिदान, झारखंड का अमर पुत्र मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, महाराजा मदरा मुंडा और अखरा निंदाय गेलक इत्यादि कई पुस्तकों का लेखन किया.
ठेठ नागपुरी संगीत व गीत की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्पित मुकुंद नायक को वर्ष 2017 में कला एवं संगीत के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. वे पंचपरगनिया, बांग्ला, मुंडारी, कुडुख, नागपुरी, खोरठा जैसी स्थानीय भाषाओं में गीत गाते हैं. ज्यादातर स्वरचित गीत गाने वाले मुकुंद नायक एक विद्वान गीतकार, संगीतज्ञ, ढोलकिया, नर्तक, लोक गायक, प्रशिक्षक, नागपुरी लोक नृत्य झुमइर के प्रतिपादक एवं लोक संस्कृति के वाहक हैं.
झारखंड के सिमडेगा जिला के गांव बोक्बा में घासी जाति में जन्में मुकुंद नायक अपनी जाति का परिचय भी अपनी विशिष्ट शैली में देते हैँ - 'जहां बसे तीन जाइत, वहां बाजा बजे दिन राइत, घासी- लोहरा और गोड़ाइत.'
नागपुरी गीतों के अप्रतिम लेखक मधु मंसूरी हंसमुख को वर्ष 2020 में पद्मश्री से विभूषित किया गया. झारखंड आंदोलन के दौरान उनके लिखे गीत गुंजयमान रहे हैं. 'गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं.....' गीत के रचयिता मधु मंसूरी हंसमुख रांची जिला के रातू प्रखंड के सिमलिया गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने नागपुरी भाषा में 300 से भी ज्यादा गीत लिखे हैं. उनके ज्यादातर गीतों में सामाजिक सरोकार के स्वर मुखर हैं. झारखंड की रॉक कला और जनजातीय भित्ति चित्रों पर गहन शोध व लेखन के लिए लोकप्रिय बुलु इमाम को वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
जनजातीय कला एवं संस्कृति के सरंक्षण में उनका अद्वितीय योगदान है. उन्होंने हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय और आर्ट गैलरी की स्थापना की है. गुमला जिला के बिशुनपुर में आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कार्यरत संस्था विकास भारती के सचिव बाबा अशोक भगत को 2015 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया.
झारखंड ने सबसे ज्यादा पद्मश्री पुरस्कार छऊ नृत्य कला में बटोरे हैं. जिला सरायकेला खरसावां का छऊ नृत्य विश्व प्रसिद्ध है. कहा जा सकता है कि छऊ नृत्य व मुखौटों के कारण ही देश के कला मानचित्र पर सरायकेला का नाम अंकित है. छऊ नृत्य एवं छऊ मुखौटा निर्माण की कला के सरंक्षण एवं संवर्धन के लिए समय समय सरायकेला के कई कलाकारों को पद्मश्री से पुरस्कृत किया जा चुका है. वर्ष 1991 में सरायकेला राजघराने के राजकुमार स्व. शुभेंदु नारायण सिंहदेव एवं वर्ष 2005 में छऊ नृत्य कला केंद्र के संस्थापक निदेशक स्व. गुरु केदारनाथ साहू को पद्मश्री सम्मान से पुरस्कृत किया गया. वर्ष 2006 में छऊ नृत्य के प्रतिपादक गुरु स्व. श्यामाचरण पति एवं वर्ष 2008 में छऊ नृत्य प्रशिक्षक गुरु स्व. मंगला प्रसाद मोहंती को पद्मश्री से विभूषित किया गया. वर्ष 2011 में छऊ नृत्य गुरु स्व. मकरध्वज दारोगा एवं छऊ नृत्य को बढ़ावा देने के लिए गठित संस्था त्रिनेत्र के संस्थापक स्व. पंडित गोपाल प्रसाद दुबे को वर्ष 2012 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया.
अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी के छऊ नर्तक शशधर आचार्या लगभग 50 देशों में छऊ नृत्य का प्रदर्शन कर चुके हैं, उन्हें वर्ष 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
सातों महाद्वीपों के शिखर पर चढ़ने का अद्वितीय साहस करने वाली भारत की पहली महिला प्रेमलता अग्रवाल को वर्ष 2013 में देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया. जमशेदपुर की रहने वाली प्रेमलता अग्रवाल ने दक्षिण अफ्रीका के किलीमंजारो, एशिया के माउंट एवरेस्ट, साऊथ अमेरिका के अकांकागुआ, यूरोप के एल्ब्रस, आस्ट्रेलिया के
क्रांसटेज पिरामिड, अंटार्कटिका के माउंट विनसन मैसिफ एवं नार्थ अमेरिका के डेनाली पर्वतों की चोटी पर तिरंगा लहरा कर पर्वतारोहण के क्षेत्र देश का मान बढ़ाया है.
वे माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला पर्वतारोही होने का कीर्तिमान बना चुकी हैं.
खेल के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाली अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज दीपिका कुमारी को 2016 में पद्मश्री से विभूषित किया गया. राष्ट्रमंडल खेल में भारत की झोली में स्वर्ण पदक लाने वाली दीपिका अत्यंत निर्धन परिवार से ताल्लुक रखती हैं. इनके पिता ऑटो चालक एवं माता नर्स हैं.
भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में कई स्वर्ण रजत पन्नों को जोड़ने वाली दीपिका को अर्जुन पुरस्कार भी प्रदान किया जा चुका है. बॉडीबिल्डिंग के 80 किलो भार वर्ग में मिस्टर यूनिवर्स का खिताब जीत चुके प्रेमचंद डोगरा को वर्ष 1990 में पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया था. भारतीय टीम एथलेटिक्स के पूर्व कोच बहादुर सिंह को वर्ष 1983 में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया था. जमशेदपुर से जुड़े बहादुर सिंह शॉट पुट के खिलाड़ी रहे हैं, इन्होंने भारत की झोली में कई स्वर्ण और रजत पदक भरे. उनका मानना है कि 'झारखंड के प्रतिभावान खिलाड़ियों में काफी संभावनाएं हैं. सिर्फ उन्हें तराशने की आवश्यकता है. जब तक आप बच्चों को खेलों से नहीं जोड़ेंगे, तब तक हम बेहतर खिलाड़ी नहीं निकाल सकते.'
सरायकेला-खरसांवा जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली छुटनी देवी महतो की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है. जादू टोना ओझा गुनी का मुखर विरोध करने वाली छुटनी देवी को डायन कह कर प्रताड़ित किया गया. उनके ऊपर मल मूत्र तक फेंके गए. ऐसे जुल्मों को सहन करने वाली
छूटनी देवी ने हार नहीं मानी और सामाजिक कुप्रथाओं के विरुद्ध लड़ती रहीं. उनके संघर्ष को तब मुकाम मिला, जब वर्ष 2021 में उन्हें रायसीना की पहाड़ी से बुलावा आया और राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री पदक प्रदान किया गया.
रांची के लालपुर की पैथ लैब में बैठ कर मरीजों का परचा लिखने वाले गुमनाम हीरो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी गरीबों से महज पांच रुपये फीस लेते हैं. रिम्स, रांची के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. मुखर्जी पिछले कई दशकों से रोजाना दो-तीन घंटे गरीब मरीजों का ईलाज करते आ रहे हैं. वे दवा कंपनियों से मिलने वाली सैंम्पल की मुफ्त दवाओं को भी जरुरतमंदों में बांट देते हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व को वर्ष 2019 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया.
झारखंड की भूमि हिंदी पत्रकारिता के लिए भी काफी उर्वरा रही है. कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों का प्रकाशन इस धरती से होता है. इसी पत्रकारिता जगत से राज्य के वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त को वर्ष 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. केंद्रीय मृदा और जल संरक्षण अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान , चंडीगढ़ के प्रमुख डॉ परशुराम मिश्रा को वर्ष 2000 में विज्ञान और इंजिनियरिंग के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया था. राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) एवं वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के निदेशक रहे धातुविज्ञानी स्व. बाल राज निझावन को वर्ष 1958 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
संदीप मुरारका
(लेखक जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखनेवाले कलमकार एवं व्याख्याता हैं.)
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