Thursday, 16 April 2020

बिरसा



मुझे एक एफआईआर करनी हैं , मेरी हत्या की एफआईआर !

किन्तु कहाँ करूँ ? किस थाने में करूँ ? राँची के उलिहातू गाँव के थाना में , जहाँ 15 नवम्बर 1875 को मेरा जन्म हुआ या राँची के सर्कुलर रोड थाना में , जहाँ जेल में ही 9 जून 1900 को देह त्याग की थी । 
या झारखण्ड के हर थाना में , क्योंकि मेरी हत्या के आरोपी तो राज्य के हर थाना क्षेत्र में मिलेंगे । 

दर्ज की जाने वाली सनहा में किसके नाम लिखवाऊँ , अंग्रेजो के या अपनों के । क्योंकि अंग्रेजो की जेल में तो सिर्फ मेरे शरीर का अन्त हुआ था, किन्तु मैं जीवित रहा, हर उस क्रन्तिकारी के ह्रदय में एक ज्वाला बन कर जो आजादी के लिए लड़ रहे थे । देश भले ही 1947 में आजाद हो गया, पर हमारा ट्राइबल समुदाय अब भी उत्पीड़ित था । मैं जीवित रहा ‘ऊलगुलान’ बनकर, कभी सूद प्रथा के विरोध में, कभी महाजनों के शोषण के विरुद्ध, कभी खनन के बहाने हमारे जंगलो को छीन लेने के विरुद्ध, कभी रेल तो कभी नहर के बहाने हमारे विस्थापन के विरुद्ध, तो भी मैं एक उम्मीद के भरोसे जीवित रहा कि कभी तो साकार होगा सपना - 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' अर्थात अपने देश में अपना शासन ।

'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' 

15 नवम्बर 2000 , अंततः सपना साकार हुआ, अबुआ: राज्य बना 'झारखण्ड' , अबुआ: राज प्रारम्भ हुआ । मुख्यमन्त्री बने बाबूलाल मरांडी एवं नेता प्रतिपक्ष हुए स्टीफेन मरांडी । मैं निश्चित था क्योंकि मार्गदर्शक की भूमिका में जहाँ एक ओर शिबू सोरेन सक्रिय थे तो दूसरी ओर युवा तुर्क नेता के रूप में अर्जुन मुण्डा की पहचान राज्यव्यापी सर्वप्रिय हो रही थी । झारखण्ड के पास कड़िया मुण्डा जैसा गम्भीर चेहरा था वहीं चम्पाई सोरेन जैसे जुझारू आंदोलनकारी । डॉ रामदयाल मुण्डा, सालखन मुर्मू, सूर्य सिंह बेसरा, बागुन सूम्ब्रई, लक्ष्मण टुडू, शिवशंकर उरांव, मेनका सरदार,कोचे मुण्डा, ताला मरांडी,नलिन सोरेन, सुनील सोरेन,थामस सोरेन, थामस हांसदा, सुशीला हांसदा जैसे कई नेता दबे कुचले पिछड़े झारखण्ड व इसके निवासियों का स्वर्णिम भविष्य बनाने की मुहिम में जुट गए । समय के क्रम के साथ एक नया, युवा व सशक्त नेतृत्वकर्ता भी तैयार हुआ हेमन्त सोरेन ।

'मैं कब कब मारा गया ?'

वर्ष 2001- 02 में झारखण्ड का पहला बजट पारित हुआ रुपए 4800.12 करोड़ का , वहीँ 2020- 21 में रुपए 86,370 करोड़ का बजट प्रस्तुत किया गया है , यानि बजट में 18 गुणा की वृद्धि । यदि विधानसभा स्तर पर देखा जाए तो प्रति विधानसभा क्षेत्र लगभग 1000 करोड़ रुपए का प्रावधान, यदि जिलावार देखा जाए तो लगभग 3500 करोड़ प्रति जिला खर्च की तैयारी ।
इसके बावजूद मेरे लोगों के लिए स्कूल हो या अस्पताल , दोनोँ ही उनकी पहुँच से दूर हैं । तब मुझे लगता है कि अब मैं मारा गया ।

झारखण्ड का क्षेत्रफल 79714 वर्ग किलोमीटर है ,यानि प्रति वर्ग किलोमीटर के विकास के लिए 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट है । उसके बावजूद केवल शिकायत और समस्याएँ । ये आंकड़े देखकर मुझे लगता है कि अब मैं मारा गया ।

वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड की कूल जनसंख्या 2,69,45,829 थी, उसमें ट्राइबल्स की संख्या थी 70,87,068 यानि 26.31% वहीँ वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड की जनसंख्या 3,29,88,134 थी , जिसमें अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 86,45,042 यानि 26.2% है ।

लेकिन वर्ष 2001 में 3317 गाँव ऐसे थे जहाँ 100% ट्राइबल्स थे, वर्ष 2011 में ऐसे गाँव घटकर मात्र 2451 रह गए ।* लोग कहते हैं कि गाँव के लोगों का पलायन शहर की ओर हो रहा है तो फिर ट्राईबल्स गाँव में बसने कौन लोग आ रहे हैं कि हमारे गाँवो में हमारी ही उपस्थिति घटती जा रही है । आंकड़े देखकर मुझे लगता है कि अब मैं मारा गया ।

23 अप्रेल 2010 को देश की संसद में अर्जुन मुण्डा की स्पीच चल रही थी, मैं सुन रहा था, उन्होने बताया कि झारखण्ड में बिछ रही रेलवे लाईन के लिए एक ट्राइबल महिला मंगरी देवी, जिला रामगढ़, अंचल पतरातू , मौजा चिट्टो, हलका संख्या 7, थाना संख्या 0067, खाता संख्या 45, रकबा एक एकड़ तेरह डिसिमल (1.13 एकड़) भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है और मुआवजे के तौर पर उस विधवा ट्राइबल महिला को मात्र रुपए 1848/- दिए जा रहे हैं यानि मात्र 16.35 प्रति डिसिमल यानि मात्र 4 पैसे प्रति वर्ग फुट ! एक ट्राइबल की पुश्तैनी जमीन का वर्ष 2010 में यह मुआवजा, सुनते ही मुझे लगा कि अब मैं मारा गया ।

कवि वामन शलाके ने ठीक ही लिखा है - 
‘सच्चा आदिवासी कटी पतंग की तरह भटक रहा है।
कहते हैं हमारा देश इक्कीसवीं सदी की ओर बढ़ रहा है॥ '

'संघर्ष की कहानी'

हर ट्राइबल का एक मौलिक अधिकार था कि हमारी महिलाएँ वन से महुआ के फूल, तेंदू के पत्ते, घर के लिए लकड़ी या मधु लाती थीं, जो आज अपराध हो गया ।

अंग्रेजो ने वनों के वाणिज्यिक महत्व को पहचानते हुए उनका उपयोग राजस्व बढ़ाने के लिए करना शुरू किया। इस प्रक्रिया में उन्होंने ट्राईबल्स के वनाधिकारों को सीमित करने के बारे में नियम बनाने का प्रयास भी किया।
1855 में वनवासियों के अधिकारों को सीमित करने सम्बन्धी मार्ग-निर्देशों वाला एक ज्ञापन जारी किया गया। 1865 में पहली बार वनों के संरक्षण और प्रबन्धन के नियमों को लागू करने का आदेश जारी किया गया, इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वनों पर सरकारी नियन्त्रण कायम करना था। पुनः व्यापक अधिनियम- भारतीय वन अधिनियम-1878 में जारी किया गया। इसमें वनों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया था- (1) आरक्षित वन, (2) संरक्षित वन, और (3) ग्रामीण वन। आरक्षित वनों में अनधिकृत प्रवेश और पशुओं का चरना प्रतिबन्धित था । इस कानूनों के कारण भारत की कुल वनभूमि का 97 प्रतिशत क्षेत्र सरकार के अधिकार में आ गया जिसकी वजह से ट्राइबल्स का वनों में प्रवेश सीमित हो गया। जबकि हमारे लिए वन ही जीवनयापन का मुख्य साधन था । हमारा जंगल- हम जंगल के, हमारी भूमि- हम उस भूमि के पुत्र और हमलोगों पर ही प्रतिबंध ! एक ओर शासक के रूप में अंग्रेजो का कानून दूसरी ओर जमींदारों द्वारा बढ़ता शोषण ।

मराठी भाषा के प्रसिद्ध ट्राइबल कवि भुजंग मेश्राम अपनी कविता में मेरा आहवान करते हैं- 

बिरसा तुम्हें कहीं से भी
कभी भी
आना होगा ।
घास काटती दरांती हो या
लकड़ी काटती कुल्हाड़ी
खेत- खलिहान की मजदूरी से
दिशा - दिशाओं से
गैलरी में लाए गए
गोटुली रंग से
कारीगर की भट्टी से
यहां से वहां से
पूरब से
पश्चिम से
उत्तर से
दक्षिण से
कहीं से भी आ मेरे बिरसा
खेतों का हरा भरा बयार बनकर
लोग तेरी ही बाट जोहते.......

अब मैं अपने प्रिय कवि भुजंग को क्या बतलाऊं कि मैं गया कब था, जो आऊँगा । ट्राइबल का हर उलगुलान मैं ही तो हूँ । वर्ष 1895 में छोटानागपुर के सभी ट्राइबल जंगल पर दावेदारी के लिए गोलबंद हुए तो अंग्रेजी सरकार के पांव उखड़ने लगे। महाजन, जमींदार और सामंत उलगुलान के भय से कांपने लगे।

अंग्रेज सरकार ने मेरे उलगुलान को दबाने की हर संभव प्रयास किया , लेकिन हम ट्राइबल्स के गुरिल्ला युद्ध के समक्ष अंग्रेज असफल रहे। मेरा एक ही लक्ष्य था - “महारानी राज तुंदु जाना ओरो अबुआ राज एते जाना” यानी कि ‘ ब्रिटिश महारानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो’। 

अंग्रेजो के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहा, 1897 में मैने तीर कमानों से लैस चार सौ ट्राइबल वीरों के साथ खूँटी थाने पर धावा बोल दिया। 1898 में तांगा नदी के किनारे हमारी भिड़ंत अंग्रेज सेना से हुई , हमारी जीत भी हुई लेकिन हमारे कई साथियों की गिरफ़्तारियां हो गई । 

मुझे सबसे ज्यादा अफसोस 25 जनवरी 1900 में उलिहातू के समीप डोमबाड़ी पहाड़ी पर घटी एक घटना का रहा, जब अंग्रेजो और सूदखोरों के विरुद्ध आयोजित एक जनसभा में मेरे ट्राइबल्स भाई बहन एकत्रित थे ,संयोगवश मेरा ही सम्बोधन चल रहा था कि अचानक अंग्रेज सैनिकों ने हमला कर दिया, दोनोँ पक्षों मे जमकर संघर्ष हुआ, मेरे साथियों के हाथों में तीर धनुष, भाला, कुल्हाड़ी, टंगीया इत्यादि थे, परन्तु दुश्मन की बंदूक-तोप का सामना हमारे पारंपरिक हथियार भला कब तक कर पाते, अंततः लगभग 400 लोग मारे गए, जिनमें औरतें और बच्चे भी थे । कई साथी गिरफ्तार कर लिए गए । मेरी गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया, मुझपर रुपए 500/- इनाम घोषित हुआ ।

'मृत्यु या हत्या '

अकोला के शिवकवि लिखते हैं - 

अंग्रेजो के विरुद्ध "बिरसा" 
तीर कमान को थाम कर।
देश के दुश्मन को ललकारा 
ऊसने सीना तानकर।। 
झुका नही वह बिका नही, 
लडा वह दिल तुफानकर।
अन्याय से कभी डरा नही,
मृत्यु को समीप जानकर।। 

मैं छिपते छिपाते अपने लोगों से मिलते मिलाते उलगुलान का प्रसार प्रचार करते हुए चक्रधरपुर पहुँचा, तारीख थी 3 मार्च 1900, अगली रणनीति पर चर्चा चल रही थी, रात हो चली थी, हमलोगों ने 'जम्कोपाई' जंगल में रात बिताने का निर्णय लिया, देर रात जब हमलोग सो रहे थे, किसी अपने ने ही धोखा किया, मुझे मेरे 460 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया, य़ा यूँ कहूँ कि करवा दिया गया । कवि बालगंगाधर बागी ने ठीक ही लिखा- 

सोना-चाँदी जवारात अंग्रेजों ने कैसे लूट लिये,
देश के जमींदारों ने पिछड़ों की ज़मीनें छीन लिये,
अपने ही देशवासी को, दलित अछूत कहते थे,
बेगारी में खटा-खटा के गुलाम बनाये रखते थे ।

लाचार बरसती आंखों से, शबनम व चिन्गारी थी
जिन्दा जलते लोगों में आवाज दबी एक भारी थी

'पर अपने भी गद्दार हुए, घर ऐसे ही बबार्द हुए',
उठते हुए मकान गिरे कुछ जिन्दा जल श्मशान हुए,
गांव-गांव और शहर-शहर, घर लोगों के बीरान हुये,
इसलिए तड़पते हालत पर लोगों ने हाथ कमान लिये।

बूढ़े बच्चे व नर-नारी, सबने ही तीर चलाई थी,
अंग्रेजी जमींदारी विरुद्ध लंबी लड़ी लड़ाई थी,
आज वो अफसाना इतिहास का फसाना है,
बिरसा मुण्डा का गुजरा वो ज़माना है ॥

मुझे खाट सहित बांध दिया गया था, भोर हो चली थी, हमें बंदगांव लाया गया, वहाँ अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ी कई वाहनों के साथ तैयार थी, सड़क के दोनोँ ओर सैकड़ो ट्राइबल्स एकत्रित हो गए, परन्तु अंग्रेज हथियारबन्द थे, हमारे लोग निहत्थे व आवाक । हमें राँची जेल ले जाया जा रहा था, उस वक्त अपने उलगुलान को जिन्दा रखने के लिए मैने जो शब्द कहे, उन्हे कागज पर उकेरा "अश्विन कुमार पंकज" ने -  “मैं तुम्हें अपने शब्द दिये जा रहा हूं, उसे फेंक मत देना, अपने घर या आंगन में उसे संजोकर रखना। मेरा कहा कभी नहीं मरेगा। उलगुलान ! उलगुलान! और ये शब्द मिटाए न जा सकेंगे। ये बढ़ते जाएंगे। बरसात में बढ़ने वाले घास की तरह बढ़ेंगे। तुम सब कभी हिम्मत मत हारना। उलगुलान जारी है।”

अदालत में बैरिस्टर जैकब की बहस काम ना आई, मुझे सजा हो गई, मैं जेल की दीवारों में कैद था, किन्तु उन दीवारों के पहरेदार भयभीत थे, मुझसे मेरी अंतिम इच्छा भी नहीं पूछी गई, 9 जून 1900 को मेरे शरीर का अन्त हुआ, सरकारी फाईलों में हैजे से, मेरे लोगों ने जाना जहर से, किन्तु मैं आज भी जीवित हूँ । इसीलिए साहित्यकार हरीराम मीणा ने लिखा- 
" मैं केवल देह नहीं 
मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ,
पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं
मैं भी मर नहीं सकता,
मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता ।
उलगुलान !
उलगुलान !!
उलगुलान !!! ’’

संसद के केंद्रीय हॉल में 16 अक्टूबर 1989 को मेरे चित्र का अनावरण तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने किया। मेरे जन्मदिन 15 नवंबर 1989 को तोहफे के रूप में मुझ पर डाकटिकट जारी की गई । दिनांक 28 अगस्त 1998 को संसद परिसर में मूर्तिकार बी सी मोहंती द्वारा निर्मित 14 फीट की मेरी प्रतिमा का अनावरण राष्ट्रपति के आर नारायणन ने किया। 1 अप्रेल 2017 को गुजरात के नर्मदा जिले में बिरसा मुण्डा ट्राइबल यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है , वहीँ राँची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना 26 जून 1981 को की गयी थी ।

किन्तु अब मैं चाहता हूँ कि मेरी हत्या की फाईल फिर खुले, मेरे हत्यारों पर एफआईआर हो, मेरा केस फिर सुना जाए, मैं यानि ट्राइबल, मैं यानि झारखण्ड का मूलवासी, मैं यानि हर वो महिला या पुरुष जो अबुआ राज में शोषित है । जंगल से बेदखल हर बिरसा के हत्यारों को खोजो, खोजो उन सात मुंडाओं को जिन्होने 500 रुपए के लालच में मुझे पकड़वाया, वैसे सात लालची स्वार्थी आज भी हर गाँव में रहते हैं, हर थाना क्षेत्र में मेरी हत्या के वैसे सात अपराधियो पर केस दायर हों । और सजा में उन्हे जेल मत भेजो, उन्हें 'बिरसा मार्ग' दिखलाओ । कवि सूरज कुमार बौद्ध के शब्दों को उन्हें समझाओ- 

हे धरती आबा/तुम याद आते हो/खनिज धातुओं के मोह में/राज्य पोषित ताकतें/हमारी बस्तियां जलाकर/अपना घर बसा रहे हैं/मगर हम लड़ रहे हैं/केकड़े की तरह इन बगुलों के/गर्दन को दबोचे हुए/लेकिन इन बगुलों पर/बाजों का क्षत्रप है/आज जंगल हुआ सुना/आकाश निःशब्द चुप है/माटी के लूट पर संथाल विद्रोह/खासी, खामती, कोल विद्रोह/नागा, मुंडा, भील विद्रोह/इतिहास के कोने में कहीं सिमटा पड़ा है/धन, धरती, धर्म पर लूट मचाती धाक/हमें मूक कर देना चाहती है/और हमारे नाचते गाते/हंसते खेलते खाते कमाते/जीवन को कल कारखानों/उद्योग बांध खदानों/में तब्दील कर दिया है/शोषक हमारे खून को ईंधन बनाकर/अपना इंजन चला रहे हैं/धरती आबा/आज के सामंती ताकतें/जल जंगल पर ही नहीं/जीवन पर भी झपटते हैं/इधर निहत्थों का जमावड़ा/उधर वो बंदूक ताने खड़ा/मगर हमारे नस में स्वाभिमान है/भीरू गरज नहीं उलगुलान है/लड़ाई धन- धरती तक/सिमटकर कैद नहीं है//हमारे सरजमीं की लड़ाई/शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति/मान, सम्मान, प्रकृति../संरक्षण के पक्ष में है//ताकि जनसामान्य की/जनसत्ता कायम हो/अबुआ दिशुम अबुआ राज की/अधिसत्ता कायम हो ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 17 अप्रेल' 2020 शुक्रवार
वैशाख कृष्णा दशमी विक्रम संवत् २०७७

*SOURCE - Statistical Profile of scheduled Tribes in India 2013 , Ministry of Tribal Affairs, Statistics Division,GOI


Sunday, 12 April 2020

शिखर को छूते ट्राइबल्स



मुण्डा , संथाल , बीरहोर, उराँव, हो - ये झारखण्ड की जनजातियाँ नहीं बल्कि यहाँ की संस्कृति हैं । उसी प्रकार अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में "जारवा" जनजाति , आंध्र प्रदेश में "चेंचू" जनजाति , मध्य प्रदेश के "कामर" , "भील" एवं "बाईगा" , गुजरात के "कोकना" "टोडिया" , छत्तीसगढ़ में "कोरकू" , "पहाड़ी कोरवा" , "माड़िया", "बीसोन होर्न माड़िया " एवं "अबूझ माड़िया" ,महाराष्ट्र के "गोंड" , "ठाकर " एवं "वारली" , कर्नाटक में "कोलीधर" , ओड़िसा में "बोण्डा" , राजस्थान में "मीणा" "गरासिया" "सहरिया" , केरल में "पनियान" , अरुणाचल प्रदेश में "जिन्गपो लोग", असम में "देओरी लोग" इत्यादि इत्यादि नाम से भारत के हर कोने में ट्राइबल बसे हुए हैं । राँची का एयरपोर्ट बिरसा मुण्डा के नाम पर है तो स्टेडियम जयपाल सिँह मुण्डा के नाम पर । दुमका में सिद्धू कान्हू के नाम पर यूनिवर्सिटी है तो डाल्टनगंज में नीलांबर-पीताम्बर के नाम पर वहीँ बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के तहत दुमका में फूला-झानो डेयरी टेक्नोलाॅजी काॅलेज संचालित है ।

सीमित संसाधनों का उपभोग करने वाले ट्राइबल असीमित क्षमता के धनी हैं । स्वतंत्रता की लड़ाई से लेकर आज तक विभिन्न क्षेत्रो में ट्राइबल्स का अविस्मरणीय योगदान रहा है । आजादी के बाद जब भारत के सबसे विवादास्पद *कश्मीर मुद्दे* में जब एक नया मोड़ आया तो उस वक्त एक ट्राइबल को ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई । दिनांक 31 अक्टूबर 2019 को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में गिरीश चंद्र मुर्मू को नियुक्त किया गया । मयूरभंज ओड़िसा में जन्में गिरीश चंद्र मुर्मू 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं । नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के सीएम हुआ करते थे तो मुर्मू उनके प्रमुख सचिव थे। बाद में वो वित्त मंत्रालय दिल्ली में व्यय विभाग के सचिव पद पर भी आसीन रहे । 

वहीं श्रीमती द्रौपदी मुर्मू  झारखण्ड की प्रथम महिला राज्यपाल हैं, इनकी नियुक्ति 18 मई 2015 को हुई थी , इसके पूर्व वो ओडिशा विधानसभा में रायरंगपुर से विधायक तथा राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं । 

'पद्मश्री'

वर्ष 2020 की सूची में एक नाम है कर्नाटक की 72 वर्षीय पर्यावरणविद् और ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में प्रख्यात तुलसी गौड़ा का, 
जो एक आम ट्राइबल महिला हैं, ये कर्नाटक के होनाल्ली गांव में रहती हैं औऱ पिछले 60 वर्षो में एक लाख से भी अधिक पौधे लगा चुकी हैं।

ट्राइबल समुदाय से संबंध रखने के कारण पर्यावरण संरक्षण का भाव उन्हें विरासत में मिला । दरअसल धरती पर मौजूद जैव-विविधता को संजोने में ट्राइबल्स की प्रमुख भूमिका रही है। ये सदियों से प्रकृति की रक्षा करते हुए उसके साथ साहचर्य स्थापित कर जीवन जीते आए हैं। जन्म से ही प्रकृति प्रेमी ट्राइबल लालच से इतर प्राकृतिक उपदानों का उपभोग करने के साथ उसकी रक्षा भी करते हैं। ट्राइबल्स की संस्कृति और पर्व-त्योहारों का पर्यावरण से घनिष्ट संबंध रहा है। यही वजह है कि जंगलों पर आश्रित होने के बावजूद पर्यावरण संरक्षण के लिए ट्राइबल सदैव तत्पर रहते हैं। ट्राइबल समाज में ‘जल, जंगल और जीवन’ को बचाने की संस्कृति आज भी विद्यमान है । 

हल्दी की खेती संबंधी मुहिम चलाने वाले मेघालय की ट्राइबल महिला किसान 'ट्रिनिटि साइऊ' को उनके द्बारा की जा रही हर्बल खेती व प्रशिक्षण के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया , इनके साथ मुलीहा गाँव की लगभग 800 महिलाएँ औऱ उनके 98 सेल्फ हेल्प ग्रुप जुड़े हुए हैं । 

संथाली भाषा की साहित्यकार एवं कवि 'डॉ. दमयंती बेसरा' को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से पुरस्कृत किया गया , इन्होंने संथाली भाषा में पहली पत्रिका 'करम धर' का प्रकाशन किया । इन्हें साहित्य अकादमी से भी पुरस्कृत किया जा चुका है । 

वर्ष 2019 झारखण्ड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड की रहनेवाली 'जमुना टुडू ' को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया , लेडी टार्जन के नाम से लोकप्रिय जमुना ने पेड़ों को माफियाओं से बचाना शुरू किया. साथ ही नये पौधे भी लगाने शुरु किये । जमुना की इस लगन को देखकर आसपास के गांवों की महिलाएं जंगल बचाने की उनकी मुहिम में उनके साथ जुड़ती चली गईं । जमुना ने इन महिलाओं को लेकर वन सुरक्षा समिति का गठन किया। आज चाकुलिया प्रखंड में ऐसे तीन सौ से ज्यादा समितियां हैं । हर समिति में शामिल 30 महिलाएं अपने-अपने क्षेत्रों में वनों की रखवाली लाठी-डंडे और तीर-धनुष के साथ करती हैं । 

ओडिशा के क्योंझर जिले के खनिज संपन्न तालबैतरणी गांव के रहने वाले ट्राइबल किसान 'दैतारी नायक' ने सिंचाई के लिए 2010 से 2013 के बीच अकेले ही गोनासिका का पहाड़ खोदकर तीन किलोमीटर लंबी नहर बना दी थी । इस नहर से अब 100 एकड़ जमीन की सिंचाई होती है । केनाल मैन के नाम से लोकप्रिय नायक को उनके द्बारा एक कुदाल और बरमा के सहारे पहाड़ में तीन किलोमीटर लंबी नहर खोद डाली , समाज के सामने प्रस्तुत इस अप्रतिम उदहारण के लिए नायक को पद्मश्री सम्मान दिया गया । 

ओडिशा के कोरापुट जिले में जन्मीं 'कमला पुजारी' को पारंपरिक धान के बीज के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। कमला विलुप्त प्रजाति के धान की किस्म की सुरक्षा के क्षेत्र में कई वर्षों से काम करती आई हैं। अनपढ़ होने के बावजूद कमला पुजारी ने धान के विभिन्न किस्म के संरक्षण को लेकर अपनी अलग पहचान बनाई है। पुजारी ने लुप्तप्राय और दुर्लभ प्रकार के 100 से ज्यादा बीज जैसे धान, हल्दी, तिल्ली, काला जीरा, महाकांता, फूला , घेंटिया आदि एकत्र किए हैं।

वर्ष 2018 में झारखण्ड जमशेदपुर के संथाली भाषा के विद्वान ' प्रो. दिगम्बर हांसदा' को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया । उन्होंने भारतीय संविधान का संथाली भाषा में अनुवाद करने के साथ ही कई पुस्तकें भी लिखीं । ट्राईबल्स और उनकी भाषा के उत्थान के क्षेत्र में प्रोफेसर हांसदा का महत्वपूर्ण योगदान है। वे केन्द्र सरकार के ट्राईबल अनुसंधान संस्थान के सदस्य रहे और उन्होंने सिलेबस की कई पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स संग्रहित किया। इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं सरना गद्य-पद्य संग्रह, संथाली लोककथा संग्रह, भारोतेर लौकिक देव देवी, गंगमाला आदि। प्रो. हांसदा लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे ।  

केरल के तिरुवनंतपुरम में कलार जंगलों में रहने वाली ट्राइबल महिला 'लक्ष्मीकुट्टी' को पारम्परिक दवाइयों के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जंगल की दादी के नाम से लोकप्रिय लक्ष्मीकुट्टी को सांप काटने के बाद उपयोग की जाने वाली दवाई बनाने में महारत हासिल है । 

अपनी कृतियों के लिए दुनियाभर में ख्याति अर्जित कर चुके ' भज्जू श्याम' मध्यप्रदेश के जबलपुर के पास पाटनगढ़ गांव के निवासी हैं। गोंड कलाकार भज्जू श्याम की पेंटिंग की दुनिया में अलग ही पहचान बनी है। गरीब ट्राइबल परिवार में जन्म भज्जू श्याम ने अपने संघर्ष के दिनों में सिक्योरिटी गार्ड व इलेक्ट्रिशियन की नौकरी भी की है। अपनी गोंड पेंटिंग के जरिए भज्जू यूरोप में भी प्रसिद्धी हासिल कर चुके हैं। उनके कई चित्र किताब का रुप ले चुके हैं। 'द लंदन जंगल बुक' की 30000 कॉपी बिकी और यह 5 विदेशी भाषाओं में छप चुकी है। इन किताबों को भारत और कई देशों (नीदरलैंड, जर्मनी, इंग्लैंड, इटली, कर्जिस्तान और फ्रांस) में प्रदर्शित व पसंद किया गया है। 

वर्ष 2017 में झारखण्ड के सिमडेगा जिले के बोब्बा गाँव में जन्में 'मुकुंद नायक' को कला एवं संगीत के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया । वे एक लोक गायक, गीतकार और नर्तक हैं । मुकुंद नागपुरी लोक नृत्य झुमइर का प्रतिपादक हैं। इन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है । 

वर्ष 2016 में झारखण्ड के जल पुरुष के नाम से लोकप्रिय 'राजा सोमेन उराँव मिंज' उर्फ सोमेन बाबा को जल संरक्षण, वन रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए उनके अतुलनीय योगदान के लिए सम्मान दिया गया । राँची के बेड़ो प्रखण्ड में जन्में सिमोन ने साठ के दशक में बांध बनाने का अभियान जोरदार ढंग से चलाया। उन्होंने सबसे पहले नरपतरा में बांध बनाया, दूसरा बांध अंतबलु में और तीसरा बांध खरवागढ़ा में बनाया। आज इन्हीं बांधों से करीब 5000 फीट लंबी नहर निकालकर खेतों तक पानी पहुंचाया जा रहा है ।   सिमोन बाबा कहते हैं अगर विकास करना है तो आदमी से नहीं, जमीन से लड़ो, उसपर अन्न का कारखाना तैयार करो । अगर विनाश करना है तो आदमी से लड़ो। 

वर्ष 2010 में पद्मश्री सम्मान से पुरस्कृत 'डॉ रामदयाल मुंडा'  न सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री और आदिवासी बुद्धिजीवी और साहित्यकार थे, बल्कि वे एक अप्रतिम आदिवासी कलाकार भी थे। उन्होंने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी, अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य साहित्य रचा है। उनकी संगीत रचनाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं और झारखंड की ट्राईबल्स लोक कला, विशेषकर ‘पाइका नाच’ को वैश्विक पहचान दिलाई है। वे भारत के दलित-ट्राइबल और दबे-कुचले समाज के स्वाभिमान थे और प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को "वर्ल्ड ट्राइबल डे" मनाने की परंपरा शुरू करने में उनका अहम योगदान रहा है। रामदयाल मुंडा भारत के एक प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत थे। ट्राइबल्स के अधिकारों की आवाज उन्होंने रांची, पटना और दिल्ली के साथ यूएनओ में उठाई। उन्होंने पूरी दुनिया के ट्राइबल समुदायों को संगठित किया और झारखंड के जमीनी सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व दिया। 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का सम्मान मिला तो वर्ष 2010 में वह राज्यसभा के सदस्य भी बने , डॉ मुण्डा रांची विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। 30 सितंबर 2011 को कैंसर से उनका निधन हो गया। 

वर्ष 2001 में उड़ीसा की प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता 'तुलसी मुण्डा' को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।तुलसी मुण्डा ने ट्राईबल्स के बीच साक्षरता के प्रसार के लिए उल्लेखनीय कार्य किए । मुंडा ने उड़ीसा के खनन क्षेत्र में एक विद्यालय स्थापित कर सैकड़ों ट्राईबल्स बच्चों को शोषित दैनिक श्रमिक बनने से बचाया है। जबकि स्वयं उन्होंने इन खानों में मजदूर के रूप में काम किया । ' तुलसीपा' वंचितों के बीच साक्षरता फैलाने के लिए अपने मिशन के लिए जानी जाती हैं। विनोबा भावे से प्रभावित अविवाहित तुलसीपा का कर्मक्षेत्र लौह अयस्क खानों के लिए प्रसिद्ध जोड़ा से लगभग 7 किमी दूर सारंडा जंगल के आस पास है । 

भागलपुर के बांका जिला के बांसी गाँव में जन्में 'चीत्तु टुडू' को कला के क्षेत्र में वर्ष 1992 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया । टुडू बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे , साहित्यकार , नर्तक , गायक , वादक , समाज सुधारक औऱ इन सबसे बढ़कर एक महान इंसान । संथाली लोक गीतों का संग्रह 'जवांय धुती' उनकी महत्वपूर्ण कृति है । उन्होंने कई जीवनियों एवं नाटकों का अनुवाद संथाली में किया । टुडू नई दिल्ली स्थित नृत्य कला अकादमी के सदस्य भी रहे , इन्होंने अपने पैतृक गाँव में विद्यालय निर्माण हेतू दो एकड़ भूमि दान की । 

पद्मश्री की सूची वैसे नामों के बिना अधूरी है जिन्होंने गैर ट्राइबल होते हुए ट्राइबल हित में उल्लेखनीय कार्य किए यथा झारखण्ड के अशोक भगत , छत्तीसगढ़ के दामोदर गणेश बापट , मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के गांधी कहे जाने वाले महेश शर्मा, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के धर्मपाल सैनी उर्फ ताऊजी, महाराष्ट्र के मराठी चित्रकार एवं कलाकार जिव्या सोमा मशे , वर्ष 2005 झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा द्बारा खरसावां में स्थापित अर्जुन आर्चरी अकादमी ज्वाइन कर अपना कैरियर प्रारम्भ करने वाली अन्तराष्ट्रीय तीरंदाज दीपिका कुमारी , ओडिशा से राज्यसभा सांसद व हॉकी खिलाड़ी दिलीप तिर्की एवं इग्नेस तिर्की , सुषमा स्वराज की किडनी ट्रांसप्लांट करने वाले सर्जन व ट्राईबल बहुल क्षेत्र सुंदरगढ़ ओड़िसा में जन्में डॉ मुकुट मिंज , 1963 में समाजसेवा के लिए सम्मानित देव जॉयल लकड़ा इत्यादि । 

पद्म भूषण सम्मान 

देश में बहुमूल्य योगदान के लिये भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण है । पंद्रहवी लोकसभा के उपसभापति व आठो बार खूँटी से सांसद रहे 'कड़िया मुण्डा' को वर्ष 2019 में सार्वजनिक मामलों में उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया । लोकप्रिय सांसद मुण्डा जी तीन बार केन्द्र सरकार में मन्त्री भी रहे , 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में भी इस्पात मंत्रालय में राज्य मन्त्री थे । झारखण्ड ही नहीं पूरे भारत की राजनीति में कड़िया मुण्डा जैसे सादगी पसन्द व ईमानदार नेता बिरले ही हैं । कड़िया मुण्डा झारखंड के पहले राजनेता हैं जिन्हें पद्म सम्मान प्राप्त हुआ है । इन्हीं की लोकसभा सीट से वर्तमान में अर्जुन मुण्डा सांसद चुने गए हैं । 

'खेल'

आईए कुछ खेल की बात करें , वर्ष 1903 में झारखण्ड के छोटानागपुर में जन्में जयपाल सिंह मुंडा हॉकी के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे , जिनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया।मुण्डा ट्राइबल्स और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेता थे। वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले पहले ट्राइबल थे । इनके जीवन पर अश्विनी कुमार पंकज ने 'मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा' नामक पुस्तक लिखी । खेल के अलावा जयपाल सिंह मुंडा ने जिस ट्राइबल दर्शन और राजनीति को, झारखंड आंदोलन को अपने वक्तव्यों, सांगठनिक कौशल और रणनीतियों से राजनीति और समाज में स्थापित किया, वह भारतीय इतिहास और राजनीति में अप्रतिम है । 

झारखंड के सिमडेगा जिले के कसिरा बलियाजोर गांव की बेटी और भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान 'सुमराई टेटे' ध्यानचंद लाइफ टाइम अवार्ड पानेवाली देश की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं । सुमराई टेटे ने लगभग एक दशक तक भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया । वर्ष 2002 में टेटे की कप्तानी में भारतीय महिला हॉकी टीम ने मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीती थी । उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट जीते । सुमराई ने भारतीय हॉकी टीम में सहायक प्रशक्षिक की भूमिका भी निभायी । 

झारखण्ड के सरायकेला खरसांवां जिले के राजनगर प्रखंड के पहाड़पुर गांव की मूल निवासी विनीता सोरेन दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत शिखर एवरेस्ट फतह करने वाली पहली ट्राइबल युवती है । इको एवरेस्ट स्प्रिंग 2012 अभियान के तहत विनीता अपने दो साथियों क्रमश: मेघलाल और राजेंद्र :के साथ 20 मार्च 2012 को जमशेदपुर से अभियान की शुरुआत की। 26 मई 2012 को सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर विनीता ने एवरेस्ट के शिखर पर तिरंगा फहराया । 

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक ट्राइबल किसान के परिवार में जन्मी 'एम सी मैरीकॉम' छह बार विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं । मैरी कॉम ने सन् २००१ में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। उन्होंने 2019 के प्रेसिडेंसीयल कप इोंडोनेशिया में स्वर्ण पदक जीता। 
बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वर्ष 2009 में मैरी कॉम को भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार प्रदान किया गया । मैरीकॉम भारतीय ट्राईबल्स द्वारा निर्मित उत्पादों की बिक्री करने वाले 'ट्राइब्स इंडिया' की ब्रांड एंबेस्डर एवं राज्यसभा सांसद भी हैं।
 
भारतीय तीरंदाज कोमालिका बारी ने विश्व युवा तीरंदाजी चैंपियनशिप के रिकर्व कैडेट वर्ग के एक तरफा फाइनल में जापान की खिलाड़ी को हराकर स्वर्ण पदक हासिल किया। जमशेदपुर की टाटा तीरंदाजी अकादमी की कोमालिका अंडर-18 वर्ग में विश्व चैम्पियन बनने वाली भारत की दूसरी तीरंदाज बनीं। 

ओड़िसा के सुंदरगढ़ जिले के उरांव परिवार में जन्में 'वीरेंद्र लकड़ा' ने 2012 में सम्पन्न लंदन ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम में खेलकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया । इसके पहले वे चैंपियन ट्राफी , वर्ल्ड लीग , एशियन गेम्स में भी कई बार खेल चुके हैं । 

वहीं ओड़िसा की 'सुनीता लकड़ा'  भारतीय महिला हॉकी टीम की डिफेंडर के रूप में लोकप्रिय खिलाड़ी रही हैं ।सुनीता ने 2008 से टीम से जुड़ने के बाद 2018 की एशियाई चैम्पियंस ट्रोफी के दौरान भारत की कप्तानी की जिसमें टीम दूसरे स्थान पर रही थी। उन्होंने भारत के लिए 139 मैच खेले और वह 2014 के एशियाई खेलों की ब्रॉन्ज मेडल विजेता टीम का भी हिस्सा रहीं। 

सरायकेला-खरसावा जिला अंतर्गत चाडिल के गांव पथराखून के बादलाडीह टोला में जहां मात्र 13 ट्राइबल परिवार रहते हैं। यहां की रहने वाली स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा ' सावित्री मुर्मू ' ने मात्र नौ महीने में देश के 29 राज्यों के अलावे भूटान और नेपाल का साइकिल से भ्रमण किया । यात्रा के दौरान सावित्री ने लोगों को आदर्श नागरिक समाज का निर्माण करने और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश दिया। सावित्री की यात्रा पटना एनआईटी घाट से 13 अक्टूबर 2017 को शुरु हुई और 14 जुलाई 2018 को समाप्त हई । यात्रा के दौरान 261 दिनों में उन्होंने कुल 14600 किलोमीटर की यात्रा साइकिल से पूर्ण की ।

'साहित्य'

पारसी सिञ्ज चांदो (संथाली भाषा के सूरज) ' पंडित रघुनाथ मुर्मू ' संथाली भाषा की लिपि ओल चिकी के जन्मदाता थे । 
गुरु गोमके के नाम से प्रसिद्ध पंडित रघुनाथ का जन्म 5 मई 1905 को ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के डांडबूश गाँव में हुआ था। उन्होंने महसूस किया कि उनके समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपरा के साथ ही उनकी भाषा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिए एक अलग लिपि की जरूरत है । इसलिए उन्होंने संथाली  लिखने के लिए ओल चिकी लिपि की खोज के काम को प्रारम्भ किया जो 1925 में पूर्ण हुआ। उपरोक्त लिपि का उपयोग करते हुए उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जैसे कि व्याकरण, उपन्यास, नाटक, कविता और सांताली में विषयों की एक विस्तृत श्रेणी को कवर किया, जिसमें सांलक समुदाय को सांस्कृतिक रूप से उन्नयन के लिए अपने व्यापक कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में ओल चिकी का उपयोग किया गया। "दरेज धन", "सिद्धु-कान्हू", "बिदु चंदन" और "खरगोश बीर" उनके कामों में से सबसे प्रशंसित हैं। बिहार , पश्चिम बंगाल और उड़ीसा सरकार के अलावा, उड़ीसा साहित्य अकादमी सहित कई अन्य संगठनों ने उन्हें सम्मानित किया, रांची विश्वविद्यालय द्वारा माननीय डी लिट की उपाधी से उन्हें सम्मानित किया गया। महान विचारक, दार्शनिक, लेखक और नाटककार ने 1 फरवरी 1982 को अपनी अंतिम सांस ली।

ओत् गुरु कोल लाको बोदरा हो भाषा के साहित्यकार थे। हो भाषा-साहित्य में ओत् गुरू कोल "लाको बोदरा" का वही स्थान है जो संताली भाषा में रघुनाथ मुर्मू का है। उन्होंने १९४० के दशक में हो भाषा के लिए ह्वारङ क्षिति नामक लिपि की खोज की व उसे प्रचलित किया।
उसके प्रचार-प्रसार के लिए ‘आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान’ (एटे:ए तुर्तुङ सुल्ल पीटिका अक्हड़ा) की स्थापना भी की। यह संस्थान आज भी हो भाषा-साहित्य,संस्कृति के विकास में संलग्न है। "ह्वारङ क्षिति" में उन्होंने ‘हो’ भाषा का एक वृहद् शब्दकोश भी तैयार किया जो अप्रकाशित है। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के खुंटपानी ब्लॉक में स्थित पासेया गाँव में जन्में लाको बोदरा होमियोपैथी चिकित्सक भी थे । इन्होंने 29 जून 1986 को देह त्याग किया।

'वासवी किड़ो' की लेखनी ट्राईबल्स के प्रति आपका नजरिया बदलने के लिए पर्याप्त है । रमणिका गुप्ता द्वारा सम्पादित एवं किडो द्बारा लिखित पुस्तिका 'भारत की क्रांतिकारी आदिवासी औरतें' में इतिहास द्वारा तिरस्कृत व उपेक्षित वीरांगनाओं की ऐतिहासिक भूमिका को समझने की कोशिश की गयी है। ट्राईबल महिलाओं के शौर्य को तलाशती यह पुस्तिका जीवन मूल्यों को व्यापकता प्रदान करती हुई उल्लेखनीय भूमिका अदा कर रही है । 

रांची के लाल सिरम टोली में जन्मी 'एलिस एक्का' हिंदी की पहली ट्राइबल लेखिका हैं। उन्होंने पचास के दशक में हिंदी साहित्य में पर्दापण किया। सन् 1947 में शुरू हुई साप्ताहिक ‘आदिवासी में वह लिखती थी। ‘आदिवासी' के सभी अंक प्राप्य नहीं हैं , इसलिए उनकी सभी रचनाओं और उनके साहित्यिक अवदान से पाठक वर्ग अभी तक अपरिचित है। अब तक उनकी ये कहानियां प्राप्त हुई हैं-‘वनकन्या', ‘दुर्गी के बच्चे और एल्मा की कल्पनाएं', ‘सलगी, जुगनी और अंबा गाछ’ ‘कोयल की लाड़ली सुमरी', ‘पन्द्रह अगस्त, बिलचो और रामू’ और ‘धरती लहलहाएगी झालो नाचेगी गाएगी।' वनकन्या उनकी पहली प्राप्त रचना है जो ‘आदिवासी’ के अंक 17 अगस्त 1961, वर्ष-15, अंक 28-29 में छपी है। एलिस एक्का एक रचनाकार होने के साथ-साथ एक अनुवादिका भी थी। उन्होंने खलील जिब्रान के साहित्य का अनुवाद किया है जो ‘आदिवासी’ अंकों में प्रकाशित हुए हैं।

लेखिका ' ममांग दाई' अरुणाचल प्रदेश की पहली महिला थी, जिन्होंने आई.ए.एस. क्वालीफाई किया। इसके बावजूद ममांग दाई ने जर्नलिज़्म और लेखन चुना। उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स, द टेलीग्राफ और सेंटिनल समाचार पत्रों के साथ काम किया है और अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की प्रेसिडेंट भी रही हैं। इनके अन्य काम हैं 2003 की रिवर पोएम्स। इनकी किताब अरुणाचल प्रदेश: द हिडेन लैंड के लिए इन्हें वेरियर एलविं अवॉर्ड से भी नवाजा गया है। इनकी अन्य पुस्तकें हैं द स्काई क्वीन, स्टुपिड क्युपिड और माउंटेन हार्वेस्ट : द फूड ऑफ अरुणाचल प्रदेश।

नागालैंड की आओ ट्राइबल साहित्यकार ' तेमसुला आओ' वर्ष 2013 की साहित्य अकादमी अवार्ड विनर लेखिका है , उन्होंने अपने आओ नागा ट्राईबल्स के जीवन को कहानियों में ढाला है। एक कहानी में एक लड़की को लबुर्णम के फूल अपने बालों में पहनने की बहुत ख्वाहिश होती है। लेकिन जीते जी उसे वह फूल नसीब नहीं होता, इसलिए उसकी अंतिम इच्छा होती है कि मरने पर उसके कब्र पर ये फूल चढ़ाएं जाएँ । 

2008 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रथम रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान और समय-समय पर अनेक क्षेत्रीय व राज्य स्तरीय पुरस्कारों-सम्मानों से सम्मानित 
रोज केरकेट्टा खड़िया और हिन्दी की एक प्रमुख लेखिका, शिक्षाविद्, आंदोलनकारी और मानवाधिकारकर्मी हैं। सिमडेगा के कइसरा सुंदरा टोली गांव में जन्मी रोज केरकेट्टा झारखंड की आदि जिजीविषा और समाज के महत्वपूर्ण सवालों को सृजनशील अभिव्यक्ति देने के साथ ही जनांदोलनों को बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करने तथा संघर्ष की हर राह में आप अग्रिम पंक्ति में रही हैं। ट्राइबल भाषा-साहित्य, संस्कृति और स्त्री सवालों पर डा. केरकेट्टा ने कई देशों की यात्राएं की है। इन्होंने प्रेमचंद की कहानियों का अनुवाद खड़िया मे किया है - ' प्रेमचंदाअ लुङकोय' , इसके अलावा इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं - खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन (शोध ग्रंथ), सिंकोय सुलोओ (खड़िया कहानी संग्रह), हेपड़ अवकडिञ बेर (खड़िया कविता एवं लोक कथा संग्रह), पगहा जोरी-जोरी रे घाटो (हिंदी कहानी संग्रह), सेंभो रो डकई (खड़िया लोकगाथा) खड़िया विश्वास के मंत्र (संपादित), अबसिब मुरडअ (खड़िया कविता संग्रह) और स्त्री महागाथा की महज एक पंक्ति (वैचारिक निबंधों का संग्रह)

झारखंड के साहित्यिक-सांस्कृतिक मोर्चे पर सक्रिय ' वंदना टेटे' लगातार लहूलुहान की जा रही ट्राइबल अस्मिता के पक्ष में एक मज़बूत आवाज़ बनकर उभरी हैं। उनकी मुख्य कृतियाँ हैं पुरखा लड़ाके , किसका राज है , झारखंड एक अंतहीन समरगाथा , असुर सिरिंग, पुरखा झारखंडी साहित्यकार और नये साक्षात्कार , आदिम राग , आदिवासी साहित्यः परंपरा और प्रयोजन , आदिवासी दर्शन कथाएँ । इनके उल्लेखनीय आदिवासी पत्रकारिता के लिए झारखंड सरकार का राज्य सम्मान 2012 एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2013 में सीनियर फेलोशिप प्रदान किया गया । वहीं 2019 में वंदना को राँची में  शैलप्रिया स्मृति सम्मान प्रदान किया गया । 

झारखण्ड के दुमका के दुधानी कुरुवा गांव में जन्मी ' निर्मला पुतुल' हिंदी कविता में एक परिचित ट्राइबल नाम है। इनकी प्रमुख कृतियों में ‘नगाड़े की तरह बजते शब्द’ और ‘अपने घर की तलाश में’ हैं। इनकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, उड़िया, कन्नड़, नागपुरी, पंजाबी, नेपाली में हो चुका है। अनेक राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय सम्मान हासिल कर चुकी निर्मला अपनी गाँव की निर्वाचित मुखिया भी है। 

नीलगिरि के पहाड़ों पर रहने वाली इरुला आदिवासी समुदाय की ' सीता रत्नमाला' की अंग्रेजी में लिखी हुई भारत की पहली ट्राइबल आत्मकथा ‘बियोंड द जंगल’ की हिंदी प्रस्तुति है जँगल से आगे । इसका मूल अंग्रेजी संस्करण भारत में प्राप्य नहीं है और अब यह दुर्लभ है। ट्राइबल दृष्टि और अनुभवों से लिखा गया यह आत्मसंस्मरण कई मायने में पाठकों का ध्यान खींचता है। अद्भुत कथा, मार्मिक और दिल को छू लेने वाली घटनाएं, कहने की बहुत ही सरल लेकिन जानदार शैली वाली इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद सुपरिचित अश्विनी कुमार पंकज ने किया है, जो आदिवासी अध्ययन के लिए जाने जाते हैं।

साहित्य सृजन में कई ट्राइबल नाम राष्ट्रीय क्षितिज पर अंकित हैं यथा- वाहरू सोनवणे, मोतीरावण कंगाली, वाल्‍टर भेंगरा 'तरुण', शांति खलखो, अनुज लुगुन आदि। वहीं कई ऐसे नाम हैं जिनका जीवन चरित्र अलिखित या अधूरा लिखा ही रह गया यथा मुंडारी के प्रथम लेखक-उपन्यासकार ' मेनस ओड़ेया हों' , संथाली  कवि पाउल जुझार सोरेन, धर्मग्रंथ धरमपुथी के रचयिता रामदास टुडू,  नागपुरी के ' धनीराम बक्शी ' , पाकुड़ के संथाली गोरा चाँद टुडू ,हिंदी के विमर्शकार हेरॉल्ड एस. तोपनो, ट्राइबल इन्साइक्लोपीडिया महली लिविन्स तिरकी, आदिवासी महासभा के मुखपत्र आदिवासी के संपादक जूलियस तीगा ।

 ट्राइबल साहित्यकारों की सूची में अन्य लोकप्रिय नाम हैं कवयित्री और संपादक ' सुशीला सामद हों, प्यारा केरकेट्टा, कानूराम देवगम, आयता उरांव, ममांग दई, बलदेव मुंडा, दुलाय चंद्र मुंडा, पीटर पॉल एक्का, हरिराम मीणा, महादेव टोप्पो, ग्रेस कुजूर, उज्ज्वला ज्योति तिग्गा, काजल डेमटा, सुनील कुमार 'सुमन', केदार प्रसाद मीणा, जोराम यालाम नाबाम, सुनील मिंज, ग्लैडसन डुंगडुंग, रूपलाल बेदिया, गंगा सहाय मीणा, ज्योति लकड़ा, नीतिशा खालखो, अनु सुमन बड़ा, हीरा मीणा, अरुण कुमार उरांव, जसिंता केरकेट्टा, ज्योति लकड़ा , श्रृष्टि किंडों , बन्नाराम माणतवाल, राजस्थान के पूर्व डीआइजी हरि राम मीणा , रानी मुर्मू । 

हाल ही मे झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखाड़ा ने ट्राइबल साहित्य की विभिन्न शाखाओं में लेखन कार्यो में सक्रिय प्रतिभाओं को पुरस्कृत किया । असुर साहित्य के लिए मेलन असुर व संपति असुर , हो साहित्य के लिए कमल लोचन कोड़ाह व दमयंती सिंकु, खड़िया साहित्य के लिए विश्राम टेटे व प्रतिमा कुल्लू, खोरठा साहित्य के लिए डॉ. नागेश्वर महतो व पंचम महतो , कुड़मालि साहित्य के लिए भगवान दास महतो व सुनील महतो, कुड़ुख साहित्य के लिए अघनु उराव व फ्रासिस्का कुजूर
, मुंडारी साहित्य के लिए मंगल सिंह मुंडा व तनुजा मुंडा
, नागपुरी साहित्य के लिए डॉ. वीपी केशरी व डॉ. कुमारी बासंती, पंचपरगनिया साहित्य के लिए प्रो. परमानंद महतो व विपिन बिहारी मुखी, संताली साहित्य के लिए चुंडा सोरेन 'सिपाही' व सुंदर मनोज हेम्ब्रम।

'शिक्षा'

शैक्षणिक संस्थानो में कई महत्वपूर्ण पदों पर ट्राइबल समुदाय सुशोभित हो रहा है । श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्व विद्यालय रांची के उप कुलपति रांची यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. सत्यनारायण मुंडा हैं । वहीं मध्यप्रदेश के अमरकंटक में अवस्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो टी व्ही कट्टीमणी रह चुके हैं । रांची विश्वविद्यालय में डॉ. करमा उरांव जनजातीय क्षेत्रीय भाषा विभाग के एचओडी तथा सोशल साइंस के डीन रह चुके हैं तो जमशेदपुर के कॉपरेटिव कॉलेज के प्राध्यापक जीतराई हांसदा हैं। वर्ष 2016 में आदिवासी संघर्ष मोर्चा ने राँची में कई शिक्षाविदों को सम्मानित भी किया था - बेड़ो कॉलेज के प्राचार्य गुनी उरांव, लापुंग कॉलेज के प्राचार्य बिरसो उरांव, संत पॉल उवि की प्रिंसिपल उषा लकड़ा, पूर्व प्राचार्य ज्योत्सना कुजूर, आशिड़ किड़ो, प्रो. अजय बाखला, अशिसन तिड़ु, अनिता हेम्ब्रम । 

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ की अध्यक्ष प्रोफेसर सोना झरिया हैं , वहीं सी के तिर्की, योजना आयोग के पूर्व सदस्य हैं । भारत सरकार के भू वैज्ञानिक डॉक्टर अशोक बक्सला, वकील निकोलस बारला, समाज वैज्ञानिक डॉक्टर ए बेंजामिन, शोधार्थी डॉक्टर विसेंट एक्का जैसे लोग ट्राइबल समुदाय में शिक्षा की अलख जलाए हुए हैं । 

शिक्षा के क्षेत्रो में योगदान की कहानी एक नन ट्राइबल के बिना पूरी नहीं की जा सकती , वो थे दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेड़ा । छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के घने जंगलों के बीच मौजूद लमनी गांव में डॉ खेड़ा तीस साल तक कुटिया बनाकर रहे और ट्राईबल्स के बीच रहकर शिक्षा का उजियारा फैलाते रहे । 

राजस्थान के बांसवाड़ा में गोविंद गुरु जनजातीय यूनिवर्सिटी का संचालन हो रहा है, जहाँ हर साल कई ट्राइबल उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । 

यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि अमेरिका में 32 ट्राइबल कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी हैं , जिनमें 358 तरह के एप्रेण्टिस , डिप्लोमा , सर्टिफिकेट व डिग्री प्रोग्राम चल रहे हैं और लगभग तीस हजार छात्र पढ़ रहे हैं । ये संस्थान कोलर्डो स्थितअमेरिकन इण्डियन कॉलेज फण्ड के अन्तर्गत संचालित होते हैं । 

'पत्रकारिता'

झारखंड की दयामणि बारला एक लोकप्रिय पत्रकार एवं कार्यकर्ता हैं। ट्राईबल्स के अधिकारों के लिए लड़ने वाली सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला को एलेन एल लुज अवार्ड से सम्मानित किया गया। न्यूयार्क की मैसाच्युसेट्स के एक एनजीओ ने इस अवार्ड के तहत तहत दयामणि को 10,000 डॉलर दिए। उनको वर्ष 2000 में ग्रामीण पत्रकारिता के क्षेत्र में काउंटर मीडिया अवार्ड भी प्राप्त हुआ था।

हालाँकि इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि देश के मीडिया में ट्राइबल पत्रकारों की स्थिति और उपस्थिति न के बराबर है और यही कारण है कि ट्राइबल्स की मूल संस्कृति, संस्कार, समस्याएं देश और विश्व के पटल पर नहीं आ पातीं । 

' पुलिस , पारा मिलट्री एवं सेना' 

पुलिस , पारा मिलट्री एवं सेना में लाखों की संख्या में ट्राइबल जवान मिलेंगे । झारखंड के गुमला जिला के डुमरी ब्लाक के जरी गांव में जन्में लांस नायक अलबर्ट एक्का पहले ट्राइबल सैनिक थे जो भारत-पाकिस्तान युद्ध में 3 दिसम्बर1971 को हिली की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो गए एवं इन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

' स्वतंत्रता संग्राम' 

भारत का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास कई अनकही अनपढ़ी या आधी अधूरी कहानियों से भरा पड़ा है , जिसमें कई नायकों के नाम छुपे पड़े हैं । ऐसे ही कुछ नायक ट्राइबल समुदाय से हुए जिनके किस्सों को इस आलेख में समेटना मुश्किल है , उसके लिए केवल उनके जीवन चरित्र पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है । जैसे झारखण्ड में धरती आबा बिरसा मुण्डा , सिद्धू और कान्हू मुर्मू , चांद, भैरव, उनकी बहन फूलो और झानो मुर्मू , टाना भगत , तिलका माझी , सिंदराय और बिंदराय मानकी, गंगानारायण सिंह ,लुबिया मांझी, बैस मांझी और अर्जुन मांझी , पीताम्बर साही और नीलाम्बर साही , जतरा भागत, बुधू भगत , तेलंगा खड़िया, छतीसगढ़ के गुंडाधुर , हीरासिंह देव उर्फ कंगला माझी, वीर नारायण सिंह, महाराष्ट्र के भीमा नायक , नागालैंड की रानी  गाइदिन्ल्यू, चेन्नै के अल्लुरी सीतारमण राजू, ओड़िसा के राजा सुरेन्द्र साए, हैदराबाद निजाम 
विरुद्ध संघर्ष करने वाले गोंड ट्राइबल कुमराम भीम ।

आजाद भारत में भी विभिन्न मुद्दों पर समय समय पर ट्राइबल आन्दोलनकारी मुखर होते रहे हैं जैसे छत्तीसगढ़ के फेटल सिँह खरवार और कूच नाम विवादों के साये में रहे जैसे झारखण्ड में के सी हेम्ब्रम । 

' राजनीति' 

राजनीति और ट्राइबल्स यह टॉपिक इतना वृहत हैं कि इस पर काफी लम्बी चर्चा हो सकती है , मेरी समझ से इस शीर्षक पर एक अलग आर्टिकल लिखने की आवश्यकता है । परन्तु कुछ नामों की चर्चा किए बिना आजके आर्टिकल क़ा समापन करने का जी नहीं कर रहा । जिनमें झारखण्ड आन्दोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन , भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय में केंद्रीय मन्त्री अर्जुन मुण्डा , झारखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन , केन्द्रीय इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते , पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा , निर्दलीय मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा, लोहरदगा से तीन बार सांसद सुमति उरांव। लोकसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए कुल 545 सीटों में से 47 सीट आरक्षित हैं वहीं झारखण्ड में 81 सीटों में 28 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं । 

ट्राइबल्स के महान गुणों को एक पंक्ति में समेटते हुए आस्ट्रेलिया की दार्शनिक कैथ वाकर लिखती हैं कि 'आपकी धरती, जहां आप रहते हैं और आपका समुदाय, जिसके साथ आप रहते हैं, आपसे पहले है - यही आदिवासियत है ।'


संदीप मुरारका 
दिनांक 13 अप्रैल ' 2020 सोमवार 
शुभ वैशाख कृष्णा षष्ठी, विक्रम संवत् २०७७




Saturday, 28 March 2020

समय के साथ बदलता मारवाड़ी समाज

*राजस्थान दिवस 30 मार्च हेतू शोधपरक आलेख -*


*समय के साथ बदलता मारवाड़ी समाज*


वर्ष 2011 में पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा आयोजित मारवाड़ महोत्सव के उद्घाटन समारोह में रतनगढ़, राजस्थान के तत्कालीन विधायक राजकुमार रिणवा अतिथि के रूप में जमशेदपुर पधारे थे , उन्होंने अपने वक्तव्य के दौरान एक दिलचस्प बात कही कि राजस्थान एक ऐसा प्रान्त है जहाँ ना तो द्वादश ज्योतिर्लिग में कोई एक लिंग हैं औऱ ना ही चार धाम में कोई धाम । ना गंगा का जल राजस्थान को मिला , ना यमुना का । हमारे तो हर गाँव में एक ग्राम देवता है , हर गाँव में सतीयो की गाथा औऱ गाँव गाँव के कुओं पर विराजते बालाजी , इन्ही सबके प्रताप से ना केवल हमारा राजस्थान सम्पन्न है बल्कि राजस्थान का मारवाड़ी जहाँ गया , वहीं उसके नाम के डंके बजने लगे । 


सच में यह बात तो सौ टका सही है, अब देश की राजनीति को ही लीजिए या तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी औऱ गृहमन्त्री अमित शाह के नाम के चर्चे हैं या उनकी नाक के नीचे दिल्ली की सत्ता जीत लेने वाले मारवाड़ी बन्धु अरविन्द केजरीवाल औऱ मनीष सिसोदिया के डंके बज रहे हैं । 


*स्टार्टअप*


खैर राजनीति की बातें बाद में , स्टार्टअप का जमाना है । कुछ नामों को खंगालते हैं । ईकामर्स की सबसे विशाल कम्पनी *"फ्लिपकार्ट"* के संस्थापक मारवाड़ी युवा हैं सचिन बंसल औऱ बिन्नी बंसल , जिन्होंने मात्र 26 साल की आयु में ऐसे स्टार्टअप को स्टार्ट किया , जिसका वर्तमान मार्केट वैल्यू हजारों करोड़ है , जिसमें माइक्रोसॉफ्ट का निवेश है तो वालमार्ट की साझेदारी है । वहीं *"स्नेपडील"* के संस्थापक भी युवा रोहित बंसल हैं । वैसे तो एमेजॉन अमेरिका की कम्पनी है किन्तु दुनिया की सबसे वृहत नेटवर्क वाली इस कम्पनी के इण्डिया हेड " अमित अग्रवाल" हैं ।


आज टैक्सी , ऑटो , बस यानि पब्लिक ट्रांसपोर्ट की आवश्यकता पड़ते ही *"ओला"* Ola का ख्याल आता है , जिसका संस्थापक भी एक मारवाड़ी युवा भाविष अग्रवाल है । वहीं टूर ट्रेवल्स के समय दूसरे शहर में होटल की तलाश करते समय *"ओयो"* OYO होटल्स पर नजर अवश्य पड़ी होगी , इसके फाउंडर रितेश अग्रवाल हैं । 


75 मिलियन यूएस डॉलर की स्टार्टअप कम्पनी *"कारदेखो"* CarDekho की शुरआत जयपुर में अमित जैन ने की । वहीं 70 मिलियन यूएस डॉलर की बेबी प्रॉडक्ट्स बेचने वाली ईकामर्स कम्पनी *"फर्स्टक्राय"* firstcry आई आई एम अहमदाबाद से पढ़े मारवाड़ी युवा सुपम महेश्वरी की है । तो आशीष गोयल नाम के युवा 77 मिलियन यूएस डॉलर की पूँजी के साथ *"अर्बनलेडर"* UrbanLadder नाम के स्टार्टअप पर फर्निचर बेच रहे हैं । 


इन्टरनेट के द्वारा स्मार्ट फोन पर चलने वाली मेसेजिंग सेवा *"हाईक"* hike messenger  , जिसकी मार्केट वेल्यू लगभग 650 करोड़ रुपए है , इसके मालिक कविन भारती मित्तल हैं । *"खाने का कोई धर्म नहीं होता, खाना खुद ही एक धर्म है।"* - इन शब्दों को ट्वीट करने वाली रेस्टोरेंट्स से आपके घर पर फूड डिलीवरी करने वाली कंपनी *"जोमेटो"* Zomato के मालिक दीपिंदर गोयल हैं । 

*पद्मश्री अवार्ड्स*

खैर , विज्ञान कहता है कि मानव शरीर में 206 हड्डियाँ होती है , वैसे ही मेरा मानना है कि एक मारवाड़ी के भीतर 206 बिजिनेस आईडियाज होते हैं । इसीलिए मारवाड़ी व्यापार औऱ उद्योग के अलावा भी जहाँ गया , वहाँ उसने शीर्षस्थ स्थान प्राप्त किया । 

पिछले दिनों जब पद्मश्री अवार्ड्स दिए जा रहे थे तो सबने कहा कि अब सही पात्रों का चयन किया जा रहा है , तो मेरी उत्सुकता जागी कि इन सही पात्रों में एक आध मारवाड़ी भी है कि नहीं । मैं चकित रह गया , मैंने पाया कि वर्ष 2020 में ट्रेड एवं व्यापार क्षेत्र में दिल्ली के जयप्रकाश अग्रवाल एवं कर्नाटक के भरत गोयनका को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया , वहीं सामाजिक कार्यों में विशेष योगदान के लिए राजस्थान की श्रीमती ऊषा चौमर एवं हिम्मत राम भाम्भू को , आर्ट कला के लिए मध्यप्रदेश के पुरूषोत्तम दाधिच को तथा साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में एस पी कोठारी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया । 

वर्ष 2019 में कृषि के क्षेत्र में राजस्थान के जगदीश प्रसाद पारिख एवं झालावाड़ जिले के गांव मानपुर के किसान हुकमचंद पाटीदार को तो वर्ष 2018 में धार्मिक क्षेत्र में संत नारायण दास जी महाराज , त्रिवेणी धाम , व्यापार एवं उधोग के लिए रामेश्वर लाल काबरा को , 2017 में साहित्य के क्षेत्र में अमेरिका के अनंत अग्रवाल , 2016 में झाबुआ के गांधी कहे जाने वाले महेश शर्मा , 2015 में श्रीमती विमला पोद्दार , 2014 में चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ पवन राज गोयल , 2013 में कवि सुरेंद्र शर्मा , उत्तराखण्ड के राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल , संगणक विज्ञान के क्षेत्र में योगदान के लिए आईआईटीयन मणीन्द्र अग्रवाल, जमशेदपुर की पर्वतारोही श्रीमती प्रेमलता अग्रवाल , वर्ष 2012 में पैरालंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पैरालिंपियन देवेन्द्र झाझड़िया, ऐड्वेंचर में अजीत बजाज , विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए  जिंदल स्टेनलैस कंपनी के रिसर्च डवलपमेंट विभाग में कार्यरत डॉ. लोकेश कुमार सिंघल को प्रदान किया गया जिनका एक ही वाक्य सफलता का मूल मंत्र बन सकता है *"मुझे कुछ नया करने में ही आनंद आता है।"*

वर्ष 2011 में समाजसेवी मामराज अग्रवाल , धरोहर संरक्षण के लिए ओम प्रकाश अग्रवाल , 2010 में चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ के के अग्रवाल को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था , यदि 1954 से आज तक की सारी सूची खंगाली जाए तो सैकड़ों मारवाड़ी प्रतिभाओं ने विभिन्न क्षेत्रो में यह साबित किया है कि राजस्थान की बालुई भूमि योग्यता की पैदावार के लिए उर्वरा है । 

*पद्म भूषण सम्मान*

देश में बहुमूल्य योगदान के लिये भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण है । जो चिकित्सा के क्षेत्र में बालकृष्ण गोयल, सत्यपाल अग्रवाल, कांतिलाल हस्तीमल संचेती , जसबीर बजाज एवं डॉ. अंबरीश मित्तल, विपासना ध्यान के प्रसिद्ध बर्मी-भारतीय गुरु सह सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण गोयनका , विज्ञान में डॉ. विजय कुमार सारस्वत, सुश्री इंदू जैन , जयवीर अग्रवाल, खेल में विजयपत सिंहानिया, साहित्य में दिनेश नंदिनी डाल्मिया, समाजसेवी गंगा प्रसाद बिरला , माणिक्यलाल वर्मा एवं नवलगढ़ झुंझनू के सीताराम सेकसरिया, उद्योग में केशव प्रसाद गोयनका , गूजर मल मोदी, राहुल बजाज , सुनील भारती मित्तल, हरि शंकर सिंहानिया एवं एस पी ओसवाल, कला में कोमल कोठारी, लक्ष्मी मल्ल सिंघवी को सार्वजनिक उपक्रम के लिए , रामनारायण अग्रवाल को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में , दौलत सिंह कोठारी को प्रशासकीय सेवा के क्षेत्रो में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है । 

*पद्म विभूषण पुरस्कार*

भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाने वाला दूसरा उच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण है । समाजसेवा में स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज की पत्नी जानकीबाई बजाज को , घनश्यामदास बिड़ला एवं लक्ष्मीनिवास मित्तल को व्यापार एवं उद्योग के क्षेत्र में , प्रसिद्ध वैज्ञानिक एव राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष दौलत सिंह कोठारी, चिकित्सा में बी.के. गोयल , डॉ. कांतिलाल हस्तीमल संचेती एवं जसबीर बजाज , दक्षिण अफ्रीका में भारत के राजदूत रहे अर्थशास्त्री लक्ष्मी चंद्र जैन को पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया । 

*मारवाड़ी के नाम पर दिया जाने वाला सम्मान*

महात्मा गाँधी के पांचवे पुत्र के रूप में प्रसिद्ध जमनालाल बजाज की धर्मपत्नी पद्म विभूषण श्रीमती जानकी देवी बजाज की स्मृति में प्रतिवर्ष जानकी देवी बजाज पुरस्कार  'जमनालाल बजाज फाउण्डेशन', मुम्बई द्वारा दिया जाता है। इस फाउण्डेशन द्वारा प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाते है। तीन राष्ट्रीय पुरस्कारों में से एक महिलाओं और बच्चों के उत्थान और कल्याण में उत्कृष्ट योगदान देने वाली महिलाओं को दिया जाता है। इस पुरस्कार के तहत पाँच लाख रुपये की धन राशि, ट्रॉफी एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते है । 

*खेल*

आईए कुछ खेल की बात करें , हाल ही में क्रिकेट में एक नाम उभरा मयंक अग्रवाल , जिसने भारतीय क्रिकेट के घरेलू सत्र में 2017-18 में सचिन तेंदुलकर के बाद सबसे ज्यादा 2253 रन बनाये और नया कीर्तिमान अपने नाम किया था। दिल्ली की होनहार युवा खिलाड़ी वंतिका अग्रवाल को शतरंज में अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए 2016 में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । 

भारत का खेल जगत में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न है , इस पुरस्कार की सूची में भी मारवाड़ी खिलाड़ी पुष्पेन्द्र कुमार गर्ग ने अपना नाम अंकित किया है । इन्हें वर्ष 1994 में नौकायन के लिए सम्मानित किया गया था , गौरतलब हो कि यह पुरस्कार अबतक मात्र 28 खिलाड़ियों को प्राप्त हुआ है , जिनमे सचिन तेंदुलकर , महेंद्र सिँह धौनी एवं विश्वनाथ आनन्द शामिल हैं । 

खेलों में उत्कृष्ट कोचों के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कार के रूप में जाना जाता है , इस सूची में भी बिलियार्ड्स और स्नूकर

के लिए सुभाष अग्रवाल एव हॉकी के लिए अजय कुमार बंसल का नाम दर्ज है । 

खेल एवं युवा मंत्रालय द्वारा दिए जाने वाले सर्वोत्तम ध्यानचंद पुरस्कार को प्राप्त करने में भी मारवाड़ी कामयाब रहे हैं । बिलियर्ड्स एवं स्नूकर में मनोज कुमार कोठारी को यह सम्मान 2005 में प्राप्त हुआ । 

*राजनीति*

भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 को एक संकल्प पारित करके डॉ भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में सात सदस्यीय प्रारूप समिति का गठन किया गया था, जिसमे एक सदस्य थे डी पी खेतान ।  

राजनीति में मारवाड़ी समुदाय की सक्रियता देखनी हो तो सर्वप्रथम प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता डॉ राममनोहर लोहिया का नाम लिखना उचित होगा जो सूचि कद्दावर सांसद कमल मोरारका से होते हुए छत्तीसगढ़ में भाजपा के पितामह लखीराम अग्रवाल , अमर अग्रवाल , मंत्री बृजमोहन अग्रवाल , दिल्ली विजय गोयल , कांग्रेस के नवीन जिंदल , पश्चिम बंगाल से पूर्व सांसद आर पी गोयनका , महाराष्ट्र विधायक गोपाल दास अग्रवाल , बिहार शंकर लाल टेकरीवाल , सुशील मोदी , ओडिशा बीजद विधायक वेद प्रकाश अग्रवाल , उत्तरप्रदेश के मन्त्री राजेश अग्रवाल , मध्यप्रदेश के विधायक बद्रीनारायण अग्रवाल , राजस्थान की कामिनी जिंदल से लेकर झारखण्ड के प्रथम सरकार के मन्त्री रामजीलाल शारदा , पूर्व राज्यसभा सांसद अजय मारू एवं वर्तमान सांसद महेश पोद्दार तक लगभग भारत के हर कोने में मारवाड़ी राजनेता विद्यमान हैं । 

*आन्दोलन एवं संत*

जिस प्रदूषण नियंत्रण पर्षद से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिए बिना उद्योगों की स्थापना नहीं हो सकती , उसी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में प्रथम सचिव थे जी डी अग्रवाल जो स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए । 

गंगा में अवैध खनन, बांधों जैसे बड़े निर्माण और उसकी अविरलता को बनाए रखने के मुद्दे पर आईआईटी में प्रोफेसर रह चुके पर्यावरणविद जी डी अग्रवाल जी ने गंगा को बचाने के लिए 111 दिनों तक आमरण अनशन किया , सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी , अंततः 11 अक्टूबर 2018 को उन्होंने भूखे प्राण त्याग दिए , ऐसे देशप्रेमी पर्यावरणप्रेमी संतो से भरी हुई है मारवाड़ी समाज की गाथा । 

रामचंद्र वीर महाराज ने वर्ष 1932 से  गोहत्या के विरुद्ध जनजागरण प्रारम्भ किया , अनेक राज्यों में गोहत्या बंदी से सम्बन्धी कानून बनाये जाने को लेकर अनेक अनशन किये। वर्ष 1966 में सर्वदलीय गोरक्षा अभियान समिति दिल्ली में व्यापक जन-आन्दोलन चलाया। गोरक्षा आन्दोलन के दौरान गोहत्या तथा गोभाक्तों के नरसंहार के विरुद्ध 166 दिन का अनशन किया । 

रामजन्म भूमि विवाद में 6 दिसंबर 1992 को सोलहवी शताब्दी के विवादित ढांचे को धूल मे मिलाने वाले मुख्य सूत्रधारों में एक नाम था आचार्य श्री धर्मेन्द्र महाराज, जयपुर का , वहीं दूसरी ओर शरद एवं रामकुमार कोठारी नाम के भाइयों ने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा झंडा फहराया था और गोलीचलन में दोनों भाई शहीद हो गए थे । 

साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षण का सदुपयोग करके लोगों को अपने में न लगाकर सदा भगवान्‌ में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरो कों मान देकर, द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजा से सदा कोसों दूर रहकर, अपने चित्र की कोई पूजा न करवाकर, लोग भगवान् में लगें ऐसा आदर्श स्थापित करने वाले संत हुए श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज । 

गीताप्रेस की स्थापना औऱ जन जन तक न्यूनतम शुल्क में धार्मिक पुस्तको को पहुंचाने का श्रेय जाता है जयदयाल गोयनका तथा भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार को।

ऐसा नहीं है गुरु न बनायें । गुरु बनायें, लेकिन बहुत सोच समझकर। गुरु ऐसा बनायें, जो भगवान से जोड़ता है, ना कि खुद से। इंसान को इंसान रहने दें, भगवान न बनायें । - ये कहना है श्रीमद्भागवत कथावाचक साध्वी जया किशोरी का । 

मारवाड़ी समुदाय के संतो की सूची चिमनपुरा गांव के बाल ब्रह्मचारी नारायणदास जी महाराज , त्रिवेणी धाम , राजस्थान के बिना अपूर्ण है । 

ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर, ब्रुनेई के सुल्तान, हॉलीवुड अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर, बहरीन के शेख इसा बिन सलमान अल खलीफा, सऊदी अरब के हथियारों के सौदागर अदनान खशोगी, टाइनी रॉलैंड, इराक के नेता सद्दाम हुसैन, मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर हैरोड्स के मालिक अल फैयद भाई और माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम जैसे विदेशी एवं पूर्व प्रधानमंत्रियों पी वी नरसिम्हाराव और चंद्रशेखर से नजदीकी रखने वाला विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी भी अलवर , राजस्थान का ही था , इसका असली नाम था नेमिचंद जैन  । 

*देहदान*

वैसे तो मारवाड़ी समुदाय दान पुण्य में बहुत आगे है किन्तु आज चर्चा वैसे नामों कि जिन्होंने मरणोपरान्त देहदान कर दिया - भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मांगे राम गर्ग 21 जुलाई 2019 , अनिल मित्तल 17 फरवरी 2020, विजय कुमार गोयल 16 फरवरी 2020 , मातादीन गर्ग 4 मार्च 2020 , तिलक राज अग्रवाल 1जनवरी 2020 , अशोक मित्तल 29 दिसम्बर 2019, तीस वर्षीय निशा बालड़.अग्रवाल 18 दिसम्बर 2019, श्याम सुन्दर अग्रवाल 18 दिसम्बर 2019 , डॉ सूर्य प्रकाश गोयल 28 दिसम्बर 2019 आदि आदि । हाल ही में मारवाड़ी महिला मंच की पहल पर जमशेदपुर में भी कई नेत्रदान हुए हैं । 

*मीडिया एवं पत्रकारिता* 

मीडिया से मारवाड़ी समुदाय का गहरा नाता रहा है । के के बिड़ला की स्वामित्व वाली एच टी मीडिया हिंदुस्तान की वर्तमान चैयरपर्सन पूर्व राज्यसभा सांसद पद्मश्री शोभना भरतिया हैं । हिन्दी भास्कर , गुजराती दिव्य भास्कर , पत्रिका अहा जिन्दगी व अंग्रेजी डी एन ए के प्रकाशक डी बी कार्प ग्रुप की स्थापना रमेशचंद्र अग्रवाल ने की थी । 

मोहम्मद अली जिन्ना क़ा दिल्ली 10 औरंगज़ेब रोड (अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड) में बंगला था , जो करीब डेढ़ एकड़ में बना है , इस दो मंज़िला बंगले का डिजाइन एडवर्ड लुटियन की टीम के सदस्य और कनॉट प्लेस के डिजाइनर रॉबर्ट टोर रसेल ने तैयार किया था , पाकिस्तान जाने के पूर्व जिन्ना ने उपरोक्त बंगला उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया ने खरीदा था , जिन्होंने टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रकाशन की नींव रखी । हालाँकि पण्डित नेहरू के विरोध के कारण उन्हें अपने जीवन के अन्तिम समय तीन साल जेल में बिताने पड़े औऱ उस समय के सबसे धनवान व्यक्ति शासन की वक्र दृष्टि के कारण दिवालिया हो गए । 

विश्वमित्र का प्रकाशन बाबू मूलचन्द अग्रवाल ने किया था , तो नागपुर में प्रकाशित होने वाले नवभारत दैनिक की स्थापना रामगोपाल माहेश्वरी ने की , वहीं राँची में राँची एक्सप्रेस के संस्थापक सीताराम मारू रहे तो जमशेदपुर में पहले दैनिक अखबार के प्रकाशन का श्रेय राधेश्याम अग्रवाल को जाता है , जिन्होंने मजदूरो के शहर में 1980 में पत्रकारिता की ऐसी नींव रखी कि आज कई बड़े ग्रुप यहाँ से अपने संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं । 

देखते देखते अपने आकार को विशाल कर लेने वाले प्रभात खबर के संपादक *हरिवंश* आज राज्यसभा के उपसभापति हैं , इस संस्थान की स्थापना *बृज किशोर झंवर एवं बसंत झंवर* ने की थी , वर्तमान में राजीव झंवर इसके निदेशक एवं *कमल गोयनका* प्रबन्ध निदेशक हैं । 


ना केवल प्रिंट मीडिया बल्कि इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी मारवाड़ी पीछे नहीं हैं , राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्र गोयनका ने 1992 में जी न्यूज़ की स्थापना की थी । 

वहीं धार्मिक चैनल संस्कार टीवी की स्थापना दिलीप काबरा एवं दिनेश काबरा ने की थी । 


इसी प्रकार कई पुस्तक प्रकाशन संस्थान भी मारवाड़ी समूह द्वारा संचालित हैं यथा अशोक महेश्वरी द्बारा राजकमल प्रकाशन ,   श्याम  सुंदर अग्रवाल द्वारा स्थापित लोकप्रिय प्रभात प्रकाशन


मारवाड़ी समाज के सर्वोच्च व सशक्त संगठन अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के मासिक मुखपत्र ' समाज विकास' का प्रकाशन पिछले 71 वर्षों से अनवरत जारी है ।


*पुलिस , पारा मिलट्री एवं सेना*


वैसे तो राजस्थान के हर गाँव के पांचवे परिवार का एक युवक सेना , पुलिस या पारा मिलट्री में है , किन्तु सबसे गर्व की बात यह है कि भारतीय वायु सेना के वर्तमान सेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल *राकेश कुमार सिंह भदौरिया*, पीवीएसएम, एवीएसएम, वा.प., एडीसी हैं, जिन्होंने 30 सितंबर 2019 को पदभार ग्रहण किया है ।

जयपुर के शहीद मेजर योगेश अग्रवाल को शौर्य पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है । उत्तराखंड सब एरिया के जनरल आफिसर कमांडिंग पद पर मेजर जनरल एसके अग्रवाल सुशोभित रहे हैं । 


2019 में वायुसेना के बालाकोट हवाई हमले से बौखलाए पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में अपने लड़ाकू विमान भेजने का दुस्साहस किया। लेकिन वायुसेना की सजगता से कामयाब नहीं हो सका। इसे रोकने में स्क्वाड्रन लीडर *मिंटी अग्रवाल* ने अहम भूमिका निभाई। इस दौरान भारतीय लड़ाकू पायलट जहां दुश्मन को सबक सिखाने आसमान में मुस्तैद थे वहीं फाइटर कंट्रोलर के रूप में तैनात मिंटी अग्रवाल और उनकी टीम इन पायलटों का बेहतरीन मार्गदर्शन किया। वे उस टीम में शामिल थीं, जिसने पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू जेट को मिग-21 बाइसन से मार गिराने वाले विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान का मार्गदर्शन किया। इस दौरान मिंटी ने अभिनंदन को दुश्मन के विमानों की सटीक लोकेशन मुहैया करवाई। पाकिस्तान के दो एफ-16 विमानों का पीछा कर रहे अभिनंदन को टारगेट लॉक कर उसे मार गिराने में इससे मदद मिली। मिंटी को इस सेवा के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अगस्त 2019 में  युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित किया था । 


*निवेशक एवं शेयर मार्केट*


निवेश एवं शेयर ये दोनों ऐसी फील्ड हैं जिनमें सदैव से मारवाड़ीयों का बोलबाला रहा है । फोर्ब्स की 2019 की सूची के अनुसार राकेश झुनझुनवाला भारत के 48वें अमीर व्यक्ति एवं पेशे से निवेशक हैं , जिनकी नेटवर्थ 3 बिलियन अमेरिकन डॉलर है । निवेश में सफलता हासिल करना चीन के बांस के पेड़ों की तरह है, जिसमें नतीजे दिखने में काफी कोशिश और समय के साथ धैर्य की जरूरत होती है. यह कथन कोलकत्ता के वैल्यू इनवेस्टर विजय केडिया का है । 


वैसे "फोर्ब्स" की भारतीय सूची को देखें तो 7वें स्थान पर राधाकिशन दमानी , 9वें स्थान पर लक्ष्मीनिवास मित्तल , 10वें स्थान पर कुमार मंगलम बिड़ला , 11वें स्थान पर राहुल बजाज , 14वें स्थान पर सुनील भारती मित्तल , 19वें स्थान पर वेणु गोपाल बांगड़ , 20वें स्थान पर सावित्री जिंदल है । 


आजकल कम आयु के युवा ज्यादा सफल हो रहे हैं , ऐसे में फोर्ब्स ने भी भारत में 30 वर्ष से कम उम्र के सफलतम युवाओ की सूची तैयार की । जिसमें बीरा बीयर के मालिक 29 वर्षीय विकास बाकरेवाल, ट्रेडिशनल फेब्रीक के ब्राण्ड ब्लोनी के संस्थापक 29 वर्षीय अक्षत बंसल , डिजायनर अदिति अग्रवाल , वॉक एक्सप्रेस फूड एव हॉस्पिटैलिटी के मालिक आयुष अग्रवाल , का हॉस्पिटैलिटी की प्रबन्ध निदेशक कार्यांना बजाज , हेल्थकेयर में नीतेश जांगिड़ , वैकफिट के सीईओ अंकित गर्ग , शेडोफैक्स टेक्नॉलॉजी के संस्थापक वैभव खण्डेलवाल एवं अभिषेक बंसल, रैशफेवर लैब के प्रणव गोयल जैसे कई नाम शामिल हैं ।


लेकिन सबसे दिलचस्प नाम है कनिका टेकरीवाल , जो जेट सेट गो नाम की ई-कॉमर्स कंपनी की सीईओ है, इनका बिजिनेस है किराए पर जेट और हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराना, इस कंपनी में क्रिकेटर युवराज सिंह ने भी निवेश किया है। मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली कनिका टेकरीवाल 22 वर्ष की उम्र में कैंसर से पीड़ित थी। लेकिन कहते हैं न कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा। कनिका इसका जीता जागता उदहारण हैं। उन्होंने बाद में इलाज करवाया और इच्छाशक्ति से मौत के मुंह से बाहर आ गई। जिसके बाद धीरे धीरे उन्होंने अपना रुख बिज़नेस के तरफ किया और आज वो 800 करोड़ रुपए का ऑनलाइन मार्केट संभाल रही है।

'बैंक, फाइनेंस, खनन '

हाई नेटवर्थ लोगों से फंडिंग लेकर लेंडिंग बिज़नेस की शुरुआत करने वाले ' संजय अग्रवाल' ने एयू बैंक को फाइनेंशियल सेवाओं में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ रही कंपनियों में शामिल करा दिया है। 2017 में एयू बैंक के आईपीओ ने 53 गुना ओवरसब्सक्रिप्शन दर्ज किया था। एयू बैंक के कार्यकारी निदेशक उत्तम टीबरेवाल हैं,
आईडीबीआई बैंक के चैयरमैन सह प्रबन्ध निदेशक 'योगेश अग्रवाल' रह चुके हैं वहीं 'उत्तम प्रकाश अग्रवाल' यस बैंक के स्वतन्त्र निदेशक रहे । आन्ध्रप्रदेश महेश कॉपरेटिव अर्बन बैंक लिमिटेड के चैयरमैन रमेश कुमार बंग एवं उज्जवन स्माल फाइनान्स बैंक के निदेशक सचिन बंसल रहे हैं, सेंट्रल बैंक ऑफ इण्डिया के कार्यकारी निदेशक राजकुमार गोयल, स्टेंडर्ड चार्टर्ड बैंक के कार्यकारी निदेशक अनुज गोयल रहे हैं वहीँ यूको बैंक के वर्तमान प्रबन्ध निदेशक अतुल कुमार गोयल हैं । कोटक महिंद्रा बैंक में अभिषेक भालोटिया कार्यकारी निदेशक रहे, अमेरिका के एआईजी ग्लोबल के भारतीय प्रमुख सौरभ सोन्थालिया हैं ।

ईक्यूपमेंट एवं मशीनरी के फाइनेंस में श्रेई इन्फ्रास्ट्रचर फाइनेन्स देश की अग्रणी कम्पनियो में एक है, इसके वर्तमान चैयरमैन हेमन्त कानोडिया एवं वाइस चैयरमैन सुनील कानोडिया हैं, इनके पिता डॉ हरिप्रसाद कानोडिया अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं । इन्दिरा गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित एवं झुंझनू के प्रथम सांसद राधेश्याम मुरारका के पुत्र गौत्तम मुरारका फाइनांस क्षेत्र का जाना पहचाना नाम है ।

देश के प्रसिद्ध इन्दिरा गाँधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवेलपमेंट रिसर्च की प्रोफेसर असीमा गोयल का नाम प्रमुख अर्थशास्त्रियों में शुमार है ।

खाद्यान्न, टेक्सटाईल तो मारवाड़ी समुदाय का कोर बिजिनेस रहा है किन्तु शायद ही कोई क्षेत्र हो जिसमें इनकी उपस्थिति ना हो । सारंडा के सुदूर जंगलो में जा कर खनन करना हो तो भी मारवाड़ी पीछे नहीं रहे, चाईबासा का सीताराम रुंगटा ग्रुप आयरन मेग्निज ओर माईन्स में देश में विशिष्ट स्थान रखता है । नेटवर्थ रैंकिग के दृष्टिकोण से भारत में वेदांत ग्रुप के अनिल अग्रवाल का 31वा स्थान है जब उनकी नेटवर्थ 21800 करोड़ रुपए हैं, राहुल बजाज 21500 करोड़ के साथ 32वें स्थान पर हैं और अनिल अम्बानी 23300 करोड़ के साथ 30 वें स्थान पर हैं । वहीँ चाईबासा के नंदलाल रुंगटा एवं मुकुंद रुंगटा की सयुंक्त नेटवर्थ 23500 करोड़ है । यदि इसमेँ उनके पुत्र सिद्धार्थ रुंगटा की सम्पत्ति को जोड़ दिया जाए तो अपनी सादगी के लिए सुप्रसिद्ध यह परिवार देश के सबसे अमीर टॉप 10 बिजिनेस ग्रुप में शुमार है ।


*एविएशन , मोबाईल , टीवी , रिटेल*

18 वर्ष की उम्र में बिल्कुल खाली हाथ दिल्ली पहुँचकर ट्रेवल्स एजेंसी में नौकरी करने वाले नरेश गोयल ने जेट एयरवेज की स्थापना की वहीं मोबाईल की प्रतिस्पर्धा वाली दुनिया में अपना विशेष स्थान रखने वाली एयरटेल की स्थापना सुनील भारती मित्तल ने की , वहीं टीवी की प्रसिद्ध कम्पनी वीडियोकॉन के संस्थापक वेणुगोपाल धूत हैं । 

वीणा संगीत (ओरिएंटल ऑडियो विजुअल इलेक्ट्रॉनिक्स) मारवाड़ीयों के लोक गीतों पर आधारित एक संगीत लेबल है , इसका मुख्यालय जयपुर में है और इसके संस्थापक के सी मालू हैं । 

आजकल एक ओर पुराने जमाने की दुकानों की जगह शोरूम ले रहे हैं , दूसरी ओर चेन रिटेल स्टोर्स की श्रृंखलाएँ खुल रही हैं । ऐसी ही सबसे लोकप्रिय रिटेल स्टोर है बिग बाजार , जिसमे शायद ही कोई शहरी होगा जो ना गया हो , इसके ओनर किशोर बियानी हैं । वैसे पैंटालुन कपड़े के स्टोर्स के संस्थापक भी किशोर बियानी ही थे । 

*माननीय न्यायालय*

न्यायमूर्ति गीता मित्तल जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश हैं। वे जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाली अब तक की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश हैं। इससे पूर्व वे दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं।

*आर्ट कल्चर व साहित्य* 

बैंगलोर की अभिग्ना केडिया , मुम्बई के लखिचंद जैन , मंजरी गोयनका , चरण शर्मा , प्रतिक शर्मा, सुषमा जैन एवं तुषार जीवराजका, जयपुर की किरण सोनी गुप्ता- ये पेंटिंग्स की दुनिया के वो नाम हैं , जिनकी कला की कीमत हजारों में नहीं लाखों में है या यूँ कहूँ कि बेशकीमती है । 

साहित्य की चर्चा करते समय मैं कवि शैलेश लोढ़ा या उपन्यासकार डॉ प्रभा खेतान के नाम का जिक्र नहीं करना चाहता बल्कि ऐसे नामों की चर्चा करें , जिनकी पुस्तकों की दीवानगी आज के इंटरनेट युग में भी है । युवा इन पुस्तकों के फैन हैं और ये लेखक बेस्ट सेलर्स बने हुए हैं । जैसे निधि डालमिया का अंग्रेजी रोमांस उपन्यास "हार्प" , अलका सरावगी की हिन्दी कृति "जानकी दास तेजपाल मेन्सन" । 

आजकल के युवाओं के पसंदीदा स्टेंडअप कॉमेडी में भी एक मारवाड़ी चेहरा बहुत लोकप्रिय है - 'अदिति मित्तल' ।

वैसे पिछले दिनों दीपिका पादुकोण की एक मूवी आई छपाक , जो काफी विवादों में रही , यह फिल्म एसिड अटैक की सत्यकथा पर आधारित है और वह कहानी मारवाड़ी युवती लक्ष्मी अग्रवाल की है । 

*नोवेल कोरोना*

मरवाड़ी समुदाय पर शोध पत्र की प्रथम कड़ी के अंत में - 

कोरोना को लेकर सतर्कता तो जरूरी है लेकिन, ज्यादा चिंता ठीक नहीं। आपकी हंसी भी एक ऐसी दवा है जो कोरोना पर कारगर है। आपकी हंसी से भी कोरोना को रोना आ सकता है। "कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के सबसे अच्छा उपाय है खुश रहना, तनाव नहीं लेना" यह मंत्र संजय गांधी पीजीआइ के शरीर प्रतिरक्षा वैज्ञानिक प्रो. विकास अग्रवाल ने दिया है । 

देश के विभिन्न इलाके के करीब 2000 लोगों के सैंपल लेकर उनका कोरोना का टेस्ट किया गया. उनके कोरोना के इस टेस्ट के रिजल्ट आने के बाद भारत सरकार में स्वास्थ्य विभाग के ज्वाइंट सेक्रेट्री लव अग्रवाल ने कहा है कि अभी भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण कम्युनिटी ट्रांसमिशन स्टेज में नहीं पहुंचा है । 


- संदीप मुरारका 

लेखक पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन के पूर्व महासचिव (2010-12) रहे हैं । 

दिनांक 29 मार्च '2020


कूल शब्द 4132

Friday, 28 February 2020

गोड़से .......एक हत्यारा

दिनांक  30 जनवरी 1948 ।  मेरी हत्या कर दी गई । मुझे क्यों मारा , किसके कहने पर मारा , मुझे नहीं पता । पर मुझे याद है कि मारने से पहले खाकी कपड़े पहने नाथूराम गोडसे ने मेरे पाँव छुए और कहा "नमस्ते बापू" ।

आजादी मिले 168 दिन ही तो हुए थे , उस समय तक ना पुलिस तैयार हो पाई थी , ना प्रशासन, ना खुफिया तन्त्र , सो पता ही नहीं लग पाया कि मैं क्यों मारा गया ? मुझे मारने से क्या लाभ हुआ ? 

दूसरे दिन मैं बिड़ला हाऊस में चिरनिद्रा में लेटा हुआ था , अंदर लोग मेरे शव का दर्शन कर रहे थे , बाहर लोगों का जुटान यमुना तक था , जहाँ राजघाट पर मेरा अन्तिम संस्कार होना था , संभवतः 25 लाख लोग रहे होंगे । मैं हर एक को देखना चाहता था कि किसकी आँखो में आँसू है , किनके चेहरे पर खुशी । असल में मैं ढूँढ़ना चाहता था वैसे चेहरे जो मेरी मौत पर खुश हों , क्योंकि कुछ तो अपराध किया होगा मैंने उनका , वरना इतनी घृणा क्यों ? मैं फिर निराश हुआ ! सभी अपने मिले । सभी रोते मिले । 

दिनांक 31 जनवरी । करीब पौने बारह बजे , लगभग 3.25 किलोमीटर लम्बे जुलूस के रूप में मेरी अन्तिम यात्रा प्रारंम्भ हुई , जो क्वींसवे, किंग्सवे और हार्डिंग एवेन्यू से होते हुए चार बजकर 20 मिनट पर यमुना किनारे पहुँची । मैं स्वयं के शव को धूप छिड़की हुई चंदन की लकड़ियों की चिता पर देख रहा था , मेरे तीसरे पुत्र रामदास ने ठीक पौने पाँच बजे मुझे मुखाग्नि दे दी । इधर मेरा मृत शरीर धू धू कर जलने लगा , उधर लाखों लोगों द्वारा भजन चलने लगा । क्या आज कोई घर नहीं जाएगा , क्या इन्हें भूख नहीं लग रही , अरे ! कोई यहाँ पानी की बोतले बांटने वाला भी तो नहीं, आजकल ये आराम है कि श्मशान घाट पर पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर की बोतल औऱ रजनीगंधा की पुड़िया अवश्य मिलती है । चिता चौदह घंटे तक जलती रही , मैं एक ओर अपने शव को जलता देखता रहा , दूसरी ओर बैठा बैठा गीता का पाठ सुनता रहा । चिता की लपटें आकाश की ओर उठ रही थी , सूरज डूब चुका था , लहरों की तरह लोग आगे बढ़ रहे थे, मै उनकी सिसकियों की आवाज सुन रहा था , लगता था मानो राजघाट पर कोई तूफान उतर आया हो, यह जनमानस की भावनाओं का तूफान था, कई राज्यपाल, राजदूत, केंद्रीय मंत्री , माताएँ , बहनें , क्या ग्रामीण , क्या शहरी सभी लोग चिता की परिक्रमा में लगे थे । 

तीसरे दिन 1 फरवरी , रात्रि 7.30 बजे विशेष प्रार्थना होने लगी , सभी तो थे , पंडित नेहरू, सरदार बल्लभभाई पटेल, देवदास गांधी, सरदार बलदेव सिंह, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद , मौलाना आजाद, लार्ड माउंटबैटन , आजाद भारत के प्रथम प्रधान सेनापति मेजर जनरल राय बूचर , चार हजार सैनिक, एक हजार वायु सैनिक, पुलिस के हजारों सिपाही, पण्डित , मित्र , रिश्तेदार । 

प्रार्थना सभा सम्पन्न हुई , अब मेरी अस्थियाँ इकठ्ठी की जा रही थी , ओह ! उसमें एक गोली भी निकली । हाथ से बुनी गई सूत की थैली में अस्थियाँ एकत्र की जा रही थी , फिर उनपर यमुना के पवित्र जल का छिड़काव किया गया , मेरी अस्थियाँ अब तांबे के घड़े में बंद हो चुकी थी, कलश को वापस बिड़ला हाउस ले जाया जा रहा था, मैं भी साथ था । 

कहते हैं अन्तिम यात्रा से ही इन्सान की अच्छे व बुरे कर्म का पता चलता है , कोई किसी उम्र में मरे , श्मशान घाट पर लोगों के बीच दो बातें अवश्य होती है, "भला आदमी था जल्दी चला गया" अथवा "चला गया पर था तो .........ही " , मैंने बहुत ढूंढ़ा कि कोई तो मिले दूसरी वाली चर्चा करते , पर मैं फिर निराश हुआ। सभी दुःखी मिले। सभी उदास मिले । 

" मेरे पिता "

मैं खुश हूँ , कुछ ही देर में अपने पिता से मिलूँगा , करमचन्द उत्तमचन्द गाँधी, जो पोरबंदर , राजकोट , बीकानेर की राजसभा में उच्च पदों पर आसीन रहे , वे निरंकुश अयोग्य राजाओं की मनमानी पर दुःखी रहते , युगों से दबी कुचली प्रजा पर होते अत्याचार को देखकर सिसकते , ब्रिटिश सत्ता के निरंकुश प्रतिनिधियों के समक्ष दंडवत होते राजाओं को देख तिलमिला उठते , परन्तु मौन व मजबूर दिखते । आजाद भारत का सपना पहली बार मैंने अपने पिता की आँखो में ही देखा था , औऱ यह भी समझ पाया कि इस गुलामी के जितने जिम्मेदार अंग्रेज थे , उससे ज्यादा जिम्मेदार थे रियासतों में बँटे स्वार्थी राजपरिवार औऱ उनके महलों में तैरते षड़यंत्र । 

" कस्तूरबा "

पिछले तीन साल ग्यारह महीनों से कस्तूरबा भी तो वहीं है , कैसी होगी वो , धार्मिक , सादगी की प्रतिमूर्ति , दृढ़ , शाकाहारी , मेरी पत्नी कस्तूरबा , ना जाने कितनी बार जेल गई , कितनी यातनाएँ सही , दक्षिण अफ्रीका में "बा" जब तीन महीनो के बाद जेल से छूटीं तो उनका शरीर ठठरी मात्र रह गया था, चम्पारण में जब उसकी झोपड़ी जला दी गई , तो खुद पूरी रात जागकर घास का झोंपड़ा खड़ा करने में लगी रही , सत्याग्रह के दौरान कई बार नजरबंद रही , "बा" प्रायः उपवास पर रहती , एक समय खाया करती , अफसोस आजादी ना देख पाई , आज मिलेगी वो , तो बताऊँगा उसे , उसका भारत अब आजाद हो गया है । 

"बा" को बेटी ना होने की कमी सदा खलती रही , पर खुशी थी कि हमारे चार पुत्र थे , हरिलाल , मणिलाल , रामदास एवं देवदास । मुझे आज भी गर्व है कि मेरे चारों बेटों ने ना अंग्रेजों से पदवी ली , ना पद , ना आजाद भारत में कोई सरकारी नौकरी ली , ना ही राजनीति में आए , ना माइंस पट्टा हासिल किया , ना चाय के बगान खरीदे । 

"पहला बेटा हरिलाल" - 

मुझे याद है हरिलाल को ब्रिटेन जाकर पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप का ऑफर दिया गया , किन्तु मैंने ही यह कह कर मना कर दिया कि गांधी के लड़के की जगह किसी ज़रूरतमंद को यह सुविधा मिलनी चाहिए । हरिलाल नाराज भी हुआ था , इसके बावजूद यदि आज कल के कुछ लोग मेरे आदर्शों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं , मुझे दुःख होता है । मुझे तब दुःख नहीं हुआ जब गोड़से ने गोली चलाई औऱ मैं मारा गया , मुझे दुःख तब होता है जब नासमझ लोग गोड़से को आदर्श बना कर पेश करते हैं । 

हरिलाल का पुत्र कांतिलाल डॉक्टर था , उसके बेटे यानि मेरे पड़पोते डॉ. शांति गांधी की पहचान एक कुशल हार्ट सर्जन के तौर पर अमेरिका के टोपीका शहर में है , 70 की उम्र में शांति रिटायर्ड हुआ , उसने देखा कि अमेरिका के कई राज्यों की तरह कैनसस में भी नस्ली भेदभाव का पुराना इतिहास रहा है , तब उसने वहाँ सामाजिक समरसता पर कार्य प्रारम्भ किया औऱ वर्ष 2012 में वहाँ की प्रतिनिधि सभा में निर्वाचित हुआ । वो अमेरिका गया मेरे मरने के 19 साल बाद 1967 में , सो यह कलंक भी मुझपर नहीं कि मेरे पड़पोते की पैरवी मैंने की हो । 

कांतिलाल सरस्वती बेन का दूसरा बेटा प्रदीप चार्टड एकाउंटेंट है , वो भी अमेरिका में ही रहता है । 

"दूसरा बेटा मणिलाल" -

मणिलाल का जीवन साऊथ अफ्रीका में ही बीता , वहाँ रहकर भी भारत उससे नहीं छूटा , उसने मेरे द्वारा प्रारम्भ किए गए "इंडियन ओपिनयन पत्र " को आगे बढ़ाया , इंग्लिश और गुजराती में छपने वाले साप्ताहिक का सम्पादन मणिलाल जीवन के अन्तिम समय तक करता रहा । 

मणिलाल का पुत्र अरुण भी अपने पिता की तरह पत्रकारिता में आया , उसने टाईम्स ऑफ इण्डिया में काम किया । 

मणिलाल की बेटी सीता पेशे से नर्स थी , वहीं ईला दक्षिण अफ्रीका में पीस एक्टिविस्ट । 

"तीसरा बेटा रामदास " -

रामदास मेंरा सबसे प्रिय था , उससे भी ज्यादा प्रिय था उसका बेटा कनु , यदि आप 1930 की ऐतिहासिक "नमक सत्याग्रह" में दांडी से निकाली गई यात्रा की तस्वीरें देखेंगे तो मेरी लाठी पकड़कर जो बच्चा मेरे आगे आगे चल रहा है वही था कनु , मेरा पोता कनु , जो आगे चलकर वैज्ञानिक बना , अमेरिका के नासा में कार्य करता रहा , अच्छा लगा था मुझे जब अपने बुढ़ापे में कनु भारत आ गया , आलीशान वीआइपी जीवन जीने नहीं , बल्कि वृद्धाश्रम में रहने , उसकी पत्नी यानि मेरी पतोहू शिवालक्ष्मी भी प्रोफेसर थी । आजकल तो लोग मंत्री या सांसद के साथ फोटो खिंचवा कर उसे भी भुना लेते हैं , मेरा कनु मेरे साथ की तस्वीरें ना भुना सका , जबकि खुद एक अच्छा फोटोग्राफर था , क्योकि वो गाँधी का पोता था । फिर भी आजकल के कुछ लोग सोशल मीडिया में मेरे हत्यारे गोड़से को सही औऱ मुझे गलत साबित करने में लगे रहते हैं । 

रामदास की बेटी सुमित्रा आई ए एस अधिकारी रही , उसका विवाह आई आई एम के प्रोफेसर गजानंद कुलकर्णी के साथ हुआ । 

"चौथा बेटा देवदास" 

देवदास ने देश के पत्रकार जगत में ख्याति अर्जित की , वो भी सरस्वती पुत्र ही रहा , हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक के रूप में उसने अपनी सेवाएँ दी , उसका विवाह स्वाधीनता सेनानी सी.राजगोपालाचारी की पुत्री लक्ष्मी से हुआ था । 

देवदास के बेटे राजमोहन की बेटी सुप्रिया ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी ली, आजकल वह पेनसेलविनिया यूनिवर्सिटी में पढ़ा रही है ।

देवदास का दूसरा बेटा गोपाल आई ए एस बना , इसने कई भाषाओं में स्तरीय लेखन किया , उसकी चर्चित पुस्तकें हैं ‘गांधी एंड साउथ अफ्रीका’, ‘नेहरू एंड श्रीलंका,’ तथा ‘गांधी इज गोन’। उसने विक्रम सेठ के उपन्यास ‘सूटेबल ब्याय’ का हिन्दी में ‘अच्छा लड़का’ नाम से अनुवाद किया। गोपाल पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहा साथ ही दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका में भारत का उच्चायुक्त भी । गोपाल 1945 में जन्मा , यानि इसकी तरक्की में मेरी कोई पैरवी नहीं थी । वैसे भी पैरवी से खेल संगठनो या सरकारी संगठनो में नौकरी दिलवाई जा सकती है , लोकसभा का टिकट दिलवाया जा सकता है , पैरवी के बल पर आप आई ए एस नहीं बन सकते । 

देवदास का सबसे छोटा बेटा रामचंद्र गांधी भारतीय दर्शन का चोटी का विद्वान रहा , उसे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधी दी । 

" महात्मा "

अंग्रेज मुझे मिस्टर गाँधी कह कर सम्बोधित किया करते थे , लेकिन 12 अप्रेल 1919 को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मुझे एक खत लिखा , जिसमें मुझे "महात्मा" कह कर सम्बोधित किया , इसके पहले भी एक बार हरिद्वार के निकट कनखल स्थित गुरुकुल कांगड़ी में 8 अप्रैल, 1915 को स्वामी श्रद्धानंद ने मुझे "महात्मा" कहा था , मैं डरने लगा , मुझ्मे महात्मा जैसे कोई गुण नहीं थे , हाँ इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि मुझमे अवगुण भी नहीं बचे थे । मुझे तब बहुत प्रसन्नता नहीं हुई जब मुझे गहराई से जानने वालों ने "महात्मा" कहा , पर अब मन दुःखी होता है जब गोड़से को ना जानने वाले लोग भी उसे महान बताने की और मेरी हत्या को सही ठहराने की मूर्खतापूर्ण दलीलें देते हैं । 

राष्ट्रपिता बापू 

चंपारण का एक किसान राजकुमार शुक्ला मुझे बापू कहकर पुकारता था , फिर सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से मुझे 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था, मेरी हत्या के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर देश को संबोधित करते हुए कहा था "राष्ट्रपिता अब नहीं रहे" । कई बार कई विषयों पर तुम्हारे पिता से तुम्हारे विचार मेल नहीं खाये होगें , चाहे व्यापार का विषय हो , या पूँजी बँटवारे का , या लव मैरिज का , या नौकरी का , तुम्हें लगा होगा पिताजी की सोच पुरानी है , तो क्या तुम अपने पिता की हत्या कर दोगे ? नहीं ना ! किन्तु कृतघ्न गोड़से ने क्या किया , मार दिया मुझे । 

"रावण और गोड़से"

मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में स्थित नटेरन तहसील के रावणग्राम में रावण की पूजा की जाती है, यहां रावण की करीब 10 फीट लंबी पाषाण प्रतिमा लेटी हुई मुद्रा में विराजित है , थोड़ी देर के लिए ये मान लो कि रावण को अपना आराध्य मानने वाले समुदाय का कोई व्यक्ति बड़ा नेता बन जाए या बॉलीवुड का हीरो बन जाए , और तुम्हें बताए कि राम की क्या क्या गलतियाँ थी और रावण में क्या क्या अच्छाईयाँ थी , तो क्या उसके कहने पर तुम अपने आराध्य श्रीराम को भूल जाओगे और रावण को सही साबित करने लगोगे ? नहीं ना ! जिस प्रकार यह सत्य है कि रावण माता सीता का अपहरणकर्ता था उसी प्रकार यह भी सत्य है कि गोड़से भी 79 वर्षीय मुझ बुड्डे का हत्यारा था । 

"हत्या का कारण"

8 नवम्बर 1948, दिल्ली के लाल क़िला । मेरी हत्या की सुनवाई चल रही थी , लाल क़िले के भीतर ही विशेष अदालत बनाई गई थी, जज थे आत्माचरण । गोडसे ने 93 पन्ने का अपना बयान 5 घंटो में पढ़ा । 

गोडसे ने 10:15 बजे से बयान पढ़ना शुरू किया, पहले हिस्से में साज़िश और उससे जुड़ी चीज़ें, दूसरे हिस्से में मेरी शुरुआती राजनीति, तीसरा हिस्से में मेरी राजनीति के आख़िरी चरण, चौथा हिस्सा भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में मेरी भूमिका , पाँचवा हिस्सा आज़ादी के सपनों का बिखरना और आख़िरी हिस्सा 'राष्ट्र विरोधी तुष्टीकरण' की नीति थी । 

गोड़से जिसे तुष्टीकरण कहता था , मैं उसे मानवता समझता हूँ , मुझे वादाख़िलाफ़ी कदापि बर्दाश्त नही थी , चाहे दोस्त से हो या दुश्मन से । 

विभाजन के बाद दोनों देशों में संधि हुई थी कि भारत पाकिस्तान को बिना शर्त के 75 करोड़ रुपए देगा, इनमें से पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपए मिल चुके थे और 55 करोड़ बकाया था, आजाद भारत की पहली कैबिनेट का फ़ैसला था कि जब तक दोनों देशों के बीच विभाजन का मसला सुलझ नहीं जाता है तब तक भारत पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए नहीं देगा । हालाँकि पाकिस्तान ने ये पैसे माँगना शुरू कर दिया था और भारत वादाख़िलाफ़ी नहीं कर सकता था । मैंने कहा कि जो वादा किया है उससे मुकरा नहीं जा सकता, अगर ऐसा होता तो द्विपक्षीय संधि का उल्लंघन होता । 

हाँ मैं भूख हड़ताल पर बैठा था , किन्तु मेरी भूख हड़ताल का मुख्य मक़सद पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिलवाना नहीं था बल्कि सांप्रदायिक हिंसा को रोकना और सांप्रदायिक सद्भावना क़ायम करना था, काश यह बात उस नासमझ गोड़से को समझ आ पाती । 

चलो माना कि वैचारिक मतभेद थे , मैं ही गलत रहा होऊंगा , लेकिन गोड़से अपने बयान में जब खुद स्वीकार करता है कि भारत के लिए, आजादी के लिए, मेरा क्या योगदान था , तो क्या वैसे में किसी एक वैचारिक अंतर होने से , हत्या जायज थी ? 

मन की बात 

मेरा मानना था कि अगर एक व्यक्ति समाज सेवा में कार्यरत है तो उसे साधारण जीवन जीना चाहिए , सादगी, ब्रह्मचर्य, अनावश्यक खर्च से बचना , साधारण शाकाहारी भोजन और अपने वस्त्र स्वयं धोना ये मेरे निजी जीवन के पहलू थे , मैं सप्ताह में एक दिन मौन धारण करता था , मेरा मानना था कि बोलने के परहेज से आतंरिक शान्ति मिलती है। 

मैंने भगवद् गीता की व्याख्या गुजराती में की , महादेव देसाई ने गुजराती पाण्डुलिपि का अतिरिक्त भूमिका तथा विवरण के साथ अंग्रेजी में अनुवाद किया था , मेरे द्वारा लिखे गए प्राक्कथन के साथ इसका प्रकाशन 1946 में हुआ था । मुझे लिखने पढ़ने की आदत थी , मैंने कई पत्रों का संपादन किया - हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया , नवजीवन आदि । मेरी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई - हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग (आत्मकथा), गीता पदार्थ कोश । 

खैर ! बच्चों की पुस्तकों में मेरी चर्चा हो , या भारत के करोड़ों घरों में मेरी तस्वीर टंगी हो , या हजारो चौराहों पर मेरी मूर्तियाँ लगी हो , या मेरे नाम से सरकारी योजनाएँ चल रही हो , या पूरे विश्व में मेरा जन्मदिन 2 अक्टूबर "अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस" के रूप में मनाया जाता हो , या मैं आपके नोटों पर छपा होऊँ , या मेरे नाम पर अंतर्राष्ट्रीय गाँधी शांति पुरस्कार दिया जाता रहे , या मेरे नाम पर कुछ और स्मारक बना दो , या मुझ पर बनी फिल्मे बॉक्स आफिस पर हिट होती रहें , मुझे कोई प्रसन्नता नहीं होती , मुझे तो यह बात कचोटती रहती है कि मेरे अपने देश में एक भी व्यक्ति ऐसा क्यों है जो मेरे हत्यारे गोड़से के पक्ष में बात करता है । 

अपराधी गोड़से 

हर अपराध की अपनी एक वजह होती है और हर अपराधी की अपनी दलीलें । चोरी के पीछे भूखा पेट होता है , बलात्कार के पीछे आकर्षण या वासना , मारपीट के पीछे आवेश होता है , गालीगलौज के पीछे धैर्य में कमी , चाहे जो हो , अपराध अपराध होता है , अपराधी अपराधी होता है , गोड़से अपराधी था , मेरा अपराधी , गाँधी का अपराधी , आजाद भारत का पहला अपराधी । 

संदीप मुरारका 
दिनांक 29 फरवरी , 2020 शनिवार 
शुभ ५ , फाल्गुन शुक्ला , विक्रम संवत् २०७६

कूल शब्द - 2808


Sunday, 23 February 2020

तारा .......एक अनकही कथा


मैँ , तारा , क्या परिचय दूँ अपना ? नारी या वानरी अथवा वानर नारी ! कई रामायण अलग अलग भाषाओं मेँ लिखी गईं । राम के समकालीन महर्षि वाल्मीकि ने भी नहीं दिया पूरा परिचय मेरा । या यूँ कहूँ कि उनके लिखे को इतिहासकारों ने अपने अपने अनुसार समय के साथ वैसे ही बदल दिया, जैसे केन्द्र की सत्ता बदलने के साथ साथ न्यूज़एंकर के सोचने का नजरिया हर पाँच सालों मेँ बदल जाता है । फिर मेरी कहानी तॊ हजारों बर्षों पुरानी है । गोस्वामी तुलसीदास ......वो तॊ ठहरे पक्के रामभक्त , प्रभु श्रीराम को छोड़ सभी पात्रो को भूला सा बैठे । किष्किन्धाकाण्ड के 67 सर्ग के 2,455 श्लोक मेंं मात्र 5 बार मुझ तारा का नाम लिया मेरे गोस्वामीजी ने । कम्बन की इरामावतारम हो या  कुमार दास की जानकी हरण । किसी ने कुछ कहा , किसी ने कुछ न कहा । किसी ने कम लिखा , किसी ने ज्यादा लिखा । मैँ घटनाओं के दृश्यचक्र मेँ फंसती रही , उलझती रही । इतनी छोटी व आसान नहीं थी मेरी संघर्ष कथा ।

मैँ अभागन , कहने को किष्किन्धा राज्य की महारानी । महाबलशाली अंगद की माता । कहने को बुद्धिमान व महान चरित्र वाली नायिका । किन्तु क्या न्याय हो सका मेरे पात्र के साथ ? 

पुत्रमोह मेँ कहूँ या मनुष्य जीवन की मजबूरियाँ कहूँ ! अपनों से ही शोषित होती रही । जिन्दगी की इतनी उथल पुथल मेँ अपनी ही कहानी भूल बैठी हूँ । ना मुझे अपनी माता का नाम याद है , ना पिता का । कुछ ऋषियों ने मुझे देवताओं के गुरु बृहस्पति की पौत्री बतलाया किन्तु मुझे ना तॊ उनसे दादा वाला प्यार मिला और ना उन्होंने या मेरे पिता ने मेरा कन्यादान किया। इसका मतलब मैँ अनाथ थी ।

नहीं नहीं । कहानी रोचक है । कहते हैं , समुद्र मन्थन के समय की बात है । मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया , समुद्र मंथन आरम्भ हुआ और भगवान कच्छप के एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा। एक के बाद एक चौदह रत्न निकलते गए , ऋषि देवता दानव उन्हें आपस मेँ बाँटते चले गए । भगवान विष्णु के हिस्से मेँ लक्ष्मी आई , तॊ शिव शंकर भोलेनाथ को कालकूट विष मिला , दैत्यराज बलि को उच्चैःश्रवा घोड़ा प्राप्त हुआ, वहीं ऋषियों को कामधेनु गाय मिली ।

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः। 
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगनाः। 
अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शंखोमृतं चाम्बुधेः।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मंगलम्। 

उन्हीं रत्नो मेंं एक रत्न था रम्भा आदि अप्सराएँ - 
जिनमें से एक मैँ भी थी । हाँ मैँ तारा । अप्सरा तारा । समुद्र मंथन से प्रकट हुई तारा । 

रम्भा का भाग्य उसे इन्द्र के दरबार मेँ ले गया , वहीं मुझे पाने के लिए दो लोगों ने दावा किया । हाँ मुझे याद है , पहले थे वैद्यराज सुषेण और दूसरे थे वानरराज बाली। बाली बलशाली था, किष्किन्धा का राजा था , देवताओं का सहायक था , देवराज इन्द्र का पुत्र कहलाता था , रावण पर विजय प्राप्त की थी , किन्तु था तॊ वानर ही ना ! 

सुषेण वैद्य , हाँ वही , जिन्होनें बाद मेँ लक्ष्मण को संजीवनी बूटी से इलाज कर जीवित कर दिया था , एक आकर्षक गौरवर्ण लम्बी कद काठी के स्वामी थे । चिकित्सक होने के नाते एक अलग तरह का आत्मविश्वास झलक रहा था उनके चेहरे पर , जिससे प्रभावित हुए बगैर मैँ ना रह सकी । 

मुझे पाने की लालसा दोनोँ मेँ , दोनोँ ही देवताओं के सहयोगी , निर्णय छोड़ दिया विष्णु पर और दोनोँ आकर मेरे दोनोँ ओर खड़े हो गए , मानों मैँ बाँट दी जाऊँगी । 

काश ! श्री विष्णु ने मेरी भी इच्छा पूछी होती , मेरी भी तॊ मन की बात सुनते । परन्तु फुर्सत कहाँ थी किसी को , अमृत जो निकलने वाला था , बेवजह बेसमय प्रकट हुई थी मैँ । विलम्ब ना करते हुए भगवान विष्णु ने फैसला सुना दिया कि धर्मपत्नी वामांगी होती है । 

"वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमने, वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाया प्रियार्थिनी"

मैंने तुरन्त देखा , मेरे दाहिनी ओर वानरराज बाली और बाई ओर वैद्य सुषेण खड़े थे । यानि मैँ बाली की वामांगी हुईं । 

आह किस्मत । स्वयं अप्सरा । सामने श्री विष्णु । एक ओर उस काल का महान विद्वान चिकित्सक । दूसरी ओर वानर । और मुझे निर्देश वानर पत्नी होने का । "मैं तारा ....वानर बाली की पत्नी ।"

लक्ष्मिपति विष्णु उतने पर ही नहीं रुके , कहा तुम्हारे बाईं ओर खड़े वैद्य सुषेण आज से तुम्हारे पिता हुए । हाय । चीत्कार उठा था मन मेरा । किन्तु धर्म , नियम , समाज , अनुशासन की डोर से बंधी अबला नारी की तरह चुपचाप सुनती रही । सत्य को स्वीकारती रही । नारी सदैव से समझौतावादी रही है , पुरुष सदैव ही अवसरवादी । मैं यूँ ही नहीं कह रही इतनी बड़ी बात , अपनी बातों का आगे प्रमाण दूँगी , मेरी अनकही आत्मकथा मेँ । 

क्षणभर पहले जो मुझपर आसक्त था , मुझपर दावा कर रहा था , मुझे पाना चाहता था , जिसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना मैँ भी ना रह सकी , मेरे बगल मेँ आकर खड़ा हो चुका था , किन्तु दिशा के चक्कर मेँ , प्रभु ने मेरे भाग्य को चक्कर मेँ डाल दिया । मैँ सौंप दी गईं बाली के हाथों , हाँ एक वानर को ब्याह दी गईं । 

हाँ , अब मैँ रानी हूँ , वानरराज बाली की रानी , किष्किन्धा नगरी की महारानी । हाँ वही किष्किन्धा , जो आज का हम्पी नगर है, जो कर्नाटक राज्य मेंं तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है । हम्पी नगर को तुम्हारे  यूनेस्को ने  विश्व के विरासत स्थलों में भी शामिल कर रखा है । 

मेरी पालकी दण्डक वन मेंं बसे राज्य किष्किन्धा मेंं प्रवेश कर रही है , मार्ग के दोनोँ ओर पुष्प बरसाये जा रहे हैं , कोलाहल के बीच मेंं महाराज बाली के जयकारे की आवाज मुझे सुनाई दे रही है , राजा बाली मेरी पालकी के आगे चल रहे रथ पर विराजमान हैं , एक बार दिल हुआ कि कूद जाऊँ इस पालकी से और जाकर कहूँ महाराज से कि मुझे भी रथ पर बैठा लें , मैँ भी दीदार कर सकूँ प्रकृति की सौन्दर्यता से भरपूर किष्किन्धा का , देख सकूँ वहाँ की महिलाओं को , उनके आभूषणों को , उनके पहनावे को , और मैँ ही क्यूँ , वो महिलाएँ भी उत्सुक थीं मुझे देखने के लिए , तभी तॊ बीच बीच मेंं कोई ना कोई वानरी मेरी पालकी का परदा हटा कर झाँक ही जाती थी । शहनाई की आवाज आ रही है , मीठी आवाज मेंं नगाड़े पिटे जा रहे हैं , लगता है महाराज का महल आ गया । हाँ , रथ रुका । कहारों के पाँव थम चुके हैं , मैँ बाहर झाँकना चाहती हूँ , लेकिन स्त्री सुलभ लज्जा , मुझे रोक देती है । 

आह , कोई समीप आ रहा है , अरे ! ये तॊ स्वयं महाराज बाली हैं , उन्होंने अपने हाथों से परदा हटाया और कहारों को शायद पालकी रखने का आदेश दिया । महाराज ने दाँया हाथ आगे बढ़ाया है , मेरी आँखे जमीन की ओर है , नववधू होने के कारण या किसी पुरुष का पहला स्पर्श , मैँ रोमांचित हूँ , मैंने भी आहिस्ता से अपना बायाँ हाथ उनके मजबूत हाथों पर रख दिया , या यूँ कहूँ कि स्वयं को उनके प्रति समर्पित कर दिया । 

"दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा। जाचक चातक दादुर मोरा।।
सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी।।" - नगाड़ों की ध्वनि मानो बादलों की घोर गर्जना है। याचकगण पपीहे, मेंढक और मोर हैं। देवता पवित्र सुगंध रूपी जल बरसा रहे हैं, जिससे खेती के समान नगर के सब स्त्री-पुरुष सुखी हो रहे हैं । 

"धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ।।
सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं।।" - धूप के धुएँ से आकाश ऐसा काला हो गया है मानो सावन के बादल घुमड़-घुमड़कर छा गए हों। देवता कल्पवृक्ष के फूलों की मालाएँ बरसा रहे हैं। वे ऐसी लगती हैं, मानो बगुलों की पाँति मन को अपनी ओर खींच रही हो । 

"मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे।।
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि।।" - सुंदर मणियों से बने बंदनवार ऐसे मालूम होते हैं, मानो इन्द्रधनुष सजाए हों। अटारियों पर सुंदर और चपल स्त्रियाँ प्रकट होती और छिप जाती हैं , आती-जाती हैं , वे ऐसी जान पड़ती हैं, मानो बिजलियाँ चमक रही हों । 

हम दोनोँ महल की ड्योडी पर खड़े हैं , ब्राह्मण मंगलाचारण कर रहे हैं , महिलाएँ गीत गा रहीं हैं , छोटे वानर या बच्चे मुझे अपलक निहार रहें हैं , मैँ उस वातावरण मेंं खुश भी हूँ तॊ थोड़ी असहज भी।

समउ जानी गुर आयसु दीन्हा। प्रसाद प्रबेसु वानरराज कीन्हा।।
सुमिरि संभु गिरजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा।। - प्रवेश का शुभ समय जानकर गुरुजी ने आज्ञा दी। तब महाराज बाली ने शिवजी, पार्वतीजी और गणेशजी का स्मरण करके समाज सहित आनंदित होकर महल में प्रवेश किया॥

महाराज बाली के एक छोटा भाई भी था सुग्रीव । और उनकी पत्नी थी रूमा। सब अच्छा चलने लगा , परिवार , राजपाट , निजी जीवन । 

बाली मुझे बहुत प्यार करते , मैँ उनके राजदरबार जाया करती , प्रतिदिन शाम को उद्यान मेंं हम दोनोँ टहलते थे , उसी समय सुबह राजदरबार मेंं हुईं कारवाई पर मैँ अपनी राय दिया करती , कई बातें नीतिगत होती , कई बातें राज्यहित मेंं रहती , उनका सम्मान व राजस्व दोनोँ बढ़ने लगा , महाराज मेरी बात मानने लगे , साथ ही मुझे भी पहले से ज्यादा चाहने लगे । 

महाराज बाली भगवान श्रीविष्णु के अनन्य भक्त भी थे , साथ ही न्यायप्रिय शासक , और एक वीर योद्धा भी , एक बार तॊ उन्होंने रावण को अपनी कांख में छह माह तक दबाए रखा था। असल मेंं राजा बाली को उनके धर्मपिता इंद्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था, इस हार की शक्ति अजीब थी , इस स्वर्ण हार को ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इसको पहनकर बाली जब भी रणभूमि में अपने शत्रु का सामना करेगें, तो उनके शत्रु की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाएगी, इसीकारण महाराज लगभग अजेय थे । उन्होंने कई युद्ध लड़े और सभी में वो जीतते रहे । बस एक बुराई थी उनमें कि क्रोध कूट कूट कर भरा था । गोस्वामी तुलसीदास भी कहते हैं -

काम क्रोध मद लोभ की, जब लौ मन में खान। 
तब लौ पण्डित मूर्खौ, तुलसी एक समान॥ 

मैँ माँ बन चुकी थी , सुन्दर , योग्य व पिता की तरह बलशाली बेटे की माँ । बेटा का नाम रखा गया अंगद । अंगद छोटा ही था , तभी की बात है महाराज बाली ने हजार हाथियों का बल रखने वाले दुंदुभि नामक असुर का वध कर दिया था। 

दुंदुभी का एक भाई था मायावी । वह अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था । मायावी एक रात किष्किन्धा आया और महाराज बालि को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारा। मैँ उन्हें मना करती रही , समझाती रही , परन्तु सत्ता का घमण्ड जब इन्सान के सिर पर चढ़ जाए तॊ उसे अपनों की बात भी नहीं सुहाती। 

मेरे लाख मना करने के बावजूद महाराज बाली उस असुर के पीछे भागे । उनके साथ साथ में सुग्रीव भी पीछे दौड़े । भागते-भागते मायावी ज़मीन के नीचे बनी एक कन्दरा में घुस गया। बाली भी उसके पीछे-पीछे प्रवेश कर गए । जाने से पहले उन्होंने अपने अनुज सुग्रीव को यह आदेश दिया कि जब तक वे मायावी का वध कर लौटकर नहीं आते , तब तक सुग्रीव उस कन्दरा के मुहाने पर खड़ा होकर पहरा दे। एक वर्ष से अधिक अन्तराल के पश्चात कन्दरा के मुहाने से रक्त बहता हुआ बाहर आया। सुग्रीव ने असुर की चीत्कार तो सुनी परन्तु अपने भाई की नहीं। यह समझकर कि उसका अग्रज रण में मारा गया, सुग्रीव ने उस कन्दरा के मुँह को एक शिला से बन्द कर दिया और वापस किष्किन्धा आ गया और यह समाचार सबको सुनाया। मेरा मन यह मानने को तैयार ही नहीं था कि महाराज अब नहीं रहे , क्योंकि एक पत्नी अपने पति की हर कमजोरी और हर ताकत को जानती है । मैंने कई बार कहा कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ हो , शरीर की खोज तॊ करनी चाहिए । परन्तु पता नहीं सबके मन मेंं मायावी का खौफ था या चोर , मंत्रियों ने आनन फानन मेंं सलाह की और सुग्रीव का राज्याभिषेक कर दिया। मैँ बैचेन थी किन्तु मौन रही , आँखे बन्द करती तॊ पति बाली दिखते , आँखे खोलती तॊ पुत्र अंगद , अजीब दुविधा थी मेरे समक्ष । 

होनी को कुछ और ही मंजूर था , कुछ समय पश्चात महाराज बाली लौट आए , थकी हुईं चाल , दुर्बल शरीर , किन्तु चेहरे पर विजयी होने की ओजस्वी गर्वीली मुस्कान । सभी चकित , वानर प्रजा , सैनिक , सभासद ! महाराज धीरे धीरे जब सभा मेंं प्रवेश कर रहे थे , सभी खड़े होकर सिर झुका रहे थे , मैँ खुशी से काँप उठी , अंगद तॊ दौड़ कर उनके चरणों मेंं ही लिपट गया , अपने पुत्र को उठा कर उन्होंने गले से लगा लिया , फिर मेरी ओर देखकर गर्व से मुस्कुराए , तभी उनकी नजर राजसिंहासन के समझ खड़े अपने अनुज सुग्रीव पर पड़ी , सुग्रीव के माथे पर अपना मुकुट देख उनकी भौंहे तन गयी , इसके पहले की सुग्रीव कुछ बोल पाता , महाराज का हाथ उठ चुका था । सुग्रीव ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु कुपित हुए बालि ने उसकी एक न सुनी और सुग्रीव को राज्य से निकल जाने का हुक्म दिया , उसकी पत्नी रूमा जो मेरे ही बगल मेंं खड़ी थी , अपने पति सुग्रीव के पीछे लपकी । किन्तु क्रोधित बाली ने दूसरी गलती कि , रूमा की कलाई पकड़ ली । भयभीत सुग्रीव राज्य व पत्नी दोनोँ हारकर निकल पड़े , बाद मेंं पता चला कि वो ऋष्यमूक पर्वत में रहते हैं क्योंकी एक शाप की वजह से बालि वहाँ नहीं जा सकते थे ।

समय ने करवट ली , पवन पुत्र हनुमान जी ने रघुकुल नंदन श्रीराम और लक्ष्मण की मित्रता सुग्रीव से करवा दी । मित्रता तभी प्रगाढ़ होती है जब समय पर दोस्त दोस्त के काम आए । सुग्रीव ने तपस्वी राम को उनकी पत्नी जानकी को ढूंढ़ने का आश्वासन दिया , वहीं प्रभु राम ने सुग्रीव से बाली को मारकर राज्य व रूमा वापस दिलाने का वायदा किया । 

भगवान राम के कहने पर सुग्रीव किष्किन्धा आए और महाराज को ललकारा , राजसिंहासन पर बैठे बाली ने जब दरबार के बाहर से आ रही सुग्रीव की आवाज सुनी , उनके होंठ फड़फड़ाने लगे , बिना विलम्ब अजेय बाली गदा लिए दौड़े , पीछे पीछे अंगद , उनके मंत्रीगण , रूमा और मैँ भी । 
दोनोँ भाई आमने सामने पड़ते ही भिड़ गए , द्वंद युद्ध होने लगा , सुग्रीव भी कमजोर योद्धा नहीं था , कद काठी चेहरा लगभग सभी समान थे दोनोँ भाईयो के , पैंतरे बदल बदल कर दोनोँ भाई एक दूसरे पर जोर आजमाइश कर रहे थे , चोट उन्हें लग रही थी , दिल मेरा धड़का जा रहा था , रूमा और मैँ दोनोँ के माथे पर पसीने की बूंदे टपक रही थी , मैँ कुछ बोलना चाहती थी , किन्तु बोलूँ किसे ? सौतन रूमा को या पुत्र अंगद को , जो स्वयं अचंभित था , या मन्त्री जाम्बवन्त को , जो सत्ता के सिंहासन से बँधे थे , या उन वानरों को जो तालियाँ पीटा रहे थे , या महाराज बाली को जो सुनने की स्थिति मेंं ही नहीं थे । उनका पुरा ध्यान युद्ध कौशल पर था , तभी महाराज ने सुग्रीव को पटकनी दी और एक के बाद एक , कई प्रहार किए सुग्रीव पर , क्रोध कितना ही हो भाई भाई होता है , सुग्रीव को युद्ध मेंं भले ही हरा दिया , किन्तु जाने दिया , मारा नहीं । 

सुग्रीव मुँह की खा कर वापस लौट गए , महाराज बाली की जयजयकार होने लगी । मदमस्त हाथी की तरह , हवा मेंं विजयी हाथों को लहराते हुए महाराज महल की ओर बढ़े , राजदरबार की बजाए , उनके कदम शयनकक्ष की ओर मुड़ गए , शायद महाराज थक गए थे , आराम करना चाहते थे , मैँ भी यही चाहती थी कि उनकी पीड़ा बाँट सकूँ , चोट की पीड़ा , भाई से लड़ने की पीड़ा । मैँ चल पड़ी उनके साथ , ताकि उनके जख्मों पर हल्दी का लेप कर सकूँ , उन्हें गर्म दूध देकर सुला सकूँ , उनके मन से भाई के प्रति क्रोध को भुला सकूँ । 

लेकिन मेरे मन मेंं एक बात रह रह कर कौंध रही थी कि आखिर सुग्रीव मेंं इतनी हिम्मत कहाँ से आ गईं ? महाराज की शक्ति जानते हुए उनसे लड़ने की सोचना , नहीं यह अप्रत्याशित नहीं । सोची समझी चाल थी । परन्तु क्या ? कौन हैं इन सब के पीछे । महाराज लेट चुके थे , उन्हें नींद ने घेर लिया था , उनके पाँव मेरी गोद मेंं थे , मैँ अब भी उनके पैरों को दबा रही थी , किन्तु मेरे मस्तिष्क मेंं विचारों के बादल उमड़ रहे थे , मैंने इशारे से दासी को बुलाया और अपने पुत्र अंगद को बुलाने का हुकुम दिया । 

कुछ ही पलों मेंं युवराज अंगद आ गए , मैंने एक बार फिर महाराज की ओर देखा , वे गहरी निद्रा मेंं हैं , मैंने धीरे से उनके पाँव गद्दे पर रख दिए और आहिस्ता से उठी कि उनकी नींद मेंं खलल ना पड़ जाए । अंगद को बाहर चलने कों कहा , मैँ नहीं चाहती थी कि हमदोनो की वार्ता कोई सुने , दीवारों के भी कान होते हैं । फिर मेरे महल मेंं तॊ रूमा थी , जो चोट खाई नागिन की तरह बिफरी हुईं थी । 

मैंने अपने पुत्र से अपने ह्र्दय की बात कही कि तुम्हारे चाचा यूँ तॊ लड़ने आने वाले नहीं , कोई तॊ कारण है , पता लगाओ । अंगद बुद्धिमान होने के साथ साथ काफी फुर्तीला नौजवान था , उसने मुझे प्रणाम किया और एक घंटे के भीतर सारी रपट लाकर देने का वादा कर चल दिया । ये एक घंटे मैंने महल की छत पर चहलकदमी करते करते काटे , कभी चंद्रमा की ओर ताकती , कभी टूटते तारों को देख उसमें मतलब खोजने लगती , कोई तारा मुझे शगुन लगता , कोई तारा मुझे अपशगुन दिखलाई देता , मेरी बैचेनी बढ़ती जा रही थी , शायद वो रात मेरी जिन्दगी की सबसे लम्बी व भयावह रात थी । क्या मैँ इतना प्यार करने लगी थी बाली से या यही स्वभाव होता है हर स्त्री का अपने पति के प्रति । मैँ दार्शनिक हो रही थी । 

कदमों की आवाज आई , शायद बाली जाग गए हों , नहीं ! ये अंगद थे । चिन्तित अंगद । उसने मुझे जो बताया , मेरी चिंता और बढ़ गई । युवराज अंगद ने मुझे बताया कि चाचा सुग्रीव को अयोध्यापति राजा दशरथ के पुत्र महान वीर धनुर्धर श्री राम का आशीर्वाद व सरंक्षण प्राप्त हो चुका है , इसीलिए उसका मन बढ़ा हुआ है । और राजा राम की शक्ति कैसी थी , वो बतलाया -

येन सप्त महसाला गिरिभुमिष्च दारिता : ।
बाणेनैकेन काकुत्स्थत स्थाता ते को रणाग्रत: ॥ *
यानि श्रीराम ने एक ही बाण से सात शाल के वृक्ष , पर्वतों और पृथ्वी को विदीर्ण कर डाला । 

रात चिन्ता में कैसे बीती , पता ही नहीं चला , यह भी नहीं पता कि कल का सूरज क्या भविष्य लेकर उदय होगा , मुझे महाराज और युवराज दोनो की चिन्ता हो रही है , मैं सुग्रीव के प्रति क्रोधित थी , किन्तु उसका अहित भी नहीं सोच सकती थी , अजीब विडम्बना है । दुश्मन भी कोई और नहीं अपना ही है । भोर होने को है , शायद महाराज बाली उठने को हैं , मुझे अब नीचे जाना चाहिए । अरे ! ये धूल कैसी उड़ रही है , और ये गर्जना , क्या कोई प्राकृतिक आपदा आ गई । नहीं नहीं । ये तो सुग्रीव की आवाज है , वो महल की ओर चले आ रहा है । उसके पीछे पीछे दो वनवासी सुकुमार , कंधे पर तरकश , मंद मंद मुस्कुराते हुए , साथ ही गदा लिए मेरी पुरानी सहेली अंजनी के पुत्र हनुमान भी हैं । 

मैं घबराहट में नीचे की ओर दौड़ी , महाराज उठ चुके हैं , सुग्रीव की आवाज उनके कानों में पड़ चुकी है , वे काफी क्रोध में हैं , मुझे देखते ही बरस पड़े , मानो मेरी ही गलती हो । हाँ गलती तो थी मेरी , मैने ही कल उनसे सुग्रीव को जान से नहीं मारने का वायदा लिया था । मुझे समझ में आ गया कि आज कुछ अनर्थ होने वाला है 

महाराज गदा लेकर खड़े हो गए , मैं महाराज के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई , महाराज की आँखे क्रोध से लाल थी , मेरी रात भर जागने के कारण । मैं उन्हें समझाने लगी , वे मुझे फटकारने लगे , मेरे आँसू गिरने लगे , रोते रोते मैं उनके पाँव पर गिर पड़ी । 

सुनत बालि क्रोधातुर धावा। गहि कर चरन नारि समुझावा॥
सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बंधु तेज बल सींवा॥**

लेकिन था तो वो वीर अभिमानी और ऊपर से महाज्ञानी , ऐसी बात कही कि मेरा मुँह खुला का खुला रह गया , मेरे पास कहने को शब्द खत्म हो गए । 

कह बाली सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ।
जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ ॥**

बालि ने कहा- हे भीरु ! डरपोक प्रिये ! सुनो, श्री रघुनाथजी समदर्शी हैं। जो कदाचित् वे मुझे मारेंगे नहीं , और मार भी दिए तो मैं परमपद पा जाऊँगा । 

महाराज निकल पड़े , सुग्रीव की आवाज सुनकर , बाहर भीड़ लग चुकी थी , महल के छज्जों पर राजपरिवार की स्त्रियाँ भी आ खड़ी हुई , रूमा भी मौनदर्शक बनी हुई थी , वानर सैनिक महाराज के आदेश का इंतजार कर रहे थे , किन्तु महाराज ने इशारे से सबको रोक दिया , और ललकारते हुए सुग्रीव से जा भिड़े । युद्ध यदि दो वीरों के बीच होता तो शतप्रतिशत बाली जीतते , किन्तु इतिहास गवाह है कि बिना छलकपट के विश्व की कोई लड़ाई ना लड़ी गई , ना जीती गई । और यही प्रेरणा आज के तुम्हारे नेताओं ने सीख ली है कि बिना छल कपट के ना कोई चुनाव लड़ रहा है , ना जीत सकता है । 

मेरी नजरें श्रीराम को ढूँढ़ रही थी , मुसीबत में भगवान ही याद आते हैं , मैंने देखा कि वो वृक्ष के पीछे खड़े हैं , अरे ये क्या ? उन्होंने अपना धनुष उठा लिया , और निशाना साध लिया , इसके पहले कि मैं दौड़कर उन तक पहुँच पाती , उनके चरणों में गिरकर अपने स्वामी के लिए जीवनदान माँग पाती , उनका तीर चल चुका था , जो सीधे महाराज बाली की छाती पर लगा । एकाएक महाराज लड़खड़ा उठे , हाथ से गदा छूट गई , दोनों हाथों से छाती में धंसे तीर को थामे थामे भूमि पर गिर पड़े , श्रीराम पेड़ की ओट से बाहर निकल आए । सभी बाली के निकट दौड़े , मैं अंगद उनके मंत्रीगण उनकी जनता । सभी स्तब्ध । सभी शांत । एक बार के लिए वातावरण में चारों ओर शांति छा गई । मैं भूमि पर बैठ गई , महाराज के सिर को अपनी गोद में रख लिया , भगवान श्रीराम भी भ्राता लक्ष्मण के साथ बाली के समीप आ खड़े हुए । 

पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा॥
हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा॥ **

भावार्थ:-बालि ने बार-बार भगवान् की ओर देखकर चित्त को उनके चरणों में लगा दिया। प्रभु को पहचानकर उसने अपना जन्म सफल माना। उसके हृदय में प्रभु श्रीराम के प्रति अगाढ प्रीति थी, पर मुख में कठोर वचन थे। वह श्री रामजी की ओर देखकर बोला- ॥

* धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि ब्याध की नाईं॥
मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा॥**

भावार्थ:- हे गोसाईं। आपने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है और मुझे व्याध की तरह छिपकर मारा? मैं बैरी और सुग्रीव प्यारा ? हे नाथ ! किस दोष से आपने मुझे मारा ?

भक्त बाली और भगवान राम में वार्ता हुई , क्रोध , प्रेम , कारण , दंड , विधि का विधान सभी चर्चाओं के पश्चात बाली ने श्रीराम से अपने अपराधो की क्षमा माँगते हुए अपने पुत्र अंगद , अपने भाई सुग्रीव और मुझ अभागन के लिए प्रार्थना की । 

या ते नरपते वृत्तिभर्र्ते लक्ष्मणे च या । 
सुग्रीवे च अंगदे राजस्तां चिन्तयितुमहर्सि । 
मद्दौषकृतदोषा तां यथा तारा तपीस्वीनीम । 
सुग्रीवो नावमन्येत तथावस्थातुम्हर्सि ।***

बाली ने कहा - राजन ! नरेश्वर ! भरत और लक्ष्मण के प्रति आपका जैसा बर्ताव है , वही सुग्रीव तथा अंगद के प्रति भी होना चाहिए । आप उसी भाव से इन दोनों का स्मरण करें । बेचारी तारा की बड़ी शोचनीय अवस्था हो गई है । मेरे अपराध से उसे भी अपराधिनी समझकर सुग्रीव उसका तिरस्कार ना करे , इस बात की व्यवस्था कीजिएगा । 

सचमुच यह सुनकर उस दुःख की घड़ी में भी मेरा हृदय महाराज बाली के प्रति गदगद हो उठा , मन में आया कि एक बार जोर से गले लगा लूँ , इसलिए नहीं कि उन्होंने मेरी चिन्ता की , इसलिए भी नहीं कि अपने पुत्र की रक्षा की कामना की बल्कि इसलिए कि इतना होने के बावजूद उन्होंने अपने भाई सुग्रीव के लिए भी प्रभु से प्रार्थना की । सचमुच एक पत्थरदिल कठोर दिखने वाले बाली के भीतर एक प्रेम करने वाला सरल इन्सान छिपा था । आज उनके जीवन के अंतिम क्षणों में भले ही मैं दुखी थी परन्तु गौरवान्वित थी कि "मैं तारा .....महान बाली की पत्नी थी ।"

राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब व्याकुल धावा॥
नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा ॥ **

महाराज बाली मुझे बिलखता छोड़कर , सारी जनता को रुलाकर चल दिए , प्रभु के धाम , उन्हें तो मुक्ति मिल गई , परंतु मैं रो पड़ी थी , पछाड़ खा कर रो पड़ी थी , शायद जीवन में पहली बार इतने बड़े दुःख का सामना हुआ था , मेरे बाल खुल गए , साड़ी सरक गई , मैं बेसुध हो गई । 

तारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥ **

भावार्थ: - तारा को व्याकुल देखकर श्री रघुनाथजी ने उसे ज्ञान दिया और उसका अज्ञान हर लिया । उन्होंने कहा- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पाँच तत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है॥

प्रगट सो तनु तव आगे सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा॥
उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी॥ **

भावार्थ: - वह शरीर तो प्रत्यक्ष तुम्हारे सामने सोया हुआ है, और जीव नित्य है। फिर तुम किसके लिए रो रही हो? जब ज्ञान उत्पन्न हो गया, तब वह भगवान् के चरणों लगी और उसने परम भक्ति का वर माँग लिया॥ 

स्वर्गीय बाली का अंतिम संस्कार हो गया , सुग्रीव का राज्याभिषेक हो गया , अंगद युवराज बने । राजपाट चलने लगा । श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ प्रवर्षण पर्वत पर जाकर रहने लगे । यह वर्षा ऋतु का समय था , वन जंगलो में वर्षा ऋतु का अपना महत्व है , चारों ओर हरियाली ही हरियाली , ऊपर से नया नया राजतिलक , सारी शानोशौकत , सुग्रीव सुरा और सुन्दरियों में दिनरात डूबने लगा , भूल गया कि महात्मा राम से उसने कोई वादा भी किया था , कई माह यूँ ही पार हो गए , शरद ऋतु आ गई , तपस्वी राम का धैर्य जवाब देने लगा । उन्होंने अपने उग्र तेजस्वी भाई लक्ष्मण को किष्किन्धा भेजा , जब दूत ने अंतःपुर में आकर यह सूचना दी तब वहाँ संगीत चल रहा था , सभी के हाथों में मधु के प्याले थे , सुन्दर स्त्रियाँ नाच रही थी , कुछ स्त्रियाँ खाली हुए प्यालों को भर रही थी तो कुछ अन्य सेवाओ में लगी थी , माहौल बिल्कुल रमणीय था किन्तु कहीं से भी न्यायोचित नहीं था । 

क्रोधवंत लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना॥ **

सूचना सुनकर राजा सुग्रीव भय से काँप उठे , लड़खड़ाते पाँवो से उन्होने उठने की कोशिश की , परन्तु स्वयं को संभाल ना सके । मैं भी दोषी थी , हाँ मैंने भी पी रखी थी , महर्षि वाल्मीकि ने तेरहवें सर्ग में सच ही लिखा था कि मेरे पैर मधुपान के कारण लड़खड़ा रहे थे । परंतु क्यों ? क्यों पीने लगी थी मैं ? पति के गम में ? या अपने ही अपराधी सुग्रीव के अधीन जीवन जीने की ग्लानि ? या पुत्र अंगद की चिन्ता ? या देवरानी रूमा से ईर्ष्या ? या प्रभु की लीला ? 

खैर , आज फिर , मैं रूमा और उसके पति पर भारी पड़ी , राजा सुग्रीव ने मुझसे आग्रह किया कि मैं लखनलाल को मनाऊँ । 

सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना॥**

भावार्थ:- हे हनुमान् सुनो, तुम तारा को साथ ले जाकर विनती करके राजकुमार को समझाओ , समझा-बुझाकर शांत करो। हनुमान जी ने तारा सहित जाकर लक्ष्मणजी के चरणों की वंदना की और प्रभु राम के सुंदर यश का बखान किया॥

मुझपर दृष्टि पड़ते ही राजकुमार लक्ष्मण सकपका गए , उन्होने अपनी दृष्टि झुका ली , मैंने स्नेह एवं निर्भीकता के साथ उन्हें समझाया और कहा - 

ऋषकोटिसह्स्त्त्राणि गोलागं गूलशतानि च । 
अद्य त्वामुपयास्यन्ति जहि कोपमरिन्दम । 
कोटयो अनेकास्तु काकूुत्स्थ कपीनां दीप्त तेजसाम ॥ *१

हे शत्रुदमन लक्ष्मण ! आज आपकी सेवा में कोटि सहस्त्र यानि दस अरब रीछ , सौ करोड़ लंगूर और बढ़ी हुई तेज वाले कई करोड़ वानर उपस्थित होंगे , इसलिए आप क्रोध को त्याग दीजिए । 

लक्ष्मण शांत हुए , वानरसेना जानकी की खोज में लग गई , श्रीराम ने वानरों की सेना के साथ समुद्र लाँघा , रावण मारा गया । विभीषण लंका के राजा हुए । राम अयोध्या के राजा बने । सबका अपना अपना लक्ष्य पूरा हुआ । किन्तु मैं कहाँ खड़ी थी ? राजमहल में किन्तु विधवा ! अप्सरा किन्तु वानरों के मध्य ! सुन्दरी किन्तु कान्तिहीन ! बुद्धिमान किन्तु बिना पहचान । 

असल में मेरी संघर्ष गाथा मेरी नहीं , हर भारतीय नारी की गाथा है । श्रीरामचरितमानस में राम व हनुमान की गाथा लिखी गई , सदियों से वही पढ़ी जा रही है , गाथा तो लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के त्याग की लिखी जानी थी , गाथा तो मंदोदरी के धैर्य की लिखी जानी थी , गाथा तो मंथरा के पात्र की लिखी जानी थी , गाथा तो लवकुश की माता जानकी की तपस्या की लिखनी थी , गाथा तो सूपर्णखा के प्रेम की लिखी जाती , गाथा तो कैकयी के निरपराध की लिखी जानी थी , गाथा तो लंकीनि , त्रिजटा , सुरसा की भी रही होगी । भरत राज्य के बाहर और उनकी पत्नी माण्डवी माताओं की सेवा में राजमहल के भीतर , क्या बीती होगी उसपर , चौदह वर्षो में कितनी रात माण्डवी सो पाई होगी , उसका संघर्ष तो मुझसे भी बड़ा रहा होगा , एक गाथा तो वो भी लिखी जाती । 

मैं और भी बहुत कुछ बताना चाहती थी , किन्तु यह सोचकर चुप रही कि जब वाल्मीकि और तुलसीदास ने उन बातों को छुपा दिया तो अब चर्चा से क्या लाभ । किन्तु फिर सोचती हूँ कि नहीं जब खुद अपनी आत्मकथा लिखने बैठी हूँ तो छिपाने से क्या लाभ । हाँ मैं अपराधी हूँ , देवी जानकी की अपराधी । बाली जब श्रीराम के तीर लगने से गिर पड़े , उनका सिर मेरी गोद में था , थोड़ी देर के लिए मैं अच्छा बुरा भूला बैठी थी , दुःख इंसान के सोचने समझने की शक्ति खत्म कर देता है । महाराज बाली और प्रभु राम के वार्तालाप में मुझे अपने पति का पक्ष ज्यादा उचित जान पड़ा , मैंने पूरी ईमानदारी से पतिव्रत का निर्वाह किया था , उसी बल पर , पति के शोक में या मोह में या दैववश या राम की ईच्छा से ही राम को शाप दे बैठी कि भले जानकी आपको मिल जाएगी पर आपकी हो नहीं पाएगी , बिछुड़ जाएगी , और यही हुआ भी, जानकी राम द्वारा त्याग दी गई ।

पौराणिक ग्रन्थों में ऋषि मुनियों ने लिख दिया कि अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं । 

अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा।
पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक॥

पापी या पापनाशिनि ! विवाहित स्त्री या कन्या ! बहुत से विरोधाभासों से जूझती हुई मेरी गाथा , मेरी संघर्ष गाथा , मेरी ..........अनकही कथा ॥ 

संदीप मुरारका 
जमशेदपुर 
दिनांक २४ फरवरी'२०२० सोमवार 
फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदा, विक्रम संवत् २०७६
९४३१११७५०७


* वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग १२, श्लोक संख्या ९
**श्रीरामचरितमानस किष्किन्धा काण्ड 
***वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग १८, श्लोक संख्या ५४+५५
*१ वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग ३५ श्लोक संख्या २२