Sunday, 29 July 2018

आओ मृत्यु

आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ,
वरण करूँ तुम्हारा ।

श्वेत चादर तुम लेते आना ,
देह को खूब सजाना ।

मिली कब्र यदि मुझको , आह !
उस ज़मी पर मेरा राज होगा ।

जला दिया गया यदि मैं ,
तो नदियों मेंं मेरा संसार होगा ।

मिलेगा ना कोई आशिक ,
तुमको मुझ जैसा ।

आओ तुम भी मुझको वरण करो ,
करना है कल जो वो आज करो ।

मिलकर उनसे कहना है -
निवेदन यह स्वीकार हो -

हर जगह विलम्ब परमात्मा ,
ये न्याय सही नहीं ।

जिस जन्म के हों अपराध ,
उसी जन्म मेंं सजा हो ।

जिस जन्म मेंं हों कर्म अच्छे ,
वह जन्म सफल हों ।

पूर्वजन्म की पोथी के आधार पर ,
ना चलाओ दुनिया ।

स्वयं पर शक होने लगता है ।
बेवजह आप पर भी ......।

सो अब इंतजार ना कराओ ,
आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ।

वरण करूँ तुम्हारा,
आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ॥

29/7/2018

Saturday, 14 July 2018

मातृभूमि

मातृभूमि

पूरे विश्व में लगभग 195 देश हैं , जिसमें एक मात्र अपना भारत देश ऎसा है जहाँ मातृभूमि को माँ के रूप में पूजा जाता है । भारत माता एक मूर्ती या केवल मानचित्र ही नहीं बल्कि 125 करोड़ देशवासियों की आस्था का प्रतिक है । जिनका मुकुट हिमालय पर्वत है तो उनके चरणों को नित्य कन्याकुमारी धोती है । जिनके दायें हाथ में जैसलमेर का रेगिस्तान है तो बायाँ हाथ अरुणाचल प्रदेश के आर्किड फूलों से सुसज्जित है ।

कहते हैं "जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "अर्थात् जननी यानि माँ और मातृभूमि यानि देश दोनों ही स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है ।

जिस प्रकार माँ का प्यार, दुलार व वात्सल्य अतुलनीय होता है , उसी प्रकार जन्मभूमि की महत्ता हमारे समस्त भौतिक सुखों से कहीं अधिक है । लेखकों, कवियों व महामानवों ने जन्मभूमि की गरिमा और उसके गौरव को जन्मदात्री के तुल्य ही माना है ।

जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा अपनी छाती के दूध से उसका लालन-पालन करती है, उसी प्रकार मातृभूमि अपनी उपजाऊ छाती से अनाज फल मूल सब्जी उत्पन्न करती है और अपने देशवासियों का भरण पोषण करती है ।

मातृभूमि के लिए कवि गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' लिखते हैं -

“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”

किन्तु क्या मातृभूमि केवल देने के लिए है ? हमारा उसके प्रति कोई कर्तव्य नहीं ? ऎसे ढेरों सवाल हैं जिन्हें संक्षिप्त शब्दों मेँ समेटना मुश्किल है । आज जो ट्रेंड चल रहा है कि पैदा भारत मेँ होंगे , खाएँगे इसी भूमि मेँ उपजा अनाज , शिक्षा यहीं प्राप्त करेंगे , डिग्री अपने देश की लेंगे औऱ चंद ज्यादा पैसों के लिए रोजगार विदेशों मेँ करेंगे । यानि जिस माँ (मातृभूमि ) ने आपको इस योग्य बनाया उसे सेवा ना देकर अपनी प्रतिभा का उपयोग वैसे देश के लिए जहाँ आपको दोयम दर्जे का समझा जाता है । इस मानसिकता को बदल कर हमें युवा भारत , योग्य भारत , प्रतिभाशाली भारत , संभावनाओं से भरपूर भारत , 21वीं सदी का नेतृत्वकर्ता भारत का निर्माण करना है । मातृभूमि पर शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की एक प्रसिद्ध कविता की दो पंक्तियाँ देश के बाहर नौकरी कर रहे युवाओं के लिए प्रेरक हो सकती हैं -

"तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ ,
मन औऱ देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ । "

घर सम्पति को चोर उच्चकों से बचाने के लिए ताले व सुरक्षा की जरूरत पड़ती है , वैसे ही मातृभूमि की रक्षा कोई आसान कार्य नहीं है । हमारी मातृभूमि की सीमाएँ या तो सियाचिन जैसे ठंडी जगह पर है या राजस्थान के रेगिस्तान मेँ , या बिहार के नक्सल क्षेत्र मेंं है तो कहीं समंदर के गहरे पानी के उस पार है । दुश्मन देश घात लगाकर हमारी मातृभूमि को आघात पहुँचाने के लिए बैठे हैं , पर यदि हम सुरक्षित हैं , हमारी सीमा सुरक्षित है , हमारी मातृभूमि सुरक्षित है तो उसका श्रेय जाता है हमारी सशक्त सेना औऱ उसके जवानों को । जिनके सम्मान मेँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा कविता मेँ लिखा था -

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                  जिस पर जावें वीर अनेक॥

- आकांक्षा अग्रवाल केभाषण प्रतियोगिता के  लिए लिखे गए शब्द , जिसमें उसे प्रथम पुरस्कार मिला ।