हाथियों का सा बलशाली वानरराज बाली महान ,
दानवो को मारने वाला योद्धा वीर औ' बुद्धिमान ।
ललकारा जब सुग्रीव ने जाकर उसके द्वार ,
समझाने लगी पत्नी तारा उसको बारम्बार ।
किया वादा बाली ने अर्धांगिनी से ,
राजधर्म तो मैं अवश्य निभाउंगा ,
ललकारे कोई यदि द्वार पे आकर ,
तो उसे सबक अवश्य सीखाउँगा ,
पर बात तुम्हारी मानता हूँ ,
है सुग्रीव चूँकि भाई मेरा ,
नहीँ उसको मार गिराउंगा ,
करो विश्वास प्रिये तुम मेरा ,
जाने दूँगा जीवित वापस उसे ,
रण जीत शीघ्र लौट आऊँगा ।
तारा के चेहरे पे बूँदें पसीने की बह रही ,
चिंता की लकीरें माथे पे स्पष्ट दिख रही ।
कहा बाली ने अब चिंता क्यों प्रिये ?
साथ आये हैं राम लक्ष्मण, इसलिये !
अरी जड़ मूर्ख नारी , वो प्रभु हैं ।
उनसे कैसी शत्रुता हमारी ?
नहीँ भय मुझे श्री राम से ,
क्योंकि वो हैं धर्मात्मा ,
कर्तव्यकर्तव्य का है ज्ञान उन्हे ,
नहीँ अपराधी उनका मैं ,
फ़िर वे मुझसे क्यूँ रुठेंगे ?
सुग्रीव बाली के युध्द के दौरान ,
छिप कर खड़े हो गये भगवान ,
चला दिया पेड़ की ओट से बाण ,
चीत्कार उठा बाली वीर महान ।
टूटा विश्वास, ह्रदय में पीड़ा ,
रक्तरंजित भूमि पर गिर पड़ा ,
एकटक देख रहा श्रीराम को ,
आँखो से बह उठी अश्रुधारा ,
मानो पूछ रहा हो प्रभु से कि ,
रचा ये कौन सा दंड विधान ।
निरपराध समझता बाली स्वयं को ,
वह श्री राम को उलाहना देता रहा ,
ओट में छिप कर बाण चलाने पर ,
प्रभु की प्रभुता पर शक करता रहा ।
धैर्यवान शांत श्रीराम समीप आये ,
कहा हे बाली तू था वीर बुद्धिमान ,
राज किष्किन्धा का प्राचीन महान ,
रावण काँख में तेरी खेल चुका है ,
कई राक्षसो को तू मसल चुका है ,
अंत:पुर में सुंदर वानरी कई हजार ,
तारा से शोभा तेरे महल की अपार ,
फ़िर किया कैसे तूने ऐसा अनाचार ,
निकाला भाई को अपने राज्य से ,
सम्पति पद से भी तूने च्यूत किया ,
पर छू कैसे पाया था रूमा* को तू ,
रिश्ते को तूने कलंकित किया ,
तू मेरे बाणों से लहूलुहान हो भले ,
पर तुझे मैने नहीँ, तेरे कर्मों ने मारा,
तूने एक सती का सतीत्व भ्रष्ट किया ।
*रूमा - सुग्रीव की पत्नी का नाम
संदीप मुरारका
दिनांक 28 मई 2017 रविवार
ज्येष्ठ शुक्ल 3 विक्रम संवत 2074
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