Saturday, 1 April 2017

केशव की वंशी

छेड़े कान्हा जब वंशी की तान रे ,
मच जावे उथल पुथल वृंदावन में ,
मोहन के बड़े तीखे हैं ये वाण रे ।

बह गये दूध गायों के थन से ,
रह गये फ़िर भूखे प्यासे बाछे सारे ,
आज फ़िर पीटेंगे बाल ग्वारे ,
बड़ी महँगी यारी तेरी मोहन प्यारे ।

जल गयी रोटियाँ तवों पर ,
ढुल गये छाछ के भरे प्याले ,
हाय क्या खिलायेगी ग्वालीने ,
घर लौटेंगे ग्वाले जब थके हारे ॥

काजल बह गया गालों पर ,
होठों पे अलता लगा बैठी ,
गिरा आँँचल किसी गोपी का ,
तो कोई मुन्डेर पे जा बैठी ।

कि जमुना भी चाल भूल गई ,
मछलियाँ भी राह भटक गई ।
गोवर्धन भी उधर सरकने लगा ,
बादल रिमझिम बरसने लगा ।

किया केशव ने सबको बदनाम ,
बिना छुए लूट ली सबकी लाज ,
अच्छी नहीँ गोविंद तेरी ये बात ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 2 अप्रील 2017 रविवार
चेत्र शुक्ल 6 विक्रम सम्वत 2074






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