नारी की पीड़ा समझने के लिये ,
स्वयं नारी बनना पड़ता है ।
भगवती लक्ष्मी को भी सीता बन कर ,
धरती पर उतरना पड़ता है ।
दो साल की नव विवाहिता को वनवास,
जँगल में भटकना पड़ता है ।
भगवान श्रीराम की पत्नी होने पर भी ,
राक्षस के घर रहना पड़ता है ।
सती साध्वियों को भी इस धरती पर ,
अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है ।
हर परीक्षा, गवाह , सबूतों के बाद भी ,
घर से निकलना पड़ता है ।
और फिर , फटती है छाती नारी की जब ,
धरती को भी फटना पड़ता है ।
नारी की पीड़ा समझने के लिये ,
स्वयं नारी बनना पड़ता है ।
(डॉ नूपुर तलवार को अपनी ही बेटी 'आरुषि' की हत्या के आरोप में पहले दंडित , 52 माह जेल एवं समाजिक अपमान की पीड़ा के सहन कर लेने के बाद "निर्दोष" करार दिये जाने एवं बरी किये जाने पर उस निर्दोष पीड़ित नारी को समर्पित पँक्तियाँ )
संदीप मुरारका
दिनांक 26. 10.2017 गुरुवार
कार्तिक शुक्ला षष्ठी विक्रम संवत् 2074
No comments:
Post a Comment