गोवा
मौज मस्ती, सैर सपाटे, हनीमून और छुट्टियों के लिए प्रसिद्ध डेस्टिनेशन गोवा में लोग या तो समुद्री किनारों (Sea Beach) का लुफ्त उठाने जाते हैं या नाइट लाइफ एन्जॉय करने। ऐसा लगता है मानो गोवा का अर्थ है आलीशान क्रूज के कैसीनो में जुआ खेलना, दिनभर बीयर पीना और रात को जमकर डांस करना। क्या छवि बना लेते हैं हम किसी भी स्थान की !
हालाँकि यह गलती हमारी नहीं है, गोवा टूरिस्ट गाईड उठाइए, उसमें दर्शनीय स्थलों की एक फ़ेहरिस्त मिलेगी - पालोलेम बीच, बागा बीच, दुधसागर वॉटरफॉल, बॉम जिसस बसिलिका, अगुआडा फोर्ट, सैटर्डे नाईट मार्केट, मंगेशी मंदिर, नेवेल एविएशन म्यूजियम, टीटो नाईट क्लब, मार्टिन कॉर्नर, अंजुना बीच, चोराओ द्वीप, मिरामार बीच, से कैथेड्रल चर्च, रैचौल सेमिनरी चर्च, चर्च औफ आवर लेडी, स्पाइस गार्डेन इत्यादि।
बागा बीच में पैरासीलिंग और बनाना राईड करनी हो या डॉल्फिन देखनी हो, मोलम नेशनल पार्क में हाईकिंग या ट्रैकिंग करनी हो, दूनिया से बेखबर होकर हेडफोन लगाकर
पालोलेम बीच में थिरकना हो या अगुआडा किले में फोटोग्राफी करनी हो, तड़क भड़क शॉपिंग का मजा लेना हो या लाउड म्यूज़िक का , लज़ीज़ सी फूड खाना हो या हिप्पी कल्चर देखना हो अथवा प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लेना हो - छोटे से गोवा में सबकुछ है।
मात्र 14.59 लाख आबादी वाले छोटे से राज्य गोवा में आयरन ओर की खदानें भी हैं और काजू की खेती भी। मात्र 2 जिलों वाले गोवा में 2 सांसद और 40 विधायक हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट का पणजी बेंच ही गोवा का उच्च न्यायालय है। गोवा प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत का सबसे अमीर राज्य है - जो राष्ट्रीय औसत का 2.5 गुना है।
बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर एवं पद्मविभूषण आशा भोंसले गोवा मूल की हैं। अपनी स्वच्छ छवि, सादगी व ईमानदारी के लिए विख्यात पद्मभूषण मनोहर पर्रिकर जैसे नेता गोवा के मुख्यमंत्री रहें हैं। गोवा की रत्नगर्भा भूमी ने देश की कई चर्चित हस्तियों को जन्म दिया, यथा : मराठी अभिनेत्री आशालता वाबगांवकर, अभिनेत्री मीनाक्षी शिरोडकर, अभिनेता रोहित रेड्डी, पार्श्व गायिका शेफाली अल्वरेस, टी वी एक्ट्रेस परनीत चौहान, वैज्ञानिक रघुनाथ अनंत माशेलकर, पर्यावरणविद क्लाउड अल्वरेस, शास्त्रीय संगीतकार पंडित जितेन्द्र अभिषेकी , संगीतकार ट्रम्पेटर क्रिस पेरी, जिनके एक्जीविशन 22 देशों में लगे ऐसे कार्टूनिस्ट मारियो दे मिरांडा, अर्जुन अवार्ड विजेता फुटबॉलर ब्रूनो कॉटिन्हो, सीएसआईआर के डायरेक्टर जनरल रघुनाथ माशेलकर, साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि मनोहर राय देसाई एवं
बालकृष्ण भगवन्त बोरकर, उद्योगपति वासुदेव सलगांवकर, आयुर्वेदिक चिकित्सक रामचंद्र पांडुरंग वैद्य इत्यादि।
डॉ़० राम मनोहर लोहिया
किन्तु इन सब नामों के अलावा और एक नाम है, जिनका जन्म भले ही गोवा में ना हुआ हो, किन्तु आज यदि गोवा भारत का अभिन्न अंग है, तो उसका एक मात्र श्रेय उस शख्सियत को जाता है, वो हैँ डॉ़० राम मनोहर लोहिया। गुजरात में स्थापित सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्मारक स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का जो राजनैतिक महत्व है या दिल्ली में राजघाट की जो ऐतिहासिक महत्ता है, कुछ वैसी ही महिमा है गोवा के मार्गाओ- पजीफोंड के इसिडोरियो बापिस्ता रोड़ में अवस्थित लोहिया मैदान की, जहाँ राम मनोहर लोहिया की प्रतिमा स्थापित है।
वो लोहिया, जिनके विषय में संसद में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने प्रधानमंत्री प० जवाहर लाल नेहरु के समक्ष यह कह दिया कि -
तब कहो, ढोल की य’ पोल है,
नेहरू के कारण ही सारा गण्डगोल है।
फिर ज़रा राजा जी का नाम लो।
याद करो जे.पी. को, विनोबा को प्रणाम दो।
"तब कहो, लोहिया महान है।
एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है।"
और जब पुनः प्रकाश हो ;
बोलो, कांगरेसियों ! तुम्हारा सर्वनाश हो।
और वो लोहिया, जिनके न रहने पर महान कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने यह लिख कर उन्हें याद किया कि -
संतो की दूकानों के आगे
खड़ी रहेगी उसकी मचान
भेड़ों के वेश में निकलते कमीने तेंदुओं पर
तनी रहेगी उसकी दृष्टि ।
ओ मेरे देशवासियों
बनना हो जिसे बने नए युग का सिरमौर...
"अभी तो उसके नाम पर
एक चिनगारी और ।"
वहीं वर्ष 1966 में नरेश सक्सेना लिखते हैं कि -
एक अकेला आदमी
गाता है कोरस
खुद ही कभी सिकन्दर बनता है
कभी पोरस ।
एक पेड़ का जंगल
शिकायत करता है वहाँ जंगलियों के न होने की।
लोहिया ना तो स्कूली किताबों में पढ़ाये जाते हैं और ना ही टीवी पर दिखलाये जाते हैं। लेकिन फिर भी यदि उनको जानना हो तो कविवर ओंकार शरद की ये पंक्तियाँ काफी है -
'लोहिया चरित मानस' का कर्म पक्ष शेष हुआ।
आज दिल्ली का एक घर खाली है,
और कॉफी हाउस की एक मेज सूनी है;
बगल की दूसरी मेज पर लोग करते हैं बहस-
लोहिया को स्वर्ग मिला, या मिला नरक!
जिसने जीवन के तमाम दिन बिताए भीड़ों और जुलूसों में,
और रातें, रेल के डिब्बो में, अनेकानेक वर्ष काटे कारागारों में,
जो जूझता ही रहा हर क्षण दुश्मनों और दोस्तों से;
जिसका कोई गाँव नहीं, घर नहीं,
वंश नहीं, घाट नहीं, श्राद्घ नहीं;
पंडों की बही में जिसका कहीं नाम नहीं;
जिसने की नहीं किसी के नाम कोई वसीयत,
उसके लिए भला क्या दोजख, और क्या जन्नत!
मुझे तो उसके नाम के पहले 'स्वर्गीय' लिखने में झिझक होती है;
उसे 'मरहूम' कलम करने में सचमुच हिचक होती है!
वर्ष 1932 - "बर्लिन विश्वविद्यालय" से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले लोहिया के शोध का विषय था - "नमक सत्याग्रह" ।
वर्ष 1946 - देश आजादी की ओर बढ़ रहा था, संविधान सभा के गठन की घोषणा हो चुकी थी, अगले माह जुलाई 1946 में संविधान सभा के लिए चुनाव होने वाले थे। देश भर के सभी स्वतन्त्रता सेनानी लम्बी लड़ाई के बाद एक छोटे ब्रेक के मूड में नजर आ रहे थे। मात्र 36 वर्ष की उम्र के युवा स्वतन्त्रता सेनानी एवं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साप्ताहिक मुखपत्र के सम्पादक डॉ० लोहिया 11 अप्रैल 1946 को आगरा जेल से रिहा हुए और अपने मित्र डॉ० जूलियाओ मेनेज़ेस के निमंत्रण पर गोवा पहुँचे। वहाँ पहुंचते ही वे बीमार पड़ गए।
गोवा ब्रिटिश के नहीं बल्कि पुर्तगाल शासन के अधीन था और स्वतन्त्रा सेनानी लोहिया ने यह देखा कि पुर्तगालियों के शासन में अंग्रेजो से भी ज्यादा क्रूरता है। गोवा के लोगों को संवैधानिक अधिकार तो दूर बल्कि मौलिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे। पुर्तगालियों ने गोवा में किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा पर रोक लगा रखी है। इस गुलामी और अत्याचार को देखकर लोहिया अपनी बीमारी को भूल गए। उन्होनें 200 लोगों को जमा करके एक बैठक की, जिसमें तय किया गया कि नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन छेड़ा जाए।
दिनांक 18 जून 1946, गोवा में जबरजस्त बारिश हो रही थी, उसके बावजूद लोहिया के आहवान पर भारी भीड़ जुटी, जिसमें लोहिया ने पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज उठाई। पुर्तगाल शासन को पहली बार चुनौती मिली थी, पुर्तगाली बौखला गए और उन्होनें लोहिया को गिरफ्तार कर लिया। गोवा के पहले स्वतन्त्रता सेनानी डॉ़० राम मनोहर लोहिया मडगांव की जेल में बन्द कर दिए गए।
भारत में लोहिया की गिरफ्तारी की सूचना फैलने लगी, उनके पक्ष में चौतरफा आवाज उठने लगी, स्वयं महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में लेख लिखकर पुर्तगाली सरकार की कड़ी आलोचना की और लोहिया की गिरफ़्तारी पर उन्होंने सख्त आपत्ति जताई। अंततः दबाव में पुर्तगालियों ने लोहिया को रिहा कर दिया, परन्तु उनके गोवा प्रवेश पर पाँच साल का प्रतिबंध लगा दिया। किन्तु तबतक लोहिया का निशाना सध चुका था, गोवा के लोगों में विद्रोह के स्वर फूटने लगे, आजादी की लड़ाई के लिए गोवा का मानस बन चुका था।
दिनांक 29 सितम्बर 1946, जिद्दी लोहिया के मस्तिष्क में गोवा की आजादी घूम रही थी, वे फिर गोवा पहुँच गए, फिर वही जनसभा, वही गिरफ्तारी, इस बार दस दिनों की जेल, फिर गांधीजी का नैतिक समर्थन, फिर जेल से छूटे, पर छूटते छूटते लोहिया के विचारों की सान पर गोवा स्वतन्त्रता आन्दोलन की धार तेज हो गई।
दिनांक 15 अगस्त 1947, भारत आजाद हो गया, भारत व पाकिस्तान का बंटवारा भी हो गया, दोनों देशों ने सांप्रदायिक दंगे भी झेले, दोनों ओर के सभी नेता अन्य प्राथमिकताओं में उलझे थे। किन्तु लोहिया को देश का वर्तमान नक्शा स्वीकार नहीँ था, उनका स्वप्न वृहत भारत का था, उनका लक्ष्य गोवा का भारत में विलय था।
दिनांक 22 जुलाई 1954, दादरा व नागर हवेली जो पुर्तगालियों के अधीन थी, रातों रात वहाँ के क्रांतिकारियों ने
दादरा पुलिस स्टेशन में हमला कर दिया, पुलिस अधिकारी अनिसेतो रोसारियो की हत्या कर दी और पुलिस चौकी पर भारतीय तिरंगा फहराया दिया गया। दादरा मुक्त प्रान्त घोषित कर दिया गया और जयंतीभाई देसी वहाँ की पंचायत के मुखिया बनाए गए। इस अप्रत्याशित कारवाई से गोवा में पुर्तगाली कमजोर पड़ने लगे।
दिनांक 28 जुलाई 1954, नारोली पुलिस चौकी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आजाद गोमान्तक दल के सदस्यों ने हमला कर दिया, सभी पुर्तगाली पुलिस अफसरों को आत्मसमर्पण करना पड़ा, अंततः नारोली की आजादी की घोषणा हो गई।
दिनांक 2 अगस्त 1954, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आजाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवक सिलवासा की ओर बढ़ चले, उनके बढ़े हुए मनोबल, उनके भीतर जल रही आजादी की आग को देखकर सिलवासा के तत्कालीन पुर्तगाली कप्तान फिदल्गो व उनके सैनिक भाग निकले।
सिलवासा भी मुक्त घोषित कर दिया गया।
वर्ष 1955, लोहिया की जलाई हुई आजादी की मशाल गोवा के हर हिस्से में पहुँच रही थी, उनके अनुयायी जगह जगह आजादी की अलख जगाने में जुटे थे, उनमें अग्रणी मधु लिमये गिरफ्तार कर लिए गए, लोहिया पर दबाव बनाने के लिए पुर्तगालियों ने मधु लिमये को दो वर्षों तक जेल में रखा, पर हर यातना के बाद भी ना मधु लिमये टूटे, ना लोहिया झुके।
वर्ष 1955, गोवा के मुद्दे पर भारत और पुर्तगाल के बीच तनाव गहराने लगा, भारत सरकार ने गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, पाकिस्तान ने गोवा में चावल और सब्जियाँ निर्यात करना आरम्भ कर दिया, पुर्तगाली आसानी से गोवा को छोड़ने के मूड में नहीं थे।
नवम्बर 1961, पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चला दी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, इसके बाद माहौल बिगड़ने लगा, गोवा में सत्याग्रहियों ने आजादी की लड़ाई को अंजाम तक पहुँचा दिया था, उनकी आंखें अब भारत की ओर टिकी थीं, इधर भारत में गोवा के विलय का माहौल बनाने में लोहिया सफल रहे, प्रधानमंत्री पण्डित नेहरु ने तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन के साथ आपातकालीन बैठक की और सुनिश्चित हुआ "गोवा मुक्ति अभियान - ऑपरेशन विजय"।
17 दिसम्बर 1961, लोहिया का आजाद गोवा का सपना सच होने के करीब पहुँच गया, भारत ने 30 हजार सैनिकों को ऑपरेशन विजय के तहत गोवा भेजने का फैसला किया।इसमें वायुसेना, जलसेना एवं थलसेना - तीनों ने भाग लिया। यह संघर्ष लगभग 36 घण्टे से अधिक समय तक चला। वायुसेना ने सटीक हमले किए और पुर्तगाली ठिकानों को नष्ट कर दिया। दमन में पुर्तगालियों के खिलाफ मराठा लाइट इंफैंट्री ने मोर्चा संभाला तो दीव में राजपूत और मद्रास रेजिमेंट ने हमला बोला। इधर वायुसेना के बमबर्षक विमानों ने मोती दमन किले पर हमला कर पुर्तगालियों के होश उड़ा दिए तो नौसेना के युद्धपोत आईएनएस दिल्ली ने पुर्तगाल के समुद्री किनारों पर हमला कर दिया। पिछले 36 घंटो में 30 पुर्तगाली सैनिक मारे जा चुके थे, चौतरफा हमले से पुर्तगाल ने घुटने टेक दिए।
19 दिसम्बर 1961, गोवा में पदस्थापित पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया, लोहिया का स्वप्न पूर्णता की ओर था, 451 साल पुराने औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ, गोवा में भारत का तिरंगा झण्डा लहराने लगा।
भारत की आजादी के 14 साल बाद गोवा स्वतंत्र हुआ, इसका श्रेय हर उस स्वतंत्रता सेनानी व सत्याग्रही को जाना चाहिए, जिसने गोवा की आजादी के लिए संघर्ष किया। गोवा की स्वतंत्रता का श्रेय भारत के उन 22 सैनिकों को जाना चाहिए, जो ऑपरेशन विजय के दौरान शहीद हो गए। किन्तु लोहिया को कोई श्रेय नहीं चाहिए, क्योंकि गोवा की कृतज्ञ माटी को यह पता है कि गोवा में आजादी का बिगुल किसने फूंका था और इसी बात का गवाह है गोवा के मार्गाओ- पजीफोंड के इसिडोरियो बापिस्ता रोड़ में अवस्थित लोहिया मैदान की, जहाँ राम मनोहर लोहिया की प्रतिमा स्थापित है।
दिनांक 12 अक्टूबर 1967, प्रखर वक्ता, चिन्तक, कुशल संगठक, स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी, लोकसभा सांसद डॉ़० राममनोहर लोहिया ने मात्र 57 वर्ष की आयु में सरकारी अस्पताल में प्राण त्याग दिए और अन्तिम संस्कार भी हुआ तो कहाँ - दिल्ली के निगम बोध घाट के विद्युत शवदाह गृह में, बिना किसी धार्मिक कर्मकाण्ड के, ना पुष्प, ना चंदन, ना घी, ना तिलांजलि।
वर्ष 2020, आवश्यकता इस बात की है, इतिहास जीवित रहे, पन्नों में, दिलों में, स्मृतियों में, साथ साथ स्मारकों में। इसके लिए संकल्पित है डॉ़० राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन, जिसका संकल्प है कि गोवा एयरपोर्ट व गोवा यूनिवर्सिटी का नामकरण लोहिया के नाम पर हो और इसके लिए पूरे देश भर में घूम घूम कर प्रयासरत हैं युवा पत्रकार व शोधार्थी अभिषेक रंजन सिंह, जो फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं।
संदीप मुरारका
जमशेदपुर, झारखण्ड
जनजातीय समुदाय के महान व्यक्तित्वों की जीवनियों की पुस्तक "शिखर को छूते ट्राइबल्स" के लेखक