Sunday, 21 February 2021

समीक्षा : पर्दे के पीछे राजनेता - कवि कुमार

कई पुराने संस्मरणों,  कड़वी मीठी यादों व जीवन के अनुभवों को समेटकर कलमबद्ध करने का प्रयास है पुस्तक "पर्दे के पीछे राजनेता" । संताल युवा बबलू मुर्मू की राजनीतिक पारी व उसके जीवन का अवसान लेखक ने किन विपरीत परिस्थितियों में लिखा। छिहत्तर वर्षीय जवाहर लाल शर्मा की फाईल का मामला हो या पूर्व वित्त मन्त्री स्वर्गीय एम पी बाबू का बयान कि "भाजपा को वेश्यालय ना बनाएं" - इन विषयों पर बेबाक लिखने की हिम्मत की है पिछले चार दशक से पत्रकारिता कर रहे कवि कुमार ने।

अपने ही साथियों द्वारा बहिष्कार का दंश झेल चुके कवि कुमार ने जिस साफगोई से लिखा है, "चरणपादुका पूजन के इस युग में" ऐसे पन्नों का मिलना असम्भव है। केन्द्रीय मन्त्री अर्जुन मुण्डा का मिलनसार स्वभाव और राज्य सरकार के मन्त्री बन्ना गुप्ता का जुझारुपन दोनों ही इस पुस्तक में परिलिक्षित होता है। राजनीति से जुड़े लोग हों या सामान्य लोग, यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। लेखक कवि कुमार द्वारा लिखी गई 97 पृष्ठों की पुस्तक 'पर्दे के पीछे राजनेता' मात्र 100 रूपए में किंडल पर उपलब्ध है।




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