साहित्य विधा
(ख) जनजातीय लोककला
झारखण्ड के जल, जमीं औ' आसमां,
हो, मुण्डा , संथाल , बीरहोर और उराँव ।
अण्डमान निकोबार द्वीप में 'जारवा' जनजाति,
कर्नाटक में "कोलीधर", आंध्र में "चेंचू" जनजाति ।
केरल में 'पनियान', अरुणाचल में 'जिन्गपो लोग',
महाराष्ट्र के 'गोंड' और राजस्थान के 'मीणा' लोग ।
छत्तीसगढ़ में 'कोरकू', गुजरात में बसे हैं 'कोकना' ,
ओड़िसा में 'बोण्डा' , असम में 'बोड़ो' का ठिकाना ।
देश के हर कोने में बसी है जनजाति,
सभ्यता है पुरातन ये, है देश की संस्कृति ।
लोक गीत, नृत्य, जनजातीय कलाकार,
संजोए प्राचीन वाद्ययंत्र, प्राचीन हथियार।
हस्तशिल्प वस्तुएँ और प्राचीन पाण्डुलिपियाँ,
धार्मिक विरासतें औ' अति दुर्लभ कलाकृतियाँ।
लोक संस्कृति के संरक्षक व संवर्द्धक,
जनजातीय हैं पुरातन सभ्यता के संवाहक ।
आदिवासी 'रोजेम' और ढोल बजाता है,
वह मांदर में जीता है, वह खेतों में गाता है।
गोंड पेंटिंग्स का दिवाना है यूएस यूरोप,
कालबेलिया पर हर विदेशी झूम जाता है।
सुकरी अज्जी के लोकगीतों में छिपा इतिहास,
तीजन की पंडवानी कौन नहीं सुनना चाहता है।
बदलते इतिहास ने भुला दी भले कई कहानियाँ,
मिटा दी समयचक्र ने भले कई पुरानी निशानियाँ ।
फिर भी ना मिट ना पाई हस्ती हमारी,
विज्ञान पर भी पड़ती परम्पराएँ भारी ।
जनजातीय लोककला खोलती कई द्वार है,
छिपा हुआ है ज्ञान इनमें, छिपे हुए संस्कार हैं॥
प्रतिभागी -
संदीप मुरारका
जमशेदपुर
9431117507
murarkasan@gmail.com
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