Saturday, 1 April 2017

बुद्ध

रात्रि के प्रहर में
छोड़ मोह माया का संसार ,

निकल पड़े गौतम
करने बुद्ध जीवन को साकार ,

खोल दिये कुंडल
गले का हार औ' शृंगार ,

घुटने टेके बैठा सारथी
समक्ष उसके उठाई तलवार

काट डाले घुंघराले केश अपने
भेज दिया यशोधरा को उपहार ,

लो भेंट मेरी ओर से अंतिम बार
करती रही जिन लटों से तुम प्यार ,

और उछाल दिये कुछ केश
उपर , आकाश के उस पार ,

कि न छूना धरती को तुम
प्रारम्भ हुआ बुद्ध का संसार ।

आम्रपाली का आतिथ्य स्वीकार
पहुँचे भोजन को वेश्या के  द्वार ,

ढीले ना छोडो वीणा के तार
कसो ना इतना कि टूटे बार बार ,

धम्मपद ग्रंथ को दिया आकार
किया बहुजन हिताय का प्रचार ,

हे महात्मा, हे महामानव, हे गौतम
करो आप मेरा प्रणाम स्वीकार ,

हो तुम नबी या कोई अवतार ,
हे बुद्ध आपको बारम्बार नमस्कार ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 1अप्रील 2017 शनिवार
चेत्र शुक्ल 5 विक्रम सम्वत 2074

No comments:

Post a Comment