रात्रि के प्रहर में
छोड़ मोह माया का संसार ,
निकल पड़े गौतम
करने बुद्ध जीवन को साकार ,
खोल दिये कुंडल
गले का हार औ' शृंगार ,
घुटने टेके बैठा सारथी
समक्ष उसके उठाई तलवार
काट डाले घुंघराले केश अपने
भेज दिया यशोधरा को उपहार ,
लो भेंट मेरी ओर से अंतिम बार
करती रही जिन लटों से तुम प्यार ,
और उछाल दिये कुछ केश
उपर , आकाश के उस पार ,
कि न छूना धरती को तुम
प्रारम्भ हुआ बुद्ध का संसार ।
आम्रपाली का आतिथ्य स्वीकार
पहुँचे भोजन को वेश्या के द्वार ,
ढीले ना छोडो वीणा के तार
कसो ना इतना कि टूटे बार बार ,
धम्मपद ग्रंथ को दिया आकार
किया बहुजन हिताय का प्रचार ,
हे महात्मा, हे महामानव, हे गौतम
करो आप मेरा प्रणाम स्वीकार ,
हो तुम नबी या कोई अवतार ,
हे बुद्ध आपको बारम्बार नमस्कार ॥
संदीप मुरारका
दिनांक 1अप्रील 2017 शनिवार
चेत्र शुक्ल 5 विक्रम सम्वत 2074
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