Saturday, 10 August 2019

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

आजकल हमारे देश मेंं एक नारा बहुत जोर पकड़ा हुआ है - बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ । माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत से  ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नाम से एक स्कीम’ की शुरुआत भी की है । जिस स्कीम का लक्ष्य है  -

कन्या भ्रूण हत्या का रोकथाम (Prevention of gender-biased sex-selective elimination)

कन्याओं की सुरक्षा व समृद्धि (Ensuring survival & protection of the girl child)

बालिकाओं की शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करना (Ensuring education & participation of the girl child)

परन्तु विषय यह है कि इस नारे की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ? आखिर क्यों बेटी और बेटा मेंं फर्क किया जाता है ? आखिर क्यों लड़की और लड़कों की जनसंख्या का अनुपात गड़बड़ा गया ? दोषी कौन है ? सरकार - समाज या स्वयं हम ?

मित्रों जब जब किसी लड़की को अवसर प्राप्त हुए हैँ , उसने स्वयं को साबित किया है । इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है । आप लक्ष्मीबाई को ही लीजिए , अकेली झाँसी की बेटी ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिए ।

आजाद भारत के कितने पूर्व प्रधानमन्त्रीयों के नाम आपको याद हैँ ? लेकिन आज तक मात्र एक बेटी एक महिला इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी और इतिहास मेंं उनका नाम स्वर्ण अक्षरों मेंं अंकित किया गया ।

चाहे स्वर्गीय सुषमा स्वराज हों या स्वर्गीय शीला दीक्षित या स्वर्गीय जयललिता या आनन्दी बेन पटेल हों या मायवती या ममता बनर्जी हों या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण या स्मृति ईरानी हों या हमारी अपनी सांसद महोदया श्रीमती रेणुका सिंह सरौता ही क्यों ना हो - ये सब भी तॊ बेटियाँ ही है ना !

अंतरिक्ष को नापना था तॊ बेटी कल्पना चावला का नाम याद कीजिए और माउंट एवरेस्ट चढ़ना हो तॊ बचेन्द्रि पाल या प्रेमलता अग्रवाल का नाम जबान पर आ ही जाता है ।

उस साहसी बेटी का नाम कैसे भूल सकती हूँ ? अरुणिमा सिन्हा ! जिन्हें अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए गया । उनका एक पैर काटना पड़ा । उसके बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट  को फतह कर लिया ।

कारपोरेट जगत की सूची क्या पेपिस्को की इंदिरा नूई के बिना पूरी हो सकती है या बैंकिग सूची एस बी आई की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य के बिना पूरी की जा सकती है ?

क्रिकेट मेंं भारत वर्ल्ड कप फाईनल मेंं भी नहीं पहुँच पाया , वहीं 2017 के आईसीसी महिला क्रिकेट विश्व कप मेंं भारत की बेटियों की टीम उपविजेता रही ।

जिस हरियाणा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या सबसे कम है, उसी हरियाणा की बेटी साक्षी मलिक
ने पहलवानी मेंं ओलंपिक पदक जीत कर भारतमाता का माथा ऊँचा कर दिया । ओलंपिक जीतने वाली साइना नेहवाल, मेरीकॉम , कर्णम मल्लेश्वरी भी तॊ बेटियाँ ही हैँ ।

क्या बालीवुड मेंं आदरणीय लता मंगेशकर जी से ज्यादा सम्मान किसी को प्राप्त हो सकता है क्या ? वो भी तॊ एक बेटी ही है ।

क्या टीवी न्यूज़ चैनल पर आज की तारीख मेंं मिस अंजना ओम कश्यप से ज्यादा पॉपुलर कोई दूसरा एंकर है क्या ? अंजना भी तॊ एक बेटी ही है ।

हिन्दी साहित्य का पुराना संकलन जहाँ महादेवी वर्मा के बिना अधूरा है वहीं नया संकलन शोभा डे के बिना पूरा नहीं हो सकता ।

बेटी यदि सुन्दर हो तॊ वो ऐश्वर्या राय या सुष्मिता सेन बन जाती है और यदि मोटी हो कम सुन्दर हो तॊ भी टुनटुन और भारती बन कर छा जाती है ।

और मजबूर होकर यदि किसी बेटी को डाकू बनना पड़ा तॊ भी वह फूलनदेवी बनकर इतिहास ही रचती है ।

क्षेत्र कोई भी हो , बेटियों को जब जब अवसर मिला है , उन्होंने सर्वोच्च स्थान पाया है ।

बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ ।

आप पूरे भारत के किसी कोने की किसी भी निजी अच्छी स्कूल मेंं चले जाईए, आपको शिक्षिका के रुप मेंं 90% बेटियाँ ही पढ़ाते हुए मिलेंगी। यानि पढ़ाई पर तॊ बेटियों का पेटेंट है ।

मुझे नहीं लगता इस विषय पर और कहने को कुछ शेष है , क्योंकि मैँ भी एक बेटी ही हूँ ।

अपनी अंतरात्मा को जगाओ ।
बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ ॥

- मेरी भांजी आकांक्षा अग्रवाल की भाषण प्रतियोगिता के लिए लिखे गए शब्द
11/08/2019 रविवार
शुभ एकादशी श्रावण शुक्ला २०७६

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