खुदरा दूकानदारो, छोटे व्यापारियों , सूक्ष्म उद्यमियों को समर्पित कविता -
ए दिवाली , तुम इतनी जल्दी क्यूँ चली आई ।
क्या तुम्हें पता नहीं देश मेंं अभी मंदी छाई है ॥
मिठाई तॊ मैँ फिर भी ले आऊँगा ,
पर पटाखे कैसे खरीद पाऊँगा ?
साफ सफाई तॊ हो जाएगी ,
पर सजावट कैसे कर पाऊँगा ?
कहेंगे घरवाले नए कपड़ों के लिए जब ,
तब उनको मैं क्या बहाना बताऊंगा ?
पूजा की तैयारी तॊ हो जाएगी ,
पर गिफ्ट शायद ही बाँट पाऊँगा ।
गाय मुस्लिम मेंं उलझा देश मेरा ,
जाने कब मन्दी से उबर पाएगा ?
फ्लिपकार्ट एमेजॉन मेंं बरस रहा सोना ,
बाजार मेंं अब ग्राहक कहाँ से आएगा ।
रिलायन्स , बिगबाजार का बढ़ रहा साम्राज्य ,
बचे खुचे व्यापार पर हुआ मॉल वालों का राज ।
पूजा बोनस की कमाई से होते थे जो काम ,
इनकम टैक्स जीएसटी को भर दिए वो दाम ।
लाइसेंसो से फाइलें भरी पड़ी है ,
अभी भी कई नोटिस नई खड़ी है ।
सेलरी देना हुआ मुश्किल ,
बोनस क्या खाक दे पाऊँगा ।
नया व्यापार करना हुआ सपना ,
क्या पूराने को भी बचा पाऊँगा ?
छोटे व्यापारी उद्यमियों की मन्दी अब उबरने से रही ,
ओला-उबर के जमाने मेंं ऑटो-टैक्सी चलने से रही ।
ए दिवाली , तुम इतनी जल्दी क्यूँ चली आई ।
क्या तुम्हें पता नहीं देश मेंं अभी मंदी छाई है ॥
कोई बात नहीं , अच्छा है ,
फिर पुराना जमाना आएगा ।
आमपत्तों और केला गाछ से होंगी सजावट ,
मिट्टी के दीयों से अपना शहर जगमगाऐगा ।
नहीं छूटेगें पटाखे ऊंचे ऊंचे बड़े बड़े ,
फुल्झरीयो चकरी से बच्चे खुश हो जायँगे ।
बन्द होगा ड्रायफ्रूट्स गिफ्ट का फैशन ,
हलवा हर घर मेंं फिर बनाया जाएगा ।
चूँकि होंगे नहीं सेलिब्रेशन डिनर इस साल ,
रिश्तेदारों का घर फिर फिर याद आएगा ।
होगी देवी लक्ष्मी की आराधना ,
व्यापारी सच्ची दिवाली मनाएगा ।
ए दिवाली , अच्छा हुआ तुम जल्दी चली आ गई ।
हुई सफाई, हटी धूल आईने से, सच्चाई नजर आ गई ॥
संदीप मुरारका
६.१०.२०१९ रविवार
शुभ महाअष्टमी
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