Thursday, 31 December 2020

पद्म विभूषण एम सी मैरी कॉम, मणिपुर

पद्मविभूषण - 2020, खेल के क्षेत्र में





जन्म : 1 मार्च, 1983
जन्म स्थान  : गांव कांगाथेइ, जिला चुराचांदपुर, मणिपुर
वर्तमान पता : ए -112, जोन- 2 , नेशनल गेम्स विलेज, लांगोल, एम सी मैरी कॉम रोड़, जिला इम्फाल वेस्ट, मणिपुर- 795004
email : mary.kom@sansad.nic.in
पिता : एम टोन्पा कॉम
माता : एम अखाम कॉम
पति : कारॉन्ग ओन्लर कॉम (फुटबॉलर)
विवाह तिथि : 12 मार्च, 2005

जीवन परिचय - आभूषणों की भूमि यानि मणिपुर. देश के सुदूर उत्तरपूर्वी छोर पर स्थित और पहा‍ड़ियों से घिरा हुआ राज्य मणिपुर. प्राकृतिक छटा से भरपूर इस खूबसूरत मणिपुर में वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 7,41,141 थी, जिसमें मात्र 2% यानि 14,602 कॉम ट्राइबल्स थे. इसी कॉम रेम जनजातिय परिवार में जन्म हुआ एम सी मैरी कॉम का.

मैग्नीफिसेन्ट मैरी यानि शानदार मैरी के नाम से विख्यात
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम उर्फ एम सी मैरी कॉम के पिता पेशे से किसान थे. उनकी भी स्पोर्ट्स में रुचि थी, वे स्वयं पहलवान बनना चाहते थे और इसीलिए उनकी आंखें मैरी कॉम में एक स्पोर्ट्सपर्सन को ढूंढ़ती थी. तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी मैरी कॉम के भाई का नाम खुपरेंग एवं बहन का नाम किन्ड़ी है. मैरी कॉम ने मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग 45 किमी पर अवस्थित मोइरांग के लोकतक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल में कक्षा 6 तक और सेंट जेवियर स्कूल में कक्षा 8 तक पढ़ाई की. उनकी आगे की पढाई आदिमजाति हाईस्कूल, इम्फाल में हुई और उन्होनें मैट्रिक की परीक्षा राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से उत्तीर्ण की. उनका ग्रेजुएशन चुराचांदपुर कॉलेज से हुआ.

वर्ष 2005 में जब वे अपने कैरियर के शिखर पर थी, तब उन्होनें विवाह किया, एक माँ बनने के बाद वे फिर रिंग में लौटी और मिसाल प्रस्तुत करते हुए शानदार प्रदर्शन किया. उनके तीन बेटे और एक बेटी हैं चुंग और नेई (जुड़वां 2007) , प्रिंस (2013) और मर्लियन (2018). मैरी कॉम का परिवार क्रिश्चियन धर्म का अनुयायी है.

योगदान - मैरी कॉम के पिता उन्हें एथलीट बनाना चाहते थे. अपने स्कूल की खेल प्रतियोगिताओं में मैरी भरपूर रुचि लिया करती थी. वे वॉलीबॉल, फुटबॉल और एथलेटिक्स सहित सभी प्रकार के खेलों में भाग लिया करती.

वर्ष 1998, एशियन गेम्स में मणिपुर के डिंग्को सिंह ने बाक्सिंग में गोल्ड मैडल जीत कर खेल के उत्सुक जिन युवाओं को बाक्सिंग रिंग की ओर आकर्षित किया, उन्हीं में एक थी मैरी कॉम. मात्र 15 वर्ष की आयु में मैरी अपने पहले कोच के० कोसाना मेइतेइ से बॉक्सिंग के बेसिक रूल्स सीखने लगी. प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतू उन्होनें
गांव छोड़ दिया और नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी, इम्फाल चली गई. जहाँ वे खुमान लम्पक स्टेडियम में कोच एम० नरजीत सिंह के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित होने लगी.

वर्ष 2000, मैरी मात्र 17 वर्ष की थी, जब उन्होनें स्टेट एमेच्योर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप जीत ली और तभी अखबार में छपी उनकी फोटो को देख उनके पिता को पता चला कि उनकी बेटी एथलीट नहीं मुक्केबाज बनने की दिशा की ओर अग्रसर है. पिता इस बात को लेकर चिन्तित थे कि मुक्केबाजी से लड़की के चेहरे पर चोट के दाग हो जाएंगे तो विवाह कैसे होगा ? यह था बेटी के प्रति पिता का प्यार ! उसी वर्ष उन्होनें पश्चिम बंगाल में आयोजित 7 वीं ईस्ट इंडिया महिला बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता.

वर्ष 2001, दिनांक 12 फरवरी, चेन्नई में आयोजित महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में मैरी कॉम ने गोल्ड जीतकर अपने भविष्य के सारे द्वार खोल लिए.
इसी वर्ष मैरी को यूएसए में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में भाग लेने का अवसर मिला और उन्होनें 48 किग्रा श्रेणी में शानदार प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मैडल जीत लिया.

वर्ष 2002, टर्की में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में 45 किग्रा श्रेणी में मैरी का अदभुत प्रदर्शन रहा और वे गोल्ड मैडल जीतकर विश्वविजेता बन गईं. उसी वर्ष हंगरी में आयोजित विच कप में और नई दिल्ली में आयोजित महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप भी मैरी ने गोल्ड जीता.

वर्ष 2003, हिसार में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशीप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी प्रथम स्थान पर रहीं और गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2004, नार्वे में आयोजित वीमेन्स वर्ल्ड कप के 41 किग्रा में मैरी कॉम ने उम्दा प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2005, रूस में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी ने देश को दूसरी बार गोल्ड दिलवा कर विश्वविजेता बनी. इसी वर्ष उन्होनें ताईवान में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीता.

वर्ष 2006, नई दिल्ली में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी ने भारत का मान बढ़ाते हुए फिर गोल्ड मैडल जीत लिया और तीसरी बार विश्वविजेता बनी. उस वर्ष उन्होनें डेनमार्क में वीनस वीमेन्स बॉक्स कप में प्रथम स्थान प्राप्त किया.

वर्ष 2008, चाईना में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी ने फिर एक बार गोल्ड मैडल जीत लिया और चौथी बार विश्वविजेता बनी. इसी वर्ष गोवाहाटी में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में वे दूसरे स्थान पर रहीं और सिल्वर मैडल जीता.

वर्ष 2009, वियतनाम में आयोजित एशियन इन्डोर गेम्स के 46 किग्रा श्रेणी में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड जीता.

वर्ष 2010, बर्बडॉस में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 48 किग्रा श्रेणी में मैरी ने अपना जलवा बरकरार रखते हुए गोल्ड झटक लिया और पांचवी बार विश्वविजेता का खिताब जीता. इसी वर्ष कजाकिस्तान में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में उन्होनें गोल्ड मैडल और चाईना में आयोजित एशियन गेम्स में 51 किग्रा श्रेणी में कांस्य पदक जीता.

वर्ष 2011, चाईना में आयोजित एशियन वीमेन्स कप में 48 किग्रा श्रेणी में मैरी ने गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2012, मंगोलिया में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में 41 किग्रा श्रेणी में उन्होनें गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2012, लंदन, यूके में आयोजित समर ओलम्पिक में 51 किग्रा श्रेणी में मैरी कॉम ने कांस्य पदक लाकर सबको चौंका दिया.

वर्ष 2014, साउथ कोरिया में आयोजित एशियन गेम्स में मैरी 51 किग्रा श्रेणी में प्रथम स्थान पर रही. 

वर्ष 2017, वियतनाम में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में 48 किग्रा श्रेणी में मैरी कॉम ने गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2018, नई दिल्ली में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 45- 48 किग्रा श्रेणी में मैरी ने फिर गोल्ड जीता और वे छठी बार विश्वविजेता बनी. इसी वर्ष आस्ट्रेलिया में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स में भी उन्होनें ही गोल्ड जीता.

वर्ष 2019, रूस में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 51 किग्रा श्रेणी में मैरी तीसरे स्थान पर रहीं, उन्हें कांस्य पदक मिला.

खेल प्रतिस्पर्धाओं में खिलाड़ियों के खानपान व आवास की अव्यवस्था एवं उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ मैरी कॉम खुल कर आवाज उठाती रही. उनके लगातार प्रयासों के कारण कई बदलाव भी हुए. वे कहती हैं - "पहले मैडल पाने के लिए जीवन दाँव पर लगाओ, फिर जीवन जीने के लिए मैडल दाँव पर लगाओ, ऐसी व्यवस्था को बदलना जरूरी है. "

मणिपुर में ऐम्च्योर बॉक्सिंग खेल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मैरी कॉम एवं उनके पति कारॉन्ग ओन्लर कॉम द्वारा वर्ष 2006 में "मैरी कॉम रिजिनल बॉक्सिंग फाऊंडेशन" की स्थापना की गई, एनजीओ के रूप में निबंधित इस फाउंडेशन की पंजीकरण संख्या 2477/2006 है. यहाँ गरीब प्रशिक्षुओं को निःशुल्क ट्रेनिंग, भोजन व आवास की सुविधा दी जाती है. फाउंडेशन मणिपुर एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन (एमएबीए) से भी संबद्ध है. मणिपुर सरकार ने 2013 में फाउंडेशन को इम्फाल खेल गांव में 3.30 एकड़ भूमि आवंटित की है. युवा मामले और खेल मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय खेल विकास कोष (NSDF) के द्वारा वहाँ व्यायामशाला और आउटडोर बॉक्सिंग हॉल का निर्माण करवाया गया है. भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) द्वारा कोचिंग सहायता प्रदान की जाती है. वहाँ 2 बॉक्सिंग रिंग, 50 लड़कों और 50 लड़कियों के लिए अलग अलग हॉस्टल, क्वार्टर, डाइनिंग हॉल इत्यादि बुनियादी ढांचे की स्थापना की जा रही है.
https://marykomfoundation.org/

पशु हित में कार्यरत पेटा इण्डिया के अभियान का समर्थन करते हुए मैरी कॉम कहती हैं कि - "जानवरों के साथ क्रूरता बन्द करने का सबसे अच्छा तरीका है, युवाओं को करुणा सिखाना."

कलर्स टीवी, इसीपीएन स्टार स्पोर्ट्स, एम टीवी, यूट्यूब में प्रदर्शित होने वाले सुपरफाइट लीग में मैरी कॉम ब्राण्ड एम्बेसडर की भूमिका में थीं.

सांसद - वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं, जिनमे 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं, इन्हें 'नामित सदस्य' कहा जाता है. खेल के क्षेत्र में मैरी कॉम के अतुलनीय योगदान को देखते हुए दिनांक 25 अप्रेल 2016 को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें उच्च सदन राज्यसभा के लिए नामित किया गया है.

सम्मान व पुरस्कार - खेल के मैदान में भारत के राष्ट्र गान व झण्डे को विश्वभर में सम्मान दिलाने वाली 6 बार की विश्वविजेता महिला मुक्केबाज एम सी मैरी कॉम को वर्ष 2006 में पद्मश्री, वर्ष 2013 में पद्म भूषण एवं वर्ष 2020 पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया. खेल के क्षेत्र में उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड प्रदान किया गया. देश की शानदार मुक्केबाज मैरी कॉम को वर्ष 2003 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया. इंटरनेशल बॉक्सिंग एसोसिएशन द्वारा मैरी कॉम को एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप 2009 एवं 2016 का ब्राण्ड एम्बेसडर मनोनीत किया गया. एआईबीए द्वारा उन्हें 2016 एवं 2017 में लीजेंड अवार्ड से सम्मानित किया गया. वर्ल्ड ओलम्पियंस एसोशिएसन द्वारा 2016 में गठित ओलम्पियंस फॉर लाइफ प्रोजेक्ट की सदस्य हैं मैरी कॉम. लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स 2007 - पीपुल्स ऑफ द  ईयर में मैरी कॉम का नाम अंकित किया गया. वर्ष 2008 में उन्हें पेप्सी एम टीवी द्वारा यूथ आइकॉन की उपाधि दी गई. सहारा स्पोर्ट्स अवार्ड्स 2010 के तहत उन्हें स्पोर्ट्स वीमेन ऑफ द ईयर का खिताब दिया गया.

खेल की रिंग में उनकी अदभुत योग्यता को देखते हुए 29 मार्च, 2016 को मेघालय की नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी द्वारा मैरी कॉम को डॉक्टरेट (डीलिट्) की मानद उपाधि प्रदान की गई. दिनांक 14 जनवरी, 2019 को असम के काजीरंगा यूनिवर्सिटी द्वारा मैरी को डीफील की मानद उपाधि प्रदान की गई.

वर्ष 2012 में जब उन्होनें ओलम्पिक में कांस्य पदक जीत कर देश का मान बढ़ाया, तो कई राज्य सरकारों व संगठनों ने उन्हें लाखों रुपए की राशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की. मणिपुर राज्य सरकार (रुपए 50 लाख), राजस्थान सरकार (रुपए 25 लाख), असम सरकार (रुपए 20 लाख), अरुणाचल प्रदेश सरकार (रुपए 10 लाख), जनजातीय मंत्रालय, भारत सरकार (रुपए 10 लाख), पूर्वोत्तर परिषद (रुपए 40 लाख).

आत्मकथा - बॉक्सिंग रिंग में जीत के लिए अथक संघर्ष और जुनून की कहानी कहती मैरी कॉम की आत्मकथा "अनब्रेकेबल" एक पठनीय पुस्तक है. दिनांक 27 नवम्बर 2013 को हार्पर कॉलिन्स द्वारा 160 पृष्ठ की यह पुस्तक सहायक लेखिका ड़ीना सेरटो द्वारा लिखी गई है. अमेजॉन पर उपलब्ध इस पुस्तक की लिंक -

https://www.amazon.in/Unbreakable-Mary-Kom/dp/9351160092

बायोग्राफिकल स्पोर्ट्स फिल्म - दिनांक 5 सितंबर 2014 को मैरी कॉम की जीवनी पर आधारित हिन्दी फिल्म रिलीज़ हुई. निर्देशक ओमंग कुमार द्वारा निर्देशित एवं संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने मैरी की भूमिका अदा की है. 


( पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 से )

पद्म भूषण तीजन बाई, छत्तीसगढ़

पद्म विभूषण - 2019  लोक कला व गायन के क्षेत्र में

जन्म : 7 सितम्बर ' 1956 (हरतालिका तीज)
जन्म स्थान : गनियारी ग्राम, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
वर्तमान निवास : गनियारी ग्राम, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
पिता : हुनुकलाल परधा
माता : सुखवती?
पति: तुक्का राम

जीवन परिचय - छत्तीसगढ़ की ट्राइबल जाति गोंड की उपजाति परधान में तीजन का जन्म हुआ. छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्व तीजा के दिन जन्म हुआ, इसलिए इनकी माँ ने नाम रख दिया 'तीजन' . वे अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं. परिवार चटाइयाँ और झाडू बुनने का काम करता था, 'झाडू' थी उनकी पारिवारिक आजीविका.

तीजन बारह वर्ष की हुई. नाना के घर गई हुई थी. नाना ब्रजलाल पंडवानी गाते थे. गांव गांव में कार्यक्रम करते थे. कार्यक्रम अमूमन रात्रि को हुआ करते थे. ज्यादातर पुरुष ही दर्शक होते थे. एक रात नाना कार्यक्रम देकर पैदल घर को लौट रहे थे. देखा पीछे पीछे 12 वर्षीय नातिन चली आ रही है. अरे ! तू कहाँ थी तीजन ? नानाजी आप पंडवानी सुना रहे थे. मैं वहीँ मंदिर में बैठी सुन रही थी. नानाजी ने देखा रास्ता भी कट जाएगा, बच्ची से गप्पें भी हो जाएगी. उन्होनें पूछा - अच्छा तीजन , बताओ तो क्या सुना ? मानो तीजन इस निमन्त्रण के इंतजार में ही थी. शकुनि द्वारा जुए में छल से प्रारम्भ होकर, युद्घ की तैयारियों से लेकर, गीता संदेश, जहर उगलता दुर्योधन, द्रौपदी का स्वाभिमान, अर्जुन की वीरता, दुशासन का वध, भीम की गदा का कमाल, भीम और हनुमान का मिलन आदि आदि. छोटी सी तीजन, मधुर छत्तीसगढ़ी बोली और धाराप्रवाह इतनी कहानियाँ. नाना ब्रजलाल की आँखे डबडबा गई. उन्हें तीजन के भीतर का कलाकार दिख गया.

अब नानाजी अपने झौपडे में तीजन को पंडवानी गायन सिखाने लगे. उनके पास था महाभारत की कहानियों का कभी ना खत्म होने वाला खजाना. अभी एक माह ही हुए थे. तीजन की माँ को पता चला कि तीजन पंडवानी में रुचि ले रही है. भाई बहनों में सबसे बड़ी, ऊपर से लड़की, घर के कामों में हाथ बटाने की बजाए, गाने गाए ! वो भी 1968 में. रूढ़िवादी माँ तीजन को अपने घर लौटा लाई. और जम कर पीटा झाडू से. डर से थरथराती तीजन के होंठो से द्रौपदी की गाथा फूट पड़ी. माँ का क्रोध सातवें आसमान पर. शुरू हुआ बालिका तीजन पर यातनाओं का दौर. कमरे में बन्द कर दिया जाता. खाना नहीँ दिया जाता. ना अक्षर ज्ञान. ना स्कूल. ना खेल का मैदान. आसान नहीँ था उनका बचपन. अंततः तेरह साल की उम्र में ब्याह दी गई तीजन.

योगदान - तीजन का विवाह हो रहा था. किन्तु वो महाभारत के किस्से गुनगुना रही थी. आखिर बच्ची ही तो थी. उसकी मधुर बोली में पंडवानी बड़ी सुहावनी लगती. आस पास की महिलाएँ मौका पाकर तीजन को पंडवानी गाने बोलती. वो गाया करती. यह बात उसके ससुराल वालों को नहीँ सुहाती थी. एक बार नजदीक के
चंद्रखुरी गांव में पंडवानी का आयोजन था. आयोजकों ने बाल कलाकार तीजन की तारीफ़ें सुन रखी थी. सो निमन्त्रण भेज दिया. पर पति से अनुमति नहीँ मिली.

"रात्रि के प्रहर में 
छोड़ मोह माया का संसार .
निकल पड़े गौतम 
करने बुद्ध जीवन को साकार."

- सदैव गौतम ही यशोधरा को नहीँ छोड़ जाते, जरूरत पड़ने पर यशोधरा भी बुद्ध की राह पर पति को छोड़ निकल सकती है.

कुछ ऐसा ही घटित हुआ तीजन के जीवन में. चंद्रखुरी गांव का निमन्त्रण मिलने के बाद तीजन मंच पर चढ़ने को बेताब थी. रात का अंधियारा. सोता हुआ पति. तानपुरा लेकर तीजन पति के घर से निकल पड़ी. तानपुरे पर लगे मोरपंख को यूँ पकड़ा मानो कान्हा की अंगुली थाम रखी हो.

पहुँच गई चंद्रखुरी. मंच पर अपना पहला कार्यक्रम देने लगी. दर्शक आवाक हो कर सुन रहे थे. एक नई  कलाकार की मीठी आवाज में पंडवानी. कि अचानक पति वहाँ पहुंच गया और मंच पर चढ़ गया. तीजन के बालों को खींचकर उसे घर ले जाने का प्रयास करने लगा . किन्तु महाभारत की कथा सुना रही तीजन के तानपुरे में अर्जुन के गांडीव और भीम के गदा की शक्ति समा गई. जिसका प्रहार पड़ा मूर्ख पति की पीठ पर. भविष्य की ओर अग्रसर तीजन की राह रुक ना पायी. बल्कि आसान हो गई.

चंद्रखुरी गाँव के लोगों ने तीजन को कार्यकम के एवज में एक बोरी चावल दिए. तीजन ने उन्हें बेचकर अपनी अलग झोपड़ी बनवा ली. 14 वर्ष की अल्पायु में तीजन ने अपने रूढ़िवादी पति को तलाक दे दिया. ससुराल के साथ साथ मायके वालों ने भी तीजन से सम्बन्ध तोड़ लिए. पर मोहल्ले की औरतें मन ही मन तीजन के साहस की तारीफ़ें किया करती. असल में हर औरत तीजन में खुद को ढूंढने लगी. किसी ने तीजन को चावल दिए, तो किसी ने साड़ियाँ तो किसी ने बरतन. यूँ शुरू हो गई तीजन की नई गृहस्थी और नई जीवन गाथा.

वर्ष 1976. तीजन पंडवानी गाने लगी. तीजन की ख्याति बढ़ने लगी. वो 18 दिनोँ की पंडवानी गाया करती. उसके आयोजन में पाँच हजार से पचास हजार तक दर्शक जुटने लगे. मेले का सा महौल होता. लोग तम्बू लगाकर आयोजन स्थल पर ही 18 -18 दिन टीक जाते. रोज गायन होता. चढ़ावा चढ़ता. तीजन जब लौटती तो उसके साथ तीन चार बैलगाड़ियों में लदे अनाज, कपड़े, बरतन जैसे उपहार और छोली भरकर सिक्के हुआ करते.

तीजन साल में ऐसी तीन चार पंडवानी करने लगी. जैसे जैसे तीजन समृद्ध होने लगी. वैसे वैसे उसकी खोई हुई रिश्तेदारी लौटने लगी. झाडू से पीटने वाली माँ और रिश्ता तोड़ लेने वाले भाई फिर जुटने लगे.

ऐसे ही किसी पंडवानी गायन के कार्यक्रम में भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाटककार एवं कवि हबीब तनवीर ने तीजन के अनूठे प्रदर्शन को देखा. उनकी भाव भंगिमा, छत्तीसगढ़ी बोलने का अंदाज, तानपुरा पकड़ने की स्टाइल एवं मंच पर घूम घूम कर गाने की अदा से तनवीर प्रभावित हुए बिना ना रह सके. चूंकि तनवीर स्वयं छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे, सो भाषा पर तीजन की पकड़ को उन्होने बखूबी समझा. हबीब तनवीर तीजन को दिल्ली ले गए. वहाँ जिस कार्यक्रम में तीजन ने प्रस्तुति दी. उसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी मौजूद थीं. उन्होने स्वयं गले लगाकर तीजन की सराहना की.

निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल का फैमश टीवी शो था - 'भारत एक खोज' . उसके पांचवे एपिसोड से महाभारत की कथा स्टार्ट होती है. वर्ष 1988 में दूरदर्शन पर प्रदर्शित इस सीरियल में टीवी पर छा गई तीजन बाई. इसी के साथ पूरे देश में विख्यात हो गई पंडवानी और तीजन बाई.

तीजन को पंडवानी गायन के संस्कार नाना ब्रजलाल के अलावा उमेद सिंह देशमुख से मिले . तीजन रीतिकाल के महान कवि सबल सिंह चौहान की लिखी महाभारत की चौपाइयों दोहों को गाती हैँ .

पंडवानी है क्या ? कुरुक्षेत्र में लड़ा गया महाभारत युद्ध.  कौरव पांडवों के मध्य लड़ा गया युद्घ.  कुल 18 अक्षौहिणी सेनाओं द्वारा लड़ा गया युद्ध. अठारह दिनोँ तक चलने वाला युद्घ. रिश्ते नातों को ताक पर रख कर लड़ा गया युद्ध. शिष्य के द्वारा गुरु, भाई के द्वारा भाई, ताऊ चाचाओं द्वारा चक्रव्यूह रचकर भतीजे को मार दिए जाने वाला युद्ध. इन सबके पीछे श्रीकृष्ण की लीला. इसी पौराणिक कथा का गायन है पंडवानी.

"पंडवानी - पांडव वाणी अर्थात पांडवों की कथा"

पंडवानी में दो तरह की शैली विख्यात है वेदमती शैली एवं कापालिक शैली. वेदमती शैली में बैठकर गायन करते हैँ जबकि कापालिक में खड़े होकर. तीजन बाई ने कापालिक शैली में खास कथन शैली विकसित की. तीजन तानपुरा लेकर मंच पर एक कोने से दूसरे कोने तक घूमती. वाद्ययंत्रो पर बैठे साथी कलाकारों के साथ संवाद करती हुई तीजन पौराणिक कथाओं को वर्तमान किस्सों से जोड़कर सुनाने लगी. यह शैली श्रोताओं को भाने लगी. तीजन बाई निडर थी किन्तु उतनी ही सहज भी.

भारत के हर कोने में , हर गांव में, वहाँ की स्थानीय भाषा में, लोक गीत गाए जाते हैँ. उन लोकगीतों में छिपा होता है  इतिहास. हमारे देश पर कितने ही आक्रमण हुए. हमारी नालंदा यूनिवर्सिटी से लेकर पुरानी तमाम पुस्तकें नष्ट कर दी गई. पर ना हमारी संस्कृति नष्ट हुई. ना हमारा इतिहास नष्ट हो सका. क्योंकि हमारी पुरातन संस्कृति और इतिहास हमारे गांवो के लोकगीतों में समाहित है. लोक गीत अपने आप में संस्कृति के वाहक हैँ. इस सांस्कृतिक धरोहर को हम तक पहुँचाते हैँ लोकगीतों के गायक . इसी गौरवशाली परम्परा का हिस्सा है तीजन बाई.

6 जून 2018 को तीजन बाई को हार्ट अटैक आया. उन्हें आई सी यू में एडमिट कराया गया. इसके बावजूद आज भी इनके कार्यक्रम जारी हैँ. उनको आप निमन्त्रण भेजिए. वो अवश्य आएंगी. लोक कलाकार तीजन बाई साधक है. संगीत साधक.

विदेशों में भारत की सांस्कृतिक राजदूत हैँ तीजन बाई. वे जापान, जर्मनी, इंग्लैड, स्विट्जरलैंड, इटली, रूस, चाईना इत्यादि चालीस से ज्यादा देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैँ .

लोकमत समाचार में वंदना अत्रे लिखती हैँ कि मानो जितनी ऊंचाई तक हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणगिरी पर्वत को उठा कर उड़े थे. वृंदावन के कान्हा भी अपनी हथेली पर तीजन को बैठाकर उतनी ऊंचाइयों तक ले गए.

सम्मान व पुरस्कार - छत्तीसगढ़ के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार तीजन बाई को वर्ष 1988 में पद्मश्री एवं वर्ष 2003 में पद्म भूषण एवं 2019 पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया. वर्ष 2018 में फुकुओका सिटी इंटरनेशल फाऊंडेशन, जापान द्वारा तीजन बाई को वहाँ का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया गया. तीजनबाई को वर्ष 2016 में एम एस सुब्बालक्ष्मी शताब्दी सम्मान से सम्मानित किया गया. वहीँ 2003 में बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया . उन्हें 2007 में नृत्य शिरोमणि अवार्ड एवं 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 

( पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 से )


Wednesday, 30 December 2020

अगली पारी को तैयार : डॉ़ अरुण सज्जन

लोयला और डीबीएमएस जैसे अंग्रेजीदां गलियारों में हिन्दी का अध्यापन करने वाले अरुण सज्जन का जीवन वृत भी बड़ा दिलचस्प है। जैसे जैसे ये बूढ़े होते चले गए, इनका साहित्य जवाँ होता गया। एक ओर अरुण सज्जन 60वीं दहलीज पर खड़े हैं तो दूसरी ओर इनकी 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कोई साहित्यकार तभी सफल, जब या तो उसका लिखा लोगों द्वारा गुनगुनाया जाने लगे या उसका लिखा स्कूलों में पढ़ाया जाने लगे। मेरी जानकारी में अरुण सज्जन द्वारा रचित "भगवती चरण वर्मा की काव्य चेतना" एवं "रामचरितमानस- उत्तरकाण्ड : एक समीक्षा" यह दो पुस्तकें राँची विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन चुकी है। साथ ही तकनीकी मशीनों से चौतरफा घिरा हर शहरी व्यक्ति उनके काव्यसंग्रह "उजास" की इन पंक्तियों को अपने अंदर महसूस करना चाहता है -

जिन्दगी की धूप कभी छाँव लिख रहा हूँ ।
शहर का रौद्र रुप सौम्य गाँव लिख रहा हूँ ॥

महात्मा बुद्ध को जहाँ ज्ञान प्राप्त हुआ- उस बिहार के 'जिला गया' में जन्म लिया, इस्पात बनाने वाली धरती - झारखण्ड के जमशेदपुर को कर्मक्षेत्र बनाया और अपने साहित्य की सुगन्ध से उत्तरप्रदेश के वाराणसी तक को सुवासित किया, ऐसे अरुण सज्जन के विषय में केवल इतना लिखना काफी होगा कि उनके नाम के दोनों शब्द उनपर सटीक बैठते हैं। अरुण यानि सूर्य, जो अपने साहित्य व शिक्षा के प्रकाश से दूनिया में उजाला फैला रहे हैं। सज्जन यानि सभ्य व सरल, ऊपर से शिक्षक, उसमें भी साहित्यकार , मानों फलों से लदा आम का पेड़,  जो पत्थर भी मारो तो बदले में वो आम ही देगा।

साहित्य, लोककला व संस्कृति पर राजनीति का प्रभाव बढ़ चुका है। हिंदी साहित्यिक संस्थाएं प्राणहीन और निष्क्रिय हो रही हैं । पुस्तकालयों में कुर्सियाँ धूल फांक रही है एवं उनके भवन राजनैतिक समाजिक कार्यक्रमों के गवाह बनने को आतुर हैं। क्षेत्रीय भाषा के प्रति बढ़ती कट्टरता हिंदी से सास बहू वाली दूरी बढ़ाने पर तुली है। साहित्यिक संवैधानिक संस्थाओं की स्थिति चरमरा चुकी है, उनके द्वार पर चरण पादुका पूजकॉ की कतार लगी है। ऐसे में लोहा का उत्पादन करने वाले जमशेदपुर में स्वर्णरेखा नदी की लहरों के मुहाने पर या जुबली पार्क के खूबसूरत वातावरण में बैठकर अरुण सज्जन जैसा व्यक्ति साहित्य सृजन कर रहा है। इनके अध्ययन, शैक्षणिक अनुभव, साहित्य धर्मिता व रचनात्मकता का लाभ साहित्य पिपासु पाठकों, शिक्षार्थियों व आने वाली पीढ़ी को प्राप्त हो। श्री अरुण सज्जन जी की षष्ठीपूर्ति पर मेरी ओर से अभिवादन एवं चरणस्पर्श ।

नियमों से बंधी व्यवस्था के दौरान वर्ष 2021 में अरुण सज्जन लोयला स्कूल की सेवा से रिटायर्ड होंगे, किन्तु मैं इसे रिटायरमेंट नहीं मानता, मेरी नजर में ये एक शॉर्ट ब्रेक है ताकि दूसरी पारी दमदार खेली जा सके। जिस प्रकार यूएसए के राष्ट्रपति जो बिडेन ने 78 -79 वर्ष की आयु में इतिहास रच दिया, वैसे ही अरुण जी का परचम साहित्यिक दूनिया में फहरे, ऐसी शुभेच्छाएृँ -

संदीप मुरारका
जमशेदपुर
जनजातीय समुदाय के महान व्यक्तित्वों की जीवनियों की पुस्तक "शिखर को छूते ट्राइबल्स"  के लेखक