Wednesday, 30 December 2020

अगली पारी को तैयार : डॉ़ अरुण सज्जन

लोयला और डीबीएमएस जैसे अंग्रेजीदां गलियारों में हिन्दी का अध्यापन करने वाले अरुण सज्जन का जीवन वृत भी बड़ा दिलचस्प है। जैसे जैसे ये बूढ़े होते चले गए, इनका साहित्य जवाँ होता गया। एक ओर अरुण सज्जन 60वीं दहलीज पर खड़े हैं तो दूसरी ओर इनकी 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कोई साहित्यकार तभी सफल, जब या तो उसका लिखा लोगों द्वारा गुनगुनाया जाने लगे या उसका लिखा स्कूलों में पढ़ाया जाने लगे। मेरी जानकारी में अरुण सज्जन द्वारा रचित "भगवती चरण वर्मा की काव्य चेतना" एवं "रामचरितमानस- उत्तरकाण्ड : एक समीक्षा" यह दो पुस्तकें राँची विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन चुकी है। साथ ही तकनीकी मशीनों से चौतरफा घिरा हर शहरी व्यक्ति उनके काव्यसंग्रह "उजास" की इन पंक्तियों को अपने अंदर महसूस करना चाहता है -

जिन्दगी की धूप कभी छाँव लिख रहा हूँ ।
शहर का रौद्र रुप सौम्य गाँव लिख रहा हूँ ॥

महात्मा बुद्ध को जहाँ ज्ञान प्राप्त हुआ- उस बिहार के 'जिला गया' में जन्म लिया, इस्पात बनाने वाली धरती - झारखण्ड के जमशेदपुर को कर्मक्षेत्र बनाया और अपने साहित्य की सुगन्ध से उत्तरप्रदेश के वाराणसी तक को सुवासित किया, ऐसे अरुण सज्जन के विषय में केवल इतना लिखना काफी होगा कि उनके नाम के दोनों शब्द उनपर सटीक बैठते हैं। अरुण यानि सूर्य, जो अपने साहित्य व शिक्षा के प्रकाश से दूनिया में उजाला फैला रहे हैं। सज्जन यानि सभ्य व सरल, ऊपर से शिक्षक, उसमें भी साहित्यकार , मानों फलों से लदा आम का पेड़,  जो पत्थर भी मारो तो बदले में वो आम ही देगा।

साहित्य, लोककला व संस्कृति पर राजनीति का प्रभाव बढ़ चुका है। हिंदी साहित्यिक संस्थाएं प्राणहीन और निष्क्रिय हो रही हैं । पुस्तकालयों में कुर्सियाँ धूल फांक रही है एवं उनके भवन राजनैतिक समाजिक कार्यक्रमों के गवाह बनने को आतुर हैं। क्षेत्रीय भाषा के प्रति बढ़ती कट्टरता हिंदी से सास बहू वाली दूरी बढ़ाने पर तुली है। साहित्यिक संवैधानिक संस्थाओं की स्थिति चरमरा चुकी है, उनके द्वार पर चरण पादुका पूजकॉ की कतार लगी है। ऐसे में लोहा का उत्पादन करने वाले जमशेदपुर में स्वर्णरेखा नदी की लहरों के मुहाने पर या जुबली पार्क के खूबसूरत वातावरण में बैठकर अरुण सज्जन जैसा व्यक्ति साहित्य सृजन कर रहा है। इनके अध्ययन, शैक्षणिक अनुभव, साहित्य धर्मिता व रचनात्मकता का लाभ साहित्य पिपासु पाठकों, शिक्षार्थियों व आने वाली पीढ़ी को प्राप्त हो। श्री अरुण सज्जन जी की षष्ठीपूर्ति पर मेरी ओर से अभिवादन एवं चरणस्पर्श ।

नियमों से बंधी व्यवस्था के दौरान वर्ष 2021 में अरुण सज्जन लोयला स्कूल की सेवा से रिटायर्ड होंगे, किन्तु मैं इसे रिटायरमेंट नहीं मानता, मेरी नजर में ये एक शॉर्ट ब्रेक है ताकि दूसरी पारी दमदार खेली जा सके। जिस प्रकार यूएसए के राष्ट्रपति जो बिडेन ने 78 -79 वर्ष की आयु में इतिहास रच दिया, वैसे ही अरुण जी का परचम साहित्यिक दूनिया में फहरे, ऐसी शुभेच्छाएृँ -

संदीप मुरारका
जमशेदपुर
जनजातीय समुदाय के महान व्यक्तित्वों की जीवनियों की पुस्तक "शिखर को छूते ट्राइबल्स"  के लेखक








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