पद्म विभूषण - 2019 लोक कला व गायन के क्षेत्र में
जन्म : 7 सितम्बर ' 1956 (हरतालिका तीज)
जन्म स्थान : गनियारी ग्राम, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
वर्तमान निवास : गनियारी ग्राम, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
पिता : हुनुकलाल परधा
माता : सुखवती?
पति: तुक्का राम
जीवन परिचय - छत्तीसगढ़ की ट्राइबल जाति गोंड की उपजाति परधान में तीजन का जन्म हुआ. छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्व तीजा के दिन जन्म हुआ, इसलिए इनकी माँ ने नाम रख दिया 'तीजन' . वे अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं. परिवार चटाइयाँ और झाडू बुनने का काम करता था, 'झाडू' थी उनकी पारिवारिक आजीविका.
तीजन बारह वर्ष की हुई. नाना के घर गई हुई थी. नाना ब्रजलाल पंडवानी गाते थे. गांव गांव में कार्यक्रम करते थे. कार्यक्रम अमूमन रात्रि को हुआ करते थे. ज्यादातर पुरुष ही दर्शक होते थे. एक रात नाना कार्यक्रम देकर पैदल घर को लौट रहे थे. देखा पीछे पीछे 12 वर्षीय नातिन चली आ रही है. अरे ! तू कहाँ थी तीजन ? नानाजी आप पंडवानी सुना रहे थे. मैं वहीँ मंदिर में बैठी सुन रही थी. नानाजी ने देखा रास्ता भी कट जाएगा, बच्ची से गप्पें भी हो जाएगी. उन्होनें पूछा - अच्छा तीजन , बताओ तो क्या सुना ? मानो तीजन इस निमन्त्रण के इंतजार में ही थी. शकुनि द्वारा जुए में छल से प्रारम्भ होकर, युद्घ की तैयारियों से लेकर, गीता संदेश, जहर उगलता दुर्योधन, द्रौपदी का स्वाभिमान, अर्जुन की वीरता, दुशासन का वध, भीम की गदा का कमाल, भीम और हनुमान का मिलन आदि आदि. छोटी सी तीजन, मधुर छत्तीसगढ़ी बोली और धाराप्रवाह इतनी कहानियाँ. नाना ब्रजलाल की आँखे डबडबा गई. उन्हें तीजन के भीतर का कलाकार दिख गया.
अब नानाजी अपने झौपडे में तीजन को पंडवानी गायन सिखाने लगे. उनके पास था महाभारत की कहानियों का कभी ना खत्म होने वाला खजाना. अभी एक माह ही हुए थे. तीजन की माँ को पता चला कि तीजन पंडवानी में रुचि ले रही है. भाई बहनों में सबसे बड़ी, ऊपर से लड़की, घर के कामों में हाथ बटाने की बजाए, गाने गाए ! वो भी 1968 में. रूढ़िवादी माँ तीजन को अपने घर लौटा लाई. और जम कर पीटा झाडू से. डर से थरथराती तीजन के होंठो से द्रौपदी की गाथा फूट पड़ी. माँ का क्रोध सातवें आसमान पर. शुरू हुआ बालिका तीजन पर यातनाओं का दौर. कमरे में बन्द कर दिया जाता. खाना नहीँ दिया जाता. ना अक्षर ज्ञान. ना स्कूल. ना खेल का मैदान. आसान नहीँ था उनका बचपन. अंततः तेरह साल की उम्र में ब्याह दी गई तीजन.
योगदान - तीजन का विवाह हो रहा था. किन्तु वो महाभारत के किस्से गुनगुना रही थी. आखिर बच्ची ही तो थी. उसकी मधुर बोली में पंडवानी बड़ी सुहावनी लगती. आस पास की महिलाएँ मौका पाकर तीजन को पंडवानी गाने बोलती. वो गाया करती. यह बात उसके ससुराल वालों को नहीँ सुहाती थी. एक बार नजदीक के
चंद्रखुरी गांव में पंडवानी का आयोजन था. आयोजकों ने बाल कलाकार तीजन की तारीफ़ें सुन रखी थी. सो निमन्त्रण भेज दिया. पर पति से अनुमति नहीँ मिली.
"रात्रि के प्रहर में
छोड़ मोह माया का संसार .
निकल पड़े गौतम
करने बुद्ध जीवन को साकार."
- सदैव गौतम ही यशोधरा को नहीँ छोड़ जाते, जरूरत पड़ने पर यशोधरा भी बुद्ध की राह पर पति को छोड़ निकल सकती है.
कुछ ऐसा ही घटित हुआ तीजन के जीवन में. चंद्रखुरी गांव का निमन्त्रण मिलने के बाद तीजन मंच पर चढ़ने को बेताब थी. रात का अंधियारा. सोता हुआ पति. तानपुरा लेकर तीजन पति के घर से निकल पड़ी. तानपुरे पर लगे मोरपंख को यूँ पकड़ा मानो कान्हा की अंगुली थाम रखी हो.
पहुँच गई चंद्रखुरी. मंच पर अपना पहला कार्यक्रम देने लगी. दर्शक आवाक हो कर सुन रहे थे. एक नई कलाकार की मीठी आवाज में पंडवानी. कि अचानक पति वहाँ पहुंच गया और मंच पर चढ़ गया. तीजन के बालों को खींचकर उसे घर ले जाने का प्रयास करने लगा . किन्तु महाभारत की कथा सुना रही तीजन के तानपुरे में अर्जुन के गांडीव और भीम के गदा की शक्ति समा गई. जिसका प्रहार पड़ा मूर्ख पति की पीठ पर. भविष्य की ओर अग्रसर तीजन की राह रुक ना पायी. बल्कि आसान हो गई.
चंद्रखुरी गाँव के लोगों ने तीजन को कार्यकम के एवज में एक बोरी चावल दिए. तीजन ने उन्हें बेचकर अपनी अलग झोपड़ी बनवा ली. 14 वर्ष की अल्पायु में तीजन ने अपने रूढ़िवादी पति को तलाक दे दिया. ससुराल के साथ साथ मायके वालों ने भी तीजन से सम्बन्ध तोड़ लिए. पर मोहल्ले की औरतें मन ही मन तीजन के साहस की तारीफ़ें किया करती. असल में हर औरत तीजन में खुद को ढूंढने लगी. किसी ने तीजन को चावल दिए, तो किसी ने साड़ियाँ तो किसी ने बरतन. यूँ शुरू हो गई तीजन की नई गृहस्थी और नई जीवन गाथा.
वर्ष 1976. तीजन पंडवानी गाने लगी. तीजन की ख्याति बढ़ने लगी. वो 18 दिनोँ की पंडवानी गाया करती. उसके आयोजन में पाँच हजार से पचास हजार तक दर्शक जुटने लगे. मेले का सा महौल होता. लोग तम्बू लगाकर आयोजन स्थल पर ही 18 -18 दिन टीक जाते. रोज गायन होता. चढ़ावा चढ़ता. तीजन जब लौटती तो उसके साथ तीन चार बैलगाड़ियों में लदे अनाज, कपड़े, बरतन जैसे उपहार और छोली भरकर सिक्के हुआ करते.
तीजन साल में ऐसी तीन चार पंडवानी करने लगी. जैसे जैसे तीजन समृद्ध होने लगी. वैसे वैसे उसकी खोई हुई रिश्तेदारी लौटने लगी. झाडू से पीटने वाली माँ और रिश्ता तोड़ लेने वाले भाई फिर जुटने लगे.
ऐसे ही किसी पंडवानी गायन के कार्यक्रम में भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाटककार एवं कवि हबीब तनवीर ने तीजन के अनूठे प्रदर्शन को देखा. उनकी भाव भंगिमा, छत्तीसगढ़ी बोलने का अंदाज, तानपुरा पकड़ने की स्टाइल एवं मंच पर घूम घूम कर गाने की अदा से तनवीर प्रभावित हुए बिना ना रह सके. चूंकि तनवीर स्वयं छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे, सो भाषा पर तीजन की पकड़ को उन्होने बखूबी समझा. हबीब तनवीर तीजन को दिल्ली ले गए. वहाँ जिस कार्यक्रम में तीजन ने प्रस्तुति दी. उसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी मौजूद थीं. उन्होने स्वयं गले लगाकर तीजन की सराहना की.
निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल का फैमश टीवी शो था - 'भारत एक खोज' . उसके पांचवे एपिसोड से महाभारत की कथा स्टार्ट होती है. वर्ष 1988 में दूरदर्शन पर प्रदर्शित इस सीरियल में टीवी पर छा गई तीजन बाई. इसी के साथ पूरे देश में विख्यात हो गई पंडवानी और तीजन बाई.
तीजन को पंडवानी गायन के संस्कार नाना ब्रजलाल के अलावा उमेद सिंह देशमुख से मिले . तीजन रीतिकाल के महान कवि सबल सिंह चौहान की लिखी महाभारत की चौपाइयों दोहों को गाती हैँ .
पंडवानी है क्या ? कुरुक्षेत्र में लड़ा गया महाभारत युद्ध. कौरव पांडवों के मध्य लड़ा गया युद्घ. कुल 18 अक्षौहिणी सेनाओं द्वारा लड़ा गया युद्ध. अठारह दिनोँ तक चलने वाला युद्घ. रिश्ते नातों को ताक पर रख कर लड़ा गया युद्ध. शिष्य के द्वारा गुरु, भाई के द्वारा भाई, ताऊ चाचाओं द्वारा चक्रव्यूह रचकर भतीजे को मार दिए जाने वाला युद्ध. इन सबके पीछे श्रीकृष्ण की लीला. इसी पौराणिक कथा का गायन है पंडवानी.
"पंडवानी - पांडव वाणी अर्थात पांडवों की कथा"
पंडवानी में दो तरह की शैली विख्यात है वेदमती शैली एवं कापालिक शैली. वेदमती शैली में बैठकर गायन करते हैँ जबकि कापालिक में खड़े होकर. तीजन बाई ने कापालिक शैली में खास कथन शैली विकसित की. तीजन तानपुरा लेकर मंच पर एक कोने से दूसरे कोने तक घूमती. वाद्ययंत्रो पर बैठे साथी कलाकारों के साथ संवाद करती हुई तीजन पौराणिक कथाओं को वर्तमान किस्सों से जोड़कर सुनाने लगी. यह शैली श्रोताओं को भाने लगी. तीजन बाई निडर थी किन्तु उतनी ही सहज भी.
भारत के हर कोने में , हर गांव में, वहाँ की स्थानीय भाषा में, लोक गीत गाए जाते हैँ. उन लोकगीतों में छिपा होता है इतिहास. हमारे देश पर कितने ही आक्रमण हुए. हमारी नालंदा यूनिवर्सिटी से लेकर पुरानी तमाम पुस्तकें नष्ट कर दी गई. पर ना हमारी संस्कृति नष्ट हुई. ना हमारा इतिहास नष्ट हो सका. क्योंकि हमारी पुरातन संस्कृति और इतिहास हमारे गांवो के लोकगीतों में समाहित है. लोक गीत अपने आप में संस्कृति के वाहक हैँ. इस सांस्कृतिक धरोहर को हम तक पहुँचाते हैँ लोकगीतों के गायक . इसी गौरवशाली परम्परा का हिस्सा है तीजन बाई.
6 जून 2018 को तीजन बाई को हार्ट अटैक आया. उन्हें आई सी यू में एडमिट कराया गया. इसके बावजूद आज भी इनके कार्यक्रम जारी हैँ. उनको आप निमन्त्रण भेजिए. वो अवश्य आएंगी. लोक कलाकार तीजन बाई साधक है. संगीत साधक.
विदेशों में भारत की सांस्कृतिक राजदूत हैँ तीजन बाई. वे जापान, जर्मनी, इंग्लैड, स्विट्जरलैंड, इटली, रूस, चाईना इत्यादि चालीस से ज्यादा देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैँ .
लोकमत समाचार में वंदना अत्रे लिखती हैँ कि मानो जितनी ऊंचाई तक हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणगिरी पर्वत को उठा कर उड़े थे. वृंदावन के कान्हा भी अपनी हथेली पर तीजन को बैठाकर उतनी ऊंचाइयों तक ले गए.
सम्मान व पुरस्कार - छत्तीसगढ़ के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार तीजन बाई को वर्ष 1988 में पद्मश्री एवं वर्ष 2003 में पद्म भूषण एवं 2019 पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया. वर्ष 2018 में फुकुओका सिटी इंटरनेशल फाऊंडेशन, जापान द्वारा तीजन बाई को वहाँ का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया गया. तीजनबाई को वर्ष 2016 में एम एस सुब्बालक्ष्मी शताब्दी सम्मान से सम्मानित किया गया. वहीँ 2003 में बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया . उन्हें 2007 में नृत्य शिरोमणि अवार्ड एवं 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
( पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 से )
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