Wednesday, 7 August 2019

मन के हारे हार

मन के हारे हार सदा रे, मन के जीते जीत,
मत निराश हो यों, तू उठ, ओ मेरे मन के मीत ॥ - कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की इन पंक्तियो को यदि कोई जीवन का मंत्र बना ले , तॊ उसकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता ।

मन कें हारे हार है , मन के जीते जीत । इस विषय को ठीक से समझने से लिए ज्यादा कुछ नहीं अपने आस पास की या इतिहास की कुछेक घटनाओ को देख लेना काफी होगा । जैसे कि

आज से 22 साल पहले वर्ष 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहार वाजपेयी जी ने संसद में कहा था- “मेरी बात को गांठ बांध लें, आज हमारे कम सदस्य होने पर आप कांग्रेसी हम पर हंस रहे हैं लेकिन वो दिन आएगा जब पूरे भारत में हमारी सरकार होगी, उस दिन देश आप पर हंसेगा और आपका मजाक उड़ायेगा।”  
आज वर्ष 2019 मेंं माननीय अटल जी की बात सत्य हो गई । क्यों हुईं ? इसलिए कि भाजपा मतों से भले हार गई थी , पर मन से नहीं हारी थी ।

अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति थे अब्राहम लिंकन । वह एक ऐसे राष्ट्रपति थे जो व्हाइट हाउस पहुंचने से पहले आधा दर्जन चुनाव हार चुके थे, उन्हें एक बार दिवालिया तक घोषित किया जा चुका था। किन्तु वे मन से नहीं हारे थे औऱ इसी मन की जीत ने उन्हें अमेरीका का राष्ट्रपति बना दिया ।

बिजली के बल्ब के आविष्कार करने में एडिसन को कड़ी मेहनत करनी पड़ी. एडिसन  बल्ब बनाने में 10 हजार बार से अधिक बार असफल हुए. किन्तु मन से नहीं हारे । अंततः उनकी जीत हुईं , जिसपर उन्होंने कहा 'मैं कभी नाकाम नहीं हुआ बल्कि मैंने 10,000 ऐसे रास्ते निकाले लिए जो मेरे काम नहीं आ सके' ।

इस कड़ी मेंं एक महत्वपूर्ण नाम है अरुणिमा सिन्हा , जिन्हें अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए गया । उनका एक पैर काटना पड़ा । उसके बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट  को फतह कर लिया । क्योंकि पाँव कटने कें बाढ़ भी अरुणिमा मन से नहीं हारी ।

दोस्तों ऐसे हजारों उदाहरण आपको अपने आस पास या स्वयं खुद के भीतर मिलेंगे , जब यदि आपने किसी विषय मेंं हार कर हथियार डाल दिया तॊ विफल कहलाओगे । किन्तु यदि आप अपने मन को जीत लीजिए , बार बार प्रयास कीजिए , सफलता तॊ हाथ लगेगी ही , इतिहास मेंं भी आपका नाम अंकित होगा ।

क्योंकि
दिशा दिशा बनती अनुकूल, भले कितनी विपरीत।
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ॥

लहर लहर से उठता हर क्षण जीवन का संगीत
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ॥

संदीप मुरारका
6 अगस्त 2019
श्रावण षष्ठी शुक्ला २०७६

Saturday, 4 May 2019

निर्वाचन 2019

पप्पू वप्पू ना बनो ,
ना बनो बेवजह चौकीदार ।

चुनो ऐसी मजबूत सरकार ,
जो बढ़ाए खेती , उद्योग व व्यापार ॥

ममता माया का मोह छोड़ो ,
अखिलेश तेजस्वी से अब नाता तोड़ो ।

उठाओ मतदान का हथियार ,
काश्मीर मेंं भी हो केन्द्र की सरकार ॥

स्कूलों मेंं एडमिशन आसान हो ,
नर्सिग होम डाक्टरों पर कड़ी लगाम हो ।

व्यापारी कृषक को सम्मान मिले ,
छोटे उद्यमी मजदूरों को भरपूर काम मिले ॥

जाति पाति का चक्कर मिटे ,
आरक्षण वारक्षण अब दूर हटे ।

फाइलों का लटकना बन्द हो ,
बिन पैसा पैरवी भी दस्तखत हो ॥

Sunday, 29 July 2018

आओ मृत्यु

आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ,
वरण करूँ तुम्हारा ।

श्वेत चादर तुम लेते आना ,
देह को खूब सजाना ।

मिली कब्र यदि मुझको , आह !
उस ज़मी पर मेरा राज होगा ।

जला दिया गया यदि मैं ,
तो नदियों मेंं मेरा संसार होगा ।

मिलेगा ना कोई आशिक ,
तुमको मुझ जैसा ।

आओ तुम भी मुझको वरण करो ,
करना है कल जो वो आज करो ।

मिलकर उनसे कहना है -
निवेदन यह स्वीकार हो -

हर जगह विलम्ब परमात्मा ,
ये न्याय सही नहीं ।

जिस जन्म के हों अपराध ,
उसी जन्म मेंं सजा हो ।

जिस जन्म मेंं हों कर्म अच्छे ,
वह जन्म सफल हों ।

पूर्वजन्म की पोथी के आधार पर ,
ना चलाओ दुनिया ।

स्वयं पर शक होने लगता है ।
बेवजह आप पर भी ......।

सो अब इंतजार ना कराओ ,
आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ।

वरण करूँ तुम्हारा,
आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ॥

29/7/2018

Saturday, 14 July 2018

मातृभूमि

मातृभूमि

पूरे विश्व में लगभग 195 देश हैं , जिसमें एक मात्र अपना भारत देश ऎसा है जहाँ मातृभूमि को माँ के रूप में पूजा जाता है । भारत माता एक मूर्ती या केवल मानचित्र ही नहीं बल्कि 125 करोड़ देशवासियों की आस्था का प्रतिक है । जिनका मुकुट हिमालय पर्वत है तो उनके चरणों को नित्य कन्याकुमारी धोती है । जिनके दायें हाथ में जैसलमेर का रेगिस्तान है तो बायाँ हाथ अरुणाचल प्रदेश के आर्किड फूलों से सुसज्जित है ।

कहते हैं "जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "अर्थात् जननी यानि माँ और मातृभूमि यानि देश दोनों ही स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है ।

जिस प्रकार माँ का प्यार, दुलार व वात्सल्य अतुलनीय होता है , उसी प्रकार जन्मभूमि की महत्ता हमारे समस्त भौतिक सुखों से कहीं अधिक है । लेखकों, कवियों व महामानवों ने जन्मभूमि की गरिमा और उसके गौरव को जन्मदात्री के तुल्य ही माना है ।

जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा अपनी छाती के दूध से उसका लालन-पालन करती है, उसी प्रकार मातृभूमि अपनी उपजाऊ छाती से अनाज फल मूल सब्जी उत्पन्न करती है और अपने देशवासियों का भरण पोषण करती है ।

मातृभूमि के लिए कवि गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' लिखते हैं -

“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”

किन्तु क्या मातृभूमि केवल देने के लिए है ? हमारा उसके प्रति कोई कर्तव्य नहीं ? ऎसे ढेरों सवाल हैं जिन्हें संक्षिप्त शब्दों मेँ समेटना मुश्किल है । आज जो ट्रेंड चल रहा है कि पैदा भारत मेँ होंगे , खाएँगे इसी भूमि मेँ उपजा अनाज , शिक्षा यहीं प्राप्त करेंगे , डिग्री अपने देश की लेंगे औऱ चंद ज्यादा पैसों के लिए रोजगार विदेशों मेँ करेंगे । यानि जिस माँ (मातृभूमि ) ने आपको इस योग्य बनाया उसे सेवा ना देकर अपनी प्रतिभा का उपयोग वैसे देश के लिए जहाँ आपको दोयम दर्जे का समझा जाता है । इस मानसिकता को बदल कर हमें युवा भारत , योग्य भारत , प्रतिभाशाली भारत , संभावनाओं से भरपूर भारत , 21वीं सदी का नेतृत्वकर्ता भारत का निर्माण करना है । मातृभूमि पर शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की एक प्रसिद्ध कविता की दो पंक्तियाँ देश के बाहर नौकरी कर रहे युवाओं के लिए प्रेरक हो सकती हैं -

"तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ ,
मन औऱ देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ । "

घर सम्पति को चोर उच्चकों से बचाने के लिए ताले व सुरक्षा की जरूरत पड़ती है , वैसे ही मातृभूमि की रक्षा कोई आसान कार्य नहीं है । हमारी मातृभूमि की सीमाएँ या तो सियाचिन जैसे ठंडी जगह पर है या राजस्थान के रेगिस्तान मेँ , या बिहार के नक्सल क्षेत्र मेंं है तो कहीं समंदर के गहरे पानी के उस पार है । दुश्मन देश घात लगाकर हमारी मातृभूमि को आघात पहुँचाने के लिए बैठे हैं , पर यदि हम सुरक्षित हैं , हमारी सीमा सुरक्षित है , हमारी मातृभूमि सुरक्षित है तो उसका श्रेय जाता है हमारी सशक्त सेना औऱ उसके जवानों को । जिनके सम्मान मेँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा कविता मेँ लिखा था -

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                  जिस पर जावें वीर अनेक॥

- आकांक्षा अग्रवाल केभाषण प्रतियोगिता के  लिए लिखे गए शब्द , जिसमें उसे प्रथम पुरस्कार मिला ।

Sunday, 3 June 2018

वर्तमान राजनीति

मतगणना केंद्र ,
और उसके बाहर बने ,
प्रत्याशियों के शामियाने ।

भीड़भाड़ चहलपहल ,
रहरहकर कभी किसी टेंट ,
कभी किसी टेंट से आते नारों का शोर ।

हर एक घंटे पर ,
एक राउंड का रिजल्ट आता ,
और बाहर एक टेंट खाली हो जाता ।

तीन बजने चले थे ,
सारे टेंट खाली पड़े थे ,
केवल दो दलों के ही लोग बचे थे ।

दोनों पार्टियों में
सौ वोटों का था अंतर ,
कोई भी जीत सकता था ।

ताशा पार्टी , गुलाल ,
पटाखों , खुली जीप की व्यवस्था ,
दोनों दलों की ओर से की जा चुकी थी ।

वहीं , कुछ दूर पर ,
एक कार में बैठकर ,
एक युवक भी इंतजार में था ।

आगे सीट पर फूलमाला ,
पीछे सीट पर दोनों दल के ,
झण्डे व दुपट्टे गाड़ी में रखे थे ।

इतने में विजय घोष हुआ ,
जीत का सर्टिफिकेट प्राप्त कर ,
जुलूस विधायक जी को लेकर आ रहा ।

मौके की तलाश में ,
कार वाला वह युवक ,
दुपट्टा पहन फूलमाला ले तैयार खड़ा ।

देख उसकी लम्बी गाड़ी ,
अपनी पार्टी का झण्डा दुपट्टा ,
जुलूस स्वागत करवाने को रुका ।

गले में माला पहनाते ,
विधायक जी के पाँव छूते ,
दूसरे दिन अखबार में यही तस्वीर छपी ।

सुना है ,
युवक विधायक प्रतिनिधि है ,
यही राजनीति की असल स्थिति है ।

संदीप मुरारका
रविवार 3 जून'18
ज्येष्ठ कृष्ण 5 विक्रम सम्वत् 2075

Saturday, 28 April 2018

जी ली गई जिंदगी


आती हो चित्रकारी तो तुझे कैनवास पर उकेर दूँ ,
आती हो कविता तो तुझे सुंदर शब्दों में बदल दूँ ॥

तुम रंग नहीं मेरे लिये , कि लाल हरे पीले नीले ,
गुलाबी भूरे काले, सीमित रंगों में तुम्हें समेट सकूं ।

तुम वर्णमाला के अक्षर भी तो नहीं हो ,
कि तुम्हें स्वर व्यंजन में विभाजित कर दूँ ।

तुम खुशी हो पैदा होने की , तुम रुदन हो  भूख की ,
तुम खुशी हो खिलौने की , तुम चिंता हो परीक्षा की ।

फूटे घुटने , फटी पैंट , खरोंच हो तुम ।
लूडो , पतंग , कैरम और क्रिकेट हो ।

तुम जिद हो एक अदद साईकिल की ,
तुम गर्ल फ्रेंड के गिफ्ट की टेंशन हो ।

तुम कॉलेज की बंक की गई क्लास हो ,
तुम बाईक में बैठ घूमने वाली दोस्त हो ।

तुम कम्पीटीशन इग्जाम की असफलता हो ,
जो ना मिली, उस नौकरी का अफसोस हो ।

बिजनेस का स्ट्रगल हो यार तुम ,
उधार पर सुने ताने हो जान तुम ।

मिली हर छोटी मोटी सफलता तुम ही तो हो ,
और हर बड़ी असफलता भी तो तुम ही हो ।

दर्द हो तुम , अपमान हो तुम , टूटे सपने हो ,
मिला हर सम्मान और प्यार भी तुम ही हो ।

दुःख में निकला हुआ हर आँसू तुम हो ,
मस्ती में भरी मुस्कान भी तो तुम ही हो ।

तुम उम्मीद हो , तुम सफर हो , तुम गम हो ,
लिख सकूँ जितना तुमको उतना ही कम हो ।

अरे मेरी जान , जनेमन, जानेजीगर ,जानेजहाँ ,
तुम साया हो मेरा , मेरी जी ली गई जिंदगी हो ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 28 अप्रैल'18 शनिवार
वैशाख शुक्ल 13 विक्रम सम्वत ' 2075

आज मेरे दोस्त अमित -रितु रुँगटा की शादी की 19वीं वर्षगाँठ है , उसके घर पर कीर्तन का आयोजन था , अपन ठहरे भजन कीर्तन से दूरी वाले , सो वहाँ बैठे बैठे लिखी गई ये पंक्तियों - अमित तेरे दोसा और गोल्गप्पो के नाम । जियो मेरे दोस्त , बनी रहे तुम दोनों की जोड़ी । Love you.

Wednesday, 4 April 2018

कमबख्त वो

Co- education मॆं std 11 मॆं पढ़ने वाला एक लड़का मन ही मन अपनी Classmate कॊ चाहता था  , पर  इज़हार नहीँ कर पाता , उसके मन मॆं अपनी प्रेयसी के प्रति उमड़ने वाले विचारों पर कुछ पंक्तियां -

आजकल किताबों मॆं भी वो नजर आया करती है ,
कलम भी मेरी उसी का नाम लिख जाया करती है ।

और बैठ जाती है जिस दिन बगल मॆं वो मेरे ,
हाय ,मेरी तो साँसें ही अटक जाया करती है ॥

रिंग टोन भी उसकी मुझको बहुत भाया करती है ,
मेरी मोबाईल के स्क्रीन पर भी वही छाया करती है ।

और अपने हाथों से छू लेती है हाथ जिस दिन मेरे  ,
हाय वो हाथ देखते देखते मेरी रात बीत जाया करती है ॥

कि आँखों मॆं बड़ी गहराई है उसके ,
हर अदा मानो अंगड़ाई है उसके ।

बाते करते करते कभी होठों कॊ समीप ले आया करती है ,
कमबख्त बिना पिये मुझे चढ़ सी जाया करती है ॥

कभी शोख चंचल चतुर चपला लगती है ,
कभी सीधी सादी भोली अबला लगती है ।

और केन्टिन मॆं पी लेती है कभी कॉफी मेरे साथ ,
कमीने दोस्तों पर मेरे बिजली गिर जाया करती है ॥

वो सुंदर सलोनी प्यारी सी मूरत है,
मानो उसके रुप मॆं स्वयं कुदरत है ।

बाईक पर जब कभी वो सिमट जाया करती है ,
कमबख्त आँखे मेरी रास्ता भूल जाया करती है ॥

पहन कर आती है जिस दिन स्कर्ट वो ,
पूरे कॉलेज मॆं अकेले कहर ढाया करती है ।

सरस्वती पूजा के दिन जब लिपटकर साड़ी मॆं आया करती है ,
हाय,मुझको तो उस दिन उसमॆं ही देवी दिख जाया करती है ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 2.11.2016 बुधवार
विक्रम सम्वत 2073, कार्तिक मास , शुक्ल पक्ष तृतीया