लोग कहते हैं कि वो रोज़ आया करता था ,
पर मैंने नहीँ देखा उसे काफी दिनो से ,
सच्ची ! या तो वो किसी डर से छिप जाया करता था,
या मेरी छत छोड़ बाकियों के आया करता था ।
सच में पिछली कई रातें मैंने अँधेरों में बीता दी ,
उसके इंतजार में अपनी आँखे भी सुज़ा ली ।
पर हाँ , कल मिला वो ,
अब कोई शिकायत नहीँ मुझे ।
कहा उसने मुझे , अब रोज़ मिला करेगा ।
खुली महफिल में भी ,
साथ कभी कभी दिया करेगा ।
कह दिया मैंने भी उससे ,
ए चाँद ! यूँ ना रुठा कर ।
हो शिकायत कोई तुम्हे ,
तो सीधे मुझसे कहा कर ।
मिल बैठ बातो को हम सुलटा लिया करेंगे ।
समझौता हो चुका हमदोनो में अब ।
ए मयंक ,
माना कि प्रतिनिधि है तू समय का ।
पर दोस्ती का भी लिहाज कर लिया कर ।
ए निशापति ,
दोस्ती बचपन में खीर वाली याद कर लिया कर ।
माना कि तोड़े मैंने अनुशासन कई तेरे ।
पर तोड़ी थी उस समय प्यालियाँ कई तूने मेरी भी ।
ए शशि ,
उन अपराधों को तू भी तो दिल पे धरा कर ।
चल हटा , अब न रूठना ना मैं तुझको भुलुँगा ।
पर यार , मेरी ही खिड़की पर नहीँ ,
सबकी पर एक बार तू दिख जाया कर ।
सच तेरे बिना 'रात' बहुत काली होती है ।
अरे अमावस में तो , तैयारियाँ रहती है दिये की ।
पर बिन बताये ना आने से तेरे ,
रातें नरक सी मालूम होती है ॥
संदीप मुरारका
दिनांक 11 जनवरी 2017 बुधवार
सम्वत 2073 पौष शुक्ल चतुर्दशी