विचित्र ये दुनिया , विचित्र है ये संसार ,
अप्रतिम सौंदर्य की मूर्ति थे श्रीकृष्ण ,
स्वयं भगवान श्री विष्णु के अवतार ।
बावजूद करना पड़ा प्रभु को अपहरण ,
करने रुक्मणि के साथ विवाह संस्कार ॥
सत्यभामा , सत्या , कालिंदी और मित्रविंदा,
बनी पटरानी लक्ष्मणा, जाम्बवन्ती औ' भद्रा ॥
भय मुक्त करने पृथ्वी को , किया नरकासुर का संहार , मुक्त हुई उसके बंधन से राजकुमारियाँ सोलह हजार ,
देकर स्थान पत्नी का, किया केशव ने सबका उद्धार ॥
अलग अलग महल हर रानी का , अलग अलग ठाट ,
गोविंद की लीलाओं से , द्वारका नगरी थी बाग बाग ।
खुश थी सभी रानियाँ, जनता की भी खुशियाँ अपार ,
रोज़ मनाते होली दिवाली , राजा प्रजा और रिश्तेदार ॥
द्वारका में मनता था उत्सव रोज़ , संगीत साज शृंगार ,
इधर रोती ब्रज की गोपियाँ, लूट गया था जिनका प्यार ॥
इधर गोपियाँ, उधर रानियां एक सौ आठ सोलह हजार ,
फ़िर भी अतृप्त मन , टूटा दिल, ह्रदय में शून्य आकार ।
कौन थी वो ? छिन लिया जिसने गोविंद का चैन ,
फीकी फीकी रहती जिसके बिना गिरधर की रैन ।
किया नहीँ विवाह उससे , दिया नहीँ अपना नाम ,
पर हर मंदिर में आज उसी के साथ दिखते श्याम ।
अधूरी है उसके बिना, गिरधर मुरारी की हर मूरत ,
सूना है हर मंदिर, जहाँ न हो उस प्रेयसी की सूरत ।
अजी! ठकुरानी थी वो बरसाने की, राधा उसका नाम ,
दुनिया दीवानी घनश्याम की , राधा के दीवाने श्याम ॥
संदीप मुरारका
दिनांक 7 जनवरी'2017 शनिवार
सम्वत 2073, पौष शुक्ल नवमी
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