Wednesday, 11 January 2017

चाँद

लोग कहते हैं कि वो रोज़ आया करता था ,
पर मैंने नहीँ देखा उसे काफी दिनो से ,

सच्ची ! या तो वो किसी डर से छिप जाया करता था,
   या मेरी छत छोड़ बाकियों के आया करता था ।

सच में पिछली कई रातें मैंने अँधेरों में बीता दी ,
उसके इंतजार में अपनी आँखे भी सुज़ा ली ।

पर हाँ , कल मिला वो ,
अब कोई शिकायत नहीँ मुझे ।
कहा उसने मुझे , अब रोज़ मिला करेगा ।

खुली महफिल में भी ,
साथ कभी कभी दिया करेगा ।

कह दिया मैंने भी उससे ,
ए चाँद ! यूँ ना रुठा कर ।
हो शिकायत कोई तुम्हे ,
तो सीधे मुझसे कहा कर ।
मिल बैठ बातो को हम सुलटा लिया करेंगे ।

समझौता हो चुका हमदोनो में अब ।
ए मयंक ,
माना कि प्रतिनिधि है तू समय का ।
पर दोस्ती का भी लिहाज कर लिया कर ।

ए निशापति ,
दोस्ती बचपन में खीर वाली याद कर लिया कर ।

माना कि तोड़े मैंने अनुशासन कई तेरे ।
पर तोड़ी थी उस समय प्यालियाँ कई तूने मेरी भी ।

ए शशि ,
उन अपराधों को तू भी तो दिल पे धरा कर ।

चल हटा , अब न रूठना ना मैं तुझको भुलुँगा ।
पर यार , मेरी ही खिड़की पर नहीँ ,
सबकी पर एक बार तू दिख जाया कर ।

सच तेरे बिना 'रात' बहुत काली होती है ।
अरे अमावस में तो , तैयारियाँ रहती है दिये की ।
पर बिन बताये ना आने से तेरे ,
रातें नरक सी मालूम होती है ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 11 जनवरी 2017 बुधवार
सम्वत 2073 पौष शुक्ल चतुर्दशी

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