Sunday, 16 July 2017

लवकुश

सजा अयोध्या नगरी का भव्य राजदरबार ,
बैठी तीनों मातायें , गुरुजन , राजा जनक ,
मित्र सुग्रीव , भ्राता लक्ष्मण,भरत, शत्रुघ्न
भक्त हनुमान और जनता हजारों हजार ।

श्वेत चँवर,स्वर्ण सिंहासन, देदिप्यमान
कुकुत्स्थकूल भूषण , दशरथ नन्दन ,
रघुकूल तिलक, वीर धनुर्धारी ऐश्वर्यवान
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम विराजमान ।

मुनीकुमारों का वेष , हाथों में वीणा ,
जिह्वा पे बैठी मानो माँ शारदे स्वयं ,
कोयल से मीठे स्वर में गाते बालक ,
महर्षि वाल्मीकि का रचा महाकाव्य।

राम का दरबार , राम की गाथा ,
सबकी आँखे नम, चेहरा मौन है,
कौंध रहा सवाल सबके ह्रदय में ,
आखिर ये दोनों गायक कौन है ?

जानकी जनकनंदिनी, दशरथपुत्रवधू ,
भगवती सीता की कथा जब सुनाई ,
पतिव्रता सतीसाध्वी की भूल क्या थी ,
राम की सभा भी तय नहीँ कर पायी ।

सुन सभा में सारे लोग जड़ हो गये ,
रुंध गये गले, बहने लगी अश्रुधारा ,
शिष्य वाल्मीकि के, माँ है जानकी
पिता श्रीराम , लवकुश नाम हमारा ।

गुरुजनों के हाथ आशिष देने लगे ,
दादी कौशल्या के होंठ फ़ड़कने लगे ,
चाचा हुये सारे ह्रदय से बहुत प्रसन्न ,
हनुमान ने किया मन ही मन वंदन ।

छोड़ सिंहासन , राजा राम खड़े हुये ,
सब पिता राम की ओर देखने लगे ,
कि सोचा सभी ने , अब दौडेगें प्रभु ,
और अपने पुत्रों को गले से लगायेंगे ।

राम तो राजा ठहरे ,पहले राजधर्म निभायेंगे ,
कड़कने लगी बिजली , फट गया आसमान ,
जब माँगा श्रीरामचंद्र ने पुत्र होने का प्रमाण ?
लवकुश की गाथा सिखाती जीवन नहीँ आसान ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 16 जुलाई'17 रविवार
श्रावण मास कृष्ण 7 विक्रम सवंत 2074

Sunday, 28 May 2017

द्वादश ज्योतिलिँग

बोलबम बोलबम के नारों से देवघर गूँज जावे,
जब कांवरिया बाबा वैघनाथ को जल चढावे ।

गुजरात के सौराष्ट्र में भव्य मंदिर सोमनाथ का ,
कहते हैं कि पहला ज्योतिर्लिंग है ये संसार का ।

चार तीर्थों में एक , श्रीकृष्ण का द्वारिका धाम ,
समीप नागेश्वर महादेव की आरती सुबह शाम ।

नासिक में त्र्यम्बकेश्वर मंदिर को जो भक्त जावे ,
ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों के लिंगरूपी दर्शन पावे ।

मोटेश्वर महादेव का होता यहाँ पूजन अर्चन ,
पुणे में विराजते भीमाशंकर रुप में भगवन ।

महाराष्ट्र के सम्भाजी का प्रसिद्ध घृष्णेश्वर मंदिर ,
ऐलोरा गुफाओं के समीप स्थित अंतिम ज्योतिर्लिंग ।

हैदराबाद श्रीसेल्लम की कृष्णा नदी में कर स्नान , मल्लिकार्जुन मंदिर में लगाओ महादेव का ध्यान ।

तमिलनाडु में रामेश्वरम के संस्थापक श्रीराम ,
राम पूजे महादेव को , महादेव पूजे प्रभु राम ।

उज्जैन के दक्षिणमुखी महाकालेश्वर का भव्य वर्णन ,   किया महाकवि कालीदास ने मेघदूत में मनोहर चित्रण ।

मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में बहती पावन नदी नर्मदा , मँधाता द्वीप पर पिनाकी ओंकारेश्वर का निवास सदा ।

उतराखंड हिमालय के शिखर पर विराजते केदारनाथ, 
  पाँच नदियों के संगम पर बैठे पहाडियों बीच भोलेनाथ ।

बाबा विश्वानाथ की नगरी में तुलसी, कबीर, प्रेमचंद, 
रविदास जयशंकर बिस्मिल्लाह मालवीय औ' गंगा तट ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 28 मई 2017 रविवार
ज्येष्ठ शुक्ल 3 विक्रम संवत 2074

सती का सतीत्व

हाथियों का सा बलशाली वानरराज बाली महान ,
दानवो को मारने वाला योद्धा वीर औ' बुद्धिमान ।

ललकारा जब सुग्रीव ने जाकर उसके द्वार ,
समझाने लगी पत्नी तारा उसको बारम्बार ।

किया वादा बाली ने अर्धांगिनी से ,
राजधर्म तो मैं अवश्य निभाउंगा ,
ललकारे कोई यदि द्वार पे आकर ,
तो उसे सबक अवश्य सीखाउँगा ,
पर बात तुम्हारी मानता हूँ ,
है सुग्रीव चूँकि भाई मेरा ,
नहीँ उसको मार गिराउंगा ,
करो विश्वास प्रिये तुम मेरा ,
जाने दूँगा जीवित वापस उसे ,
रण जीत शीघ्र लौट आऊँगा ।

तारा के चेहरे पे बूँदें पसीने की बह रही ,
चिंता की लकीरें माथे पे स्पष्ट दिख रही ।

कहा बाली ने अब चिंता क्यों प्रिये ?
साथ आये हैं राम लक्ष्मण, इसलिये !
अरी जड़ मूर्ख नारी , वो प्रभु हैं ।
उनसे कैसी शत्रुता हमारी ?
नहीँ भय मुझे श्री राम से ,
क्योंकि वो हैं धर्मात्मा ,
कर्तव्यकर्तव्य का है ज्ञान उन्हे ,
नहीँ अपराधी उनका मैं ,
फ़िर वे मुझसे क्यूँ रुठेंगे ?

सुग्रीव बाली के युध्द के दौरान ,
छिप कर खड़े हो गये भगवान ,
चला दिया पेड़ की ओट से बाण ,
चीत्कार उठा बाली वीर महान ।

टूटा विश्वास, ह्रदय में पीड़ा ,
रक्तरंजित भूमि पर गिर पड़ा ,
एकटक देख रहा श्रीराम को ,
आँखो से बह उठी अश्रुधारा ,
मानो पूछ रहा हो प्रभु से कि ,
रचा ये कौन सा दंड विधान ।

निरपराध समझता बाली स्वयं को ,
वह श्री राम को उलाहना देता रहा ,
ओट में छिप कर बाण चलाने पर ,
प्रभु की प्रभुता पर शक करता रहा ।

धैर्यवान शांत श्रीराम समीप आये ,
कहा हे बाली तू था वीर बुद्धिमान ,
राज किष्किन्धा का प्राचीन महान ,
रावण काँख में तेरी खेल चुका है ,
कई राक्षसो को तू मसल चुका है ,
अंत:पुर में सुंदर वानरी कई हजार ,
तारा से शोभा तेरे महल की अपार ,
फ़िर किया कैसे तूने ऐसा अनाचार ,
निकाला भाई को अपने राज्य से ,
सम्पति पद से भी तूने च्यूत किया ,
पर छू कैसे पाया था रूमा* को तू ,
रिश्ते को तूने कलंकित किया ,
तू मेरे बाणों से लहूलुहान हो भले ,
पर तुझे मैने नहीँ, तेरे कर्मों ने मारा,
तूने एक सती का सतीत्व भ्रष्ट किया ।

*रूमा - सुग्रीव की पत्नी का नाम

संदीप मुरारका
दिनांक 28 मई 2017 रविवार
ज्येष्ठ शुक्ल 3 विक्रम संवत 2074

Saturday, 1 April 2017

केशव की वंशी

छेड़े कान्हा जब वंशी की तान रे ,
मच जावे उथल पुथल वृंदावन में ,
मोहन के बड़े तीखे हैं ये वाण रे ।

बह गये दूध गायों के थन से ,
रह गये फ़िर भूखे प्यासे बाछे सारे ,
आज फ़िर पीटेंगे बाल ग्वारे ,
बड़ी महँगी यारी तेरी मोहन प्यारे ।

जल गयी रोटियाँ तवों पर ,
ढुल गये छाछ के भरे प्याले ,
हाय क्या खिलायेगी ग्वालीने ,
घर लौटेंगे ग्वाले जब थके हारे ॥

काजल बह गया गालों पर ,
होठों पे अलता लगा बैठी ,
गिरा आँँचल किसी गोपी का ,
तो कोई मुन्डेर पे जा बैठी ।

कि जमुना भी चाल भूल गई ,
मछलियाँ भी राह भटक गई ।
गोवर्धन भी उधर सरकने लगा ,
बादल रिमझिम बरसने लगा ।

किया केशव ने सबको बदनाम ,
बिना छुए लूट ली सबकी लाज ,
अच्छी नहीँ गोविंद तेरी ये बात ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 2 अप्रील 2017 रविवार
चेत्र शुक्ल 6 विक्रम सम्वत 2074






जिंदगी शहर हो गयी

रोज़मर्रा की रेल्लम रेल , ठेलम ठेल,
जिंदगी की भागा भागी , आपा धापी ॥

टेढ़ी मेढि चाल चलते ऑटो रिक्शा ,
हाथ दिखाते ही रुक जाती है बस ॥

मिलती नहीँ यहाँ फुर्सत खाने की भी ,
हो रहे सबके सब बेवजह व्यर्थ व्यस्त ॥

ऊँची ऊँची बिल्डिंगें , बड़े बड़े मॉल ,
गंदी गंदी नालियाँ ,गंदी गंदी गालियाँ ॥

बड़ी बड़ी गाडियाँ, बड़े बड़े लोग ,
मन के खाली , सूट बूट का बोझ ॥

जलने को कतार में सजी अर्थियाँ,
ऑफीस को लेट होती उनकी पीढियाँ ॥

ना भौंरे ना मधुमक्खी ना फूलों का रस ,
बेवजह जिंदगी ने लगा रखी कशमकश ॥

बहते बहते हाय , नदी भी यहाँ ज़हर हो गयी ,
यूँ लगता है मानो, जिंदगी अब शहर हो गयी ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 8 जनवरी' 2017 रविवार
सम्वत 2073, पौष शुक्ल दशमी

बुद्ध

रात्रि के प्रहर में
छोड़ मोह माया का संसार ,

निकल पड़े गौतम
करने बुद्ध जीवन को साकार ,

खोल दिये कुंडल
गले का हार औ' शृंगार ,

घुटने टेके बैठा सारथी
समक्ष उसके उठाई तलवार

काट डाले घुंघराले केश अपने
भेज दिया यशोधरा को उपहार ,

लो भेंट मेरी ओर से अंतिम बार
करती रही जिन लटों से तुम प्यार ,

और उछाल दिये कुछ केश
उपर , आकाश के उस पार ,

कि न छूना धरती को तुम
प्रारम्भ हुआ बुद्ध का संसार ।

आम्रपाली का आतिथ्य स्वीकार
पहुँचे भोजन को वेश्या के  द्वार ,

ढीले ना छोडो वीणा के तार
कसो ना इतना कि टूटे बार बार ,

धम्मपद ग्रंथ को दिया आकार
किया बहुजन हिताय का प्रचार ,

हे महात्मा, हे महामानव, हे गौतम
करो आप मेरा प्रणाम स्वीकार ,

हो तुम नबी या कोई अवतार ,
हे बुद्ध आपको बारम्बार नमस्कार ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 1अप्रील 2017 शनिवार
चेत्र शुक्ल 5 विक्रम सम्वत 2074

Monday, 13 March 2017

होली

होली के रंग में रंगा है कोई ,
कोई नशे में ही मशगूल है ।

चढ़ा नशा किसी को भंग का ,
कोई सत्ता के नशे में चूर है ।

हो रहा दहन गोबर के उपलों काठ का ,
पर राक्षसी होलिका अब जलती नहीँ ।

ना प्रह्लाद जैसे भक्त बच पाते है ,
ना ही नरसिंह अब बचाने आते हैं ।

अब अबीर गुलाल कम उड़ते हैं ,
ताश पत्तों के दौर ज्यादा चलते हैं ।

अब ठंडाई नहीँ पीसवायी जाती है ,
शराब की बोतलें खुलवाई जाती है ।

मिलन का रहा नहीँ अब त्योहार ,
बजाने गाने का बढ़ गया कारोबार ।

ढप चंग गीतों की मस्ती हुई धूमिल ,
इवेंट वालों की सजती फूहड़ महफिल ।

उपाधी वितरण से लोग ऊबने लगे ,
फेसबुक पर ही सबको विश करने लगे ।

महामूर्ख सम्मेलन में अब कोई जाता नहीँ ,
कवि सम्मेलन में दूसरा दौर आता ही नहीँ ।*

त्योहार नहीँ ये अब केवल सेलिब्रेसन है ,
किसी का हॉलिडे, किसी का सीजन है ।

दौर चला है अब पानी बचाने का ,
याद आता दौर वो ड्रम में डूबाने का ।

काश वो दिन फ़िर लौट आते ,
फटते कपड़े, पर दिल जुड़ जाते ।

उछलता कीचड़ भले सड़कों पर ,
पर मैल दिल के सारे मिट जाते ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 12 मार्च 2017 रविवार
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 2073

*पहले दो दौर कवितायें पढी जाती थी , जिसमे केवल गम्भीर श्रोता रुकते थे एवम कवि अपनी श्रेष्ठ रचनओं का पाठ करते थे ।