Saturday, 19 November 2016

श्री विष्णु अवतार वंदन

आओ करें  वंदन श्री हरि के अवतार की ,
भगवान श्री विष्णु के रूपों की,आकार की ।

कराह उठी धरती जब, भक्त जब पुकार  पड़े ,
तुरंत दौडे चले आये नारायण स्वयं खड़े खड़े ।

सॄष्टि की रचना करने ,  ब्रह्मा जब उद्धत हुए ,
"सनकादि ऋषियों" के रुप में आप प्रकट हुए ।1

दिया मोक्ष हिरण्याक्ष कॊ , पृथ्वी का उद्धार किया ,
"वराह" रुप में  प्रभू  श्री हरि ने दूजा अवतार लिया ।2

लोक कल्याण के लिये रुप धरा "देवर्षि श्री नारद" का ,3
"नर नारायण" रुप में किया संकल्प धर्म स्थापन का ।4

सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हुये "कपिल" मुनी भगवान ,5
देवी अनुसूइया के गर्भ से जन्मे "दत्तात्रेय" भगवान ।6

आकूति पुत्र "यज्ञ" रुप श्री हरि ने सातवां अवतार लिया , 7
"ऋषभदेव" स्वरूप में प्रभु ने क्या क्या नहीँ सहन किया ?8

नास्तिक वेन के यहाँ "पृथु" रुप में श्री हरि अवतरित हुए  ,9
प्रलय से बचाने पृथ्वी को, "मत्स्य" रुप में प्रभु प्रकट हुए  ।10

"कच्छप" अवतार के रुप में प्रभु ने करवाया समुद्र मंथन,11
फ़िर प्रकट हुए भगवान "धन्वंतरि" लेकर अमृत कलशं ।12

"मोहिनी" अवतार में प्रभु ने देवताओं को कराया अमृतपान , हिरण्यकश्यपु मरे "नृसिंह" द्वारा,मिला प्रह्लाद को अभयदान ।

13 मोहिनी , 14 नृसिंह

"वामन" के आशीर्वाद से मिला राज़ सुतललोक का बलि को ,
"हयग्रीव" अवतार में श्री विष्णु रसातल से ले आये वेदों को  ।

15 वामन , 16 हयग्रीव

भगवान "श्री हरि" ने ग्राह को मार गज को तार लिया,17
"परशुराम" रुप  में प्रभु ने क्षत्रियों का सर्वनाश किया । 18

"महर्षि वेदव्यास" रुप में स्वयं महाभारत की रचना की , 19
ब्रह्मा की सभा में "हंस " अवतार में मोक्ष की व्याख्या दी ।20

अयोध्या में माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिये "श्री राम" 21
देवकी यशोदा के दुलारे मोर मुकुट  वाले "कृष्ण" घनश्याम 22

बुद्ध अवतार में जीव हिंसा से दूर रहने का दिया संदेश, 23
धर्म की पुनः स्थापना को आयेंगे "कल्कि" रुप में देवेश । 24

आते रहे हैं श्री हरि , करने धरा का उद्धार व  उपकार,
गौ अग्नि ब्राह्मण की हो सेवा ,लेंगे प्रभु फ़िर अवतार ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 19 नवम्बर 2016' शनिवार
सम्वत 2073, कार्तिक कृष्ण पंचमी

 

Tuesday, 15 November 2016

कृष्ण की विवशता

कलियुग के कृष्ण विवश हो उठे ,
करुणावश रुदन स्वर वो बोल  उठे ॥

सखा भाई शिष्य भक्त तुम प्रियवर ,
हे अर्जुन , कहो कहाँ बैठे हो छिपकर ॥

माना यहाँ कोई कुरुक्षेत्र नहीँ है ,
माना महाभारत का उद्घोष नही है ॥

ना पन्चाली का उपहास हुआ है ,
ना कुंती पुत्रों का अपमान हुआ है ॥

फ़िर खड़े क्यों ये लिये बिष बुझे तीर ,
न भीष्म न द्रोण न शकुनी अबकी अधीर  ॥

सुशासन सुयोधन युधिष्ठिर नहीँ गरजेगें ,
ना ही महाबली कर्ण अब शस्त्र उठायेगें ॥

ना अभिमन्यु का रुधिर बहेगा ,
ना ही अश्वत्थामा मारा जायेगा ॥

लेटने कॊ तीर शय्या पर ,कोई भीष्म तैयार नहीँ ,
अंधा बनकर जीना गांधारी कॊ अब स्वीकार नहीँ ॥

अरे कौन पूछेगा संजय तुमको ,
बर्बरीक विदुर की अब पहचान नहीँ ॥

कहो फ़िर क्यों करूँ पाठ मैं गीता का ,
हे गांडीवधारी, जब तुम हो ही नहीँ मैदान में ॥

क्यों दिखाउँ रुप अपना भयँकर मनोहर ,
अन्याय अधर्म के विरूद्ध कहो किसको उकसाऊँ ॥

सारथी बनाने कॊ जब तुम ही तैयार नहीँ ,
हे धनंजय , कहो किसके लिये सुदर्शन उठाउँ ॥

धरती भारत तुलसी गंगा और गीता ,
मातायें सभी फूट फूट कर रो रही हैं ॥

देख अवस्था पृथ्वी की अब रहा नहीँ जाता ,
भार शेषनाग देव से भी अब सहा नहीँ जाता ॥

धुर्व प्रह्लाद विदुर विभीषण द्रौपदी मीरा रहे नहीँ ,
अब तो अजामील के द्वारा भी मैं पुकारा नहीँ जाता ॥

हूँ जहाँ मैं , वहाँ कोई आता नहीँ ,
भीड़ लगी है जहाँ , वहाँ मैं जाता नहीँ ॥

गौ अग्नि ब्राह्मण तीनों के कण्ठ सूखे पड़े ,
इत्र गुलाब और रातों की जाग मुझको भाती नहीँ ॥

व्यासपीठ भी हुई दूषित कलंकित ,
कहो सव्यसाची अब मैं क्या करूँ ॥

कर रहा महसूस असहाय मजबूर लाचार ,
हे श्वेतवाहन , हो दूर विवशता ऐसा उपाय करो ॥

संदीप मुरारका
15 नवम्बर 2016 मंगलवार
सम्वत 2073 कार्तिक कृष्णा 1

Sunday, 6 November 2016

ये कैसा वंदन

ना जाने अनजाने मॆं खींच गई कैसे  एक बड़ी लकीर है ,
लेकिन यारो मेरी मानो, बड़ा प्यारा अपना ये कश्मीर है ।

मन्दिर खीरभवानी का यहाँ , मुस्लिम बनाते खीर जहाँ ,
खय्यामुद्दीन की मजार जहाँ , चढ़ाता हिंदू चादर वहाँ ॥

ये देश बड़ा विचित्र , हम लूटते पिटते यहाँ तक आये हैं ,
मुगलों अंग्रेजों ने लूटा सो लूटा, अपनों से भी लूटवाये हैं ।

छला हमको सत्ता ने पग पग पर , हाकीमो ने कहर ढाये ,
टूट गये तब हम  , जब धर्म के सौदागरों से भी ठगा आये ॥

पाली मॆं पूजवा दी बुलेट हमसे , महान मेरो राजस्थान , 1
ऐरोप्लेन चढ़ा मत्थे टेकने, पंजाब चल दिया तलहन गाँव ।2

लखनऊ की तह्जीब सीखने की कोशिश मॆं वर्षों लगा रहा ,
देख जलती सिगरेट मूसाबाग की मजार पर, सुलगता रहा ॥3

जौनपुर का मंदिर हो या शाहाबाद नौ गजा पीर की मजार,
घड़ी चढ़ा कर , करते सारे अपना समय बदलने की गुहार ॥

बाबा योग सिखलाते सिखलाते , घोट जड़ी बूटी पिलाने लगे ,
और खिलाते पिलाते घी मधु , साबुन शेम्पो से नहलाने लगे ॥

धर्म के हाथों पिट पिट कर , जनता हो चुकी कमजोर हैं ,
अब सन्त कहाँ फ़कीर कहाँ , याचक वाचक सब चोर हैं ।

लूटी पिटी जनता कॊ सीमा पर भेजने की अब तैयारी है ,
पाक मंदिर मस्जिद कॊ बदल वोटों में खेलनी नई पारी है ॥

कमसकम भेडिये भेडियों के वेष में ही घूमा करते थे ,
रंगा सियार बन जंगल जंगल नहीँ विचरा करते थे ।
 
चुका नहीँ ऋण देश का अंश मात्र , फ़िर ये कैसा वन्दन,
इतिहास लिखता आया है, हर नृप का निंदन अभिनंदन ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 7 नवम्बर 2016 सोमवार
सम्वत 2073, कार्तिक शुक्ल सप्तमी

1. पाली जिले में NH65 में बुलेट बाबा का मन्दिर
2. जालंधर के गुरुद्वारा में प्लास्टिक का हवाई जहाज चढाते हैं. 3. लखनऊ की कप्तान बाबा मजार पर अगरबत्ती नहीँ सिगरेट चढ़ती हैं.

Friday, 4 November 2016

नदी

निकल पर्वतों की चोटी से
नदी जब अपने उफान पर आती है ।
प्रचण्ड होती जाती चाल उसकी
मिले राह मॆं जो, साथ बहा ले जाती है॥

कल कल करती, झाग उगलती
नदी अपने पूरे वेग से बहती है ।
रास्ता रोक कर खड़े चट्टान कॊ भी
लहरें उग्र उसकी तोड़ देती है ॥

माँ की सी मूरत है नदी
सबको ममता देती चलती है ।
कहीं किसी कॊ पीने का पानी
तो कहीं खेतों कॊ सींचती चलती है ॥

बहा डाली लाशें कई हमने
ये तो राख कॊ भी पवित्र किये चलती है ।
बना देती है पत्थर कॊ भी रेत
ये तो लोगों के पाप धोते ढोते चलती  है ॥

अजी नदी है , कोई सरकार नहीँ ये !
बिना देखे जात सबका भला किये चलती है ।
पर बन आती स्त्रीत्व पर जब इसके
बन बाढ़ महा विध्वंश भी किया करती है ॥

संदीप मुरारका
शुक्रवार 4 नवम्बर 2016
सम्वत 2073, कार्तिक शुक्ल 5

Thursday, 3 November 2016

कमबख्त वो

Co- education मॆं std 11 मॆं पढ़ने वाला एक लड़का मन ही मन अपनी Classmate कॊ चाहता था  , पर  इज़हार नहीँ कर पाता , उसके मन मॆं अपनी प्रेयसी के प्रति उमड़ने वाले विचारों पर कुछ पंक्तियां -

आजकल किताबों मॆं भी वो नजर आया करती है ,
कलम भी मेरी उसी का नाम लिख जाया करती है ।

और बैठ जाती है जिस दिन बगल मॆं वो मेरे ,
हाय ,मेरी तो साँसें ही अटक जाया करती है ॥

रिंग टोन भी उसकी मुझको बहुत भाया करती है ,
मेरी मोबाईल के स्क्रीन पर भी वही छाया करती है ।

और अपने हाथों से छू लेती है हाथ जिस दिन मेरे  ,
हाय वो हाथ देखते देखते मेरी रात बीत जाया करती है ॥

कि आँखों मॆं बड़ी गहराई है उसके ,
हर अदा मानो अंगड़ाई है उसके ।

बाते करते करते कभी होठों कॊ समीप ले आया करती है ,
कमबख्त बिना पिये मुझे चढ़ सी जाया करती है ॥

कभी शोख चंचल चतुर चपला लगती है ,
कभी सीधी सादी भोली अबला लगती है ।

और केन्टिन मॆं पी लेती है कभी कॉफी मेरे साथ ,
कमीने दोस्तों पर मेरे बिजली गिर जाया करती है ॥

वो सुंदर सलोनी प्यारी सी मूरत है,
मानो उसके रुप मॆं स्वयं कुदरत है ।

बाईक पर जब कभी वो सिमट जाया करती है ,
कमबख्त आँखे मेरी रास्ता भूल जाया करती है ॥

पहन कर आती है जिस दिन स्कर्ट वो ,
पूरे कॉलेज मॆं अकेले कहर ढाया करती है ।

सरस्वती पूजा के दिन जब लिपटकर साड़ी मॆं आया करती है ,
हाय,मुझको तो उस दिन उसमॆं ही देवी दिख जाया करती है ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 2.11.2016 बुधवार
विक्रम सम्वत 2073, कार्तिक मास , शुक्ल पक्ष तृतीया

Tuesday, 1 November 2016

इतिहास

हाँ मैं रो रहा हूँ
सच है कि मेरी आँखे सूजी है
मेरी आँखो के नीचे काली छाई पड़ गयी है ।

हो भी तो गये कितने वर्ष
मुझको फूट फूट कर रोते हुए
हाँ मैं इतिहास हूँ , तुम्हारे भारत का इतिहास ॥

मैंने बहुत कोशिश की
कि लिखने वालों तुम मुझे पूरा लिखो ,
पूरा ना भी लिखो तो अधूरा तो ना ही लिखो ॥

पर कलम तुम्हारी
मर्जी तुम्हारी , समय तुम्हारा ,स्याही तुम्हारी ,
मौकापरस्त तुम जो मन आया लिखते चले गये ॥

मैं रोकता रहा ,
तुम छपते चले गये , पन्नों मॆं बँटा पड़ा मैं
तुम टुकडों कॊ अलग अलग जिल्द करते चले गये ॥

मैं घबराया ,
कई बार तुम्हें समझाया , खुद से मिलवाया ,
पर तुम किसी और के चश्मे से मूझे देखते रह गये ॥

टपक गये आँसू ,
कुछ गंगा मॆं जा गिरे , कुछ सिंधु मॆं जा मिले ,
पंजाब यहाँ भी लिखा तुमने , पंजाब वहाँ भी लिखा तुमने ॥

मेरी सिसकियों से बेखबर ,
दोनों ओर तुम हिमालय लिखते चले गये ,
कश्मीर के पन्ने कॊ लिखकर स्याही तुमने क्यों उंडेल दी ?

परवाह न की मेरी तुमने
कुछ पन्ने केसरिया कपड़े मॆं बाँध कर रख लिये
कुछ पन्नों कॊ लाल हरे सुनहरे नीले कपडों मॆं बाँध दिया ॥

काँपते होंठों से मैने
तुम्हे कई बार रोकने की कोशिश की ,
पर सत्ता के नशे मॆं चूर तुम मुझे रौंदते चले गये ॥

मेरी लाल आँखो के सामने ,
बदल  दिया मेरे कई बच्चों का नाम
मेरे ही सच कॊ झूठ और झूठ कॊ सच लिखते चले गये ॥

अपाहिज हूँ मैं आज़ ,
रोज़ मेरे अंग कमजोर पड़ रहे हैं
कोई विक्रमादित्य कॊ तो कोई टीपू पर प्रश्न कर रहे हैं ॥

मैं कमज़ोर क्या हुआ ,
बल्मीकि वाले पन्ने तुमने फाड़ दिये ,
काशी मथुरा के किस्सों कॊ किस्सा ही  बना डाला ॥

जर्जर कर दिया मुझको
शिवाजी नानक कुंवर बिरसा सुभाष
इन पन्नों की जगह सियासत की तिजारत* ने ले ली ॥

कंकाल सा देखता रहा मैं
अपने पन्नों कॊ कटते , फटते ,छँटते
और मेरे मरे नायकों कॊ मृत्युपर्यन्त जाति बदलते ॥

अर्थी पर लेटा हूँ मैं ,
श्मशान ले जाने की तैयारी है ,
मौत का कारण खुद मैं लिखूंगा, अब मेरी बारी है ॥

*व्यापार

संदीप मुरारका
दिनांक 1.11.2016 मंगलवार
विक्रम संवत 2073, कार्तिक मास , शुक्ल पक्ष द्वितीया

दंगा

मिल कर लड़ा गोरों से ,
उनको भगा खुद लड़ने लगे ।

दुश्मन तो अच्छा लगने लगा ,
खुद एक दूसरे कॊ बुरे लगने लगे ।

याद करो बँटवारा सन 47 का
दोनों ने ही कीमत चुकाई थी ,

खोये थे दोनों ने ही अपने
अस्मत सम्पत्ति दोनों ने लुटाई थी ।

तीसरी पीढी भी वो दंश झेल रही ,
और कितनी पीढियों कॊ रूलाओगे ?

अरे पूछो दर्द किसी सिक्ख से ,
गुरू गोविंद ने क्या नहीँ खोया था ?

फ़िर भी सन चौरासी मॆं खूब
कीमत उन्होंने  चुकाई थी ।

छियासी मॆं किया था काश्मीर कॊ
हिन्दू विहीन , खूब बकरीद मनाई थी ,

नवासी मॆं काशी और बिहार* ने
दोनों और से  बलि चढ़ायी थी

बानवे का छह दिसम्बर ,
कहो किसको याद नहीँ ?

दो हजार दो** ने किया कुछ ऐसा
कि खाई अब और गहरी हो चली है  ।

दो हजार छह मॆं आलीगढ़ मॆं
कुछ कब्र बनी , कुछ लाशें जली ।

दस मॆं बंगाल ***बारह मे आसाम ने
दोनों और आग लगाई है ।

याद करो दो हजार तेरह कॊ
मुजफ्फरपुर जब सुलग उठा था ॥

इतना लड़ चुके हम , कट चुके हम
अब तो गिनती भी दंगो की याद नहीँ ।

और कितना लडोगे , अपनी जमीं कॊ
अपने ही लहू से यारो,  कितना रंगोगे ?

सियासत के इस खेल कॊ, ख़त्म हो जाने दो ।
जात धर्म की खाई कॊ , अब तो भर जाने दो ॥

*भागलपुर दंगा  **गोधरा ***देगंगा

संदीप मुरारका
दिनांक 31.10.2016 सोमवार