Tuesday, 1 November 2016

दंगा

मिल कर लड़ा गोरों से ,
उनको भगा खुद लड़ने लगे ।

दुश्मन तो अच्छा लगने लगा ,
खुद एक दूसरे कॊ बुरे लगने लगे ।

याद करो बँटवारा सन 47 का
दोनों ने ही कीमत चुकाई थी ,

खोये थे दोनों ने ही अपने
अस्मत सम्पत्ति दोनों ने लुटाई थी ।

तीसरी पीढी भी वो दंश झेल रही ,
और कितनी पीढियों कॊ रूलाओगे ?

अरे पूछो दर्द किसी सिक्ख से ,
गुरू गोविंद ने क्या नहीँ खोया था ?

फ़िर भी सन चौरासी मॆं खूब
कीमत उन्होंने  चुकाई थी ।

छियासी मॆं किया था काश्मीर कॊ
हिन्दू विहीन , खूब बकरीद मनाई थी ,

नवासी मॆं काशी और बिहार* ने
दोनों और से  बलि चढ़ायी थी

बानवे का छह दिसम्बर ,
कहो किसको याद नहीँ ?

दो हजार दो** ने किया कुछ ऐसा
कि खाई अब और गहरी हो चली है  ।

दो हजार छह मॆं आलीगढ़ मॆं
कुछ कब्र बनी , कुछ लाशें जली ।

दस मॆं बंगाल ***बारह मे आसाम ने
दोनों और आग लगाई है ।

याद करो दो हजार तेरह कॊ
मुजफ्फरपुर जब सुलग उठा था ॥

इतना लड़ चुके हम , कट चुके हम
अब तो गिनती भी दंगो की याद नहीँ ।

और कितना लडोगे , अपनी जमीं कॊ
अपने ही लहू से यारो,  कितना रंगोगे ?

सियासत के इस खेल कॊ, ख़त्म हो जाने दो ।
जात धर्म की खाई कॊ , अब तो भर जाने दो ॥

*भागलपुर दंगा  **गोधरा ***देगंगा

संदीप मुरारका
दिनांक 31.10.2016 सोमवार

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