"अप्रतिम- 2"
दोस्तों "अप्रतिम" श्रृंखला में आज जिक्र संदीप मुरारका का।
संदीप मुरारका जानेमाने उद्यमी हैं । पिछले कुछ दिनों से लेखन की दुनिया में इन्होंने खूब ख्याति बटोरी है। विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त 2020 को आई इनकी पहली किताब "शिखर को छूते ट्राइबल्स" ने साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में नए कीर्तिमान गढ़े हैं। और ये हो भी क्यों नहीं। झारखंड बनने के दो दशक बाद भी इतनी प्रामाणिक और शोधपूर्ण पुस्तक कभी नहीं लिखी गई थी। कौन हैं संदीप मुरारका! जानने के लिए आपको फ्लैशबैक में लिए चलते हैं।
संदीप मुरारका का जन्म 12 फरवरी 1978 को सरस्वती पूजा की रात्रि में जमशेदपुर के व्यवसायी परिवार पुरुषोत्तम दास मुरारका और पदमा देवी के यहां हुआ। संदीप भी बचपन में सामान्य बच्चों की तरह ही थे । प्राथमिक शिक्षा जगतबंधु सेवासदन पुस्तकालय द्वारा संचालित विद्यालय से हुई। ऊपरोक्त पुस्तकालय में 10,000 से ज्यादा पुस्तकें हुआ करती थीं । कहा जा सकता है कि उन पुस्तकों ने ही लिखने की पहली प्रेरणा दी होगी।
संदीप के पिता पुरुषोत्तम दास मुरारका किताबों के बेहद शौकीन थे। महान लेखक गुरुदत्त के तो वे जबरा फैन थे। उनके घर पर गुरुदत्त की लिखी लगभग तमाम पुस्तकें हुआ करती थीं । संभवत: संदीप में भी इसका कुछ ना कुछ प्रभाव तो अवश्य पड़ा ही होगा। संदीप ने अपनी पहली कविता "दियासलाई" आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए महज तेरह साल की उम्र में लिखी। ये एक भावी रचनाकार के उदय की आहट थी। इसके बाद संदीप ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने स्कूली दिनों में बहुत सी कविताएं और लघुकथाएं लिखीं। और प्रतिभाशाली तो इतने की कॉलेज तक आते आते "दैनिक आज" के माध्यम से पत्रकारिता भी करने लगे थे और आकाशवाणी जमशेदपुर के कार्यक्रमों में भी भाग लेते । तब के काल 1991-95 को उनके लेखन का शुरुआती दौर मानना चाहिए । किंतु बाद के दिनों में व्यवसायिक व्यस्ताओं में लेखन कहीं खो सा गया । मगर पठन पाठन व पुस्तक प्रेम जारी रहा। जमशेदपुर में हर साल दिसंबर में आयोजित होने वाला पुस्तक मेला उनको खींचता और लौटते समय कुछ पुस्तकों का थैला हाथ में होता।
व्यवसायिक जगत व समाज में भले ही संदीप मुरारका पहचान के मोहताज ना हों। भले ही उनकी पहचान एक कुशल संगठनकर्ता व प्रखर वक्ता की हो। मगर अंदर एक टीस भी थी। व्यवसायिक व्यस्ताओं ने उनके अंदर के रचनाकार को उनसे दूर कर दिया था । ये सोच कराह उठते थे संदीप मुरारका। ये वो समय था जब पूरी दुनिया पर कोविड-19 का खतरा मंडरा रहा था। जब लोग मायूसी के दौर से गुजर रहे थे, तब इन सब से दूर एक युवा उद्यमी हाथों में कलम थामे ऐसा कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था जो अब से पहले कभी लिखा ना गया था । ना भूतो, ना भविष्यति....
विगत 2 सालों में समय कितना बदल गया है। झारखंड के गांव कस्बों व आदिवासी समस्याओं को बहुत करीब से देखने समझने वाले संदीप मुरारका आज सफल उद्यमी के साथ एक सफल लेखक भी हैं । राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान गढ़नेवाली जनजातीय समाज की 26 महान हस्तियों की जीवनी पर आधारित उनकी किताब "शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग- 1" ने सफलता के कई नए आयाम रच डालें हैं । आज से पहले जनजातीय समुदाय के भी किसी लेखक ने आदिवासियों की उपलब्धियों पर ऐसा कुछ नहीं लिखा था।
आदिवासियों की जीवंत जीवन गाथा कहती इस किताब का दूसरा और तीसरा खंड भी आ चुका है़। दूसरे में कुल 23 शख्सियतों एवं तीसरे में कुल 28 हस्तियों की संघर्ष कथाएँ और उनकी जीवंत दास्तान है। विशेष कर पूर्वोत्तर की जनजातीय हस्तियों के विषय में शायद ही हिंदी में कुछ लिखा मिले, किंतु लेखक ने इस अवधारणा को तोड़ा है़। शायद इसीलिए हिंदी पट्टी के रुप में विकसीत हो रहे पूर्वोत्तर राज्यों में ये पुस्तकें काफी पसंद की जा रही हैं। किताब का प्रथम और द्वितीय खंड मुंबई के स्टोरी मिरर ने प्रकाशित किया है, जिनका लोकार्पण झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने राजभवन, राँची में किया था। तृतीय खंड का प्रकाशन प्रलेक, मुंबई ने किया है, जिसका लोकार्पण झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं स्वास्थ्य व आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने विधानसभा भवन, राँची में किया।
इन पुस्तकों के अलावा ऑटोबायोग्राफी स्टाइल में लिखी गई तीन कहानियों और हॄदय को छूती कुछ कविताओं का संकलन "बिखरे सिक्के" भी प्रकाशित हो चुका है़। अप्रतिम- 2 के इस अप्रतिम युवा लेखक की पांचवी व अद्भुत पुस्तक है़ "पद्म अलंकृत विभूतियाँ (मारवाड़ी/अग्रवाल)", जो नवंबर, 2021 में प्रकाशित हुई है़। इस पुस्तक में वे देश की वैसी 60 हस्तियों से रुबरु कराते हैं, जिनको उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है़। बातचीत के क्रम में पता चला कि इन पुस्तकों के अंग्रेजी संस्करण पर भी काम चल रहा है़।
प्रिय मित्र और बड़े भाई संदीप मुरारका को भविष्य की अनंत शुभकामनाएं ।
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