*पुस्तक समीक्षा*
शिखर को छूते ट्राइबल्स : अनकही जनजातीय गाथाएँ
- कृपाशंकर
एक विषय । तीन खंड । विषय _ जनजाति , आदिवासी । लेखक रहता है झारखंड में। बहुत ही दुर्लभ पुस्तक, दुर्लभ व अनछुए विषय, अपनी व्यापकता के साथ हमारे सामने है । अभी हाल की किताबें हैं। मात्र डेढ़ साल में तीन खंड। चौथी पर काम जारी। मुश्किल है, बहुत मुश्किल । वह भी तब जब किताबों का मिजाज बायोपिक हो , संदर्भ न हों , संदर्भों का सिरा मुकम्मिल कहीं से मिलता _ जुलता न हों । तुर्रा यह भी कि हम उस दुनिया की बात करेंगे जो हाशिए पर हो, भूखे _ नंगे हो , शहर _ कस्बे की बजाए पेड़ _ पौधे , नदी _ तालाब, पहाड़ _ कंदराओं और जंगलों में रहती हो और दुनिया के तमाम आधुनिक सुख _ सुविधाओं से महरूम हो। भात _ भात चिल्लाते जिनकी अंतड़ी सुख _ सी गई हो, पत्तियां खाते _ खाते जो भात का स्वाद भी पहचान नहीं पाते हों। लेकिन सच तो यह है कि लेखक इस दृश्य को दिखाने से बचता है । इस अंतिम और भयावह मंजर से हमें बचाता भी है । वह इसे घिनौने सच को जानता है, पर नजरंदाज करता है और इस बीच वह चुपके से उस सच की डोर पकड़ लेता है जो गजब है, मार्के की है, जिसकी तारीफ जितनी की जाए, कम है।
लेखक संदीप मुरारका जमशेदपुर के हैं। युवा हैं। दुनिया को अपने नजरिए और नए तौर _ तरीकों से देख _ निहार रहे हैं।इसी गुंताडे में उन्होंने तीन बायोपिक किताबें लिख डाली हैं __ शिखर को छूते ट्राइबल्स । प्रथम और द्वितीय खंड मुंबई के स्टोरी मिरर से आई है, जिनका लोकार्पण झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने किया था। तृतीय खंड का प्रकाशन प्रलेक, मुंबई ने किया है, जिसका लोकार्पण झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं स्वास्थ्य व आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने किया।
पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स के प्रथम खंड में लेखक ने कुल 26 उन जनजातीय नायक और नायिकाओं की मीमांसा की है, जिन्हें देखकर, सुनकर और पढ़कर चकित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। इतनी सरल भाषा, प्रस्तुति और उन विभूतियों की जीवंत जीवन यात्रा __ शायद ही कहीं देखने को मिले । जितने सरल वे लोग, उनका रहन _ सहन और सोच _ विचार, उतना ही सरल सबका कथ्य , शोध _ विवेचन । इसमें वे लोग शामिल नाम हैं जिन्होंने अपने _ अपने क्षेत्र में अदभुत और संघर्षपूर्ण काम किए हैं ।
संघर्ष एक अनवरत यात्रा है और इसी राह से बनती है कई नई राह । इस राह के मुसाफिरों ने ही दरअसल अनगिनत आयाम गढ़े हैं और आगे की पीढ़ी के लिए आदर्श खड़े किए हैं।
आदिवासियों की जीवंत जीवन गाथा कहती इस किताब का दूसरा और तीसरा खंड प्रथम खंड को ही आगे बढ़ाते हैं । दूसरे में कुल 23 शख्सियतों एवं तीसरे में कुल 28 हस्तियों की संघर्ष कथाएँ और उनकी जीवंत दास्तान है। ये किताबें हमें भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी बाबा तिलका मांझी, बिहार (वर्ष 1785) का इतिहास सुनाती हैं, वहीं भारत के महालेखाकार श्री गिरीश चंद्र मुर्मू,ओड़िशा से परिचय करवाती है़। ये किताबें हमें झारखंड के पद्मभूषण कड़िया मुंडा जैसे महान व्यक्तित्व से रूबरु कराती हैं वहीं पाँच बार माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला पद्मश्री अंशु जामसेनपा, अरूणाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर जैसे कई महान व्यक्तित्वों की प्रेरक कहानियाँ बतलाती है़।
जाहिर है , चौथा खंड इनसे अलग और बेहतर होगा । दरअसल, प्रगति पर प्रगति ही प्रगतिशीलता है । लेखक वहीं नहीं ठहरता । वह आगे बढ़ता जा रहा है़ और प्रचार प्रसार से दूर रहने वाले आदिवासियों की एक नई तस्वीर उकेर रहा है़। वह एक लंबी लकीर की परछाईं पकड़ता दिख रहा है जो अन्यत्र दुर्लभ है, कहीं भी पढ़ने _ समझने को नहीं मिलता। पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 1-3 की यह सब खासियतें हैं। और खासियतें तो सबको पसंद है ।
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