Friday, 22 November 2019

रात्रि जागरण

माना कि मैं भक्त तेरा इतना अच्छा नहीं । 
माना कि मैँ तेरे जगराते मेंं आता नहीं । 
माना कि मैँ भजनों पे तेरे झूम जाता नहीं । 
माना कि मैँ इतर लगाता नहीं । 
माना कि मैँ कुर्ते से ख़ुद को सजाता नहीं । 
माना कि मैँ फूल का श्रृंगार करवाता नहीं । 
माना कि मैं हर माह तेरे द्वारे आता नहीं । 
माना कि मैँ मेरे द्वारे तेरा नाम खुदवाता नहीं । 
माना कि मैँ जगराते का पकवान खाने जाता नहीं । 

पर याद रखना इतना ए श्याम प्यारे , 
तुझको दिल मेंं बसा रखा है । 
हे नाथ, भूल ना जाऊँ तुझको , 
इसलिए साँसों को तेरा नाम रटा रखा है ।

संदीप मुरारका 
21 नवम्बर 2019 गुरुवार 

Sunday, 6 October 2019

मन्दी वाली दिवाली

खुदरा दूकानदारो, छोटे व्यापारियों , सूक्ष्म उद्यमियों को समर्पित कविता  -

ए दिवाली , तुम इतनी जल्दी क्यूँ चली आई ।
क्या तुम्हें पता नहीं देश मेंं अभी मंदी छाई है ॥

मिठाई तॊ मैँ फिर भी ले आऊँगा ,
पर पटाखे कैसे खरीद पाऊँगा ?

साफ सफाई तॊ हो जाएगी ,
पर सजावट कैसे कर पाऊँगा ?

कहेंगे घरवाले नए कपड़ों के लिए जब ,
तब उनको मैं क्या बहाना बताऊंगा ?

पूजा की तैयारी तॊ हो जाएगी ,
पर गिफ्ट शायद ही बाँट पाऊँगा ।

गाय मुस्लिम मेंं उलझा देश मेरा ,
जाने कब मन्दी से उबर पाएगा ?

फ्लिपकार्ट एमेजॉन मेंं बरस रहा सोना ,
बाजार मेंं अब ग्राहक कहाँ से आएगा ।

रिलायन्स , बिगबाजार का बढ़ रहा साम्राज्य ,
बचे खुचे व्यापार पर हुआ मॉल वालों का राज ।

पूजा बोनस की कमाई से होते थे जो काम ,
इनकम टैक्स जीएसटी को भर दिए वो दाम ।

लाइसेंसो से फाइलें भरी पड़ी है ,
अभी भी कई नोटिस नई खड़ी है ।

सेलरी देना हुआ मुश्किल ,
बोनस क्या खाक दे पाऊँगा ।

नया व्यापार करना हुआ सपना ,
क्या पूराने को भी बचा पाऊँगा ?

छोटे व्यापारी उद्यमियों की मन्दी अब उबरने से रही ,
ओला-उबर के जमाने मेंं ऑटो-टैक्सी चलने से रही ।

ए दिवाली , तुम इतनी जल्दी क्यूँ चली आई ।
क्या तुम्हें पता नहीं देश मेंं अभी मंदी छाई है ॥

कोई बात नहीं , अच्छा है ,
फिर पुराना जमाना आएगा ।

आमपत्तों और केला गाछ से होंगी सजावट ,
मिट्टी के दीयों से अपना शहर जगमगाऐगा ।

नहीं छूटेगें पटाखे ऊंचे ऊंचे बड़े बड़े ,
फुल्झरीयो चकरी से बच्चे खुश हो जायँगे ।

बन्द होगा ड्रायफ्रूट्स गिफ्ट का फैशन ,
हलवा हर घर मेंं फिर बनाया जाएगा ।

चूँकि होंगे नहीं सेलिब्रेशन डिनर इस साल ,
रिश्तेदारों का घर फिर फिर याद आएगा ।

होगी देवी लक्ष्मी की आराधना ,
व्यापारी सच्ची दिवाली मनाएगा ।

ए दिवाली , अच्छा हुआ तुम जल्दी चली आ गई ।
हुई सफाई, हटी धूल आईने से, सच्चाई नजर आ गई ॥

संदीप मुरारका
६.१०.२०१९ रविवार
शुभ महाअष्टमी







Saturday, 10 August 2019

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

आजकल हमारे देश मेंं एक नारा बहुत जोर पकड़ा हुआ है - बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ । माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत से  ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नाम से एक स्कीम’ की शुरुआत भी की है । जिस स्कीम का लक्ष्य है  -

कन्या भ्रूण हत्या का रोकथाम (Prevention of gender-biased sex-selective elimination)

कन्याओं की सुरक्षा व समृद्धि (Ensuring survival & protection of the girl child)

बालिकाओं की शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करना (Ensuring education & participation of the girl child)

परन्तु विषय यह है कि इस नारे की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ? आखिर क्यों बेटी और बेटा मेंं फर्क किया जाता है ? आखिर क्यों लड़की और लड़कों की जनसंख्या का अनुपात गड़बड़ा गया ? दोषी कौन है ? सरकार - समाज या स्वयं हम ?

मित्रों जब जब किसी लड़की को अवसर प्राप्त हुए हैँ , उसने स्वयं को साबित किया है । इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है । आप लक्ष्मीबाई को ही लीजिए , अकेली झाँसी की बेटी ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिए ।

आजाद भारत के कितने पूर्व प्रधानमन्त्रीयों के नाम आपको याद हैँ ? लेकिन आज तक मात्र एक बेटी एक महिला इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी और इतिहास मेंं उनका नाम स्वर्ण अक्षरों मेंं अंकित किया गया ।

चाहे स्वर्गीय सुषमा स्वराज हों या स्वर्गीय शीला दीक्षित या स्वर्गीय जयललिता या आनन्दी बेन पटेल हों या मायवती या ममता बनर्जी हों या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण या स्मृति ईरानी हों या हमारी अपनी सांसद महोदया श्रीमती रेणुका सिंह सरौता ही क्यों ना हो - ये सब भी तॊ बेटियाँ ही है ना !

अंतरिक्ष को नापना था तॊ बेटी कल्पना चावला का नाम याद कीजिए और माउंट एवरेस्ट चढ़ना हो तॊ बचेन्द्रि पाल या प्रेमलता अग्रवाल का नाम जबान पर आ ही जाता है ।

उस साहसी बेटी का नाम कैसे भूल सकती हूँ ? अरुणिमा सिन्हा ! जिन्हें अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए गया । उनका एक पैर काटना पड़ा । उसके बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट  को फतह कर लिया ।

कारपोरेट जगत की सूची क्या पेपिस्को की इंदिरा नूई के बिना पूरी हो सकती है या बैंकिग सूची एस बी आई की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य के बिना पूरी की जा सकती है ?

क्रिकेट मेंं भारत वर्ल्ड कप फाईनल मेंं भी नहीं पहुँच पाया , वहीं 2017 के आईसीसी महिला क्रिकेट विश्व कप मेंं भारत की बेटियों की टीम उपविजेता रही ।

जिस हरियाणा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या सबसे कम है, उसी हरियाणा की बेटी साक्षी मलिक
ने पहलवानी मेंं ओलंपिक पदक जीत कर भारतमाता का माथा ऊँचा कर दिया । ओलंपिक जीतने वाली साइना नेहवाल, मेरीकॉम , कर्णम मल्लेश्वरी भी तॊ बेटियाँ ही हैँ ।

क्या बालीवुड मेंं आदरणीय लता मंगेशकर जी से ज्यादा सम्मान किसी को प्राप्त हो सकता है क्या ? वो भी तॊ एक बेटी ही है ।

क्या टीवी न्यूज़ चैनल पर आज की तारीख मेंं मिस अंजना ओम कश्यप से ज्यादा पॉपुलर कोई दूसरा एंकर है क्या ? अंजना भी तॊ एक बेटी ही है ।

हिन्दी साहित्य का पुराना संकलन जहाँ महादेवी वर्मा के बिना अधूरा है वहीं नया संकलन शोभा डे के बिना पूरा नहीं हो सकता ।

बेटी यदि सुन्दर हो तॊ वो ऐश्वर्या राय या सुष्मिता सेन बन जाती है और यदि मोटी हो कम सुन्दर हो तॊ भी टुनटुन और भारती बन कर छा जाती है ।

और मजबूर होकर यदि किसी बेटी को डाकू बनना पड़ा तॊ भी वह फूलनदेवी बनकर इतिहास ही रचती है ।

क्षेत्र कोई भी हो , बेटियों को जब जब अवसर मिला है , उन्होंने सर्वोच्च स्थान पाया है ।

बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ ।

आप पूरे भारत के किसी कोने की किसी भी निजी अच्छी स्कूल मेंं चले जाईए, आपको शिक्षिका के रुप मेंं 90% बेटियाँ ही पढ़ाते हुए मिलेंगी। यानि पढ़ाई पर तॊ बेटियों का पेटेंट है ।

मुझे नहीं लगता इस विषय पर और कहने को कुछ शेष है , क्योंकि मैँ भी एक बेटी ही हूँ ।

अपनी अंतरात्मा को जगाओ ।
बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ ॥

- मेरी भांजी आकांक्षा अग्रवाल की भाषण प्रतियोगिता के लिए लिखे गए शब्द
11/08/2019 रविवार
शुभ एकादशी श्रावण शुक्ला २०७६

Wednesday, 7 August 2019

मन के हारे हार

मन के हारे हार सदा रे, मन के जीते जीत,
मत निराश हो यों, तू उठ, ओ मेरे मन के मीत ॥ - कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की इन पंक्तियो को यदि कोई जीवन का मंत्र बना ले , तॊ उसकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता ।

मन कें हारे हार है , मन के जीते जीत । इस विषय को ठीक से समझने से लिए ज्यादा कुछ नहीं अपने आस पास की या इतिहास की कुछेक घटनाओ को देख लेना काफी होगा । जैसे कि

आज से 22 साल पहले वर्ष 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहार वाजपेयी जी ने संसद में कहा था- “मेरी बात को गांठ बांध लें, आज हमारे कम सदस्य होने पर आप कांग्रेसी हम पर हंस रहे हैं लेकिन वो दिन आएगा जब पूरे भारत में हमारी सरकार होगी, उस दिन देश आप पर हंसेगा और आपका मजाक उड़ायेगा।”  
आज वर्ष 2019 मेंं माननीय अटल जी की बात सत्य हो गई । क्यों हुईं ? इसलिए कि भाजपा मतों से भले हार गई थी , पर मन से नहीं हारी थी ।

अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति थे अब्राहम लिंकन । वह एक ऐसे राष्ट्रपति थे जो व्हाइट हाउस पहुंचने से पहले आधा दर्जन चुनाव हार चुके थे, उन्हें एक बार दिवालिया तक घोषित किया जा चुका था। किन्तु वे मन से नहीं हारे थे औऱ इसी मन की जीत ने उन्हें अमेरीका का राष्ट्रपति बना दिया ।

बिजली के बल्ब के आविष्कार करने में एडिसन को कड़ी मेहनत करनी पड़ी. एडिसन  बल्ब बनाने में 10 हजार बार से अधिक बार असफल हुए. किन्तु मन से नहीं हारे । अंततः उनकी जीत हुईं , जिसपर उन्होंने कहा 'मैं कभी नाकाम नहीं हुआ बल्कि मैंने 10,000 ऐसे रास्ते निकाले लिए जो मेरे काम नहीं आ सके' ।

इस कड़ी मेंं एक महत्वपूर्ण नाम है अरुणिमा सिन्हा , जिन्हें अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए गया । उनका एक पैर काटना पड़ा । उसके बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट  को फतह कर लिया । क्योंकि पाँव कटने कें बाढ़ भी अरुणिमा मन से नहीं हारी ।

दोस्तों ऐसे हजारों उदाहरण आपको अपने आस पास या स्वयं खुद के भीतर मिलेंगे , जब यदि आपने किसी विषय मेंं हार कर हथियार डाल दिया तॊ विफल कहलाओगे । किन्तु यदि आप अपने मन को जीत लीजिए , बार बार प्रयास कीजिए , सफलता तॊ हाथ लगेगी ही , इतिहास मेंं भी आपका नाम अंकित होगा ।

क्योंकि
दिशा दिशा बनती अनुकूल, भले कितनी विपरीत।
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ॥

लहर लहर से उठता हर क्षण जीवन का संगीत
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ॥

संदीप मुरारका
6 अगस्त 2019
श्रावण षष्ठी शुक्ला २०७६

Saturday, 4 May 2019

निर्वाचन 2019

पप्पू वप्पू ना बनो ,
ना बनो बेवजह चौकीदार ।

चुनो ऐसी मजबूत सरकार ,
जो बढ़ाए खेती , उद्योग व व्यापार ॥

ममता माया का मोह छोड़ो ,
अखिलेश तेजस्वी से अब नाता तोड़ो ।

उठाओ मतदान का हथियार ,
काश्मीर मेंं भी हो केन्द्र की सरकार ॥

स्कूलों मेंं एडमिशन आसान हो ,
नर्सिग होम डाक्टरों पर कड़ी लगाम हो ।

व्यापारी कृषक को सम्मान मिले ,
छोटे उद्यमी मजदूरों को भरपूर काम मिले ॥

जाति पाति का चक्कर मिटे ,
आरक्षण वारक्षण अब दूर हटे ।

फाइलों का लटकना बन्द हो ,
बिन पैसा पैरवी भी दस्तखत हो ॥

Sunday, 29 July 2018

आओ मृत्यु

आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ,
वरण करूँ तुम्हारा ।

श्वेत चादर तुम लेते आना ,
देह को खूब सजाना ।

मिली कब्र यदि मुझको , आह !
उस ज़मी पर मेरा राज होगा ।

जला दिया गया यदि मैं ,
तो नदियों मेंं मेरा संसार होगा ।

मिलेगा ना कोई आशिक ,
तुमको मुझ जैसा ।

आओ तुम भी मुझको वरण करो ,
करना है कल जो वो आज करो ।

मिलकर उनसे कहना है -
निवेदन यह स्वीकार हो -

हर जगह विलम्ब परमात्मा ,
ये न्याय सही नहीं ।

जिस जन्म के हों अपराध ,
उसी जन्म मेंं सजा हो ।

जिस जन्म मेंं हों कर्म अच्छे ,
वह जन्म सफल हों ।

पूर्वजन्म की पोथी के आधार पर ,
ना चलाओ दुनिया ।

स्वयं पर शक होने लगता है ।
बेवजह आप पर भी ......।

सो अब इंतजार ना कराओ ,
आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ।

वरण करूँ तुम्हारा,
आओ मृत्यु , आओ मृत्यु ॥

29/7/2018

Saturday, 14 July 2018

मातृभूमि

मातृभूमि

पूरे विश्व में लगभग 195 देश हैं , जिसमें एक मात्र अपना भारत देश ऎसा है जहाँ मातृभूमि को माँ के रूप में पूजा जाता है । भारत माता एक मूर्ती या केवल मानचित्र ही नहीं बल्कि 125 करोड़ देशवासियों की आस्था का प्रतिक है । जिनका मुकुट हिमालय पर्वत है तो उनके चरणों को नित्य कन्याकुमारी धोती है । जिनके दायें हाथ में जैसलमेर का रेगिस्तान है तो बायाँ हाथ अरुणाचल प्रदेश के आर्किड फूलों से सुसज्जित है ।

कहते हैं "जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "अर्थात् जननी यानि माँ और मातृभूमि यानि देश दोनों ही स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है ।

जिस प्रकार माँ का प्यार, दुलार व वात्सल्य अतुलनीय होता है , उसी प्रकार जन्मभूमि की महत्ता हमारे समस्त भौतिक सुखों से कहीं अधिक है । लेखकों, कवियों व महामानवों ने जन्मभूमि की गरिमा और उसके गौरव को जन्मदात्री के तुल्य ही माना है ।

जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा अपनी छाती के दूध से उसका लालन-पालन करती है, उसी प्रकार मातृभूमि अपनी उपजाऊ छाती से अनाज फल मूल सब्जी उत्पन्न करती है और अपने देशवासियों का भरण पोषण करती है ।

मातृभूमि के लिए कवि गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' लिखते हैं -

“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”

किन्तु क्या मातृभूमि केवल देने के लिए है ? हमारा उसके प्रति कोई कर्तव्य नहीं ? ऎसे ढेरों सवाल हैं जिन्हें संक्षिप्त शब्दों मेँ समेटना मुश्किल है । आज जो ट्रेंड चल रहा है कि पैदा भारत मेँ होंगे , खाएँगे इसी भूमि मेँ उपजा अनाज , शिक्षा यहीं प्राप्त करेंगे , डिग्री अपने देश की लेंगे औऱ चंद ज्यादा पैसों के लिए रोजगार विदेशों मेँ करेंगे । यानि जिस माँ (मातृभूमि ) ने आपको इस योग्य बनाया उसे सेवा ना देकर अपनी प्रतिभा का उपयोग वैसे देश के लिए जहाँ आपको दोयम दर्जे का समझा जाता है । इस मानसिकता को बदल कर हमें युवा भारत , योग्य भारत , प्रतिभाशाली भारत , संभावनाओं से भरपूर भारत , 21वीं सदी का नेतृत्वकर्ता भारत का निर्माण करना है । मातृभूमि पर शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की एक प्रसिद्ध कविता की दो पंक्तियाँ देश के बाहर नौकरी कर रहे युवाओं के लिए प्रेरक हो सकती हैं -

"तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ ,
मन औऱ देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ । "

घर सम्पति को चोर उच्चकों से बचाने के लिए ताले व सुरक्षा की जरूरत पड़ती है , वैसे ही मातृभूमि की रक्षा कोई आसान कार्य नहीं है । हमारी मातृभूमि की सीमाएँ या तो सियाचिन जैसे ठंडी जगह पर है या राजस्थान के रेगिस्तान मेँ , या बिहार के नक्सल क्षेत्र मेंं है तो कहीं समंदर के गहरे पानी के उस पार है । दुश्मन देश घात लगाकर हमारी मातृभूमि को आघात पहुँचाने के लिए बैठे हैं , पर यदि हम सुरक्षित हैं , हमारी सीमा सुरक्षित है , हमारी मातृभूमि सुरक्षित है तो उसका श्रेय जाता है हमारी सशक्त सेना औऱ उसके जवानों को । जिनके सम्मान मेँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा कविता मेँ लिखा था -

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                  जिस पर जावें वीर अनेक॥

- आकांक्षा अग्रवाल केभाषण प्रतियोगिता के  लिए लिखे गए शब्द , जिसमें उसे प्रथम पुरस्कार मिला ।