Sunday, 21 February 2021

समीक्षा : पर्दे के पीछे राजनेता - कवि कुमार

कई पुराने संस्मरणों,  कड़वी मीठी यादों व जीवन के अनुभवों को समेटकर कलमबद्ध करने का प्रयास है पुस्तक "पर्दे के पीछे राजनेता" । संताल युवा बबलू मुर्मू की राजनीतिक पारी व उसके जीवन का अवसान लेखक ने किन विपरीत परिस्थितियों में लिखा। छिहत्तर वर्षीय जवाहर लाल शर्मा की फाईल का मामला हो या पूर्व वित्त मन्त्री स्वर्गीय एम पी बाबू का बयान कि "भाजपा को वेश्यालय ना बनाएं" - इन विषयों पर बेबाक लिखने की हिम्मत की है पिछले चार दशक से पत्रकारिता कर रहे कवि कुमार ने।

अपने ही साथियों द्वारा बहिष्कार का दंश झेल चुके कवि कुमार ने जिस साफगोई से लिखा है, "चरणपादुका पूजन के इस युग में" ऐसे पन्नों का मिलना असम्भव है। केन्द्रीय मन्त्री अर्जुन मुण्डा का मिलनसार स्वभाव और राज्य सरकार के मन्त्री बन्ना गुप्ता का जुझारुपन दोनों ही इस पुस्तक में परिलिक्षित होता है। राजनीति से जुड़े लोग हों या सामान्य लोग, यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। लेखक कवि कुमार द्वारा लिखी गई 97 पृष्ठों की पुस्तक 'पर्दे के पीछे राजनेता' मात्र 100 रूपए में किंडल पर उपलब्ध है।




Saturday, 13 February 2021

गोवा और लोहिया

गोवा

मौज मस्ती, सैर सपाटे, हनीमून और छुट्टियों के लिए प्रसिद्ध डेस्टिनेशन गोवा में लोग या तो समुद्री किनारों (Sea Beach) का लुफ्त उठाने जाते हैं या नाइट लाइफ एन्जॉय करने। ऐसा लगता है मानो गोवा का अर्थ है आलीशान क्रूज के कैसीनो में जुआ खेलना, दिनभर बीयर पीना और रात को जमकर डांस करना। क्या छवि बना लेते हैं हम किसी भी स्थान की !

हालाँकि यह गलती हमारी नहीं है, गोवा टूरिस्ट गाईड उठाइए, उसमें दर्शनीय स्थलों की एक फ़ेहरिस्त मिलेगी - पालोलेम बीच, बागा बीच, दुधसागर वॉटरफॉल, बॉम जिसस बसिलिका, अगुआडा फोर्ट, सैटर्डे नाईट मार्केट, मंगेशी मंदिर, नेवेल एविएशन म्यूजियम, टीटो नाईट क्लब, मार्टिन कॉर्नर, अंजुना बीच, चोराओ द्वीप, मिरामार बीच, से कैथेड्रल चर्च, रैचौल सेमिनरी चर्च, चर्च औफ आवर लेडी, स्पाइस गार्डेन इत्यादि।

बागा बीच में पैरासीलिंग और बनाना राईड करनी हो या डॉल्फिन देखनी हो, मोलम नेशनल पार्क में हाईकिंग या ट्रैकिंग करनी हो, दूनिया से बेखबर होकर हेडफोन लगाकर
पालोलेम बीच में थिरकना हो या अगुआडा किले में फोटोग्राफी करनी हो, तड़क भड़क शॉपिंग का मजा लेना हो या लाउड म्यूज़िक का , लज़ीज़ सी फूड खाना हो या हिप्पी कल्चर देखना हो अथवा प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लेना हो - छोटे से गोवा में सबकुछ है।

मात्र 14.59 लाख आबादी वाले छोटे से राज्य गोवा में आयरन ओर की खदानें भी हैं और काजू की खेती भी। मात्र 2 जिलों वाले गोवा में 2 सांसद और 40 विधायक हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट का पणजी बेंच ही गोवा का उच्च न्यायालय है। गोवा प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत का सबसे अमीर राज्य है - जो राष्ट्रीय औसत का 2.5 गुना है।

बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर एवं पद्मविभूषण आशा भोंसले गोवा मूल की हैं। अपनी स्वच्छ छवि, सादगी व ईमानदारी के लिए विख्यात पद्मभूषण मनोहर पर्रिकर जैसे नेता गोवा के मुख्यमंत्री रहें हैं। गोवा की रत्नगर्भा भूमी ने देश की कई चर्चित हस्तियों को जन्म दिया, यथा : मराठी अभिनेत्री आशालता वाबगांवकर, अभिनेत्री मीनाक्षी शिरोडकर, अभिनेता रोहित रेड्डी, पार्श्व गायिका शेफाली अल्वरेस, टी वी एक्ट्रेस परनीत चौहान, वैज्ञानिक रघुनाथ अनंत माशेलकर, पर्यावरणविद क्लाउड अल्वरेस, शास्त्रीय संगीतकार पंडित जितेन्द्र अभिषेकी , संगीतकार ट्रम्पेटर क्रिस पेरी, जिनके एक्जीविशन 22 देशों में लगे ऐसे कार्टूनिस्ट मारियो दे मिरांडा, अर्जुन अवार्ड विजेता फुटबॉलर ब्रूनो कॉटिन्हो, सीएसआईआर के डायरेक्टर जनरल रघुनाथ माशेलकर, साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि मनोहर राय देसाई एवं
बालकृष्ण भगवन्त बोरकर, उद्योगपति वासुदेव सलगांवकर, आयुर्वेदिक चिकित्सक रामचंद्र पांडुरंग वैद्य इत्यादि।

डॉ़० राम मनोहर लोहिया

किन्तु इन सब नामों के अलावा और एक नाम है, जिनका जन्म भले ही गोवा में ना हुआ हो, किन्तु आज यदि गोवा भारत का अभिन्न अंग है, तो उसका एक मात्र श्रेय उस शख्सियत को जाता है, वो हैँ डॉ़० राम मनोहर लोहिया। गुजरात में स्थापित सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्मारक स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का जो राजनैतिक महत्व है या दिल्ली में राजघाट की जो ऐतिहासिक महत्ता है, कुछ वैसी ही महिमा है गोवा के मार्गाओ- पजीफोंड के इसिडोरियो बापिस्ता रोड़ में अवस्थित लोहिया मैदान की, जहाँ राम मनोहर लोहिया की प्रतिमा स्थापित है।

वो लोहिया, जिनके विषय में संसद में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने प्रधानमंत्री प० जवाहर लाल नेहरु के समक्ष यह कह दिया कि -

तब कहो, ढोल की य’ पोल है,
नेहरू के कारण ही सारा गण्डगोल है।

फिर ज़रा राजा जी का नाम लो।
याद करो जे.पी. को, विनोबा को प्रणाम दो।
"तब कहो, लोहिया महान है।
एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है।"

और जब पुनः प्रकाश हो ;
बोलो, कांगरेसियों ! तुम्हारा सर्वनाश हो।

और वो लोहिया, जिनके न रहने पर महान कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने यह लिख कर उन्हें याद किया कि -

संतो की दूकानों के आगे
खड़ी रहेगी उसकी मचान
भेड़ों के वेश में निकलते कमीने तेंदुओं पर
तनी रहेगी उसकी दृष्टि ।
ओ मेरे देशवासियों
बनना हो जिसे बने नए युग का सिरमौर...
"अभी तो उसके नाम पर
एक चिनगारी और ।"

वहीं वर्ष 1966 में नरेश सक्सेना लिखते हैं कि -
एक अकेला आदमी
गाता है कोरस
खुद ही कभी सिकन्दर बनता है
कभी पोरस ।
एक पेड़ का जंगल
शिकायत करता है वहाँ जंगलियों के न होने की।

लोहिया ना तो स्कूली किताबों में पढ़ाये जाते हैं और ना ही टीवी पर दिखलाये जाते हैं। लेकिन फिर भी यदि उनको जानना हो तो कविवर ओंकार शरद की ये पंक्तियाँ काफी है -

'लोहिया चरित मानस' का कर्म पक्ष शेष हुआ।
आज दिल्ली का एक घर खाली है,
और कॉफी हाउस की एक मेज सूनी है;
बगल की दूसरी मेज पर लोग करते हैं बहस-
लोहिया को स्वर्ग मिला, या मिला नरक!
जिसने जीवन के तमाम दिन बिताए भीड़ों और जुलूसों में,
और रातें, रेल के डिब्बो में, अनेकानेक वर्ष काटे कारागारों में,
जो जूझता ही रहा हर क्षण दुश्मनों और दोस्तों से;
जिसका कोई गाँव नहीं, घर नहीं,
वंश नहीं, घाट नहीं, श्राद्घ नहीं;
पंडों की बही में जिसका कहीं नाम नहीं;
जिसने की नहीं किसी के नाम कोई वसीयत,
उसके लिए भला क्या दोजख, और क्या जन्नत!
मुझे तो उसके नाम के पहले 'स्वर्गीय' लिखने में झिझक होती है;
उसे 'मरहूम' कलम करने में सचमुच हिचक होती है!

वर्ष 1932 - "बर्लिन विश्वविद्यालय" से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले लोहिया के शोध का विषय था - "नमक सत्याग्रह" ।

वर्ष 1946 - देश आजादी की ओर बढ़ रहा था, संविधान सभा के गठन की घोषणा हो चुकी थी, अगले माह जुलाई 1946 में संविधान सभा के लिए चुनाव होने वाले थे। देश भर के सभी स्वतन्त्रता सेनानी लम्बी लड़ाई के बाद एक छोटे ब्रेक के मूड में नजर आ रहे थे। मात्र 36 वर्ष की उम्र के युवा स्वतन्त्रता सेनानी एवं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साप्ताहिक मुखपत्र के सम्पादक डॉ० लोहिया 11 अप्रैल 1946 को आगरा जेल से रिहा हुए और अपने मित्र डॉ० जूलियाओ मेनेज़ेस के निमंत्रण पर गोवा पहुँचे। वहाँ पहुंचते ही वे बीमार पड़ गए।

गोवा ब्रिटिश के नहीं बल्कि पुर्तगाल शासन के अधीन था और स्वतन्त्रा सेनानी लोहिया ने यह देखा कि पुर्तगालियों के शासन में अंग्रेजो से भी ज्यादा क्रूरता है। गोवा के लोगों को संवैधानिक अधिकार तो दूर बल्कि मौलिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे। पुर्तगालियों ने गोवा में किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा पर रोक लगा रखी है। इस गुलामी और अत्याचार को देखकर लोहिया अपनी बीमारी को भूल गए। उन्होनें 200 लोगों को जमा करके एक बैठक की, जिसमें तय किया गया कि नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन छेड़ा जाए।

दिनांक 18 जून 1946, गोवा में जबरजस्त बारिश हो रही थी, उसके बावजूद लोहिया के आहवान पर भारी भीड़ जुटी, जिसमें लोहिया ने पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज उठाई। पुर्तगाल शासन को पहली बार चुनौती मिली थी, पुर्तगाली बौखला गए और उन्होनें लोहिया को गिरफ्तार कर लिया। गोवा के पहले स्वतन्त्रता सेनानी डॉ़० राम मनोहर लोहिया मडगांव की जेल में बन्द कर दिए गए।

भारत में लोहिया की गिरफ्तारी की सूचना फैलने लगी, उनके पक्ष में चौतरफा आवाज उठने लगी, स्वयं महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में लेख लिखकर पुर्तगाली सरकार की कड़ी आलोचना की और लोहिया की गिरफ़्तारी पर उन्होंने सख्त आपत्ति जताई। अंततः दबाव में पुर्तगालियों ने लोहिया को रिहा कर दिया, परन्तु उनके गोवा प्रवेश पर पाँच साल का प्रतिबंध लगा दिया। किन्तु तबतक लोहिया का निशाना सध चुका था, गोवा के लोगों में विद्रोह के स्वर फूटने लगे, आजादी की लड़ाई के लिए गोवा का मानस बन चुका था।
दिनांक 29 सितम्बर 1946, जिद्दी लोहिया के मस्तिष्क में गोवा की आजादी घूम रही थी, वे फिर गोवा पहुँच गए, फिर वही जनसभा, वही गिरफ्तारी, इस बार दस दिनों की जेल, फिर गांधीजी का नैतिक समर्थन, फिर जेल से छूटे, पर छूटते छूटते लोहिया के विचारों की सान पर गोवा स्वतन्त्रता आन्दोलन की धार तेज हो गई।

दिनांक 15 अगस्त 1947, भारत आजाद हो गया, भारत व पाकिस्तान का बंटवारा भी हो गया, दोनों देशों ने सांप्रदायिक दंगे भी झेले, दोनों ओर के सभी नेता अन्य प्राथमिकताओं में उलझे थे। किन्तु लोहिया को देश का वर्तमान नक्शा स्वीकार नहीँ था, उनका स्वप्न वृहत भारत का था, उनका लक्ष्य गोवा का भारत में विलय था।

दिनांक 22 जुलाई 1954, दादरा व नागर हवेली जो पुर्तगालियों के अधीन थी, रातों रात वहाँ के क्रांतिकारियों ने
दादरा पुलिस स्टेशन में हमला कर दिया, पुलिस अधिकारी अनिसेतो रोसारियो की हत्या कर दी और पुलिस चौकी पर भारतीय तिरंगा फहराया दिया गया। दादरा मुक्त प्रान्त घोषित कर दिया गया और जयंतीभाई देसी वहाँ की पंचायत के मुखिया बनाए गए। इस अप्रत्याशित कारवाई से गोवा में पुर्तगाली कमजोर पड़ने लगे।

दिनांक 28 जुलाई 1954, नारोली पुलिस चौकी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आजाद गोमान्तक दल के सदस्यों ने हमला कर दिया, सभी पुर्तगाली पुलिस अफसरों को आत्मसमर्पण करना पड़ा, अंततः नारोली की आजादी की घोषणा हो गई।

दिनांक 2 अगस्त 1954, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आजाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवक सिलवासा की ओर बढ़ चले, उनके बढ़े हुए मनोबल, उनके भीतर जल रही आजादी की आग को देखकर सिलवासा के तत्कालीन पुर्तगाली कप्तान फिदल्गो व उनके सैनिक भाग निकले।
सिलवासा भी मुक्त घोषित कर दिया गया।

वर्ष 1955, लोहिया की जलाई हुई आजादी की मशाल गोवा के हर हिस्से में पहुँच रही थी, उनके अनुयायी जगह जगह आजादी की अलख जगाने में जुटे थे, उनमें अग्रणी मधु लिमये गिरफ्तार कर लिए गए, लोहिया पर दबाव बनाने के लिए पुर्तगालियों ने मधु लिमये को दो वर्षों तक जेल में रखा, पर हर यातना के बाद भी ना मधु लिमये टूटे, ना लोहिया झुके।

वर्ष 1955, गोवा के मुद्दे पर भारत और पुर्तगाल के बीच तनाव गहराने लगा, भारत सरकार ने गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, पाकिस्तान ने गोवा में चावल और सब्जियाँ निर्यात करना आरम्भ कर दिया, पुर्तगाली आसानी से गोवा को छोड़ने के मूड में नहीं थे।  

नवम्बर 1961, पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चला दी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, इसके बाद माहौल बिगड़ने लगा, गोवा में सत्याग्रहियों ने आजादी की लड़ाई को अंजाम तक पहुँचा दिया था, उनकी आंखें  अब भारत की ओर टिकी थीं, इधर भारत में गोवा के विलय का माहौल बनाने में लोहिया सफल रहे, प्रधानमंत्री पण्डित नेहरु ने तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन के साथ आपातकालीन बैठक की और सुनिश्चित हुआ "गोवा मुक्ति अभियान - ऑपरेशन विजय"।

17 दिसम्बर 1961, लोहिया का आजाद गोवा का सपना सच होने के करीब पहुँच गया, भारत ने 30 हजार सैनिकों को ऑपरेशन विजय के तहत गोवा भेजने का फैसला किया।इसमें वायुसेना, जलसेना एवं थलसेना - तीनों ने भाग लिया। यह संघर्ष लगभग 36 घण्टे से अधिक समय तक चला। वायुसेना ने सटीक हमले किए और पुर्तगाली ठिकानों को नष्ट कर दिया। दमन में पुर्तगालियों के खिलाफ मराठा लाइट इंफैंट्री ने मोर्चा संभाला तो दीव में राजपूत और मद्रास रेजिमेंट ने हमला बोला। इधर वायुसेना के बमबर्षक विमानों ने मोती दमन किले पर हमला कर पुर्तगालियों के होश उड़ा दिए तो नौसेना के युद्धपोत आईएनएस दिल्ली ने पुर्तगाल के समुद्री किनारों पर हमला कर दिया। पिछले 36 घंटो में 30 पुर्तगाली सैनिक मारे जा चुके थे, चौतरफा हमले से पुर्तगाल ने घुटने टेक दिए।

19 दिसम्बर 1961, गोवा में पदस्थापित पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया,  लोहिया का स्वप्न पूर्णता की ओर था, 451 साल पुराने औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ, गोवा में भारत का तिरंगा झण्डा लहराने लगा।

भारत की आजादी के 14 साल बाद गोवा स्वतंत्र हुआ, इसका श्रेय हर उस स्वतंत्रता सेनानी व सत्याग्रही को जाना चाहिए, जिसने गोवा की आजादी के लिए संघर्ष किया। गोवा की स्वतंत्रता का श्रेय भारत के उन 22 सैनिकों को जाना चाहिए, जो ऑपरेशन विजय के दौरान शहीद हो गए। किन्तु लोहिया को कोई श्रेय नहीं चाहिए, क्योंकि गोवा की कृतज्ञ माटी को यह पता है कि गोवा में आजादी का बिगुल किसने फूंका था और इसी बात का गवाह है गोवा के मार्गाओ- पजीफोंड के इसिडोरियो बापिस्ता रोड़ में अवस्थित लोहिया मैदान की, जहाँ राम मनोहर लोहिया की प्रतिमा स्थापित है।

दिनांक 12 अक्टूबर 1967, प्रखर वक्ता, चिन्तक, कुशल संगठक, स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी, लोकसभा सांसद डॉ़० राममनोहर लोहिया ने मात्र 57 वर्ष की आयु में सरकारी अस्पताल में प्राण त्याग दिए और अन्तिम संस्कार भी हुआ तो कहाँ - दिल्ली के निगम बोध घाट के विद्युत शवदाह गृह में, बिना किसी धार्मिक कर्मकाण्ड के, ना पुष्प, ना चंदन, ना घी, ना तिलांजलि।

वर्ष 2020, आवश्यकता इस बात की है, इतिहास जीवित रहे, पन्नों में, दिलों में, स्मृतियों में, साथ साथ स्मारकों में। इसके लिए संकल्पित है डॉ़० राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन, जिसका संकल्प है कि गोवा एयरपोर्ट व गोवा यूनिवर्सिटी का नामकरण लोहिया के नाम पर हो और इसके लिए पूरे देश भर में घूम घूम कर प्रयासरत हैं युवा पत्रकार व शोधार्थी अभिषेक रंजन सिंह, जो फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। 

संदीप मुरारका
जमशेदपुर, झारखण्ड
जनजातीय समुदाय के महान व्यक्तित्वों की जीवनियों की पुस्तक "शिखर को छूते ट्राइबल्स" के लेखक








जनजातीय लोककला

संस्कार भारती
कला साधक संगम (ऑनलाइन) 2021
साहित्य विधा
(ख) जनजातीय लोककला

झारखण्ड के जल, जमीं औ' आसमां,
हो, मुण्डा , संथाल , बीरहोर और उराँव ।

अण्डमान निकोबार द्वीप में 'जारवा' जनजाति,
कर्नाटक में "कोलीधर", आंध्र में "चेंचू" जनजाति ।

केरल में 'पनियान', अरुणाचल में 'जिन्गपो लोग',
महाराष्ट्र के 'गोंड' और राजस्थान के 'मीणा' लोग ।

छत्तीसगढ़ में 'कोरकू', गुजरात में बसे हैं 'कोकना' ,
ओड़िसा में 'बोण्डा' , असम में 'बोड़ो' का ठिकाना ।

देश के हर कोने में बसी है जनजाति,
सभ्यता है पुरातन ये, है देश की संस्कृति ।

लोक गीत, नृत्य, जनजातीय कलाकार,
संजोए प्राचीन वाद्ययंत्र, प्राचीन हथियार।
हस्तशिल्प वस्तुएँ और प्राचीन पाण्डुलिपियाँ,
धार्मिक विरासतें औ' अति दुर्लभ कलाकृतियाँ।

लोक संस्कृति के संरक्षक व संवर्द्धक,
जनजातीय हैं पुरातन सभ्यता के संवाहक ।

आदिवासी 'रोजेम' और ढोल बजाता है,
वह मांदर में जीता है, वह खेतों में गाता है।

गोंड पेंटिंग्स का दिवाना है यूएस यूरोप,
कालबेलिया पर हर विदेशी झूम जाता है।

सुकरी अज्जी के लोकगीतों में छिपा इतिहास,
तीजन की पंडवानी कौन नहीं सुनना चाहता है।

बदलते इतिहास ने भुला दी भले कई कहानियाँ,
मिटा दी समयचक्र ने भले कई पुरानी निशानियाँ ।

फिर भी ना मिट ना पाई हस्ती हमारी,
विज्ञान पर भी पड़ती परम्पराएँ भारी ।

जनजातीय लोककला खोलती कई द्वार है,
छिपा हुआ है ज्ञान इनमें, छिपे हुए संस्कार हैं॥

प्रतिभागी -
संदीप मुरारका
जमशेदपुर
9431117507
murarkasan@gmail.com

Thursday, 31 December 2020

पद्म विभूषण एम सी मैरी कॉम, मणिपुर

पद्मविभूषण - 2020, खेल के क्षेत्र में





जन्म : 1 मार्च, 1983
जन्म स्थान  : गांव कांगाथेइ, जिला चुराचांदपुर, मणिपुर
वर्तमान पता : ए -112, जोन- 2 , नेशनल गेम्स विलेज, लांगोल, एम सी मैरी कॉम रोड़, जिला इम्फाल वेस्ट, मणिपुर- 795004
email : mary.kom@sansad.nic.in
पिता : एम टोन्पा कॉम
माता : एम अखाम कॉम
पति : कारॉन्ग ओन्लर कॉम (फुटबॉलर)
विवाह तिथि : 12 मार्च, 2005

जीवन परिचय - आभूषणों की भूमि यानि मणिपुर. देश के सुदूर उत्तरपूर्वी छोर पर स्थित और पहा‍ड़ियों से घिरा हुआ राज्य मणिपुर. प्राकृतिक छटा से भरपूर इस खूबसूरत मणिपुर में वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 7,41,141 थी, जिसमें मात्र 2% यानि 14,602 कॉम ट्राइबल्स थे. इसी कॉम रेम जनजातिय परिवार में जन्म हुआ एम सी मैरी कॉम का.

मैग्नीफिसेन्ट मैरी यानि शानदार मैरी के नाम से विख्यात
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम उर्फ एम सी मैरी कॉम के पिता पेशे से किसान थे. उनकी भी स्पोर्ट्स में रुचि थी, वे स्वयं पहलवान बनना चाहते थे और इसीलिए उनकी आंखें मैरी कॉम में एक स्पोर्ट्सपर्सन को ढूंढ़ती थी. तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी मैरी कॉम के भाई का नाम खुपरेंग एवं बहन का नाम किन्ड़ी है. मैरी कॉम ने मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग 45 किमी पर अवस्थित मोइरांग के लोकतक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल में कक्षा 6 तक और सेंट जेवियर स्कूल में कक्षा 8 तक पढ़ाई की. उनकी आगे की पढाई आदिमजाति हाईस्कूल, इम्फाल में हुई और उन्होनें मैट्रिक की परीक्षा राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से उत्तीर्ण की. उनका ग्रेजुएशन चुराचांदपुर कॉलेज से हुआ.

वर्ष 2005 में जब वे अपने कैरियर के शिखर पर थी, तब उन्होनें विवाह किया, एक माँ बनने के बाद वे फिर रिंग में लौटी और मिसाल प्रस्तुत करते हुए शानदार प्रदर्शन किया. उनके तीन बेटे और एक बेटी हैं चुंग और नेई (जुड़वां 2007) , प्रिंस (2013) और मर्लियन (2018). मैरी कॉम का परिवार क्रिश्चियन धर्म का अनुयायी है.

योगदान - मैरी कॉम के पिता उन्हें एथलीट बनाना चाहते थे. अपने स्कूल की खेल प्रतियोगिताओं में मैरी भरपूर रुचि लिया करती थी. वे वॉलीबॉल, फुटबॉल और एथलेटिक्स सहित सभी प्रकार के खेलों में भाग लिया करती.

वर्ष 1998, एशियन गेम्स में मणिपुर के डिंग्को सिंह ने बाक्सिंग में गोल्ड मैडल जीत कर खेल के उत्सुक जिन युवाओं को बाक्सिंग रिंग की ओर आकर्षित किया, उन्हीं में एक थी मैरी कॉम. मात्र 15 वर्ष की आयु में मैरी अपने पहले कोच के० कोसाना मेइतेइ से बॉक्सिंग के बेसिक रूल्स सीखने लगी. प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतू उन्होनें
गांव छोड़ दिया और नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी, इम्फाल चली गई. जहाँ वे खुमान लम्पक स्टेडियम में कोच एम० नरजीत सिंह के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित होने लगी.

वर्ष 2000, मैरी मात्र 17 वर्ष की थी, जब उन्होनें स्टेट एमेच्योर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप जीत ली और तभी अखबार में छपी उनकी फोटो को देख उनके पिता को पता चला कि उनकी बेटी एथलीट नहीं मुक्केबाज बनने की दिशा की ओर अग्रसर है. पिता इस बात को लेकर चिन्तित थे कि मुक्केबाजी से लड़की के चेहरे पर चोट के दाग हो जाएंगे तो विवाह कैसे होगा ? यह था बेटी के प्रति पिता का प्यार ! उसी वर्ष उन्होनें पश्चिम बंगाल में आयोजित 7 वीं ईस्ट इंडिया महिला बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता.

वर्ष 2001, दिनांक 12 फरवरी, चेन्नई में आयोजित महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में मैरी कॉम ने गोल्ड जीतकर अपने भविष्य के सारे द्वार खोल लिए.
इसी वर्ष मैरी को यूएसए में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में भाग लेने का अवसर मिला और उन्होनें 48 किग्रा श्रेणी में शानदार प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मैडल जीत लिया.

वर्ष 2002, टर्की में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में 45 किग्रा श्रेणी में मैरी का अदभुत प्रदर्शन रहा और वे गोल्ड मैडल जीतकर विश्वविजेता बन गईं. उसी वर्ष हंगरी में आयोजित विच कप में और नई दिल्ली में आयोजित महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप भी मैरी ने गोल्ड जीता.

वर्ष 2003, हिसार में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशीप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी प्रथम स्थान पर रहीं और गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2004, नार्वे में आयोजित वीमेन्स वर्ल्ड कप के 41 किग्रा में मैरी कॉम ने उम्दा प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2005, रूस में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी ने देश को दूसरी बार गोल्ड दिलवा कर विश्वविजेता बनी. इसी वर्ष उन्होनें ताईवान में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीता.

वर्ष 2006, नई दिल्ली में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी ने भारत का मान बढ़ाते हुए फिर गोल्ड मैडल जीत लिया और तीसरी बार विश्वविजेता बनी. उस वर्ष उन्होनें डेनमार्क में वीनस वीमेन्स बॉक्स कप में प्रथम स्थान प्राप्त किया.

वर्ष 2008, चाईना में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में मैरी ने फिर एक बार गोल्ड मैडल जीत लिया और चौथी बार विश्वविजेता बनी. इसी वर्ष गोवाहाटी में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में वे दूसरे स्थान पर रहीं और सिल्वर मैडल जीता.

वर्ष 2009, वियतनाम में आयोजित एशियन इन्डोर गेम्स के 46 किग्रा श्रेणी में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड जीता.

वर्ष 2010, बर्बडॉस में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 48 किग्रा श्रेणी में मैरी ने अपना जलवा बरकरार रखते हुए गोल्ड झटक लिया और पांचवी बार विश्वविजेता का खिताब जीता. इसी वर्ष कजाकिस्तान में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में 46 किग्रा श्रेणी में उन्होनें गोल्ड मैडल और चाईना में आयोजित एशियन गेम्स में 51 किग्रा श्रेणी में कांस्य पदक जीता.

वर्ष 2011, चाईना में आयोजित एशियन वीमेन्स कप में 48 किग्रा श्रेणी में मैरी ने गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2012, मंगोलिया में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में 41 किग्रा श्रेणी में उन्होनें गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2012, लंदन, यूके में आयोजित समर ओलम्पिक में 51 किग्रा श्रेणी में मैरी कॉम ने कांस्य पदक लाकर सबको चौंका दिया.

वर्ष 2014, साउथ कोरिया में आयोजित एशियन गेम्स में मैरी 51 किग्रा श्रेणी में प्रथम स्थान पर रही. 

वर्ष 2017, वियतनाम में आयोजित एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप में 48 किग्रा श्रेणी में मैरी कॉम ने गोल्ड मैडल जीता.

वर्ष 2018, नई दिल्ली में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 45- 48 किग्रा श्रेणी में मैरी ने फिर गोल्ड जीता और वे छठी बार विश्वविजेता बनी. इसी वर्ष आस्ट्रेलिया में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स में भी उन्होनें ही गोल्ड जीता.

वर्ष 2019, रूस में आयोजित एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 51 किग्रा श्रेणी में मैरी तीसरे स्थान पर रहीं, उन्हें कांस्य पदक मिला.

खेल प्रतिस्पर्धाओं में खिलाड़ियों के खानपान व आवास की अव्यवस्था एवं उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ मैरी कॉम खुल कर आवाज उठाती रही. उनके लगातार प्रयासों के कारण कई बदलाव भी हुए. वे कहती हैं - "पहले मैडल पाने के लिए जीवन दाँव पर लगाओ, फिर जीवन जीने के लिए मैडल दाँव पर लगाओ, ऐसी व्यवस्था को बदलना जरूरी है. "

मणिपुर में ऐम्च्योर बॉक्सिंग खेल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मैरी कॉम एवं उनके पति कारॉन्ग ओन्लर कॉम द्वारा वर्ष 2006 में "मैरी कॉम रिजिनल बॉक्सिंग फाऊंडेशन" की स्थापना की गई, एनजीओ के रूप में निबंधित इस फाउंडेशन की पंजीकरण संख्या 2477/2006 है. यहाँ गरीब प्रशिक्षुओं को निःशुल्क ट्रेनिंग, भोजन व आवास की सुविधा दी जाती है. फाउंडेशन मणिपुर एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन (एमएबीए) से भी संबद्ध है. मणिपुर सरकार ने 2013 में फाउंडेशन को इम्फाल खेल गांव में 3.30 एकड़ भूमि आवंटित की है. युवा मामले और खेल मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय खेल विकास कोष (NSDF) के द्वारा वहाँ व्यायामशाला और आउटडोर बॉक्सिंग हॉल का निर्माण करवाया गया है. भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) द्वारा कोचिंग सहायता प्रदान की जाती है. वहाँ 2 बॉक्सिंग रिंग, 50 लड़कों और 50 लड़कियों के लिए अलग अलग हॉस्टल, क्वार्टर, डाइनिंग हॉल इत्यादि बुनियादी ढांचे की स्थापना की जा रही है.
https://marykomfoundation.org/

पशु हित में कार्यरत पेटा इण्डिया के अभियान का समर्थन करते हुए मैरी कॉम कहती हैं कि - "जानवरों के साथ क्रूरता बन्द करने का सबसे अच्छा तरीका है, युवाओं को करुणा सिखाना."

कलर्स टीवी, इसीपीएन स्टार स्पोर्ट्स, एम टीवी, यूट्यूब में प्रदर्शित होने वाले सुपरफाइट लीग में मैरी कॉम ब्राण्ड एम्बेसडर की भूमिका में थीं.

सांसद - वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं, जिनमे 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं, इन्हें 'नामित सदस्य' कहा जाता है. खेल के क्षेत्र में मैरी कॉम के अतुलनीय योगदान को देखते हुए दिनांक 25 अप्रेल 2016 को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें उच्च सदन राज्यसभा के लिए नामित किया गया है.

सम्मान व पुरस्कार - खेल के मैदान में भारत के राष्ट्र गान व झण्डे को विश्वभर में सम्मान दिलाने वाली 6 बार की विश्वविजेता महिला मुक्केबाज एम सी मैरी कॉम को वर्ष 2006 में पद्मश्री, वर्ष 2013 में पद्म भूषण एवं वर्ष 2020 पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया. खेल के क्षेत्र में उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड प्रदान किया गया. देश की शानदार मुक्केबाज मैरी कॉम को वर्ष 2003 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया. इंटरनेशल बॉक्सिंग एसोसिएशन द्वारा मैरी कॉम को एआईबीए वीमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप 2009 एवं 2016 का ब्राण्ड एम्बेसडर मनोनीत किया गया. एआईबीए द्वारा उन्हें 2016 एवं 2017 में लीजेंड अवार्ड से सम्मानित किया गया. वर्ल्ड ओलम्पियंस एसोशिएसन द्वारा 2016 में गठित ओलम्पियंस फॉर लाइफ प्रोजेक्ट की सदस्य हैं मैरी कॉम. लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स 2007 - पीपुल्स ऑफ द  ईयर में मैरी कॉम का नाम अंकित किया गया. वर्ष 2008 में उन्हें पेप्सी एम टीवी द्वारा यूथ आइकॉन की उपाधि दी गई. सहारा स्पोर्ट्स अवार्ड्स 2010 के तहत उन्हें स्पोर्ट्स वीमेन ऑफ द ईयर का खिताब दिया गया.

खेल की रिंग में उनकी अदभुत योग्यता को देखते हुए 29 मार्च, 2016 को मेघालय की नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी द्वारा मैरी कॉम को डॉक्टरेट (डीलिट्) की मानद उपाधि प्रदान की गई. दिनांक 14 जनवरी, 2019 को असम के काजीरंगा यूनिवर्सिटी द्वारा मैरी को डीफील की मानद उपाधि प्रदान की गई.

वर्ष 2012 में जब उन्होनें ओलम्पिक में कांस्य पदक जीत कर देश का मान बढ़ाया, तो कई राज्य सरकारों व संगठनों ने उन्हें लाखों रुपए की राशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की. मणिपुर राज्य सरकार (रुपए 50 लाख), राजस्थान सरकार (रुपए 25 लाख), असम सरकार (रुपए 20 लाख), अरुणाचल प्रदेश सरकार (रुपए 10 लाख), जनजातीय मंत्रालय, भारत सरकार (रुपए 10 लाख), पूर्वोत्तर परिषद (रुपए 40 लाख).

आत्मकथा - बॉक्सिंग रिंग में जीत के लिए अथक संघर्ष और जुनून की कहानी कहती मैरी कॉम की आत्मकथा "अनब्रेकेबल" एक पठनीय पुस्तक है. दिनांक 27 नवम्बर 2013 को हार्पर कॉलिन्स द्वारा 160 पृष्ठ की यह पुस्तक सहायक लेखिका ड़ीना सेरटो द्वारा लिखी गई है. अमेजॉन पर उपलब्ध इस पुस्तक की लिंक -

https://www.amazon.in/Unbreakable-Mary-Kom/dp/9351160092

बायोग्राफिकल स्पोर्ट्स फिल्म - दिनांक 5 सितंबर 2014 को मैरी कॉम की जीवनी पर आधारित हिन्दी फिल्म रिलीज़ हुई. निर्देशक ओमंग कुमार द्वारा निर्देशित एवं संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने मैरी की भूमिका अदा की है. 


( पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 से )

पद्म भूषण तीजन बाई, छत्तीसगढ़

पद्म विभूषण - 2019  लोक कला व गायन के क्षेत्र में

जन्म : 7 सितम्बर ' 1956 (हरतालिका तीज)
जन्म स्थान : गनियारी ग्राम, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
वर्तमान निवास : गनियारी ग्राम, भिलाई, जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
पिता : हुनुकलाल परधा
माता : सुखवती?
पति: तुक्का राम

जीवन परिचय - छत्तीसगढ़ की ट्राइबल जाति गोंड की उपजाति परधान में तीजन का जन्म हुआ. छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्व तीजा के दिन जन्म हुआ, इसलिए इनकी माँ ने नाम रख दिया 'तीजन' . वे अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं. परिवार चटाइयाँ और झाडू बुनने का काम करता था, 'झाडू' थी उनकी पारिवारिक आजीविका.

तीजन बारह वर्ष की हुई. नाना के घर गई हुई थी. नाना ब्रजलाल पंडवानी गाते थे. गांव गांव में कार्यक्रम करते थे. कार्यक्रम अमूमन रात्रि को हुआ करते थे. ज्यादातर पुरुष ही दर्शक होते थे. एक रात नाना कार्यक्रम देकर पैदल घर को लौट रहे थे. देखा पीछे पीछे 12 वर्षीय नातिन चली आ रही है. अरे ! तू कहाँ थी तीजन ? नानाजी आप पंडवानी सुना रहे थे. मैं वहीँ मंदिर में बैठी सुन रही थी. नानाजी ने देखा रास्ता भी कट जाएगा, बच्ची से गप्पें भी हो जाएगी. उन्होनें पूछा - अच्छा तीजन , बताओ तो क्या सुना ? मानो तीजन इस निमन्त्रण के इंतजार में ही थी. शकुनि द्वारा जुए में छल से प्रारम्भ होकर, युद्घ की तैयारियों से लेकर, गीता संदेश, जहर उगलता दुर्योधन, द्रौपदी का स्वाभिमान, अर्जुन की वीरता, दुशासन का वध, भीम की गदा का कमाल, भीम और हनुमान का मिलन आदि आदि. छोटी सी तीजन, मधुर छत्तीसगढ़ी बोली और धाराप्रवाह इतनी कहानियाँ. नाना ब्रजलाल की आँखे डबडबा गई. उन्हें तीजन के भीतर का कलाकार दिख गया.

अब नानाजी अपने झौपडे में तीजन को पंडवानी गायन सिखाने लगे. उनके पास था महाभारत की कहानियों का कभी ना खत्म होने वाला खजाना. अभी एक माह ही हुए थे. तीजन की माँ को पता चला कि तीजन पंडवानी में रुचि ले रही है. भाई बहनों में सबसे बड़ी, ऊपर से लड़की, घर के कामों में हाथ बटाने की बजाए, गाने गाए ! वो भी 1968 में. रूढ़िवादी माँ तीजन को अपने घर लौटा लाई. और जम कर पीटा झाडू से. डर से थरथराती तीजन के होंठो से द्रौपदी की गाथा फूट पड़ी. माँ का क्रोध सातवें आसमान पर. शुरू हुआ बालिका तीजन पर यातनाओं का दौर. कमरे में बन्द कर दिया जाता. खाना नहीँ दिया जाता. ना अक्षर ज्ञान. ना स्कूल. ना खेल का मैदान. आसान नहीँ था उनका बचपन. अंततः तेरह साल की उम्र में ब्याह दी गई तीजन.

योगदान - तीजन का विवाह हो रहा था. किन्तु वो महाभारत के किस्से गुनगुना रही थी. आखिर बच्ची ही तो थी. उसकी मधुर बोली में पंडवानी बड़ी सुहावनी लगती. आस पास की महिलाएँ मौका पाकर तीजन को पंडवानी गाने बोलती. वो गाया करती. यह बात उसके ससुराल वालों को नहीँ सुहाती थी. एक बार नजदीक के
चंद्रखुरी गांव में पंडवानी का आयोजन था. आयोजकों ने बाल कलाकार तीजन की तारीफ़ें सुन रखी थी. सो निमन्त्रण भेज दिया. पर पति से अनुमति नहीँ मिली.

"रात्रि के प्रहर में 
छोड़ मोह माया का संसार .
निकल पड़े गौतम 
करने बुद्ध जीवन को साकार."

- सदैव गौतम ही यशोधरा को नहीँ छोड़ जाते, जरूरत पड़ने पर यशोधरा भी बुद्ध की राह पर पति को छोड़ निकल सकती है.

कुछ ऐसा ही घटित हुआ तीजन के जीवन में. चंद्रखुरी गांव का निमन्त्रण मिलने के बाद तीजन मंच पर चढ़ने को बेताब थी. रात का अंधियारा. सोता हुआ पति. तानपुरा लेकर तीजन पति के घर से निकल पड़ी. तानपुरे पर लगे मोरपंख को यूँ पकड़ा मानो कान्हा की अंगुली थाम रखी हो.

पहुँच गई चंद्रखुरी. मंच पर अपना पहला कार्यक्रम देने लगी. दर्शक आवाक हो कर सुन रहे थे. एक नई  कलाकार की मीठी आवाज में पंडवानी. कि अचानक पति वहाँ पहुंच गया और मंच पर चढ़ गया. तीजन के बालों को खींचकर उसे घर ले जाने का प्रयास करने लगा . किन्तु महाभारत की कथा सुना रही तीजन के तानपुरे में अर्जुन के गांडीव और भीम के गदा की शक्ति समा गई. जिसका प्रहार पड़ा मूर्ख पति की पीठ पर. भविष्य की ओर अग्रसर तीजन की राह रुक ना पायी. बल्कि आसान हो गई.

चंद्रखुरी गाँव के लोगों ने तीजन को कार्यकम के एवज में एक बोरी चावल दिए. तीजन ने उन्हें बेचकर अपनी अलग झोपड़ी बनवा ली. 14 वर्ष की अल्पायु में तीजन ने अपने रूढ़िवादी पति को तलाक दे दिया. ससुराल के साथ साथ मायके वालों ने भी तीजन से सम्बन्ध तोड़ लिए. पर मोहल्ले की औरतें मन ही मन तीजन के साहस की तारीफ़ें किया करती. असल में हर औरत तीजन में खुद को ढूंढने लगी. किसी ने तीजन को चावल दिए, तो किसी ने साड़ियाँ तो किसी ने बरतन. यूँ शुरू हो गई तीजन की नई गृहस्थी और नई जीवन गाथा.

वर्ष 1976. तीजन पंडवानी गाने लगी. तीजन की ख्याति बढ़ने लगी. वो 18 दिनोँ की पंडवानी गाया करती. उसके आयोजन में पाँच हजार से पचास हजार तक दर्शक जुटने लगे. मेले का सा महौल होता. लोग तम्बू लगाकर आयोजन स्थल पर ही 18 -18 दिन टीक जाते. रोज गायन होता. चढ़ावा चढ़ता. तीजन जब लौटती तो उसके साथ तीन चार बैलगाड़ियों में लदे अनाज, कपड़े, बरतन जैसे उपहार और छोली भरकर सिक्के हुआ करते.

तीजन साल में ऐसी तीन चार पंडवानी करने लगी. जैसे जैसे तीजन समृद्ध होने लगी. वैसे वैसे उसकी खोई हुई रिश्तेदारी लौटने लगी. झाडू से पीटने वाली माँ और रिश्ता तोड़ लेने वाले भाई फिर जुटने लगे.

ऐसे ही किसी पंडवानी गायन के कार्यक्रम में भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाटककार एवं कवि हबीब तनवीर ने तीजन के अनूठे प्रदर्शन को देखा. उनकी भाव भंगिमा, छत्तीसगढ़ी बोलने का अंदाज, तानपुरा पकड़ने की स्टाइल एवं मंच पर घूम घूम कर गाने की अदा से तनवीर प्रभावित हुए बिना ना रह सके. चूंकि तनवीर स्वयं छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे, सो भाषा पर तीजन की पकड़ को उन्होने बखूबी समझा. हबीब तनवीर तीजन को दिल्ली ले गए. वहाँ जिस कार्यक्रम में तीजन ने प्रस्तुति दी. उसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी मौजूद थीं. उन्होने स्वयं गले लगाकर तीजन की सराहना की.

निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल का फैमश टीवी शो था - 'भारत एक खोज' . उसके पांचवे एपिसोड से महाभारत की कथा स्टार्ट होती है. वर्ष 1988 में दूरदर्शन पर प्रदर्शित इस सीरियल में टीवी पर छा गई तीजन बाई. इसी के साथ पूरे देश में विख्यात हो गई पंडवानी और तीजन बाई.

तीजन को पंडवानी गायन के संस्कार नाना ब्रजलाल के अलावा उमेद सिंह देशमुख से मिले . तीजन रीतिकाल के महान कवि सबल सिंह चौहान की लिखी महाभारत की चौपाइयों दोहों को गाती हैँ .

पंडवानी है क्या ? कुरुक्षेत्र में लड़ा गया महाभारत युद्ध.  कौरव पांडवों के मध्य लड़ा गया युद्घ.  कुल 18 अक्षौहिणी सेनाओं द्वारा लड़ा गया युद्ध. अठारह दिनोँ तक चलने वाला युद्घ. रिश्ते नातों को ताक पर रख कर लड़ा गया युद्ध. शिष्य के द्वारा गुरु, भाई के द्वारा भाई, ताऊ चाचाओं द्वारा चक्रव्यूह रचकर भतीजे को मार दिए जाने वाला युद्ध. इन सबके पीछे श्रीकृष्ण की लीला. इसी पौराणिक कथा का गायन है पंडवानी.

"पंडवानी - पांडव वाणी अर्थात पांडवों की कथा"

पंडवानी में दो तरह की शैली विख्यात है वेदमती शैली एवं कापालिक शैली. वेदमती शैली में बैठकर गायन करते हैँ जबकि कापालिक में खड़े होकर. तीजन बाई ने कापालिक शैली में खास कथन शैली विकसित की. तीजन तानपुरा लेकर मंच पर एक कोने से दूसरे कोने तक घूमती. वाद्ययंत्रो पर बैठे साथी कलाकारों के साथ संवाद करती हुई तीजन पौराणिक कथाओं को वर्तमान किस्सों से जोड़कर सुनाने लगी. यह शैली श्रोताओं को भाने लगी. तीजन बाई निडर थी किन्तु उतनी ही सहज भी.

भारत के हर कोने में , हर गांव में, वहाँ की स्थानीय भाषा में, लोक गीत गाए जाते हैँ. उन लोकगीतों में छिपा होता है  इतिहास. हमारे देश पर कितने ही आक्रमण हुए. हमारी नालंदा यूनिवर्सिटी से लेकर पुरानी तमाम पुस्तकें नष्ट कर दी गई. पर ना हमारी संस्कृति नष्ट हुई. ना हमारा इतिहास नष्ट हो सका. क्योंकि हमारी पुरातन संस्कृति और इतिहास हमारे गांवो के लोकगीतों में समाहित है. लोक गीत अपने आप में संस्कृति के वाहक हैँ. इस सांस्कृतिक धरोहर को हम तक पहुँचाते हैँ लोकगीतों के गायक . इसी गौरवशाली परम्परा का हिस्सा है तीजन बाई.

6 जून 2018 को तीजन बाई को हार्ट अटैक आया. उन्हें आई सी यू में एडमिट कराया गया. इसके बावजूद आज भी इनके कार्यक्रम जारी हैँ. उनको आप निमन्त्रण भेजिए. वो अवश्य आएंगी. लोक कलाकार तीजन बाई साधक है. संगीत साधक.

विदेशों में भारत की सांस्कृतिक राजदूत हैँ तीजन बाई. वे जापान, जर्मनी, इंग्लैड, स्विट्जरलैंड, इटली, रूस, चाईना इत्यादि चालीस से ज्यादा देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैँ .

लोकमत समाचार में वंदना अत्रे लिखती हैँ कि मानो जितनी ऊंचाई तक हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणगिरी पर्वत को उठा कर उड़े थे. वृंदावन के कान्हा भी अपनी हथेली पर तीजन को बैठाकर उतनी ऊंचाइयों तक ले गए.

सम्मान व पुरस्कार - छत्तीसगढ़ के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार तीजन बाई को वर्ष 1988 में पद्मश्री एवं वर्ष 2003 में पद्म भूषण एवं 2019 पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया. वर्ष 2018 में फुकुओका सिटी इंटरनेशल फाऊंडेशन, जापान द्वारा तीजन बाई को वहाँ का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया गया. तीजनबाई को वर्ष 2016 में एम एस सुब्बालक्ष्मी शताब्दी सम्मान से सम्मानित किया गया. वहीँ 2003 में बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया . उन्हें 2007 में नृत्य शिरोमणि अवार्ड एवं 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 

( पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 से )


Wednesday, 30 December 2020

अगली पारी को तैयार : डॉ़ अरुण सज्जन

लोयला और डीबीएमएस जैसे अंग्रेजीदां गलियारों में हिन्दी का अध्यापन करने वाले अरुण सज्जन का जीवन वृत भी बड़ा दिलचस्प है। जैसे जैसे ये बूढ़े होते चले गए, इनका साहित्य जवाँ होता गया। एक ओर अरुण सज्जन 60वीं दहलीज पर खड़े हैं तो दूसरी ओर इनकी 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कोई साहित्यकार तभी सफल, जब या तो उसका लिखा लोगों द्वारा गुनगुनाया जाने लगे या उसका लिखा स्कूलों में पढ़ाया जाने लगे। मेरी जानकारी में अरुण सज्जन द्वारा रचित "भगवती चरण वर्मा की काव्य चेतना" एवं "रामचरितमानस- उत्तरकाण्ड : एक समीक्षा" यह दो पुस्तकें राँची विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन चुकी है। साथ ही तकनीकी मशीनों से चौतरफा घिरा हर शहरी व्यक्ति उनके काव्यसंग्रह "उजास" की इन पंक्तियों को अपने अंदर महसूस करना चाहता है -

जिन्दगी की धूप कभी छाँव लिख रहा हूँ ।
शहर का रौद्र रुप सौम्य गाँव लिख रहा हूँ ॥

महात्मा बुद्ध को जहाँ ज्ञान प्राप्त हुआ- उस बिहार के 'जिला गया' में जन्म लिया, इस्पात बनाने वाली धरती - झारखण्ड के जमशेदपुर को कर्मक्षेत्र बनाया और अपने साहित्य की सुगन्ध से उत्तरप्रदेश के वाराणसी तक को सुवासित किया, ऐसे अरुण सज्जन के विषय में केवल इतना लिखना काफी होगा कि उनके नाम के दोनों शब्द उनपर सटीक बैठते हैं। अरुण यानि सूर्य, जो अपने साहित्य व शिक्षा के प्रकाश से दूनिया में उजाला फैला रहे हैं। सज्जन यानि सभ्य व सरल, ऊपर से शिक्षक, उसमें भी साहित्यकार , मानों फलों से लदा आम का पेड़,  जो पत्थर भी मारो तो बदले में वो आम ही देगा।

साहित्य, लोककला व संस्कृति पर राजनीति का प्रभाव बढ़ चुका है। हिंदी साहित्यिक संस्थाएं प्राणहीन और निष्क्रिय हो रही हैं । पुस्तकालयों में कुर्सियाँ धूल फांक रही है एवं उनके भवन राजनैतिक समाजिक कार्यक्रमों के गवाह बनने को आतुर हैं। क्षेत्रीय भाषा के प्रति बढ़ती कट्टरता हिंदी से सास बहू वाली दूरी बढ़ाने पर तुली है। साहित्यिक संवैधानिक संस्थाओं की स्थिति चरमरा चुकी है, उनके द्वार पर चरण पादुका पूजकॉ की कतार लगी है। ऐसे में लोहा का उत्पादन करने वाले जमशेदपुर में स्वर्णरेखा नदी की लहरों के मुहाने पर या जुबली पार्क के खूबसूरत वातावरण में बैठकर अरुण सज्जन जैसा व्यक्ति साहित्य सृजन कर रहा है। इनके अध्ययन, शैक्षणिक अनुभव, साहित्य धर्मिता व रचनात्मकता का लाभ साहित्य पिपासु पाठकों, शिक्षार्थियों व आने वाली पीढ़ी को प्राप्त हो। श्री अरुण सज्जन जी की षष्ठीपूर्ति पर मेरी ओर से अभिवादन एवं चरणस्पर्श ।

नियमों से बंधी व्यवस्था के दौरान वर्ष 2021 में अरुण सज्जन लोयला स्कूल की सेवा से रिटायर्ड होंगे, किन्तु मैं इसे रिटायरमेंट नहीं मानता, मेरी नजर में ये एक शॉर्ट ब्रेक है ताकि दूसरी पारी दमदार खेली जा सके। जिस प्रकार यूएसए के राष्ट्रपति जो बिडेन ने 78 -79 वर्ष की आयु में इतिहास रच दिया, वैसे ही अरुण जी का परचम साहित्यिक दूनिया में फहरे, ऐसी शुभेच्छाएृँ -

संदीप मुरारका
जमशेदपुर
जनजातीय समुदाय के महान व्यक्तित्वों की जीवनियों की पुस्तक "शिखर को छूते ट्राइबल्स"  के लेखक








Thursday, 30 July 2020

पद्मश्री रेन सोनम शेरिंग लेपचा, सिक्किम

पद्मश्री - 2007, कला के क्षेत्र में
जन्म : 3 जनवरी, 1928
जन्म स्थान : बोन्ग बस्टी, कलिम्पोंग, पश्चिम बंगाल
निधन : 30 जुलाई, 2020
पिता : निमग्ये शेरिंग तमसांग
माता : नेर्मू तमसांग पेजिंगमू
पत्नी : पद्मश्री हिलदामित लेपचा (द्वितीय विवाह)

जीवन परिचय - घोड़े की काठी के आकार के टीले और घुमावदार तीस्ता नदी की सुंदरता को खुद में समेटे पश्चिम बंगाल स्थित कलिम्पोंग हिल स्टेशन भारत के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है. बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा और विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा को अपने शिखर पर लिए कलिम्पोंग अपने प्राकृतिक सौंदर्य और औपनिवेशिक आकर्षण से सैलानियों को जम कर आकर्षित करता है. इसी खूबसूरत स्थान के एक ट्राइबल परिवार में जन्में सोनम शेरिंग लेपचा.

सविंधान (सिक्किम) अनुसूचित जनजाति आदेश, 1978 के आलोक में सिक्किम की जनजातियाँ है - भूटिया, लेपचा, लिंबू और तमांग. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार सिक्किम में अनुसूचित जनजाति की कूल संख्या 1,11,405 है, जिसमें लेपचा जनजाति की आबादी 40,568 है. सोनम शेरिंग इसी लेपचा समुदाय से संबंधित हैं.

सोनम शेरिंग के बड़े भाई चोडुप शेरिंग लेपचा सेना में थे, उनकी मृत्यु द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हो गई थी. वर्ष 1945, युवा सोनम तेशरिंग लेपचा 17 वर्ष की आयु में 10 गोरखा राइफल्स, पालमपुर में राइफलमैन के रूप में भर्ती हुए और देश की सीमा पर 8 माह 9 दिन अपनी सेवाएँ दी.

इनके तीन छोटे भाई हैं - ताशी, कुटेन, नुर्गी एवं एक छोटी बहन है मर्मिट. सोनम शेरिंग ने दो विवाह किए, इनके पाँच पुत्र और पाँच पुत्रियाँ हैं.

योगदान - अपने प्रशंसकों के मध्य रोंग लापोन (लेपचा मास्टर) के नाम से लोकप्रिय सोनम शेरिंग को "लेपचा - संस्कृति" के पुनरुद्धार का श्रेय जाता है. लेपचा में "लापोन" शब्द का अर्थ होता है - शिक्षक. वे कहते थे कि “जिस प्रकार तारे कभी धरती पर नहीं गिर सकते, वैसे ही लेपचा संस्कृति कभी लुप्त नहीं हो सकती."

कला और संस्कृति से प्रेम करने वाला व्यक्ति यदि दार्जलिंग, गैंगटाक व कलिम्पोंग की यात्रा करे, तो उसकी सूची में प्राकृतिक दृश्यों के अलावा एक महत्वपूर्ण स्थान का नाम रहता है - लेपचा म्यूजियम. कलिम्पोंग खासमहल के एच० एल० दीक्षित रोड़ - 734301 में अवस्थित लेपचा म्यूजियम. जहाँ लेपचा समुदाय की जीवनशैली, संस्कृति और परम्पराओं को अद्भभुत रूप से दर्शाया गया है. संगीत के प्राचीन वाद्ययंत्र, प्राचीन हथियार, हस्तशिल्प वस्तुओं, पांडुलिपियों, दुर्लभ कलाकृतियों और धार्मिक विरासतों को संजोए हुए है लेपचा म्यूजियम. सिक्किम के गावों में घूम घूम कर इन सांस्कृतिक विरासतों को एकत्रित करने व संजोने का अद्वितीय कार्य किया है सोनम शेरिंग लेपचा ने. उनके संग्रह में एक विशेष बांसुरी है, जिससे पक्षियों की आवाज निकाली जा सकती है और मधुमक्खी के छाते तक पहुंचने के लिए रस्सी की पारंपरिक सीढ़ी दर्शकों को आकर्षित करती है.

इसी म्यूजियम के एक हिस्से में सोनम शेरिंग के पुत्र नोरबू के द्वारा संगीत विद्यालय का संचालन किया जाता है, जहाँ पारम्परिक संगीत के शौकीन युवाओं को गीत, संगीत व नाटक का प्रशिक्षण दिया जाता है.

बचपन से ही सोनम शेरिंग का झुकाव लोकगीतों व नृत्य की ओर रहा. मूलतः वे माटी से जुड़े कलाकार हैं. गांव के वयोवृद्ध ट्राइबल्स के पास लोकगीतों के सिक्के बिखरे पड़े थे, सोनम शेरिंग गीतों के उन बिखरे सिक्कों को एकत्र करने लगे. ट्राइबल होने के नाते प्रकृति से उनका स्वभाविक प्रेम रहा. धीरे धीरे लोकगीतों के जरिए वे हिमालय, पहाड़ों, झरनों, नदियों, वन्य जीवों और वनस्पतियों से भरे वनों की सैर करने लगे. सोनम शेरिंग
जन्म के समय गाए जाने वाले गीत गाते, वैवाहिक अवसर एवं त्यौहारों के वैसे लोकगीत गाया करते, जिनको लोग भुला बैठे थे. लेपचा समुदाय में ऐसे भी गीत हुआ करते थे, जिनको किसी की मृत्यु हो जाने पर की जाने वाली रस्मों रिवाज के दौरान गाया जाता है - "अमाक अप्रया वाम " , संभवतः आज की तारीख में सोनम तेशरिंग एकमात्र लोकगायक है, जो इस लेपचा लोकगीत को गाते होंगे.

गायन के साथ साथ वे वाद्ययंत्र भी बजाया करते, विशेषकर ऐसे वाद्ययंत्र जो विलुप्त हो चुके थे. असल में उन्हें प्राचीन विरासत के संकलन का शौक था, इसी क्रम में वे गांवो से प्राचीन वाद्ययंत्र लाया करते और प्रायोगिक तौर पर उसे बजाया करते. कविवर वृन्द ने लिखा भी है -

करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।


यह दोहा सोनम शेरिंग पर सटीक बैठता है. गांव के बुजुर्गों के साथ रहते रहते वे लोकनृत्य में भी पारंगत होने लगे. विभिन्न पर्व त्योहारों पर आयोजित होने वाले सार्वजनिक कार्यकर्मों में सोनम शेरिंग को लोकगीत, संगीत, नृत्य व नाटक के लिए आमंत्रित किया जाने लगा. सिक्किम में लोक कलाकर के रूप में सोनम शेरिंग की ख्याति बढ़ने लगी. कुछ युवा लड़के लड़कियों को साथ लेकर उन्होनें एक सांस्कृतिक मण्डली का गठन कर लिया.

वर्ष 1949, स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने सोनम शेरिंग की टीम कोलकता पहुंची, जहाँ उनके प्रदर्शन की भरपूर सराहना हुई.

वर्ष 1954, सिक्किम की राजशाही द्वारा आयोजित गीत व नृत्य आयोजन में तत्कालीन चोग्याल (राजा) सर ताशी नामग्याल द्वारा उन्हें मुख्य संयोजक मनोनीत किया गया.

वर्ष 1955, उनकी सांस्कृतिक मण्डली ने दिल्ली में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में तत्कालिन प्रधानमंत्री की उपस्थिति में बेहतरीन प्रदर्शन किया.

वर्ष 1956, सिक्किम की एक संगीत प्रतियोगिता में सोनम शेरिंग को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ, जहाँ उन्होनें
लेपचा समुदाय के लोक वाद्ययंत्र "पुनटोंग पालित" (विशेष प्रकार की बाँसुरी) का शानदार वादन किया.

14 अक्टूबर 1960, सोनम शेरिंग लेपचा अपने समुदाय के पहले व्यक्ति थे, जिनके गाए हुए लोकगीतों का प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो में हुआ.

वर्ष 1961, दार्जलिंग के संस्कृति विभाग में लेपचा कला प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त हुए, जहाँ वे युवाओं को लेपचा गीतों व वाद्ययंत्रों का प्रशिक्षण देते थे.

सोनम शेरिंग को लेपचा ट्राइबल एसोसिएशन का सांस्कृतिक सचिव मनोनीत किया गया. लेपचा समुदाय के पुजारियों एवं दार्जिलिंग व सिक्किम के लेपचा एसोसिएशन के सहयोग से उन्होनें 6 नवंबर 1967 को "लेपचा सामुदायिक गीत" की प्रस्तुति की.

28 दिसंबर 1967 को दार्जिलिंग में आयोजित एक भव्य समारोह में उनके द्वारा प्रस्तुत नृत्य नाटिका "तिस्ता- रोन गीत" काफी लोकप्रिय हुआ, जो सिक्किम और दार्जिलिंग हिल्स की दो प्रमुख नदियों की उत्पत्ति पर आधारित था. उन्होनें 400 से अधिक लोक गीतों, 102 लोक नृत्यों और 10 नृत्य नाटकों का मंचन किया.

8 अक्टूबर, 1969 को दार्जिलिंग में आयोजित एक राष्ट्रीय स्तरीय आयोजन में सोनम शेरिंग ने लुप्तप्राय वाद्ययंत्र "तुनबुक" और "सुतसंग" बजाया.

सोनम शेरिंग को सिक्किम के संगीत वाद्ययंत्रों पर किए गए शोध के लिए पहचाना जाता है. उन्होंने सदियों पुराने रिकॉर्ड संकलित किए और लेपचा संगीत वाद्ययंत्रों पर बारह वर्षों तक शोध कार्य किया. साथ ही गांव के ट्राइबल युवाओं को उन वाद्ययंत्रों का प्रशिक्षण दिया.

सोनम शेरिंग का यह मानना है कि परस्थितियों में आ रहे बदलाव के कारण ट्राइबल्स अपनी प्राचीन संस्कृति, परंपरा, भाषा और साहित्य को भूल रहे हैं. बिना संस्कृति वाला आदमी , बिना रीढ़ की हड्डी के आदमी की तरह होता है. अतएव उन्होनें लुप्त होते लेपचा साहित्य के पुनरुद्धार व संरक्षण के लिए मासिक पत्रिका "अचूले" का प्रकाशन आरम्भ किया. जिसका पहला अंक 2 अप्रेल, 1967 को तत्कालीन साइक्लोस्टाइल पद्धति द्वारा मुद्रित किया गया, यह प्रकाशन 1969 तक जारी रहा.

वर्ष 1970 में लेपचा भाषा में उनकी पुस्तक " लेपचा और उनके स्वदेशी संगीत वाद्ययंत्र" प्रकाशित हो चुकी है.
वर्ष 1977 में सिक्किम सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा उनकी पुस्तक "लेपचा लोक गीत" का प्रकाशन किया गया. वर्ष 2011 में सोनम शेरिंग द्वारा संकलित लेपचा लोकगीतों की पुस्तक "वोम जाट लिंग छायो" प्रकाशित हुई.

अन्य कृतियाँ -
सम्पादन -


(i) Muk-Zek-Ding-Rum-Faat - प्रकृति की प्रार्थना
(ii) Tungrong Hlo Rum Faat - लेपचा समुदाय के पवित्र पर्वत की प्रार्थना
(iii) Lyaang Rum Faat - पृथ्वी, माटी, जल व सूर्य की प्रार्थना
(iv) Sakyoo Rum Faat - पौराणिक कथाएँ एवं प्रार्थना
(v) Tungbaong Rum Faat - देवी देवताओं की प्रार्थना
(vi) Chyu Rum Faat - हिमालय की प्रार्थना

नृत्य नाटिका -

(i) Rangyoo-Rangeet - दो नदियों पर आधारित
(ii) Nahaan Bree - लेपचा विवाह पद्धति
(iii) Konkibong - कलिम्पोंग के गांव से सम्बन्धित

हिमालय की गोद में बसे दार्जिलिंग और सिक्किम के गांव गांव की व्यापक यात्रा करने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी सोनम शेरिंग लेपचा लेखक, गीतकार, संगीतज्ञ, नर्तक, लोक कलाकार, शिक्षक, शोधकर्ता, इतिहासकार व पूर्व सैनिक थे.

सम्मान एवं पुरस्कार - लोक गीत संगीत में अनुपम योगदान के लिए सोनम शेरिंग लेपचा को वर्ष 2007 में कला के क्षेत्र में देश का चौथा सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री प्रदान किया गया. वर्ष 2011 में, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के 150 वें जन्म दिवस पर संगीत नाटक अकादमी ने देश के 100 प्रख्यात कलाकारों को "टैगोर अकादमी रत्न" से विभूषित किया, उस सम्मानित सूची में लोक कलाकार लेपचा का नाम टॉप 50 में अंकित किया गया. उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया जा चुका है. सिक्किम सरकार के संस्कृति विभाग ने 1995 में उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों पर उन्हें "नूर मायेल कोहोम" सम्मान प्रदान किया. लेपचा संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन हेतू उनके अतुलनीय समर्पण के लिए स्वदेशी लेपचा ट्राइबल एसोसिएशन द्वारा वर्ष 1973 में उन्हें "नूर मायेल" उपाधि से सम्मानित किया गया.