Saturday, 10 December 2022

फिर जी उठें हैं लोहिया

फिर जी उठें हैं लोहिया......

वर्ष 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास लोकसभा में जहाँ 404 सीटें थी, वहीं भारतीय जनता पार्टी के मात्र 2 सांसदो ने लोकसभा में प्रवेश किया। आज स्थिति यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आंकडा़ घटकर महज 53 सांसदों तक सिमट गया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के 303 सांसद लोकसभा में शोभायमान हैं। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देते हैं तो राजनीति का अध्ययन करने वाले लोगों के जेहन में सबसे पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम याद आता है।

राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर जवाहरलाल नेहरु से टकराने वाले डॉ. लोहिया देश में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'कांग्रेस मुक्त भारत' की कल्पना की। भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी डॉ. लोहिया की पंडित नेहरू से  तल्खी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने यहां तक कह दिया था कि 'बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।' कांग्रेस संस्कृति के घोर विरोधी रहे डॉ लोहिया ही वो जीवट शख्स थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहने का साहस किया।

आज देश के 36 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आधे  स्थानों पर कांग्रेस सांसद विहीन है। इस दयनीय स्थिति को देखकर डॉ. लोहिया की पंक्ति याद आती है कि 'जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं किया करतीं।' शायद इसीलिए दूरद्रष्टा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने 11 अक्टूबर 1962 को एनार्की में लिख दिया -

भोर में पुकारो सरदार को,
जीत में जो बदल देते थे कभी हार को,
तब कहो, ढोल की य' पोल है,
नेहरू के कारण ही सारा गंडगोल है।

फिर जरा राजाजी का नाम लो,
याद करो जे. पी. को, विनोबा को प्रणाम दो ।
तब कहो, लोहिया महान है।
एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है।

श्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर थे, तो देश भर में रैलियां कर रहे थे। उसी क्रम में उन्होंने 27 अक्टूबर, 2013 को पटना के गांधी मैदान में भी एक रैली में भाग लिया था, जो काफी चर्चित हुई। नरेंद्र मोदी जब पटना पहुंचने वाले थे, उसके पहले आतंकियों ने भाजपा समर्थकों से खचाखच भरे गांधी मैदान में सीरियल धमाके किए, जिनमें 6 लोगों की जान चली गई थी। इन धमाकों से पहले पटना जंक्शन के टॉयलेट में भी विस्फोट हुआ था। किंतु लगातार धमाकों के बावजूद अपनी दृढ़ता प्रकट करते हुए देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित किया। उस भाषण की एक विशेष बात यह भी रही कि मोदी ने डॉ. लोहिया को याद किया और जमकर उनके मूल्यों व सिद्धांतों की बात की। उन्होंने कहा कि राममनोहर लोहिया जी जीवनभर हिंदुस्तान को कांग्रेस मुक्त कराने के लिए लड़ते रहे, जीवन भर जूझते रहे। मोदी ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधते हुए भी लोहिया का ही उद्धरण दिया था।


पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को "उर्वशीयम" के नाम से पुकारने वाले लोहिया कहा करते थे कि 'लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर लेकिन मेरे मरने के बाद ’ और यह हो भी रहा है। लोहिया
अक्सर आगाह करते रहे कि चीन से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है और आज मोदी युग में चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाना, लोहिया की प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।

दिनांक 4 जनवरी, 2022 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में यह कहा कि "पूर्वोत्तर, जिसे नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता का प्रवेश द्वार कहा था, वो नए भारत के सपने पूरा करने का प्रवेश द्वार बन रहा है। हम पूर्वोत्तर में संभावनाओं को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘पूर्वोत्तर को लेकर पहले की सरकारों की नीति थी ‘डोंट लुक ईस्ट’ यानी पूर्वोत्तर की तरफ दिल्ली से तभी देखा जाता था, जब यहां चुनाव होते थे। लेकिन हमने पूर्वोत्तर के लिए ‘एक्ट ईस्ट’ का संकल्प लिया है।’ देश के प्रधानमंत्री के भाषण और ट्वीट देखकर एक बार फिर लोहिया जी की याद ताजा हो जाती है। क्योंकि दिल्ली की सत्ता की राजनीति करनेवाले तत्कालीन नेताओं में वे एकमात्र शख्शियत थे, जो पूर्वोत्तर की बात किया करते थे और समय समय पर अपनी चिंता प्रकट किया करते थे। वर्ष 1963 में प्रकाशित डॉ लोहिया के भाषणों, बयानों और आलेखों के संकलन 'इंडिया चाइना एंड नार्दर्न फ्रंटियर्स' के विभिन्न पन्ने गवाह हैं, जिनमें विद्वान लोहिया ने हिमालयी क्षेत्रों की आर्थिक खुशहाली एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने की बातें कही हैं। उनकी मृत्यु के 55 वर्षों के बाद जब देश के प्रधानमंत्री उन्हीं बातों को दोहराते हैं, तो ऐसा लगता है मानों लोहिया जीवंत हो चुके हैं अथवा मोदी इस देश के पहले राजनेता हैं जिन्होंने लोहिया के विचारों को अंगीकार कर लिया है।

वर्ष 1983 में इलाहाबाद के लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लोहिया की पुस्तक "भारत माता धरती माता" के पृष्ठ 53 से 90 पर अंकित चौथे आलेख 'राम, कृष्ण, शिव' का अध्ययन करने के बाद मोदी जी की तपस्या वाला किस्सा याद आ जाता है। जिसमें केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती यह दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1985 या 86 में डेढ़ माह तक हिमालय की गुफा में तपस्या की थी। वैसे 18 मई 2019 को मोदी जी को केदारनाथ धाम मंदिर के निकट एक गुफा में ध्यान लगाते सारी दुनिया ने देखा था। खैर, उन्होंने तपस्या की या नहीं, मैं यह नहीं जानता, लेकिन यह मानता हूँ कि उन्होंने डॉ. लोहिया के आलेख 'राम,कृष्ण, शिव' को अवश्य पढ़ा है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनके राजनैतिक एजेंडा में 'अयोध्या, मथुरा और वाराणसी' सर्वोच्च स्थान पर हैं।


इतिहास की तिथियों में 23 मार्च देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है। मां भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के सर्वोच्च बलिदान का दिन है। मां भारती के एक और लाड़ले लोहिया का जन्मदिन है। स्वयं को लोहियावादी बताने वाले उनका जन्मदिवस कितनी शिद्दत से मनाते हैं, यह तो नहीं पता, किंतु नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी किसी भी वर्ष लोहिया को श्रद्धा सुमन अर्पित करना नहीं भूले। उन्होंने 2016 में लोहिया द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए हस्तलिखित पत्र पोस्ट किए। साथ ही लिखा कि विद्वान डॉ. राम मनोहर लोहिया, जिनके विचार सभी दलों के नेताओं को प्रेरित करते हैं। वर्ष 2017 की 23 मार्च को मोदी ने सामाजिक सशक्तिकरण एवं सेवा के लिए लोहिया के विचारों को प्रेरणास्त्रोत बतलाया। वहीं वर्ष 2018 में मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री स्वीकारोक्ति कि लोहिया बीसवीं सदी के भारत के सबसे उल्लेखनीय व्यक्तियों में से एक हैं।


वर्ष 2019 को उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी और अप्रतिम देशभक्त बताते हुए उनकी जयंती पर सादर नमन किया। साथ ही साथ विपक्ष को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया था कि जो लोग आज डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल कर रहे हैं, वही कल देशवासियों के साथ भी छल करेंगे। जो लोग लोहिया के दिखाए रास्ते पर चलने का दावा करते हैं, वही क्यों उन्हें अपमानित करने में लगे हैं? यह भी कहा कि कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उन्होंने ब्लॉग में लिखा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब युवा लोहिया ने आंदोलन की कमान संभाली और मैदान में डटे रहे। लोहिया ने भूमिगत रहते हुए अंडरग्राउंड रेडियो सेवा शुरू की, जिससे आंदोलन की गति धीमी न पड़े और अविरल चलती रहे। डॉ. लोहिया का नाम गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

मोदी ने लिखा कि जहां कहीं भी गरीबों, शोषितों और वंचितों को मदद की जरूरत पड़ती, वहां डॉ. लोहिया मौजूद होते थे। उन्होंने आगे कहा कि लोहिया के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने और अन्नदाताओं के सशक्तीकरण को लेकर काफी कुछ लिखा। उनके इन्हीं विचारों के अनुरूप एनडीए सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। लोहिया जाति व्यवस्था और महिलाओं तथा पुरुषों के बीच की असमानता को देखकर दुखी होते थे।

उन्होंने लिखा, 'सबका साथ, सबका विकास' का हमारा मंत्र और पिछले पांच सालों का हमारा ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि हमने लोहिया के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। अगर आज लोहिया होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती। उन्होंने कहा कि लोहिया संसद के भीतर या बाहर कहीं भी बोलते थे तो कांग्रेस हमेशा उनसे डरती थी।

लोहिया के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि देश के लिए कांग्रेस कितनी घातक हो चुकी है, इसे डॉ. लोहिया भलीभांति समझते थे। वर्ष 1962 में उन्होंने कहा था, 'कांग्रेस शासन में कृषि हो या उद्योग या फिर सेना, किसी भी क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है।' उनके ये शब्द कांग्रेस की बाद की सरकारों पर भी अक्षरश: लागू होते रहे।

उन्होंने कहा, 'कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उनके प्रयासों की वजह से ही 1967 के आम चुनावों में सर्वसाधन संपन्न और ताकतवर कांग्रेस को करारा झटका लगा था। उस समय अटल जी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया की कोशिशों का ही परिणाम है कि हावड़ा-अमृतसर मेल से पूरी यात्रा बिना किसी कांग्रेस शासित राज्य से गुजरे की जा सकती है!' दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति में आज ऐसे घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर डॉ. लोहिया भी विचलित, व्यथित हो जाते।

प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों पर हमला करते हुए कहा कि वे दल जो डॉ. लोहिया को अपना आदर्श बताते हुए नहीं थकते, उन्होंने पूरी तरह से उनके सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। यहां तक कि ये दल डॉ. लोहिया को अपमानित करने का कोई भी कोई मौका नहीं छोड़ते। ओडिशा के वरिष्ठ समाजवादी नेता सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया अंग्रेजों के शासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।'

उन्होंने कहा कि आज उसी कांग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियां अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है।  डॉ. लोहिया वंशवादी राजनीति को हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे। आज वे यह देखकर जरूर हैरान-परेशान होते कि उनके ‘अनुयायी’ के लिए अपने परिवारों के हित देशहित से ऊपर हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डॉ. लोहिया का मानना था कि जो व्यक्ति ‘समता’, ‘समानता’ और ‘समत्व भाव’ से कार्य करता है, वह योगी है। उन्होंने आगे कहा, डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राजनीति दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि इन पार्टियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इनके लिए डॉ. लोहिया के विचार और आदर्श बडे़ हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति? आज 130 करोड़ भारतीयों के सामने यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि जिन लोगों ने डॉ. लोहिया तक से विश्वासघात किया, उनसे हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जाहिर है, जिन लोगों ने डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल किया है, वे लोग हमेशा की तरह देशवासियों से भी छल करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के बाद भी हर वर्ष लोहिया को उनके  जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि दी है। परंतु मुख्य बात यह है कि मोदी जी गाहे बेगाहे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को परास्त करने हेतु लोहिया को याद कर लिया करते हैं, जिससे उनके भीतर का लोहियावाद परिलक्षित होता है।

उरी हमले के बाद 24 सितंबर 2016 को केरल के कोझिकोड में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में आतंकवाद एक्सपोर्ट करनेवाला देश बताते हुए कहा था कि हमारे 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि पिछली शताब्दी में भारत के राजनीतिक जीवन को तीन महापुरुषों के चिंतन ने प्रभावित किया है वे हैं महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. राम मनोहर लोहिया। इनके चिंतन का प्रभाव हिंदुस्तान की राजनीति पर नजर आता है।

जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को कमजोर करने और 35 ए हटाने के संकल्प पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 6 अगस्त 2019 को राज्यसभा में लोहिया का नाम लिया। लोहिया को गठबंधन की राजनीति का जनक कहा जाता है। बिहार और उत्तरप्रदेश के राजनेता आज भी उनका नाम लेकर सत्ता की रोटी को उलट पलट कर सेंक रहे हैं।

इसे लोहिया का सम्मान कहें या लोहिया के विचारों की ताकत या लोहिया के नाम का राजनैतिक इस्तेमाल या बढ़ता लोहियावाद!!  खैर जो हो, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले के प्राचीर से 15 अगस्त 2022 को स्वाधीनता दिवस एवं आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर अपने संबोधन में आजादी के आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए जब डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम का जिक्र किया, तो मानो यूं लगा कि "फिर जी उठें हैं लोहिया......"

संदीप मुरारका
जनजातीय व पिछड़ा समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
www.sandeepmurarka.com
Email : keshav831006@gmail.com

उर्वशीयम 2022 में प्रकाशित आलेख









Monday, 5 December 2022

झारखंड का राजनीतिक घेराव : असंभव

झारखंड का राजनीतिक घेराव : असंभव !

अंशुमन कहता है राजनीति पर लिखो ! पर क्या लिखूं ! झारखंड की बात करूं, तो दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर लिखना होगा। उन गुरुजी पर, जिन्होंने आदिवासी नेताओं की राजनैतिक तलवार को नई धार दी। झारखंड राज्य के गठन में जिनके योगदान को चाहकर भी कमतर नहीं किया जा सकता। किंतु उनको धराशायी करने के लिए क्या नहीं किया गया ! मुख्यमंत्री रहते हुए ना केवल शिबू सोरेन को हार का स्वाद चखना पड़ा बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे मात्र 10 महीने कुर्सी पर बैठ पाए। वहीं आरएसएस के कैडर रहे मधु कोड़ा को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा, जीता भी और निर्दलीय विधायक रहते हुए 23 महीने सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का अनूठा रिकार्ड बनाया।

वनांचल राज्य की पक्षधर रही भाजपा ने झारखंड गठन के बाद विधायकों के अंकगणित को जब अपने पक्ष में देखा तो केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुलाल मरांडी को सूबे का राज संभालने दिल्ली से रांची रवाना कर दिया, किंतु वे मात्र 28 महीने ही कुर्सी संभाल पाए। जिस भाजपा ने बाबुलाल जी को झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्रदान किया, उसी भाजपा से बाबुलाल जी का मोह 2006 में टूट गया और उन्होंने अलग दल झाविमो का गठन कर डाला, फिर ना जाने कौन सा विवेक जागा और 14 वर्षों के वनवास के बाद वे फिर भाजपा में शामिल हो गए।

महज 22 वर्ष के झारखंड ने 14 बार कुर्सी का हस्तांतरण देखा। यह अलग बात है कि 6 ही नेता सत्ता की रोटी को अलट पलट कर सेंकते रहे; बाबुलाल मरांडी - 1 बार , शिबू सोरेन - 3 बार, अर्जुन मुंडा - 3 बार, मधु कोड़ा - 1 बार, रघुवर दास - 1 बार और हेमंत सोरेन - 2 बार। अफसोस इस बात का नहीं कि रघुवर दास को छोड़कर कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, अफसोस इस बात का है कि इस खनिजगर्भा भूमि को तीन बार राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। इन 22 वर्षों में राजभवन ने 10 महामहिमों को बदलते देखा और उनमें भी चार ने राष्ट्रपति शासन के जरीये सूबे को मनचाहा हांका।

राजनीति की प्रयोगशाला बन चुके झारखंड का विकास किस तेजी से हुआ, यह बयां करना मुश्किल है किंतु यहां का बजट बड़ी तेजी से विकसीत हुआ। जहां वर्ष 2001-02 में झारखंड का बजट 7,101 करोड़ रुपये था, आज वर्ष 2022-23 में चौदह गुणा बढ़कर 1,01,101 करोड़ रुपए पहुंच चुका है। अंशुमन ! तुम्हें याद होगा कि झारखंड का पहला बजट सरप्लस था, जबकि आज का बजट कर्ज व ब्याज में डूबा हुआ है।

शायद इसीलिए अंशुमन चाहते हैं कि राजनीतिक घेराव पर लिखा जाए। पर किसको घेरोगे अंशुमन! जेएमए से पहली बार विधायक बने अर्जुन मुंडा को, जो बाद में भाजपा से 2,129 दिन मुख्यमंत्री रहे या सांसद विद्युत महतो को, जो विधायक तो रहे जेएमएम से, पर संसद के गलियारे में कमल फूल लेकर टहल रहे हैं। मैंने सुना है कि आजसू का गठन 1986 में निर्मल महतो, प्रभाकर तिर्की और सूर्य सिंह बेसरा ने किया था, किंतु आजसू के नाम का सत्ता सुख किसने भोगा, सुदेश महतो ने !

कहो अंशुमन ! किस किस पर इल्जाम लगाओगे और कितना घेरोगे ! पूर्व सांसद या यूं कहूं कि चर्चित सांसद शैलेंद्र महतो को घेरने जाओगे तो रिश्वत कांड की चर्चा करने की जरूरत ही नहीं केवल उनकी बदलती आस्था और बदलते चक्र की चर्चा काफी है। झामुमो से भाजपा फिर आजसू फिर कांग्रेस फिर जदयू फिर भाजपा फिर झारखंड उलगुलान पार्टी और अभी पता नहीं किस पार्टी में हैं। इसी बीच कभी लेखक तो कभी स्वामी श्री साईं मूर्ति के नाम से आध्यात्मिक गुरु के रुप में अवतार, इतना ही नहीं उन्होंने 'लोक अधिकार मोर्चा' के नाम से एक अलग राजनैतिक दल का गठन भी किया था।  

अंशुमन तुम भी तो झारखंड में जन्में हो! क्या दुःखी नहीं हो! मुझे पता है तुम ही नहीं हर झारखंडी तब तब शर्मिंदा होता है जब जब बात यहां की राजनीति की होती है। क्योंकि यहां के राजनेताओं की ना तो कोई नीति है और ना नीयत ! ना तो यहां किसी नेता की किसी पार्टी विशेष के प्रति स्थायी आस्था है और ना सत्ता को चुनौती देने की क्षमता। यहां तो राजा पीटर जैसे नेता हैं, जो कभी तो मुख्यमंत्री रहते दिशोम गुरु शिबू सोरेन को विधानसभा चुनाव हराने का माद्दा रखते हैं और कभी एनआईए के द्वारा गिरफ्तार होकर वर्षों जेल की शोभा बढ़ाते हैं।

अंशुमन ! क्या घेराव करोगे इनका, जो खुद का बचाव नहीं कर सकते। जनवरी 2005 में झारखंड के भगत सिंह कहे जाने वाले बेहद चर्चित जन नेता महेंद्र सिंह को गोलियों से भून दिया जाता है। वहीं मार्च 2007 में सांसद सुनील महतो को सरेआम सार्वजनिक मंच पर चढ़कर मार दिया जाता है। अक्टूबर 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी सहित उन्नीस लोगों का नरसंहार कर दिया जाता है। तो वहीं वर्ष 2008 में मंत्री रमेश सिंह मुंडा को गोली से छलनी कर दिया जाता है। अब कहो अंशुमन ! जिस राज्य में विधायक, मुख्यमंत्री का बेटा, सांसद और कैबिनेट मंत्री की हत्या कर दी जाए, उस राज्य का क्या राजनीतिक घेराव करोगे मित्र!

अजी ! झारखंड में राजनैतिक संगठनों के हालात यह है कि  यहां जनाधारविहीन संगठनकर्ता पार्टी चलाया करते हैं। झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां की जनता चुनावों में राजनैतिक पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों यानी पार्टी नेतृत्व को नकार दिया करती है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बालमुचू और सुखदेव भगत को जनता चुनावी नदी के किनारे छोड़ चुकी है वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा और दिनेशानंद गोस्वामी चुनावी शतरंज में पीट चुके हैं और तो और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मु को तो ऐसी हार मिली कि वे अपनी सीट में 12वें स्थान पर चले गए थे। हां यह अलग बात है कि राजनीति की 'गिनीज बुक ऑफ इंडियन रिकार्ड्स' बनाई जाए तो उसमें कई पन्ने झारखंड को समर्पित कर देने होंगे। हमारे पास रिकार्ड्स भी अजीब हैं, चाहे निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाने का रिकार्ड हो या विधानसभा के एक टर्म में चार चार मुख्यमंत्री बनाने और राष्ट्रपति शासन झेलने का रिकार्ड अथवा मुख्यमंत्री रहते चुनाव हारने की हैट्रिक बनाने का रिकार्ड। मुख्यमंत्री रहते झारखंड के चुनावी मैदान में शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास, तीनों को शिकस्त मिली। हालांकि सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री देने का रिकार्ड भी इसी राज्य ने बनाया है।

अंशुमन यह झारखंड है! जिस अलग राज्य के गठन के लिए हजारों लोगों ने अपनी जवानी दांव पर लगा दी, उन्हें मिलते हैं तीन चार हजार रुपए और उन आंदोलनकारियों को चिंहित करने के लिए बनता है 'झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग', जिसके सदस्य भोगते हैं लालबत्ती का सुख।

अंशुमन ! राजनीतिक घेराव वहां संभव है जहां राजनेता हों या राजनीत हो किंतु जहां ना नीति हो, ना नियम, ना निगरानी, वहां किस का घेराव! इसकी विधानसभा की सालगिरह के मंच पर कवि कुमार विश्वास को लाखों रुपए देकर बुलाया जाता है और तुम्हारे जैसे स्थानीय साहित्यकारों को आमंत्रण तक नहीं भेजा जाता। झारखंड एक ऐसा राज्य है जो 22 वर्षों में साहित्य अकादमी का गठन ना कर सका। झारखंड ऐसा राज्य है जहां 32 जनजातियां हैं, इन सबकी भाषाएं अलग-अलग हैं, पर जनजातीय शोध व साहित्य प्रकाशन के लिए ना कोई स्कीम, ना सोच। अब बताओ अंशुमन जब इतिहास ही नहीं लिखा जाएगा तो संस्कृति कैसे बचा पाओगे। इस राज्य की राजनीति को कितना घेरोगे अंशुमन! कितना घेर पाओगे। कितना सफल हो पाओगे। असंभव !

संदीप मुरारका
जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
जमशेदपुर, झारखंड
9431117507
www.sandeepmurarka.com







श्री हनुमान चालीसा (मायड़ भाषा में अनुवाद सहित)

॥ जय विंदायक जी महाराज ॥
मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला, सूनो लागै थार ॥

*श्री हनुमान चालीसा*
*राजस्थान के प्रसिद्ध हनुमान जी के रूपों का दर्शन एवं मायड़ भाषा (मारवाड़ी) में हनुमान चालीसा का अनुवाद*

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

मायड़ भाषा - म आपका गुरु महाराज क श्री चरण कमलां की धूल स आपका मन रूपी दर्पण ण पवित्र कर क भगवान रामजी क निर्मल यश को बखान करूं हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम अर मोक्ष ण देण वालो ह।
**** 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

मायड़ भाषा - हे पवन कुमार! म थारो सुमिरन करूं हूं। थे तो जाणों ही हो कि मेरो शरीर अर बुद्धि निर्बल ह। मनअऽऽऽ शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि अर ग्यान दिज्यो। मेरअऽऽऽ दुख अर दोष को नाश कर दिज्यो।
**** 

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥१॥

मायड़ भाषा - श्री हनुमान जी! थारी जय हो! थारो ग्यान अर गुण अथाह ह। हे कपीश्वर! थारी जय हो! तीनों लोकां स्वर्गलोक, भूलोक अर पाताल लोक में थारी कीर्ति ह।
**** 

राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥२॥

मायड़ भाषा - हे राम दूत !  हे पवन पुत्र ! हे अंजनी का लाला ! थार अ समान कोई दूसरो बलवान कोणी।
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

मायड़ भाषा - हे महावीर ! हे बजरंग बली! थे विशेष पराक्रम वाला हो। थे खोटी बुद्धि सूं दूर करो हो अर चोखी बुद्धि वालां क साग अ रह्या रो हो।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा॥४॥

मायड़ भाषा - सालासर म विराज्या हनुमान जी ! थे सोना का रंग, सुंदर कपड़ा, काणा म कुंडल अर घुंघराला बालां सूं सुशोभित हो।
**** 

हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥५॥

मायड़ भाषा - मेहंदीपुर म विराज्या बालाजी ! थार अ हाथ म बज्र अर ध्वजा ह अर कांधा प मूंज की जनेऊ की शोभा ह ।
**** 

शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥६॥

मायड़ भाषा - हे शंकर का अवतार! हे केसरी नंदन! थार अ पराक्रम अर महान यश की वंदना सगलो संसार र् ह।
**** 

विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥७॥

मायड़ भाषा - सरिस्का म लेटेड़ा पांडुपोल हनुमान जी ! थे प्रकांड विद्वान हो, थे गुणवान अर कार्य कुशल हो। रामजी को काम करण क खातिर थे सदा आतुर रहौ ।
**** 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

मायड़ भाषा - सरदारशहर म सिंहासन प विराज्या इच्छापूर्ण बालाजी ! थे बड़ा मन सूं भगवान रामजी की कथा सुणो हो। रामजी, देवी सीता अर लखनलाल सदा थार अ हृदय में निवास कर् अ
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

मायड़ भाषा - लक्ष्मण डूंगरी म बैठ्या खोले आला हनुमान जी ! थे आपको भोत छोटो सो रूप धारण र् सीताजी ण दिखलाया था अर भयंकर रूप धर र् लंका ण जलाया था।
**** 

भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥

मायड़ भाषा - सामोद की पहाड़ी प खड्या वीर हनुमान ! थे बड़ो विकराल रूप धारण कर राक्षसां ण मारया था अर प्रभु रामजी को काज संवारया था।
**** 

लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥११॥

मायड़ भाषा - जयपुर माय चांदपोल किंवाड़ क पास बैठ्या हनुमान जी ! थे संजीवनी बूटी लाकर लखनलाल न जीवा दिया, जिसअऽऽऽ  राजी होकर रामजी थाण हृदय सूं लगा लिया।
**** 

रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥१२॥

मायड़ भाषा - जोधपुर म विराज्या घंटियाला बालाजी !
भगवान रामजी थारी भोत प्रशंसा किया अर बोल्या कि 'थे भरत की जईयां ही आपारां भाई हो'।
**** 

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥

मायड़ भाषा - सीकर म विराज्या दो जांटी बालाजी ! रामजी थाण बार बार हृदय स लगाता अर बोल्या कि 'थारो जश् हजारां मुंडा स गायां जाण जोग्य ह।'
**** 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

मायड़ भाषा -  धौलपुर में विराज्या किले आला हनुमान जी ! रामजी आगअऽऽऽ कह रहया ह कि सनकादिक ऋषि याणी सनत, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार अर ब्रह्माजी, देवर्षि नारद, मां सरस्वती, शेषनाग सहित सगला देवी देवता थारो गुणगाण  कर् अ।
**** 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥१५॥

मायड़ भाषा - भरतपुर म विराज्या वनखंडी हनुमान !
चाहे यमराज हो या कुबेर या दसूं दिक्पाल या कोई कवि या कोई विद्वान पंडित ही क्यूं न हो, कोई भी थारअऽऽऽ यश को सगलो बखान कोणी कर सक्अ।
**** 

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥१६॥

मायड़ भाषा - बांसवाड़ा म विराज्या बोरवट हनुमान बावसी ! थे सुग्रीव न रामजी स मिलाकर, बीक् अ ऊपर भोत बड़ो उपकार किया, जी कारण ही बो राजा बन सक्यो।
**** 

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥१७॥

मायड़ भाषा - लक्ष्मणगढ़ क श्रीजी मंदिर दानवदलन हनुमान ! विभीषण थारो दियो हुओ ग्यान को पालन कियो, जी कारण ही बो लंका को राजा बन सक्यो, या बात सकल संसार जानअऽऽऽ ह।
**** 

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥

मायड़ भाषा - नवलगढ़ म हनुमानगढ़ बालाजी ! सूरज जो आपणी धरती स एक जुग, हजार योजन की दूरी पर ह, थे बालपणा म, खेल खेल म, बठे पहुंच ग्या और सूरज ण मीठो फल समझ कर मुंह म निगल लिया।
**** 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥१९॥

मायड़ भाषा - चित्तौड़गढ़ म बैठ्या होड़ा हनुमान जी !
थे प्रभु रामजी की अंगूठी मुंह म रखकर समुद्र ण लांघ दिया, इमअऽऽऽ कोई आश्चर्य की बात ही कोणी।
**** 

दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

मायड़ भाषा - बीकानेर आला हे पूनरासर बालाजी !
संसार म जितणो भी कठिन स कठिन काम हो, थारी कृपा सूं आसान हो जाया कर हअऽऽऽ।
**** 

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥२१॥

मायड़ भाषा - जैसलमेर म बैठ्या श्री गजटेड हनुमान !
थे रामजी क द्वार की रखवाली करो हो, थारा हुकम का बिणा कोई अंदर कोणी जा सक्अऽऽऽ। या यूं कहवां कि थाण राजी किये बिना रामजी की किरपा कोणी हो सक्अऽऽऽ।
**** 

सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥

मायड़ भाषा - सवाईमाधोपुर क तेलन पंसेरी बालाजी !
जो भी भगत थारी शरण म आव ह, सगला सुख ही सुख प्राप्त कर ह। जब थे ही रक्षा करण वाल्या हो, तो फिर कोई को के ड़र ॥
**** 

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥

मायड़ भाषा - श्री गंगानगर क खेजड़ी हनुमान जी !
थारो तेज कोई दूसरो कोणी सहन कर सक् , थे खुद ही आपको तेज रोक सको हो। थारी गर्जना सूं तीनों लोक कांप उठ् अ।
**** 

भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

मायड़ भाषा - हे महावीर हनुमान ! जठे भी थार नाम को उच्चारण होया कर ह, बठे भूत पिशाच आ ही कोणी सक् अ।
**** 

नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥

मायड़ भाषा - हे वीर हनुमान ! थार नाम को जाप करण सूं सगला रोग दूर हो जाया करअ अर सगळी पीड़ा भी मिट जाया कर् अ।
**** 

संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी महाराज ! जीक् मन म, जीकी हर आदत म, जीकी बोली म, जीक् ध्यान म केवल थे ही रह्या करो, बीक् कोई कष्ट आ ही कोणी सक्अ, थे बीण् सारा संकट सूं  छुड़ा लिया करोओ हो।
**** 

सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

मायड़ भाषा - उदयपुर म विराजमान हे मंशापूरण बालाजी ! रामजी राजा भी ह अर तपस्वी भी ह, रामजी सबकुछ करण म सक्षम ह, पर उनका सगला काम सहज करनअ वाला थे ही हो।
**** 

और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

मायड़ भाषा - झालबाड़ा म बैठ्या कामखेड़ा बालाजी!
थारअ भगतां की जो भी इच्छा हो, थे बीण् जीवन में बांकी सोच स कई गुणा फल प्रदान करो हो।
**** 

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

मायड़ भाषा - बाड़मेर की हनुमान टेकड़ी म विराज्या भगवान ! सतयुग, त्रेता, द्वापर अर कलियुग, चारों जुगां म थारो जश् फैल रह्यो ह, थारी कीर्ति सूं सारअ जगत म उजियारो ही उजियारो हअ।
**** 

साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

मायड़ भाषा - हे रामजी का दुलारा हनुमान ! थे दुष्ट राक्षसां को नाश करो हो अर साधु संता की रक्षा करो हो।
**** 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

मायड़ भाषा -  जालौर जिला म बैठ्या कानिवाड़ा हनुमानजी ! थे कोई ण भी आठूं सिद्धि अर नौ निधि प्रदान कर सको हौ, क्यूंकि थाण माता जानकी सूं यो वरदान प्राप्त ह।
**** 

राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

मायड़ भाषा - हे रामभक्त ! थे सदा रामजी की सेवा म रहौ हौ, थार अ पास राम नाम की ओषधी ह अ, जो हर कष्ट ण दूर कर सक् अ।
**** 

तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी ! थांरी भक्ति सूं रामजी की की किरपा मिल जाया कर् अ अर सगला जनम का दुखां स मुक्ति मिल जाया कर् अ।
**** 

अंत काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥

मायड़ भाषा - हे बालाजी ! थारो भगत अंतिम समय आण पर भगवान रामजी क धाम म जाव ह अर फिर सूं धरती पर आव ह तो रामभक्त क रुप म प्रसिद्धि पाव ह।
**** 

और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

मायड़ भाषा - हे अंजनीपुत्र हनुमान ! थारी सेवा पूजा करण सूं सगला सुख मिल जाया कर् ह, फेर बाकी देवी देवतां ण पुजबा की के दरकार ह।
**** 

संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

मायड़ भाषा - हे पवनपुत्र वीर हनुमान ! जो भी थारो सुमिरण कर् ह, बीक् सगला कष्ट सगळी पीड़ा मिट जाया कर् ह।
**** 

जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

मायड़ भाषा - गोस्वामी तुलसीदास जी कह रह्या ह कि हे हनुमान जी ! थारी जय हो ! जय जयकार हो ! थे माह पर भी बइंयां ही किरपा करज्यो, जंइंयां गुरु महाराज पर किया।
**** 

जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

मायड़ भाषा - भीलवाड़ा म विराज्या खेड़ा का बालाजी !हनुमान चालीसा का ई पाठ ण जो सौ बार पढ़सी, बीक् सारा कष्ट दूर हो जासी अर बीण् जीवन में घणी सुख संपत्ति प्राप्त होसी।
**** 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

मायड़ भाषा - विराटनगर क भीम डूंगरी पर विराज्या बिणा पूंछ आला वज्रांगदेव हनुमान ! जो या हनुमान चालीसा पढ़ ह, बीण् सिद्धि प्राप्त होया कर अ, ई बात का साक्षी स्वयं भगवान शिव ह अ।
**** 

तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥४०॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी! गोस्वामी तुलसीदास जी तो भगवान रामजी का भगत ह अ, थांरा सूं प्रार्थना ह कि थे बांका हिवड़ा म सदा निवास करो।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥

मायड़ भाषा - हे पवन कुमार ! हे संकट मोचन !  हे मंगल करण आला ! हे देवों का देव बालाजी ! थे भगवान रामजी, मईया सीता अर लखनलाल क सागअ म्हारा हिवड़ा म सदा निवास करो।

संदीप मुरारका
लेखक
जमशेदपुर
दूरभाष  : 9431117507
ईमेल : keshav831006@gmail.com
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Sunday, 23 October 2022

मैं जमशेदपुर हूं

कविता

*मैं जमशेदपुर हूं*

नसरवान जी का शहर हूं मैं
मैं हूं प्राचीन कालीमाटी,
मैं हूं टाटा नगर,
मैं हूं स्टील सिटी,
मैं जमशेदपुर हूं।

मैं देश की सड़कों पर ट्रक दौड़ाता हूं,
मैं छतों पर ब्लुस्कोप की शीट लगाता हूं,
मैं मजदूरों और किसानों के लिए एग्रिको में
कुदाल फावड़ा और खुरपी बनाता हूं,
मैं लोहा भी बनाता हूं।

लफार्ज सीमेंट हूं मैं, लाल पीला पिगमेंट हूं मैं,
मैं जैमिपोल, मैं टीआरएएफ, मैं टायो,
टिनप्लेट में टिन मैं ही बनाता हूं,
विदेशों में टीमकेन की बेयरिंग
मैं ही पहुँचाता हूं।

जुस्को की निर्बाध बिजली,
हरियाली और शुद्ध पानी,
सड़कों को नित्य चमकाता हूं,
स्वच्छता सर्वेक्षण में श्रेष्ठ शहर का
अवॉर्ड यूं ही नहीं पाता हूं।

नसरवान जी का शहर हूं मैं
मैं जमशेदपुर हूं।

मैं शहर हूं मजदूरों का,
मैं नेताजी सुभाष का शहर हूं,
मैं शहर अब्दुल बारी का ,
मैं शहर व्ही. जी. गोपाल का,
मैं शहर माईकल जॉन का,
राकेश्वर, रघुनाथ और टुन्नू लाल का।

मैं शहर हूं शिक्षाविद् पद्मश्री दिगंबर हांसदा का ,
महिलाओं की प्रेरक बछेंद्री पाल हूं मैं ,
महिलाओं की हिम्मत प्रेमलता हूं मैं,
तीरंदाज दीपिका हूं, मैं कोमलिका बारी हूं,
द्रोणाचार्य अवार्डी पूर्णिमा महतो मैं ही हूं।

ध्यानचंद अवार्डी एथलीट सतीश पिल्लई हूं,
बॉक्सिंग की रिंग में मैं अरुणा मिश्रा हूं,
क्रिकेट के मैदान में मैं सौरभ तिवारी हूं,
वरुण एरॉन हूं, मैं विराट सिंह हूं,
नसरवान जी का शहर हूं मैं
मैं जमशेदपुर हूं ।

मैं शुक्ल महंती हूं , मैं चंद्र मुदिता हूं ,
मैं रजनी शेखर , मैं डॉ. जकारिया हूं ,
मैं सुखदेव महतो यूनिवर्सिटी बनाता हूं,
मैं एपीआर नायर स्कूलों का जाल फैलाता हूं ,
अंग्रेजी में मैं चलिल हूं , हिंदी में मैं सलिल हूं।

साहित्य में मैं युवा ज्ञानपीठ जयनंदन हूं,
मैं सी भास्कर जैसा शीतल चंदन हूं,
मैं साहित्य का आभूषण रागिनी हूं ,
मैं साहित्य को समर्पित पुष्प जूही हूं ,
मैं अंशुमन भगत, मैं ही सिंहा तुहिन हूं।

मैं आदिवासियों की गाथा गाता हूं,
मैं जनजातीय गौरव बढ़ाता हूं
मैं कॉन्क्लेव संवाद आयोजित कराता हूं,
मैं ही संदीप मुरारका हूं,
पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स लिख जाता हूं।

मैं डॉ राकेश मिश्रा वर्धा विश्वविद्यालय में पढ़ाता हूं,
मैं एमजीएम में डॉक्टर्स बनाता हूं,
मैं एक्सएलआरआई, सीईओ बनाता हूं,
मैं लीना नायर, मैं विनीत नय्यर, मैं संदीप सेन,
मैं विमलेंद्र झा, मैं कृष्ण कुमार नटराजन हूं।

मैं शहर हूँ उनका ,
जिनको रायसीना की पहाड़ी पर बुलाया जाता है ,
जिनके सीनों को पद्म सम्मान से सजाया जाता है ,
मैं शहर हूं दोराबजी का, मैं रुसी मोदी का शहर हूं ,
मैं पद्मभूषण एन चंद्रशेखरन का भी शहर हूं। 

मैं पद्म विभूषण रतन टाटा का अभिमान हूं ,
मैं भारत रत्न जेआरडी के सपनों की उड़ान हूं,
मैं हूं शहर पद्म भूषण जे. जे. ईरानी का ,
मैं पी एन बोस की मूर्ती को पूजवाता हूं,
मैं साइरस के प्रति भी श्रद्धा सुमन प्रकट करवाता हूं।

मैं शहर हूं पद्म भूषण बी मुत्थुरमण का ,
मैं शहर हूं पद्म भूषण होमी भाभा का ,
मैं शहर हूं पद्म भूषण नवल टाटा का ,
मैं ऋणी हूं उस वीर मेहरबाई के नाम,
जिनकी याद में बना कैंसर पीड़ितों का धाम।

नसरवान जी का शहर हूं मैं
मैं जमशेदपुर हूं।

स्वर्णरेखा खरकाई ने सींचा मुझको ,
सख्त हूं मैं दलमा सा, शांत मैं डीमना सा,
पुष्पों से सजा हुआ मैं जुबली पार्क हूं ,
भुवनेश्वरी मंदिर में बैठी मां मेरी ,
हृदय में बैठे प्रभु अयप्पा और श्री राम हैं। 

गोल्फ खेलता हूं गोलमुरी क्लब में,
गोपाल मैदान में बैटिंग करता हूं ,
मोहन आहूजा में बैडमिंटन खेलता,
जेआरडी में फुटबॉल पे किक लगाता हूं,
करनडीह में मुर्गे भी खूब लड़ाता हूं।

कॉइन शो में इतिहास बताता हूं ,
फ्लावर शो से हवा को मह्काता हूं,
डॉग शो में वफादारी का पाठ पढ़ाता हूं,
संवाद मेले में जनजातीय सभ्यता से हो रुबरु,
शहर और गांव की दूरी को मिटाता हूं।

संसद के गलियारों में मैं खूब जाना जाता हूं,
बनकर गोपेश्वर मजदूरों की बात उठाता हूं ,
कभी शैलेंद्र -आभा, कभी सुनील - सुमन,
पति पत्नी दोनों को दिल्ली की गलियां घुमा लाता हूं ,
कभी अर्जुन बनकर खूब तीर चलाता हूं।

कृष्ण बने नीतीश ने भी ढूंढी राह यहीं ,
पानी सींचते बादलों में यहां विद्युत चमक रही,
मैं रघुवर हूं , मुख्यमंत्री बनकर राज्य चलाता हूं,
मैं बन्ना हूं , गरीब वंचितों की आवाज बन जाता हूं,
राज्य - नीति मुझको स्वीकार है, राज- नीति की यहां हार है।


नसरवान जी का शहर हूं मैं
मैं जमशेदपुर हूं ।

युवाओं के मिर्जापुर वाली बीना त्रिपाठी मैं ही तो हूं ,
सोनचिड़ियां का अवॉर्ड विनर लेखक अभिषेक चौबे हूं मैं ,
हां मैं आर माधवन हूं , मैं इम्तियाज अली हूं ,
प्रिंयका चोपड़ा, दत्ता तनुश्री और इशिता मुझको हंसाती हैं ,
वहीं प्रत्युषा बनर्जी की मौत मुझे बहुत रुलाती है।

डांस दीवाने कलर्स का विनर विशाल सोनकर मैं ही तो हूं,
केबीसी में करोड़पति बनने वाली अनामिका मजूमदार हूं मैं,
जो जीता वही सुपर स्टार वाला राजदीप चटर्जी हूं मैं,
'दिल लेना दिल देना, ज़रूरी नहीं है,
इन बातों के सिवा, भी बातें कई हैं ' - शिल्पा राव हूं मैं।

विख्यात पुस्तक माई फैमिली एंड अदर एनिमल्स के लेखक,
जर्सी चिड़ियाघर के संस्थापक गेराल्ड मैल्कम ड्यूरेल
का जन्मदाता मैं ही तो हूं।
मैं लक्खा सिंह बनकर बाबा के भजन गाता हूं ,
मैं प्रेम हूं, मैं अनुभव हूं, मैं श्रद्धा हूं।

जनजातीय दीपों से मैं दीपमालिका सजाता हूं,
बनकर संदीप मैं ही कलम चलाता हूं ,
नसरवान जी का शहर हूं मैं
मैं जमशेदपुर हूं।

- संदीप मुरारका
जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
जमशेदपुर
9431117507
www.sandeepmurarka.com


















Tuesday, 25 January 2022

अप्रतिम 2 - मुकेश रंजन

"अप्रतिम- 2"

दोस्तों "अप्रतिम" श्रृंखला में आज जिक्र संदीप मुरारका का।

संदीप मुरारका जानेमाने उद्यमी हैं । पिछले कुछ दिनों से लेखन की दुनिया में इन्होंने खूब ख्याति बटोरी है। विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त 2020 को आई इनकी पहली किताब "शिखर को छूते ट्राइबल्स" ने साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में नए कीर्तिमान गढ़े हैं। और ये हो भी क्यों नहीं। झारखंड बनने के दो दशक बाद भी इतनी प्रामाणिक और शोधपूर्ण पुस्तक कभी नहीं लिखी गई थी। कौन हैं संदीप मुरारका! जानने के लिए आपको फ्लैशबैक में लिए चलते हैं।

संदीप मुरारका का जन्म 12 फरवरी 1978 को सरस्वती पूजा की रात्रि में जमशेदपुर के व्यवसायी परिवार पुरुषोत्तम दास मुरारका और पदमा देवी के यहां हुआ। संदीप भी बचपन में सामान्य बच्चों की तरह ही थे । प्राथमिक शिक्षा जगतबंधु सेवासदन पुस्तकालय द्वारा संचालित विद्यालय से हुई। ऊपरोक्त पुस्तकालय में 10,000 से ज्यादा पुस्तकें हुआ करती थीं । कहा जा सकता है कि उन पुस्तकों ने ही लिखने की पहली प्रेरणा दी होगी।
संदीप के पिता पुरुषोत्तम दास मुरारका किताबों के बेहद शौकीन थे। महान लेखक गुरुदत्त के तो वे जबरा फैन थे। उनके घर पर गुरुदत्त की लिखी लगभग तमाम पुस्तकें हुआ करती थीं । संभवत: संदीप में भी इसका कुछ ना कुछ प्रभाव तो अवश्य पड़ा ही होगा। संदीप ने अपनी पहली कविता "दियासलाई" आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए महज तेरह साल की उम्र में लिखी। ये एक भावी रचनाकार के उदय की आहट थी। इसके बाद संदीप ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने स्कूली दिनों में बहुत सी कविताएं और लघुकथाएं लिखीं। और प्रतिभाशाली तो इतने की कॉलेज तक आते आते "दैनिक आज" के माध्यम से पत्रकारिता भी करने लगे थे और आकाशवाणी जमशेदपुर के कार्यक्रमों में भी भाग लेते । तब के काल 1991-95 को उनके लेखन का शुरुआती दौर मानना चाहिए । किंतु बाद के दिनों में व्यवसायिक व्यस्ताओं में लेखन कहीं खो सा गया । मगर पठन पाठन व पुस्तक प्रेम जारी रहा। जमशेदपुर में हर साल दिसंबर में आयोजित होने वाला पुस्तक मेला उनको खींचता और लौटते समय कुछ पुस्तकों का थैला हाथ में होता।

व्यवसायिक जगत व समाज में भले ही संदीप मुरारका पहचान के मोहताज ना हों। भले ही उनकी पहचान एक कुशल संगठनकर्ता व प्रखर वक्ता की हो। मगर अंदर एक टीस भी थी। व्यवसायिक व्यस्ताओं ने उनके अंदर के रचनाकार को उनसे दूर कर दिया था । ये सोच कराह उठते थे संदीप मुरारका। ये वो समय था जब पूरी दुनिया पर कोविड-19 का खतरा मंडरा रहा था। जब लोग मायूसी के दौर से गुजर रहे थे, तब इन सब से दूर एक युवा उद्यमी हाथों में कलम थामे ऐसा कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था जो अब से पहले कभी लिखा ना गया था । ना भूतो, ना भविष्यति....     

विगत 2 सालों में समय कितना बदल गया है। झारखंड के गांव कस्बों व आदिवासी समस्याओं को बहुत करीब से देखने समझने वाले संदीप मुरारका आज सफल उद्यमी के साथ एक सफल लेखक भी हैं । राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान गढ़नेवाली जनजातीय समाज की 26 महान हस्तियों की जीवनी पर आधारित उनकी किताब "शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग- 1" ने सफलता के कई नए आयाम रच डालें हैं । आज से पहले जनजातीय समुदाय के भी किसी लेखक ने आदिवासियों की उपलब्धियों पर ऐसा कुछ नहीं लिखा था।

आदिवासियों की जीवंत जीवन गाथा कहती इस किताब का दूसरा और तीसरा खंड भी आ चुका है़। दूसरे में कुल 23 शख्सियतों एवं तीसरे में कुल 28 हस्तियों की संघर्ष कथाएँ और उनकी जीवंत दास्तान है। विशेष कर पूर्वोत्तर की जनजातीय हस्तियों के विषय में शायद ही हिंदी में कुछ लिखा मिले, किंतु लेखक ने इस अवधारणा को तोड़ा है़। शायद इसीलिए हिंदी पट्टी के रुप में विकसीत हो रहे पूर्वोत्तर राज्यों में ये पुस्तकें काफी पसंद की जा रही हैं। किताब का प्रथम और द्वितीय खंड मुंबई के स्टोरी मिरर ने प्रकाशित किया है, जिनका लोकार्पण झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने राजभवन, राँची में किया था। तृतीय खंड का प्रकाशन प्रलेक, मुंबई ने किया है, जिसका लोकार्पण झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं स्वास्थ्य व आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने विधानसभा भवन, राँची में किया।

इन पुस्तकों के अलावा ऑटोबायोग्राफी स्टाइल में लिखी गई तीन कहानियों और हॄदय को छूती कुछ कविताओं का संकलन "बिखरे सिक्के" भी प्रकाशित हो चुका है़। अप्रतिम- 2 के इस अप्रतिम युवा लेखक की पांचवी व अद्भुत पुस्तक है़ "पद्म अलंकृत विभूतियाँ (मारवाड़ी/अग्रवाल)", जो नवंबर, 2021 में प्रकाशित हुई है़। इस पुस्तक में वे देश की वैसी 60 हस्तियों से रुबरु कराते हैं, जिनको उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है़। बातचीत के क्रम में पता चला कि इन पुस्तकों के अंग्रेजी संस्करण पर भी काम चल रहा है़।

प्रिय मित्र और बड़े भाई संदीप मुरारका को भविष्य की अनंत शुभकामनाएं ।

परिचय : संदीप मुरारका

नाम : संदीप मुरारका
जन्म : 12 फरवरी'1978, जमशेदपुर
माता : श्रीमती पदमा देवी मुरारका
पिता : स्व. पुरुषोत्तम दास मुरारका
पत्नी : सविता मुरारका
शिक्षा : बी. कॉम
अल्मा मेटर - सेंट मेरीज हिंदी हाई स्कूल, बिस्टुपुर, जमशेदपुर 
करीम सिटी कॉलेज 
कॉपरेटिव कॉलेज 
पता : जमशेदपुर- 831001 झारखंड
मोबाइल : 9431117507
वेबसाइट : www.sandeepmurarka.com
ई मेल : keshav831006@gmail.com
ब्लॉग : http://sandeepmurarka.blogspot.com

कृतियाँ :
1. "शिखर को छूते ट्राइबल्स" (वर्ष 2020) - पद्म पुरस्कार से विभूषित जनजातीय समुदाय के 18 व्यक्तित्वों की
संक्षिप्त जीवनियों का संकलन। इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण प्रकाशनाधीन है़, अंग्रेजी अनुवाद जमशेदपुर के श्री आनंद मोहन चौबे ने किया है़।

2. "बिखरे सिक्के" (वर्ष 2021) - ऑटोबायोग्राफी स्टाइल में लिखी गई तीन कहानियों और हॄदय को छूती कुछ कविताओं का संकलन

3. "शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2" (वर्ष 2021) - देश के विभिन्न राज्यों से जनजातीय समुदाय के ऐसे 19 नायकों की संक्षिप्त जीवनियों का संकलन, जिनको देश के सर्वोच्च पद्म सम्मान प्राप्त हुए।

4. "शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 3 - अनकही जनजातीय गाथाएँ" (वर्ष 2021) - देश के विभिन्न राज्यों से 20 जनजातीय नायकों एवं 8 ऐसे महान व्यक्तित्वों की संक्षिप्त जीवनियों का संकलन, जो देश के उच्च पदों पर पदस्थापित हैं।

5. पद्म अलंकृत विभूतियाँ (मारवाड़ी/अग्रवाल) - 60 महान व्यक्तित्वों का प्रेरणा दायक परिचय ( जनवरी,2022)

विभिन्न समाचार पत्रों - पत्रिकाओं में सामयिक आलेखों का प्रकाशन एवं आकाशवाणी से प्रसारण । आँख खोलती सुबह, मानस में स्त्री पात्र, साहित्यिक विमर्श एवं नई सांस्कृतिक चुनौतियाँ, हिंदी साहित्य में आदिवासी विमर्श 'अक्षरा'(रिसर्च जनरल, जून 2021), आकाश की सीढ़ी है़ बारिश, समुन्नत भारत के निर्माण में साहित्य की भूमिका, क्रांति स्मरण 2021, अरुणाभा, उर्वशीयम 2022, संकल्प, जनजातीय संस्कृति और सामाजिक गतिशीलता, जनकृति (द्विभाषी अंतरराष्ट्रीय मासिक पत्रिका) देवघर पुस्तक मेला विशेषांक 2023 इत्यादि काव्य कथा संग्रहों में कविताएँ एवं आलेख  प्रकाशित ।

पुरस्कार : अपने व्यवसायिक जीवन में उद्योग विभाग, झारखंड सरकार, झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद, वर्ल्ड बैंक, टाईम्स ऑफ इंडिया द्वारा पुरस्कृत ।

मरुधर साहित्य ट्रस्ट, जमशेदपुर द्वारा "मरुधर साहित्य एवं संस्कृति सम्मान" (5 अगस्त, 2017)

हिन्दी अकादमी, मुंबई द्वारा "नवयुवा रचनाकार सम्मान"
(19 फरवरी, 2021)

सोशल संवाद नेशनल न्यूज नेटवर्क, जमशेदपुर द्वारा शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 के लिए सम्मानित (26 मार्च, 2021)

पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा लेखन सम्मान (8 अगस्त, 2021)

डॉ. राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन द्वारा वंचित समुदाय पर किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए डॉ. राममनोहर लोहिया पुरस्कार गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद द्वारा सम्मानित (27 नवंबर, 2021) मंचासीन विभूतियाँ - गोवा के राज्यपाल महामहिम पी. एस. श्रीधरन पिल्लई, गोवा विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष दिगंबर कामत, झारखंड सरकार के स्वास्थ्य एवं आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता एवं  फाउंडेशन के अध्यक्ष अभिषेक रंजन सिंह

श्रीनाथ यूनिवर्सिटी, जमशेदपुर द्वारा आदिवासी साहित्य में लेखन हेतु श्री सुखदेव महतो द्वारा सम्मान (18 दिसंबर, 2021)

झारखंड डेवलपमेंट कॉन्क्लेव 2022 में जनजातीय खिलाडियों पर उत्कृष्ट लेखन हेतु श्री राजीव रंजन सिंह आई पी एस द्वारा सम्मान (18 जून, 2022)

प्रेमचंद जयंती के अवसर पर भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो, नार्वे एवं द्विभाषी पत्रिका स्पाइल दर्पण द्वारा अंतरराष्ट्रीय  प्रेमचंद सम्मान (30 जुलाई 2022) मंचासीन डॉ शरद आलोक, ओस्लो एवं ब्रिटेन के सांसद श्री वीरेंद्र कुमार शर्मा, उसी मंच पर सम्मानित पद्मश्री डॉ विद्या बिंदु सिंह, विख्यात लेखिका श्रीमती ममता कालिया, डियर साहित्यकार डॉ राकेश कुमार, जयपुर

16 अप्रैल, 2023 मरुधर साहित्य ट्रस्ट, जमशेदपुर द्वारा अजय भालोटिया मरुधर जनजातीय शोध परक सम्मान (राशि रुपये 5100/-) 

पुस्तक समीक्षा : सुश्री ऋचा यादव, उत्तरप्रदेश, 5.02.2023, श्री सतीश कुमार सिंह, एजीएम, एसबीआई, मुंबई ( 23.01.2022, दैनिक देशबन्धु, नई दिल्ली, रायपुर, भोपाल, जबलपुर, बिलासपुर), श्रीमती विजयलक्ष्मी वेडुला, सेवानिवृत्त हिंदी शिक्षिका, सेंट मेरीज हिंदी उच्च विद्यालय, जमशेदपुर (22.01.2022, फेसबुक),
श्री सतीश कुमार सिंह, पत्रकार, मुंबई (16.01.2022 दैनिक राष्ट्रीय सहारा), श्री रमेश कुमार रिपु, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक (दिनांक 9.10. 2021), श्री कृपा शंकर, वरिष्ठ पत्रकार एवं कथाकार (सामयिक पत्रिका दुनिया इन दिनों, सितंबर 2021 अंक),
श्री रघुनाथ पांडेय, क्षेत्रीय संयोजक, पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग, वर्तमान- गोंडा, उत्तर प्रदेश (14.08.2021 एवं 28.11.2021), जनाब शहंशाह आलम, विख्यात समीक्षक, पटना (24.06.2021), श्रीमती अंशु शारड़ा अन्वि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभ लेखिका, असम (20.06.2021 दैनिक पूर्वोदय), श्री अनमोल दुबे, झांसी (5.06.2021, नई दिल्ली दैनिक समाचार पत्र एवं Book वाला), श्री कुंदन कुमार गोस्वामी, राँची (2.04.2021, इन दिनों मेरी किताब), श्री दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, पूर्व संयुक्त निदेशक, राजस्थान कॉलेज शिक्षा विभाग,जयपुर (11.02.2021), श्री अभिलेख द्विवेदी, लेखक एवं पत्रकार, लखनऊ, यू पी (10.01.2021), श्री विनोद कुमार, लेखक एवं पत्रकार, राँची (3.10.2020), श्री देवेंद्र, पत्रकार, जमशेदपुर (27.08.2020, इस्पात मेल).


साहित्यिक सेमिनार, वर्कशॉप, संगोष्ठी :
5 जून, 2021- स्टोरी मंच द्वारा आयोजित कथा पर्व में बतौर अतिथि शामिल एवं जनजातीय व्यक्तित्वों की असाधारण उपलब्धियों पर व्याख्यान।

31 जुलाई, 2021 - अखिल भारतीय साहित्य परिषद के पुस्तक लोकार्पण समारोह में विशिष्ट अतिथि के रुप में शिरकत (पुस्तक - अप्रतिम, लेखक - मुकेश रंजन, विधा - संस्मरण)

9 अगस्त, 2021 - जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित एक दिवसीय वेबिनार में मुख्य वक्ता के रुप में सहभागिता।

27 नवंबर, 2021 - गोवा क्रांति दिवस की 75वीं एवं गोवा मुक्ति का 60वें साल के ऐतिहासिक अवसर एवं गोवा मुक्ति सेनानियों के स्मरण में डॉ. राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के द्वारा क्रांति भूमि मडगांव स्थित रवींद्र भवन, गोवा में दो दिवसीय राष्ट्रीय विचार मंथन में सहभागिता।

18 दिसंबर, 2021- श्रीनाथ यूनिवर्सिटी, जमशेदपुर द्वारा आयोजित 5वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव, जमशेदपुर में सहभागिता एवं अंतर महाविद्यालय प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका।

26 दिसंबर, 2021 - प्रगतिशील लेखक संघ के वनभोज में शिरकत। वरिष्ठ कथाकार जयनंदन, डॉ. राकेश कुमार सिंह, वरुण प्रभात, अर्पिता श्रीवास्तव, कृपाशंकर, शशी भाई, डॉ. शीला कुमारी, प्रशांत श्रीवास्तव, पंकज मित्र के साथ कविताओं का आनंद।

8 जनवरी, 2022 - अप्रतिम भाग- 2 (आत्मसंस्करण - मुकेश रंजन) के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि विख्यात कवयित्री मीनाक्षी मीनल के साथ बतौर विशिष्ट अतिथि मंचासीन।

5 एवं 6 अप्रैल 2022 – डी बी एम एस कॉलेज ऑफ एजुकेशन, जमशेदपुर एवं भारतीय महिला दार्शनिक परिषद द्वारा "जनजातीय संस्कृति एवं सामाजिक गतिशीलता" विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में सहभागिता। साथ ही पेपर प्रसेंटेशन इतिहास लेखन में जनजातियों के साथ पक्षपात

22 जनवरी, 2023 - देवघर पुस्तक मेला के झारखंड साहित्य संगम में सहभागिता एवं साहित्य परिचर्चा का संचालन

16 एवं 17 दिसंबर, 2023 - आड्रे हाऊस, रांची में डॉ राममनोहर लोहिया फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा आयोजित चतुर्थ राष्ट्रीय विचार मंथन 'खरसांवा स्मरण' में द्वितीय दिवस 'जनजातीय समुदाय और समाजवाद' विषय पर व्याख्यान

22 दिसंबर, 2023 - श्रीनाथ यूनिवर्सिटी आदित्यपुर में सातवें हिंदी महोत्सव के दौरान आयोजित वाद विवाद प्रतियोगिता 'दंगल' में निर्णायक भूमिका में शिरकत



साक्षात्कार : बुक वाला के श्री अनमोल दुबे, झांसी द्वारा 20.12.2021 को लिया गया साक्षात्कार, यूट्यूब पर 41 मिनट का प्रसारण।

द मीडियापुर वाला द्वारा दिनांक 12 फरवरी, 2022

दिनांक 2 मार्च, 2022 को आकाशवाणी जमशेदपुर में रेडियो साहित्यिक पत्रिका कार्यक्रम स्वर्णरेखा के भेंटवार्ता - द्वारा श्री पंकज मित्र, विख्यात लेखक

दिनांक 29 जनवरी, 2023, Credent TV जयपुर के कार्यक्रम "डियर साहित्यकार"  के 122वें एपिसोड में डॉ. राकेश कुमार के साथ बातचीत

दिनांक 11 फरवरी, 2023 ऋचा यादव, Book वाला द्वारा साक्षात्कार 

संक्षिप्त परिचय : संदीप मुरारका

संक्षिप्त परिचय

झारखंड राज्य के जमशेदपुर में रहने वाले संदीप मुरारका ने हिंदी लेखन के क्षेत्र में अद्भुत कार्य किया है़। डॉ. राम मनोहर लोहिया जिन वंचितों एवं पीड़ितों की आवाज थे, उसी वर्ग के लोगों को पुस्तक का अध्याय बनाने का साहस लेखक संदीप ने किया है़। उन्होंने देशभर के विभिन्न राज्यों में फैले जनजातीय समुदायों के वैसे लोगों की जीवनियों को लिखा है़, जिनको या तो राष्ट्र के सर्वोच्च पुरस्कार पद्म सम्मान प्राप्त हुए हों अथवा वे देश के बड़े पदों पर पदस्थापित हों। पुस्तकों की इस कड़ी में "शिखर को छूते ट्राइबल्स" शीर्षक से अब तक तीन भाग प्रकाशित हो चुके हैं एवं चौथे भाग का लेखन जारी है़। उपरोक्त पुस्तक शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 1 में सत्रह ऐसे जनजातीय व्यक्तित्वों की जीवनी है़, जिनको देश के सर्वोच्च पद्म सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है़, साथ ही ऐसे आठ महानायकों का परिचय है़ जिनके बिना इतिहास अधूरा है़, यथा; धरती आबा बिरसा मुंडा, पंडित रघुनाथ मुर्मू, ओत् गुरु कोल लाको बोदरा, सिदो कान्हू, फूलो झानो, टाना भगत, नीलांबर पीतांबर एवं मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा। पुस्तक में आदिवासी लोकसंस्कृति के संवाहक पद्मश्री मुकुंद नायक की जीवनी भी शामिल है़।

शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 2 में ऐसे उन्नीस आदिवासी व्यक्तित्वों की जीवनियाँ शामिल हैं जो राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कारों से नवाजे गए, साथ ही चार आदिवासी महानायकों के परिचय को सम्मिलित किया गया है- बाबा तिलका मांझी, तेलंगा खड़िया, तंट्या भील एवं कोमराम भीम।

शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 3 में ऐसे बीस महान आदिवासियों की जीवनी प्रकाशित है़ जिनको पद्म सम्मान से विभूषित किया जा चुका है़। साथ ही आठ ऐसी जनजातीय हस्तियों का परिचय है़, जिन्होंने देश के उच्चतम पदों को सुशोभित किया, जैसे कि श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, श्री गिरीश चंद्र मुर्मू, सुश्री अनुसुईया उइके, लांस नायक अल्बर्ट एक्का, श्री राजीव टोपनो, श्री अमृत लुगून, प्रो. सोना झरिया मिंज एवं श्री हरिशंकर ब्रह्मा।

शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग 4 का लेखन जारी है़, जिसमें देश के लगभग पच्चीस विशिष्ट जनजातीय नायकों की जीवनियाँ लिखी जा रही है़। उपरोक्त पुस्तकों की प्रस्तावना विख्यात पत्रकार विनय पूर्ति, लेखक रणेन्द्र एवं महादेव टोप्पो ने लिखी है़। पहली दो पुस्तकों का विमोचन झारखंड की राज्यपाल माननीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने किया है़, वहीं भाग 3 का विमोचन झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन एवं स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने किया है़।