झारखंड का राजनीतिक घेराव : असंभव !
अंशुमन कहता है राजनीति पर लिखो ! पर क्या लिखूं ! झारखंड की बात करूं, तो दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर लिखना होगा। उन गुरुजी पर, जिन्होंने आदिवासी नेताओं की राजनैतिक तलवार को नई धार दी। झारखंड राज्य के गठन में जिनके योगदान को चाहकर भी कमतर नहीं किया जा सकता। किंतु उनको धराशायी करने के लिए क्या नहीं किया गया ! मुख्यमंत्री रहते हुए ना केवल शिबू सोरेन को हार का स्वाद चखना पड़ा बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे मात्र 10 महीने कुर्सी पर बैठ पाए। वहीं आरएसएस के कैडर रहे मधु कोड़ा को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा, जीता भी और निर्दलीय विधायक रहते हुए 23 महीने सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का अनूठा रिकार्ड बनाया।
वनांचल राज्य की पक्षधर रही भाजपा ने झारखंड गठन के बाद विधायकों के अंकगणित को जब अपने पक्ष में देखा तो केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुलाल मरांडी को सूबे का राज संभालने दिल्ली से रांची रवाना कर दिया, किंतु वे मात्र 28 महीने ही कुर्सी संभाल पाए। जिस भाजपा ने बाबुलाल जी को झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्रदान किया, उसी भाजपा से बाबुलाल जी का मोह 2006 में टूट गया और उन्होंने अलग दल झाविमो का गठन कर डाला, फिर ना जाने कौन सा विवेक जागा और 14 वर्षों के वनवास के बाद वे फिर भाजपा में शामिल हो गए।
महज 22 वर्ष के झारखंड ने 14 बार कुर्सी का हस्तांतरण देखा। यह अलग बात है कि 6 ही नेता सत्ता की रोटी को अलट पलट कर सेंकते रहे; बाबुलाल मरांडी - 1 बार , शिबू सोरेन - 3 बार, अर्जुन मुंडा - 3 बार, मधु कोड़ा - 1 बार, रघुवर दास - 1 बार और हेमंत सोरेन - 2 बार। अफसोस इस बात का नहीं कि रघुवर दास को छोड़कर कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, अफसोस इस बात का है कि इस खनिजगर्भा भूमि को तीन बार राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। इन 22 वर्षों में राजभवन ने 10 महामहिमों को बदलते देखा और उनमें भी चार ने राष्ट्रपति शासन के जरीये सूबे को मनचाहा हांका।
राजनीति की प्रयोगशाला बन चुके झारखंड का विकास किस तेजी से हुआ, यह बयां करना मुश्किल है किंतु यहां का बजट बड़ी तेजी से विकसीत हुआ। जहां वर्ष 2001-02 में झारखंड का बजट 7,101 करोड़ रुपये था, आज वर्ष 2022-23 में चौदह गुणा बढ़कर 1,01,101 करोड़ रुपए पहुंच चुका है। अंशुमन ! तुम्हें याद होगा कि झारखंड का पहला बजट सरप्लस था, जबकि आज का बजट कर्ज व ब्याज में डूबा हुआ है।
शायद इसीलिए अंशुमन चाहते हैं कि राजनीतिक घेराव पर लिखा जाए। पर किसको घेरोगे अंशुमन! जेएमए से पहली बार विधायक बने अर्जुन मुंडा को, जो बाद में भाजपा से 2,129 दिन मुख्यमंत्री रहे या सांसद विद्युत महतो को, जो विधायक तो रहे जेएमएम से, पर संसद के गलियारे में कमल फूल लेकर टहल रहे हैं। मैंने सुना है कि आजसू का गठन 1986 में निर्मल महतो, प्रभाकर तिर्की और सूर्य सिंह बेसरा ने किया था, किंतु आजसू के नाम का सत्ता सुख किसने भोगा, सुदेश महतो ने !
कहो अंशुमन ! किस किस पर इल्जाम लगाओगे और कितना घेरोगे ! पूर्व सांसद या यूं कहूं कि चर्चित सांसद शैलेंद्र महतो को घेरने जाओगे तो रिश्वत कांड की चर्चा करने की जरूरत ही नहीं केवल उनकी बदलती आस्था और बदलते चक्र की चर्चा काफी है। झामुमो से भाजपा फिर आजसू फिर कांग्रेस फिर जदयू फिर भाजपा फिर झारखंड उलगुलान पार्टी और अभी पता नहीं किस पार्टी में हैं। इसी बीच कभी लेखक तो कभी स्वामी श्री साईं मूर्ति के नाम से आध्यात्मिक गुरु के रुप में अवतार, इतना ही नहीं उन्होंने 'लोक अधिकार मोर्चा' के नाम से एक अलग राजनैतिक दल का गठन भी किया था।
अंशुमन तुम भी तो झारखंड में जन्में हो! क्या दुःखी नहीं हो! मुझे पता है तुम ही नहीं हर झारखंडी तब तब शर्मिंदा होता है जब जब बात यहां की राजनीति की होती है। क्योंकि यहां के राजनेताओं की ना तो कोई नीति है और ना नीयत ! ना तो यहां किसी नेता की किसी पार्टी विशेष के प्रति स्थायी आस्था है और ना सत्ता को चुनौती देने की क्षमता। यहां तो राजा पीटर जैसे नेता हैं, जो कभी तो मुख्यमंत्री रहते दिशोम गुरु शिबू सोरेन को विधानसभा चुनाव हराने का माद्दा रखते हैं और कभी एनआईए के द्वारा गिरफ्तार होकर वर्षों जेल की शोभा बढ़ाते हैं।
अंशुमन ! क्या घेराव करोगे इनका, जो खुद का बचाव नहीं कर सकते। जनवरी 2005 में झारखंड के भगत सिंह कहे जाने वाले बेहद चर्चित जन नेता महेंद्र सिंह को गोलियों से भून दिया जाता है। वहीं मार्च 2007 में सांसद सुनील महतो को सरेआम सार्वजनिक मंच पर चढ़कर मार दिया जाता है। अक्टूबर 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी सहित उन्नीस लोगों का नरसंहार कर दिया जाता है। तो वहीं वर्ष 2008 में मंत्री रमेश सिंह मुंडा को गोली से छलनी कर दिया जाता है। अब कहो अंशुमन ! जिस राज्य में विधायक, मुख्यमंत्री का बेटा, सांसद और कैबिनेट मंत्री की हत्या कर दी जाए, उस राज्य का क्या राजनीतिक घेराव करोगे मित्र!
अजी ! झारखंड में राजनैतिक संगठनों के हालात यह है कि यहां जनाधारविहीन संगठनकर्ता पार्टी चलाया करते हैं। झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां की जनता चुनावों में राजनैतिक पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों यानी पार्टी नेतृत्व को नकार दिया करती है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बालमुचू और सुखदेव भगत को जनता चुनावी नदी के किनारे छोड़ चुकी है वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा और दिनेशानंद गोस्वामी चुनावी शतरंज में पीट चुके हैं और तो और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मु को तो ऐसी हार मिली कि वे अपनी सीट में 12वें स्थान पर चले गए थे। हां यह अलग बात है कि राजनीति की 'गिनीज बुक ऑफ इंडियन रिकार्ड्स' बनाई जाए तो उसमें कई पन्ने झारखंड को समर्पित कर देने होंगे। हमारे पास रिकार्ड्स भी अजीब हैं, चाहे निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाने का रिकार्ड हो या विधानसभा के एक टर्म में चार चार मुख्यमंत्री बनाने और राष्ट्रपति शासन झेलने का रिकार्ड अथवा मुख्यमंत्री रहते चुनाव हारने की हैट्रिक बनाने का रिकार्ड। मुख्यमंत्री रहते झारखंड के चुनावी मैदान में शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास, तीनों को शिकस्त मिली। हालांकि सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री देने का रिकार्ड भी इसी राज्य ने बनाया है।
अंशुमन यह झारखंड है! जिस अलग राज्य के गठन के लिए हजारों लोगों ने अपनी जवानी दांव पर लगा दी, उन्हें मिलते हैं तीन चार हजार रुपए और उन आंदोलनकारियों को चिंहित करने के लिए बनता है 'झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग', जिसके सदस्य भोगते हैं लालबत्ती का सुख।
अंशुमन ! राजनीतिक घेराव वहां संभव है जहां राजनेता हों या राजनीत हो किंतु जहां ना नीति हो, ना नियम, ना निगरानी, वहां किस का घेराव! इसकी विधानसभा की सालगिरह के मंच पर कवि कुमार विश्वास को लाखों रुपए देकर बुलाया जाता है और तुम्हारे जैसे स्थानीय साहित्यकारों को आमंत्रण तक नहीं भेजा जाता। झारखंड एक ऐसा राज्य है जो 22 वर्षों में साहित्य अकादमी का गठन ना कर सका। झारखंड ऐसा राज्य है जहां 32 जनजातियां हैं, इन सबकी भाषाएं अलग-अलग हैं, पर जनजातीय शोध व साहित्य प्रकाशन के लिए ना कोई स्कीम, ना सोच। अब बताओ अंशुमन जब इतिहास ही नहीं लिखा जाएगा तो संस्कृति कैसे बचा पाओगे। इस राज्य की राजनीति को कितना घेरोगे अंशुमन! कितना घेर पाओगे। कितना सफल हो पाओगे। असंभव !
संदीप मुरारका
जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
जमशेदपुर, झारखंड
9431117507
www.sandeepmurarka.com
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