Saturday, 10 December 2022

फिर जी उठें हैं लोहिया

फिर जी उठें हैं लोहिया......

वर्ष 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास लोकसभा में जहाँ 404 सीटें थी, वहीं भारतीय जनता पार्टी के मात्र 2 सांसदो ने लोकसभा में प्रवेश किया। आज स्थिति यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आंकडा़ घटकर महज 53 सांसदों तक सिमट गया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के 303 सांसद लोकसभा में शोभायमान हैं। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देते हैं तो राजनीति का अध्ययन करने वाले लोगों के जेहन में सबसे पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम याद आता है।

राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर जवाहरलाल नेहरु से टकराने वाले डॉ. लोहिया देश में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'कांग्रेस मुक्त भारत' की कल्पना की। भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी डॉ. लोहिया की पंडित नेहरू से  तल्खी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने यहां तक कह दिया था कि 'बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।' कांग्रेस संस्कृति के घोर विरोधी रहे डॉ लोहिया ही वो जीवट शख्स थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहने का साहस किया।

आज देश के 36 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आधे  स्थानों पर कांग्रेस सांसद विहीन है। इस दयनीय स्थिति को देखकर डॉ. लोहिया की पंक्ति याद आती है कि 'जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं किया करतीं।' शायद इसीलिए दूरद्रष्टा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने 11 अक्टूबर 1962 को एनार्की में लिख दिया -

भोर में पुकारो सरदार को,
जीत में जो बदल देते थे कभी हार को,
तब कहो, ढोल की य' पोल है,
नेहरू के कारण ही सारा गंडगोल है।

फिर जरा राजाजी का नाम लो,
याद करो जे. पी. को, विनोबा को प्रणाम दो ।
तब कहो, लोहिया महान है।
एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है।

श्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर थे, तो देश भर में रैलियां कर रहे थे। उसी क्रम में उन्होंने 27 अक्टूबर, 2013 को पटना के गांधी मैदान में भी एक रैली में भाग लिया था, जो काफी चर्चित हुई। नरेंद्र मोदी जब पटना पहुंचने वाले थे, उसके पहले आतंकियों ने भाजपा समर्थकों से खचाखच भरे गांधी मैदान में सीरियल धमाके किए, जिनमें 6 लोगों की जान चली गई थी। इन धमाकों से पहले पटना जंक्शन के टॉयलेट में भी विस्फोट हुआ था। किंतु लगातार धमाकों के बावजूद अपनी दृढ़ता प्रकट करते हुए देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित किया। उस भाषण की एक विशेष बात यह भी रही कि मोदी ने डॉ. लोहिया को याद किया और जमकर उनके मूल्यों व सिद्धांतों की बात की। उन्होंने कहा कि राममनोहर लोहिया जी जीवनभर हिंदुस्तान को कांग्रेस मुक्त कराने के लिए लड़ते रहे, जीवन भर जूझते रहे। मोदी ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधते हुए भी लोहिया का ही उद्धरण दिया था।


पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को "उर्वशीयम" के नाम से पुकारने वाले लोहिया कहा करते थे कि 'लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर लेकिन मेरे मरने के बाद ’ और यह हो भी रहा है। लोहिया
अक्सर आगाह करते रहे कि चीन से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है और आज मोदी युग में चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाना, लोहिया की प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।

दिनांक 4 जनवरी, 2022 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में यह कहा कि "पूर्वोत्तर, जिसे नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता का प्रवेश द्वार कहा था, वो नए भारत के सपने पूरा करने का प्रवेश द्वार बन रहा है। हम पूर्वोत्तर में संभावनाओं को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘पूर्वोत्तर को लेकर पहले की सरकारों की नीति थी ‘डोंट लुक ईस्ट’ यानी पूर्वोत्तर की तरफ दिल्ली से तभी देखा जाता था, जब यहां चुनाव होते थे। लेकिन हमने पूर्वोत्तर के लिए ‘एक्ट ईस्ट’ का संकल्प लिया है।’ देश के प्रधानमंत्री के भाषण और ट्वीट देखकर एक बार फिर लोहिया जी की याद ताजा हो जाती है। क्योंकि दिल्ली की सत्ता की राजनीति करनेवाले तत्कालीन नेताओं में वे एकमात्र शख्शियत थे, जो पूर्वोत्तर की बात किया करते थे और समय समय पर अपनी चिंता प्रकट किया करते थे। वर्ष 1963 में प्रकाशित डॉ लोहिया के भाषणों, बयानों और आलेखों के संकलन 'इंडिया चाइना एंड नार्दर्न फ्रंटियर्स' के विभिन्न पन्ने गवाह हैं, जिनमें विद्वान लोहिया ने हिमालयी क्षेत्रों की आर्थिक खुशहाली एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने की बातें कही हैं। उनकी मृत्यु के 55 वर्षों के बाद जब देश के प्रधानमंत्री उन्हीं बातों को दोहराते हैं, तो ऐसा लगता है मानों लोहिया जीवंत हो चुके हैं अथवा मोदी इस देश के पहले राजनेता हैं जिन्होंने लोहिया के विचारों को अंगीकार कर लिया है।

वर्ष 1983 में इलाहाबाद के लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लोहिया की पुस्तक "भारत माता धरती माता" के पृष्ठ 53 से 90 पर अंकित चौथे आलेख 'राम, कृष्ण, शिव' का अध्ययन करने के बाद मोदी जी की तपस्या वाला किस्सा याद आ जाता है। जिसमें केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती यह दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1985 या 86 में डेढ़ माह तक हिमालय की गुफा में तपस्या की थी। वैसे 18 मई 2019 को मोदी जी को केदारनाथ धाम मंदिर के निकट एक गुफा में ध्यान लगाते सारी दुनिया ने देखा था। खैर, उन्होंने तपस्या की या नहीं, मैं यह नहीं जानता, लेकिन यह मानता हूँ कि उन्होंने डॉ. लोहिया के आलेख 'राम,कृष्ण, शिव' को अवश्य पढ़ा है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनके राजनैतिक एजेंडा में 'अयोध्या, मथुरा और वाराणसी' सर्वोच्च स्थान पर हैं।


इतिहास की तिथियों में 23 मार्च देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है। मां भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के सर्वोच्च बलिदान का दिन है। मां भारती के एक और लाड़ले लोहिया का जन्मदिन है। स्वयं को लोहियावादी बताने वाले उनका जन्मदिवस कितनी शिद्दत से मनाते हैं, यह तो नहीं पता, किंतु नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी किसी भी वर्ष लोहिया को श्रद्धा सुमन अर्पित करना नहीं भूले। उन्होंने 2016 में लोहिया द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए हस्तलिखित पत्र पोस्ट किए। साथ ही लिखा कि विद्वान डॉ. राम मनोहर लोहिया, जिनके विचार सभी दलों के नेताओं को प्रेरित करते हैं। वर्ष 2017 की 23 मार्च को मोदी ने सामाजिक सशक्तिकरण एवं सेवा के लिए लोहिया के विचारों को प्रेरणास्त्रोत बतलाया। वहीं वर्ष 2018 में मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री स्वीकारोक्ति कि लोहिया बीसवीं सदी के भारत के सबसे उल्लेखनीय व्यक्तियों में से एक हैं।


वर्ष 2019 को उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी और अप्रतिम देशभक्त बताते हुए उनकी जयंती पर सादर नमन किया। साथ ही साथ विपक्ष को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया था कि जो लोग आज डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल कर रहे हैं, वही कल देशवासियों के साथ भी छल करेंगे। जो लोग लोहिया के दिखाए रास्ते पर चलने का दावा करते हैं, वही क्यों उन्हें अपमानित करने में लगे हैं? यह भी कहा कि कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उन्होंने ब्लॉग में लिखा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब युवा लोहिया ने आंदोलन की कमान संभाली और मैदान में डटे रहे। लोहिया ने भूमिगत रहते हुए अंडरग्राउंड रेडियो सेवा शुरू की, जिससे आंदोलन की गति धीमी न पड़े और अविरल चलती रहे। डॉ. लोहिया का नाम गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

मोदी ने लिखा कि जहां कहीं भी गरीबों, शोषितों और वंचितों को मदद की जरूरत पड़ती, वहां डॉ. लोहिया मौजूद होते थे। उन्होंने आगे कहा कि लोहिया के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने और अन्नदाताओं के सशक्तीकरण को लेकर काफी कुछ लिखा। उनके इन्हीं विचारों के अनुरूप एनडीए सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। लोहिया जाति व्यवस्था और महिलाओं तथा पुरुषों के बीच की असमानता को देखकर दुखी होते थे।

उन्होंने लिखा, 'सबका साथ, सबका विकास' का हमारा मंत्र और पिछले पांच सालों का हमारा ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि हमने लोहिया के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। अगर आज लोहिया होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती। उन्होंने कहा कि लोहिया संसद के भीतर या बाहर कहीं भी बोलते थे तो कांग्रेस हमेशा उनसे डरती थी।

लोहिया के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि देश के लिए कांग्रेस कितनी घातक हो चुकी है, इसे डॉ. लोहिया भलीभांति समझते थे। वर्ष 1962 में उन्होंने कहा था, 'कांग्रेस शासन में कृषि हो या उद्योग या फिर सेना, किसी भी क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है।' उनके ये शब्द कांग्रेस की बाद की सरकारों पर भी अक्षरश: लागू होते रहे।

उन्होंने कहा, 'कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उनके प्रयासों की वजह से ही 1967 के आम चुनावों में सर्वसाधन संपन्न और ताकतवर कांग्रेस को करारा झटका लगा था। उस समय अटल जी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया की कोशिशों का ही परिणाम है कि हावड़ा-अमृतसर मेल से पूरी यात्रा बिना किसी कांग्रेस शासित राज्य से गुजरे की जा सकती है!' दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति में आज ऐसे घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर डॉ. लोहिया भी विचलित, व्यथित हो जाते।

प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों पर हमला करते हुए कहा कि वे दल जो डॉ. लोहिया को अपना आदर्श बताते हुए नहीं थकते, उन्होंने पूरी तरह से उनके सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। यहां तक कि ये दल डॉ. लोहिया को अपमानित करने का कोई भी कोई मौका नहीं छोड़ते। ओडिशा के वरिष्ठ समाजवादी नेता सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया अंग्रेजों के शासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।'

उन्होंने कहा कि आज उसी कांग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियां अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है।  डॉ. लोहिया वंशवादी राजनीति को हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे। आज वे यह देखकर जरूर हैरान-परेशान होते कि उनके ‘अनुयायी’ के लिए अपने परिवारों के हित देशहित से ऊपर हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डॉ. लोहिया का मानना था कि जो व्यक्ति ‘समता’, ‘समानता’ और ‘समत्व भाव’ से कार्य करता है, वह योगी है। उन्होंने आगे कहा, डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राजनीति दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि इन पार्टियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इनके लिए डॉ. लोहिया के विचार और आदर्श बडे़ हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति? आज 130 करोड़ भारतीयों के सामने यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि जिन लोगों ने डॉ. लोहिया तक से विश्वासघात किया, उनसे हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जाहिर है, जिन लोगों ने डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल किया है, वे लोग हमेशा की तरह देशवासियों से भी छल करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के बाद भी हर वर्ष लोहिया को उनके  जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि दी है। परंतु मुख्य बात यह है कि मोदी जी गाहे बेगाहे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को परास्त करने हेतु लोहिया को याद कर लिया करते हैं, जिससे उनके भीतर का लोहियावाद परिलक्षित होता है।

उरी हमले के बाद 24 सितंबर 2016 को केरल के कोझिकोड में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में आतंकवाद एक्सपोर्ट करनेवाला देश बताते हुए कहा था कि हमारे 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि पिछली शताब्दी में भारत के राजनीतिक जीवन को तीन महापुरुषों के चिंतन ने प्रभावित किया है वे हैं महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. राम मनोहर लोहिया। इनके चिंतन का प्रभाव हिंदुस्तान की राजनीति पर नजर आता है।

जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को कमजोर करने और 35 ए हटाने के संकल्प पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 6 अगस्त 2019 को राज्यसभा में लोहिया का नाम लिया। लोहिया को गठबंधन की राजनीति का जनक कहा जाता है। बिहार और उत्तरप्रदेश के राजनेता आज भी उनका नाम लेकर सत्ता की रोटी को उलट पलट कर सेंक रहे हैं।

इसे लोहिया का सम्मान कहें या लोहिया के विचारों की ताकत या लोहिया के नाम का राजनैतिक इस्तेमाल या बढ़ता लोहियावाद!!  खैर जो हो, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले के प्राचीर से 15 अगस्त 2022 को स्वाधीनता दिवस एवं आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर अपने संबोधन में आजादी के आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए जब डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम का जिक्र किया, तो मानो यूं लगा कि "फिर जी उठें हैं लोहिया......"

संदीप मुरारका
जनजातीय व पिछड़ा समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
www.sandeepmurarka.com
Email : keshav831006@gmail.com

उर्वशीयम 2022 में प्रकाशित आलेख









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