Monday, 5 December 2022

श्री हनुमान चालीसा (मायड़ भाषा में अनुवाद सहित)

॥ जय विंदायक जी महाराज ॥
मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला, सूनो लागै थार ॥

*श्री हनुमान चालीसा*
*राजस्थान के प्रसिद्ध हनुमान जी के रूपों का दर्शन एवं मायड़ भाषा (मारवाड़ी) में हनुमान चालीसा का अनुवाद*

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

मायड़ भाषा - म आपका गुरु महाराज क श्री चरण कमलां की धूल स आपका मन रूपी दर्पण ण पवित्र कर क भगवान रामजी क निर्मल यश को बखान करूं हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम अर मोक्ष ण देण वालो ह।
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

मायड़ भाषा - हे पवन कुमार! म थारो सुमिरन करूं हूं। थे तो जाणों ही हो कि मेरो शरीर अर बुद्धि निर्बल ह। मनअऽऽऽ शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि अर ग्यान दिज्यो। मेरअऽऽऽ दुख अर दोष को नाश कर दिज्यो।
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥१॥

मायड़ भाषा - श्री हनुमान जी! थारी जय हो! थारो ग्यान अर गुण अथाह ह। हे कपीश्वर! थारी जय हो! तीनों लोकां स्वर्गलोक, भूलोक अर पाताल लोक में थारी कीर्ति ह।
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥२॥

मायड़ भाषा - हे राम दूत !  हे पवन पुत्र ! हे अंजनी का लाला ! थार अ समान कोई दूसरो बलवान कोणी।
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

मायड़ भाषा - हे महावीर ! हे बजरंग बली! थे विशेष पराक्रम वाला हो। थे खोटी बुद्धि सूं दूर करो हो अर चोखी बुद्धि वालां क साग अ रह्या रो हो।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा॥४॥

मायड़ भाषा - सालासर म विराज्या हनुमान जी ! थे सोना का रंग, सुंदर कपड़ा, काणा म कुंडल अर घुंघराला बालां सूं सुशोभित हो।
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हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥५॥

मायड़ भाषा - मेहंदीपुर म विराज्या बालाजी ! थार अ हाथ म बज्र अर ध्वजा ह अर कांधा प मूंज की जनेऊ की शोभा ह ।
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥६॥

मायड़ भाषा - हे शंकर का अवतार! हे केसरी नंदन! थार अ पराक्रम अर महान यश की वंदना सगलो संसार र् ह।
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥७॥

मायड़ भाषा - सरिस्का म लेटेड़ा पांडुपोल हनुमान जी ! थे प्रकांड विद्वान हो, थे गुणवान अर कार्य कुशल हो। रामजी को काम करण क खातिर थे सदा आतुर रहौ ।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

मायड़ भाषा - सरदारशहर म सिंहासन प विराज्या इच्छापूर्ण बालाजी ! थे बड़ा मन सूं भगवान रामजी की कथा सुणो हो। रामजी, देवी सीता अर लखनलाल सदा थार अ हृदय में निवास कर् अ
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

मायड़ भाषा - लक्ष्मण डूंगरी म बैठ्या खोले आला हनुमान जी ! थे आपको भोत छोटो सो रूप धारण र् सीताजी ण दिखलाया था अर भयंकर रूप धर र् लंका ण जलाया था।
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भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥

मायड़ भाषा - सामोद की पहाड़ी प खड्या वीर हनुमान ! थे बड़ो विकराल रूप धारण कर राक्षसां ण मारया था अर प्रभु रामजी को काज संवारया था।
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥११॥

मायड़ भाषा - जयपुर माय चांदपोल किंवाड़ क पास बैठ्या हनुमान जी ! थे संजीवनी बूटी लाकर लखनलाल न जीवा दिया, जिसअऽऽऽ  राजी होकर रामजी थाण हृदय सूं लगा लिया।
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रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥१२॥

मायड़ भाषा - जोधपुर म विराज्या घंटियाला बालाजी !
भगवान रामजी थारी भोत प्रशंसा किया अर बोल्या कि 'थे भरत की जईयां ही आपारां भाई हो'।
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥

मायड़ भाषा - सीकर म विराज्या दो जांटी बालाजी ! रामजी थाण बार बार हृदय स लगाता अर बोल्या कि 'थारो जश् हजारां मुंडा स गायां जाण जोग्य ह।'
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

मायड़ भाषा -  धौलपुर में विराज्या किले आला हनुमान जी ! रामजी आगअऽऽऽ कह रहया ह कि सनकादिक ऋषि याणी सनत, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार अर ब्रह्माजी, देवर्षि नारद, मां सरस्वती, शेषनाग सहित सगला देवी देवता थारो गुणगाण  कर् अ।
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जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥१५॥

मायड़ भाषा - भरतपुर म विराज्या वनखंडी हनुमान !
चाहे यमराज हो या कुबेर या दसूं दिक्पाल या कोई कवि या कोई विद्वान पंडित ही क्यूं न हो, कोई भी थारअऽऽऽ यश को सगलो बखान कोणी कर सक्अ।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥१६॥

मायड़ भाषा - बांसवाड़ा म विराज्या बोरवट हनुमान बावसी ! थे सुग्रीव न रामजी स मिलाकर, बीक् अ ऊपर भोत बड़ो उपकार किया, जी कारण ही बो राजा बन सक्यो।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥१७॥

मायड़ भाषा - लक्ष्मणगढ़ क श्रीजी मंदिर दानवदलन हनुमान ! विभीषण थारो दियो हुओ ग्यान को पालन कियो, जी कारण ही बो लंका को राजा बन सक्यो, या बात सकल संसार जानअऽऽऽ ह।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥

मायड़ भाषा - नवलगढ़ म हनुमानगढ़ बालाजी ! सूरज जो आपणी धरती स एक जुग, हजार योजन की दूरी पर ह, थे बालपणा म, खेल खेल म, बठे पहुंच ग्या और सूरज ण मीठो फल समझ कर मुंह म निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥१९॥

मायड़ भाषा - चित्तौड़गढ़ म बैठ्या होड़ा हनुमान जी !
थे प्रभु रामजी की अंगूठी मुंह म रखकर समुद्र ण लांघ दिया, इमअऽऽऽ कोई आश्चर्य की बात ही कोणी।
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

मायड़ भाषा - बीकानेर आला हे पूनरासर बालाजी !
संसार म जितणो भी कठिन स कठिन काम हो, थारी कृपा सूं आसान हो जाया कर हअऽऽऽ।
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥२१॥

मायड़ भाषा - जैसलमेर म बैठ्या श्री गजटेड हनुमान !
थे रामजी क द्वार की रखवाली करो हो, थारा हुकम का बिणा कोई अंदर कोणी जा सक्अऽऽऽ। या यूं कहवां कि थाण राजी किये बिना रामजी की किरपा कोणी हो सक्अऽऽऽ।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥

मायड़ भाषा - सवाईमाधोपुर क तेलन पंसेरी बालाजी !
जो भी भगत थारी शरण म आव ह, सगला सुख ही सुख प्राप्त कर ह। जब थे ही रक्षा करण वाल्या हो, तो फिर कोई को के ड़र ॥
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥

मायड़ भाषा - श्री गंगानगर क खेजड़ी हनुमान जी !
थारो तेज कोई दूसरो कोणी सहन कर सक् , थे खुद ही आपको तेज रोक सको हो। थारी गर्जना सूं तीनों लोक कांप उठ् अ।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

मायड़ भाषा - हे महावीर हनुमान ! जठे भी थार नाम को उच्चारण होया कर ह, बठे भूत पिशाच आ ही कोणी सक् अ।
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥

मायड़ भाषा - हे वीर हनुमान ! थार नाम को जाप करण सूं सगला रोग दूर हो जाया करअ अर सगळी पीड़ा भी मिट जाया कर् अ।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी महाराज ! जीक् मन म, जीकी हर आदत म, जीकी बोली म, जीक् ध्यान म केवल थे ही रह्या करो, बीक् कोई कष्ट आ ही कोणी सक्अ, थे बीण् सारा संकट सूं  छुड़ा लिया करोओ हो।
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

मायड़ भाषा - उदयपुर म विराजमान हे मंशापूरण बालाजी ! रामजी राजा भी ह अर तपस्वी भी ह, रामजी सबकुछ करण म सक्षम ह, पर उनका सगला काम सहज करनअ वाला थे ही हो।
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

मायड़ भाषा - झालबाड़ा म बैठ्या कामखेड़ा बालाजी!
थारअ भगतां की जो भी इच्छा हो, थे बीण् जीवन में बांकी सोच स कई गुणा फल प्रदान करो हो।
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

मायड़ भाषा - बाड़मेर की हनुमान टेकड़ी म विराज्या भगवान ! सतयुग, त्रेता, द्वापर अर कलियुग, चारों जुगां म थारो जश् फैल रह्यो ह, थारी कीर्ति सूं सारअ जगत म उजियारो ही उजियारो हअ।
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साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

मायड़ भाषा - हे रामजी का दुलारा हनुमान ! थे दुष्ट राक्षसां को नाश करो हो अर साधु संता की रक्षा करो हो।
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

मायड़ भाषा -  जालौर जिला म बैठ्या कानिवाड़ा हनुमानजी ! थे कोई ण भी आठूं सिद्धि अर नौ निधि प्रदान कर सको हौ, क्यूंकि थाण माता जानकी सूं यो वरदान प्राप्त ह।
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

मायड़ भाषा - हे रामभक्त ! थे सदा रामजी की सेवा म रहौ हौ, थार अ पास राम नाम की ओषधी ह अ, जो हर कष्ट ण दूर कर सक् अ।
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी ! थांरी भक्ति सूं रामजी की की किरपा मिल जाया कर् अ अर सगला जनम का दुखां स मुक्ति मिल जाया कर् अ।
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अंत काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥

मायड़ भाषा - हे बालाजी ! थारो भगत अंतिम समय आण पर भगवान रामजी क धाम म जाव ह अर फिर सूं धरती पर आव ह तो रामभक्त क रुप म प्रसिद्धि पाव ह।
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

मायड़ भाषा - हे अंजनीपुत्र हनुमान ! थारी सेवा पूजा करण सूं सगला सुख मिल जाया कर् ह, फेर बाकी देवी देवतां ण पुजबा की के दरकार ह।
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

मायड़ भाषा - हे पवनपुत्र वीर हनुमान ! जो भी थारो सुमिरण कर् ह, बीक् सगला कष्ट सगळी पीड़ा मिट जाया कर् ह।
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

मायड़ भाषा - गोस्वामी तुलसीदास जी कह रह्या ह कि हे हनुमान जी ! थारी जय हो ! जय जयकार हो ! थे माह पर भी बइंयां ही किरपा करज्यो, जंइंयां गुरु महाराज पर किया।
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जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

मायड़ भाषा - भीलवाड़ा म विराज्या खेड़ा का बालाजी !हनुमान चालीसा का ई पाठ ण जो सौ बार पढ़सी, बीक् सारा कष्ट दूर हो जासी अर बीण् जीवन में घणी सुख संपत्ति प्राप्त होसी।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

मायड़ भाषा - विराटनगर क भीम डूंगरी पर विराज्या बिणा पूंछ आला वज्रांगदेव हनुमान ! जो या हनुमान चालीसा पढ़ ह, बीण् सिद्धि प्राप्त होया कर अ, ई बात का साक्षी स्वयं भगवान शिव ह अ।
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥४०॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी! गोस्वामी तुलसीदास जी तो भगवान रामजी का भगत ह अ, थांरा सूं प्रार्थना ह कि थे बांका हिवड़ा म सदा निवास करो।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥

मायड़ भाषा - हे पवन कुमार ! हे संकट मोचन !  हे मंगल करण आला ! हे देवों का देव बालाजी ! थे भगवान रामजी, मईया सीता अर लखनलाल क सागअ म्हारा हिवड़ा म सदा निवास करो।

संदीप मुरारका
लेखक
जमशेदपुर
दूरभाष  : 9431117507
ईमेल : keshav831006@gmail.com
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