Thursday, 23 April 2020

फूलो - झानो



जन्म : 1832 के आस पास
जन्म स्थान: संथाल परगना बरहेट प्रखण्ड के भगनाडीह गांव, झारखण्ड
निधन:  1855
मृत्यु स्थल : पाकुड़
पिता : चुन्नी मांझी 

जीवन परिचय - फूलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू सिदो कान्हु की बहने थीं । इनका जन्म भोगनाडीह नामक गाँव में एक ट्राइबल संथाल परिवार में हुआ था। संथाल विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाने वाले ये 6 भाई बहन सिदो मुर्मू, कान्हु मुर्मू ,चाँद मुर्मू ,भैरव मुर्मू , फुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू थे।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान - सिदो-कान्हू ने 1855 मे ब्रिटिश सत्ता, साहुकारो व जमींदारो के खिलाफ जिस विद्रोह की शुरूआत की थी, जिसे 'संथाल विद्रोह या हूल आन्दोलन' के नाम से जाना जाता है। उस लड़ाई में ट्राइबल महिलाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। ट्राइबल्स का इतिहास अखाड़े में महिलाओं की क्रांतिकारी भूमिका के बिना पूरी नहीं हो सकता।

झारखंड के छोटानागपुर की शोधकर्ता वासवी कीरो ने अपनी बुकलेट उलगुलान की ओरथेन (क्रांति की महिला) में उन नायिकाओं का नाम दर्ज किया है, जो स्वतंत्रता आन्दोलन में शहीद हो गई थीं। 1855-56 के संथाल विद्रोह में फूलो और झानो मुर्मू, बिरसा मुंडा उलगुलान 1890-1900 में बंकी मुंडा, मंझिया मुंडा और दुन्दंगा मुंडा की पत्नियां माकी, थीगी, नेगी, लिंबू, साली और चंपी और पत्नियां, ताना आन्दोलन 1914 में देवमणि उर्फ ​​बंदानी और रोहतासगढ़ प्रतिरोध में सिंगी दाई और कैली दाई के नाम चर्चित हैं।

सिदो - कान्हू ने हूल आन्दोलन को सफल बनाने के लिए घर घर में 'सखुआ  डाली' भेज कर ट्राइबल्स का आहवान किया था, घोड़ों पर बैठकर गाँव गाँव ये निमन्त्रण देने उनकी बहनें फूलो- झानो जाया करती थी ।उस दरम्यान यदि कोई अंग्रेज सैनिक या उनका कारिन्दा रास्ते में मिल गया, तो वे बहनें उसको पकड़ लेती और घोड़े से बाँध कर गाँव ले आती । इस जज्बे को देख कर कई ट्राइबल युवतियों को विद्रोह की प्रेरणा मिली ।

1855 में पाकुड़ जिले के संग्रामपुर नामक स्थान पर सिदो कान्हु की ट्राइबल सेना के साथ अंग्रेजों का भीषण युद्ध हुआ । एक ओर ट्राइबल्स के जोश, उत्साह, पारम्परिक हथियार थे तो दूसरी ओर आधुनिक हथियार और तकनीक से लैस कुशल नेतृत्व वाली अंग्रेज़ सेना थी । आखिर ट्राइबल्स कितने दिन टिक पाते, अंततः भारी संख्या में ट्राइबल लड़ाके मारे गए , 9 जुलाई 1855 को सिदो कान्हू के छोटे भाई चाँद और भैरव भी मारे गए । लड़ाई पहाड़ी क्षेत्र में लड़ी जा रही थी, चूँकि ट्राइबल एक तो पहाड़ो और जंगलो से परिचित थे, दूसरी ओर गुरिल्ला युध्द में निपुण । अंग्रेजों ने रणनीति के तहत ट्राइबल्स को नीचे मैदानी इलाके में उतरने पर मजबूर कर दिया । ट्राइबल उनकी रणनीति समझ नहीं पाए, जैसे ही वे लोग नीचे उतरे, अंग्रेजों ने घेराबंदी बनाकर गोलोबारी प्रारम्भ कर दी । युध्द स्थल के पीछे अंग्रेजों के शिविर बने हुए थे,
फूलो - झानो गोलीबारी की परवाह ना कर हाथों में कुल्हाड़ी लिए दौड़ते हुए अंग्रेजों के शिविर में प्रवेश कर गई और अंधेरा होने का इंतजार करने लगी । सूरज ढलने के बाद अंधेरे की आड़ में फूलो- झानो ने कुल्हाड़ी से अंग्रेजों की सेना के 21 जवानों को मौत के घाट उतार दिया।

हूल नायिका फूलो और झानो की वीरता की गाथा आज भी झारखण्ड के जंगलो व गाँवो में गाई जाती है ।
संथाली भाषा में हूल गीत की कुछ पंक्तियाँ -

"फूलो झानो आम दो तीर रे तलरार रेम साअकिदा
आम दो लट्टु बोध्या खोअलहारे बहादुरी उदुकेदा
भोगनाडीह रे आबेन बना होड़ किरियाबेन
आम दो महाजन अत्याचार बाम सहा दाड़ी दा
आम दो बनासी ते तलवार रेम साउकेदा
अंगरेज आर दारोगा परति रे अड़ी अयम्मा रोड़केदा
केनाराम बेचाराम आबेन बड़ा होड़ ते बेन सिखोव केअकोवा
आम दो श अंगरेज सिपाही गोअ केअकोवा
आबेन बना होड़ाअ जुतुम अमर हुई ना ।"

इन पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद-
फूलो झानो तुमने हाथों में तलवार पकड़ी,
तुमने भाईयों से बढ़कर वीरता दिखलाई,
भोगनाडीह में तुम दोनोँ ने शपथ ली,
कि महाजनों सूदखोरों का अत्याचार नहीं सहेंगे ,
तुमने दोनोँ हाथों से तलवारें उठाई,
अंग्रेजों और दरोगा के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई,
तुम दोनोँ ने केनाराम बेचाराम को सबक सिखाया,
इक्कीस अंग्रेज सिपाहियों को मार गिराया,
तुम दोनोँ का नाम सदैव अमर रहेगा ।


सम्मान- बीएयू के तहत हंसडीहा दुमका में फूलो झानो डेयरी टेक्नोलाॅजी काॅलेज की स्थापना 19 अगस्त 2019 को हुई है । दुमका के श्री अमड़ा में फूलो - झानो की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है । वहीँ विशुनपुर के ज्ञान निकेतन परिसर में भी 30 अगस्त 2019 को संथाल वीरांगना फूलो झानो की प्रतिमा का अनावरण किया गया है ।

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