Wednesday, 29 April 2020
पद्मश्री लेडी टार्जन जमुना टुडू
जन्म : 19 दिसम्बर 1980
जन्म स्थान : रांगामटिया, ब्लॉक - जामदा, जिला- मयूरभंज, ओडिशा
वर्तमान निवास : बेड़ाडीह, मुटुरखाम गांव , प्रखण्ड चाकुलिया, जिला पूर्वी सिंहभूम, झारखण्ड
पिता - बाघराय मुर्मू
माता- बबिता मुर्मू
जीवन परिचय - झारखण्ड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड की रहनेवाली 'लेडी टार्जन जमुना टुडू' का जन्म ओडिशा के एक गांव में ट्राइबल परिवार में हुआ, छः बहनों में सबसे छोटी जमुना ने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की । जमुना के पिता के पास सात-आठ बीघा पथरीली जमीन थी , किन्तु उसपर खेती तो हो नहीँ सकती थी, अतएव उनके माता पिता ने स्वयं अपने मेहनत कर उस पथरीली जमीन को समतल करके वहाँ पेड़ लगाना आरम्भ कर दिया, जमुना भी अपनी बहनों के साथ पौधे लगाया करती, धीरे धीरे एक बड़ा जंगल तैयार हो गया । इसप्रकार जमुना को पेड़ लगाने व इनका संरक्षण करने की प्रेरणा बचपन में ही अपने पिता से प्राप्त हो चुकी थी । इनका विवाह 1998 में झारखण्ड के गांव मुटुरखाम, बेडाडीह टोला में मानसिंह टुडू से हुआ, इनके कोई सन्तान नहीँ हुई।
योगदान - विवाह के बाद जमुना टुडू चाकुलिया के गांव मुटुरखाम में रहने लगीं । पेशे से कृषक परिवार की ट्राइबल जमुना प्रतिदिन आसपास के जंगल में फल फूल चुनने व जलावन की लकड़ी लाने चली जाया करती । कई बार वें देखती कि कुछ पेड़ काट कर गायब कर दिए गए हैँ तो कभी कुछ पेड़ काटकर वहीँ गिराए हुए हैँ । उनके विचार में यह आया कि ये पेड़ काटता कौन है ? वे सतर्क होकर इस विषय पर दृष्टि रखने लगी, धीरे धीरे उनको समझ में आ गया कि कुछ लकड़ी माफिया ना केवल पेड़ो को काटकर ले जाते है वरन काफी वन सम्पदा भी चोरी की जा रही है । उन्होने यह बात अपने घर के अन्य सदस्यों से साझा की, किन्तु किसी ने इन बातो को गम्भीरता से नहीँ लिया । जमुना बैचेन रहने लगी, रातो को सोते हुए भी उन्हें कटे हुए पेड़ और पेडों को काटती कुल्हाड़ी व हाथ दिखने लगे । उन्हें ऐसा प्रतीत होता मानो स्वयं वन देवी लहूलुहान होकर पुकार रही है ।
वर्ष 2000 आते आते उनका नित्यकर्म बदलने लगा, वे जल्दी जल्दी अपने घर का काम निपटा कर जंगलो में चली जातीं और जंगलो में घूम घूम कर पेड़ काटने वाले माफियाओं को ढूंढती और उन्हें वन से खदेड़ती । वर्ष 2002 में अन्य 3- 4 महिलाओं ने जंगलों की पेट्रोलिंग में जमुना का साथ दिया, धीरे-धीरे ये संख्या बढ़कर 60 तक जा पहुंची। सभी ने पाया कि पेडों की कटाई कम हो रही है साथ ही फल फूल भी पहले की अपेक्षा सुरक्षित हैँ ।
इसी बीच रक्षा बंधन का त्यौहार आया, उन्होने ग्रामीण महीलाओ से अपील की कि प्रत्येक महिला एक पेड़ को अपना भाई मानकर राखी बांधे, वैसे भी ट्राइबल प्रकृति का प्रेमी होता है और पेड़ पौधों को वो परिवार के सदस्य सा स्नेह देता है । जमुना के गांव में हर रक्षा बंधन पर वनों के संरक्षण के लिए पेडों को राखी बाँधने की परम्परा आज भी जारी है ।
जमुना जंगल माफियाओं से भिड़ जाती थी, उन लोगों ने पहले तो जमुना को रुपयों का लालच दिया, जब वह नहीँ मानी तो धमकाया गया । किन्तु जमुना पर तो पेडों को बचाने का जुनून सवार था, वो भीड़ गई, हाथापाई हुई, जमुना स्वयं भी टांगी रखती थी और निडरता से वन माफिया के गुर्गों से लड़ी और उनलोगों को खाली हाथ लौटने पर मजबूर कर दिया । एक नहीँ कई बार जमुना लहूलुहान होकर घर लौटीं, पर जंगल की बेटी जंगल में जंगल चोरों से जंग जीत कर लौटी । इसीलिए जमुना
लेडी टार्जन के नाम से विख्यात हुई ।
एक बार वर्ष 2007 में सात लोग हथियार लेकर रात डेढ़ बजे जमुना के घर में आ गए और जंगल बचाने की इस मुहीम को बंद करके को कहा, जमुना ने उस वक़्त तो उनकी हाँ में हाँ मिला दी, किन्तु समझदार जमुना ने कानून का सहारा लिया और उन्हें जेल भिजवाने की ठान ली। एक सप्ताह के भीतर ही वो सातों अपराधी ना केवल जेल भेज दिए गए बल्कि उन्हें कारावास की सजा भी हुई। निडर व बहादुर जमुना पर वन माफियाओं की धमकियों और हमलों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा , वरन उनका आत्मविश्वास बढ़ता चला गया ।
गांव में जमुना के घर के बाहर एक ईमली का पेड़ है, वही जमुना का कार्यालय है और वही उनकी सहयोगी महिलाओ के साथ वार्ता करने का मीटिंग प्लेस है। अब जमुना महिलाओं के साथ हर सुबह छह बजे जंगल चली जातीं और दोपहर ग्यारह बजे तक लौट आती, फिर उसी ईमली के पेड़ के नीचे बैठकर बातचीत करती, सबको अगली रणनीति समझाती और अपराह्न दो तीन बजे तक फिर जंगल चली जाया करती थी।
जमुना ने अपनी सहयोगी महिलाओं को लेकर ग्राम वन प्रबन्धन एवं संरक्षण समिति का गठन किया, जिसकी पंजीकरण संख्या 144/2003 है । 15 महिला और 15 पुरुषों से बनी इस पहली समिति का अध्यक्ष जमुना को ही चुना गया। समिति बनने के बाद जमुना अपने गांव से बाहर दूसरे गावों में भी जाने लगी। धीरे-धीरे इन्होने पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखण्ड में 300 से ज्यादा वन सुरक्षा समितियों का गठन किया। आज भी प्रत्येक समिति से हर दिन चार पांच महिलाएं अपने-अपने क्षेत्रों में वनों की रखवाली लाठी-डंडे , टांगी, कुल्हाड़ी और तीर-धनुष के साथ करती हैं ।
एक बार जमुना वन समिति का गठन करने दूसरे गाँव में गई हुई थी, पीछे से वन माफियाओं ने उनके गांव में 70 हरे भरे पेड़ काट लिए। उनकी वन समिति की महिलाओं को जैसे ही खबर लगी वो वहां पहुंच गयी और जंगल से लकड़ी नहीं उठने दी। दूसरे गांव से लौटकर जमुना ने थाना में सनहा दर्ज करवाई और चार लोगों को तीन महीने के लिए जेल भिजवा दिया।
जमुना ने पेड़ के पत्तो से दोने व पत्तल बनाने की आजीविका से अपनी वन समितियों को जोड़ा है । जमुना अधिक से अधिक पौधारोपण को प्रोत्साहित करती हैँ, स्वयं इन्होंने अपनी सहयोगियो के साथ मिलकर तीन लाख से ज्यादा पौधे लगाए हैँ । जमुना के गांव में बेटी पैदा होने पर 18 ‘साल’ वृक्षों का रोपण किया जाता है। बेटी के ब्याह के वक्त 10 'साल' वृक्ष उपहार में दिए जाते हैं। जमुना ने स्कूल व नलकूप के लिए अपनी जमीन भी दान में दे दी। जमुना टुडू पर्यावरणप्रेमी, बहादुर, समाजिक महिला होने के साथ साथ कुशल संगठनकर्ता भी हैँ ।
सम्मान एवं पुरस्कार - लेडी टार्जन 'जमुना टुडू ' को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया । वर्ष 2017 में दिल्ली में नीति आयोग ने वुमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड द्वारा जमुना को सम्मानित किया । उन्हें गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया लिमिटेड द्वारा 2014 में गॉडफ्रे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से पुरस्कृत किया गया । उसी वर्ष उन्हें कलर्स टीवी चैनल द्वारा आयोजित भव्य समारोह में फिल्म निर्देशक सुभाष घई ने स्त्री शक्ति अवार्ड प्रदान किया था । वर्ष 2016 में जमुना को राष्ट्रपति द्वारा भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया और राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया।प्रधानमंत्री ने अपने पहले कार्यकाल के अन्तिम व 53 वें एपिसोड में 24 फरवरी 2019 को 'मन की बात' में जमुना टुडू की कहानी को राष्ट्र के समक्ष रखा ।
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