जन्म: 5 मई 1905
जन्म स्थान: मयूरभंज ज़िले के डांडबूश गाँव, ओड़िशा
निधन: 1 फरवरी 1982
पिता : नंदलाल मुर्मू
जीवन परिचय - पारसी सिञ्ज चांदो (संथाली भाषा के सूरज) ' पंडित रघुनाथ मुर्मू ' संथाली भाषा की लिपि ओल चिकी के जन्मदाता थे । प्रो. मार्टिन उराँव ने अपनी पुस्तक ‘दी संताल - ए ट्राईब इन सर्च ऑफ दी ग्रेट ट्रेडिशन’ में ऑलचिकी की प्रशंसा करते हुए उन्हें संतालियों का महान गुरु कह कर संबोधित किया। गुरु गोमके ने भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक एकता के लिए लिपि के द्वारा जो आंदोलन चलाया वह ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा - "अगर आप अपनी भाषा - संस्कृती , लिपि और धर्म भूल जायेंगे तो आपका अस्तित्व भी ख़त्म हो जाएगा ! " उन्होंने बोडोतोलिया हाई स्कूल में अध्यापन का कार्य किया और 1977 में झाड़ग्राम के बेताकुन्दरीडाही ग्राम में एक संताली विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया था । इनकी धर्मपत्नी का नाम नेहा बास्के था । इन्होने 1964 में ' आदिवासी सोशीयो एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोशिएसन' आस्का की स्थापना की । इनके बचपन का नाम चुन्नू था, इनकी प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित गम्हरिया यू.पी. स्कूल में और मिडिल स्कूल की पढ़ाई गाँव से 12 किलोमीटर दूर स्थित बहड़दा एम्.ई.स्कूल में हुई । इन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई माराज कृष्णा चंद्र हाई स्कूल , बारीपदा से करते हुए 1928 में द्वितीय श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा पास की। उन्होंने 1929-30 के दौरान कुछ समय के लिए अप्रेंटिस किया और फिर बारीपदा के ही कपड़ा बुनाई के कारखाने में भर्ती हो गए। बाद में औद्योगिक प्रशिक्षण प्राप्त किया और पूर्णचंद्र औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र बारीपदा में बतौर प्रशिक्षक सेवाएं भी दी । 1933 में इन्हे बादाम ताड़िया मॉडल स्कूल में औद्योगिक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया, जहाँ अध्यापन कार्य के दौरान स्कूल में ही लकड़ी की छपाई मशीन प्रारम्भ की , जिसे देखकर सभी आश्चर्यचकित हो जाया करते थे , 1939 में बारीपदा की प्रदर्शनी उस लकड़ी की छापा मशीन को प्रदर्शित किया गया तो जितनी प्रशंसा उस मशीन की हुई, उससे ज्यादा प्रशंसा उससे छपे गुरु गोमके के इन शब्दों की हुई -
"जानाम आयोय रेन्गेज रेंहो
ऊनिगेय हाग-राहा
जानाम रोड़ दो निधान रेंहो
ओना तेगे माग-रांग-आ"
हिन्दी में भावार्थ है, “जन्म देने वाली माँ गरीब होने पर भी वही परवरिश करती है। मातृभाषा का निधन होने पर भी उसी से महान बना जा सकता है।"
गुरु गोमके ने रायरंगपुर गवर्नमेंट हाईस्कूल में प्रधान शिक्षक के रूप में भी अपनी सेवाएं दी ।
साहित्यिक परिचय - गुरु गोमके के नाम से प्रसिद्ध पंडित रघुनाथ ने महसूस किया कि उनके समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपरा के साथ ही उनकी भाषा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिए एक अलग लिपि की जरूरत है । इसलिए उन्होंने संथाली लिखने के लिए ओल चिकी लिपि की खोज के काम को प्रारम्भ किया जो 1925 में पूर्ण हुआ। ओलचिकी लिपि गढ़ते समय प. रघुनाथ असमंजस में थे कि वर्णों कोे कैसे और किस आधार पर बनाया जाए। उनसे पहले किसी ने संथाली लिखने के लिए कोई आधार तैयार नहीं किया था। ऐसे में उन्होने सबकुछ प्रकृति का सहारा लिया, ट्राइबल्स सदैव से ही प्रकृति के उपासक रहे हैं , वे पेड़-पौधे, नदी-तालाब, धरती-आसमान, आग-पानी का स्मरण करने लगे। पक्षियों की आवाज समझने लगे। घंटों नदी-आग के पास बैठकर चिंतन करने लगे। फिर पहला अक्षर धरती के स्वरूप जैसा ओत-(0) और दूसरा आग पर बनाया, लिपि में 6 स्वर और 24 व्यंजन हैं । उपरोक्त लिपि का उपयोग करते हुए उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जैसे कि व्याकरण, उपन्यास, नाटक, कविता और सांताली में विषयों की एक विस्तृत श्रेणी को कवर किया, जिसमें सांलक समुदाय को सांस्कृतिक रूप से उन्नयन के लिए अपने व्यापक कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में ओल चिकी का उपयोग किया गया। 22 दिसम्बर 2003 को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूचि में संथाली भाषा को शामिल किए जाने में गुरु गोमके का योगदान अविस्मरणीय रहेगा ।
कृतियाँ - गुरु गोमके की पहली पुस्तक ‘नेल जोंग लागिद ऑल’ का प्रकाशन जमशेदपुर में मुनिराम बास्के की प्रिंटिंग प्रेस में हुआ था ।
उपन्यास - बिदु चंदन
संथाली नाटक - दाड़े गे धोन , खेरवाड़ बीर , सिदो कान्हू संथाल हूल
व्याकरण - रोणोड़
बाल साहित्य - ऑल चेमेद , ऐलखा ,ऑल उपुरुम, पारसी पोहा , पारसी ईतुन, पारसी आपद
धार्मिक पुस्तक - हीताल और बांखेड़
गीत - लाक्चर सेरे्ज और होड़ सेरेंग
अन्य - खरगोश बीर , दरेज धन, सिद्धु-कान्हू
सम्मान एवं पुरस्कार - बिहार , पश्चिम बंगाल और उड़ीसा सरकार के अलावा, उड़ीसा साहित्य अकादमी सहित कई अन्य संगठनों ने उन्हें सम्मानित किया, रांची विश्वविद्यालय द्वारा माननीय डी लिट की उपाधी से उन्हें सम्मानित किया गया। वर्ष 2017 मेँ ओडिशा सरकार ने इनके नाम पर बारीपदा में पंडित रघुनाथ मुर्मू मेडिकल काँलेज एवं हास्पिटल की स्थापना की है । झारखण्ड के चांडिल स्थित एन०एच०-33 स्थित कान्दरबेड़ा दोमुहानी चौक में, ओड़िशा के मयूरभंज जिले के डांडपोस में प्रस्तावित आदिवासी संस्कृति केन्द्र स्थल पर एवं ओडिशा ट्राइबल डेवेलपमेंट सोसाईटी, भुबनेश्वर में गुरु गोमके की प्रतिमा स्थापित की गई है । रायरंगपुर के डांडबुश-डाहारडीह गांव में पंडित रघुनाथ मुर्मू का समाधि स्थल है । पश्चिम बंगाल राज्य में संथाली भाषा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक त्रिभाषी (संथाली-अंग्रेजी-बंगाली) शब्दकोश प्रकाशित किया गया है।
एक रचना-
सिबिलामाँञ्ज गातेञ्ज सिबिलामा
ओत मुचाद गातेञ्ज सेरमा मुचाद
बिन ईल ते गातेञ्ज ओबोर बुरुय उडाग लेका
बिन जाड़ी ते गाते रोहोड़ गाडा लालेग लेका
सिबिलामाँञ्ज गातेञ्ज सिबिलामा
ओत मुचाद गातेञ्ज सेरमा मुचाद
गहरे और पवित्र प्यार को व्यक्त करने वाली पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद-
प्यार करूंगा प्यारी प्यार करूंगा ,
धरती के अंत तक प्यारी आसमान के अंत तक,
बिन पंख के भारी पहाड़ उड़ने के जैसा,
बिन वर्षा के प्यारी सूखी नदी में बाढ़ होने के जैसा।
प्यार करूंगा प्यारी प्यार करूंगा,
धरती के अंत तक प्यारी आसमान के अंत तक।
सिबिलामाँञ्ज गातेञ्ज सिबिलामा
ओत मुचाद गातेञ्ज सेरमा मुचाद
बिन ईल ते गातेञ्ज ओबोर बुरुय उडाग लेका
बिन जाड़ी ते गाते रोहोड़ गाडा लालेग लेका
सिबिलामाँञ्ज गातेञ्ज सिबिलामा
ओत मुचाद गातेञ्ज सेरमा मुचाद
गहरे और पवित्र प्यार को व्यक्त करने वाली पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद-
प्यार करूंगा प्यारी प्यार करूंगा ,
धरती के अंत तक प्यारी आसमान के अंत तक,
बिन पंख के भारी पहाड़ उड़ने के जैसा,
बिन वर्षा के प्यारी सूखी नदी में बाढ़ होने के जैसा।
प्यार करूंगा प्यारी प्यार करूंगा,
धरती के अंत तक प्यारी आसमान के अंत तक।
- संदीप मुरारका
No comments:
Post a Comment