Tuesday, 21 April 2020

ओत् गुरु कोल लाको बोदरा

ओत् गुरु कोल लाको बोदरा 

जन्म : 19 सितम्बर 1919
जन्म स्थान : पासेया गाँव ,खूंटपानी प्रखण्ड, जिला पश्चिमी सिंहभूम, झारखण्ड
निधन:  29 जून 1986
मृत्यु स्थल : जमशेदपुर
पिता : लेबेया बोदरा
माता : जानो कुई


जीवन परिचय - लाको बोदरा हो भाषा के साहित्यकार थे। हो भाषा-साहित्य में ओत् गुरू कोल "लाको बोदरा" का वही स्थान है जो संताली भाषा में रघुनाथ मुर्मू का है। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के खुंटपानी ब्लॉक में स्थित पासेया गाँव में जन्में लाको बोदरा होमियोपैथी चिकित्सक भी थे । उनकी आरम्भिक शिक्षा बड्चोम हातु प्राथमिक विद्यालय एवं पुरुईयां प्राथमिक विद्यालय में हुई। कक्षा 9 की पढ़ाई उन्होने चक्रधरपुर स्थित एंग्लो इंडियन ग्रामर हाई स्कूल में की और चाईबासा के ज़िला उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होने फादर डिजाडिन से अंग्रेजी शिक्षा का ज्ञान प्राप्त किया, इसके बाद उन्होंने जयपाल सिंह मुंडा के सहयोग से पंजाब के जालंधर सिटी कॉलेज से होम्योपैथी की डिग्री प्राप्त की। उन्होने नोवामुंडी के पास डोंगापोसी में रेलवे में लिपिक के रूप में अपना योगदान दिया । लोको बोदरा ने सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र से दो बार चुनाव भी लड़ा । काफी समय तक आकाशवाणी राँची से जुड़े रहे साथ ही राँची विश्वविद्यालय के जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के परामर्शदातृ समिति के सदस्य भी रहे । लाको बोदरा एक मधुर बाँसुरी वादक भी थे ।

साहित्यिक परिचय - ओत् गुरू (विश्व गुरु) कोल "लाको बोदरा" ने 1940 के दशक में हो भाषा के लिए ह्वारङ क्षिति ( वारंगचिति) नामक लिपि की खोज की व उसे प्रचलित किया। उसके प्रचार-प्रसार के लिए ‘आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान’ (एटे:ए तुर्तुङ सुल्ल पीटिका अक्हड़ा) की स्थापना भी की। यह संस्थान आज भी हो भाषा-साहित्य,संस्कृति के विकास में संलग्न है। "ह्वारङ क्षिति" में उन्होंने ‘हो’ भाषा का एक वृहद् शब्दकोश भी तैयार किया जो अप्रकाशित है। वारंगचिति में मूल अक्षर सहित 32 वर्ण हैं। जो छोटे और बड़े अक्षर के रुप में प्रयोग होते हैं। वारगंचिति को बाएं से दाएं, दाएं से बाएं, ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर और सांकेतिक रुप में भी लिखा-पढ़ा जाता है। गैर सरकारी तौर पर हो भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु बढ़ावा देने में टाटा स्टील के कॉरपोरट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी विभाग द्वारा संचालित केन्द्रों में भी पढ़ाया जाता है।

लाको बोदरा विद्यार्थियों को "वारंगचिति" लिपि की शिक्षा देने के साथ-साथ धर्म विज्ञान का उपदेश भी देते थे । जोड़ापोखर, झींकपानी में एक आवासीय सह-शिक्षा विद्यालय की स्थापना की गई , इसके अलावा आदि समाज (दुपुब होदा) द्वारा लोटा खूंटपानी प्रखंड , गुडासाई मनोहरपुर, टुंटाकटा मझगाँव, दाईगोड़ा घाटशिला, बड़ानन्दा एवं डोंगुआपोसी जगन्नाथपुर, जमशेदपुर, क्योंझर, सुकिन्दा ओड़िशा, इत्यादि कई स्थानों पर "वारंगचिति" लिपि प्रशिक्षण का केंद्र खोला गया । इन केन्द्रों में व्यवहारिक शिक्षा यथा जड़ीबूटी, सिलाई कढा़ई, बुनाई, बागवानी, बढ़ई, लोहार इत्यादि ।

नई लिपि में लिखी गई पुस्तकों का मुद्रण झींकपानी की अड़ो: इप्पिल माला मुद्रा प्रेस में हुआ । गुरु लोको बोदरा ने समाज में फैली बुराईयों, कुरीतियों, बलीप्रथा, अंधविश्वास एवं रूढ़िवादीता पर भी कड़ी चोट की । उन्होने आदि समाज मे राजी खुशी (प्रेम विवाह) के स्थान पर आन्दी विवाह (माता पिता की स्वीकृति से विवाह) को प्रोत्साहित किया । उनके देउरी (पुजारी) कर्मकांड तथा हवन हिन्दू विवाह के सदृश्य सम्पन्न कराते हैं। पुरूष जनेऊ तथा विवाहित महिलाऐं हिन्दू महिलाओं जैसा मांग में सिन्दूर लगाती हैं तथा लौह की चूड़ी धारण करती है। लाको बोदरा ने हिन्दू धर्म ग्रन्थ वेद, रामायण तथा महाभारत के साथ साथ कुरान व बाइबल का भी अध्ययन किया । उन्होने ट्राइबल समुदाय के विवाह संस्कार एवं मृत्यु संस्कार में भी संशोधन किए, इसलिए उन्हें 'बोदरा बोरोम' भी कहा जाता है ।


कृतियाँ - सहार होड़ा (स्वर्ग के रास्ते) , बोंगा होड़ा (बोंगा की राह), एला ओल इतू उटा, षड़ा पुड़ा सांगेन, ब्ह बूरू-बोडंगा बूरु, षार होरा, पोम्पो (अक्षर विज्ञान) , रघुवंश, शिशु हलं, होरा बारा, कोल रूल, एनी , हो बाकणा (हो व्याकरण), हसे हयम पहम पुति , बड़ा बुड़ा सगेन, हलं हलपुड, पार होरा, आईदा होडोअ सेबा षड़ा गोवरि,

सम्मान एवं पुरस्कार - गुरु लोको की कई पुस्तकें झारखण्ड के विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रमों में शामिल की गई हैं । टाटा स्टील द्वारा
पश्चिमी सिंहभूम जिला के खूंटपानी प्रखंड में कोल गुरु लाको बोदरा का पैतृक गांव पासेया में स्मारक बनवाया गया है । जमशेदपुर के मानगो शंकोसाई रोड नंबर 5 , सीतारामडेरा, ट्राइबल कल्चरल सेंटर सोनारी , डुमरिया के स्वर्गछिड़ा में ओत् गुरु की प्रतिमाएँ स्थापित हैं । वर्ष 1976 में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया था ।

एक रचना-

नोकोया नपिरयन सिर्फ चाङइते
नोकोया सेनो:यन सिर्फ दिङगते
नोकोया नोयारेमन दोरेया तलाते
नोकोया नोवारेयन द:डनो तलाते
दिषुम रेको ! निमिन जके ते
गिति: कन गे हपह कते
मेडेम मेडेपे में मेटो: पे सनमते
विरिड बेरेड पे बिरइतो आते ॥

इन प्रेरक पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद- आज के युग में कोई सुदूर आकाश में चाँद पर जा रहा है, तो कोई सूरज की ओर गतिमान है । कोई तैरकर विशाल सागर को पार कर रहा है तो कोई समुद्र की अतल गहराई में जाकर अनुसंधान कर रहा है । हे देशवासियों, तुम अभी भी अज्ञानता की चिरनिद्रा में सोये हुए हो और मूकदर्शक बन कर मौन हो । अब जाग जाओ और आँखे खोलकर संसार को, संसार की प्रगति को देखो । तुम खुद जगो और अन्य को भी जगाओ ।

संदीप मुरारका
21 अप्रेल 2020


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