जन्म : 23 अगस्त' 1939
जन्म स्थान : देवड़ी, तमाड़, राँची, झारखण्ड
निधन: 30 सितम्बर' 2011 कैंसर से
मृत्यु स्थल : अपोलो हास्पिटल,राँची, झारखण्ड
पिता : गंधर्व सिंह मुंडा
माता : लोकमा मुंडा
पत्नी : अमिता मुंडा
जीवन परिचय - झारखण्ड के राँची जिले के प्रसिद्ध देवड़ी माता मन्दिर वाले गांव के ट्राइबल परिवार में रामदयाल मुंडा का जन्म हुआ. उनकी प्राथमिक शिक्षा अमलेसा लूथरन मिशन स्कूल तमाड़ में एवं माध्यमिक शिक्षा खूंटी हाई स्कूल में हुई. उन्होने 1963 में रांची विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में स्नातक किया. कुशाग्र बुध्दि मुंडा उच्चतर शिक्षा अध्ययन एवं शोध के लिए शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका चले गए जहां से उन्होंने भाषा विज्ञान में 1968 में पीएचडी की. फिर वहाँ उन्होंने तीन वर्षोँ तक दक्षिण एशियाई भाषा एवं संस्कृति विभाग में शोध और अध्ययन किया. डॉ मुंडा 1972 - 81 से अमेरिका के मिनिसोटा विश्वविद्यालय के साउथ एशियाई अध्ययन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य करने लगे. वहाँ शिक्षण कार्य के अलावा साऊथ एशिया फोक की नृत्य संगीत टीम के सदस्य रहे और सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेते रहे.
मिनिसोटा विश्वविद्यालय में रहते हुए डॉ मुंडा को अमेरिकन युवती हेजेल एन्न लुत्ज से प्रेम हो गया फिर दोनों ने 14 दिसंबर 1972 को विवाह भी किया, किन्तु कुछ वर्षोँ बाद वह संबंध टूट गया. हेजेल से तलाक के बाद 28 जून 1988 को उन्होंने अमिता मुंडा से दूसरा विवाह किया. उनके इकलौते पुत्र हैँ प्रो. गुंजल इकिर मुण्डा.
योगदान - डॉ रामदयाल मुंडा भारत के ट्राइबल समुदायों के परंपरागत और संवैधानिक अधिकारों को लेकर बहुत सजग थे. लेकिन उनका मानना था कि प्रत्येक ट्राइबल का शिक्षित होना अति आवश्यक है, तभी ट्राइबल आन्दोलन सफल होगा, ट्राइबल्स को उनके अधिकार प्राप्त हो सकेंगे और ट्राइबल्स का विकास होगा.
रांची विश्वविद्यालय में तत्कालिन कुलपति डॉ कुमार सुरेश सिंह के आग्रह पर डॉ मुंडा 1982 में भारत लौट आए और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के गठन एवं विकास में अपना योगदान देने लगे. डॉ मुंडा 1983 में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबेरा में विजिटिंग प्रोफेसर रहे. न्यूयॉर्क की साईरॉक्स यूनिवर्सिटी में 1996 में एवं जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में 2011 में भी उन्होंने विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ दी.
डॉ मुंडा 1985 - 86 में रांची विश्वविद्यालय के उप-कुलपति रहे और फिर 1986 - 88 तक कुलपति रहे.
राँची यूनिवर्सिटी में उनकी सादगी के कई किस्से लोकप्रिय हैँ, अपने कक्ष की अपनी टेबल और चेयर वे स्वयं साफ किया करते. राँची यूनिवर्सिटी में सरहुल महोत्सव की परम्परा की शुरुआत उनके द्वारा ही की गई थी. डॉ मुंडा 1990- 95 जेएनयू , नई दिल्ली एवं 1993 - 96 नॉर्थ इस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, मेघालय के कार्यसमिति सदस्य रहे.
डॉ मुंडा ने 1977- 78 में अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ इण्डियन स्टडीज से , 1996 में यूनाइटेड स्टेट्स - इण्डिया एजुकेशन फ़ाऊंडेशन से एवं 2001 में जापान फाऊंडेशन से फेलोशिप प्राप्त की.
उन्होंने झारखंड की आदिवासी लोक कला, विशेषकर ‘पाइका नृत्य’ को वैश्विक पहचान दिलाई. जुलाई 1987 में मास्को, सोवियत संघ में भारत महोत्सव हुआ था, जिसमें डॉ मुंडा ने सांस्कृतिक दल का नेतृत्व किया एवं उनकी टीम ने 'पाइका नृत्य' की अविस्मरणीय प्रस्तुति की.
वर्ष 1988 में बाली, इंडोनेशिया में हुए अंतरराष्ट्रीय संगीत कार्यशाला में भी डॉ मुंडा और उनके दल ने भाग लिया. मनीला, फिलीपींस में आयोजित अन्तराष्ट्रीय नृत्य एलायंस, ताइपे, ताईवान के अन्तराष्ट्रीय लोक नृत्य महोत्सव, यूरोप के ट्राइबल एवं दलित अभियान में डॉ मुंडा ने पाइका नृत्य की प्रस्तुतियाँ दी.
डॉ मुंडा 1988 में संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़ गए. वे जेनेवा में यू एन कार्यसमूह में नीति निर्माता रहे. न्यूयॉर्क के द इण्डियन कॉनफेडेरेशन ऑफ इण्डिजिनियस एण्ड ट्राइबल पीपुल्स आईसीआईटीपी में वरिष्ठ पदाधिकारी रहते हुए डॉ मुंडा ने बेबाक तरीके से ट्राइबल हितों को रखा. उनका मानना था पूरा देश मरुभूमि बनने के कगार पर है. केवल जहाँ जहॉ ट्राइबल्स रहते हैं, वहीं थोड़ा जंगल बचा है. अतः यदि जंगल को बचाना है तो ट्राइबल्स को बचाना होगा.
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अन्तर्गत भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण विभाग में डॉ मुंडा ने वर्ष 1988 से 91 तक अपनी सेवाएँ दी. झारखण्ड आंदोलन के दौरान गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा एक झारखंड विषयक समिति का गठन किया गया था, डॉ मुंडा 1989-1995 तक इसमेँ सदस्य रहे. कमिटी के कार्यकलापों एवं उनके अनुभवों पर आधारित कई आर्टिकल्स इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर के त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित हुए.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति का गठन हुआ था, जिसमें बतौर सदस्य डॉ मुंडा ने झारखण्ड (तत्कालिन बिहार) का प्रतिनिधित्व किया. डॉ मुंडा 1997 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सलाहकार समिति सदस्य तथा 1998 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय की फाइनांस कमेटी के सदस्य रहे. नवम् योजना आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, मानवाधिकार शिक्षा की स्थायी समिति, विश्विद्यालय अनुदान आयोग, सामाजिक और आर्थिक कल्याण के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय समिति , साहित्य अकादमी, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद, वन अधिकार अधिनियम के अंर्तगत गठित अनुसूचित जनजाति एवं वनवासियों के लिए नीति निर्धारण समिति, सामाजिक न्याय और अधिकारिता समिति, जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सलाहकार समिति इत्यादि कई केंद्रीय स्तरीय समितियों में डॉ मुंडा को सदस्य मनोनीत किया गया.
सामाजिक कार्यों व ट्राइबल्स उत्थान में सक्रिय डॉ मुंडा विभिन्न संस्थानों व संगठनो से जुड़े रहे तथा समय समय पर विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया. यथा भारतीय आदिवासी संगम, आदिम जाति सेवा मंडल, राँची यूनिवर्सिटी पीजी टीचर्स एसोसिएशन, बिंदराय इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च स्टडी एण्ड एक्शन चाईबासा, अखिल भारतीय साहित्यिक मंच नई दिल्ली, भारतीय साहित्य विकास न्यास.
देशज पुत्र डॉ मुंडा ने पूरी दुनिया के ट्राइबल समुदायों को संगठित किया. प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को "वर्ल्ड ट्राइबल डे" मनाया जाता है, इस परंपरा को शुरू करवाने में उनका अहम योगदान रहा है. खूँटी जिला में डोमबारी पहाड़ी पर बिरसा मुण्डा की 18 फिट ऊँची प्रतिमा की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका रही.
झारखण्ड आंदोलन के दौरान मोटर साइकिल में घूमने वाले प्रोफेसर मुंडा ने सांस्कृतिक साहित्यिक अलख जगाई -
अखंड झारखंड में
अब भेला बिहान हो
अखंड झारखंड में..
और समय अइसन आवी न कखन,
लक्ष भेदन लगिया,
उठो-उठो वीर,
धरु धनु तीर
उठो निजो माटी लगिया ...
राजनीतिक पारी खेलते हुए डॉ मुंडा 1991 से 1998 तक झारखंड पीपुल्स पार्टी के प्रमुख अध्यक्ष रहे. राज्यसभा में 245 सदस्य होते हैं. जिनमे 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं. इन्हें 'नामित सदस्य' कहा जाता है. डॉ मुंडा की अतुलनीय योग्यता व विद्वता को देखते हुए दिनांक 22 मार्च 2010 को राज्यसभा के लिए नामित किया गया.
डॉ मुंडा ने अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, फिलीपिंस, चीन, जापान, इंडोनेशिया, ताईवान सहित कई देशों का दौरा किया. 1987 में स्विट्जरलैंड के जेनेवा में आयोजित इण्डिजिनियस पापुलेशन, 1997 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में आयोजित इण्डिजिनियस एकॉनामी , 1998 में नागपुर में इंटरनेशल एलायंस फॉर इण्डिजिनियस पीपुल्स ऑफ द ट्रॉपिकल फॉरेस्ट, 1999 में इंदौर में सयुंक्त राष्ट्र संघ के स्थायी फोरम, 2000 में जर्मनी के बर्लिन में खेल एवं शिकार , 2002 में स्वीडेन के उपसाला, न्यूयॉर्क एवं बैंकाक में देशज लोगों के विभिन्न मुद्दों पर आधारित अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में डॉ मुंडा ने भाग लिया.
साहित्यकार डॉ रामदयाल ने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी, अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य साहित्य रचा है. उनकी संगीत रचनाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं. इन्होंने कई महत्वपूर्ण अनुवाद किए.
कृतियाँ -
मुंडारी गीत - हिसिर
कुछ नए नागपुरी गीत
मुंडारी गीतकार श्री बुधु बाबू और उनकी रचनाएँ
मुंडारी व्याकरण
मुंडारी, हिन्दी व नागपुरी कविताएँ - सेलेद
प्रोटो खेरवारियन साउंड सिस्टम - शिकागो यूनिवर्सिटी
एई नवा कानिको - मुंडारी में सात कहानियाँ
नदी और उसके सम्बन्ध तथा अन्य नगीत
वापसी, पुनर्मिलन और अन्य नगीत
कविता की भाषा
देशज व ट्राइबल का परिचय
आदिवासी अस्तित्व और झारखंडी अस्मिता के सवाल
आदि धर्म, भारतीय आदिवसियों की धार्मिक आस्थाएं
अदान्दि बोंगा - वैवाहिक मंत्र
बा (एच) बोंगा - सरहुल मंत्र
गोनोई पारोमेन बोंगा - श्रद्धा मंत्र
सोसो बोंगा - भेलवा पूजन
जी टोनोल - मन बंधन
जी रानारा - मन बिछुड़न
एनीयोन - जागरण
महाश्वेता देवी की ' बिरसा ' का बंग्ला से हिन्दी अनुवाद
अंग्रेजी में अनुवाद -
जगदीश्वर भट्टाचार्य का संस्कृत नाटक हास्यार्णव प्रहसनम्
जितेंद्र कुमार का हिन्दी उपन्यास 'कल्याणी'
नागार्जुन का आंचलिक उपन्यास 'जमनिया का बाबा'
जयशंकर प्रसाद का प्रसिद्ध हिन्दी नाटक 'ध्रुवस्वामिनी'
जयशंकर प्रसाद का हिन्दी उपन्यास 'तितली'
रामधारी सिंह दिनकर का काव्य 'रश्मिरथी'
वर्ष 2010 में अखरा द्वारा निर्मित फिल्म गाड़ी लोहरदगा मेल में प्रेरणास्त्रोत डॉ मुंडा कहते हैँ नाच गाना ट्राइबल का कल्चर है, जब काम पर जाओ तो नगाड़ा लेकर जाओ और जब थकान हो जाए, काम से जी ऊबने लगे तो थोड़ी देर नगाड़ा बजाओ.
डॉ मुंडा कहते थे 'नाची से बांची' - इसी को शीर्षक बनाकर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता एवं पहले ट्राइबल फिल्म निर्माता बीजू टोप्पो ने 2017 में डॉ रामदयाल के जीवनचरित पर आधारित 70 मिनट की फिल्म का निर्माण किया है. फिल्म में जनजातीय जीवन को काफी जीवंत तरीके से सामने रखा गया . इस फिल्म ने कई राष्ट्रीय पुरस्कार बटोरे हैँ.
शोधार्थी, शिक्षक, अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री, साहित्यकार, अप्रतिम ट्राइबल कलाकार , बाँसुरी वादक, संगीतज्ञ, राज्यसभा सांसद डॉ रामदयाल मुंडा के बहुमुखी व्यक्तित्व की गाथा को शब्दों में समेटना असम्भव है.
सम्मान एवं पुरस्कार - झारखण्ड की प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत रामदयाल मुंडा को 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का सम्मान प्रदान किया गया. झारखण्ड सरकार द्वारा मोहराबादी, राँची में डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान एवं संग्रहालय का संचालन हो रहा है. वर्ष 2013 में राँची होटवार स्थित कला भवन में डॉ मुंडा की प्रतिमा की स्थापना की गई.
23 अगस्त 2018 को शोध संस्थान में उनकी मूर्ति का अनावरण किया गया. राँची राजकीय अतिथशिाला के सामने रामदयाल मुंडा पार्क बना हुआ है.
उनकी रचना सरहुल मंत्र की दो पंक्तियाँ -
हे स्वर्ग के परमेश्वर, पृथ्वी के धरती माय... जोहार !
हम तोहरे के बुलात ही, हम तोहरे से बिनती करत ही, हामरे संग तनी बैठ लेवा, हामरे संग तनी बतियाय लेवा, एक दोना हड़िया के रस, एक पतरी लेटवा भात, हामर संग पी लेवा, हामर साथे खाय लेवा..
इन पंक्तियों में डॉ मुंडा स्वर्ग के परमेश्वर को, पृथ्वी की धरती माता को, शेक्सपीयर, रवींद्रनाथ टैगोर, मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, सिदो-कान्हु, चांद-भैरव, बिरसा मुंडा, गांधी, नेहरू, जयपाल सिंह मुंडा जैसे धरती पुत्रों को, जो ईश्वर के पास चले गए हैँ, उनको आमंत्रण भेजते हैँ
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