Wednesday, 6 May 2020
पद्मश्री भज्जू श्याम
जन्म : 1971
जन्म स्थान : गांव पाटनगढ़, जिला डिंडौरी, मध्यप्रदेश
वर्तमान निवास : भोपाल, मध्यप्रदेश
माता : मात्रे सिंह
पत्नी : दीपा श्याम
जीवन परिचय - ट्राइबल जाति गोंड की एक शाखा है 'प्रधान' । जब ग्रामीण कृषकों की फसल तैयार हो जाती थी, तो प्रधान लोग घर घर जाकर पुराने किस्से कहानी सुनाया करते, देवी देवताओं की कथा सुनाते, उनकी वंशावली बताते - इसी परम्परागत ट्राइबल परिवार में जन्मे भज्जू सिंह श्याम । अपने गांव की स्कूल से10वीं कक्षा तक की पढ़ाई करने के बाद भज्जू के पास गांव में कोई जीविका का साधन नहीँ था, सो सोलह वर्ष की आयु में अमरकंटक चले गए, वहाँ पौधे लगाने का काम मिला पर भज्जू वहाँ टिक नहीँ पाए । वहाँ से भज्जू भोपाल चले गए और चौकीदार की नौकरी ज्वाइन कर ली, किन्तु एक दिन भोर में सोते हुए पकड़ लिए गए, उनकी तनख्वाह काट ली गई, उन्होने उस नौकरी को छोड़ दिया और इलेक्ट्रिशियन का कार्य करने लगे, पर मन उसमें भी नहीँ रमा । क्योंकि भज्जू के अंदर का कलाकार हिलौरे भर रहा था ।
भज्जू के दो भाई और एक बहन हैँ, इनकी माँ अपनी परम्परा के अनुसार गोंड त्यौहारों में दीवार, आंगन और लकड़ी के दरवाजों में लिपाई पुताई किया करती थीं, सफेद, पीली, गेरु मिट्टी से की जाने वाली इस कलाकारी को ढींगना कहते हैँ , इस कार्य में भज्जू अपनी माँ का सहयोग करते थे, कहा जा सकता है कि उनके भीतर के कलाकार को उनकी माँ ने ही पहला अवसर प्रदान किया था । भज्जू की पत्नी दीपा भी कलाकार हैँ, इनके एक पुत्र नीरज और एक पुत्री अंकिता हैँ ।
भज्जू के चाचाजी जनगढ़ सिंह श्याम ने कम उम्र में ही गोंड कलाकृति में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था, उनकी पेंटिंग्स की एक्जीबिशन लगने लगी थी, वे मात्र 22 वर्ष की उम्र में 1980 में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध कला व सांस्कृतिक केंद्र एवं संग्रहालय 'भारत भवन' से जुड़ चुके थे, उनके पास गोंड आर्ट के आर्डर आने लगे थे, उन्होने गांव से कुछ लोगों को अपने सहायक के रूप में जोड़ लिया था, उन्होने भज्जू को भी 1993 में अपने पास बुला लिया । जनगढ़ सिंह श्याम स्केच बनाया करते और भज्जू उनमें रंग भरा करते, धीरे धीरे भज्जू पॉइंट भी करने लगे । लगभग तीन वर्ष तक भज्जू यही करते रहे और जनगढ़ श्याम के साथ ही रहा करते ।
बाघ, हिरण, कछुए, मगरमच्छ जैसे पशु , पेड़ पौधे, पत्तियाँ, ठाकुर देव, बाड़ा देव, कलसिन देवी आदि अन्य गोंड देवी देवताओं को अपने कैनवास पर उकेरने वाले जनगढ़ की गोंड कलाकृति 'जनगढ़ कलम' की लोकप्रियता और माँग देश विदेश में बढ़ रही थी, भज्जू श्याम की भी कुछ पेंटिंग्स तैयार हो चुकी थी, उनके चाचा और उनके सहयोगियों की गोंड पेटिंग्स की एक प्रदर्शनी दिल्ली में आयोजित हुई, जिसमें भज्जू की पाँच पेंटिंग्स रुपए 1200/- में बिक गई ।
उपलब्धियाँ - और फिर सफर प्रारम्भ हुआ भज्जू की लोकप्रियता का, वर्ष 1998 में पेरिस में आयोजित ट्राइबल आर्ट प्रदर्शनी 'मूसी डेस आर्ट्स डेकोरेटिफ्स' में उनको आमंत्रण मिला । वर्ष 2001 में विख्यात क्यूरेटर पद्म भूषण राजीव सेठी उन्हें लंदन के एक रेस्तरां की दीवारों पर एक म्यूरल्स (भित्ति चित्र) बनाने के लिए ले गए । भज्जू और राम सिंह इन दो कलाकारों ने 'मसाला जोन' रेस्टूरेंट में दो महीनों तक अद्भभुत काम किया, यह काम उनके लिए एक वर्कशॉप (कार्यशाला) की तरह था, उन्होने ऐक्क्रेलिक कलर से दीवारों पर पेड़ पौधे पत्तियों को बिल्कुल अलग तरह से उकेरा, जिसकी भरपूर सराहना हुई ।
जब वो भारत लौटे, तो लोगों से अपने लंदन भ्रमण का अनुभव साझा किया और अपने लंदन प्रवास के दौरान हुए अनुभवों व यादों को गोंड शैली में कैनवास पर उकेरा । इसी बीच किसी कार्यशाला के दौरान उनकी मुलाकात चेन्नई के पब्लिकेशन हाउस तारा बुक्स की संस्थापक गीता वोल्फ से हुई, उन्होने भज्जू की लंदन प्रवास यादो पर आधारित पेंटिंग्स देखी और देखती रह गईं, उन पेंटिंग्स में छिपी कामर्शियल संभावनाओं को गीता वोल्फ ने पहचाना और उनको एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया । नवम्बर 2004 में तारा बुक्स ने 48 पृष्ठ की 'द लंदन जंगल बुक' नाम से पेंटिंग्स का संकलन प्रकाशित किया, जो अत्यधिक सराहा गया, ना केवल भारत में इसका दूसरा एडिशन प्रकाशित हुआ बल्कि यूरोप , फ्रांस, नीदरलैंड, इटली, कोरिया, ब्राजील, मेक्सिको, स्पेन में विभिन्न भाषाओं में यह पुस्तक छपी और खूब बिकी, अनुमानतः इसकी 35000 प्रतियां बिक चुकी हैँ । अब तक भिन्न भिन्न देशों और भाषाओं में उनकी 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैँ । इनकी पुस्तक द नाइट लाइफ ऑफ ट्रीज को बोलोग्ना रागज्जी पुरस्कार प्राप्त हुआ है , इस पुस्तक में दुर्गाबाई और राम सिंह उरवेली के साथ मिलकर भज्जू ने कार्य किया । भज्जू की अन्य पुस्तकें हैँ - ऑरिजिन्स ऑफ आर्ट : द गोंड विलेज ऑफ पाटनगढ़, अलोन इन द फॉरेस्ट, दैट्स हाऊ आई सी थिंग्स, द फ्लाइट ऑफ मेरमेड । भज्जू ने गोंड समुदाय की कहानियों को समेटते हुए एक पुस्तक भी लिखी है 'क्रिएशन', जिसका प्रकाशन मार्च 2015 में हुआ ।
उनकी हर पेंटिंग के पीछे एक कहानी या संस्मरण छिपा है । द लंदन जंगल बुक के कवर पर छपी तस्वीर में एक मुर्गा और लंदन के एलिजाबेथ टॉवर को दर्शाया गया है । गांव में लोगों को समय का आभास मुर्गे की बांग से होता है तो लंदन में समय बताने के लिए एलिजाबेथ टॉवर पर बिग बेन घड़ी लगी है , दोनोँ का एक ही काम है, इन दोनोँ कल्पनाओं को मिश्रित कर भज्जू ने कैनवास पर उतार दिया, जिसकी सराहना पूरे यूरोप में हुई ।
भज्जू लंदन की जिस होटल में ठहरे हुए थे और जिस किंग क्रॉस में अवस्थित मसाला जोन रेस्टूरेंट में कार्य कर रहे थे, वहाँ आना जाना एक लाल रंग की 30 नम्बर की बस से किया करते थे, उनकी कल्पना की दौड़ान ने माना कि यह बस एक वफादार साथी की तरह है, जो रास्ता नहीँ भटकती, उन्होने गोंड शैली में उस बस का चित्रण एक कुत्ते के रूप में किया, जो कलाप्रेमियों को बहुत भाया ।
भज्जू ने देखा कि लंदन में धरती के ऊपर जितने लोग नहीँ दिखते, उससे ज्यादा लोग अण्डरग्राउण्ड मेट्रो रेल में दौड़ रहे हैँ, ट्राइबल्स केंचुआ को पाताल का देवता मानते है, भज्जू ने अपनी कल्पनाशक्ति से मेट्रो रेल और केंचुआ का सम्मिश्रण उकेर दिया, कलाप्रेमियों को इस पेंटिंग ने काफी आकर्षित किया।
बादलों के ऊपर उड़ता हुआ हाथी, जिसके पंख लगे हों, इस कल्पना को पहली बार भज्जू ने ही कैनवास पर उतारा । भज्जू की विख्यात पेंटिंग्स हैँ - सेड कैट, द मून एट नाइट, लिव्स, व्हेन टू टाइम्स मीट, द किंग ऑफ द अंडरवर्ल्ड, द मिरक्ल ऑफ फ्लाइट, बीकमिंग ए फॉरनर, द एग ऑफ ओरिजिन्स, द अनबॉर्न फिश, एयर, द बर्थ ऑफ आर्ट, द सैक्रेड सीड्, द होम ऑफ द क्रिएटर, स्नेक्स एण्ड अर्थ, फैट कैट, जर्नी ऑफ द माइंड । ये पेंटिंग्स इतनी पसंद की गई कि इनकी हजारॉ प्रतियाँ प्रकाशित हुईं ।
नवम्बर 2004 में ही भज्जू की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी म्यूजियम ऑफ लंदन में लगाई गई, जो तीन माह तक चली, वहाँ इनकी पुस्तक ने इनको विश्वव्यापी ख्याति दिलवाई और फिर तो प्रारम्भ हो गया भज्जू की कलाकृतियों के विश्वभर में प्रदर्शनियों का दौर । यूके, जर्मनी, हालैंड, रूस इत्यादि कई देशों की आर्ट गैलरी में भज्जू की कला की धूम मच गई । वर्ष 2005 में इटली के विख्यात शहर मिलान की अर्टेयुटोपिया गैलरी 'प्रोविंसिया डि मिलानो' में , नीदरलैंड के शहर हेग में सालाना आयोजित होने वाले लोकप्रिय 'क्रॉसिंग बॉर्डर फेस्टिवल' में, लंदन के द म्यूजियम ऑफ डॉकलैंड्स एवं नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में आयोजित उनकी प्रदर्शनियाँ चर्चित रहीं ।
भज्जू श्याम की एकल प्रदर्शनी 'माँ मात्रे' की लोकप्रियता बढ़ते जा रही है, वर्ष 2016 में ओजस आर्ट्स नई दिल्ली में, 2017 कनाड़ा में, 2018 हॉन्गकॉन्ग, 2019 भारत भवन भोपाल में गोंड आर्ट छाया रहा । देश विदेश के कई निजी एवं संस्थागत संग्रहालयों में भज्जू की पेंटिंग्स ने अपना विशिष्ट स्थान बनाया है । भज्जू पहले ट्राइबल कलाकार हैँ जिन्होंने सेंट आर्ट इण्डिया फ़ाऊंडेशन के साथ लोदी डिस्ट्रिक्ट दिल्ली में अपनी कला प्रदर्शित की ।
एक ओर भज्जू श्याम की कला शैली में निखार आता चला गया, उनकी व गोंड पेंटिंग्स की लोकप्रियता व माँग विदेशो में बढ़ती गई, दूसरी ओर उनके गांव पाटनगढ़ के लोगों में गोंड पेटिंग के प्रति जुड़ाव बढता गया, आज पाटनगढ़ समृद्ध हो रहा है, वहाँ के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन गोंड पेटिंग है, इस कला व व्यवसाय से गांव में तकरीबन 100 परिवार और भोपाल में 40 कलाकार जुड़े हैँ ।
सम्मान - ब्रिटिश संस्कृति का प्रतिबिंब अपने कैनवास पर उकेरने वाले दुनिया भर में प्रसिद्ध गोंड कलाकार भज्जू श्याम को 2018 में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया । वर्ष 2001 में इन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने 'बेस्ट इंडिजिनस आर्टिस्ट' का अवार्ड दिया था, 2008 में इटली के बोलोग्ना चिल्ड्रेन बुक फेयर में द नाइट लाइफ ऑफ ट्रीज के लिए, वर्ष 2011 में इन्हें ब्राजील में क्रेसकर मैगजीन द्वारा बेस्ट चिल्ड्रेन बुक अवार्ड एवं वर्ष 2015 में विख्यात जयपुर साहित्य महोत्सव में ओजस आर्ट सम्मान से सम्मानित किया गया । रविवार, 28 जनवरी 2018 को प्रधानमंत्री ने मन की बात में खुले दिल से भज्जू श्याम की तारीफ की ।
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