Sunday, 31 May 2020

अंतिम सांस तक संघर्ष हेतु संकल्पित - शिबू सोरेन

नाम : श्री शिबू सोरेन
जन्म : 11 जनवरी,1944
जन्म स्थान : टोला नामरा, गांव बरलंगा, प्रखंड गोला, जिला रामगढ़, झारखंड
वर्तमान निवास : मोराबादी, राँची, झारखंड - 834008
स्थायी पता : 14, सेक्टर 1C , पोस्ट राम मन्दिर , बोकारो स्टील सिटी, झारखंड - 827001
पिता : स्व. सोबरन मांझी
माता : स्व. सोना मनी
पत्नी : श्रीमती रूपी सोरेन

जीवन परिचय - वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य की 32 जनजातियों की कुल जनसंख्या है़ 86,45,042, जो राज्य की कुल जनसंख्या 3,29,88,134 का 26.2 प्रतिशत है़। उसमें भी संताल जनजाति की आबादी है़ 27,52,727 यानी कुल जनसंख्या का 8.34 प्रतिशत एवं आदिवासी जनसंख्या का 31.84 प्रतिशत। संताल जनजाति की आबादी झारखंड में ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल में 25,12,331, ओड़िशा में 8,94,764, बिहार में 4,06,076, असम में 2,13,139, बांग्लादेश में 3,00,061, नेपाल में 51,735 एवं देश के विभिन्न हिस्सों में फैली हुई है़। देश की सबसे बड़ी जनजाति संताल में जन्में दिशोम गुरु के नाम से विख्यात शिबू सोरेन उर्फ शिवचरण लाल मांझी।

उनदिनों शिबू सोरेन के गांव में महाजनी सूद प्रथा जोरों पर थी। गरीब किसानों को ऊँची ब्याज दर पर कर्ज देकर उनकी भूमि के कागजातों पर अँगूठा लगवा लिया जाता था, फिर ब्याज ना चुका पाने की स्थिति में महाजनों के गुर्गे गरीब किसानों के खेत हड़प लिया करते और उनपर जुल्म भी किया करते। बालक शिबू के पिता गांव में शिक्षा के प्रचार प्रसार में सक्रिय थे। दूरदर्शी विचारधारा के सोबरन मांझी की सोच थी कि आदिवासियों में इतना अक्षर ज्ञान तो अवश्य होना चाहिए कि कितनी राशि पर अँगूठा लगवाया जा रहा है, वह तो किसान स्वयं पढ़ सके। किंतु सामंती ताकतों ने अंधेरे में जल रहे उस दीपक को बुझा दिया, दिनांक 27 नवंबर,1957 को शिबू सोरेन के पिता की हत्या कर दी गई।

जब उनके पिता की निर्मम हत्या हुईं, तब बालक शिबू मात्र 13 वर्ष के थे। उनका मन उद्वेलित रहने लगा, उनकी शिक्षा जारी थी। वे बचपन से ही अपने पिता की दिखाई राह पर चल पड़े। महाजनों, सूदखोरों, सामंतवादी व्यवस्था के विरुद्ध उनका आक्रोश बढ़ता चला गया। उन्होनें सामंतवाद के खिलाफ शंख फूँक दिया, धीरे धीरे उनकी यह लड़ाई हर शोषित, पीड़ित व वंचितों की लड़ाई बन गई।

शिबू सोरेन कहते थे कि 'जमीन आदिवासियों की और कब्जा महाजनो का' - यह नहीं चलेगा। ट्राइबल्स के खेतों को ट्राइबल्स जोतते, जब फसल तैयार हो जाती, तो उसे काटने महाजनों के लोग पहुँच जाया करते। गुरुजी ने नारा दिया - 'धान काटो बाल काटो'। जब फसल तैयार हो जाती तो गुरुजी अपने साथियों के साथ पारंपरिक हथियार (तीर धनुष) लेकर पहुंच जाते और अपनी निगरानी में धान कटवाया करते। उनके सरंक्षण में किसान अपनी फसल अपने घर ले जाने लगे, इसप्रकार ग्रामीणों को उनका हक मिलने लगा।

समाज सुधारक - ट्राइबल्स में व्याप्त सामाजिक कुरुतियों से शिबू सोरेन भली भांति अवगत थे। विशेषकर देशी शराब (हड़िया, महुआ, ताड़ी) के विरुद्ध शिबू प्रतिदिन ग्रमीणों को समझाया करते। उनकी बातों से प्रभावित होकर ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता आने लगी, उन्होनें गांवो में शराब की कई अवैध भट्टियों को ध्वस्त कर दिया।

नशाखोरी एवं अशिक्षा के विरुद्ध धरती पुत्र शिबू सोरेन ने वर्ष 1962 में मारफारी, बोकारो में 'संताल नवोदय संघ' का गठन किया। मजदूरी करने वाली आदिवासी महिलाओं का शारीरिक व आर्थिक शोषण किया जाता था, गुरुजी ने उनके हित में 'आदिवासी सुधार समिति' का गठन किया। वर्ष 1968 में समिति का पहला सम्मेलन रामगढ़ के औरंडीह गोला में संपन्न हुआ। धनबाद के टुंडी प्रखंड के पोखरिय़ा गांव में गुरुजी ने संतालों के लिए आश्रम की स्थापना की।

शिक्षा का प्रसार - वर्ष 1970 में जनजाति बाहुल्य गांवो में गुरुजी ने कई प्राथमिक विद्यालय खुलवाए। मजदूरों के लिए रात्रि विद्यालयों की शुरुआत की। उनदिनों गांवो में बिजली की व्यवस्था नहीं थी, गुरुजी ने रात्रि विद्यालयों में रोशनी के लिए हजारों लालटेन का वितरण किया।

महाजनी सूद प्रथा, अशिक्षा, शराब व आदिवासी शोषण के विरुद्ध इनके प्रयासों को कभी भुलाया ना जा सकेगा। वर्ष 1957 से लगातार 6 दशकों तक शिबू सोरेन सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे हैं। झारखंड राज्य के गठन से लेकर विकास की गाथा कहती हर पुस्तक का एक महत्वपूर्ण व स्वर्णिम अध्याय है़ - "दिशोम गुरु शिबू सोरेन"।

झारखंड आंदोलनकारी - आजादी के पूर्व से ही ट्राइबल्स हितों की अनदेखी होती रही। दिनांक 25 अप्रैल, 1939 को झारखंड के ओड़िशा बार्डर पर सिमको नामक स्थान पर अंग्रेजों ने सैकड़ों आदिवासियों को मार गिराया, जिसका पुरजोर विरोध प्रदर्शन आदिवासी महासभा ने किया। दिनांक 1 जनवरी,1948 को सरायकेला खरसावां जिले में नरसंहार हुआ। उसके बाद ही दिनांक 1 जनवरी 1950 को आदिवासी महासभा के राजनीतिक विंग के रूप में झारखंड पार्टी का गठन हुआ और तभी से अलग झारखंड राज्य के गठन की माँग उठने लगी थी।

किंतु झारखंड गठन की माँग के आंदोलन को परवान चढ़ाया दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने। दिनांक 4 फरवरी 1973 को धनबाद गोल्फ ग्राउंड में आयोजित विशाल सम्मेलन में गुरुजी ने अलग राज्य के आंदोलन को नई दिशा एवं गति प्रदान की। वे अपने साथियों के साथ सेम के पत्ते का रस निचोड़कर खजूर के डंठल से टॉर्च की रोशनी में दीवारों पर नारे लिख कर चेतना जगाने का कार्य किया करते थे। एक समय ऐसा आया जब आदिवासियों के परंपरागत हथियार तीर-धनुष पर बैन लगा दिया गया। इसका व्यापक विरोध होने लगा। गुरुजी दिल्ली जाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिले और तीर-धनुष पर लगा प्रतिबंध तत्काल हटाने का आदेश जारी करवाया। यह उनके करिश्माई नेतृत्व एवं चरणबद्ध आंदोलन का ही फल था कि केंद्रीय सरकार को झारखंड के गठन की स्वीकृति प्रदान करनी पड़ी और 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य अस्तित्व में आया।

राजनीतिक जीवन - दिनांक 9 अगस्त 1995 में केंद्रीय सरकार ने झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद् (जैक) का गठन किया, जिसके प्रथम अध्यक्ष बने आंदोलनकारी शिबू सोरेन।

मात्र 36 वर्ष की उम्र में शिबू सोरेन शोषितों की आवाज बनकर संसद पहुंचे। दिशोम गुरु की लोकप्रियता का आलम यह है कि दुमका लोकसभा क्षेत्र की जनता ने इनको 8 बार अपना सांसद चुना। निर्दलीय शिबू सोरेन पहली बार 112,160 वोट लाकर सातवीं लोकसभा में संसद पहुंचे। दूसरी बार नौवीं लोकसभा में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से चुनाव लड़ा और 247,502 वोट लाकर विजयी हुए। धीरे धीरे जनप्रिय शिबू सोरेन के वोट बढ़ते चले गए, चौदहवीं लोकसभा में उन्हें 339,516 वोट प्राप्त हुए।

संसदीय सफर -
सातवीं लोकसभा - 18.1.1980 से 31.12.1984
नौवीं लोकसभा - 2.12.1989 से 13.3.1991
दसवीं लोकसभा - 20.6.1991 से 10.5.1996
ग्यारहवीं लोकसभा - 16.5.1996 से 19.3.1998
तेरहवीं लोकसभा उपचुनाव - 3.6.2002 से 6.2.2004
चौदहवीं लोकसभा - 17.5.2004 से 18.5.2005
पंद्रहवी लोकसभा- 22.5.2009 से 18.5.2014
सोलहवीं लोकसभा - 16.5.2014 से 11.4.2019

राज्यसभा - गुरुजी के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन 10 अप्रैल 2002 से 2 जून 2002 तक राज्यसभा सांसद रहे। वर्ष 2004 में सोरेन ने कोयला मंत्री दायित्व का भी निर्वहन किया।

मुख्यमंत्री - आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में आदिवासियों के सर्वमान्य नेता शिबू सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री बने. -
2.3.2005 से 12.3.2005
27.8.2008 से 19.1.2009
30.12.2009 से 1.6.2010

सर्वमान्य ट्राइबल नेता - झारखंड में 26.2 प्रतिशत ट्राइबल जनसंख्या है और इस सत्य को कोई नहीं झुठला सकता कि शिबू सोरेन ट्राइबल समुदायों के सर्वमान्य नेता हैं. आदिवासियों, वंचितों के साथ ही सभी जातियों और समुदायों के लोग शिबू सोरेन का सम्मान करते हैं। ईव्हीएम (EVM) की दलगत राजनीति अपनी जगह है, किंतु किसी भी पार्टी के वरिष्ठ नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन से मिलने जाते हैं तो पूरे सम्मान व आदर के साथ उनके पांव छूते हैं। झारखंड में गुरुजी शिबू सोरेन का स्थान सर्वोच्च है। जनजातीय समुदाय के नेताओं के मध्य नेतृत्व क्षमता के विकास का श्रेय दिशोम गुरु शिबू सोरेन को जाता है़।

सर्वसुलभ शिबू सोरेन सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। वे ट्राइबल्स के शोषण के विरुद्ध कार्य करते रहे। गुरुजी ट्राइबल्स में व्याप्त सामाजिक बुराइयों पर दुःखी रहा करते। वे सदैव ट्राइबल्स युवाओं के मध्य शिक्षा, लोक गीत और नृत्य के प्रसार में सक्रिय रहे। गुरुजी जब अपने लोकसभा क्षेत्र दुमका में रहते, तो उनसे मिलना बहुत आसान होता था। वैसे गुरुजी को केवल दुमका तक सीमित करना गलत होगा, झारखंड ही नहीं असम, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के हर उस गांव में गुरुजी की लोकप्रियता है, जहाँ एक आदिवासी भी निवास करता है़। समाज में इनके अविस्मरणीय योगदान को शब्दों में समेटना असंभव है। झारखंड की माटी का कण कण गुरुजी का आभारी है।

संतान - तीन पुत्र
स्व. दुर्गा सोरेन, पूर्व विधायक, जामा विधानसभा क्षेत्र
श्री हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री, झारखंड सरकार
श्री बसंत सोरेन, विधायक, दुमका विधानसभा क्षेत्र

पुत्रवधू -
श्रीमती सीता सोरेन, विधायक, जामा विधानसभा क्षेत्र

पुत्री -
श्रीमती अंजली सोरेन

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