Monday, 12 December 2022

आज भी विद्यमान हैं महाराजा अग्रसेन

आज भी विद्यमान हैं महाराजा अग्रसेन

1. महाराजा अग्रसेन पर जारी डाक टिकट
24 सितंबर, 1976
मूल्य 25 पैसे

2. महाराजा अग्रसेन तेल वाहक पोत
आई एम ओ संख्या : 9070149
निर्माता  : हुंडई हैवी इंडस्ट्रीज, दक्षिण कोरिया
निर्माण वर्ष : 1995
नीलामी वर्ष : 2000
लागत : लगभग 350 करोड़ रुपए
वर्तमान नाम : सावी, पनामा


3. महाराजा अग्रसेन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
हिसार एयरपोर्ट , हरियाणा

हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान दिसंबर 2021 में यह प्रस्ताव पारित हुआ है कि हिसार एयरपोर्ट का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन के नाम पर किया जाए। यह प्रस्ताव भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय को भेजा गया है।

4. अग्रसेन की बावली
नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल है अग्रसेन की बावली, जिसके सीढ़ीनुमा कुएं में करीब 105 सीढ़ीयां हैं। लगभग 14वीं शताब्दी में महाराजा अग्रसेन द्वारा निर्मित यह बावड़ी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं। इस बावड़ी पर वर्ष 2017 में रु 15/- की ड़ाक टिकट भी जारी की जा चुकी है।

5. विश्वविद्यालय
हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के बद्दी शहर में डॉ. नंद किशोर गर्ग द्वारा महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। देश के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी के कर कमलों से दिनांक 25 मई, 2013 को इस विश्वविद्यालय का उदघाटन हुआ। वहीं उत्तराखंड सरकार द्वारा वर्ष 2016 में 'महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल यूनिवर्सिटी' की स्थापना की गई है।

6. विद्यालय
दूरदर्शी समाजसेवी एवं शिक्षाविद स्व. चंदूलाल अग्रवाल द्वारा वर्ष 1993 में मेमनगर, अहमदाबाद में महाराजा अग्रसेन विद्यालय की स्थापना की गई है। इसके अलावा गोमती नगर, लखनऊ का महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल, हावड़ा का अग्रसेन बॉयज स्कूल, सूरत का महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल स्कूल भी उल्लेखनीय है।

7. कॉलेज
उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले में वर्ष 1902 से महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज संचालित है। वहीं वर्ष 1971 में हरियाणा के जगधारी में 10.5 एकड़ भूमि पर महाराजा अग्रसेन महाविद्यालय एवं वर्ष 1994 में दिल्ली के वसुंधरा इंक्लेव में 10 एकड़ भूमि पर महाराजा अग्रसेन कॉलेज की स्थापना की गई है। मथुरा का महाराजा अग्रसेन गर्ल्स इंटर कॉलेज एवं परमानंदपुर का श्री अग्रसेन कन्या पी. जी. स्कूल भी उल्लेखनीय है।

8. इंजीनियरिंग कॉलेज
वर्ष 1999 में रोहिणी, दिल्ली में स्थापित महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी आज अग्रवाल समाज का मान बढ़ा रहा है। वहीं अमरोहा, उत्तरप्रदेश में स्थापित महाराजा अग्रसेन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी एवं मंडी गोबिंदगढ़ के महाराजा अग्रसेन इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम भी उल्लेखनीय है।

9. मेडिकल कॉलेज
अग्रवाल समुदाय के दूरदर्शी समाजसेवी घनश्याम दास गोयल, ओपी जिंदल, बनारसी दास गुप्ता एवं उनके साथियों द्वारा 18 अप्रैल 1988 को अग्रोहा, हरियाणा में महाराजा अग्रसेन मेडिकल एजुकेशन एंड साइंटिफिक रिसर्च सोसाइटी की स्थापना की गई है। वहीं हरियाणा के बहादुरगढ़ में महाराजा अग्रसेन नर्सिंग कॉलेज एवं राजस्थान के नागर में महाराजा अग्रसेन कॉलेज ऑफ फार्मासी का नाम भी उल्लेखनीय है।

10. बिजनेस मैनेजमेंट स्कूल
बिजनेस मैनेजमेंट की शिक्षा के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थित  महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल स्कूल का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। वहीं दिल्ली के 'महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज' एवं नेपाल के 'महाराजा अग्रसेन कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट' के नामों का उल्लेख भी आवश्यक है।

11. अस्पताल
महाराजा अग्रसेन अस्पताल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2015 में दिल्ली के द्वारका में 400 बेड का अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल की स्थापना की गई है। महाराजा  अग्रसेन के नाम पर पानीपत, हरियाणा एवं विद्यानगर, जयपुर में भी हॉस्पिटल संचालित हैं।

12. पार्क
काश्मीरी गेट, नई दिल्ली के समीप एक खूबसूरत बगीचे का नाम है महाराजा अग्रसेन पार्क, वहीं उत्तरप्रदेश के रायबरेली, राजस्थान के हनुमानगढ़ एवं पंजाब के जालंधर में निर्मित 'महाराजा अग्रसेन पार्क' वहां की हरियाली व सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं।


13. मूर्ती
वैसे तो देश के हजारों चौक चौराहों, भवनों, स्मारकों, धर्मशालाओं पर महाराजा अग्रसेन की भव्य प्रतिमा स्थापित हैं। किंतु अपने प्रदेश झारखंड की राजधानी रांची के लालपुर चौक में स्थापित अग्रसेन जी की प्रतिमा और जमशेदपुर के श्री टाटानगर गौशाला प्रांगण में बना श्री अग्रसेन ज्ञान मंदिर हम अग्रवालों को गौरवांवित करता है।


14. अग्रोहा धाम
महाभारत कालीन इतिहास को समेटे महाराजा अग्रसेन की कर्मभूमि अग्रोहा धाम देश की राजधानी दिल्ली से 185 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे संख्या 9 पर हिसार जिले में अवस्थित है। अग्रोहा धाम का निर्माण 1976 में  प्रारंभ किया गया था जो आज भी जारी है। अग्रोहा धाम को तीन भागों में बांटा गया है पूर्वी हिस्सा महाराजा अग्रसेन,
मध्य भाग कुलदेवी माता लक्ष्मी एवं पश्चिमी हिस्सा माता  सरस्वती को समर्पित है।

15. पुस्तक
समय समय पर महाराजा अग्रसेन के जीवन चरित पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें सबसे प्रमाणिक एवं प्रसिद्ध पुस्तकें हैं - डॉ. स्वराज्यमणि अग्रवाल द्वारा लिखित अग्रसेन अग्रोहा अग्रवाल एवं भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित अग्रवालों की उत्पति।


16. महाराजा अग्रसेन मार्ग
देश के कई शहरों में विभिन्न सड़कों का नामकरण महाराजा अग्रसेन पर किया गया है। किंतु सबसे चर्चित यह है कि हाल ही में 26 नवंबर 2021 को यूपी के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी द्वारा आगरा की मुगल रोड़ का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन मार्ग कर दिया गया। 

17. गौशाला
कहा जा सकता है कि देश में जितनी भी गौशालाएं संचालित हो रही हैं, अधिकांशतः अग्रवाल समाज द्वारा अथवा उनके योगदान से ही चल रही हैं। उनमें भी कुछ गौशालाओं का नामकरण महाराजा अग्रसेन के नाम पर है, यथा श्री अग्रसेन गौ सेवासदन, अंबिकापुर, छत्तीसगढ़, श्री वैष्णव अग्रसेन गौशाला, अग्रोहा, हरियाणा और श्रीकृष्ण प्रणामी महाराजा अग्रसेन गौशाला, रुद्रपुर, उत्तराखंड।


फीचर लेखन एवं संकल्पना - 
संदीप मुरारका
www.sandeepmurarka.com


रामजन्म भूमि आंदोलन एवं श्री राम मंदिर निर्माण में अग्रणी अग्रवाल/मारवाड़ी विभूतियां

रामजन्म भूमि आंदोलन एवं श्री राम मंदिर निर्माण में अग्रणी अग्रवाल/मारवाड़ी  विभूतियां

-  संदीप मुरारका

1. स्व .हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाई जी' - गीता प्रेस गोरखपुर के आदि संपादक एवं स्वतंत्रता सेनानी। अयोध्या में भगवान श्रीरामलला का अष्टधातु का जो विग्रह है, उसके प्राकट्य के सूत्रधार भाईजी ही थे। उन्होंने कल्याण के कई अंक रामजन्मभूमि को समर्पित किए थे। राममंदिर आंदोलन पर प्रकाशित चर्चित पुस्तक 'युद्ध में अयोध्या' में भाई जी के योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई है।

2. स्व. अशोक सिंघल, आई.आई. टी.  - हिंदू हृदय सम्राट व  विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष।  रामजन्मभूमि आंदोलन के सूत्रधार एवं वर्ष 1992 में विवादित ढाँचा तोड़ने वाले कारसेवकों के नेतृत्वकर्ता

3. स्व. विष्णु हरि डालमिया - बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड के सह अभियुक्त रहे उद्योगपति विष्णु हरि डालमिया की गिनती विश्व हिंदू परिषद् के कद्दावर नेताओं में होती थी। राम मंदिर आंदोलन जब अपने चरम पर था, उस समय विष्णु हरि डालमिया ही विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष थे। डालमिया श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेताओं में शामिल थे। वे राम जन्मभूमि मार्गदर्शक मंडल के सदस्य एवं
श्री कृष्ण जन्मस्थान के प्रबंध न्यासी रहे थे।

4. कोठारी बंधु - 21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक जुट चुके थे। सब विवादित स्थल की ओर जाने की तैयारी में थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। पुस्तक 'अयोध्या के चश्मदीद' के अनुसार कोठारी बंधु रामकुमार और शरद 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से चले थे। बनारस आकर रुक गए, सरकार ने ट्रेनें और बसें बंद कर रखी थीं, तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। इसके बाद यहां से सड़क का रास्ता भी बंद था। दोनों भाई  25 अक्टूबर को अयोध्या की तरफ पैदल निकले पड़े। करीब 200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद 30 अक्टूबर को दोनों अयोध्या पहुंचे। संभवतः 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाले पहले वीर कार सेवक शरद कोठारी ही थे, फिर उनके भाई रामकुमार भी चढ़े और दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया।

गुंबद पर झंडा लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पीछे हटकर लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए। लेकिन थोड़ी देर बाद जब वे दोनों बाहर निकले तो पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। संघ कार्यकर्ता शरद की उम्र महज 20 वर्ष और रामकुमार की 23 वर्ष थी।


5. श्री जय भगवान गोयल - अयोध्या में 6 दिसंबर,1992 बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा विध्वंस मामले में 28 साल बाद दिनांक 30 सितंबर,2020 को सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। माननीय अदालत ने कहा कि मस्जिद का विध्वंस कोई साजिश नहीं थी और किसी भी आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं मिले। किंतु मामले में बरी होने के बाद कोर्ट के बाहर अग्रवंशी शेरदिल शख्शियत
जय भगवान गोयल ने कहा- हां! मैंने ढांचा गिराया, हिंदू जीता, अब काशी और मथुरा है मुद्दा ! हमने ही ढांचा गिराया था। वर्ष 1990 में कार सेवकों को गोलियों से भूना गया था। हमारे नेता अशोक सिंघल जी का सिर फाड़ दिया था, ये सबकुछ हमने देखा था। इसको लेकर हमारे अंदर आक्रोश था कि जब कभी कार सेवा होगी तो ढांचा टूटना चाहिए।
उन्होंने आगे यह भी कहा 'हमारा पूरा एजेंडा था कि ढांचा बचना नहीं चाहिए, ढांचा टूटना ही चाहिए, ये हमारा भाव था। भाव के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा हुई, हजारों लाखों की संख्या में लोग वहां पहुंचे और हर कार सेवक के अंदर स्वयं हनुमान जी आ गए।' सीबीआई कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया, इसके लिए धन्यवाद। अगर सीबीआई कोर्ट हमें सजा सुनाती, उसे भी हम स्वीकार करते। हमने ढांचा बिल्कुल गिराया था। गिराया था, तभी तो आज राम मंदिर बन रहा है। अगर 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद नहीं गिराते, तो राम मंदिर कैसे बन पाता!  हिंदू जीता, अब हमारा अगला एजेंडा काशी और मथुरा है।

6. स्व. विनोद कुमार बंसल एवं श्री अमर नाथ गोयल -
दिनांक 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में मस्जिद का ढांचा गिराया गया था और इस केस में 49 आरोपी बनाए गए थे। फैसला आने तक  इनमें से 17 का निधन हो चुका था और बचे हुए 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया। उन 49 लोगों में 6 आरोपी अग्रवाल समाज के थे। अशोक सिंघल, चंपत राय, जय भगवान गोयल और विष्णु हरि डालमिया की चर्चा आलेख में की जा चुकी है, शेष दो हैं स्व. विनोद कुमार बंसल एवं श्री अमर नाथ गोयल।

जिन 32 आरोपियों को किया गया बरी - 
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धर्मेंद्र , सुधीर कुमार कक्कड़ और धर्मेंद्र सिंह गुर्जर

फैसला आने तक जिन 17 लोगों का हो चुका था निधन -
अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, मोरेश्वर सावें, महंत अवैद्यनाथ, महामंडलेश्वर जगदीश मुनि महाराज, बैकुंठ लाल शर्मा, परमहंस रामचंद्र दास, डॉ. सतीश नागर, बालासाहेब ठाकरे, तत्कालीन एसएसपी डीबी राय, रमेश प्रताप सिंह, महात्यागी हरगोविंद सिंह, लक्ष्मी नारायण दास, राम नारायण दास और विनोद कुमार बंसल

7. स्व. देवकीनंदन अग्रवाल - इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल ने रिटायरमेंट के पश्चात रामलला के मित्र के नाते अदालत में मुकदमा दायर कर कहा कि मुकदमे में रामलला को पार्टी बनाया जाए। क्योंकि इमारत में तो रामलला विराजमान हैं। मौके पर उनका कब्जा है। इसी के बाद हाईकोर्ट ने रामलला (मूर्ति) को पार्टी बनाया। अयोध्या विवाद से संबं‍धित 5 मुकदमे दायर किए गए  थे। जिसमें से अंतिम व पाँचवाँ मुकदमा (संख्या 236/1989) भगवान रामलला विराजमान की ओर से 1 जुलाई, 1989 को देवकीनंदन अग्रवाल ने दायर किया था। देवकीनंदन अग्रवाल 1977 से 1983 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके थे। कानून के जानकार देवकीनंदन अग्रवाल ने भगवान राम के निकट मित्र के रूप में अपने को पेश किया था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति एक जीवित इकाई होती है और अपना मुकदमा लड़ सकती है। लेकिन प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति नाबालिग मानी जाती है, इसलिए उनका मुकदमा लड़ने के लिए किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाया जाता है। न्यायालय ने रामलला का मुकदमा लड़ने के लिए देवकीनंदन अग्रवाल को रामलला के अभिन्न सखा के रूप में अधिकृत किया। देवकीनंदन जी द्वारा दायर मुकदमे में माननीय न्यायालय  से मांग की गई थी कि राम जन्मभूमि अयोध्या का पूरा परिसर वादी (देव-विग्रह) का है, अत: राम जन्मभूमि पर नया मंदिर बनाने का विरोध करने वाले या इसमें किसी प्रकार की आपत्ति या बाधा खड़ी करने वाले प्रतिवादियों को रोका जाए। देवकीनंदन अग्रवाल के निधन के बाद विश्व हिंदू परिषद के त्रिलोकी नाथ पांडेय रामलला के मित्र के तौर पर पैरोकार बने।


8. स्व. सीताराम गोयल एवं स्व. रामस्वरूप अग्रवाल  -
इन दो महान मनीषियों ने अपना पूरा जीवन हिंदुत्व के बौद्धिक योद्धाओं के नाते समर्पित कर दिया। हिंदुओं को जाग्रत करने हेतु इतिहासकार सीताराम गोयल द्वारा लिखी गई पुस्तकों को पढ़े बिना रामजन्म भूमि के इतिहास को समझना असंभव है। दो खंडों में लिखी गई 'हिंदू टेम्पल्स : व्हाट हैपेंड टू देम' में इस्लामी आक्रमणों के संदर्भों सहित मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए कई हिंदू मंदिरों का सिलसिलेवार ब्योरा एवं एतिहासिक अकाट्य तथ्य प्रकाशित है।

महान विचारक रामस्वरूप अग्रवाल की सबसे उल्लेखनीय पुस्तक है- 'हिन्दू व्यू ऑफ क्रिश्चियेनिटी एंड इस्लाम', जो तीन भागों में प्रकाशित है। उनका मानना था कि हिंदू विद्वानों ने कभी भी उन विदेशी धर्मों का गंभीर अध्ययन नहीं किया, जो भारत की पारंपरिक भूमि में बसने के लिए आए थे। उसके उलट इस्लामी शासकों और बुद्धिजीवियों, मिशनरियों और उपनिवेशों ने हिंदू परंपराओं पर गंभीर अध्ययन करवाए।

9. श्री चंपत राय बंसल - राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता एवं विश्व हिंदू परिषद् के वरिष्ठ नेता
चंपत राय वर्तमान में  विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष एवं श्री राम जन्मभूमि क्षेत्र ट्रस्ट, अयोध्या के महासचिव हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भारत सरकार ने राजपत्र जारी कर विवादित स्थल के आंतरिक और बाह्य प्रांगण का कब्जा इसी न्यास को सौंप दिया है। अयोध्या रेलवे स्टेशन के समीप मार्ग पर स्थित बाग बिजेसी जैसे प्राइम लोकेशन में कौशल्या सदन आदि मंदिरों की स्थापना हेतु 1.20 हेक्टेयर भूमि को क्रय करने एवं भूमि विवाद सुलझाने का श्रेय चंपत राय को जाता है।

10. श्री सलिल सिंघल - दिनांक 5 अगस्त, 2920 को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अभिजीत मुहूर्त में भूमि पूजन कर नींव रखी। इस दौरान अयोध्या सहित पूरा देश राममय हो गया। पीएम मोदी समेत करीब 175 लोग इस ऐतिहासिक पल का गवाह बने। भूमि पूजन कार्यक्रम के मंच पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ नृत्य गोपाल दास, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत रहे। साथ ही मंच पर उपस्थित रहे मुख्य यजमान सलिल सिंघल, जो अशोक सिंघल के बड़े भाई प्रमोद पी. सिंघल के पुत्र हैं। इन्होंने भूमि पूजन में मुख्य यजमान की भूमिका निभाई। पीआई इंडस्ट्रीज लिमिटेड़ के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक रहे सलिल वर्तमान में कंपनी के चेयरमैन एमेरिटस है। वे भारत के सबसे बड़े उद्योग संस्थान सीआईआई की राष्ट्रीय परिषद के भी सदस्य हैं। सिंघल परिवार ने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए ग्यारह करोड़ रुपये का अनुदान भी दिया है।

11. श्री एस के पोद्दार, श्री बिनोद गोयल एवं अग्रवाल विकास ट्रस्ट - राम मंदिर निर्माण के लिए जनवरी 2021 में जब 'निधि समर्पण कार्यक्रम' की शुरुआत की गयी, तब लोगों ने बढ़चढ़ कर इस हवन में राशि रूपी आहुति समर्पित की। अग्रवाल समाज ने तो मानों तिजोरियां खोल दी, जिन 74 लोगों ने एक करोड़ से ज्यादा की राशि भेंट की, उनमें कई अग्रवाल थे। जैसे राम के अनन्य भक्त जयपुर के उद्यमी एस के पोद्दार, जिन्होंने निधि समर्पण अभियान के पहले दिन 15 जनवरी,2021 को एक करोड़ एक लाख रुपये भेंट किये। इंदौर के प्रमुख व्यवसायी बिनोद अग्रवाल, जिन्होंने एक करोड़ रुपये दिये। सूरत के अग्रवाल विकास ट्रस्ट ने राम मंदिर निर्माण निधि में रु. 5,51,11,111/- का बड़ा अनुदान दिया। इस संस्था के अध्यक्ष अध्यक्ष सुभाष अग्रवाल, निवर्तमान अध्यक्ष हरि कानोडिया, उपाध्यक्ष संजय सरावगी, कोषाध्यक्ष सुभाष पाटोदिया, मंदिर निर्माण निधि समर्पण के चेयरमैन प्रमोद चौधरी एवं दान संग्रह समिति के संयोजक राकेश कंसल थे।

(इस आलेख के लेखक की आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें एक है 'पद्म अलंकृत विभूतियां मारवाड़ी/अग्रवाल')
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जमशेदपुर का मारवाड़ी समाज

जमशेदपुर का मारवाड़ी समाज
- संदीप मुरारका

मारवाड़ी समाज पर यदि आलेख लिखना हो तो स्मारिका के कई पृष्ठ केवल सफलतम मारवाड़ियों के नाम की सूची से भरे जा सकते हैं. कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां मारवाड़ी समाज की धमक नहीं है. पूरे कोरोना काल में जब भी टीवी पर समाचार चैनेल बदला गया होगा तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल अवश्य दिखाई दिए होंगे. ऑनलाइन चश्मा बेचकर ढ़ाई अरब डॉलर की कंपनी लेंसकार्ट स्थापित करने वाले पीयूष गोयल मारवाड़ी ही तो हैं. ई कामर्स की सफलतम कंपनी फ्लिपकार्ट के संस्थापक सचिन और बिन्नी बंसल युवाओं के लिए आदर्श हैं. ई कामर्स कंपनी मयन्त्रा के मुकेश बंसल, स्नेपडील के सीओओ  रोहित बंसल , इंडियामार्ट के सीईओ दिनेश अग्रवाल, ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल येभी के संस्थापक मनमोहन अग्रवाल, टैक्सी की दुनिया में धमाल मचाने वाले ओला के संस्थापक भावीश अग्रवाल, सवारी के गौरव अग्रवाल, नापतौल वाले मनु अग्रवाल, होटल इंडस्ट्री को नई दिशा देने वाले ओयो के संस्थापक रितेश अग्रवाल और घर घर मनचाहा खाना पहुंचाने वाले जोमेटो के संस्थापक दीपेंद्र गोयल जैसे कई नाम हैं, जिन्होंने बदलते युग में फिर एक बार मारवाड़ी समुदाय को अग्रणी पंक्ति में ला कर खड़ा कर दिया है. एल एन मित्तल से लेकर बिड़ला, सिंहानिया, बजाज, रूंगटा, जिंदल की सफलता की कहानियां सुन सुन कर बड़ा हुआ यह समाज अब नये नाम और नये कॉन्सेप्ट गढ़ रहा है. 

भारत  के सविंधान निर्माता मसौदा समिति के सदस्य देवी प्रसाद खेतान से लेकर इंडियन वॉरेन बफेट के नाम से विख्यात सी ए राकेश झुनझुनवाला तक, युगद्रष्टा समाजवादी डॉ राम मनोहर लोहिया से लेकर वर्तमान राजनीति में हनक रखने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक, धरती धोरां री जैसे महान गीत के रचयिता महाकवि पद्मश्री कन्हैया लाल सेठिया से लेकर वर्तमान में विख्यात कवि शैलेश लोढ़ा तक, आजादी के बाद जिस इंपीरियल बैंक का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कर दिया गया उसके चेयरमैन रहे बद्रीदास गोयनका से लेकर पंजाब नेशनल बैंक के वर्तमान प्रबंध निदेशक अतुल कुमार गोयल तक, टाईम्स ऑफ इंडिया के मालिक रामकृष्ण डालमिया से लेकर जी समूह के सुभाष चंद्रा तक, फिल्मों में पद्मश्री रामगोपाल बजाज से लेकर अदिती अग्रवाल तक, जम्मू कश्मीर में पत्रकारिता के जनक पद्मश्री  मुल्क राज सराफ से लेकर झारखंड की पत्रकारिता को आंदोलन बनाने का माद्दा रखने वाले कमल किशोर गोयनका तक, खेल व एडवेंचर के क्षेत्र में पद्मभूषण डॉ. विजयपत सिंहानिया से लेकर पद्मश्री प्रेमलता अग्रवाल तक कौन सी ऐसी फिल्ड है, जिसमें मारवाड़ियों ने सफलता के झंडे ना गाड़े हों.

सबसे मुख्य बात यह है कि मारवाड़ी समुदाय के लोग जहाँ गए, वहीं के हो कर रह गए. वहाँ की भाषा और पहनावे को तुरंत अपना लिया. स्थानीय लोगों से मेलजोल बढ़ाया, जिसका नतीजा हुआ कि व्यापार में मारवाड़ियों ने प्रचुर सफलता प्राप्त की. किंतु इस समुदाय की यह भी विशेषता रही भले कितना भी धन कमाया, अपनी आय का एक हिस्सा परोपकार में अवश्य लगाया. आज जमशेदपुर में कई ऐसे स्मारकीय परिसंपतियां हैं, जो मारवाड़ी समाज की समाजसेवा की प्रत्यक्ष गवाही दे रही हैं. जमशेदपुर शहर  बसने के साथ साथ ही मारवाड़ी समुदाय भी बैलगाड़ियों में यहाँ आ गया. आज शहर के हर कोने में इनकी एक दूकान  अवश्य मिलेगी. जमशेदपुर में मारवाड़ियों के कई ऐसे मकान मिलेंगे, जिनके निर्माण के सौ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं.

सूखी, बूढ़ी व अपंग गायों की निःस्वार्थ सेवा के उद्देश्य से वर्ष 1919 में स्थानीय मारवाड़ियों के सहयोग से खेजरोली निवासी शिव सहाय अग्रवाल ने श्री टाटानगर गौशाला की स्थापना की थी. कालांतर में गौशाला का दायरा बढ़ता चला गया. वर्तमान में जुगसलाई, कालियाडीह, बागबेड़ा एवं सी पी टोला में संचालित गौशाला परिसरों में लगभग 3500 गाय हैं. अध्यक्ष कैलाश सरायवाला एवं महासचिव महेश गोयल के सक्षम नेतृत्व में श्री टाटानगर गौशाला में प्रतिदिन लगभग 2000 किलो दुग्ध उत्पादन किया जा रहा है. वहीं यह जान लेना भी आवश्यक है कि चाकुलिया स्थित कलकत्ता पिंजरापोल सोसाइटी गौशाला की स्थापना 1916 एवं चाईबासा गौशाला की स्थापना 1901 में हो चुकी थी.

जुगसलाई के रंगलाल सुल्तानिया, लादूराम केडिया, हनुमान प्रसाद सिंगोदिया ने अपने संगी साथियों के साथ मिलकर 1926 में श्री राजस्थान शिव मंदिर की स्थापना की. जहाँ आज शादी विवाह के लिए विशाल भवन तैयार हो चुका है. जो बिना किसी जाति के भेदभाव के सबके लिए उपलब्ध है. वर्तमान में अध्यक्ष छीतरमल धुत और महासचिव अरुण अग्रवाल के नेतृत्व में नया वातानुकूलिन सभागार निर्मित हो रहा है.

जुगसलाई निवासी चंदूलाल अग्रवाल एवं उनके सहयोगी बंधुओं ने मिलकर 1963 में  महतो पारा रोड़ में श्री बैकुंठ धाम मंदिर की स्थापना की. सात मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर का दर्शन करते ही किसी तीर्थस्थल की परिकल्पना घूमने लगती हैं. अध्यक्ष ओम प्रकाश अग्रवाल एवं महासचिव सुरेश देबुका प्रत्येक माह ग्यारस के दिनों श्याम प्रेमियों का स्वागत करते मंदिर प्रांगण में आतुर खड़े दिखते हैं.

जुगसलाई की समाजसेविका व धार्मिक मारवाड़ी महिला  जयदेई खीरवाल ने वर्ष 1966 में गर्ल्स स्कूल रोड़ में झुंझुनू वाली दादी के मंदिर के प्रतिरुप श्री राणी सती दादी मंदिर की स्थापना की. जहाँ भादो माह की अमावश्या पर लगने वाले मेले में पूरे शहर की मारवाड़ी महिलाएँ राजस्थानी ओढ़नी ओढ़े एकत्रित होती हैं. इस मंदिर की देखरेख व संचालन महेश खीरवाल, प्रणय जैन एवं सरोज खीरवाल के जिम्मे है.


जिस प्रकार समुद्र में पाए जाने वाली शार्क सूंघने की अपनी अविश्वसनीय क्षमता की मदद से लगभग 100 लीटर पानी में खून की एक बूंद को पहचान सकती है, उसी प्रकार एक मारवाड़ी उस जगह का पता लगा लिया करते थे जहाँ व्यापार की संभावनाएं हों. जिस समय जमशेद जी नसरवान जी टाटा ने स्थल चयन की प्रक्रिया प्रारंभ की, तभी सुदूर राजस्थान के लोगों को आभास हो गया कि तत्कालिन बिहार के इस इलाके में व्यापार की संभावनाओं के कई द्वार खुलने वाले हैं और देश भर में फैले मारवाड़ी समुदाय के लोग यहाँ आकर बसने लगे. धार्मिक विचारों वाले इस समाज ने ना केवल अपने रहने के लिए मकान दूकान बनवाए बल्कि भगवान लक्ष्मीनारायण की मंदिर की भी स्थापना की. वर्ष 1895 में जुगसलाई चौक बाजार में मारवाड़ी पंचायत द्वारा स्थापित श्री सत्यनारायण मंदिर इसी दूरदर्शिता का गवाह है. वर्तमान में इस मंदिर का संचालन पंडित श्रवण जोशी, अश्विनी शर्मा एवं प्रकाश जोशी कर रहे हैं.

बिष्टुपुर में रहने वाले संघी, सोंथालिया, मूनका, नरेडी, नागेलिया, आगीवाल व अन्य परिवारों ने मिलकर 1922 में श्री सत्यनारायण मारवाड़ी मंदिर की स्थापना की. जहाँ आज वातानुकूलिन हॉल व ठहरने के लिए ग्यारह कमरे भी बने हुए हैं. अध्यक्ष संतोष संघी एवं सचिव सुरेश आगीवाल के कुशल नेतृत्व में संचालित इस भवन की साफ सफाई देखते ही बनती है.

कदमा के सुआलाल अग्रवाल, जोहरी लाल मित्तल, लूणकरण खेमका, चिरंजीलाल शंकरका, छगनलाल  हरूपका, चौथमल शर्मा, पन्नालाल खेमका, रामदयाल अग्रवाल, सूरजमल बहादुरमल अग्रवाल, मुरलीधर मोदी, मोहनलाल चौधरी, धनपतराय अग्रवाल, गणपतराय माहेश्वरी, गजानंद माहेश्वरी एवं उनके साथियों ने मिलकर 1968 में उलियान पथ में श्री लक्ष्मी नारायण मारवाड़ी मंदिर संघ धर्मशाला की स्थापना की. जिसके वर्तमान अध्यक्ष शंकर लाल मित्तल एवं सचिव संतोष गर्ग हैं. कदमा में रहने वाले मारवाड़ी समाज के अधिकांश धार्मिक आयोजन इसी भवन में संपन्न होते हैं.

वर्ष 1912 में साकची में पंडित हीरालाल मदनलाल ने श्री श्री सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी मंदिर की स्थापना की. इसी प्रांगण में 2020 में राजस्थानी शैली में भव्य महालक्ष्मी मंदिर की स्थापना की गई. जहाँ कुलदेवी माता महालक्ष्मी के साथ साथ हनुमान जी को गोद में लिए हुए माता अंजना देवी एवं राणी सती दादी का भव्य मंडप भी बना है. मंदिर प्रांगण की चित्रकारी एवं कांच के कार्य की अनुपम शोभा देखते ही बनती है. साकची के कमल अग्रवाल, सुमन अग्रवाल, प्रमोद अग्रवाल एवं उनके साथियों की देखरेख में संचालित इस मंदिर के ऊपरी तल्लों पर दो वातानुकुलिन हॉल और अठारह कमरे निर्मित हैं.

साकची के रहने वाले दूरदर्शी सोच वाले मारवाड़ी समाज के रामकृष्ण चौधरी, सुरेश चंद्र मोदी, नरेश कांवटिया, ओमप्रकाश झाझरिया, ओमप्रकाश रिंगसिया, महावीर प्रसाद मोदी, छेदीलाल अग्रवाल व उनके साथियों ने 1993 में आमबगान में अग्रसेन भवन की स्थापना की. आज स्थिति यह है कि हर मारवाड़ी की प्राथमिकता होती है कि उसके परिवार में होने वाले मांगलिक कार्यक्रम भव्यता, पार्किंग एवं सभी प्रकार की सुविधाओं से सुसज्जित अग्रसेन भवन में ही संपन्न हो.

वर्ष 1960 में डिस्पेंसरी रोड़, सोनारी में लक्ष्मीनारायण दीवान एवं उनके मित्रों द्वारा राजस्थानी महिला सत्संग भवन का निर्माण करवाया गया. सोनारी दोमुहानी रोड़ , कागलनगर में वर्ष 1962 में रामपाल साबू परिवार ने शिव मंदिर की स्थापना की. जिसकी देखरेख वर्तमान में घीसालाल साबू , सीताराम साबू एवं उनके परिवार द्वारा की जाती है.

मानगो के मारवाड़ी समाज द्वारा 1968 में श्री राजस्थान नवयुवक संघ की स्थापना की गई. जिसके अंतर्गत डिमना रोड़, मानगो में राजस्थान भवन का निर्माण हुआ, जो आज विशाल भवन का स्वरुप प्राप्त कर चुका है. रामवतार अग्रवाल, जगदीश प्रसाद अग्रवाल, ब्रह्मदत्त शर्मा एवं उनके साथियों द्वारा लगाए गए इस पौधे को अध्यक्ष विजय अग्रवाल एवं सचिव मनोज केजरीवाल की सशक्त कमिटी ने सींच कर वृक्ष का रुप प्रदान कर दिया है. इस भवन में वैवाहिक व अन्य आयोजनों  के लिए तीन हॉल एवं खुले प्रांगण के अलावा छः कमरे निर्मित हैं. मानगो के मारवाड़ी श्याम भक्तों द्वारा वर्ष 2000 में पुरुलिया रोड़ में श्री श्याम भवन की स्थापना की गई. जिसके वर्तमान अध्यक्ष महावीर प्रसाद अग्रवाल एवं सचिव विजय खेमका हैं. श्याम प्रचार एवं निशान यात्रा के लिए प्रसिद्ध इस भवन में एक सभागार और चार कमरे निर्मित हैं.

शिक्षा के प्रति संवेदनशील मारवाड़ी समाज ने जुगसलाई कुम्हार पारा रोड़ में 1954 में राजस्थान युवक मंडल की स्थापना की. जहाँ बाल भारती उच्च विद्यालय का संचालन किया जाता है. स्व. राधा किशन खेमका, वासुदेव केडिया, बनवारी लाल काबरा, कन्हैया लाल पुरिया, रामगोपाल मुरारका इत्यादि द्वारा स्थापित इस विद्यालय के वर्तमान अध्यक्ष राजकुमार बरवालिया, महासचिव किशोर तापडिया एवं विद्यालय सचिव संगीता मित्तल हैं. वहीं सोनारी में राजस्थान मैत्री संघ द्वारा भी दो विद्यालयों का संचालन किया जाता है. साथ ही मानगो में ब्रह्मदत्त शर्मा द्वारा गोविंद विद्यालय एवं शिव प्रकाश शर्मा द्वारा साउथ पॉइंट स्कूल का संचालन किया जा रहा है. परसुडीह में विवेक पुरिया द्वारा ब्राइट फ्यूचर स्कूल, पारडीह में कविता अग्रवाल द्वारा माउंट लिटरेरा स्कूल एवं जुगसलाई में प्रियंका अग्रवाल द्वारा लिटिल स्टार प्ले स्कूल का संचालन किया जा रहा है.

इन सबके अलावा भी मारवाड़ी समाज द्वारा स्थापित कई भवन, धर्मशालाएं, मंदिर, चिकित्सालय हैं. वर्ष 1979 में शिव मंदिर लेन में स्थापित श्री श्री साकची शिव मंदिर, वर्ष 1983 में सोनारी कार्मेल जूनियर कॉलेज के समीप स्थापित राजस्थान श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर, वर्ष 1995 में स्व बजरंग लाल भरतिया द्वारा शिव घाट जुगसलाई का नव निर्माण एवं श्री महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना, रमेश मेंगोतिया, अनिल मेंगोतिया, राजेश मेंगोतिया, लोचन मेंगोतिया एवं उनके परिवार द्वारा वर्ष 2002 में चौक बाजार जुगसलाई में अवस्थित श्री श्री राधा कृष्ण मंदिर का पुनर्निमाण, वर्ष 1982 में खेमचंद चौधरी के परिवार द्वारा जवाहरनगर मानगो में श्री श्री मनोकामना मंदिर की स्थापना, सत्यनारायण भार्गव द्वारा 2006 में एवं हीरालाल भार्गव द्वारा 2009 में गर्ल्स स्कूल रोड़, जुगसलाई में श्री शनि देव मंदिर की स्थापना, वर्ष 2003 में गौशाला रोड़, जुगसलाई में श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ द्वारा भव्य भगवान महावीर के मंदिर की स्थापना, 1992 में महेश कुमार झंवर के प्रयासों से माहेश्वरी समाज द्वारा जुगसलाई एम ई स्कूल रोड़ में श्री माहेश्वरी मंडल की स्थापना, 1978 में गोमती देवी द्वारा सनातन ग्रंथों के अध्ययन हेतु पुरुलिया रोड़ मानगो में श्री महिला सत्संग भवन की स्थापना, गोलमुरी की सक्रिय महिला द्रौपदी देवी एवं उनकी महिला टीम द्वारा विजय नगर में प्रज्ञा भवन की स्थापना, वर्ष 1992 में खेमचंद चौधरी के परिवार द्वारा गोलमुरी मार्केट में सेठ लक्ष्मीनारायण चौधरी धर्मशाला, वर्ष 1966 में बिष्टुपुर के महासुखराम संघी, मातादीन सोंथालिया, डोंगरसीदास देबुका एवं कालूराम संघी द्वारा आर रोड़ में राजस्थान भवन की स्थापना, जमशेदपुर के मारवाड़ी ब्राह्मण समाज द्वारा 1989 में जुगसलाई रामटेकरी रोड़ में स्थापित ऋषि भवन, जिसका संचालन श्री राजस्थानी ब्राह्मण संघ द्वारा किया जाता है. इस भवन की परिकल्पना का श्रेय हरिनारायण पारीक, महेश चंद्र शर्मा, हरसायमत शर्मा, पन्ना लाल, रामअवतार सारस्वत, छितर मल शर्मा एवं बजरंग लाल शर्मा को जाता है. वर्तमान में भवन की देखरेख प्रकाश जोशी जैसे युवाओं की टीम कर रही है.

वर्ष 1981 में केदार जैसुका, महावीर भालोटिया, मोतीलाल अग्रवाल, साधुराम गोयल, गजानंद भालोटिया एवं उनके साथियों ने मिलकर नया बाजार जुगसलाई में श्री राजस्थान आदर्श युवा संघ के अंतर्गत अग्रसेन भवन की स्थापना की. वर्तमान में इस भवन की देखरेख भी भरतेश शर्मा जैसे युवाओं की टीम कर रही है.


ऐसा नहीं है कि जमशेदपुर के मारवाड़ी समाज ने केवल उद्योग व्यवसाय में ही सफलता प्राप्त की और समाजसेवा में अपना धन लगाया. मारवाड़ियों में शिक्षा के प्रति रुझान का आलम यह है कि आज जमशेदपुर में दो सौ से ज्यादा चार्टर्ड एकाउंटेंट और सौ से ज्यादा डॉक्टर्स हैं. कंपनी सचिव, अधिवक्ता, एमबीए, इंजीनियर, इंटीरियर डिजाइनर, आर्किटेक्ट, फैशन डिजाइनर इत्यादि कोई ऐसी फिल्ड नहीं होगी, जिसमें मारवाड़ी युवाओं की दखल ना हो, जमशेदपुर के सैकड़ों मारवाड़ी युवा अमेरिका की सिलिकैन वैली से लेकर बैंगलुरु के आईटी हब में अपनी धाक जमाए हुये हैं. अब तो जमशेदपुर का मारवाड़ी युवाओं का रुझान प्रशासनिक सेवा की तरफ भी हो चला है. जुगसलाई के उद्यमी सुशील अग्रवाल के पुत्र आदर्श अग्रवाल 2016 बैच के  भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा के अधिकारी हैं एवं वर्तमान में पटना, बिहार में उपमहालेखाकार पद पर पदस्थापित हैं.

टुईलाडुंगरी, गाराबासा के रहने वाले अधिवक्ता बिनोद अग्रवाल के सुपुत्र नवीन अग्रवाल 2016 बैच के भारतीय राजस्व अधिकारी हैं एवं वर्तमान में जीएसटी परिषद, दिल्ली में अवर सचिव के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. आदित्यपुर के व्यवसायी कमल अग्रवाल के पुत्र अभिषेक अग्रवाल 2017 बैच के भारतीय इंजीनिरिंग सर्विसेज के अधिकारी हैं एवं वर्तमान में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत गुवाहाटी में पदस्थापित हैं.


# इस आलेख के लेखक संदीप मुरारका ने मारवाड़ी समाज की वैसी महान हस्तियों पर पुस्तक लिखी है, जिनको पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. पुस्तक का शीर्षक है - "पद्म अलंकृत विभूतियां : मारवाड़ी/अग्रवाल"
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Saturday, 10 December 2022

फिर जी उठें हैं लोहिया

फिर जी उठें हैं लोहिया......

वर्ष 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास लोकसभा में जहाँ 404 सीटें थी, वहीं भारतीय जनता पार्टी के मात्र 2 सांसदो ने लोकसभा में प्रवेश किया। आज स्थिति यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आंकडा़ घटकर महज 53 सांसदों तक सिमट गया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के 303 सांसद लोकसभा में शोभायमान हैं। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देते हैं तो राजनीति का अध्ययन करने वाले लोगों के जेहन में सबसे पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम याद आता है।

राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर जवाहरलाल नेहरु से टकराने वाले डॉ. लोहिया देश में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'कांग्रेस मुक्त भारत' की कल्पना की। भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी डॉ. लोहिया की पंडित नेहरू से  तल्खी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने यहां तक कह दिया था कि 'बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।' कांग्रेस संस्कृति के घोर विरोधी रहे डॉ लोहिया ही वो जीवट शख्स थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहने का साहस किया।

आज देश के 36 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आधे  स्थानों पर कांग्रेस सांसद विहीन है। इस दयनीय स्थिति को देखकर डॉ. लोहिया की पंक्ति याद आती है कि 'जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं किया करतीं।' शायद इसीलिए दूरद्रष्टा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने 11 अक्टूबर 1962 को एनार्की में लिख दिया -

भोर में पुकारो सरदार को,
जीत में जो बदल देते थे कभी हार को,
तब कहो, ढोल की य' पोल है,
नेहरू के कारण ही सारा गंडगोल है।

फिर जरा राजाजी का नाम लो,
याद करो जे. पी. को, विनोबा को प्रणाम दो ।
तब कहो, लोहिया महान है।
एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है।

श्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर थे, तो देश भर में रैलियां कर रहे थे। उसी क्रम में उन्होंने 27 अक्टूबर, 2013 को पटना के गांधी मैदान में भी एक रैली में भाग लिया था, जो काफी चर्चित हुई। नरेंद्र मोदी जब पटना पहुंचने वाले थे, उसके पहले आतंकियों ने भाजपा समर्थकों से खचाखच भरे गांधी मैदान में सीरियल धमाके किए, जिनमें 6 लोगों की जान चली गई थी। इन धमाकों से पहले पटना जंक्शन के टॉयलेट में भी विस्फोट हुआ था। किंतु लगातार धमाकों के बावजूद अपनी दृढ़ता प्रकट करते हुए देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित किया। उस भाषण की एक विशेष बात यह भी रही कि मोदी ने डॉ. लोहिया को याद किया और जमकर उनके मूल्यों व सिद्धांतों की बात की। उन्होंने कहा कि राममनोहर लोहिया जी जीवनभर हिंदुस्तान को कांग्रेस मुक्त कराने के लिए लड़ते रहे, जीवन भर जूझते रहे। मोदी ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधते हुए भी लोहिया का ही उद्धरण दिया था।


पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को "उर्वशीयम" के नाम से पुकारने वाले लोहिया कहा करते थे कि 'लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर लेकिन मेरे मरने के बाद ’ और यह हो भी रहा है। लोहिया
अक्सर आगाह करते रहे कि चीन से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है और आज मोदी युग में चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाना, लोहिया की प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।

दिनांक 4 जनवरी, 2022 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में यह कहा कि "पूर्वोत्तर, जिसे नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता का प्रवेश द्वार कहा था, वो नए भारत के सपने पूरा करने का प्रवेश द्वार बन रहा है। हम पूर्वोत्तर में संभावनाओं को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘पूर्वोत्तर को लेकर पहले की सरकारों की नीति थी ‘डोंट लुक ईस्ट’ यानी पूर्वोत्तर की तरफ दिल्ली से तभी देखा जाता था, जब यहां चुनाव होते थे। लेकिन हमने पूर्वोत्तर के लिए ‘एक्ट ईस्ट’ का संकल्प लिया है।’ देश के प्रधानमंत्री के भाषण और ट्वीट देखकर एक बार फिर लोहिया जी की याद ताजा हो जाती है। क्योंकि दिल्ली की सत्ता की राजनीति करनेवाले तत्कालीन नेताओं में वे एकमात्र शख्शियत थे, जो पूर्वोत्तर की बात किया करते थे और समय समय पर अपनी चिंता प्रकट किया करते थे। वर्ष 1963 में प्रकाशित डॉ लोहिया के भाषणों, बयानों और आलेखों के संकलन 'इंडिया चाइना एंड नार्दर्न फ्रंटियर्स' के विभिन्न पन्ने गवाह हैं, जिनमें विद्वान लोहिया ने हिमालयी क्षेत्रों की आर्थिक खुशहाली एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने की बातें कही हैं। उनकी मृत्यु के 55 वर्षों के बाद जब देश के प्रधानमंत्री उन्हीं बातों को दोहराते हैं, तो ऐसा लगता है मानों लोहिया जीवंत हो चुके हैं अथवा मोदी इस देश के पहले राजनेता हैं जिन्होंने लोहिया के विचारों को अंगीकार कर लिया है।

वर्ष 1983 में इलाहाबाद के लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लोहिया की पुस्तक "भारत माता धरती माता" के पृष्ठ 53 से 90 पर अंकित चौथे आलेख 'राम, कृष्ण, शिव' का अध्ययन करने के बाद मोदी जी की तपस्या वाला किस्सा याद आ जाता है। जिसमें केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती यह दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1985 या 86 में डेढ़ माह तक हिमालय की गुफा में तपस्या की थी। वैसे 18 मई 2019 को मोदी जी को केदारनाथ धाम मंदिर के निकट एक गुफा में ध्यान लगाते सारी दुनिया ने देखा था। खैर, उन्होंने तपस्या की या नहीं, मैं यह नहीं जानता, लेकिन यह मानता हूँ कि उन्होंने डॉ. लोहिया के आलेख 'राम,कृष्ण, शिव' को अवश्य पढ़ा है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनके राजनैतिक एजेंडा में 'अयोध्या, मथुरा और वाराणसी' सर्वोच्च स्थान पर हैं।


इतिहास की तिथियों में 23 मार्च देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है। मां भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के सर्वोच्च बलिदान का दिन है। मां भारती के एक और लाड़ले लोहिया का जन्मदिन है। स्वयं को लोहियावादी बताने वाले उनका जन्मदिवस कितनी शिद्दत से मनाते हैं, यह तो नहीं पता, किंतु नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी किसी भी वर्ष लोहिया को श्रद्धा सुमन अर्पित करना नहीं भूले। उन्होंने 2016 में लोहिया द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए हस्तलिखित पत्र पोस्ट किए। साथ ही लिखा कि विद्वान डॉ. राम मनोहर लोहिया, जिनके विचार सभी दलों के नेताओं को प्रेरित करते हैं। वर्ष 2017 की 23 मार्च को मोदी ने सामाजिक सशक्तिकरण एवं सेवा के लिए लोहिया के विचारों को प्रेरणास्त्रोत बतलाया। वहीं वर्ष 2018 में मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री स्वीकारोक्ति कि लोहिया बीसवीं सदी के भारत के सबसे उल्लेखनीय व्यक्तियों में से एक हैं।


वर्ष 2019 को उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी और अप्रतिम देशभक्त बताते हुए उनकी जयंती पर सादर नमन किया। साथ ही साथ विपक्ष को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया था कि जो लोग आज डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल कर रहे हैं, वही कल देशवासियों के साथ भी छल करेंगे। जो लोग लोहिया के दिखाए रास्ते पर चलने का दावा करते हैं, वही क्यों उन्हें अपमानित करने में लगे हैं? यह भी कहा कि कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उन्होंने ब्लॉग में लिखा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब युवा लोहिया ने आंदोलन की कमान संभाली और मैदान में डटे रहे। लोहिया ने भूमिगत रहते हुए अंडरग्राउंड रेडियो सेवा शुरू की, जिससे आंदोलन की गति धीमी न पड़े और अविरल चलती रहे। डॉ. लोहिया का नाम गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

मोदी ने लिखा कि जहां कहीं भी गरीबों, शोषितों और वंचितों को मदद की जरूरत पड़ती, वहां डॉ. लोहिया मौजूद होते थे। उन्होंने आगे कहा कि लोहिया के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने और अन्नदाताओं के सशक्तीकरण को लेकर काफी कुछ लिखा। उनके इन्हीं विचारों के अनुरूप एनडीए सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। लोहिया जाति व्यवस्था और महिलाओं तथा पुरुषों के बीच की असमानता को देखकर दुखी होते थे।

उन्होंने लिखा, 'सबका साथ, सबका विकास' का हमारा मंत्र और पिछले पांच सालों का हमारा ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि हमने लोहिया के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। अगर आज लोहिया होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती। उन्होंने कहा कि लोहिया संसद के भीतर या बाहर कहीं भी बोलते थे तो कांग्रेस हमेशा उनसे डरती थी।

लोहिया के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि देश के लिए कांग्रेस कितनी घातक हो चुकी है, इसे डॉ. लोहिया भलीभांति समझते थे। वर्ष 1962 में उन्होंने कहा था, 'कांग्रेस शासन में कृषि हो या उद्योग या फिर सेना, किसी भी क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है।' उनके ये शब्द कांग्रेस की बाद की सरकारों पर भी अक्षरश: लागू होते रहे।

उन्होंने कहा, 'कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उनके प्रयासों की वजह से ही 1967 के आम चुनावों में सर्वसाधन संपन्न और ताकतवर कांग्रेस को करारा झटका लगा था। उस समय अटल जी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया की कोशिशों का ही परिणाम है कि हावड़ा-अमृतसर मेल से पूरी यात्रा बिना किसी कांग्रेस शासित राज्य से गुजरे की जा सकती है!' दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति में आज ऐसे घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर डॉ. लोहिया भी विचलित, व्यथित हो जाते।

प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों पर हमला करते हुए कहा कि वे दल जो डॉ. लोहिया को अपना आदर्श बताते हुए नहीं थकते, उन्होंने पूरी तरह से उनके सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। यहां तक कि ये दल डॉ. लोहिया को अपमानित करने का कोई भी कोई मौका नहीं छोड़ते। ओडिशा के वरिष्ठ समाजवादी नेता सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा था, 'डॉ. लोहिया अंग्रेजों के शासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।'

उन्होंने कहा कि आज उसी कांग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियां अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है।  डॉ. लोहिया वंशवादी राजनीति को हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे। आज वे यह देखकर जरूर हैरान-परेशान होते कि उनके ‘अनुयायी’ के लिए अपने परिवारों के हित देशहित से ऊपर हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डॉ. लोहिया का मानना था कि जो व्यक्ति ‘समता’, ‘समानता’ और ‘समत्व भाव’ से कार्य करता है, वह योगी है। उन्होंने आगे कहा, डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राजनीति दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि इन पार्टियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इनके लिए डॉ. लोहिया के विचार और आदर्श बडे़ हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति? आज 130 करोड़ भारतीयों के सामने यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि जिन लोगों ने डॉ. लोहिया तक से विश्वासघात किया, उनसे हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जाहिर है, जिन लोगों ने डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल किया है, वे लोग हमेशा की तरह देशवासियों से भी छल करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के बाद भी हर वर्ष लोहिया को उनके  जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि दी है। परंतु मुख्य बात यह है कि मोदी जी गाहे बेगाहे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को परास्त करने हेतु लोहिया को याद कर लिया करते हैं, जिससे उनके भीतर का लोहियावाद परिलक्षित होता है।

उरी हमले के बाद 24 सितंबर 2016 को केरल के कोझिकोड में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में आतंकवाद एक्सपोर्ट करनेवाला देश बताते हुए कहा था कि हमारे 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि पिछली शताब्दी में भारत के राजनीतिक जीवन को तीन महापुरुषों के चिंतन ने प्रभावित किया है वे हैं महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. राम मनोहर लोहिया। इनके चिंतन का प्रभाव हिंदुस्तान की राजनीति पर नजर आता है।

जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को कमजोर करने और 35 ए हटाने के संकल्प पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 6 अगस्त 2019 को राज्यसभा में लोहिया का नाम लिया। लोहिया को गठबंधन की राजनीति का जनक कहा जाता है। बिहार और उत्तरप्रदेश के राजनेता आज भी उनका नाम लेकर सत्ता की रोटी को उलट पलट कर सेंक रहे हैं।

इसे लोहिया का सम्मान कहें या लोहिया के विचारों की ताकत या लोहिया के नाम का राजनैतिक इस्तेमाल या बढ़ता लोहियावाद!!  खैर जो हो, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले के प्राचीर से 15 अगस्त 2022 को स्वाधीनता दिवस एवं आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर अपने संबोधन में आजादी के आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए जब डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम का जिक्र किया, तो मानो यूं लगा कि "फिर जी उठें हैं लोहिया......"

संदीप मुरारका
जनजातीय व पिछड़ा समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
www.sandeepmurarka.com
Email : keshav831006@gmail.com

उर्वशीयम 2022 में प्रकाशित आलेख









Monday, 5 December 2022

झारखंड का राजनीतिक घेराव : असंभव

झारखंड का राजनीतिक घेराव : असंभव !

अंशुमन कहता है राजनीति पर लिखो ! पर क्या लिखूं ! झारखंड की बात करूं, तो दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर लिखना होगा। उन गुरुजी पर, जिन्होंने आदिवासी नेताओं की राजनैतिक तलवार को नई धार दी। झारखंड राज्य के गठन में जिनके योगदान को चाहकर भी कमतर नहीं किया जा सकता। किंतु उनको धराशायी करने के लिए क्या नहीं किया गया ! मुख्यमंत्री रहते हुए ना केवल शिबू सोरेन को हार का स्वाद चखना पड़ा बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे मात्र 10 महीने कुर्सी पर बैठ पाए। वहीं आरएसएस के कैडर रहे मधु कोड़ा को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा, जीता भी और निर्दलीय विधायक रहते हुए 23 महीने सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का अनूठा रिकार्ड बनाया।

वनांचल राज्य की पक्षधर रही भाजपा ने झारखंड गठन के बाद विधायकों के अंकगणित को जब अपने पक्ष में देखा तो केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुलाल मरांडी को सूबे का राज संभालने दिल्ली से रांची रवाना कर दिया, किंतु वे मात्र 28 महीने ही कुर्सी संभाल पाए। जिस भाजपा ने बाबुलाल जी को झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्रदान किया, उसी भाजपा से बाबुलाल जी का मोह 2006 में टूट गया और उन्होंने अलग दल झाविमो का गठन कर डाला, फिर ना जाने कौन सा विवेक जागा और 14 वर्षों के वनवास के बाद वे फिर भाजपा में शामिल हो गए।

महज 22 वर्ष के झारखंड ने 14 बार कुर्सी का हस्तांतरण देखा। यह अलग बात है कि 6 ही नेता सत्ता की रोटी को अलट पलट कर सेंकते रहे; बाबुलाल मरांडी - 1 बार , शिबू सोरेन - 3 बार, अर्जुन मुंडा - 3 बार, मधु कोड़ा - 1 बार, रघुवर दास - 1 बार और हेमंत सोरेन - 2 बार। अफसोस इस बात का नहीं कि रघुवर दास को छोड़कर कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, अफसोस इस बात का है कि इस खनिजगर्भा भूमि को तीन बार राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। इन 22 वर्षों में राजभवन ने 10 महामहिमों को बदलते देखा और उनमें भी चार ने राष्ट्रपति शासन के जरीये सूबे को मनचाहा हांका।

राजनीति की प्रयोगशाला बन चुके झारखंड का विकास किस तेजी से हुआ, यह बयां करना मुश्किल है किंतु यहां का बजट बड़ी तेजी से विकसीत हुआ। जहां वर्ष 2001-02 में झारखंड का बजट 7,101 करोड़ रुपये था, आज वर्ष 2022-23 में चौदह गुणा बढ़कर 1,01,101 करोड़ रुपए पहुंच चुका है। अंशुमन ! तुम्हें याद होगा कि झारखंड का पहला बजट सरप्लस था, जबकि आज का बजट कर्ज व ब्याज में डूबा हुआ है।

शायद इसीलिए अंशुमन चाहते हैं कि राजनीतिक घेराव पर लिखा जाए। पर किसको घेरोगे अंशुमन! जेएमए से पहली बार विधायक बने अर्जुन मुंडा को, जो बाद में भाजपा से 2,129 दिन मुख्यमंत्री रहे या सांसद विद्युत महतो को, जो विधायक तो रहे जेएमएम से, पर संसद के गलियारे में कमल फूल लेकर टहल रहे हैं। मैंने सुना है कि आजसू का गठन 1986 में निर्मल महतो, प्रभाकर तिर्की और सूर्य सिंह बेसरा ने किया था, किंतु आजसू के नाम का सत्ता सुख किसने भोगा, सुदेश महतो ने !

कहो अंशुमन ! किस किस पर इल्जाम लगाओगे और कितना घेरोगे ! पूर्व सांसद या यूं कहूं कि चर्चित सांसद शैलेंद्र महतो को घेरने जाओगे तो रिश्वत कांड की चर्चा करने की जरूरत ही नहीं केवल उनकी बदलती आस्था और बदलते चक्र की चर्चा काफी है। झामुमो से भाजपा फिर आजसू फिर कांग्रेस फिर जदयू फिर भाजपा फिर झारखंड उलगुलान पार्टी और अभी पता नहीं किस पार्टी में हैं। इसी बीच कभी लेखक तो कभी स्वामी श्री साईं मूर्ति के नाम से आध्यात्मिक गुरु के रुप में अवतार, इतना ही नहीं उन्होंने 'लोक अधिकार मोर्चा' के नाम से एक अलग राजनैतिक दल का गठन भी किया था।  

अंशुमन तुम भी तो झारखंड में जन्में हो! क्या दुःखी नहीं हो! मुझे पता है तुम ही नहीं हर झारखंडी तब तब शर्मिंदा होता है जब जब बात यहां की राजनीति की होती है। क्योंकि यहां के राजनेताओं की ना तो कोई नीति है और ना नीयत ! ना तो यहां किसी नेता की किसी पार्टी विशेष के प्रति स्थायी आस्था है और ना सत्ता को चुनौती देने की क्षमता। यहां तो राजा पीटर जैसे नेता हैं, जो कभी तो मुख्यमंत्री रहते दिशोम गुरु शिबू सोरेन को विधानसभा चुनाव हराने का माद्दा रखते हैं और कभी एनआईए के द्वारा गिरफ्तार होकर वर्षों जेल की शोभा बढ़ाते हैं।

अंशुमन ! क्या घेराव करोगे इनका, जो खुद का बचाव नहीं कर सकते। जनवरी 2005 में झारखंड के भगत सिंह कहे जाने वाले बेहद चर्चित जन नेता महेंद्र सिंह को गोलियों से भून दिया जाता है। वहीं मार्च 2007 में सांसद सुनील महतो को सरेआम सार्वजनिक मंच पर चढ़कर मार दिया जाता है। अक्टूबर 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी सहित उन्नीस लोगों का नरसंहार कर दिया जाता है। तो वहीं वर्ष 2008 में मंत्री रमेश सिंह मुंडा को गोली से छलनी कर दिया जाता है। अब कहो अंशुमन ! जिस राज्य में विधायक, मुख्यमंत्री का बेटा, सांसद और कैबिनेट मंत्री की हत्या कर दी जाए, उस राज्य का क्या राजनीतिक घेराव करोगे मित्र!

अजी ! झारखंड में राजनैतिक संगठनों के हालात यह है कि  यहां जनाधारविहीन संगठनकर्ता पार्टी चलाया करते हैं। झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां की जनता चुनावों में राजनैतिक पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों यानी पार्टी नेतृत्व को नकार दिया करती है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बालमुचू और सुखदेव भगत को जनता चुनावी नदी के किनारे छोड़ चुकी है वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा और दिनेशानंद गोस्वामी चुनावी शतरंज में पीट चुके हैं और तो और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मु को तो ऐसी हार मिली कि वे अपनी सीट में 12वें स्थान पर चले गए थे। हां यह अलग बात है कि राजनीति की 'गिनीज बुक ऑफ इंडियन रिकार्ड्स' बनाई जाए तो उसमें कई पन्ने झारखंड को समर्पित कर देने होंगे। हमारे पास रिकार्ड्स भी अजीब हैं, चाहे निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाने का रिकार्ड हो या विधानसभा के एक टर्म में चार चार मुख्यमंत्री बनाने और राष्ट्रपति शासन झेलने का रिकार्ड अथवा मुख्यमंत्री रहते चुनाव हारने की हैट्रिक बनाने का रिकार्ड। मुख्यमंत्री रहते झारखंड के चुनावी मैदान में शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास, तीनों को शिकस्त मिली। हालांकि सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री देने का रिकार्ड भी इसी राज्य ने बनाया है।

अंशुमन यह झारखंड है! जिस अलग राज्य के गठन के लिए हजारों लोगों ने अपनी जवानी दांव पर लगा दी, उन्हें मिलते हैं तीन चार हजार रुपए और उन आंदोलनकारियों को चिंहित करने के लिए बनता है 'झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग', जिसके सदस्य भोगते हैं लालबत्ती का सुख।

अंशुमन ! राजनीतिक घेराव वहां संभव है जहां राजनेता हों या राजनीत हो किंतु जहां ना नीति हो, ना नियम, ना निगरानी, वहां किस का घेराव! इसकी विधानसभा की सालगिरह के मंच पर कवि कुमार विश्वास को लाखों रुपए देकर बुलाया जाता है और तुम्हारे जैसे स्थानीय साहित्यकारों को आमंत्रण तक नहीं भेजा जाता। झारखंड एक ऐसा राज्य है जो 22 वर्षों में साहित्य अकादमी का गठन ना कर सका। झारखंड ऐसा राज्य है जहां 32 जनजातियां हैं, इन सबकी भाषाएं अलग-अलग हैं, पर जनजातीय शोध व साहित्य प्रकाशन के लिए ना कोई स्कीम, ना सोच। अब बताओ अंशुमन जब इतिहास ही नहीं लिखा जाएगा तो संस्कृति कैसे बचा पाओगे। इस राज्य की राजनीति को कितना घेरोगे अंशुमन! कितना घेर पाओगे। कितना सफल हो पाओगे। असंभव !

संदीप मुरारका
जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार
जमशेदपुर, झारखंड
9431117507
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श्री हनुमान चालीसा (मायड़ भाषा में अनुवाद सहित)

॥ जय विंदायक जी महाराज ॥
मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला, सूनो लागै थार ॥

*श्री हनुमान चालीसा*
*राजस्थान के प्रसिद्ध हनुमान जी के रूपों का दर्शन एवं मायड़ भाषा (मारवाड़ी) में हनुमान चालीसा का अनुवाद*

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

मायड़ भाषा - म आपका गुरु महाराज क श्री चरण कमलां की धूल स आपका मन रूपी दर्पण ण पवित्र कर क भगवान रामजी क निर्मल यश को बखान करूं हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम अर मोक्ष ण देण वालो ह।
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

मायड़ भाषा - हे पवन कुमार! म थारो सुमिरन करूं हूं। थे तो जाणों ही हो कि मेरो शरीर अर बुद्धि निर्बल ह। मनअऽऽऽ शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि अर ग्यान दिज्यो। मेरअऽऽऽ दुख अर दोष को नाश कर दिज्यो।
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥१॥

मायड़ भाषा - श्री हनुमान जी! थारी जय हो! थारो ग्यान अर गुण अथाह ह। हे कपीश्वर! थारी जय हो! तीनों लोकां स्वर्गलोक, भूलोक अर पाताल लोक में थारी कीर्ति ह।
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥२॥

मायड़ भाषा - हे राम दूत !  हे पवन पुत्र ! हे अंजनी का लाला ! थार अ समान कोई दूसरो बलवान कोणी।
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

मायड़ भाषा - हे महावीर ! हे बजरंग बली! थे विशेष पराक्रम वाला हो। थे खोटी बुद्धि सूं दूर करो हो अर चोखी बुद्धि वालां क साग अ रह्या रो हो।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा॥४॥

मायड़ भाषा - सालासर म विराज्या हनुमान जी ! थे सोना का रंग, सुंदर कपड़ा, काणा म कुंडल अर घुंघराला बालां सूं सुशोभित हो।
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हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥५॥

मायड़ भाषा - मेहंदीपुर म विराज्या बालाजी ! थार अ हाथ म बज्र अर ध्वजा ह अर कांधा प मूंज की जनेऊ की शोभा ह ।
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥६॥

मायड़ भाषा - हे शंकर का अवतार! हे केसरी नंदन! थार अ पराक्रम अर महान यश की वंदना सगलो संसार र् ह।
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥७॥

मायड़ भाषा - सरिस्का म लेटेड़ा पांडुपोल हनुमान जी ! थे प्रकांड विद्वान हो, थे गुणवान अर कार्य कुशल हो। रामजी को काम करण क खातिर थे सदा आतुर रहौ ।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

मायड़ भाषा - सरदारशहर म सिंहासन प विराज्या इच्छापूर्ण बालाजी ! थे बड़ा मन सूं भगवान रामजी की कथा सुणो हो। रामजी, देवी सीता अर लखनलाल सदा थार अ हृदय में निवास कर् अ
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

मायड़ भाषा - लक्ष्मण डूंगरी म बैठ्या खोले आला हनुमान जी ! थे आपको भोत छोटो सो रूप धारण र् सीताजी ण दिखलाया था अर भयंकर रूप धर र् लंका ण जलाया था।
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भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥

मायड़ भाषा - सामोद की पहाड़ी प खड्या वीर हनुमान ! थे बड़ो विकराल रूप धारण कर राक्षसां ण मारया था अर प्रभु रामजी को काज संवारया था।
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥११॥

मायड़ भाषा - जयपुर माय चांदपोल किंवाड़ क पास बैठ्या हनुमान जी ! थे संजीवनी बूटी लाकर लखनलाल न जीवा दिया, जिसअऽऽऽ  राजी होकर रामजी थाण हृदय सूं लगा लिया।
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रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥१२॥

मायड़ भाषा - जोधपुर म विराज्या घंटियाला बालाजी !
भगवान रामजी थारी भोत प्रशंसा किया अर बोल्या कि 'थे भरत की जईयां ही आपारां भाई हो'।
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥

मायड़ भाषा - सीकर म विराज्या दो जांटी बालाजी ! रामजी थाण बार बार हृदय स लगाता अर बोल्या कि 'थारो जश् हजारां मुंडा स गायां जाण जोग्य ह।'
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

मायड़ भाषा -  धौलपुर में विराज्या किले आला हनुमान जी ! रामजी आगअऽऽऽ कह रहया ह कि सनकादिक ऋषि याणी सनत, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार अर ब्रह्माजी, देवर्षि नारद, मां सरस्वती, शेषनाग सहित सगला देवी देवता थारो गुणगाण  कर् अ।
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जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥१५॥

मायड़ भाषा - भरतपुर म विराज्या वनखंडी हनुमान !
चाहे यमराज हो या कुबेर या दसूं दिक्पाल या कोई कवि या कोई विद्वान पंडित ही क्यूं न हो, कोई भी थारअऽऽऽ यश को सगलो बखान कोणी कर सक्अ।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥१६॥

मायड़ भाषा - बांसवाड़ा म विराज्या बोरवट हनुमान बावसी ! थे सुग्रीव न रामजी स मिलाकर, बीक् अ ऊपर भोत बड़ो उपकार किया, जी कारण ही बो राजा बन सक्यो।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥१७॥

मायड़ भाषा - लक्ष्मणगढ़ क श्रीजी मंदिर दानवदलन हनुमान ! विभीषण थारो दियो हुओ ग्यान को पालन कियो, जी कारण ही बो लंका को राजा बन सक्यो, या बात सकल संसार जानअऽऽऽ ह।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥

मायड़ भाषा - नवलगढ़ म हनुमानगढ़ बालाजी ! सूरज जो आपणी धरती स एक जुग, हजार योजन की दूरी पर ह, थे बालपणा म, खेल खेल म, बठे पहुंच ग्या और सूरज ण मीठो फल समझ कर मुंह म निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥१९॥

मायड़ भाषा - चित्तौड़गढ़ म बैठ्या होड़ा हनुमान जी !
थे प्रभु रामजी की अंगूठी मुंह म रखकर समुद्र ण लांघ दिया, इमअऽऽऽ कोई आश्चर्य की बात ही कोणी।
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

मायड़ भाषा - बीकानेर आला हे पूनरासर बालाजी !
संसार म जितणो भी कठिन स कठिन काम हो, थारी कृपा सूं आसान हो जाया कर हअऽऽऽ।
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥२१॥

मायड़ भाषा - जैसलमेर म बैठ्या श्री गजटेड हनुमान !
थे रामजी क द्वार की रखवाली करो हो, थारा हुकम का बिणा कोई अंदर कोणी जा सक्अऽऽऽ। या यूं कहवां कि थाण राजी किये बिना रामजी की किरपा कोणी हो सक्अऽऽऽ।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥

मायड़ भाषा - सवाईमाधोपुर क तेलन पंसेरी बालाजी !
जो भी भगत थारी शरण म आव ह, सगला सुख ही सुख प्राप्त कर ह। जब थे ही रक्षा करण वाल्या हो, तो फिर कोई को के ड़र ॥
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥

मायड़ भाषा - श्री गंगानगर क खेजड़ी हनुमान जी !
थारो तेज कोई दूसरो कोणी सहन कर सक् , थे खुद ही आपको तेज रोक सको हो। थारी गर्जना सूं तीनों लोक कांप उठ् अ।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

मायड़ भाषा - हे महावीर हनुमान ! जठे भी थार नाम को उच्चारण होया कर ह, बठे भूत पिशाच आ ही कोणी सक् अ।
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥

मायड़ भाषा - हे वीर हनुमान ! थार नाम को जाप करण सूं सगला रोग दूर हो जाया करअ अर सगळी पीड़ा भी मिट जाया कर् अ।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी महाराज ! जीक् मन म, जीकी हर आदत म, जीकी बोली म, जीक् ध्यान म केवल थे ही रह्या करो, बीक् कोई कष्ट आ ही कोणी सक्अ, थे बीण् सारा संकट सूं  छुड़ा लिया करोओ हो।
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

मायड़ भाषा - उदयपुर म विराजमान हे मंशापूरण बालाजी ! रामजी राजा भी ह अर तपस्वी भी ह, रामजी सबकुछ करण म सक्षम ह, पर उनका सगला काम सहज करनअ वाला थे ही हो।
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

मायड़ भाषा - झालबाड़ा म बैठ्या कामखेड़ा बालाजी!
थारअ भगतां की जो भी इच्छा हो, थे बीण् जीवन में बांकी सोच स कई गुणा फल प्रदान करो हो।
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

मायड़ भाषा - बाड़मेर की हनुमान टेकड़ी म विराज्या भगवान ! सतयुग, त्रेता, द्वापर अर कलियुग, चारों जुगां म थारो जश् फैल रह्यो ह, थारी कीर्ति सूं सारअ जगत म उजियारो ही उजियारो हअ।
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साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

मायड़ भाषा - हे रामजी का दुलारा हनुमान ! थे दुष्ट राक्षसां को नाश करो हो अर साधु संता की रक्षा करो हो।
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

मायड़ भाषा -  जालौर जिला म बैठ्या कानिवाड़ा हनुमानजी ! थे कोई ण भी आठूं सिद्धि अर नौ निधि प्रदान कर सको हौ, क्यूंकि थाण माता जानकी सूं यो वरदान प्राप्त ह।
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

मायड़ भाषा - हे रामभक्त ! थे सदा रामजी की सेवा म रहौ हौ, थार अ पास राम नाम की ओषधी ह अ, जो हर कष्ट ण दूर कर सक् अ।
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी ! थांरी भक्ति सूं रामजी की की किरपा मिल जाया कर् अ अर सगला जनम का दुखां स मुक्ति मिल जाया कर् अ।
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अंत काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥

मायड़ भाषा - हे बालाजी ! थारो भगत अंतिम समय आण पर भगवान रामजी क धाम म जाव ह अर फिर सूं धरती पर आव ह तो रामभक्त क रुप म प्रसिद्धि पाव ह।
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

मायड़ भाषा - हे अंजनीपुत्र हनुमान ! थारी सेवा पूजा करण सूं सगला सुख मिल जाया कर् ह, फेर बाकी देवी देवतां ण पुजबा की के दरकार ह।
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

मायड़ भाषा - हे पवनपुत्र वीर हनुमान ! जो भी थारो सुमिरण कर् ह, बीक् सगला कष्ट सगळी पीड़ा मिट जाया कर् ह।
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

मायड़ भाषा - गोस्वामी तुलसीदास जी कह रह्या ह कि हे हनुमान जी ! थारी जय हो ! जय जयकार हो ! थे माह पर भी बइंयां ही किरपा करज्यो, जंइंयां गुरु महाराज पर किया।
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जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

मायड़ भाषा - भीलवाड़ा म विराज्या खेड़ा का बालाजी !हनुमान चालीसा का ई पाठ ण जो सौ बार पढ़सी, बीक् सारा कष्ट दूर हो जासी अर बीण् जीवन में घणी सुख संपत्ति प्राप्त होसी।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

मायड़ भाषा - विराटनगर क भीम डूंगरी पर विराज्या बिणा पूंछ आला वज्रांगदेव हनुमान ! जो या हनुमान चालीसा पढ़ ह, बीण् सिद्धि प्राप्त होया कर अ, ई बात का साक्षी स्वयं भगवान शिव ह अ।
**** 

तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥४०॥

मायड़ भाषा - हे हनुमान जी! गोस्वामी तुलसीदास जी तो भगवान रामजी का भगत ह अ, थांरा सूं प्रार्थना ह कि थे बांका हिवड़ा म सदा निवास करो।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥

मायड़ भाषा - हे पवन कुमार ! हे संकट मोचन !  हे मंगल करण आला ! हे देवों का देव बालाजी ! थे भगवान रामजी, मईया सीता अर लखनलाल क सागअ म्हारा हिवड़ा म सदा निवास करो।

संदीप मुरारका
लेखक
जमशेदपुर
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