Thursday, 26 October 2017

नारी की पीड़ा

नारी की पीड़ा समझने के लिये ,
स्वयं नारी बनना पड़ता है ।

भगवती लक्ष्मी को भी सीता बन कर ,
धरती पर उतरना पड़ता है ।

दो साल की नव विवाहिता को वनवास,
जँगल में भटकना पड़ता है ।

भगवान श्रीराम की पत्नी होने पर भी ,
राक्षस के घर रहना पड़ता है ।

सती साध्वियों को भी इस धरती पर ,
अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है ।

हर परीक्षा, गवाह , सबूतों के बाद भी ,
घर से निकलना पड़ता है ।

और फिर , फटती है छाती नारी की जब ,
धरती को भी फटना पड़ता है ।

नारी की पीड़ा समझने के लिये ,
स्वयं नारी बनना पड़ता है ।

(डॉ नूपुर तलवार को अपनी ही बेटी 'आरुषि' की हत्या के आरोप में पहले दंडित , 52 माह जेल एवं समाजिक अपमान की पीड़ा के सहन कर लेने के बाद "निर्दोष" करार दिये जाने एवं बरी किये जाने पर उस निर्दोष पीड़ित नारी को समर्पित पँक्तियाँ )

संदीप मुरारका
दिनांक 26. 10.2017 गुरुवार
कार्तिक शुक्ला षष्ठी विक्रम संवत् 2074

Monday, 2 October 2017

हिंदू धर्म और भारत


आओ प्रारंभ करें वार्ता , इस देश के पुरातन धर्म की ,
आओ प्रारंभ करें यात्रा , भारतवर्ष के हर राज्य की ।

उतराखंड , ओडिशा , तमिलनाडु और गुजरात ,
करें भ्रमण जो , हो उसे चारों धाम के दर्शन प्राप्त ।

झारखंड , महाराष्ट्र, आँध्रा , उत्तर औ मध्य प्रदेश,
द्वादश ज्योर्तिलिंग हैं बसे भिन्न भिन्न आठ प्रदेश ।

माँ के शक्तिपीठ बने हैं काश्मीर की घाटी में ,
त्रिपुरा , बंगाल, पंजाब, हिमाचल की वादी में ।

असम में , हरियाणा में , राजस्थान में , बिहार में ,
मेघालय व शंकराचार्य स्थापित पीठ कर्नाटक में ।

केरल में चलता पद्मनाभस्वामी भगवान विष्णु का राज ,
देवपानी देवी नागालैंड में, मणिपुर गोविंद जी का प्रान्त ।

छतीसगढ़ में विराजती माँ अम्बिका महामाया गौरी ,
हर राज्य की सीमा को बांधती धर्म की अटूट डोरी ।

सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल, गोवा या तेलंगान ,
सभी उनतीस राज्यों में फैला हिंदू धर्म का यशोगान ।

संदीप मुरारका
दिनांक 2 अक्टूबर'17 सोमवार
आश्विन शुक्ला द्वादशी विक्रम संवत् 2074

Tuesday, 25 July 2017

शेर

हम शाल ओढ़ते उढाते रह गये ।
वो बिना कफ़न बाढ़ में बह गये ॥

दिनांक 25 जुलाई 2017 जमशेदपुर की बाढ़ और समाजसेवकों की अवस्था पर टिप्पणी शेर के रुप में

संदीप मुरारका

Sunday, 23 July 2017

काला कोट

खेतों को लूटने से बचाता है काला कोट
गरीबों को न्याय दिलाता है काला कोट ।

कहीँ हाथ उठाने पे भी सलाखों के पीछे पहुँचाता,
कहीँ फुटपाथ पे सोये गरीब के हत्यारे को बचाता,१
काला कोट ।

कहीँ सिक्के चुराने वाले को हथकड़ी लगवाता ,
कहीँ करोड़ों के अपराधी को भी विदेश भगाता ,२
काला कोट ।

कहीँ विधवा को भी उसका हक दिलवाता ,
कहीँ निर्भया के बलात्कारी को बचा लाता ,३
काला कोट ।

कहीँ झोपड़ियों में बिजली चोर को सजा दिलाता,
कहीँ करोड़ों के कर चोरों को बाइज्ज़त बरी कराता,४
काला कोट

कभी बरी अपराधी को खींच कोर्ट में ले आता ,५
तो कभी अपराधी को साफ बचा कर ले जाता , ६
काला कोट ।

किसी को पेरौल पे गाहे बेगाहे बाहर ले आता , ७
किसी को एक जमानतदार भी नहीँ दिला पाता ८
काला कोट ।

डाक्टर इंजीनियर आई ए एस के दस्तावेजों पर ,
दस दस रुपये ले करवाता अनुप्रमाणित हस्ताक्षर,९
काला कोट ।

कोई टाईपिस्ट को भी ससमय पैसे नहीँ चुका पाता,
कोई मिनट के हिसाब से क्लाइंट का बिल बनाता , १०
काला कोट ।

अधिवक्ता मित्रों को पूरे आदर के साथ समर्पित -

संदीप मुरारका
दिनांक 17 जुलाई सोमवार
विक्रम सम्वत 2074 श्रावण मास 8 कृष्ण

१सलमान खान
२विजय माल्या , ललित मोदी
३नाबालिग किशोर
४ अहमदाबाद के आयकर मामले Jag Heet, Jasubhai, Liverpool, Dharendra, Prafull Akhani
५ जेसिका हत्यारा मनु
६ सुनन्दा पुष्कर थरूर कांड
७ संजय दत्त
८ गरीब जिनका कोई रिश्तेदार ना हो
९ नोटरी पब्लिक
१० नरीमन, सिंघवी , जेटली ,जेठमलानी , साल्वे

Sunday, 16 July 2017

लवकुश

सजा अयोध्या नगरी का भव्य राजदरबार ,
बैठी तीनों मातायें , गुरुजन , राजा जनक ,
मित्र सुग्रीव , भ्राता लक्ष्मण,भरत, शत्रुघ्न
भक्त हनुमान और जनता हजारों हजार ।

श्वेत चँवर,स्वर्ण सिंहासन, देदिप्यमान
कुकुत्स्थकूल भूषण , दशरथ नन्दन ,
रघुकूल तिलक, वीर धनुर्धारी ऐश्वर्यवान
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम विराजमान ।

मुनीकुमारों का वेष , हाथों में वीणा ,
जिह्वा पे बैठी मानो माँ शारदे स्वयं ,
कोयल से मीठे स्वर में गाते बालक ,
महर्षि वाल्मीकि का रचा महाकाव्य।

राम का दरबार , राम की गाथा ,
सबकी आँखे नम, चेहरा मौन है,
कौंध रहा सवाल सबके ह्रदय में ,
आखिर ये दोनों गायक कौन है ?

जानकी जनकनंदिनी, दशरथपुत्रवधू ,
भगवती सीता की कथा जब सुनाई ,
पतिव्रता सतीसाध्वी की भूल क्या थी ,
राम की सभा भी तय नहीँ कर पायी ।

सुन सभा में सारे लोग जड़ हो गये ,
रुंध गये गले, बहने लगी अश्रुधारा ,
शिष्य वाल्मीकि के, माँ है जानकी
पिता श्रीराम , लवकुश नाम हमारा ।

गुरुजनों के हाथ आशिष देने लगे ,
दादी कौशल्या के होंठ फ़ड़कने लगे ,
चाचा हुये सारे ह्रदय से बहुत प्रसन्न ,
हनुमान ने किया मन ही मन वंदन ।

छोड़ सिंहासन , राजा राम खड़े हुये ,
सब पिता राम की ओर देखने लगे ,
कि सोचा सभी ने , अब दौडेगें प्रभु ,
और अपने पुत्रों को गले से लगायेंगे ।

राम तो राजा ठहरे ,पहले राजधर्म निभायेंगे ,
कड़कने लगी बिजली , फट गया आसमान ,
जब माँगा श्रीरामचंद्र ने पुत्र होने का प्रमाण ?
लवकुश की गाथा सिखाती जीवन नहीँ आसान ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 16 जुलाई'17 रविवार
श्रावण मास कृष्ण 7 विक्रम सवंत 2074

Sunday, 28 May 2017

द्वादश ज्योतिलिँग

बोलबम बोलबम के नारों से देवघर गूँज जावे,
जब कांवरिया बाबा वैघनाथ को जल चढावे ।

गुजरात के सौराष्ट्र में भव्य मंदिर सोमनाथ का ,
कहते हैं कि पहला ज्योतिर्लिंग है ये संसार का ।

चार तीर्थों में एक , श्रीकृष्ण का द्वारिका धाम ,
समीप नागेश्वर महादेव की आरती सुबह शाम ।

नासिक में त्र्यम्बकेश्वर मंदिर को जो भक्त जावे ,
ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों के लिंगरूपी दर्शन पावे ।

मोटेश्वर महादेव का होता यहाँ पूजन अर्चन ,
पुणे में विराजते भीमाशंकर रुप में भगवन ।

महाराष्ट्र के सम्भाजी का प्रसिद्ध घृष्णेश्वर मंदिर ,
ऐलोरा गुफाओं के समीप स्थित अंतिम ज्योतिर्लिंग ।

हैदराबाद श्रीसेल्लम की कृष्णा नदी में कर स्नान , मल्लिकार्जुन मंदिर में लगाओ महादेव का ध्यान ।

तमिलनाडु में रामेश्वरम के संस्थापक श्रीराम ,
राम पूजे महादेव को , महादेव पूजे प्रभु राम ।

उज्जैन के दक्षिणमुखी महाकालेश्वर का भव्य वर्णन ,   किया महाकवि कालीदास ने मेघदूत में मनोहर चित्रण ।

मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में बहती पावन नदी नर्मदा , मँधाता द्वीप पर पिनाकी ओंकारेश्वर का निवास सदा ।

उतराखंड हिमालय के शिखर पर विराजते केदारनाथ, 
  पाँच नदियों के संगम पर बैठे पहाडियों बीच भोलेनाथ ।

बाबा विश्वानाथ की नगरी में तुलसी, कबीर, प्रेमचंद, 
रविदास जयशंकर बिस्मिल्लाह मालवीय औ' गंगा तट ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 28 मई 2017 रविवार
ज्येष्ठ शुक्ल 3 विक्रम संवत 2074

सती का सतीत्व

हाथियों का सा बलशाली वानरराज बाली महान ,
दानवो को मारने वाला योद्धा वीर औ' बुद्धिमान ।

ललकारा जब सुग्रीव ने जाकर उसके द्वार ,
समझाने लगी पत्नी तारा उसको बारम्बार ।

किया वादा बाली ने अर्धांगिनी से ,
राजधर्म तो मैं अवश्य निभाउंगा ,
ललकारे कोई यदि द्वार पे आकर ,
तो उसे सबक अवश्य सीखाउँगा ,
पर बात तुम्हारी मानता हूँ ,
है सुग्रीव चूँकि भाई मेरा ,
नहीँ उसको मार गिराउंगा ,
करो विश्वास प्रिये तुम मेरा ,
जाने दूँगा जीवित वापस उसे ,
रण जीत शीघ्र लौट आऊँगा ।

तारा के चेहरे पे बूँदें पसीने की बह रही ,
चिंता की लकीरें माथे पे स्पष्ट दिख रही ।

कहा बाली ने अब चिंता क्यों प्रिये ?
साथ आये हैं राम लक्ष्मण, इसलिये !
अरी जड़ मूर्ख नारी , वो प्रभु हैं ।
उनसे कैसी शत्रुता हमारी ?
नहीँ भय मुझे श्री राम से ,
क्योंकि वो हैं धर्मात्मा ,
कर्तव्यकर्तव्य का है ज्ञान उन्हे ,
नहीँ अपराधी उनका मैं ,
फ़िर वे मुझसे क्यूँ रुठेंगे ?

सुग्रीव बाली के युध्द के दौरान ,
छिप कर खड़े हो गये भगवान ,
चला दिया पेड़ की ओट से बाण ,
चीत्कार उठा बाली वीर महान ।

टूटा विश्वास, ह्रदय में पीड़ा ,
रक्तरंजित भूमि पर गिर पड़ा ,
एकटक देख रहा श्रीराम को ,
आँखो से बह उठी अश्रुधारा ,
मानो पूछ रहा हो प्रभु से कि ,
रचा ये कौन सा दंड विधान ।

निरपराध समझता बाली स्वयं को ,
वह श्री राम को उलाहना देता रहा ,
ओट में छिप कर बाण चलाने पर ,
प्रभु की प्रभुता पर शक करता रहा ।

धैर्यवान शांत श्रीराम समीप आये ,
कहा हे बाली तू था वीर बुद्धिमान ,
राज किष्किन्धा का प्राचीन महान ,
रावण काँख में तेरी खेल चुका है ,
कई राक्षसो को तू मसल चुका है ,
अंत:पुर में सुंदर वानरी कई हजार ,
तारा से शोभा तेरे महल की अपार ,
फ़िर किया कैसे तूने ऐसा अनाचार ,
निकाला भाई को अपने राज्य से ,
सम्पति पद से भी तूने च्यूत किया ,
पर छू कैसे पाया था रूमा* को तू ,
रिश्ते को तूने कलंकित किया ,
तू मेरे बाणों से लहूलुहान हो भले ,
पर तुझे मैने नहीँ, तेरे कर्मों ने मारा,
तूने एक सती का सतीत्व भ्रष्ट किया ।

*रूमा - सुग्रीव की पत्नी का नाम

संदीप मुरारका
दिनांक 28 मई 2017 रविवार
ज्येष्ठ शुक्ल 3 विक्रम संवत 2074

Saturday, 1 April 2017

केशव की वंशी

छेड़े कान्हा जब वंशी की तान रे ,
मच जावे उथल पुथल वृंदावन में ,
मोहन के बड़े तीखे हैं ये वाण रे ।

बह गये दूध गायों के थन से ,
रह गये फ़िर भूखे प्यासे बाछे सारे ,
आज फ़िर पीटेंगे बाल ग्वारे ,
बड़ी महँगी यारी तेरी मोहन प्यारे ।

जल गयी रोटियाँ तवों पर ,
ढुल गये छाछ के भरे प्याले ,
हाय क्या खिलायेगी ग्वालीने ,
घर लौटेंगे ग्वाले जब थके हारे ॥

काजल बह गया गालों पर ,
होठों पे अलता लगा बैठी ,
गिरा आँँचल किसी गोपी का ,
तो कोई मुन्डेर पे जा बैठी ।

कि जमुना भी चाल भूल गई ,
मछलियाँ भी राह भटक गई ।
गोवर्धन भी उधर सरकने लगा ,
बादल रिमझिम बरसने लगा ।

किया केशव ने सबको बदनाम ,
बिना छुए लूट ली सबकी लाज ,
अच्छी नहीँ गोविंद तेरी ये बात ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 2 अप्रील 2017 रविवार
चेत्र शुक्ल 6 विक्रम सम्वत 2074






जिंदगी शहर हो गयी

रोज़मर्रा की रेल्लम रेल , ठेलम ठेल,
जिंदगी की भागा भागी , आपा धापी ॥

टेढ़ी मेढि चाल चलते ऑटो रिक्शा ,
हाथ दिखाते ही रुक जाती है बस ॥

मिलती नहीँ यहाँ फुर्सत खाने की भी ,
हो रहे सबके सब बेवजह व्यर्थ व्यस्त ॥

ऊँची ऊँची बिल्डिंगें , बड़े बड़े मॉल ,
गंदी गंदी नालियाँ ,गंदी गंदी गालियाँ ॥

बड़ी बड़ी गाडियाँ, बड़े बड़े लोग ,
मन के खाली , सूट बूट का बोझ ॥

जलने को कतार में सजी अर्थियाँ,
ऑफीस को लेट होती उनकी पीढियाँ ॥

ना भौंरे ना मधुमक्खी ना फूलों का रस ,
बेवजह जिंदगी ने लगा रखी कशमकश ॥

बहते बहते हाय , नदी भी यहाँ ज़हर हो गयी ,
यूँ लगता है मानो, जिंदगी अब शहर हो गयी ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 8 जनवरी' 2017 रविवार
सम्वत 2073, पौष शुक्ल दशमी

बुद्ध

रात्रि के प्रहर में
छोड़ मोह माया का संसार ,

निकल पड़े गौतम
करने बुद्ध जीवन को साकार ,

खोल दिये कुंडल
गले का हार औ' शृंगार ,

घुटने टेके बैठा सारथी
समक्ष उसके उठाई तलवार

काट डाले घुंघराले केश अपने
भेज दिया यशोधरा को उपहार ,

लो भेंट मेरी ओर से अंतिम बार
करती रही जिन लटों से तुम प्यार ,

और उछाल दिये कुछ केश
उपर , आकाश के उस पार ,

कि न छूना धरती को तुम
प्रारम्भ हुआ बुद्ध का संसार ।

आम्रपाली का आतिथ्य स्वीकार
पहुँचे भोजन को वेश्या के  द्वार ,

ढीले ना छोडो वीणा के तार
कसो ना इतना कि टूटे बार बार ,

धम्मपद ग्रंथ को दिया आकार
किया बहुजन हिताय का प्रचार ,

हे महात्मा, हे महामानव, हे गौतम
करो आप मेरा प्रणाम स्वीकार ,

हो तुम नबी या कोई अवतार ,
हे बुद्ध आपको बारम्बार नमस्कार ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 1अप्रील 2017 शनिवार
चेत्र शुक्ल 5 विक्रम सम्वत 2074

Monday, 13 March 2017

होली

होली के रंग में रंगा है कोई ,
कोई नशे में ही मशगूल है ।

चढ़ा नशा किसी को भंग का ,
कोई सत्ता के नशे में चूर है ।

हो रहा दहन गोबर के उपलों काठ का ,
पर राक्षसी होलिका अब जलती नहीँ ।

ना प्रह्लाद जैसे भक्त बच पाते है ,
ना ही नरसिंह अब बचाने आते हैं ।

अब अबीर गुलाल कम उड़ते हैं ,
ताश पत्तों के दौर ज्यादा चलते हैं ।

अब ठंडाई नहीँ पीसवायी जाती है ,
शराब की बोतलें खुलवाई जाती है ।

मिलन का रहा नहीँ अब त्योहार ,
बजाने गाने का बढ़ गया कारोबार ।

ढप चंग गीतों की मस्ती हुई धूमिल ,
इवेंट वालों की सजती फूहड़ महफिल ।

उपाधी वितरण से लोग ऊबने लगे ,
फेसबुक पर ही सबको विश करने लगे ।

महामूर्ख सम्मेलन में अब कोई जाता नहीँ ,
कवि सम्मेलन में दूसरा दौर आता ही नहीँ ।*

त्योहार नहीँ ये अब केवल सेलिब्रेसन है ,
किसी का हॉलिडे, किसी का सीजन है ।

दौर चला है अब पानी बचाने का ,
याद आता दौर वो ड्रम में डूबाने का ।

काश वो दिन फ़िर लौट आते ,
फटते कपड़े, पर दिल जुड़ जाते ।

उछलता कीचड़ भले सड़कों पर ,
पर मैल दिल के सारे मिट जाते ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 12 मार्च 2017 रविवार
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 2073

*पहले दो दौर कवितायें पढी जाती थी , जिसमे केवल गम्भीर श्रोता रुकते थे एवम कवि अपनी श्रेष्ठ रचनओं का पाठ करते थे ।

Wednesday, 11 January 2017

चाँद

लोग कहते हैं कि वो रोज़ आया करता था ,
पर मैंने नहीँ देखा उसे काफी दिनो से ,

सच्ची ! या तो वो किसी डर से छिप जाया करता था,
   या मेरी छत छोड़ बाकियों के आया करता था ।

सच में पिछली कई रातें मैंने अँधेरों में बीता दी ,
उसके इंतजार में अपनी आँखे भी सुज़ा ली ।

पर हाँ , कल मिला वो ,
अब कोई शिकायत नहीँ मुझे ।
कहा उसने मुझे , अब रोज़ मिला करेगा ।

खुली महफिल में भी ,
साथ कभी कभी दिया करेगा ।

कह दिया मैंने भी उससे ,
ए चाँद ! यूँ ना रुठा कर ।
हो शिकायत कोई तुम्हे ,
तो सीधे मुझसे कहा कर ।
मिल बैठ बातो को हम सुलटा लिया करेंगे ।

समझौता हो चुका हमदोनो में अब ।
ए मयंक ,
माना कि प्रतिनिधि है तू समय का ।
पर दोस्ती का भी लिहाज कर लिया कर ।

ए निशापति ,
दोस्ती बचपन में खीर वाली याद कर लिया कर ।

माना कि तोड़े मैंने अनुशासन कई तेरे ।
पर तोड़ी थी उस समय प्यालियाँ कई तूने मेरी भी ।

ए शशि ,
उन अपराधों को तू भी तो दिल पे धरा कर ।

चल हटा , अब न रूठना ना मैं तुझको भुलुँगा ।
पर यार , मेरी ही खिड़की पर नहीँ ,
सबकी पर एक बार तू दिख जाया कर ।

सच तेरे बिना 'रात' बहुत काली होती है ।
अरे अमावस में तो , तैयारियाँ रहती है दिये की ।
पर बिन बताये ना आने से तेरे ,
रातें नरक सी मालूम होती है ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 11 जनवरी 2017 बुधवार
सम्वत 2073 पौष शुक्ल चतुर्दशी

Friday, 6 January 2017

ठकुरानी

विचित्र ये दुनिया , विचित्र है ये संसार ,
अप्रतिम सौंदर्य की मूर्ति थे श्रीकृष्ण ,
स्वयं भगवान श्री विष्णु के अवतार ।

बावजूद करना पड़ा प्रभु को अपहरण ,
करने रुक्मणि के साथ विवाह संस्कार ॥

सत्यभामा , सत्या , कालिंदी और मित्रविंदा,
बनी पटरानी लक्ष्मणा, जाम्बवन्ती औ' भद्रा ॥

भय मुक्त करने पृथ्वी को , किया नरकासुर का संहार , मुक्त हुई उसके बंधन से राजकुमारियाँ सोलह हजार ,
देकर स्थान पत्नी का, किया केशव ने सबका उद्धार ॥

अलग अलग महल हर रानी का , अलग अलग ठाट ,
गोविंद की लीलाओं से , द्वारका नगरी थी बाग बाग ।

खुश थी सभी रानियाँ, जनता की भी खुशियाँ अपार ,
रोज़ मनाते होली दिवाली , राजा प्रजा और रिश्तेदार ॥

द्वारका में मनता था उत्सव रोज़ , संगीत साज शृंगार ,
इधर रोती ब्रज की गोपियाँ, लूट गया था जिनका प्यार ॥

इधर गोपियाँ, उधर रानियां एक सौ आठ सोलह हजार ,
फ़िर भी अतृप्त मन , टूटा दिल, ह्रदय में शून्य आकार ।

कौन थी वो ? छिन लिया जिसने गोविंद का चैन ,
फीकी फीकी रहती जिसके बिना गिरधर की रैन ।

किया नहीँ विवाह उससे , दिया नहीँ अपना नाम ,
पर हर मंदिर में आज उसी के साथ दिखते श्याम ।

अधूरी है उसके बिना, गिरधर मुरारी की हर मूरत ,
सूना है हर मंदिर, जहाँ न हो उस प्रेयसी की सूरत ।

अजी! ठकुरानी थी वो बरसाने की, राधा उसका नाम ,
दुनिया दीवानी घनश्याम की , राधा के दीवाने श्याम ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 7 जनवरी'2017 शनिवार
सम्वत 2073, पौष शुक्ल नवमी

Thursday, 5 January 2017

विशुद्ध प्रेम

नाना उग्रसेन के मथुरा नगरी की शोभा आपार ,
थी बड़ी बड़ी हवेलियाँ औ' ऊँचे ऊँचे तोरण द्वार ।

वृंदावन था ठेठ गाँव, केवल गौएँ बाछे और ग्वाल,
रोज़ वही माखन, वही दही, वही चावल और दाल ।

मथुरा में तो हाय वासुदेव जी के ठाट ही निराले थे,
गहने तो गहने , वहाँ के तो कपड़े भी चमक वाले थे ।

यहाँ वृंदावन में वन वन भटकती गँवार ग्वालन गोपियाँ,
गले तुलसी, माथे मोरपंख, हाथ में बाँसुरी वाले कन्हैया ।

मथुरा नगर की सजी धजी सुंदर सुंदर नवयौवनाएँ,
वृंदावन में रहा करती थी बँजारिनो सी गोप बालायें ।

मथुरा की गलियों में, इत्र लगा युवतियाँ फिरा करती थी,
पर बाँसुरी कृष्ण की तो वृंदावन में ही बजा करती थी ।

कर ले सोलह शृंगार , भले मथुरा की कन्यायें,
रास लीला तो वृंदावन जी में ही हुआ करती थी ।

कपड़े , तन, खूबसूरती या पैसा जहाँ, वहाँ प्रेम कैसा ?
मन,समर्पण औ त्याग जहाँ, मिले प्रेम वहाँ कृष्ण जैसा ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 5 जनवरी'2017 गुरुवार
सम्वत 2073, पौष शुक्ल सप्तमी

नववर्ष अभिनंदन

बीत गये वर्ष बहुत सारे
कई आशायें बदली निराशा में

बदला बहुत कुछ
कहीँ रिश्ते बदले तो कहीँ नाते

कोई मित्र दगा दे गया
और कोई हँसने का मौका

बड़े अजीब थे वो कुछ महीने जब
आईना पहचानने से इन्कार करने लगा था

तब कुछ बढे थे कुछ हाथ इस ओर
यादों को सहेजे हुए पार हुआ साल

उम्मीदों को जगाते हुए
नई रोशनी नई किरण लाते हुए

आया फ़िर एक नया साल
लेकर नई सीख , नई मुस्कुराहट

स्वागत पूरे ह्रदय से ए नववर्ष तेरा
अभिनंदन वन्दन स्वीकार करो मेरा ॥

दिनांक 5 जनवरी 2017