Saturday, 19 November 2016

श्री विष्णु अवतार वंदन

आओ करें  वंदन श्री हरि के अवतार की ,
भगवान श्री विष्णु के रूपों की,आकार की ।

कराह उठी धरती जब, भक्त जब पुकार  पड़े ,
तुरंत दौडे चले आये नारायण स्वयं खड़े खड़े ।

सॄष्टि की रचना करने ,  ब्रह्मा जब उद्धत हुए ,
"सनकादि ऋषियों" के रुप में आप प्रकट हुए ।1

दिया मोक्ष हिरण्याक्ष कॊ , पृथ्वी का उद्धार किया ,
"वराह" रुप में  प्रभू  श्री हरि ने दूजा अवतार लिया ।2

लोक कल्याण के लिये रुप धरा "देवर्षि श्री नारद" का ,3
"नर नारायण" रुप में किया संकल्प धर्म स्थापन का ।4

सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हुये "कपिल" मुनी भगवान ,5
देवी अनुसूइया के गर्भ से जन्मे "दत्तात्रेय" भगवान ।6

आकूति पुत्र "यज्ञ" रुप श्री हरि ने सातवां अवतार लिया , 7
"ऋषभदेव" स्वरूप में प्रभु ने क्या क्या नहीँ सहन किया ?8

नास्तिक वेन के यहाँ "पृथु" रुप में श्री हरि अवतरित हुए  ,9
प्रलय से बचाने पृथ्वी को, "मत्स्य" रुप में प्रभु प्रकट हुए  ।10

"कच्छप" अवतार के रुप में प्रभु ने करवाया समुद्र मंथन,11
फ़िर प्रकट हुए भगवान "धन्वंतरि" लेकर अमृत कलशं ।12

"मोहिनी" अवतार में प्रभु ने देवताओं को कराया अमृतपान , हिरण्यकश्यपु मरे "नृसिंह" द्वारा,मिला प्रह्लाद को अभयदान ।

13 मोहिनी , 14 नृसिंह

"वामन" के आशीर्वाद से मिला राज़ सुतललोक का बलि को ,
"हयग्रीव" अवतार में श्री विष्णु रसातल से ले आये वेदों को  ।

15 वामन , 16 हयग्रीव

भगवान "श्री हरि" ने ग्राह को मार गज को तार लिया,17
"परशुराम" रुप  में प्रभु ने क्षत्रियों का सर्वनाश किया । 18

"महर्षि वेदव्यास" रुप में स्वयं महाभारत की रचना की , 19
ब्रह्मा की सभा में "हंस " अवतार में मोक्ष की व्याख्या दी ।20

अयोध्या में माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिये "श्री राम" 21
देवकी यशोदा के दुलारे मोर मुकुट  वाले "कृष्ण" घनश्याम 22

बुद्ध अवतार में जीव हिंसा से दूर रहने का दिया संदेश, 23
धर्म की पुनः स्थापना को आयेंगे "कल्कि" रुप में देवेश । 24

आते रहे हैं श्री हरि , करने धरा का उद्धार व  उपकार,
गौ अग्नि ब्राह्मण की हो सेवा ,लेंगे प्रभु फ़िर अवतार ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 19 नवम्बर 2016' शनिवार
सम्वत 2073, कार्तिक कृष्ण पंचमी

 

Tuesday, 15 November 2016

कृष्ण की विवशता

कलियुग के कृष्ण विवश हो उठे ,
करुणावश रुदन स्वर वो बोल  उठे ॥

सखा भाई शिष्य भक्त तुम प्रियवर ,
हे अर्जुन , कहो कहाँ बैठे हो छिपकर ॥

माना यहाँ कोई कुरुक्षेत्र नहीँ है ,
माना महाभारत का उद्घोष नही है ॥

ना पन्चाली का उपहास हुआ है ,
ना कुंती पुत्रों का अपमान हुआ है ॥

फ़िर खड़े क्यों ये लिये बिष बुझे तीर ,
न भीष्म न द्रोण न शकुनी अबकी अधीर  ॥

सुशासन सुयोधन युधिष्ठिर नहीँ गरजेगें ,
ना ही महाबली कर्ण अब शस्त्र उठायेगें ॥

ना अभिमन्यु का रुधिर बहेगा ,
ना ही अश्वत्थामा मारा जायेगा ॥

लेटने कॊ तीर शय्या पर ,कोई भीष्म तैयार नहीँ ,
अंधा बनकर जीना गांधारी कॊ अब स्वीकार नहीँ ॥

अरे कौन पूछेगा संजय तुमको ,
बर्बरीक विदुर की अब पहचान नहीँ ॥

कहो फ़िर क्यों करूँ पाठ मैं गीता का ,
हे गांडीवधारी, जब तुम हो ही नहीँ मैदान में ॥

क्यों दिखाउँ रुप अपना भयँकर मनोहर ,
अन्याय अधर्म के विरूद्ध कहो किसको उकसाऊँ ॥

सारथी बनाने कॊ जब तुम ही तैयार नहीँ ,
हे धनंजय , कहो किसके लिये सुदर्शन उठाउँ ॥

धरती भारत तुलसी गंगा और गीता ,
मातायें सभी फूट फूट कर रो रही हैं ॥

देख अवस्था पृथ्वी की अब रहा नहीँ जाता ,
भार शेषनाग देव से भी अब सहा नहीँ जाता ॥

धुर्व प्रह्लाद विदुर विभीषण द्रौपदी मीरा रहे नहीँ ,
अब तो अजामील के द्वारा भी मैं पुकारा नहीँ जाता ॥

हूँ जहाँ मैं , वहाँ कोई आता नहीँ ,
भीड़ लगी है जहाँ , वहाँ मैं जाता नहीँ ॥

गौ अग्नि ब्राह्मण तीनों के कण्ठ सूखे पड़े ,
इत्र गुलाब और रातों की जाग मुझको भाती नहीँ ॥

व्यासपीठ भी हुई दूषित कलंकित ,
कहो सव्यसाची अब मैं क्या करूँ ॥

कर रहा महसूस असहाय मजबूर लाचार ,
हे श्वेतवाहन , हो दूर विवशता ऐसा उपाय करो ॥

संदीप मुरारका
15 नवम्बर 2016 मंगलवार
सम्वत 2073 कार्तिक कृष्णा 1

Sunday, 6 November 2016

ये कैसा वंदन

ना जाने अनजाने मॆं खींच गई कैसे  एक बड़ी लकीर है ,
लेकिन यारो मेरी मानो, बड़ा प्यारा अपना ये कश्मीर है ।

मन्दिर खीरभवानी का यहाँ , मुस्लिम बनाते खीर जहाँ ,
खय्यामुद्दीन की मजार जहाँ , चढ़ाता हिंदू चादर वहाँ ॥

ये देश बड़ा विचित्र , हम लूटते पिटते यहाँ तक आये हैं ,
मुगलों अंग्रेजों ने लूटा सो लूटा, अपनों से भी लूटवाये हैं ।

छला हमको सत्ता ने पग पग पर , हाकीमो ने कहर ढाये ,
टूट गये तब हम  , जब धर्म के सौदागरों से भी ठगा आये ॥

पाली मॆं पूजवा दी बुलेट हमसे , महान मेरो राजस्थान , 1
ऐरोप्लेन चढ़ा मत्थे टेकने, पंजाब चल दिया तलहन गाँव ।2

लखनऊ की तह्जीब सीखने की कोशिश मॆं वर्षों लगा रहा ,
देख जलती सिगरेट मूसाबाग की मजार पर, सुलगता रहा ॥3

जौनपुर का मंदिर हो या शाहाबाद नौ गजा पीर की मजार,
घड़ी चढ़ा कर , करते सारे अपना समय बदलने की गुहार ॥

बाबा योग सिखलाते सिखलाते , घोट जड़ी बूटी पिलाने लगे ,
और खिलाते पिलाते घी मधु , साबुन शेम्पो से नहलाने लगे ॥

धर्म के हाथों पिट पिट कर , जनता हो चुकी कमजोर हैं ,
अब सन्त कहाँ फ़कीर कहाँ , याचक वाचक सब चोर हैं ।

लूटी पिटी जनता कॊ सीमा पर भेजने की अब तैयारी है ,
पाक मंदिर मस्जिद कॊ बदल वोटों में खेलनी नई पारी है ॥

कमसकम भेडिये भेडियों के वेष में ही घूमा करते थे ,
रंगा सियार बन जंगल जंगल नहीँ विचरा करते थे ।
 
चुका नहीँ ऋण देश का अंश मात्र , फ़िर ये कैसा वन्दन,
इतिहास लिखता आया है, हर नृप का निंदन अभिनंदन ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 7 नवम्बर 2016 सोमवार
सम्वत 2073, कार्तिक शुक्ल सप्तमी

1. पाली जिले में NH65 में बुलेट बाबा का मन्दिर
2. जालंधर के गुरुद्वारा में प्लास्टिक का हवाई जहाज चढाते हैं. 3. लखनऊ की कप्तान बाबा मजार पर अगरबत्ती नहीँ सिगरेट चढ़ती हैं.

Friday, 4 November 2016

नदी

निकल पर्वतों की चोटी से
नदी जब अपने उफान पर आती है ।
प्रचण्ड होती जाती चाल उसकी
मिले राह मॆं जो, साथ बहा ले जाती है॥

कल कल करती, झाग उगलती
नदी अपने पूरे वेग से बहती है ।
रास्ता रोक कर खड़े चट्टान कॊ भी
लहरें उग्र उसकी तोड़ देती है ॥

माँ की सी मूरत है नदी
सबको ममता देती चलती है ।
कहीं किसी कॊ पीने का पानी
तो कहीं खेतों कॊ सींचती चलती है ॥

बहा डाली लाशें कई हमने
ये तो राख कॊ भी पवित्र किये चलती है ।
बना देती है पत्थर कॊ भी रेत
ये तो लोगों के पाप धोते ढोते चलती  है ॥

अजी नदी है , कोई सरकार नहीँ ये !
बिना देखे जात सबका भला किये चलती है ।
पर बन आती स्त्रीत्व पर जब इसके
बन बाढ़ महा विध्वंश भी किया करती है ॥

संदीप मुरारका
शुक्रवार 4 नवम्बर 2016
सम्वत 2073, कार्तिक शुक्ल 5

Thursday, 3 November 2016

कमबख्त वो

Co- education मॆं std 11 मॆं पढ़ने वाला एक लड़का मन ही मन अपनी Classmate कॊ चाहता था  , पर  इज़हार नहीँ कर पाता , उसके मन मॆं अपनी प्रेयसी के प्रति उमड़ने वाले विचारों पर कुछ पंक्तियां -

आजकल किताबों मॆं भी वो नजर आया करती है ,
कलम भी मेरी उसी का नाम लिख जाया करती है ।

और बैठ जाती है जिस दिन बगल मॆं वो मेरे ,
हाय ,मेरी तो साँसें ही अटक जाया करती है ॥

रिंग टोन भी उसकी मुझको बहुत भाया करती है ,
मेरी मोबाईल के स्क्रीन पर भी वही छाया करती है ।

और अपने हाथों से छू लेती है हाथ जिस दिन मेरे  ,
हाय वो हाथ देखते देखते मेरी रात बीत जाया करती है ॥

कि आँखों मॆं बड़ी गहराई है उसके ,
हर अदा मानो अंगड़ाई है उसके ।

बाते करते करते कभी होठों कॊ समीप ले आया करती है ,
कमबख्त बिना पिये मुझे चढ़ सी जाया करती है ॥

कभी शोख चंचल चतुर चपला लगती है ,
कभी सीधी सादी भोली अबला लगती है ।

और केन्टिन मॆं पी लेती है कभी कॉफी मेरे साथ ,
कमीने दोस्तों पर मेरे बिजली गिर जाया करती है ॥

वो सुंदर सलोनी प्यारी सी मूरत है,
मानो उसके रुप मॆं स्वयं कुदरत है ।

बाईक पर जब कभी वो सिमट जाया करती है ,
कमबख्त आँखे मेरी रास्ता भूल जाया करती है ॥

पहन कर आती है जिस दिन स्कर्ट वो ,
पूरे कॉलेज मॆं अकेले कहर ढाया करती है ।

सरस्वती पूजा के दिन जब लिपटकर साड़ी मॆं आया करती है ,
हाय,मुझको तो उस दिन उसमॆं ही देवी दिख जाया करती है ॥

संदीप मुरारका
दिनांक 2.11.2016 बुधवार
विक्रम सम्वत 2073, कार्तिक मास , शुक्ल पक्ष तृतीया

Tuesday, 1 November 2016

इतिहास

हाँ मैं रो रहा हूँ
सच है कि मेरी आँखे सूजी है
मेरी आँखो के नीचे काली छाई पड़ गयी है ।

हो भी तो गये कितने वर्ष
मुझको फूट फूट कर रोते हुए
हाँ मैं इतिहास हूँ , तुम्हारे भारत का इतिहास ॥

मैंने बहुत कोशिश की
कि लिखने वालों तुम मुझे पूरा लिखो ,
पूरा ना भी लिखो तो अधूरा तो ना ही लिखो ॥

पर कलम तुम्हारी
मर्जी तुम्हारी , समय तुम्हारा ,स्याही तुम्हारी ,
मौकापरस्त तुम जो मन आया लिखते चले गये ॥

मैं रोकता रहा ,
तुम छपते चले गये , पन्नों मॆं बँटा पड़ा मैं
तुम टुकडों कॊ अलग अलग जिल्द करते चले गये ॥

मैं घबराया ,
कई बार तुम्हें समझाया , खुद से मिलवाया ,
पर तुम किसी और के चश्मे से मूझे देखते रह गये ॥

टपक गये आँसू ,
कुछ गंगा मॆं जा गिरे , कुछ सिंधु मॆं जा मिले ,
पंजाब यहाँ भी लिखा तुमने , पंजाब वहाँ भी लिखा तुमने ॥

मेरी सिसकियों से बेखबर ,
दोनों ओर तुम हिमालय लिखते चले गये ,
कश्मीर के पन्ने कॊ लिखकर स्याही तुमने क्यों उंडेल दी ?

परवाह न की मेरी तुमने
कुछ पन्ने केसरिया कपड़े मॆं बाँध कर रख लिये
कुछ पन्नों कॊ लाल हरे सुनहरे नीले कपडों मॆं बाँध दिया ॥

काँपते होंठों से मैने
तुम्हे कई बार रोकने की कोशिश की ,
पर सत्ता के नशे मॆं चूर तुम मुझे रौंदते चले गये ॥

मेरी लाल आँखो के सामने ,
बदल  दिया मेरे कई बच्चों का नाम
मेरे ही सच कॊ झूठ और झूठ कॊ सच लिखते चले गये ॥

अपाहिज हूँ मैं आज़ ,
रोज़ मेरे अंग कमजोर पड़ रहे हैं
कोई विक्रमादित्य कॊ तो कोई टीपू पर प्रश्न कर रहे हैं ॥

मैं कमज़ोर क्या हुआ ,
बल्मीकि वाले पन्ने तुमने फाड़ दिये ,
काशी मथुरा के किस्सों कॊ किस्सा ही  बना डाला ॥

जर्जर कर दिया मुझको
शिवाजी नानक कुंवर बिरसा सुभाष
इन पन्नों की जगह सियासत की तिजारत* ने ले ली ॥

कंकाल सा देखता रहा मैं
अपने पन्नों कॊ कटते , फटते ,छँटते
और मेरे मरे नायकों कॊ मृत्युपर्यन्त जाति बदलते ॥

अर्थी पर लेटा हूँ मैं ,
श्मशान ले जाने की तैयारी है ,
मौत का कारण खुद मैं लिखूंगा, अब मेरी बारी है ॥

*व्यापार

संदीप मुरारका
दिनांक 1.11.2016 मंगलवार
विक्रम संवत 2073, कार्तिक मास , शुक्ल पक्ष द्वितीया

दंगा

मिल कर लड़ा गोरों से ,
उनको भगा खुद लड़ने लगे ।

दुश्मन तो अच्छा लगने लगा ,
खुद एक दूसरे कॊ बुरे लगने लगे ।

याद करो बँटवारा सन 47 का
दोनों ने ही कीमत चुकाई थी ,

खोये थे दोनों ने ही अपने
अस्मत सम्पत्ति दोनों ने लुटाई थी ।

तीसरी पीढी भी वो दंश झेल रही ,
और कितनी पीढियों कॊ रूलाओगे ?

अरे पूछो दर्द किसी सिक्ख से ,
गुरू गोविंद ने क्या नहीँ खोया था ?

फ़िर भी सन चौरासी मॆं खूब
कीमत उन्होंने  चुकाई थी ।

छियासी मॆं किया था काश्मीर कॊ
हिन्दू विहीन , खूब बकरीद मनाई थी ,

नवासी मॆं काशी और बिहार* ने
दोनों और से  बलि चढ़ायी थी

बानवे का छह दिसम्बर ,
कहो किसको याद नहीँ ?

दो हजार दो** ने किया कुछ ऐसा
कि खाई अब और गहरी हो चली है  ।

दो हजार छह मॆं आलीगढ़ मॆं
कुछ कब्र बनी , कुछ लाशें जली ।

दस मॆं बंगाल ***बारह मे आसाम ने
दोनों और आग लगाई है ।

याद करो दो हजार तेरह कॊ
मुजफ्फरपुर जब सुलग उठा था ॥

इतना लड़ चुके हम , कट चुके हम
अब तो गिनती भी दंगो की याद नहीँ ।

और कितना लडोगे , अपनी जमीं कॊ
अपने ही लहू से यारो,  कितना रंगोगे ?

सियासत के इस खेल कॊ, ख़त्म हो जाने दो ।
जात धर्म की खाई कॊ , अब तो भर जाने दो ॥

*भागलपुर दंगा  **गोधरा ***देगंगा

संदीप मुरारका
दिनांक 31.10.2016 सोमवार

Sunday, 23 October 2016

लौटा दो गीत हमारा

करण जौहर की फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' की रिलीज पर उत्पन्न विवाद और पाकिस्तानी कलाकारों का विरोध करने पर श्रीमान राज़ ठाकरे जी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ -

गीतांजलि रचने वाले
नोबेल पुरस्कार पाने वाले
शांतिनिकेतन को बसाने वाले
रवीन्द्रनाथ टैगौर सचमुच गुरुदेव थे

गाँधी जी को महात्मा कहकर पुकारा था
अंग्रेजों की उपाधि को उन्होंने दुत्करा था ।

जन गण मन अधिनायक लिखने वाले ,
भारत का राष्ट्र गान रचने वाले वो हमारे थे ।

कैसे किसी ने गुरुदेव का गीत हड़प लिया ?
कैसे किसी औऱ ने उनकी कला पे दावा किया ?

कला तो सरहदों के भीतर रहने की चीज़ है ,
हमारे कवि की रचना को दूसरों ने कैसे पढ़ लिया ?

पढ़ा तो पढ़ा , राष्ट्रगान का दर्जा भी दे दिया ,
आमार सोनार बाँग्ला का इस्तेमाल कर लिया ?

घोर आपत्ति , घोर विरोध , जुर्माना लगना चाहिये ,
गुरुदेव का गीत , बंगलादेश से वापस आना चाहिये ।

हिंदुस्तान का गीत , मुसलमानी देश का राष्ट्र गान है ,
अरे ये तो हमारी कला संस्कृति पे सीधा आक्रमण है ।

इन दुष्ट विदेशी कलाकारों को ,निकाल देश से बाहर करो
नहीं चाहिये कोहिनूर , गुरुदेव का गीत लाकर वापस धरो

राष्ट्र भक्ति, राष्ट्र हित, राष्ट्र अस्मिता , राष्ट्रीयता का सवाल है ,
लौटेगा गीत , जिम्मेदारी अव ये राज़ ठाकरे जी के पास है ॥

दिनांक 23.10.2016 रविवार
संदीप मुरारका

सत्ता के शिकारी

न हिंदू मसला , न मसला है मुसलमान
न भारत वैर चाहता , न ही पाकिस्तान ।

ये खेल है वोटों का दोनों ओर चल रहा
रोक लो   , अब ये ज़हर नीला पड़ रहा ।

गाहे बेगाहे मिलते रहते , होती रहती अंजुमन
गले लगते अलीम* औ वजीर , मानो हो नदीम **
*विद्वान 
** घनिष्ठ मित्र

अँग्रेजी मॆं दोनों के हुक्मरान , ढेरों बतियाते रहे
हम उर्दू कॊ , तुम हिन्दी कॊ बेवजह गरियाते रहे ।

सीमा पर मरे सैनिक , हम मोमबत्तियाँ जलाते रहे ,
उरि से बेखबर राज़दूत हमारे , पार्टियाँ मनाते  रहे ।1

एक्सपोर्ट इंपोर्ट्स के नाम पर , बढ़ गया खूब व्यापार ,
मिल कर खेलेंगे ट्वेंटी ट्वेंटी , बुरा है  सिर्फ कलाकार ।

बेचने वाले हम दर्द तेल , आज़ देश के ख़ास हितैषी हो चले ,
अमीर नहीं अमर के मित्र खड़े , अतुल्य भारत के झंडे तले ।

मिट्टी के दिये खरीदने को , प्रेरित करने वालों हे महान लोगों ,
माटी पे लगा दिया टेक्स*, घरों से घड़ा बाहर निकाल दिया ।
*माइनिंग रॉयल्टी

मुसलमानी जमीं के तेल के बिना गुजारा अपना चलना नहीं ,
हिंदू मसालों  के बिना , बिरयानी मॆं उनके स्वाद पड़ना नहीं ।

आडवाणी ने जिन्ना के चरणों पे माथा यूँ ही नहीं टेका था ,
मरते दम तक , जिन्ना का दिल मुंबई मॆं ही क्यू अटका था ?

बाते हैं ढेर , हसन मंटो खुशवंत ने भी कुछ कुछ कुरेदा है ,
सम्भल जाओ , ना और देर करो , वक्त अब भी बाकी  है ।

लड़े जिनके विरुद्ध इतना , उन अंग्रेजों को क्यू गले लगाते हो ,
भूल जाओगे फ़िर एकबार  , काहे  बलि का बकरा बनाते हो ?

करो नफरत कम अपनी ,बाहर लाओ अंदर की समझदारी ,
ना ये  तेरे हैं , ना मेरे हैं , ये भूखे भेडिये हैं सत्ता  के शिकारी ।

दिनांक 22.10.2016 शनिवार
संदीप मुरारका

1. दिनांक 19 सितम्बर 2016 कॊ
पाकिस्तान मॆं स्थित भारतीय दूतावास मॆं
जिम का उदघाटन गौतम बॉम्बेवाला , भारतीय राजदूत द्वारा किया गया.

आपको याद दिला दूँ कि उरी हमला दिनांक 18 सितम्बर 2016 कॊ हुआ था और उसके बाद विश्व के हर देश मॆं बैठा भारत का राजदूत कर क्या रहा था ? कोई जिम का उदघाटन तो दुबई के राजदूत वहाँ के राजकुमार के भारत दौरे की तैयारी तो USA के राजदूत  अपने विदाई समारोह की पार्टी ? और हम क्या कर रहे थे गली गली मोमबत्ती जला रहे थे. क्या विश्व भर मॆं हर भारतीय दूतावास से उरि हमले के विरोध मॆं आंतकवाद के विरोध मॆं एक निंदा प्रस्ताव वहाँ की लोकल मीडीया को नहीँ जाना चाहिये था ?

http://www.india.org.pk/slide_archives.php

Tuesday, 18 October 2016

वो गैर हैं

वे गाँधी को नहीँ पढ़ाते , जिन्ना हमें नहीँ सुहाते ।
बँट गयी भले सरहद , क्या  इतिहास बदल पाओगे ?

आओ देखें ज़रा , हिन्दुस्तान बसता और कहाँ कहाँ
अपने ही दूसरे घर जाने को विजा माँगा जायेगा यहाँ ।

लेकर चले शिव , शव सती का , अंग गिरे जहाँ जहाँ
बने माँ के मन्दिर , हुये उदित  शक्तिपीठ वहाँ वहाँ ।

तो गिरा सिर* जहाँ , चलो माथा वहाँ टिकाना है ?
हींगलाज मंदिर वो बलूचिस्तान का बड़ा पुराना है ।
*ब्रह्मरंध्र

गिरी दाहिनी भुजा , जिस चन्द्रशेखर पर्वत पर है ,
चलो करें  दर्शन , वो बंगलादेश का गाँव चट्टल है ।

बंगलादेश के खुलना जिले की टिकट भी बननी है ,
जहाँ यशोरेश्वरी की बायीं हथेली की पूजा करनी है ।

बंगलादेश के शिकारपुर गाँव में माँ सुनंदा की नाक है ,
चलो चलें , बैठे स्वयं शिव जहाँ बनकर त्रम्बयक  हैं ।

कराची के निकट गिर पड़ी , सती महिष मर्दिनी की आँखे ,
महालक्ष्मी का गला , बंगलादेश के श्री शेल गाँव मॆं विराजे ।

बंगलादेश के खासी पर्वत पर पूजे जयंति की बायीं जंघा,
मानसरोवर , तिब्ब्त के निकट है दाक्षायनी का हाथ दायाँ ।

महाशिरा के दोनों घुटनों की होती पूजा नित्य सुबह शाम
काठमांडू , नेपाल का गुजयेश्वरी मंदिर है परम शक्ति धाम ।

पोखरा, नेपाल के मुक्तिनाथ का वर्णन करे विष्णु पुराण,
गंडकी चंडी का मस्तक है, इस पवित्र मन्दिर मॆं विद्यमान ।

कट्टरपंथियों के देश मॆं सती की बांयी पायल खूब पूजी जाती ,
तभी तो शेख हसीना, होकर महिला भी सम्मान भरपूर पाती ।

एक पंजाब अपने हिस्से मॆं , एक पंजाब उनके हिस्से मॆं ,
जिसकी राजधानी लाहौर कॊ बसाया श्रीराम पुत्र लव ने ।

लाहौर के किले के आलमगीर दरवाजे का ईशान कोना ,
जहाँ है मंदिर लव का , हैं  कई शिवालय और गुरूद्वारा ।

रावी के तट पर बसा पंजाबी भाषा वाला ये बागों का शहर ,
वाल्मीकि और कृष्ण हैं वहाँ , प्रसिद्ध है अनारकली मंदर ।

चकवाल जिले मॆं भोलेनाथ के आंसुओं से बना सरोवर ,
पाकिस्तान का कटासराज़ शिव मंदिर है  बड़ा मनोहर ।

सिंध प्रांत में थारपारकर जिले का गौरी मन्दिर है दर्शनीय ,
काला बाग के मरी इंडस मन्दिर की चर्चा भी है उलेखनीय ।

पाक अधिकृत काश्मीर मॆं भी बैठे हैं बाबा भोलेनाथ ,
मनोरा केन्ट  मॆं श्रीवरुण देव औ पेशावर मॆं गोरखनाथ ।

जिन्ना रोड कराची मॆं धर्मशाला और स्वामी नारायण मन्दिर ,
सोल्जर बाजार हनुमान की नीली मूरत मॆं लगे हैं पाँच सिर ।

सिंध प्रांत , सुक्कुर के साधु  बेला मॆं होता है भव्य भंडारा ,
एल ओ सी नीलम घाटी पर बैठी स्वयं माँ सरस्वती शारदा ।

भेरा , नागरपारकर, रावलपिंडी हो या पंजाब  सियालकोट ,
टीला जोगिया, गुजारनवाला , इस्लामाबाद का रावल लेक ।

नेपाल तिब्बत श्रीलंका बंगलादेश हो गये , बँट कर देश अनेक,
हो पाकिस्तान चाहे  हो हिन्दुस्तान , है सबका इतिहास एक ।

दिनांक 18.10.2016 मंगलवार
संदीप मुरारका

Wednesday, 12 October 2016

हिन्दुस्तान सिर्फ हमारा है

नवाजुद्दीन सिद्दिकी कॊ शिवसेना के लोगों ने रामलीला से बाहर निकाल दिया , तब मैंने अपने विचार कुछ यूँ लिखें हैं -

करने चला था अभिनय हमारी रामलीला मॆं
मार के धक्का मंच से उतार दिया ना ,

क्यों कैसा लगा हीरो  नवाजुद्दीन सिद्दिकी
आखिर हिन्दुस्तान से मिलवा दिया ना ॥

यह  हिन्दुस्तान सिर्फ और सिर्फ हमारा है ,
गँगा जमना भी हमारी , कृष्ण भी हमारा है ,

उधौ तुम यह मरम ना जानो
हम मॆं श्याम ,श्याम मय हम हैं -
ना जाने शाह बरकतुल्लाह ने ये कैसे लिख डाला ?

रेहाना बहन1 क्यों पढ़ती रही गीता शरीफ ?
और कैसे लिख गये सन्त साईदीन दरवेश 2-

ज्ञानेश्वरीगीता’ सुने, हुआ ज्ञान उजियार
सो ही गीता अभी से लिखे, सांई ‘दीन’ विचार॥
मैं तो दीन फकीर हूं तुम हो गरीब नवाज
दीनानाथ दयानिधि, रखो दीन की लाज।

मौलाना जफर अली ने की श्रध्दा कैसे प्रकट -

दिलों पर डालती आई है, डोरे सहर के
गीता नहीं मिटने में आई है,
यह जादू की लकीर अब तक।

दौजख मॆं जब मैं उनसे मिलूंगा, तो ज़रूर  पूछूंगा  -
कि रहमान अली तुने होली के गीत किस हक से लिखे ?
नज्में फ़र्ज कॊ लिखने वाले कैफी आजमी तुम हो कौन ?

 शायर सरदार अली जाफरी ने ये क्या लिख डाला -

अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाए
तो फितनगरों का काम तमाम हो जाए।
मिटाएं बिरहमन शेख तफरूकात अपने
जमाना दोनों घर का गुलाम हो जाए।

हाय लानत , मौलाना हसरत मोहनी की रचना का

मथुरा ही नगर है आशिकी का,
हम भारती हैं आरजू इसी का
हर जर्रा सरजमीने- गोकुल वारा
है जमालेढ दिलवारी का
बरसाना- ओ-नंद गांव में भी,
देख आये हैं हम जलवा किसी का ॥

उफ्फ ये बंद 'शायर हामिदउल्ला अफसर मेरठी' का

हुस्न ने पैगाम्बरी का रूप धारा ब्रज में,
इश्क के बल रास्ता सीधा दिखाने आये हैं ।

देखो धार्मिक संकीर्णता सोनिया की रायबरेली के
अब्दुल रसीद खां ‘रसीद’ की -

श्याम तन शीश पर मोर-पंख का मुकुट
कमल से सुंदर बड़े-बड़े नेत्र, दीर्घ भुजाएं
सिंह सी पतली लचकीली कमर,
पीतम्बर धारे,
कमल से ही पद, हरित बांस की
बांसुरी अधरों पर धरे स्वयं से भूले जब-जीवन भुलाए से।

लो अब सुनो चेतावनी कविवर मिर्जा वहीद बेग ‘शाद’ की -

ईमान की आंखों में आंसू हैं नदामत के
विश्वास के द्वारे पर अपराध के पहरे हैं॥
धोखे से कोई गौरी चढ़ आये न भारत पर
अब देश में जयचंदी औलाद के पहरे हैं॥
आये न वतन मेरे, नफरत को खबर कर दो।

कौमी एकता पर क्यों लिखते हैं नजीर अकबरा वादी उर्दू शेर

है दशहरा में भी यूं तो फरहत व जीनत नजीर
पर दीवाली भी अजीब पाकीजा त्योहार॥

भगवान श्रीकृष्ण के प्रति करते रहे अर्चना
तुलसीदास के मित्र अब्दुल रहीम खानखाना-

‘जिहि रहीम मन आपुनों, कीन्हों चतुर चकोर
निसि बासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर’ ॥

ओह , ब्रजभूमि मॆं क्यों बनी है ताज बीबी की समाधि 3

अब शरअ नहीं मेरे कुछ काम की, श्याम मेरे हैं, मैं मेरे श्याम की |
बृज में अब धूनी रमा ली जायेगी, जब लगन हरि से लगा ली जायेगी |

कबीर - वो तो थे विधवा  हिन्दु ब्राह्मणी के बेटे
क्यू मुस्लिम जुलाहे नीरू और नीमा ने गले लगाया -

भाई दुई जगदीश कहांते आये कौने मति भरमाया।
अल्लाह राम करीमा केलव हरि हजरत नाम धराया।।
गहना एक कनक ते बनता तामें भख न दूजा।
कहव कहन सुनत को दुई कर आये इक निमाज इक पूजा।।
वहि महादेव वही मुहम्मद ब्रह्मा आदम कहिये।
कोई हिंदू काई तुरक कहखे एक जमीं पर रहिये।।
वेद किताब पढ्ैं व खुतबा वे मुलना वे पांडे।
विगत विगत कै नाम धरावें एक भटिया के भांडे।।
कहै कबीर वे दूनो भूले रामे किन्हु न पाया।
वे खसिया व गाय कटावें वादे जन्म गवांया।।

अगले जन्म मॆं ब्रज मॆं जन्मेगें सय्यद इब्राहीम "रसखान" -

मानुष हों तो वही रसखान, बसौं नित गोकुल गाँव के ग्वारन।जो पसु हौं तौ कहा बसु मेरौ, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।पाहन हौं तौ वही गिरि कौ जुधर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरौं नित, कालिंदी-कूल कदंब की डारन।।

दीन - इलाही के दरबार मॆं मुस्तकिल मीर अर्ज 'रहीम' -

तैं रहीम मन आपुनो, कीन्‍हों चारु चकोर।
निसि बासर लागो रहै, कृष्‍णचंद्र की ओर॥

पता लगाओ उन्हे कैसे मिला ज्ञानपीठ
अली सरदार जाफरी गये उर्दू मॆं लिख -
 
गुफ़्तगू बंद न हो
बात से बात चले
सुब्ह तक शामे-मुलाकात चले
हम पे हंसती हुई ये तारों भरी रात चले ॥

हिसाब तो उनका भी अभी करना बाकी है
क्यों जो वे लड़े मेरे मादरे वतन के लिये

'मादरे वतन भारत की जय' नारा लगाया जिसने पहली बार
अज़ीमुल्लाह खां के सामने क्या सर झुकाया कभी एक बार 4

अंग्रेजों कॊ घुटने टेकने पर किया कई बार मजबूर
इतिहास के नायक थे टीपू सुल्तान शेर - ए - मैसूर


1 गांधीजी की सुप्रसिध्द शिप्या एवं विख्यात देशभक्त अब्बास तय्यबजी की सुपुत्री,  2 गुजरात के मयशाना मॆं वर्ष 1712 ई  3 अकबर की बेगम एवं गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका
4 जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर देश के लिए काम किया , आगे चलकर इन्हीं मशहूर योद्धा अजीमुल्ला खां ने मादरे वतन भारत की जय का नारा दिया।

दिनांक 11.10.2016 मंगलवार
संदीप मुरारका

Monday, 10 October 2016

तकिया

ये तकिया है
इस पर कवर लगा के रखो

पलंग पर इसे सजा के रखो ।

साथी है ये बहुत पुराना
ये कई रात मेरे साथ साथ  जगा है
कई बार देर रात मुझको सुलाया है ।

साथी है ये बहुत पुराना
ये मेरी उदासीन रातों का गवाह भी है
कई बार इसने मेरे बहते आँसू पिये हैं ।

साथी है ये बहुत पुराना
कई बार चेहरा छुपाने के काम आया है
कई बार सिसकियों कॊ भी समझाया है ।

साथी है ये बहुत पुराना
और बहुत अनुभवी बहुत समझदार है
जहीर* है उनकी रातों का जो ख्वार** हैं ॥

*जहीर  - दोस्त
**ख्वार - मित्रहीन

दिनांक 09.10.2016 रविवार
संदीप मुरारका

इतिहास नहीँ कहानी ये बदले की

पलट डाले सारे पन्ने मैने
भरा पड़ा इतिहास हमारा
बदले की कहानियों से ,

कहा द्रौपदी ने अंधे का बेटा
उसने चीर डाले कपड़े उसके
बदले मॆं छिड़ गयी महभारत ।

नाक काट ली सुपर्णखा की जब
उसका भाई सीता हर ले गया
हुआ ऐतिहासिक युध्द रामायण का ।

पाटलीपुत्र मॆं हुआ अपमानित विष्णुगुप्त
खोल दी शिखा उसने क्रोध मॆं भरकर
बनकर चाणक्य महानंद का विनाश किया ।

पिता की हत्या से हुए क्रोधित
लेकर फरसा हाथ परशुराम ने
निरंकुश राजाओं का संहार किया ।

सत्ता के लिये हुई माँ की कोख शर्मसार
खुद के बेटे के हाथों मारा गया मगध सम्राट बिम्बसार
हुआ संघर्ष बड़ा , हत्यारा अजातशत्रु भी मारा गया
अपने ही पुत्र के हाथों, इतिहास दोहराया फ़िर एक बार ।

हमलावर विदेशियों का साथ दिया जब 
हुआ समाप्त मौर्य वंश अपने सेनापति के हाथों तब
ब्राह्मण राज पुष्यमित्र शुंग का राज्यभिषेक हुआ ।

रक्त बहा है इस धरती पर कई कई बार
अपनों पर चली है अपनों की तलवार ।

हर बार बदला लेने कॊ युद्ध हुआ है
हर बार इतिहास ही शर्मसार हुआ है ।

जिसने पाया जैसा लिखा
सच कोई लिख ना पाया ,

षडयंत्र और साजिशों से भरी हुई ,
राजसत्ता कॊ बचाते रहे भीष्म कई ।

आज़ फ़िर इतिहास खुद कॊ दोहरा रहा है
करते रहे जो काम वो , कर रहे ये भी वही ।

भीष्म भी हैं यहाँ ,चारण तो हैं कई कई ,
हैं चंद्रगुप्त भी यहाँ , सिर्फ चाणक्य ही नहीँ ।

दिनांक 10.10.2016 सोमवार
संदीप मुरारका


Friday, 7 October 2016

अश्वमेध यज्ञ

कहते हैं युग परिवर्तन का समय आ रहा
ज़्योतिष भारत कॊ विश्व गुरू बतला रहा !

नाप रही है जनता अपने कर्णधार के सीने कॊ
खोज रहे लोग इनमें गौतम और विवेकानंद कॊ !

पर कैसे कर पायेंगे पूर्ण विश्व विजय अभियान  ,
ना जाने कब हटेगा काश्मीर से केन्द्रित ध्यान !

जिसे देखो वही भड़काने बैठा है
चिंता नहीं किसी कॊ मीरवायज
यासीन मलिक या गिलानी की ,
बस केजरीवाल से ख़ार खाये बैठा है ।।

ना तो खेत चरा अरविन्द ने हमारा ,
ना ही हमें लाहौर मॆं चने उगाने हैं ।

तो क्यों लड़ रहे हैं बेवजह हम ,
संदेश ये सकरात्मक पहुँचाना है -

रोक लो बर्बादी अब दोनों ओर से
हे अवनीपति , तीरों कॊ तरकश मॆं रहने दो,

ज़रूरत नहीं सीमा पर अभी दीवारों की
झौपडे पहले दोनों मुल्कों मॆं बन जाने दो ॥

हे नृपति, घटा दो बजट सेना का
अब ना नये हथियार खरीद करो
अगले साल दो साल केवल केवल
खेतों और  नदियों की बात करो !

बचे समय यदि तो
बिजली पानी मॆं ध्यान धरो 
सड़क नाली के कई काम
भी करने अभी बाकी हैं ,

हो दोनों मुल्क का हर बच्चा शिक्षित
करो व्यवस्था बीमारों का इलाज की ,

कैसे मिटे बेरोज़गारी दोनों मुल्कों से
हे भूपति , ऐसा कुछ नया विचार करो ।

जंग जितने से हासिल कुछ होना नहीं
जितना है जग,  तो कुछ ऐसा काम करो

हे नरेश , करो तुम एक अश्वमेध यज्ञ
अखण्ड भारत की कल्पना कॊ साकार करो

श्रीलंका बर्मा भूटान नेपाल हिन्दुस्तान
मालदीव बंगलादेश म्यांमार पाकिस्तान

मिलकर सभी करें गठन एक सयुंक्त सेना
हो एक वीजा और एक मुद्रा मॆं लेना देना ।।

आपस मॆं ही हो ज्यादा से ज्यादा करोबार
ना जाये कोई अमेरिका खोजने रोजगार ,

हे महीपति , अरविन्द नीतीश चंद्राबाबू चौहान
रमन मनोहर जैसे सेनापति हों  जिसके पास

कौन रोक सकेगा उसके  घोड़े कॊ  ?
यथाशीघ्र पांचजन्य  शंखनाद करो ॥

हुई बातें बहुत , अब हुंकार भरो ,
विदेशों के दौरे अब समाप्त करो ॥

हे  नरेंद्र  , करो तुम एक अश्वमेध यज्ञ
अखण्ड भारत की कल्पना कॊ साकार करो !

दिनांक 7.10.2016 शुक्रवार
संदीप मुरारका

Thursday, 6 October 2016

मेड इन इंडिया

घर घर मॆं होतीं  है लड़ाई , तो
क्या एक दूसरे कॊ मार गिराते हैं ?

चाहे जाओ कोर्ट या थाने ,
कीमत दोनों पक्ष चुकाते हैं ।

तुमने मारे हैं तेरह
हम तेईस मार गिरायेगे ,

फ़ेसबुक और ट्विटर पर
सत्ता कॊ हम उकसाते हैं ।

अरे....

कोई तो पहल करो समझौते की
बेवजह लड़ना झगड़ना बँद करो ,

फ्रांस जापान रूस औ' अमेरिका
के हथियारों का बाजार बनना बँद करो ।

राज़ कर रहा सारी दुनिया पर
सीखना है तो सीखो चायना से ,

पाकिस्तान के बाजार कॊ पाट दो
मेड इन इंडिया के सामानों  से ।

पाकिस्तान के बाजार कॊ पाट दो
मेड इन इंडिया के सामानों  से ।।

दिनांक 6.10.10 गुरुवार
संदीप मुरारका



Wednesday, 5 October 2016

आओ उनकी जाति बाँटे

हिन्दु , काबा नहीँ जाया करते
मुस्लिम गँगा नहीं नहाया करते !

मराठी मानुष कॊ क्या लेना देना छठ से
सूरज उगे ना उगे , मुम्बई कॊ परवाह नहीं
क्योंकि गणपति पे उनका एकाधिकार  है.

बंगालियों ने देवी  दुर्गा का पेटेंट करवा रखा है
उड़िया भाषियों ने जग्गनाथ कॊ अपना रखा है.

तमिल कहते हैं तिरुपति अयप्पा उनके हैं
राजस्थानी सारे के सारे खाटू  श्याम के हैं.

आदिवासियों के भी हैं अपने अपने भगवान
यादव हुए कृष्ण और ब्रह्मण हो गये परशुराम.

ऐसा फँसे जातियों मॆं हम
ऐसा बँटे जात पात मॆं हम

कि खुद तो बँटे बँटे
उनको भी बाँट दिया.

सूरज बाँटा, चाँद तारे बाँट लिये
गाय बाँटी, सुअर बकरे बाँट लिये
नारियल बाँटा, खजूर भी बाँट दिये

धरती थी पहले से बंटी हुई
पानी बाँटने की तैयारी है ,
हवा तो अब खराब हो चली
आओ हम आसमान कॊ बाँटे ,,

और जो बचे  हैं साथ साथ
आओ उनको भी छांटे.
आओ उनकी जाति बाँटे !!

दिनांक 5.10.2016 बुधवार
संदीप मुरारका

Tuesday, 4 October 2016

हाथ की लकीरें

कॉलोनी के पार्क मॆं
एक बेंच पर बैठा बैठा
बहुत देर से
देख रहा था मैं

छोटी एक बच्ची
ना ना बहुत छोटी नहीँ , 
होगी वही दस ग्यारह साल की

मिट्टी मॆं अपने हाथ
घिस रही थी
कुछ देर घिसती
फ़िर अपने हाथों कॊ देखती ,

फ़िर वहीं बगल मॆं लगे
नल मॆं अपने हाथ धो आती

हाथों कॊ धोने के बाद
फ़िर अपनी हथेली कॊ निहारती
और फ़िर
मिट्टी मॆं हाथ घिसने लगती.

देख कर यह कौतूहल । । 
रहा ना गया मुझसे
मैं उसके पास चला आया
बैठ कर हरी हरी घास
के मुलायम गलीचे पर

मैंने उससे पूछा
बेटी ये क्या कर रही हो ?
क्यू अपने हाथों कॊ
यूँ घिस रही हो ?
कोमल है त्वचा तुम्हारी ,
ये छिल जायेगी !
दर्द बहुत होगा ,
जलन जल्द नहीँ जायेगी !

मिट्टी से सने
हो चुके थोड़े खुरदुरे
उसके हाथों कॊ
अपने हाथ मॆं लेकर
फ़िर पूछा मैंने -
नाम क्या है तुम्हारा ?
और ये खेल,
क्या खेल रही हो ?

जवाब के लिये
नहीँ करना पड़ा इंतजार
कहा उसने -
सुप्रीती है नाम मेरा
स्कूल मॆं पढ़ती हूँ.

कल शनिवार था
स्कूल की थी छुट्टी
पापा की भी ड्यूटी ऑफ थी
थी मम्मी भी घर पर.

उसी समय पण्डित जी
एक आये थे
पापा ने उनको दिखाये
कुछ ज़रूरी काग़ज़ *
हाथ भी मेरा दिखलाया था ।

*जन्म पत्रिका

देख कर हाथ मेरा
बोले थे पण्डित जी
लकीरें ज़रा  टेढ़ी हैं
और शायद इसीलिए
मेरे पापा के प्रमोशन मॆं
हो रही देरी है.

अंकल , मैं सब समझती हूँ
इसीलिए इनको मिटा रही हूँ
घिस घिस कर मिट्टी पर
लकीरें नई बना रही हूँ.

बेटी हूँ पापा के काम आऊंगी
देखना आप
इतनी सुंदर लकीर बनाऊंगी
कि होगा प्रमोशन पापा का
मम्मी भी खुश हो जायेगी.

कि होगा प्रमोशन पापा का
मम्मी भी खुश हो जायेगी

पार्क से लौटते ही घर
लकीर उनको दिख लाउँगी
रह गयी यदि कोई टेढ़ी मेढी
तो उसको भी कल *मिटाऊंगी !!

*भविष्य मॆं

चेहरा मैं उसका
देखता रह गया
छोटी सी बच्ची से
संदेश बड़ा मिल गया !

Save Girl Child

दिनांक 4.10.2016 मंगलवार
सन्दीप मुरारका

Monday, 3 October 2016

तिरंगा भी रोता है

उरी मॆं जब 17 शहीद हुए , तो उन  शहीदों के शव अपने अपने घर कॊ आये.
उनमें दो शहीद झारखण्ड की भूमि के भी थे. उन वीर शहीदों के शव पर ससम्मान तिरंगा लपेटा गया ,

लेकिन क्या तिरंगा ओढ़कर शहीद वाकई खुश होते होंगे , शायद नहीँ.
उनकी आत्मा दुखती होगी.

कुछ ऐसा सोच कर एक दर्द कविता के माध्यम से बाहर आया है -

*तिरंगा भी रोता है*

जवान शहीद बेटे की
आँगन मॆं थी लाश पड़ी

माँ थी काफी बूढ़ी
आँखो से लाचार
और हाथों मॆं थी छडी

बायें हाथों मॆं थामी थी लाठ्ठी
दायें हाथों मॆं थी बेटे की छाती

आँखो मॆं सुख गया था पानी
गला था रुँधा रुँधा सा
मन से थी व्याकुल
लेकिन फ़िर भी वो शान्त थी

झुके थे सर सबके
पीछे खड़ी थी जनता
नारों की गूँज
आकाश मॆं व्याप्त थी

उतने मॆं आये जिलाधिकारी
सशस्त्र  पुलिस साथ थी

हाथों मॆं था उनके तिरंगा
ससम्मान उढाने की चाह थी

दुखी थे ह्रदय से सभी
पर इस सम्मान से खुश हुए

नेता ,पुलीस और पदाधिकारी
झुके शव कॊ उढाने तिरंगा

बुढ़ीया के हाथों से 
ज्योंहि स्पर्श हुआ तिरंगा

किनारा  एक पकड़ लिया
उसने , पहले माथे कॊ लगाया
और फ़िर इशारे से
मना कर दिया
उढाने कॊ तिरंगा !

हैरान सभी
परेशान सभी
हुई क्या बात अभी अभी

क्यों रोका उस बुढिया ने ?
सूझा नहीँ शायद उसको
लेकिन फ़िर माथे कैसे लगाया ?

हिम्मत कर बोले
बुजुर्ग गाँव के एक
कि
मरे बेटे कॊ तेरे सम्मान देने
आज लोग बड़े बड़े आये हैं

लपेटने शव उसका
तिरंगा साथ लाये है !

अरे बुढिया
मति क्या तेरी
मारी गयी  है ?

जो रोकती है इनको ,
अरे , ये तो
पूरे गाँव का
मान बढ़ाने आये हैं !

सुनकर  ये बाते
कहती हैं बुढ़ी माँ -
दूध आज मेरा कृतार्थ हुआ
रक्त इसके पिता का निहाल हुआ

करती नहीँ मना मैं कि
लपेट तिरंगे मॆं इसे ले जाने कॊ ,
पर करो वादा एक मुझसे
लपेटा जाय तिरंगे मॆं केवल वही ,
जिसका लहू देश के काम आया हो !

भ्रष्टाचारी व्याभिचारी बेईमान
किसी नेता के शव कॊ
स्पर्श नहीँ कराया जायगा....

या तो तिरंगा
अपने शहीद से लिपटेगा
या शान से फहरायेगा ,

ना कभी किसी
नेता की मौत पे
ये झुकाया ही जायगा ,

कर सकते हो ये वादा -
यदि तुम मुझसे
तो लपेटना मेरे बेटे कॊ इससे

वरना बँद कर दो परम्परा ये
क्योंकि
अकेले मॆं तिरंगा भी रोता है
जब अपने ही अपराधी
की लाश पे यॆ पड़ा होता है !!

जब अपने ही अपराधी
की लाश पे यॆ पड़ा होता है !!

दिनांक 3-10-2016
सन्दीप मुरारका