Monday, 3 October 2016

तिरंगा भी रोता है

उरी मॆं जब 17 शहीद हुए , तो उन  शहीदों के शव अपने अपने घर कॊ आये.
उनमें दो शहीद झारखण्ड की भूमि के भी थे. उन वीर शहीदों के शव पर ससम्मान तिरंगा लपेटा गया ,

लेकिन क्या तिरंगा ओढ़कर शहीद वाकई खुश होते होंगे , शायद नहीँ.
उनकी आत्मा दुखती होगी.

कुछ ऐसा सोच कर एक दर्द कविता के माध्यम से बाहर आया है -

*तिरंगा भी रोता है*

जवान शहीद बेटे की
आँगन मॆं थी लाश पड़ी

माँ थी काफी बूढ़ी
आँखो से लाचार
और हाथों मॆं थी छडी

बायें हाथों मॆं थामी थी लाठ्ठी
दायें हाथों मॆं थी बेटे की छाती

आँखो मॆं सुख गया था पानी
गला था रुँधा रुँधा सा
मन से थी व्याकुल
लेकिन फ़िर भी वो शान्त थी

झुके थे सर सबके
पीछे खड़ी थी जनता
नारों की गूँज
आकाश मॆं व्याप्त थी

उतने मॆं आये जिलाधिकारी
सशस्त्र  पुलिस साथ थी

हाथों मॆं था उनके तिरंगा
ससम्मान उढाने की चाह थी

दुखी थे ह्रदय से सभी
पर इस सम्मान से खुश हुए

नेता ,पुलीस और पदाधिकारी
झुके शव कॊ उढाने तिरंगा

बुढ़ीया के हाथों से 
ज्योंहि स्पर्श हुआ तिरंगा

किनारा  एक पकड़ लिया
उसने , पहले माथे कॊ लगाया
और फ़िर इशारे से
मना कर दिया
उढाने कॊ तिरंगा !

हैरान सभी
परेशान सभी
हुई क्या बात अभी अभी

क्यों रोका उस बुढिया ने ?
सूझा नहीँ शायद उसको
लेकिन फ़िर माथे कैसे लगाया ?

हिम्मत कर बोले
बुजुर्ग गाँव के एक
कि
मरे बेटे कॊ तेरे सम्मान देने
आज लोग बड़े बड़े आये हैं

लपेटने शव उसका
तिरंगा साथ लाये है !

अरे बुढिया
मति क्या तेरी
मारी गयी  है ?

जो रोकती है इनको ,
अरे , ये तो
पूरे गाँव का
मान बढ़ाने आये हैं !

सुनकर  ये बाते
कहती हैं बुढ़ी माँ -
दूध आज मेरा कृतार्थ हुआ
रक्त इसके पिता का निहाल हुआ

करती नहीँ मना मैं कि
लपेट तिरंगे मॆं इसे ले जाने कॊ ,
पर करो वादा एक मुझसे
लपेटा जाय तिरंगे मॆं केवल वही ,
जिसका लहू देश के काम आया हो !

भ्रष्टाचारी व्याभिचारी बेईमान
किसी नेता के शव कॊ
स्पर्श नहीँ कराया जायगा....

या तो तिरंगा
अपने शहीद से लिपटेगा
या शान से फहरायेगा ,

ना कभी किसी
नेता की मौत पे
ये झुकाया ही जायगा ,

कर सकते हो ये वादा -
यदि तुम मुझसे
तो लपेटना मेरे बेटे कॊ इससे

वरना बँद कर दो परम्परा ये
क्योंकि
अकेले मॆं तिरंगा भी रोता है
जब अपने ही अपराधी
की लाश पे यॆ पड़ा होता है !!

जब अपने ही अपराधी
की लाश पे यॆ पड़ा होता है !!

दिनांक 3-10-2016
सन्दीप मुरारका

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