कॉलोनी के पार्क मॆं
एक बेंच पर बैठा बैठा
बहुत देर से
देख रहा था मैं
छोटी एक बच्ची
ना ना बहुत छोटी नहीँ ,
होगी वही दस ग्यारह साल की
मिट्टी मॆं अपने हाथ
घिस रही थी
कुछ देर घिसती
फ़िर अपने हाथों कॊ देखती ,
फ़िर वहीं बगल मॆं लगे
नल मॆं अपने हाथ धो आती
हाथों कॊ धोने के बाद
फ़िर अपनी हथेली कॊ निहारती
और फ़िर
मिट्टी मॆं हाथ घिसने लगती.
देख कर यह कौतूहल । ।
रहा ना गया मुझसे
मैं उसके पास चला आया
बैठ कर हरी हरी घास
के मुलायम गलीचे पर
मैंने उससे पूछा
बेटी ये क्या कर रही हो ?
क्यू अपने हाथों कॊ
यूँ घिस रही हो ?
कोमल है त्वचा तुम्हारी ,
ये छिल जायेगी !
दर्द बहुत होगा ,
जलन जल्द नहीँ जायेगी !
मिट्टी से सने
हो चुके थोड़े खुरदुरे
उसके हाथों कॊ
अपने हाथ मॆं लेकर
फ़िर पूछा मैंने -
नाम क्या है तुम्हारा ?
और ये खेल,
क्या खेल रही हो ?
जवाब के लिये
नहीँ करना पड़ा इंतजार
कहा उसने -
सुप्रीती है नाम मेरा
स्कूल मॆं पढ़ती हूँ.
कल शनिवार था
स्कूल की थी छुट्टी
पापा की भी ड्यूटी ऑफ थी
थी मम्मी भी घर पर.
उसी समय पण्डित जी
एक आये थे
पापा ने उनको दिखाये
कुछ ज़रूरी काग़ज़ *
हाथ भी मेरा दिखलाया था ।
*जन्म पत्रिका
देख कर हाथ मेरा
बोले थे पण्डित जी
लकीरें ज़रा टेढ़ी हैं
और शायद इसीलिए
मेरे पापा के प्रमोशन मॆं
हो रही देरी है.
अंकल , मैं सब समझती हूँ
इसीलिए इनको मिटा रही हूँ
घिस घिस कर मिट्टी पर
लकीरें नई बना रही हूँ.
बेटी हूँ पापा के काम आऊंगी
देखना आप
इतनी सुंदर लकीर बनाऊंगी
कि होगा प्रमोशन पापा का
मम्मी भी खुश हो जायेगी.
कि होगा प्रमोशन पापा का
मम्मी भी खुश हो जायेगी
पार्क से लौटते ही घर
लकीर उनको दिख लाउँगी
रह गयी यदि कोई टेढ़ी मेढी
तो उसको भी कल *मिटाऊंगी !!
*भविष्य मॆं
चेहरा मैं उसका
देखता रह गया
छोटी सी बच्ची से
संदेश बड़ा मिल गया !
Save Girl Child
दिनांक 4.10.2016 मंगलवार
सन्दीप मुरारका
No comments:
Post a Comment