Monday, 10 October 2016

तकिया

ये तकिया है
इस पर कवर लगा के रखो

पलंग पर इसे सजा के रखो ।

साथी है ये बहुत पुराना
ये कई रात मेरे साथ साथ  जगा है
कई बार देर रात मुझको सुलाया है ।

साथी है ये बहुत पुराना
ये मेरी उदासीन रातों का गवाह भी है
कई बार इसने मेरे बहते आँसू पिये हैं ।

साथी है ये बहुत पुराना
कई बार चेहरा छुपाने के काम आया है
कई बार सिसकियों कॊ भी समझाया है ।

साथी है ये बहुत पुराना
और बहुत अनुभवी बहुत समझदार है
जहीर* है उनकी रातों का जो ख्वार** हैं ॥

*जहीर  - दोस्त
**ख्वार - मित्रहीन

दिनांक 09.10.2016 रविवार
संदीप मुरारका

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