ये तकिया है
इस पर कवर लगा के रखो
पलंग पर इसे सजा के रखो ।
साथी है ये बहुत पुराना
ये कई रात मेरे साथ साथ जगा है
कई बार देर रात मुझको सुलाया है ।
साथी है ये बहुत पुराना
ये मेरी उदासीन रातों का गवाह भी है
कई बार इसने मेरे बहते आँसू पिये हैं ।
साथी है ये बहुत पुराना
कई बार चेहरा छुपाने के काम आया है
कई बार सिसकियों कॊ भी समझाया है ।
साथी है ये बहुत पुराना
और बहुत अनुभवी बहुत समझदार है
जहीर* है उनकी रातों का जो ख्वार** हैं ॥
*जहीर - दोस्त
**ख्वार - मित्रहीन
दिनांक 09.10.2016 रविवार
संदीप मुरारका
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