नवाजुद्दीन सिद्दिकी कॊ शिवसेना के लोगों ने रामलीला से बाहर निकाल दिया , तब मैंने अपने विचार कुछ यूँ लिखें हैं -
करने चला था अभिनय हमारी रामलीला मॆं
मार के धक्का मंच से उतार दिया ना ,
क्यों कैसा लगा हीरो नवाजुद्दीन सिद्दिकी
आखिर हिन्दुस्तान से मिलवा दिया ना ॥
यह हिन्दुस्तान सिर्फ और सिर्फ हमारा है ,
गँगा जमना भी हमारी , कृष्ण भी हमारा है ,
उधौ तुम यह मरम ना जानो
हम मॆं श्याम ,श्याम मय हम हैं -
ना जाने शाह बरकतुल्लाह ने ये कैसे लिख डाला ?
रेहाना बहन1 क्यों पढ़ती रही गीता शरीफ ?
और कैसे लिख गये सन्त साईदीन दरवेश 2-
ज्ञानेश्वरीगीता’ सुने, हुआ ज्ञान उजियार
सो ही गीता अभी से लिखे, सांई ‘दीन’ विचार॥
मैं तो दीन फकीर हूं तुम हो गरीब नवाज
दीनानाथ दयानिधि, रखो दीन की लाज।
मौलाना जफर अली ने की श्रध्दा कैसे प्रकट -
दिलों पर डालती आई है, डोरे सहर के
गीता नहीं मिटने में आई है,
यह जादू की लकीर अब तक।
दौजख मॆं जब मैं उनसे मिलूंगा, तो ज़रूर पूछूंगा -
कि रहमान अली तुने होली के गीत किस हक से लिखे ?
नज्में फ़र्ज कॊ लिखने वाले कैफी आजमी तुम हो कौन ?
शायर सरदार अली जाफरी ने ये क्या लिख डाला -
अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाए
तो फितनगरों का काम तमाम हो जाए।
मिटाएं बिरहमन शेख तफरूकात अपने
जमाना दोनों घर का गुलाम हो जाए।
हाय लानत , मौलाना हसरत मोहनी की रचना का
मथुरा ही नगर है आशिकी का,
हम भारती हैं आरजू इसी का
हर जर्रा सरजमीने- गोकुल वारा
है जमालेढ दिलवारी का
बरसाना- ओ-नंद गांव में भी,
देख आये हैं हम जलवा किसी का ॥
उफ्फ ये बंद 'शायर हामिदउल्ला अफसर मेरठी' का
हुस्न ने पैगाम्बरी का रूप धारा ब्रज में,
इश्क के बल रास्ता सीधा दिखाने आये हैं ।
देखो धार्मिक संकीर्णता सोनिया की रायबरेली के
अब्दुल रसीद खां ‘रसीद’ की -
श्याम तन शीश पर मोर-पंख का मुकुट
कमल से सुंदर बड़े-बड़े नेत्र, दीर्घ भुजाएं
सिंह सी पतली लचकीली कमर,
पीतम्बर धारे,
कमल से ही पद, हरित बांस की
बांसुरी अधरों पर धरे स्वयं से भूले जब-जीवन भुलाए से।
लो अब सुनो चेतावनी कविवर मिर्जा वहीद बेग ‘शाद’ की -
ईमान की आंखों में आंसू हैं नदामत के
विश्वास के द्वारे पर अपराध के पहरे हैं॥
धोखे से कोई गौरी चढ़ आये न भारत पर
अब देश में जयचंदी औलाद के पहरे हैं॥
आये न वतन मेरे, नफरत को खबर कर दो।
कौमी एकता पर क्यों लिखते हैं नजीर अकबरा वादी उर्दू शेर
है दशहरा में भी यूं तो फरहत व जीनत नजीर
पर दीवाली भी अजीब पाकीजा त्योहार॥
भगवान श्रीकृष्ण के प्रति करते रहे अर्चना
तुलसीदास के मित्र अब्दुल रहीम खानखाना-
‘जिहि रहीम मन आपुनों, कीन्हों चतुर चकोर
निसि बासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर’ ॥
ओह , ब्रजभूमि मॆं क्यों बनी है ताज बीबी की समाधि 3
अब शरअ नहीं मेरे कुछ काम की, श्याम मेरे हैं, मैं मेरे श्याम की |
बृज में अब धूनी रमा ली जायेगी, जब लगन हरि से लगा ली जायेगी |
कबीर - वो तो थे विधवा हिन्दु ब्राह्मणी के बेटे
क्यू मुस्लिम जुलाहे नीरू और नीमा ने गले लगाया -
भाई दुई जगदीश कहांते आये कौने मति भरमाया।
अल्लाह राम करीमा केलव हरि हजरत नाम धराया।।
गहना एक कनक ते बनता तामें भख न दूजा।
कहव कहन सुनत को दुई कर आये इक निमाज इक पूजा।।
वहि महादेव वही मुहम्मद ब्रह्मा आदम कहिये।
कोई हिंदू काई तुरक कहखे एक जमीं पर रहिये।।
वेद किताब पढ्ैं व खुतबा वे मुलना वे पांडे।
विगत विगत कै नाम धरावें एक भटिया के भांडे।।
कहै कबीर वे दूनो भूले रामे किन्हु न पाया।
वे खसिया व गाय कटावें वादे जन्म गवांया।।
अगले जन्म मॆं ब्रज मॆं जन्मेगें सय्यद इब्राहीम "रसखान" -
मानुष हों तो वही रसखान, बसौं नित गोकुल गाँव के ग्वारन।जो पसु हौं तौ कहा बसु मेरौ, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।पाहन हौं तौ वही गिरि कौ जुधर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरौं नित, कालिंदी-कूल कदंब की डारन।।
दीन - इलाही के दरबार मॆं मुस्तकिल मीर अर्ज 'रहीम' -
तैं रहीम मन आपुनो, कीन्हों चारु चकोर।
निसि बासर लागो रहै, कृष्णचंद्र की ओर॥
पता लगाओ उन्हे कैसे मिला ज्ञानपीठ
अली सरदार जाफरी गये उर्दू मॆं लिख -
गुफ़्तगू बंद न हो
बात से बात चले
सुब्ह तक शामे-मुलाकात चले
हम पे हंसती हुई ये तारों भरी रात चले ॥
हिसाब तो उनका भी अभी करना बाकी है
क्यों जो वे लड़े मेरे मादरे वतन के लिये
'मादरे वतन भारत की जय' नारा लगाया जिसने पहली बार
अज़ीमुल्लाह खां के सामने क्या सर झुकाया कभी एक बार 4
अंग्रेजों कॊ घुटने टेकने पर किया कई बार मजबूर
इतिहास के नायक थे टीपू सुल्तान शेर - ए - मैसूर
1 गांधीजी की सुप्रसिध्द शिप्या एवं विख्यात देशभक्त अब्बास तय्यबजी की सुपुत्री, 2 गुजरात के मयशाना मॆं वर्ष 1712 ई 3 अकबर की बेगम एवं गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका
4 जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर देश के लिए काम किया , आगे चलकर इन्हीं मशहूर योद्धा अजीमुल्ला खां ने मादरे वतन भारत की जय का नारा दिया।
दिनांक 11.10.2016 मंगलवार
संदीप मुरारका