Sunday, 2 October 2016

माँ (Maa Durga)

माँ आती है साल मॆं दो बार
लेकिन क्या कभी किसी ने
उनको अपने बच्चों से
मिलते देखा है

मुझे तो नहीँ लगता
कि कभी हाल भी पूछती हैं
और  बालों पर हाथ रख
कभी सहलाया भी करती है

लोग कहते हैं
माँ आदिशक्ति है
शायद इसीलिए केवल
शक्तिशालीयों के पास जाती होगी

गरीब के लिये तो माँ केवल ठेला है
बच्चों के लिये माँ केवल मेला है
नौकरी वाले के लिये छुट्टी है माँ
औ' व्यापारी के लिये सीजन है माँ

माँ सिर्फ कहानियों मॆं
महिषासुर कॊ मारती है
माँ सिर्फ तस्वीरों मॆं
अस्त्रों कॊ धारति है ।

वरना फ़िर रहे
गली गली राक्षस
क्यों नहीँ उनका दमन करती
क्योंकि उनके द्वारा ही
ज्यादातर पंडालों मॆं तुम सजती !

बेटे बेटियों कॊ ही
दोषी बतलाती है दुनिया
माँ तेरी गलती नज़र
नहीँ किसी कॊ आती ।

क्योंकि खौफ तेरा काम कर रहा
अब पूजा पूजा थोड़े ही है
वो तो बाजार बन रहा
बन के बोनस बँट रहा ।

सच बताऊँ माँ
बुरा मत मानना

इंतजार लोग तेरा नहीँ
बोनस का करते हैं
वे इंतज़ार छुट्टी मेले
व शॉपिंग का करते हैं ।

 वाह माँ पेट क्या भरोगी तुम
किसी  गरीब का
तुम  तो भोग प्रसाद भी अब
भर हन्डियो में बेचने लगी हो ।

गरीब की थाली की खीचडी
भी अमीरों ने छीन ली है ,
अब लोग तुमसे मिलने नहीँ
भोग चखने पण्डाल आते हैं।

माँ ऐसी होती नहीँ
जैसी तुम बन गयीं हो
पूजवाती हो नवरूपों मॆं,
रुप एक नहीँ दिखलाती हो ।

हाल रहा गर यही तुम्हारा
देखना लोग तुझको भूल जायेंगे
भले बनेंगे पण्डाल वातानुकुलीन
भले मूर्तियाँ होंगी समकालीन
भले भोग खूब खिलाया जायगा
पर बच्चों के मुख से
नाम तुम्हारा  नहीँ आयेगा

माँ तुम रूठ जाओ भले मुझसे
मुझको इसका डर नहीँ
पर शक्ति तुमको तुम्हारी
याद मैं दिलाता हूँ

हो यदि वाकई तुम
तो भूखे नंगों का उद्धार करो
माँ फ़िर एक बार आओ माँ 
और दुष्टों का संहार करो

दिनांक 2.10.16
जमशेदपुर 

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